08-09-2025, 10:01 PM
(This post was last modified: 09-09-2025, 05:22 AM by Dhamakaindia108. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अपनी गोवा ट्रिप को बीच में छोड़कर वह लोग कोलकाता आ गए । उन लोगों ने एक-दो दिन आराम किया फिर अपने काम में व्यस्त हो गए । फिर खुशबू की जिंदगी उसी महसूनियत की तरह गुजरने लगी ।
मयंक अच्छे इंसान हैं, लेकिन वो कभी खुशबू की इच्छाओं को नहीं समझ पाया । खुशबू की दुनिया बस उसके ऑफिस और उसकी जिम्मेदारी तक सीमित है। उसकी चाहतें, उसकी चूत की प्यास, मयंक के लिए कोई मायने नहीं रखती। हर रात खुशबू उम्मीद करती कि मयंक उसे प्यार में संतुष्ट करेंगा , उसकी चूत की प्यास बुझाऐगा, लेकिन हर बार वो खुशबू को अनदेखा करके सो जाते।
खुशबू को एक पत्नी का सुख श्री सिन्हा द्वारा बहुत अच्छे और सरल तरीके से कराया जाता था , इसी वजह से खुशबू को श्री सिन्हा से प्यार हो गया था
तीन से चार महीने के बाद खुशबू के जिंदागी में कुछ ऐसा हुआ की वो हर रोज अपने कामुकता का पुरा का पुरा आनंद लेटी है उसकी अधूरी प्यास भी पुरी होती है और होती ही रहेगी । आइए आपको संक्षेप में वर्णन करते हैं
एक दिन शाम को मयंक गोदाम से घर वापस आया तो उसके चेहरे पर परेशान देखकर खुशबू ने उसका कारण पूछा तो मयंक ने कहा गोदाम मैं माल की कमी हो गई है जिसके लिए उस एक महीना के लिए गुजरात जा के वहां रहकर वह से माल कोलकाता भेजवान है
समस्या गुजरात जाने की नहीं है मैं सोच रहा था कि तुम घर पर एक महीने अकेली रहोगी तो बोर हो जाऊंगी। क्योंकि ना बाबू जी और माता जी ( खुशबू के ससुर और सास ) को एक महीने के लिए यहां बुलाया जाये वह दोनों यहां आयेंगे तो तुम भी अच्छा लगेगा और उनका भी मन बहल जायेगा।
इस पर तुम्हारी किया विचार है खुशबू तो खुशबू ने कहा आइडिया तो आपका अच्छा है। खुशबू ने इसमें सहमति जताई।
दो दिन बाद मयंक ने गुजरात जाने का एक फ्लाईट का टिकट कटवा ली और अपने बाबू जी और माता जी का भी फ्लाईट का टिकट कटा दिया।
एक दिन सवेरे-सवेरे खुशबू किचन में नाश्ता बना रही थी तभी उसके घर का मेन डोर पर लगे घंटी को किसी ने बजाये । खुशबू कीचन से निकलकर दरवाजे पर पहुंंची और दरवाजा खोला तो सामने में उसके ससुर और सास खड़े थे उसने एक आदर्श बहुं होने का परिचय दिया उन दोनों का पांव छूकर आशीर्वाद लिया । उसके सास ससुर ने मंयक के बरे में पूछ तो उसकी बहूं खुशबू ने कहा आप दोनों के आने से पहले ही मयंक गुजरात के लिए जा चुके हैं।
एक सप्ताह बाद......
दयाराम बाजार से थकाहारा घर लौटा, उसका बदन पसीने से तर और दिमाग रोज़मर्रा की भागदौड़ से भारी। 58 साल का दयाराम , सेना से रिटायर्ड, अभी भी हट्टा-कट्टा था। उसका कद छह फीट, चौड़ा सीना, और भारी-भरकम कंधे उसे एक नौजवान मर्द का रौब देते थे। उसकी पत्नी मीना , 54 साल की, पिछले कुछ सालों से बीमारी के चलते कमज़ोर थी, और उसका बेटा मयंक ।
दयाराम ने घर में कदम रखते ही जूते उतारे और सीधा बाथरूम की ओर भागा। उसे पेशाब की सख्त ज़रूरत थी। घर में बाथरूम एक ही था, और दरवाज़ा हल्का सा खुला देखकर उसने सोचा कि शायद अंदर कोई नहीं। वो तेज़ी से अंदर घुसा, लेकिन जैसे ही उसकी नज़र सामने पड़ी, उसकी सांसें थम गईं। वहां उसकी बहू खुशबू , बिल्कुल नंगी, नहाने की तैयारी में खड़ी थी। उसका गीला बदन पानी की बूंदों से चमक रहा था, जैसे कोई ताज़ा मोती समंदर से निकला हो। खुशबू का चेहरा खूबसूरत था, लेकिन उसका बदन तो मानो जन्नत की सैर करा रहा था। दयाराम की नज़रें उसके चेहरे से हटकर सीधे उसके गोल, भरे हुए स्तनों पर टिक गईं। वो स्तन, जो इतने सख्त और उभरे हुए थे कि मानो किसी मूर्तिकार ने बड़े जतन से तराशे हों। उनके ऊपर गुलाबी निप्पल्स, हल्के भूरे रंग के घेरे के साथ, किसी मर्द के होश उड़ा देने को काफी थे।
दयाराम की नज़रें और नीचे खिसकीं। खुशबू का पेट, चिकना और सपाट, हल्का सा उभरा हुआ, जिसके नीचे उसकी कमर इतनी पतली थी कि मानो किसी ने नाप-तोल कर बनाई हो। और फिर, उसकी नज़रें उस त्रिकोण पर रुक गईं, जो हर मर्द के सपनों का केंद्र होता है। खुशबू की योनि के ऊपर हल्के काले बालों का झुरमुट था, जो गीले होकर उसकी त्वचा से चिपके हुए थे। वो जगह इतनी मोहक थी कि दयाराम का गला सूख गया। उसका लंड, जो सालों से सिर्फ पेशाब के काम आ रहा था, अचानक तन गया, और उसके खून में गर्मी की लहर दौड़ पड़ी।
खुशबू , जो अब तक सन्न थी, अचानक होश में आई। उसने शर्म से अपनी आंखें नीचे कीं और जल्दी से पीछे मुड़ गई। लेकिन ये उसकी सबसे बड़ी भूल थी। जैसे ही वो मुड़ी, दयाराम के सामने उसकी गांड आ गई—वो गांड, जो इतनी गोल, भरी हुई, और चिकनी थी कि मानो मक्खन का गोला हो। खुशबू की गांड का हर हिस्सा इतना परफेक्ट था कि दयाराम के लिए उससे नज़र हटाना नामुमकिन था। उसकी जांघें, जो गांड के नीचे से शुरू हो रही थीं, मांसल और गोरी थीं, जैसे केले के तने। दयाराम , जो औरतों की गांड का दीवाना था, अब पूरी तरह बेकाबू हो चुका था। उसकी ज़िंदगी में उसने कई औरतों की गांड देखी थी—बाज़ार में, रास्ते में, गलियों में—लेकिन खुशबू की गांड ने उसे पूरी तरह झकझोर दिया।
वो आगे बढ़ा, जैसे कोई भूखा शिकारी अपने शिकार की ओर बढ़ता है। उसने अपने घुटनों पर बैठते हुए खुशबू की कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया। खुशबू के बदन में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। उसने विरोध करने की सोची, लेकिन उसका शरीर मानो सुन्न पड़ गया था। दयाराम ने बिना वक्त गंवाए अपने होंठ खुशबू की गांड के एक गाल पर रख दिए। “आह्ह…” खुशबू के मुंह से हल्की सी सिसकारी निकली। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। मयंक ने कभी उसकी गांड को इस तरह नहीं चूमा था। हां, वो उसे सहलाता ज़रूर था, लेकिन ये जो ससुर कर रहा था, वो कुछ और ही था।
दयाराम अब पूरी तरह खो चुका था। उसने अपनी जीभ बाहर निकाली और खुशबू की गांड के चिकने गालों को चाटना शुरू किया। उसकी जीभ, गीली और खुरदरी, ऊपर से नीचे तक फिसल रही थी, और हर बार जब वो खुशबू की गांड की दरार के पास पहुंचता, खुशबू का बदन कांप उठता। “उम्म… आह्ह…” खुशबू की सिसकारियां अब तेज़ हो रही थीं। उसकी योनि में गीलापन बढ़ रहा था, और वो शर्म के साथ-साथ उत्तेजना की आग में भी जल रही थी। दयाराम ने अपनी जीभ को और गहराई में डाला, खुशबू की गांड की दरार में रगड़ते हुए। “ओह्ह… ससुर जी…” खुशबू के मुंह से हल्की सी आवाज़ निकली, लेकिन वो अब भी रुकी रही। उसका दिमाग़ उसे रोकने को कह रहा था, लेकिन उसका शरीर इस स्पर्श का मज़ा ले रहा था।
दयाराम ने अब अपने हाथों को खुशबू की जांघों पर फेरना शुरू किया। उसकी उंगलियां धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ीं और खुशबू की योनि के बालों को छूने लगीं। खुशबू का बदन अब पूरी तरह गर्म हो चुका था। उसकी सांसें तेज़ थीं, और उसकी योनि में गीलापन अब साफ महसूस हो रहा था। “आह्ह… ओह्ह…” उसकी सिसकारियां अब और तेज़ हो गई थीं। दयाराम ने अपनी जीभ को और तेज़ी से रगड़ा, और फिर, एकाएक, उसने खुशबू की गांड के एक गाल में हल्का सा दांत गड़ा दिया। “आउच!” खुशबू के मुंह से हल्की सी चीख निकली।
ये चीख सुनते ही खुशबू को होश आया। उसने जल्दी से कहा, “ससुर जी, आप जाइए… सासु मां पूजा के कमरे में हैं।” उसकी आवाज़ में शर्म, डर, और उत्तेजना का मिश्रण था। दयाराम भी एकदम से रुक गया। उसे अहसास हुआ कि वो बहुत दूर निकल आया था। वो उठा और बिना कुछ कहे बाथरूम से बाहर चला गया। खुशबू ने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और दीवार के सहारे खड़ी होकर हांफने लगी। उसकी टांगें कांप रही थीं, और उसका दिल अब भी ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
दयाराम अपने कमरे में पहुंचा और बिस्तर पर लेट गया। उसका दिमाग़ उस घटना को बार-बार दोहरा रहा था। खुशबू का नंगा बदन, उसकी गोल गांड, और वो सिसकारियां—सब कुछ उसके सामने बार-बार आ रहा था। उसका लंड फिर से तन गया, इतना सख्त कि उसे दर्द होने लगा। उसे याद आया कि पिछले पांच-छह सालों से उसने अपनी पत्नी मीना के साथ चुदाई नहीं की थी। मीना की बीमारी ने उसे बिस्तर तक सीमित कर दिया था, और उसका लंड सिर्फ पेशाब के लिए काम आ रहा था। लेकिन आज, खुशबू की जवानी ने उसकी रगों में फिर से आग भर दी थी।
वो सोचने लगा कि खुशबू ने इतनी देर तक क्यों चुप्पी साधी। उसने पहला चुम्बन लेते ही क्यों नहीं रोका? और जब रोका, तो सिर्फ इतना कहा कि “सासु मां पूजा के कमरे में हैं”? क्या इसका मतलब ये था कि अगर मीना घर में न होती, तो खुशबू उसे और आगे बढ़ने देती? दयाराम के दिमाग़ में सवालों का तूफान उठ रहा था। क्या खुशबू भी मयंक की गैरमौजूदगी में मर्द की कमी महसूस कर रही थी? क्या वो भी इस स्पर्श का मज़ा ले रही थी?
दयाराम ने मन ही मन एक फैसला ले लिया। वो इस रास्ते पर आगे बढ़ेगा, लेकिन सावधानी से। वो जानता था कि खुशबू को पटाना आसान नहीं होगा। अगर घर में इसकी भनक पड़ गई, तो सब कुछ तबाह हो सकता था। उसने सोचा कि वो पहले खुशबू की प्रतिक्रिया को परखेगा। वो जानता था कि औरतें मर्दों की नीयत को तुरंत भांप लेती हैं। उसने फैसला किया कि वो कुछ दिन सिर्फ खुशबू को प्यासी नज़रों से देखेगा, उसकी हर हरकत को गौर करेगा, और उसकी प्रतिक्रिया को समझेगा।
इधर, खुशबू अपने कमरे में पहुंची और दरवाज़ा बंद करके बिस्तर पर बैठ गई। उसका बदन अभी भी कांप रहा था। वो बार-बार उस पल को याद कर रही थी, जब ससुर की जीभ उसकी गांड पर फिसल रही थी। “हे भगवान,” उसने मन में सोचा, “अगर मैंने वक्त पर होश न संभाला होता, तो ससुर जी की जीभ कहीं और पहुंच जाती।” इस ख्याल ने उसकी योनि में फिर से गीलापन बढ़ा दिया, और उसके निप्पल्स तन गए। उसे याद आया कि उसकी ज़िंदगी में ये पहली बार नहीं था जब किसी ने उसका फायदा उठाने की कोशिश की थी।
खुशबू मन में बड़बड़ायी , “बेशरम! उसे क्या पता कि औरत की गांड जन्नत का दरवाज़ा होती है।” वो अभी ये सब सोच ही रही थी कि सास की आवाज़ आई, “ खुशबू , कहां हो? नाश्ता नहीं बनानी है क्या ? तुम्ह ससुर जी को भूखा रखेगी?”
खुशबू ने जल्दी से साड़ी पहनी और किचन की ओर भागी। उसकी साड़ी का पल्लू बार-बार सरक रहा था, और उसका गोरा, चिकना पेट बार-बार झलक रहा था। दयाराम की नज़रें उसकी कमर पर टिकी थीं। वो जानता था कि इस रास्ते पर चलना आसान नहीं, लेकिन खुशबू की जवानी ने उसे बेकाबू कर दिया था। वो अब हर कदम सोच-समझकर उठाएगा, और खुशबू की हर प्रतिक्रिया को बारीकी से देखेगा।
खुशबू ने नाश्ता बनाकर दयाराम के सामने रखा। उसकी साड़ी का पल्लू फिर से सरका, और उसका पेट और गहरी नाभि साफ दिख रही थी। दयाराम की नज़रें उसकी कमर पर टिक गईं। खुशबू ने उसकी नज़रें देख लीं, और उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया। वो जल्दी से किचन की ओर भागी। उसे अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था कि अगर उसने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया होता, तो शायद ये सब न होता। लेकिन अब जो हो गया, वो हो गया। उसे पता था कि ससुर जी की आंखों में अब कई रातों तक नींद नहीं आएगी।
दयाराम किचन में हाथ धोने के बहाने पहुंचा। उसका असली मकसद तो खुशबू की जवानी को फिर से निहारना था। वो जानता था कि ये खेल अब शुरू हो चुका है, और वो इसे और आगे ले जाएगा।
दयाराम ने हाथ धोने का बहाना बनाया और किचन की ओर बढ़ चला, लेकिन उसका असली मकसद था अपनी बहू खुशबू की कातिल जवानी को निहारना। उसकी आँखें खुशबू के हर अदा पर टिकी थीं, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को ताक रहा हो। किचन में खुशबू आटा गूँथ रही थी, उसकी साड़ी नाभि से काफी नीचे बँधी थी, जिससे उसका गोरा, चिकना पेट और गहरी नाभि साफ नजर आ रही थी। साड़ी का पतला कपड़ा उसके कूल्हों पर चिपका हुआ था, और हर बार जब वो हिलती, उसकी गोलमटोल गांड का उभार ससुर की आँखों में चुभता।
मयंक अच्छे इंसान हैं, लेकिन वो कभी खुशबू की इच्छाओं को नहीं समझ पाया । खुशबू की दुनिया बस उसके ऑफिस और उसकी जिम्मेदारी तक सीमित है। उसकी चाहतें, उसकी चूत की प्यास, मयंक के लिए कोई मायने नहीं रखती। हर रात खुशबू उम्मीद करती कि मयंक उसे प्यार में संतुष्ट करेंगा , उसकी चूत की प्यास बुझाऐगा, लेकिन हर बार वो खुशबू को अनदेखा करके सो जाते।
खुशबू को एक पत्नी का सुख श्री सिन्हा द्वारा बहुत अच्छे और सरल तरीके से कराया जाता था , इसी वजह से खुशबू को श्री सिन्हा से प्यार हो गया था
तीन से चार महीने के बाद खुशबू के जिंदागी में कुछ ऐसा हुआ की वो हर रोज अपने कामुकता का पुरा का पुरा आनंद लेटी है उसकी अधूरी प्यास भी पुरी होती है और होती ही रहेगी । आइए आपको संक्षेप में वर्णन करते हैं
एक दिन शाम को मयंक गोदाम से घर वापस आया तो उसके चेहरे पर परेशान देखकर खुशबू ने उसका कारण पूछा तो मयंक ने कहा गोदाम मैं माल की कमी हो गई है जिसके लिए उस एक महीना के लिए गुजरात जा के वहां रहकर वह से माल कोलकाता भेजवान है
समस्या गुजरात जाने की नहीं है मैं सोच रहा था कि तुम घर पर एक महीने अकेली रहोगी तो बोर हो जाऊंगी। क्योंकि ना बाबू जी और माता जी ( खुशबू के ससुर और सास ) को एक महीने के लिए यहां बुलाया जाये वह दोनों यहां आयेंगे तो तुम भी अच्छा लगेगा और उनका भी मन बहल जायेगा।
इस पर तुम्हारी किया विचार है खुशबू तो खुशबू ने कहा आइडिया तो आपका अच्छा है। खुशबू ने इसमें सहमति जताई।
दो दिन बाद मयंक ने गुजरात जाने का एक फ्लाईट का टिकट कटवा ली और अपने बाबू जी और माता जी का भी फ्लाईट का टिकट कटा दिया।
एक दिन सवेरे-सवेरे खुशबू किचन में नाश्ता बना रही थी तभी उसके घर का मेन डोर पर लगे घंटी को किसी ने बजाये । खुशबू कीचन से निकलकर दरवाजे पर पहुंंची और दरवाजा खोला तो सामने में उसके ससुर और सास खड़े थे उसने एक आदर्श बहुं होने का परिचय दिया उन दोनों का पांव छूकर आशीर्वाद लिया । उसके सास ससुर ने मंयक के बरे में पूछ तो उसकी बहूं खुशबू ने कहा आप दोनों के आने से पहले ही मयंक गुजरात के लिए जा चुके हैं।
एक सप्ताह बाद......
दयाराम बाजार से थकाहारा घर लौटा, उसका बदन पसीने से तर और दिमाग रोज़मर्रा की भागदौड़ से भारी। 58 साल का दयाराम , सेना से रिटायर्ड, अभी भी हट्टा-कट्टा था। उसका कद छह फीट, चौड़ा सीना, और भारी-भरकम कंधे उसे एक नौजवान मर्द का रौब देते थे। उसकी पत्नी मीना , 54 साल की, पिछले कुछ सालों से बीमारी के चलते कमज़ोर थी, और उसका बेटा मयंक ।
दयाराम ने घर में कदम रखते ही जूते उतारे और सीधा बाथरूम की ओर भागा। उसे पेशाब की सख्त ज़रूरत थी। घर में बाथरूम एक ही था, और दरवाज़ा हल्का सा खुला देखकर उसने सोचा कि शायद अंदर कोई नहीं। वो तेज़ी से अंदर घुसा, लेकिन जैसे ही उसकी नज़र सामने पड़ी, उसकी सांसें थम गईं। वहां उसकी बहू खुशबू , बिल्कुल नंगी, नहाने की तैयारी में खड़ी थी। उसका गीला बदन पानी की बूंदों से चमक रहा था, जैसे कोई ताज़ा मोती समंदर से निकला हो। खुशबू का चेहरा खूबसूरत था, लेकिन उसका बदन तो मानो जन्नत की सैर करा रहा था। दयाराम की नज़रें उसके चेहरे से हटकर सीधे उसके गोल, भरे हुए स्तनों पर टिक गईं। वो स्तन, जो इतने सख्त और उभरे हुए थे कि मानो किसी मूर्तिकार ने बड़े जतन से तराशे हों। उनके ऊपर गुलाबी निप्पल्स, हल्के भूरे रंग के घेरे के साथ, किसी मर्द के होश उड़ा देने को काफी थे।
दयाराम की नज़रें और नीचे खिसकीं। खुशबू का पेट, चिकना और सपाट, हल्का सा उभरा हुआ, जिसके नीचे उसकी कमर इतनी पतली थी कि मानो किसी ने नाप-तोल कर बनाई हो। और फिर, उसकी नज़रें उस त्रिकोण पर रुक गईं, जो हर मर्द के सपनों का केंद्र होता है। खुशबू की योनि के ऊपर हल्के काले बालों का झुरमुट था, जो गीले होकर उसकी त्वचा से चिपके हुए थे। वो जगह इतनी मोहक थी कि दयाराम का गला सूख गया। उसका लंड, जो सालों से सिर्फ पेशाब के काम आ रहा था, अचानक तन गया, और उसके खून में गर्मी की लहर दौड़ पड़ी।
खुशबू , जो अब तक सन्न थी, अचानक होश में आई। उसने शर्म से अपनी आंखें नीचे कीं और जल्दी से पीछे मुड़ गई। लेकिन ये उसकी सबसे बड़ी भूल थी। जैसे ही वो मुड़ी, दयाराम के सामने उसकी गांड आ गई—वो गांड, जो इतनी गोल, भरी हुई, और चिकनी थी कि मानो मक्खन का गोला हो। खुशबू की गांड का हर हिस्सा इतना परफेक्ट था कि दयाराम के लिए उससे नज़र हटाना नामुमकिन था। उसकी जांघें, जो गांड के नीचे से शुरू हो रही थीं, मांसल और गोरी थीं, जैसे केले के तने। दयाराम , जो औरतों की गांड का दीवाना था, अब पूरी तरह बेकाबू हो चुका था। उसकी ज़िंदगी में उसने कई औरतों की गांड देखी थी—बाज़ार में, रास्ते में, गलियों में—लेकिन खुशबू की गांड ने उसे पूरी तरह झकझोर दिया।
वो आगे बढ़ा, जैसे कोई भूखा शिकारी अपने शिकार की ओर बढ़ता है। उसने अपने घुटनों पर बैठते हुए खुशबू की कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया। खुशबू के बदन में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। उसने विरोध करने की सोची, लेकिन उसका शरीर मानो सुन्न पड़ गया था। दयाराम ने बिना वक्त गंवाए अपने होंठ खुशबू की गांड के एक गाल पर रख दिए। “आह्ह…” खुशबू के मुंह से हल्की सी सिसकारी निकली। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। मयंक ने कभी उसकी गांड को इस तरह नहीं चूमा था। हां, वो उसे सहलाता ज़रूर था, लेकिन ये जो ससुर कर रहा था, वो कुछ और ही था।
दयाराम अब पूरी तरह खो चुका था। उसने अपनी जीभ बाहर निकाली और खुशबू की गांड के चिकने गालों को चाटना शुरू किया। उसकी जीभ, गीली और खुरदरी, ऊपर से नीचे तक फिसल रही थी, और हर बार जब वो खुशबू की गांड की दरार के पास पहुंचता, खुशबू का बदन कांप उठता। “उम्म… आह्ह…” खुशबू की सिसकारियां अब तेज़ हो रही थीं। उसकी योनि में गीलापन बढ़ रहा था, और वो शर्म के साथ-साथ उत्तेजना की आग में भी जल रही थी। दयाराम ने अपनी जीभ को और गहराई में डाला, खुशबू की गांड की दरार में रगड़ते हुए। “ओह्ह… ससुर जी…” खुशबू के मुंह से हल्की सी आवाज़ निकली, लेकिन वो अब भी रुकी रही। उसका दिमाग़ उसे रोकने को कह रहा था, लेकिन उसका शरीर इस स्पर्श का मज़ा ले रहा था।
दयाराम ने अब अपने हाथों को खुशबू की जांघों पर फेरना शुरू किया। उसकी उंगलियां धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ीं और खुशबू की योनि के बालों को छूने लगीं। खुशबू का बदन अब पूरी तरह गर्म हो चुका था। उसकी सांसें तेज़ थीं, और उसकी योनि में गीलापन अब साफ महसूस हो रहा था। “आह्ह… ओह्ह…” उसकी सिसकारियां अब और तेज़ हो गई थीं। दयाराम ने अपनी जीभ को और तेज़ी से रगड़ा, और फिर, एकाएक, उसने खुशबू की गांड के एक गाल में हल्का सा दांत गड़ा दिया। “आउच!” खुशबू के मुंह से हल्की सी चीख निकली।
ये चीख सुनते ही खुशबू को होश आया। उसने जल्दी से कहा, “ससुर जी, आप जाइए… सासु मां पूजा के कमरे में हैं।” उसकी आवाज़ में शर्म, डर, और उत्तेजना का मिश्रण था। दयाराम भी एकदम से रुक गया। उसे अहसास हुआ कि वो बहुत दूर निकल आया था। वो उठा और बिना कुछ कहे बाथरूम से बाहर चला गया। खुशबू ने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और दीवार के सहारे खड़ी होकर हांफने लगी। उसकी टांगें कांप रही थीं, और उसका दिल अब भी ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
दयाराम अपने कमरे में पहुंचा और बिस्तर पर लेट गया। उसका दिमाग़ उस घटना को बार-बार दोहरा रहा था। खुशबू का नंगा बदन, उसकी गोल गांड, और वो सिसकारियां—सब कुछ उसके सामने बार-बार आ रहा था। उसका लंड फिर से तन गया, इतना सख्त कि उसे दर्द होने लगा। उसे याद आया कि पिछले पांच-छह सालों से उसने अपनी पत्नी मीना के साथ चुदाई नहीं की थी। मीना की बीमारी ने उसे बिस्तर तक सीमित कर दिया था, और उसका लंड सिर्फ पेशाब के लिए काम आ रहा था। लेकिन आज, खुशबू की जवानी ने उसकी रगों में फिर से आग भर दी थी।
वो सोचने लगा कि खुशबू ने इतनी देर तक क्यों चुप्पी साधी। उसने पहला चुम्बन लेते ही क्यों नहीं रोका? और जब रोका, तो सिर्फ इतना कहा कि “सासु मां पूजा के कमरे में हैं”? क्या इसका मतलब ये था कि अगर मीना घर में न होती, तो खुशबू उसे और आगे बढ़ने देती? दयाराम के दिमाग़ में सवालों का तूफान उठ रहा था। क्या खुशबू भी मयंक की गैरमौजूदगी में मर्द की कमी महसूस कर रही थी? क्या वो भी इस स्पर्श का मज़ा ले रही थी?
दयाराम ने मन ही मन एक फैसला ले लिया। वो इस रास्ते पर आगे बढ़ेगा, लेकिन सावधानी से। वो जानता था कि खुशबू को पटाना आसान नहीं होगा। अगर घर में इसकी भनक पड़ गई, तो सब कुछ तबाह हो सकता था। उसने सोचा कि वो पहले खुशबू की प्रतिक्रिया को परखेगा। वो जानता था कि औरतें मर्दों की नीयत को तुरंत भांप लेती हैं। उसने फैसला किया कि वो कुछ दिन सिर्फ खुशबू को प्यासी नज़रों से देखेगा, उसकी हर हरकत को गौर करेगा, और उसकी प्रतिक्रिया को समझेगा।
इधर, खुशबू अपने कमरे में पहुंची और दरवाज़ा बंद करके बिस्तर पर बैठ गई। उसका बदन अभी भी कांप रहा था। वो बार-बार उस पल को याद कर रही थी, जब ससुर की जीभ उसकी गांड पर फिसल रही थी। “हे भगवान,” उसने मन में सोचा, “अगर मैंने वक्त पर होश न संभाला होता, तो ससुर जी की जीभ कहीं और पहुंच जाती।” इस ख्याल ने उसकी योनि में फिर से गीलापन बढ़ा दिया, और उसके निप्पल्स तन गए। उसे याद आया कि उसकी ज़िंदगी में ये पहली बार नहीं था जब किसी ने उसका फायदा उठाने की कोशिश की थी।
खुशबू मन में बड़बड़ायी , “बेशरम! उसे क्या पता कि औरत की गांड जन्नत का दरवाज़ा होती है।” वो अभी ये सब सोच ही रही थी कि सास की आवाज़ आई, “ खुशबू , कहां हो? नाश्ता नहीं बनानी है क्या ? तुम्ह ससुर जी को भूखा रखेगी?”
खुशबू ने जल्दी से साड़ी पहनी और किचन की ओर भागी। उसकी साड़ी का पल्लू बार-बार सरक रहा था, और उसका गोरा, चिकना पेट बार-बार झलक रहा था। दयाराम की नज़रें उसकी कमर पर टिकी थीं। वो जानता था कि इस रास्ते पर चलना आसान नहीं, लेकिन खुशबू की जवानी ने उसे बेकाबू कर दिया था। वो अब हर कदम सोच-समझकर उठाएगा, और खुशबू की हर प्रतिक्रिया को बारीकी से देखेगा।
खुशबू ने नाश्ता बनाकर दयाराम के सामने रखा। उसकी साड़ी का पल्लू फिर से सरका, और उसका पेट और गहरी नाभि साफ दिख रही थी। दयाराम की नज़रें उसकी कमर पर टिक गईं। खुशबू ने उसकी नज़रें देख लीं, और उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया। वो जल्दी से किचन की ओर भागी। उसे अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था कि अगर उसने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया होता, तो शायद ये सब न होता। लेकिन अब जो हो गया, वो हो गया। उसे पता था कि ससुर जी की आंखों में अब कई रातों तक नींद नहीं आएगी।
दयाराम किचन में हाथ धोने के बहाने पहुंचा। उसका असली मकसद तो खुशबू की जवानी को फिर से निहारना था। वो जानता था कि ये खेल अब शुरू हो चुका है, और वो इसे और आगे ले जाएगा।
दयाराम ने हाथ धोने का बहाना बनाया और किचन की ओर बढ़ चला, लेकिन उसका असली मकसद था अपनी बहू खुशबू की कातिल जवानी को निहारना। उसकी आँखें खुशबू के हर अदा पर टिकी थीं, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को ताक रहा हो। किचन में खुशबू आटा गूँथ रही थी, उसकी साड़ी नाभि से काफी नीचे बँधी थी, जिससे उसका गोरा, चिकना पेट और गहरी नाभि साफ नजर आ रही थी। साड़ी का पतला कपड़ा उसके कूल्हों पर चिपका हुआ था, और हर बार जब वो हिलती, उसकी गोलमटोल गांड का उभार ससुर की आँखों में चुभता।


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