दूधवाले की लालच
लखनऊ के एक शांत मोहल्ले में, जहां सुबह की पहली किरणें पुराने पेड़ों की डालियों से छनकर आतीं और हवा में दूध की ताजगी और फूलों की महक घुली रहती, वहां रहती थी रानी। रानी, 28 साल की, एक साधारण गृहिणी थी, जिसका पति विजय एक छोटी सी दुकान चलाता था। रानी का बदन ऐसा था कि देखने वाले की आंखें ठहर जाएं – गोरी चिट्टी स्किन, लंबे काले बाल जो कमर तक लहराते, 36D के भरे हुए स्तन जो साड़ी के ब्लाउज में से बाहर आने को बेताब लगते, पतली कमर और चौड़ी कूल्हे जो साड़ी में लहराते हुए चलती तो लगता जैसे कोई सपना हो। उसकी गांड गोल और भरी हुई, इतनी मुलायम कि छूने को जी चाहे। लेकिन रानी का जीवन सादा था – सुबह उठकर घर संभालना, पति के लिए चाय बनाना, और शाम को थककर सो जाना। विजय अच्छा था, लेकिन बिस्तर में फीका – महीने में दो-चार बार, लाइट बंद करके, ऊपर-नीचे होकर खत्म। रानी की इच्छाएं दबी हुई थीं, रातों में अकेले लेटकर खुद को छूती, उंगलियां अपनी चूत पर फेरती, कल्पना करती किसी मजबूत मर्द के लंड को अंदर महसूस करने की, लेकिन कभी कुछ बोलती नहीं।
मोहल्ले में दूधवाला था गोविंद, 30 साल का, मजबूत कद-काठी वाला, काला रंग लेकिन आंखों में चमक। गोविंद का बदन मेहनत से तराशा हुआ – चौड़े कंधे, मजबूत बाजू, और पैंट के नीचे उभार जो बताता कि उसका लंड कोई छोटा नहीं। वह रोज सुबह दूध बांटता, लेकिन रानी के घर आकर थोड़ा रुकता, उसकी साड़ी की चमक को निहारता। रानी भी नोटिस करती, लेकिन शरम से नजरें झुका लेती। एक सुबह, जब विजय दुकान गया, गोविंद दूध देते समय रानी के हाथ पर उंगलियां फेर दी। "भाभी, आज दूध ताजा है, लेकिन आपकी तरह नहीं," वह मुस्कुराया। रानी शरमा गई, लेकिन उसके मन में एक गुदगुदी हुई। "गोविंद भैया, ऐसे मत बोलो," वह बोली, लेकिन उसकी आंखें उसके उभार पर ठहर गईं।
अगले दिन, रानी ने जानबूझकर साड़ी थोड़ी ढीली बांधी। गोविंद आया, दूध देते समय उसके स्तनों पर नजर पड़ी, जहां ब्लाउज से उभार झांक रहे थे। "भाभी, आपका ब्लाउज..." वह बोला। रानी ने शरमाते हुए कहा, "बटन खुल गया लगता है।" गोविंद ने हाथ बढ़ाया, बटन ठीक करते हुए उसके स्तन को छुआ। रानी की सांस रुक गई, उसके निप्पल सख्त हो गए। "गोविंद... ये क्या कर रहे हो?" लेकिन वह रुकी नहीं। गोविंद ने हिम्मत की, "भाभी, आप बहुत खूबसूरत हो, विजय भैया को तो मैं देखता हूं, लेकिन आप अकेली लगती हो।" रानी का दिल धड़का, "तुम्हें क्या पता?" गोविंद ने दूध का गिलास रखा, और उसे दीवार से सटा लिया। "मुझे सब पता है, भाभी। रातों में आप खुद को छूतियां, मैंने देखा है खिड़की से।" रानी शॉक्ड हुई, लेकिन उसकी चूत गीली हो गई। गोविंद ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए, जीभ अंदर डाल दी। रानी ने पहले हिचकिचाई, फिर जवाब दिया, उसके हाथ गोविंद की कमर पर चले गए।
गोविंद ने रानी की साड़ी खींची, ब्लाउज के बटन खोले, उसके भरे हुए स्तन बाहर आ गए – गोल, सख्त, गुलाबी निप्पल्स। "भाभी, क्या माल है," वह बोला, एक स्तन मुंह में ले लिया, चूसने लगा, जीभ से निप्पल को चाटता। रानी कराह उठी, "आह... गोविंद... मत करो..." लेकिन उसके हाथ गोविंद के पैंट पर चले गए, उभार को दबाया। गोविंद ने पैंट उतारी, उसका लंड बाहर आया – 9 इंच लंबा, मोटा, नसदार, हेड पर प्रीकम चमकता। "भाभी, देखो मेरा लंड, आपके लिए ही है।" रानी ने हाथ में लिया, सहलाया, "इतना बड़ा... विजय का तो आधा भी नहीं।" गोविंद ने रानी की साड़ी पूरी उतार दी, उसकी पैंटी गीली थी। "भाभी, आपकी चूत तो बह रही है," वह बोला, पैंटी उतारकर उंगलियां अंदर डाल दीं। रानी चीख उठी, "आह... हां... और गहरा..." गोविंद ने दो उंगलियां डालीं, अंदर-बाहर किया, क्लिट को रब किया। रानी का पानी निकलने लगा, "गोविंद... मैं आ रही हूं..." वह झड़ गई, जूसेज गोविंद के हाथ पर।
गोविंद ने रानी को किचन टेबल पर लिटाया, उसके पैर फैलाए। "भाभी, अब मेरा लंड लो।" वह अपना लंड रानी की चूत पर रगड़ा, फिर धीरे से अंदर डाला। रानी चीखी, "आह... दर्द हो रहा है... लेकिन अच्छा..." गोविंद ने धक्का मारा, पूरा अंदर। रानी की चूत टाइट थी, लंड को चूस रही थी। गोविंद ने धीरे-धीरे स्पीड बढ़ाई, जोर-जोर से धक्के मारे, रानी के स्तन उछल रहे थे। "भाभी, क्या टाइट चूत है... विजय भैया को तो पता ही नहीं," वह बोला। रानी कराह रही थी, "हां... चोदो मुझे... और तेज..." गोविंद ने उसके स्तनों को दबाया, निप्पल्स काटे। रानी फिर झड़ गई, उसकी चूत सिकुड़ गई, गोविंद का लंड दब गया। गोविंद ने बाहर निकाला, रानी के पेट पर वीर्य छोड़ा, गर्म रोप्स। दोनों थककर लेट गए। "भाभी, ये हमारा राज रहेगा," गोविंद बोला। रानी मुस्कुराई, "हां, लेकिन रोज आना।"
अगले दिनों, गोविंद रोज आता। कभी किचन में, कभी बाथरूम में। एक दिन, बाथरूम में नहाते वक्त गोविंद आया। रानी नंगा थी, पानी उसके बदन पर बह रहा। गोविंद ने कपड़े उतारे, अंदर आ गया। "भाभी, साथ नहाएं।" वह रानी को दीवार से सटाया, उसके स्तनों को साबुन से मला, निप्पल्स को रब किया। रानी का हाथ गोविंद के लंड पर गया, सहलाया। गोविंद ने रानी के पैर फैलाए, पीछे से लंड डाला। पानी के बीच धक्के, रानी की कराहें गूंज रही थीं। "आह... गोविंद... गहरा..." गोविंद ने उसके बाल पकड़े, जोर से चोदा। रानी का पानी निकला, गोविंद ने उसके गांड में झाड़ दिया।
फिर एक दिन, रानी ने गोविंद को बेडरूम में बुलाया। वह लिंगरी पहने थी, रेड ब्रा और पैंटी। "गोविंद, आज कुछ नया करो।" गोविंद ने रानी को बांध लिया, दुपट्टे से हाथ बांधे। "भाभी, आज तुम मेरी हो।" वह रानी के बदन को चाटने लगा – गले से शुरू, स्तनों पर, निप्पल्स को काटा, पेट पर, फिर चूत पर। जीभ से चूत चाटी, क्लिट को चूसा। रानी तड़प उठी, "आह... छोड़ो मुझे... चोदो!" गोविंद ने लंड डाला, लेकिन धीरे, एजिंग। रानी झड़ गई कई बार। आखिर में, गोविंद ने गांड मारी। ल्यूब लगाकर, धीरे डाला। रानी चीखी, "दर्द... लेकिन मत रुको।" गोविंद ने धक्के मारे, रानी को मजा आने लगा। "हां... चोदो गांड... आह!" गोविंद झड़ गया, रानी के अंदर।
समय बीतता गया, रानी की इच्छाएं बढ़ीं। वह गोविंद से कहती, "आज कुछ और करो।" गोविंद ने दोस्त बुलाया, लेकिन रानी ने मना कर दिया। "सिर्फ तुम।" लेकिन एक दिन, रानी की सहेली ने देख लिया। फिर अफवाहें फैलीं। विजय को शक हुआ। लेकिन रानी खुश थी, गोविंद के लंड की लालच में। उनकी चुदाई जारी रही, कभी खेत में, कभी गाड़ी में। रानी अब संस्कारी नहीं, एक कामुक औरत थी।