11-09-2025, 04:25 PM
बहू की भूख
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में, जहां हरे-भरे खेतों की लहरें हवा में नाचतीं और सुबह की पहली किरणें नदी के किनारे चमकतीं, वहां रहता था एक जमींदार परिवार। परिवार का मुखिया था रामलाल, 55 साल का, मजबूत कद-काठी वाला, काले बालों में सफेदी घुली हुई, लेकिन आंखों में वही पुरानी चमक जो सालों की मेहनत से बनी थी। रामलाल का बदन अभी भी ताकतवर था – चौड़े कंधे, मोटी छाती, और पैंट के नीचे उभार जो बताता कि उसका लंड कोई कमजोर नहीं। वह विधुर था, पत्नी की मौत के बाद बहू को ही अपना सहारा बना लिया था। बहू का नाम था सीता, 26 साल की, रामलाल के बेटे श्याम की पत्नी। श्याम, 28 साल का, शहर में नौकरी करता था, महीने में एक-दो बार आता, लेकिन सीता गांव में अकेली रहती। सीता का बदन ऐसा था कि गांव के हर मर्द की नजरें उस पर ठहर जातीं – गोरी चिट्टी स्किन, लंबे काले बाल जो कमर तक लहराते, 38D के भरे हुए स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में से बाहर झांकते, पतली कमर और चौड़ी कूल्हे जो साड़ी में लहराते हुए चलती तो लगता जैसे कोई देवी हो। उसकी गांड गोल और भरी हुई, इतनी मुलायम कि छूने को जी चाहे, और चूत हमेशा साफ-सुथरी, लेकिन इच्छाओं से भरी। श्याम अच्छा था, लेकिन बिस्तर में फीका – शहर से आता तो थकान का बहाना, दो-चार धक्के मारकर सो जाता। सीता की रातें अकेली गुजरतीं, बिस्तर पर लेटकर खुद को छूती, उंगलियां अपनी चूत पर फेरती, कल्पना करती किसी मजबूत मर्द के लंड को अंदर महसूस करने की, लेकिन कभी कुछ बोलती नहीं। रामलाल सब देखता, लेकिन चुप रहता – बहू की सुंदरता पर उसका मन ललचाता, लेकिन संस्कार रोकते।
एक सुबह, श्याम शहर चला गया। सीता अकेली थी, घर संभाल रही। रामलाल खेत से लौटा, पसीने से तर, कमीज उतारकर नहाने लगा आंगन में। सीता ने पानी डाला, लेकिन नजर रामलाल के बदन पर पड़ी – उसकी मोटी छाती, मजबूत बाजू, और पैंट का उभार। सीता की सांस रुक गई, उसकी चूत में एक गुदगुदी हुई। "बाबूजी, पानी ठंडा है?" वह बोली, लेकिन आंखें नीचे। रामलाल मुस्कुराया, "ठीक है बहू, लेकिन तेरी नजरें गर्म हैं।" सीता शरमा गई, लेकिन रुकी नहीं। शाम को, रामलाल ने कहा, "सीता, आज रात साथ सो। श्याम नहीं है, अकेली मत रह।" सीता का दिल धड़का, लेकिन वह मानी। रात को, बिस्तर पर लेटे, रामलाल ने सीता का हाथ पकड़ा। "बहू, तू बहुत सुंदर है। श्याम को तो पता ही नहीं तेरी कीमत का।" सीता की सांस तेज हो गई, "बाबूजी... ये क्या कह रहे हो?" रामलाल ने उसे करीब खींचा, उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। सीता ने पहले हिचकिचाई, फिर जवाब दिया, जीभ मिलाई। रामलाल का हाथ सीता के स्तनों पर गया, ब्लाउज के ऊपर से दबाया। "आह... बाबूजी..." सीता कराही। रामलाल ने ब्लाउज खोला, ब्रा उतारी, उसके भरे हुए स्तन बाहर आ गए – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स। "क्या माल है बहू," रामलाल बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से निप्पल को चाटता, काटा हल्का। सीता तड़प उठी, "आह... बाबूजी... मत करो... लेकिन अच्छा लग रहा है।"
रामलाल ने सीता की साड़ी खींची, पेटीकोट उतारा, पैंटी गीली थी। "बहू, तेरी चूत तो बह रही है," वह बोला, पैंटी उतारकर उंगलियां अंदर डाल दीं। सीता चीख उठी, "आह... हां... और गहरा बाबूजी..." रामलाल ने दो उंगलियां डालीं, अंदर-बाहर किया, क्लिट को रब किया, सीता का पानी निकलने लगा। "बाबूजी... मैं आ रही हूं..." वह झड़ गई, जूसेज रामलाल के हाथ पर, बिस्तर गीला। रामलाल ने पैंट उतारी, उसका लंड बाहर आया – 8 इंच लंबा, मोटा, नसदार, हेड पर प्रीकम चमकता। "बहू, देख मेरा लंड, तेरे लिए ही है।" सीता ने हाथ में लिया, सहलाया, "इतना बड़ा... श्याम का तो आधा भी नहीं।" रामलाल ने सीता को लिटाया, उसके पैर फैलाए। "अब लंड लो बहू।" वह अपना लंड सीता की चूत पर रगड़ा, फिर धीरे से अंदर डाला। सीता चीखी, "आह... दर्द हो रहा है... लेकिन अच्छा... पूरा अंदर करो।" रामलाल ने धक्का मारा, पूरा अंदर। सीता की चूत टाइट थी, लंड को चूस रही थी। रामलाल ने धीरे-धीरे स्पीड बढ़ाई, जोर-जोर से धक्के मारे, सीता के स्तन उछल रहे थे। "बहू, क्या टाइट चूत है... श्याम को तो पता ही नहीं," वह बोला। सीता कराह रही थी, "हां बाबूजी... चोदो मुझे... और तेज... आपका लंड कितना गर्म है।" रामलाल ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स काटे, सीता फिर झड़ गई, उसकी चूत सिकुड़ गई, रामलाल का लंड दब गया। रामलाल ने बाहर निकाला, सीता के पेट पर वीर्य छोड़ा, गर्म रोप्स, उसके नाभि तक फैल गए। दोनों थककर लेट गए, रामलाल ने सीता को गले लगाया। "बहू, ये हमारा राज रहेगा।" सीता मुस्कुराई, "हां बाबूजी, लेकिन रोज करो।"
अगले दिनों, रामलाल और सीता की चुदाई जारी रही। सुबह खेत में जाते वक्त, रामलाल सीता को खेत के बीच ले जाता, साड़ी ऊपर करके पीछे से चोदता। "बहू, तेरी गांड देखकर मेरा लंड सख्त हो जाता है," वह बोला, सीता को झुकाकर लंड डाला। सीता कराही, "बाबूजी... कोई देख लेगा... लेकिन मत रुको... चोदो जोर से।" रामलाल ने धक्के मारे, सीता का पानी खेत में गिरा। शाम को, घर में, रामलाल सीता को बाथरूम में ले जाता। पानी के नीचे, सीता का बदन चमकता, रामलाल उसके स्तनों को साबुन से मलता, निप्पल्स को रब करता। सीता का हाथ रामलाल के लंड पर जाता, सहलाती। रामलाल सीता के पैर फैलाता, पीछे से लंड डालता। पानी के बीच धक्के, सीता की कराहें गूंजतीं। "आह... बाबूजी... गहरा... आपका लंड मेरी चूत को फाड़ रहा है।" रामलाल उसके बाल पकड़ता, जोर से चोदता, सीता का पानी निकलता, रामलाल उसके गांड में झड़ जाता, गर्म वीर्य बहता पानी में।
एक दिन, सीता ने रामलाल से कहा, "बाबूजी, आज कुछ नया करो।" रामलाल ने सीता को बांध लिया, दुपट्टे से हाथ बांधे। "बहू, आज तू मेरी है पूरी तरह।" वह सीता के बदन को चाटने लगा – गले से शुरू, स्तनों पर जीभ फेरता, निप्पल्स को चाटता, काटता हल्का, सीता तड़प उठी। फिर पेट पर, नाभि में जीभ डाली, फिर चूत पर। जीभ से चूत चाटी, क्लिट को चूसा, सीता चीखी, "आह... बाबूजी... छोड़ो मुझे... चोदो!" रामलाल ने लंड डाला, लेकिन धीरे, एजिंग। सीता झड़ गई कई बार, पानी बहता रहा। आखिर में, रामलाल ने गांड मारी। ल्यूब लगाकर, धीरे डाला। सीता चीखी, "दर्द... लेकिन मत रुको... पूरा अंदर।" रामलाल ने धक्के मारे, सीता को मजा आने लगा। "हां बाबूजी... चोदो गांड... आह... कितना अच्छा लग रहा!" रामलाल झड़ गया, सीता के अंदर, गर्म वीर्य बहता।
समय बीतता गया, सीता की भूख बढ़ी। वह रामलाल से कहती, "बाबूजी, आज खेत में ले चलो।" रामलाल सीता को खेत के बीच ले जाता, साड़ी ऊपर करके चोदता, कभी मुंह में लंड डलवाता। सीता चूसती, "बाबूजी, आपका लंड कितना स्वादिष्ट।" लेकिन एक दिन, श्याम आया। सीता खुश थी, लेकिन रात को श्याम के साथ बोर हो गई। श्याम सो गया, सीता रामलाल के कमरे में चली गई। "बाबूजी, श्याम सो गया, अब चोदो मुझे।" रामलाल ने सीता को लिटाया, लंड डाला, जोर से चोदा। सीता कराही, "बाबूजी... श्याम का तो कुछ नहीं, आपका लंड ही असली है।" रामलाल ने उसके स्तनों को चूसा, चूत में धक्के मारे। सीता झड़ गई, रामलाल ने अंदर झाड़ दिया।
फिर एक दिन, गांव में मेला लगा। रामलाल और सीता मेले गए, भीड़ में छिपकर रामलाल ने सीता की साड़ी ऊपर की, उंगलियां चूत में डालीं। सीता कराही, "बाबूजी... कोई देख लेगा... लेकिन मत रुको।" रामलाल ने उसे एक कोने में ले जाकर चोदा, लंड डाला, धक्के मारे। सीता का पानी बहा, रामलाल झड़ गया। घर लौटकर, दोनों थककर लेट गए। सीता अब पूरी तरह रामलाल की हो गई थी, श्याम को भूलकर। उनकी चुदाई जारी रही, कभी नदी किनारे, कभी जंगल में। सीता की भूख कभी न मिटती, रामलाल का लंड हमेशा तैयार। गांव की बहू अब एक कामुक रानी थी, बाबूजी के लंड की भूखी।