10-09-2025, 10:37 AM
दयाराम खामोशी से कोने में खड़ा हो गया, उसकी नजरें खुशबू के चूतड़ों पर जाकर टिक गईं। उसकी लुंगी में उसका लंड तनने लगा, जैसे कोई बेकाबू जंगली जानवर। उसने अपने आप को संभालने की कोशिश की, लेकिन खुशबू की जवानी का जादू उसे बेचैन कर रहा था। वो धीरे से पीछे हटने लगा, मगर तभी खुशबू ने पलटकर उसे देखी। उसकी तिरछी नजरें ससुर की लुंगी पर पड़ीं, जहाँ उभार साफ दिख रहा था। खुशबू का चेहरा एक पल को लाल हो गया, वो समझ गई कि ससुर की नजरें उसकी देह पर भूखी भेड़ियों की तरह टिकी थीं।
अगले कुछ दिनों तक दयाराम का यही खेल चलता रहा। वो हर मौके पर खुशबू को घूरता, उसकी हरकतों को ताड़ता। खुशबू शुरू-शुरू में इस घूरने से थोड़ा असहज हो जाती, मगर धीरे-धीरे उसे ये सब नॉर्मल लगने लगा। बल्कि, अब तो उसके दिल के किसी कोने में ससुर की ये भूखी नजरें अच्छी लगने लगी थीं। उसे अपनी जवानी पर गर्व होने लगा, और वो जानबूझकर ससुर के सामने इठलाने लगी। कभी साड़ी को थोड़ा और नीचे खिसकाती, कभी जानबूझकर झुककर अपनी चूचियों का उभार दिखाती। वो देखना चाहती थी कि ससुर कितना बेकाबू हो सकता है।
दयाराम भी कोई नौसिखिया नहीं था। उसने खुशबू के चेहरे पर ना तो गुस्सा देखा, ना ही नफरत। बल्कि, अब तो खुशबू खुद उसके करीब आने के बहाने ढूंढने लगी थी। दयाराम समझ गया कि बहू अब उसके जाल में फंस चुकी है। उसने सोचा, अब वक्त है अगला कदम बढ़ाने का। आँखों की बातें तो हो चुकी थीं, अब कुछ असली बातचीत होनी चाहिए। मगर सीधे-सीधे फ्लर्ट करना जोखिम भरा था। खुशबू शरमा सकती थी, या बात को टाल सकती थी। तभी उसके दिमाग में एक तरकीब सूझी— आज से वो काम्या से खुलकर बात करेगा, उसकी तारीफ करेगा, क्योंकि औरत को अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनना हमेशा पसंद होता है।
रात को खाना खाने के बाद सास मीना अपनी नींद की गोली खाकर सोने चली गई। खुशबू ने भी किचन का काम निपटाया और अपने कमरे में चली गई। दयाराम टीवी देखता रहा, मगर उसका दिमाग कहीं और था। करीब दस बजे वो उठा और छत पर चला गया। उधर, खुशबू अपने कमरे में थी। उसने कपड़े बदले, एक पतली सी नाइटी पहनी, जो उसके जिस्म से चिपककर उसकी हर वक्र को उभार रही थी। वो बिस्तर पर लेटी , नींद नहीं आ रही थी। सुबह की घटना उसके दिमाग में घूम रही थी।
सुबह जब वो पोंछा लगा रही थी, उसने लो-कट ब्लाउज पहना था। झुकते वक्त उसकी चूचियाँ आधी बाहर झांक रही थीं। दयाराम उसे एकटक घूर रहा था, उसकी नजरें खुशबू की चूचियों पर जमी थीं, जैसे कोई भूखा शेर मांस को देख रहा हो। खुशबू शर्म से पानी-पानी हो गई थी और भागकर कमरे में चली गई थी। अब उस दृश्य को याद करके उसका बदन सिहर उठा। “हाय राम, ससुर जी की नजरें कितनी भूखी थीं! मयंक ने तो कभी ऐसे नहीं देखा,” उसने मन ही मन सोचा।
इधर, छत पर दयाराय टहल रहा था। वो सोच रहा था कि बात कैसे शुरू करे, क्या बोले। उसने उससे फोन किया और छत पर बुलाया। तभी खुशबू के होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई। “लगता है ससुर जी की नींद हराम हो चुकी है,” उसने सोचा और फोन उठाया।
खुशबू : हेलो…
दयाराम : हेलो, बहू? हाँ, मैं ससुर जी बोल रहा हूँ। सो गई थी क्या?
खुशबू : अरे, ससुर जी! नहीं, अभी नहीं सोई।
दयाराम : तो क्या कर रही थी? नींद नहीं आ रही?
खुशबू : बस, गाने सुन रही थी। आप बताइए ?
दयाराम : छत पर हूँ।
खुशबू : क्या बात है, ससुर जी? आपको नींद नहीं आ रही?
दयाराम: अरे बहू, नींद तो उड़ गई है।
खुशबू समझ गई कि ससुर का इशारा किस तरफ है, मगर उसने अनजान बनते हुए पूछा, “क्यों ससुर जी , नींद क्यों नहीं आ रही? तबीयत तो ठीक है ना?”
दयाराम: तबीयत तो ठीक है, मगर बुढ़ापे में नींद कहाँ आती है?
खुशबू: अच्छा, बताइए न, फोन क्यों किया?
दयाराम : तुम भी छत पर आओ ना ।
काम्या: ठीक है , आती हुं ससुर जी ?
..............छत पर खूशबू के आने के बाद............
दयाराम : वो… उस दिन बाथरूम वाली बात। मुझे लगता है, तुम उस दिन से नाराज हो।
खुशबू : अरे, नहीं ससुर जी, हम नाराज नहीं हैं। वो तो हमारी गलती थी, दरवाजा खुला नहीं रखना चाहिए था।
दयाराम : हाँ, मगर बहू, हम भी तो बहक गए। तुम्हें वैसा देखकर हमारा दिमाग काम करना बंद कर गया। सॉरी।
खुशबू : अरे, ससुर जी, सॉरी मत बोलिए। हम सचमुच नाराज नहीं हैं।
दयाराम अब मौके की नजाकत भांप चुका था। उसने बात को थोड़ा और मोड़ा। “दरअसल, बहू, जब दरवाजा खुला और हमने तुम्हें देखा, तो हमारी आँखें चौंधिया गईं। ऐसा लगा जैसे कोई अप्सरा सामने खड़ी हो। बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला, मगर तुमने तो और बड़ी गलती कर दी।”
खुशबू : गलती? हमने क्या किया, ससुर जी?
दयाराम : अरे, तुम पलटकर घूम गईं ना!
खुशबू: वो तो शरम के मारे पलट गई थी।
दयाराम : बस, वही तो गलती थी। तुम्हारा पीछे वाला हिस्सा… हाय, ऐसा कि अगर कोई मुर्दा भी देख ले, तो उठ बैठे। अगर कोई हिजड़ा देख ले, तो वो भी जोर-जबरदस्ती करने लगे। और हम तो फिर भी इंसान हैं, बहू!
खुशबू समझ गई कि ससुर उसकी गांड की बात कर रहा है, मगर उसने नादानी का नाटक किया। “ससुर जी, आप क्या बोल रहे हैं? हमें तो कुछ समझ नहीं आ रहा।”
दयाराम : अरे बहू, अब हम कैसे समझाएँ? अगर तुम गुस्सा ना होने का वादा करो, तो बताएँ।
खुशबू : गुस्सा होने की क्या बात? आप बताइए ना।
दयाराम अब खुलकर खेलने के मूड में था। “हम तुम्हारी उस चीज की बात कर रहे हैं, जो तुम पैंटी में छुपाती हो।”
खुशबू हँसते हुए बोली, “ससुर जी, कसम से, हम वहाँ कुछ नहीं छुपाते। पैंटी में तो जेब भी नहीं होती!”
दयाराम को पता था कि खुशबू सब समझ रही है, मगर मजा ले रही है। वो बोला, “अरे, हम जेब की बात नहीं कर रहे। हम तुम्हारी उस शत्रुहंता गांड की बात कर रहे हैं!”
“हाय राम!” खुशबू के बदन में सनसनी दौड़ गई। ससुर के मुँह से इतना खुला शब्द सुनकर उसकी साँसें तेज हो गईं। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। दयाराम उसकी तेज साँसों की आवाज साफ सुनाई दे रही थी। वो समझ गया कि उसका तीर निशाने पर लगा है।
खुशबू : ससुर जी, आप क्या बोल रहे हैं!
दयाराम : सच बोल रहे हैं, बहू। तुम्हारी गांड को देखकर हम तो पागल हो गए। उसके बाद जो कुछ हुआ, वो हमने नहीं, तुम्हारी उस मादक गांड ने करवाया।
खुशबू की साँसें और तेज हो गईं। उसकी पैंटी भीग चुकी थी। और उसकी काजू-दाना तनकर खड़ा हो गया। “हाय ससुर जी, आप तो चालाक हैं। सारा दोष हम पर डाल रहे हैं। सारे मर्द एक जैसे होते हैं!”
दयाराम : हाँ बहू, मर्द तो एक जैसे होते हैं, मगर औरतें नहीं। तुम्हारी जैसी गांड हमने जिंदगी में कभी नहीं देखी। सच कहें, मयंक बहुत किस्मत वाला है, जो उसे तुम जैसा खजाना मिला।
खुशबू वो सुनकर एक पल को मायूसी हुई। मयंक ने तो कभी उसकी गांड की तारीफ नहीं की थी, ना ही कभी उसे इस तरह छुआ था। उसने बिना सोचे कह दिया, “जिसे खजाने से मतलब ही नहीं, उसकी बात ना करें, ससुर जी।”
दयाराम तुरंत समझ गया कि मयंक खुशबू की कदर नहीं करता। ये उसके लिए सुनहरा मौका था। “तुमने कभी अपना दुख बताया ही नहीं, बहू। वरना…”
खुशबू : बताया तो क्या करते? हम तो कोलकाता में रहते हैं।
दयाराम : तो क्या हुआ? हम तो घरवाले हैं। कोई ना कोई रास्ता निकाल लेते।
खुशबू : उनके बिना कैसे?
खुशबू अब पूरी तरह गर्म हो चुकी थी। “आआह…” एक हल्की सी सिसकारी उसके मुँह से निकली।
दयाराम : क्यों बहू, हमें कमजोर समझ रही हो? कोलकाता आकर सब कुछ सुलझ सकता है।
खुशबू : आप क्या कह रहे हैं, ससुर जी?
दयाराम : हम कह रहे हैं, तुम्हारे खजाने की सेवा हम कर देंगे, अगर तुम्हें ऐतराज ना हो। जवानी का बोझ कोई उठा ले, तो सफर आसान हो जाता है।
ये सुनते ही खुशबू का बदन झनझना उठा। उसे अपनी चूत को बिना मसलें ही उसकी चूत से पानी का सैलाब बह निकला, ऐसा ऑर्गेज्म उसे मयंक के साथ सेक्स में भी कभी नहीं हुआ था। वो सोचने लगी, “हाय राम, ससुर जी इतना खुलकर बोल रहे हैं, जैसे मैं उनकी बहू नहीं, कोई गर्लफ्रेंड हूँ।” उसकी गांड का जादू तो पहले भी कई बार चल चुका था।
( शादी से पहले की बात थी। एक बार वो अपनी सहेली पंखुरी के साथ बाजार गई थी। दोनों ने टाइट जींस पहनी थी। खुशबू की गोलमटोल गांड उस जींस में ऐसी लग रही थी, जैसे कोई मक्खन का गोला। पूरा बाजार उसकी गांड को घूर रहा था। दुकानदार हों या ग्राहक, सबकी आँखें उस पर टिकी थीं। पंखुरी को ये बात चुभ गई। लौटते वक्त वो बोली, “खुशबू , अगली बार तू अकेले बाजार जा। सारा बाजार तेरी गांड को देख रहा था, मुझे तो कोई पूछ ही नहीं रहा!” खुशबू ने हँसकर टाल दिया, मगर उसे भी अंदर ही अंदर अपनी जवानी पर गर्व हुआ। ) ( नोटिस:- यह वही पंखुरी है जिसकी एक कहानी आने वाली हैं इस साइट पर " " काला जामुन ")
( एक दूसरी घटना कॉलेज की थी। छमाही परीक्षा का रिजल्ट आया था। खुशबू की दोस्त पायल , जो थोड़ी चालू थी, बोली, “खुशबू , तुझे पता है, तू जिन सब्जेक्ट्स में अच्छे नंबर लाई, वो सब मेल टीचर्स के हैं। और लेडी टीचर्स ने तुझे कम नंबर दिए। जानती है क्यों? क्योंकि वो तेरी इस गोलमटोल गांड से जलती हैं, और मेल टीचर्स इसके दीवाने हैं!” खुशबू ने उसे डाँटा, मगर पायल हँसते हुए बोली, “अगर मेरे पास तेरी जैसी गांड होती, तो मैं टीचर्स से अपने पैर दबवाती!” ) ( नोटिस - यह वही पायल है जिनकी एक कहानी आने वाली हैं )
अब आगे… दयाराम को खुशबू की तेज साँसों और चीख से पता चल गया था कि वो झड़ चुकी है। वो समझ गया कि बहू अब उसके जाल में पूरी तरह फंस चुकी है। अगले दिन उसने ‘वेट एंड वॉच’ की नीति अपनाई। खुशबू का व्यवहार सामान्य था, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। दयाराम ने फिर से उसका चक्षु चोदन शुरू कर दिया। दो दिन तक यही आँखों की गुस्ताखियाँ चलती रहीं।
एक शाम खुशबू ने पतली सी साड़ी पहनी थी, जो उसके जिस्म से चिपककर उसकी हर वक्र को उभार रही थी। साड़ी इतनी नीचे बँधी थी कि उसकी नाभि और पेट का गोरा मांस साफ दिख रहा था। दयाराम का लंड बार-बार तन रहा था। खुशबू किचन में गई, और मीना पूजा करने चली गई। दयाराम को मौका मिल गया। वो किचन में घुसा। खुशबू आटा गूँथ रही थी, और उसके कूल्हों पर थोड़ा आटा लग गया था। दयाराम ने मौके का फायदा उठाया। “अरे, ये क्या लगा है पीछे?” कहते हुए उसने खुशबू की गांड पर हाथ रख दिया और धीरे-धीरे सहलाने लगा।
खुशबू का बदन सिहर उठा। “हाय, ससुर जी, क्या है?” वो बोली, मगर उसकी आवाज में शरम के साथ-साथ एक अजीब सी उत्तेजना थी।
दयाराम : शायद आटा लगा है, हम साफ कर देते हैं।
खुशबू : गलती से लग गया होगा।
दयाराम ने आटा साफ करने के बाद भी अपना हाथ नहीं हटाया। वो खुशबू की गांड को सहलाते हुए बोला, “आज क्या सब्जी बना रही हो, बहू?”
खुशबू : अभी कुछ पक्का नहीं किया। आप बताइए, क्या पसंद है?
दयाराम : जो हमें पसंद है, वो तुम नहीं पाओगी।
खुशबू : आप बोलिए तो, हम वही खिला देंगे।
दयाराम : सोच लो, बाद में मुकरना नहीं।
खुशबू : हम अपनी बात के पक्के हैं, ससुर जी।
दयाराम अब खुशबू के बगल में खड़ा हो गया था। उसकी नजरें खुशबू की चूचियों पर टिकी थीं, जो साड़ी के ऊपर से उभरी हुई थीं। खुशबू ने उसकी नजरें पकड़ लीं, मगर अनजान बनी रही। “बोलिए ना, क्या खाएँगे?” उसने पूछा।
दयाराम ने उसकी आँखों में देखा, फिर नजरें नीचे करते हुए बोला, “हमें तो नॉनवेज खाना है।”
खुशबू : नॉनवेज? हमारे घर में तो नहीं बनता। सासु मां मना करेंगी।
दयाराम : घर में नहीं बनता, तो कच्चा ही खिला दो। —कहते हुए उसने खुशबू की गांड को जोर से दबा दिया।
खुशबू : उउह! ससुर जी, कोई कच्चा मांस खाता है क्या?
दयाराम : हम तो फौजी आदमी हैं, बहू। हमें कच्चा मांस भी पसंद है। —उसने अपनी उंगली खुशबू की गांड की दरार में धीरे से सरकाई।
खुशबू : हाय राम, आप कैसे कच्चा मांस खा लेते हैं?
दयाराम : तुमने अभी दुनिया देखी कहाँ है, बहू? और एक बात बताएँ?
खुशबू : क्या, ससुर जी?
दयाराम : अगर मांस ताजा और जवान हो, तो कच्चा खाने में और मजा आता है। एक बार तुम भी खाओगी, तो दीवानी हो जाओगी।
खुशबू की चूत अब पूरी तरह भीग चुकी थी। ससुर की गंदी बातें उसे पागल कर रही थीं। उसने कभी नहीं सोचा था कि वो अपने ससुर के साथ ऐसी बातें करेगी। तभी पूजा कक्ष से घंटी की आवाज आई। मीना की पूजा खत्म होने वाली थी।
खुशबू : ससुर जी, अब आप जाइए। सासु मां आने वाली हैं।
दयाराम : और हमारा नॉनवेज?
खुशबू : सासु मां , से परमिशन लीजिए, फिर मिलेगा।
दयाराम : वो तो कभी नहीं मानेगी। चोरी-छुपे खिलाना पड़ेगा।
खुशबू : हाय राम, अब आप पाप भी करवाएँगे?
दयाराम हँसते हुए किचन से निकल गया और बाथरूम की ओर चला गया। खुशबू ने उसे जाते देखा और शरम से लाल हो गई। वो जानती थी कि ससुर बाथरूम में जाकर क्या करने वाला है। वो भी जल्दी से अपने कमरे में चली गई। उसका बदन गर्म था, गाल लाल हो चुके थे। उसकी गांड में अभी भी ससुर की उंगली का स्पर्श महसूस हो रहा था। “हाय राम, अगर ससुर जी ने और जोर लगाया होता, तो उनकी उंगली तो अंदर चली ही जाती,” वो बुदबुदाई।
बिस्तर पर लेटकर वो सोचने लगी कि मर्दों को औरतों की गांड इतनी अच्छी क्यों लगती है। उसकी गांड ने तो पहले भी कई बार लोगों को दीवाना बनाया था। ( उसे श्री सिन्हा की याद आ गई। अक्सर वह इसके घर आते थे । वो उसे जबरदस्ती गोद में बिठाते, और खुशबू को उनके तने हुए लंड का अहसास होता। एक बार, श्री सिन्हा ने उसे जोर से गले लगाया और उसकी गांड को मसलते हुए कहा, “खुशबू , तू तो पीछे से पूरी साइज की हो गई है। सामने से भी तैयार है। ” खुशबू शर्म से पानी-पानी हो गई थी, मगर श्री सिन्हा की बेशर्मी ने उसे हैरान कर दिया था। )
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अगले कुछ दिनों तक दयाराम का यही खेल चलता रहा। वो हर मौके पर खुशबू को घूरता, उसकी हरकतों को ताड़ता। खुशबू शुरू-शुरू में इस घूरने से थोड़ा असहज हो जाती, मगर धीरे-धीरे उसे ये सब नॉर्मल लगने लगा। बल्कि, अब तो उसके दिल के किसी कोने में ससुर की ये भूखी नजरें अच्छी लगने लगी थीं। उसे अपनी जवानी पर गर्व होने लगा, और वो जानबूझकर ससुर के सामने इठलाने लगी। कभी साड़ी को थोड़ा और नीचे खिसकाती, कभी जानबूझकर झुककर अपनी चूचियों का उभार दिखाती। वो देखना चाहती थी कि ससुर कितना बेकाबू हो सकता है।
दयाराम भी कोई नौसिखिया नहीं था। उसने खुशबू के चेहरे पर ना तो गुस्सा देखा, ना ही नफरत। बल्कि, अब तो खुशबू खुद उसके करीब आने के बहाने ढूंढने लगी थी। दयाराम समझ गया कि बहू अब उसके जाल में फंस चुकी है। उसने सोचा, अब वक्त है अगला कदम बढ़ाने का। आँखों की बातें तो हो चुकी थीं, अब कुछ असली बातचीत होनी चाहिए। मगर सीधे-सीधे फ्लर्ट करना जोखिम भरा था। खुशबू शरमा सकती थी, या बात को टाल सकती थी। तभी उसके दिमाग में एक तरकीब सूझी— आज से वो काम्या से खुलकर बात करेगा, उसकी तारीफ करेगा, क्योंकि औरत को अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनना हमेशा पसंद होता है।
रात को खाना खाने के बाद सास मीना अपनी नींद की गोली खाकर सोने चली गई। खुशबू ने भी किचन का काम निपटाया और अपने कमरे में चली गई। दयाराम टीवी देखता रहा, मगर उसका दिमाग कहीं और था। करीब दस बजे वो उठा और छत पर चला गया। उधर, खुशबू अपने कमरे में थी। उसने कपड़े बदले, एक पतली सी नाइटी पहनी, जो उसके जिस्म से चिपककर उसकी हर वक्र को उभार रही थी। वो बिस्तर पर लेटी , नींद नहीं आ रही थी। सुबह की घटना उसके दिमाग में घूम रही थी।
सुबह जब वो पोंछा लगा रही थी, उसने लो-कट ब्लाउज पहना था। झुकते वक्त उसकी चूचियाँ आधी बाहर झांक रही थीं। दयाराम उसे एकटक घूर रहा था, उसकी नजरें खुशबू की चूचियों पर जमी थीं, जैसे कोई भूखा शेर मांस को देख रहा हो। खुशबू शर्म से पानी-पानी हो गई थी और भागकर कमरे में चली गई थी। अब उस दृश्य को याद करके उसका बदन सिहर उठा। “हाय राम, ससुर जी की नजरें कितनी भूखी थीं! मयंक ने तो कभी ऐसे नहीं देखा,” उसने मन ही मन सोचा।
इधर, छत पर दयाराय टहल रहा था। वो सोच रहा था कि बात कैसे शुरू करे, क्या बोले। उसने उससे फोन किया और छत पर बुलाया। तभी खुशबू के होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई। “लगता है ससुर जी की नींद हराम हो चुकी है,” उसने सोचा और फोन उठाया।
खुशबू : हेलो…
दयाराम : हेलो, बहू? हाँ, मैं ससुर जी बोल रहा हूँ। सो गई थी क्या?
खुशबू : अरे, ससुर जी! नहीं, अभी नहीं सोई।
दयाराम : तो क्या कर रही थी? नींद नहीं आ रही?
खुशबू : बस, गाने सुन रही थी। आप बताइए ?
दयाराम : छत पर हूँ।
खुशबू : क्या बात है, ससुर जी? आपको नींद नहीं आ रही?
दयाराम: अरे बहू, नींद तो उड़ गई है।
खुशबू समझ गई कि ससुर का इशारा किस तरफ है, मगर उसने अनजान बनते हुए पूछा, “क्यों ससुर जी , नींद क्यों नहीं आ रही? तबीयत तो ठीक है ना?”
दयाराम: तबीयत तो ठीक है, मगर बुढ़ापे में नींद कहाँ आती है?
खुशबू: अच्छा, बताइए न, फोन क्यों किया?
दयाराम : तुम भी छत पर आओ ना ।
काम्या: ठीक है , आती हुं ससुर जी ?
..............छत पर खूशबू के आने के बाद............
दयाराम : वो… उस दिन बाथरूम वाली बात। मुझे लगता है, तुम उस दिन से नाराज हो।
खुशबू : अरे, नहीं ससुर जी, हम नाराज नहीं हैं। वो तो हमारी गलती थी, दरवाजा खुला नहीं रखना चाहिए था।
दयाराम : हाँ, मगर बहू, हम भी तो बहक गए। तुम्हें वैसा देखकर हमारा दिमाग काम करना बंद कर गया। सॉरी।
खुशबू : अरे, ससुर जी, सॉरी मत बोलिए। हम सचमुच नाराज नहीं हैं।
दयाराम अब मौके की नजाकत भांप चुका था। उसने बात को थोड़ा और मोड़ा। “दरअसल, बहू, जब दरवाजा खुला और हमने तुम्हें देखा, तो हमारी आँखें चौंधिया गईं। ऐसा लगा जैसे कोई अप्सरा सामने खड़ी हो। बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला, मगर तुमने तो और बड़ी गलती कर दी।”
खुशबू : गलती? हमने क्या किया, ससुर जी?
दयाराम : अरे, तुम पलटकर घूम गईं ना!
खुशबू: वो तो शरम के मारे पलट गई थी।
दयाराम : बस, वही तो गलती थी। तुम्हारा पीछे वाला हिस्सा… हाय, ऐसा कि अगर कोई मुर्दा भी देख ले, तो उठ बैठे। अगर कोई हिजड़ा देख ले, तो वो भी जोर-जबरदस्ती करने लगे। और हम तो फिर भी इंसान हैं, बहू!
खुशबू समझ गई कि ससुर उसकी गांड की बात कर रहा है, मगर उसने नादानी का नाटक किया। “ससुर जी, आप क्या बोल रहे हैं? हमें तो कुछ समझ नहीं आ रहा।”
दयाराम : अरे बहू, अब हम कैसे समझाएँ? अगर तुम गुस्सा ना होने का वादा करो, तो बताएँ।
खुशबू : गुस्सा होने की क्या बात? आप बताइए ना।
दयाराम अब खुलकर खेलने के मूड में था। “हम तुम्हारी उस चीज की बात कर रहे हैं, जो तुम पैंटी में छुपाती हो।”
खुशबू हँसते हुए बोली, “ससुर जी, कसम से, हम वहाँ कुछ नहीं छुपाते। पैंटी में तो जेब भी नहीं होती!”
दयाराम को पता था कि खुशबू सब समझ रही है, मगर मजा ले रही है। वो बोला, “अरे, हम जेब की बात नहीं कर रहे। हम तुम्हारी उस शत्रुहंता गांड की बात कर रहे हैं!”
“हाय राम!” खुशबू के बदन में सनसनी दौड़ गई। ससुर के मुँह से इतना खुला शब्द सुनकर उसकी साँसें तेज हो गईं। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। दयाराम उसकी तेज साँसों की आवाज साफ सुनाई दे रही थी। वो समझ गया कि उसका तीर निशाने पर लगा है।
खुशबू : ससुर जी, आप क्या बोल रहे हैं!
दयाराम : सच बोल रहे हैं, बहू। तुम्हारी गांड को देखकर हम तो पागल हो गए। उसके बाद जो कुछ हुआ, वो हमने नहीं, तुम्हारी उस मादक गांड ने करवाया।
खुशबू की साँसें और तेज हो गईं। उसकी पैंटी भीग चुकी थी। और उसकी काजू-दाना तनकर खड़ा हो गया। “हाय ससुर जी, आप तो चालाक हैं। सारा दोष हम पर डाल रहे हैं। सारे मर्द एक जैसे होते हैं!”
दयाराम : हाँ बहू, मर्द तो एक जैसे होते हैं, मगर औरतें नहीं। तुम्हारी जैसी गांड हमने जिंदगी में कभी नहीं देखी। सच कहें, मयंक बहुत किस्मत वाला है, जो उसे तुम जैसा खजाना मिला।
खुशबू वो सुनकर एक पल को मायूसी हुई। मयंक ने तो कभी उसकी गांड की तारीफ नहीं की थी, ना ही कभी उसे इस तरह छुआ था। उसने बिना सोचे कह दिया, “जिसे खजाने से मतलब ही नहीं, उसकी बात ना करें, ससुर जी।”
दयाराम तुरंत समझ गया कि मयंक खुशबू की कदर नहीं करता। ये उसके लिए सुनहरा मौका था। “तुमने कभी अपना दुख बताया ही नहीं, बहू। वरना…”
खुशबू : बताया तो क्या करते? हम तो कोलकाता में रहते हैं।
दयाराम : तो क्या हुआ? हम तो घरवाले हैं। कोई ना कोई रास्ता निकाल लेते।
खुशबू : उनके बिना कैसे?
खुशबू अब पूरी तरह गर्म हो चुकी थी। “आआह…” एक हल्की सी सिसकारी उसके मुँह से निकली।
दयाराम : क्यों बहू, हमें कमजोर समझ रही हो? कोलकाता आकर सब कुछ सुलझ सकता है।
खुशबू : आप क्या कह रहे हैं, ससुर जी?
दयाराम : हम कह रहे हैं, तुम्हारे खजाने की सेवा हम कर देंगे, अगर तुम्हें ऐतराज ना हो। जवानी का बोझ कोई उठा ले, तो सफर आसान हो जाता है।
ये सुनते ही खुशबू का बदन झनझना उठा। उसे अपनी चूत को बिना मसलें ही उसकी चूत से पानी का सैलाब बह निकला, ऐसा ऑर्गेज्म उसे मयंक के साथ सेक्स में भी कभी नहीं हुआ था। वो सोचने लगी, “हाय राम, ससुर जी इतना खुलकर बोल रहे हैं, जैसे मैं उनकी बहू नहीं, कोई गर्लफ्रेंड हूँ।” उसकी गांड का जादू तो पहले भी कई बार चल चुका था।
( शादी से पहले की बात थी। एक बार वो अपनी सहेली पंखुरी के साथ बाजार गई थी। दोनों ने टाइट जींस पहनी थी। खुशबू की गोलमटोल गांड उस जींस में ऐसी लग रही थी, जैसे कोई मक्खन का गोला। पूरा बाजार उसकी गांड को घूर रहा था। दुकानदार हों या ग्राहक, सबकी आँखें उस पर टिकी थीं। पंखुरी को ये बात चुभ गई। लौटते वक्त वो बोली, “खुशबू , अगली बार तू अकेले बाजार जा। सारा बाजार तेरी गांड को देख रहा था, मुझे तो कोई पूछ ही नहीं रहा!” खुशबू ने हँसकर टाल दिया, मगर उसे भी अंदर ही अंदर अपनी जवानी पर गर्व हुआ। ) ( नोटिस:- यह वही पंखुरी है जिसकी एक कहानी आने वाली हैं इस साइट पर " " काला जामुन ")
( एक दूसरी घटना कॉलेज की थी। छमाही परीक्षा का रिजल्ट आया था। खुशबू की दोस्त पायल , जो थोड़ी चालू थी, बोली, “खुशबू , तुझे पता है, तू जिन सब्जेक्ट्स में अच्छे नंबर लाई, वो सब मेल टीचर्स के हैं। और लेडी टीचर्स ने तुझे कम नंबर दिए। जानती है क्यों? क्योंकि वो तेरी इस गोलमटोल गांड से जलती हैं, और मेल टीचर्स इसके दीवाने हैं!” खुशबू ने उसे डाँटा, मगर पायल हँसते हुए बोली, “अगर मेरे पास तेरी जैसी गांड होती, तो मैं टीचर्स से अपने पैर दबवाती!” ) ( नोटिस - यह वही पायल है जिनकी एक कहानी आने वाली हैं )
अब आगे… दयाराम को खुशबू की तेज साँसों और चीख से पता चल गया था कि वो झड़ चुकी है। वो समझ गया कि बहू अब उसके जाल में पूरी तरह फंस चुकी है। अगले दिन उसने ‘वेट एंड वॉच’ की नीति अपनाई। खुशबू का व्यवहार सामान्य था, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। दयाराम ने फिर से उसका चक्षु चोदन शुरू कर दिया। दो दिन तक यही आँखों की गुस्ताखियाँ चलती रहीं।
एक शाम खुशबू ने पतली सी साड़ी पहनी थी, जो उसके जिस्म से चिपककर उसकी हर वक्र को उभार रही थी। साड़ी इतनी नीचे बँधी थी कि उसकी नाभि और पेट का गोरा मांस साफ दिख रहा था। दयाराम का लंड बार-बार तन रहा था। खुशबू किचन में गई, और मीना पूजा करने चली गई। दयाराम को मौका मिल गया। वो किचन में घुसा। खुशबू आटा गूँथ रही थी, और उसके कूल्हों पर थोड़ा आटा लग गया था। दयाराम ने मौके का फायदा उठाया। “अरे, ये क्या लगा है पीछे?” कहते हुए उसने खुशबू की गांड पर हाथ रख दिया और धीरे-धीरे सहलाने लगा।
खुशबू का बदन सिहर उठा। “हाय, ससुर जी, क्या है?” वो बोली, मगर उसकी आवाज में शरम के साथ-साथ एक अजीब सी उत्तेजना थी।
दयाराम : शायद आटा लगा है, हम साफ कर देते हैं।
खुशबू : गलती से लग गया होगा।
दयाराम ने आटा साफ करने के बाद भी अपना हाथ नहीं हटाया। वो खुशबू की गांड को सहलाते हुए बोला, “आज क्या सब्जी बना रही हो, बहू?”
खुशबू : अभी कुछ पक्का नहीं किया। आप बताइए, क्या पसंद है?
दयाराम : जो हमें पसंद है, वो तुम नहीं पाओगी।
खुशबू : आप बोलिए तो, हम वही खिला देंगे।
दयाराम : सोच लो, बाद में मुकरना नहीं।
खुशबू : हम अपनी बात के पक्के हैं, ससुर जी।
दयाराम अब खुशबू के बगल में खड़ा हो गया था। उसकी नजरें खुशबू की चूचियों पर टिकी थीं, जो साड़ी के ऊपर से उभरी हुई थीं। खुशबू ने उसकी नजरें पकड़ लीं, मगर अनजान बनी रही। “बोलिए ना, क्या खाएँगे?” उसने पूछा।
दयाराम ने उसकी आँखों में देखा, फिर नजरें नीचे करते हुए बोला, “हमें तो नॉनवेज खाना है।”
खुशबू : नॉनवेज? हमारे घर में तो नहीं बनता। सासु मां मना करेंगी।
दयाराम : घर में नहीं बनता, तो कच्चा ही खिला दो। —कहते हुए उसने खुशबू की गांड को जोर से दबा दिया।
खुशबू : उउह! ससुर जी, कोई कच्चा मांस खाता है क्या?
दयाराम : हम तो फौजी आदमी हैं, बहू। हमें कच्चा मांस भी पसंद है। —उसने अपनी उंगली खुशबू की गांड की दरार में धीरे से सरकाई।
खुशबू : हाय राम, आप कैसे कच्चा मांस खा लेते हैं?
दयाराम : तुमने अभी दुनिया देखी कहाँ है, बहू? और एक बात बताएँ?
खुशबू : क्या, ससुर जी?
दयाराम : अगर मांस ताजा और जवान हो, तो कच्चा खाने में और मजा आता है। एक बार तुम भी खाओगी, तो दीवानी हो जाओगी।
खुशबू की चूत अब पूरी तरह भीग चुकी थी। ससुर की गंदी बातें उसे पागल कर रही थीं। उसने कभी नहीं सोचा था कि वो अपने ससुर के साथ ऐसी बातें करेगी। तभी पूजा कक्ष से घंटी की आवाज आई। मीना की पूजा खत्म होने वाली थी।
खुशबू : ससुर जी, अब आप जाइए। सासु मां आने वाली हैं।
दयाराम : और हमारा नॉनवेज?
खुशबू : सासु मां , से परमिशन लीजिए, फिर मिलेगा।
दयाराम : वो तो कभी नहीं मानेगी। चोरी-छुपे खिलाना पड़ेगा।
खुशबू : हाय राम, अब आप पाप भी करवाएँगे?
दयाराम हँसते हुए किचन से निकल गया और बाथरूम की ओर चला गया। खुशबू ने उसे जाते देखा और शरम से लाल हो गई। वो जानती थी कि ससुर बाथरूम में जाकर क्या करने वाला है। वो भी जल्दी से अपने कमरे में चली गई। उसका बदन गर्म था, गाल लाल हो चुके थे। उसकी गांड में अभी भी ससुर की उंगली का स्पर्श महसूस हो रहा था। “हाय राम, अगर ससुर जी ने और जोर लगाया होता, तो उनकी उंगली तो अंदर चली ही जाती,” वो बुदबुदाई।
बिस्तर पर लेटकर वो सोचने लगी कि मर्दों को औरतों की गांड इतनी अच्छी क्यों लगती है। उसकी गांड ने तो पहले भी कई बार लोगों को दीवाना बनाया था। ( उसे श्री सिन्हा की याद आ गई। अक्सर वह इसके घर आते थे । वो उसे जबरदस्ती गोद में बिठाते, और खुशबू को उनके तने हुए लंड का अहसास होता। एक बार, श्री सिन्हा ने उसे जोर से गले लगाया और उसकी गांड को मसलते हुए कहा, “खुशबू , तू तो पीछे से पूरी साइज की हो गई है। सामने से भी तैयार है। ” खुशबू शर्म से पानी-पानी हो गई थी, मगर श्री सिन्हा की बेशर्मी ने उसे हैरान कर दिया था। )
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