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Incest राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक
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प्रिया और रिया के साथ दोस्ती का गहराना और एक अनपेक्षित ट्विस्ट (कॉलेज की रूटीन में नई घटनाएँ, भावनात्मक संघर्ष, और एक रहस्य का खुलासा)

दिल्ली शहर में राहुल का चौथा दिन अब एक रूटीन की शक्ल लेने लगा था, लेकिन हर दिन की तरह ये भी कुछ नया लेकर आया था, जैसे शहर उसे धीरे-धीरे अपनी गिरफ्त में ले रहा हो, लेकिन राहुल अब इस गिरफ्त से लड़ना सीख रहा था। सुबह की हल्की ठंडी हवा कमरे की खिड़की से अंदर आ रही थी, लेकिन बाहर की सड़कों पर ट्रैफिक की हॉर्न और लोगों की जल्दबाजी की आवाज़ें पहले से ही गूँज रही थीं, जैसे शहर कभी सोता ही नहीं, बल्कि सिर्फ साँस लेने के लिए थोड़ा रुकता है। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए एक छोटी सी दुनिया बन चुका था – दीवारों पर हल्की नमी की वजह से थोड़ी सी फफूँद लगी हुई थी, जो उसे गाँव की कच्ची दीवारों की याद दिलाती, बेड पर माँ की दी हुई पुरानी चादर बिछी हुई थी जो अभी भी गाँव की महक से भरी हुई लगती, और खिड़की से बाहर शहर की ऊँची-ऊँची बिल्डिंगों का नजारा दिख रहा था, जो रात में रंग-बिरंगी रोशनी से चमकतीं लेकिन दिन में सिर्फ ग्रे कंक्रीट का ढेर लगतीं, जैसे शहर की सच्चाई जो बाहर से चमकदार लेकिन अंदर से ठंडी और कठोर हो। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन अभी भी गाँव में माँ सुमन के पास भटक रहा था – कल शाम का फोन जहां माँ ने फिर से आने से मना कर दिया था, "बेटा, गाँव में बहुत काम है। ठाकुर... वो अब रोज़ बुलाता है, लेकिन मैं संभाल लूँगी। एक हफ्ते के लिए आऊँगी, लेकिन अभी नहीं। बस तू पढ़ाई पर ध्यान दे।" राहुल का दिल भारी हो जाता, "माँ, क्यों नहीं आती? क्या ठाकुर की आदत इतनी मजबूत हो गई है कि बिना उसके चुदे रह नहीं पाती? क्या वो अब मजा लेने लगी है उससे?" ये सवाल उसे रात भर सताते, उसकी नींद उड़ा देते, लेकिन वो खुद को संभालता, "नहीं, माँ मजबूरी में है। गरीबी ने उसे फँसाया है। मैं जल्दी अमीर बनूँगा, उसे ले आऊँगा।" ये सोच उसे ताकत देती, लेकिन साथ ही एक गहरा दर्द भी, जैसे कोई घाव जो भरता नहीं, बल्कि हर दिन थोड़ा और गहरा होता जाता है। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की सड़कें व्यस्त थीं, लोग अपने काम पर जा रहे थे, कुछ स्ट्रीट वेंडर चाय बेच रहे थे उनकी केतलियों से भाप उठ रही थी जैसे शहर की साँस, और हवा में धुँए और खाने की महक मिली हुई थी, जैसे शहर की सच्चाई जो बाहर से चमकदार लेकिन अंदर से ठंडी और कठोर हो। "आज कॉलेज का चौथा दिन है, प्रिया और रिया से मिलना होगा। लेकिन सावधान रहना है, दोस्ती रखनी है लेकिन सीमा से आगे नहीं जाना," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उत्सुकता थी – नई जगह जहां लोग इतने अलग थे, लड़कियाँ बोल्ड, और जीवन तेज़, लेकिन वो जीवन जो उसे बदल रहा था, धीरे-धीरे उसे एक नया इंसान बना रहा था।
राहुल ने अपनी रूटीन शुरू की – कमरे में ही एक्सरसाइज की, पुशअप्स जहां उसके कंधे दर्द करते लेकिन मजबूत होते, सिटअप्स जो उसके पेट की मसल्स को कसते, और स्ट्रेचिंग जो उसके शरीर को लचीला बनाती, जैसे हर एक्सरसाइज उसे शहर की कठोरता से लड़ने के लिए तैयार कर रही हो। "गाँव में दौड़ लगाता था, यहां जगह नहीं लेकिन ये काफी है। जल्दी जिम जॉइन करूँगा," वो सोचता, और पसीना बहते हुए भी मुस्कुराता, क्योंकि physically वो अब अपनी सीमाओं को पार कर रहा था, उसके शरीर में एक नई ऊर्जा आ रही थी जो उसे कॉलेज और जॉब के लिए तैयार कर रही थी। नहाकर तैयार हुआ – कल वाली सफेद शर्ट धोकर पहनी, नीली पैंट जो गाँव से लाया था लेकिन अब शहर की धूल से थोड़ी फीकी पड़ गई थी, और बैग में किताबें, नोटबुक, और डायरी जो उसके सपनों का साथी थी, हर पन्ना अब शहर की कहानी लिखने को तैयार। लॉज के नीचे दुकान से चाय ली, गरम चाय की सिप लेते हुए सोचा, "माँ की चाय जैसी नहीं, लेकिन यहां की चाय में शहर का स्वाद है – तेज़, मसालेदार, और जीवन की तरह। कल प्रिया ने कहा था कि कॉलेज में साथ लंच करेंगे, देखते हैं क्या होता है।" कॉलेज की ओर निकला – बस पकड़ी, भीड़ में खड़ा रहा, जहां लोग धक्का देते, कुछ लोग फोन पर बात करते जैसे दुनिया से कटे हुए, कुछ अखबार पढ़ते जैसे समय को पकड़ने की कोशिश कर रहे, लेकिन राहुल ने खुद को संभाला, "शहर है, आदत डालनी होगी।" बस से उतरकर कॉलेज पहुँचा – बड़ा गेट जहां कल की तरह छात्रों की भीड़ थी, लड़के-लड़कियाँ हँसते-बोलते, कुछ ग्रुप में गॉसिप करते जैसे कोई सीक्रेट शेयर कर रहे, कुछ कैंटीन की ओर जा रहे जहां कॉफी की महक आ रही थी। राहुल क्लासरूम में गया, अपनी सीट पर बैठा, मन में कल की याद – प्रिया की मुस्कान जो दोस्ती की तरह लगती थी, रिया की शरारत जो उसे हँसाती लेकिन सावधान भी करती। "दोस्त हैं, लेकिन सावधान," वो सोचता, और किताब खोलकर कल के नोट्स रिव्यू करने लगा, हर फॉर्मूला को दोहराता, जैसे वो लाइनें उसके जीवन की ड्रॉइंग बना रही हों।
क्लास शुरू हुई – इंजीनियरिंग ग्राफिक्स का लेक्चर, टीचर बोर्ड पर ड्रॉइंग बना रहे थे, राहुल ध्यान से देखता, नोट्स लेता, हर लाइन को कॉपी करता, जैसे वो लाइनें उसके जीवन की ड्रॉइंग बना रही हों, और उसके मन में एक नई योजना बन रही थी – कॉलेज में अच्छे नंबर लाना, दोस्तों से मदद लेना, और जॉब में मेहनत करना। ब्रेक में प्रिया मिली – 18 साल की, अमीर घर से, आज पिंक टॉप और ब्लू जींस में, जो उसके शरीर को और आकर्षक बना रही थी, उसके बाल खुले, और मुस्कान जो राहुल को घर जैसा अपनापन दे रही थी, जैसे कोई बहन जो दोस्त बन गई हो। "राहुल, आज फिर अकेला? चल, कैंटीन में कॉफी पीते हैं," प्रिया ने कहा, उसकी आँखें उत्सुकता से चमक रही थीं, जैसे कोई दोस्ती की शुरुआत जो धीरे-धीरे गहरी हो रही हो। राहुल ने कहा, "हाँ प्रिया, चलो। लेकिन मैं कॉफी नहीं, चाय लूँगा।" प्रिया हँसी, "अरे गाँव वाला, चाय? ठीक है, मैं सिखा दूँगी कॉफी पीना।" दोनों कैंटीन गए – कैंटीन में भीड़ थी, छात्र हँसते-बोलते, कॉफी मशीन की आवाज़, और हवा में सैंडविच की महक। प्रिया ने कॉफी ली, राहुल ने चाय, और एक कोने की टेबल पर बैठे। प्रिया ने बात शुरू की, "राहुल, कल तूने गाँव की बात की थी। और बता, माँ क्या करती हैं?" राहुल ने हल्का बताया, "प्रिया, माँ गाँव में अकेली है। ठाकुर की हवेली में काम करती थी, लेकिन अब नहीं। गरीबी है, लेकिन मैं बदल दूँगा।" प्रिया की आँखें नम, "तू मजबूत है राहुल। मेरी लाइफ अमीर है, लेकिन घर में टेंशन। पापा हमेशा काम में, माँ डिप्रेस्ड। मैं पार्टी करती हूँ ताकि भूल जाऊँ।" राहुल ने सहानुभूति दिखाई, "प्रिया, जीवन हर जगह कठिन है। लेकिन दोस्त मदद करते हैं। मैं हूँ न।" प्रिया मुस्कुराई, "तू अच्छा है। कल शाम पार्टी है मेरे घर, आ। रिया भी आएगी।" राहुल ने हाँ कहा, लेकिन मन में सोचा, "सावधान रहना, सेक्स से दूर। गाँव की गलतियाँ नहीं दोहरानी।"
क्लास खत्म, शाम को प्रिया के घर गया – घर बड़ा, लग्ज़री, गेट पर गार्ड, अंदर बड़ा हॉल, म्यूजिक सिस्टम, और स्विमिंग पूल। पार्टी में 10-12 छात्र, डांस, ड्रिंक्स। प्रिया ने राहुल को इंट्रोड्यूस किया, "ये राहुल, मेरा नया दोस्त। गाँव से है लेकिन स्मार्ट।" रिया आई, "राहुल, कल की चाय वाली बात याद है? आज कॉफी ट्राई कर।" तीनों हँसे, डांस किया – राहुल ने गाँव का डांस स्टेप दिखाया, सब हँसे। प्रिया करीब आई, "राहुल, तू स्पेशल है।" लेकिन राहुल सीमा रखा, "प्रिया, दोस्त हूँ।" रात को लौटा, डायरी लिखी – पार्टी की मजा, दोस्ती की खुशी, माँ का फोन। "माँ, शहर अच्छा है। दोस्त मिले – प्रिया, रिया। तुम कब आओगी?" माँ टाली, "बेटा, गाँव में काम है। ठाकुर... वो धमकी दे रहा है, लेकिन मैं संभाल लूँगी। एक हफ्ते के लिए आऊँगी, लेकिन अभी नहीं।" राहुल दुखी, "माँ, क्यों टाल रही हो? क्या ठाकुर की आदत इतनी मजबूत हो गई है कि बिना उसके चुदे रह नहीं पाती? क्या वो अब मजा लेने लगी है उससे?" माँ चुप, "बेटा, जीवन है। चिंता मत कर।" राहुल रोया, लेकिन खुद को संभाला, "माँ, जल्दी बुला लूँगा।" भावनात्मक रूप से राहुल मजबूत हो रहा था – अकेलापन सता रहा था, लेकिन दोस्त ताकत दे रहे थे। रात को पढ़ाई की, किताबें खोली, और सोया – शहर की आवाज़ें नींद में बाधा, लेकिन सपने शहर के, माँ के साथ।
अगले दिन कॉलेज – प्रिया और रिया से मिला, बातें की, नोट्स शेयर। प्रिया ने कहा, "राहुल, शाम को कैफे चल।" कैफे में कॉफी, बातें – प्रिया ने अपना परिवार बताया, "पापा बिज़नेस में व्यस्त, माँ बीमार। मैं अकेली महसूस करती हूँ।" राहुल ने सांत्वना दी, "प्रिया, मैं हूँ न। दोस्त हूँ।" रिया ने कहा, "राहुल, तू अच्छा लगता है। गाँव की कहानी सुनाओ।" राहुल ने बताया, गरीबी, माँ की मेहनत, ठाकुर की क्रूरता। रिया की आँखें नम, "तू इंस्पायरिंग है। हम मदद करेंगी।" दोस्ती गहराई – शामें साथ, फिल्म देखी, घूमने गए। लेकिन राहुल सीमा रखता, "दोस्त हैं, कुछ और नहीं।" जॉब पर राधा से मिलना – काम, लेकिन राधा की नजरें। "राहुल, अच्छा काम। शाम को घर आ।" राहुल मना, "आंटी, पढ़ाई है।" लेकिन राधा ने जोर दिया, "एक बार आ।" राहुल गया, मसाज, फिर चुदाई – राधा wild, "ओह्ह्ह... राहुल... धीरे से दबा... उफ्फ्फ... कितना गर्म... आhhhh... चूस ले... Mmm... तेरी जीभ... मेरी चूत में... ओह्ह्ह... फाड़ दे... तेरा लंड कितना मोटा... आhhhh... चोद जोर से... Mmm... गांड में डाल... उफ्फ्फ... दुखता है लेकिन अच्छा... ओह्ह्ह... झड़ रही हूँ... रोज़ करवा..." राहुल guilt, लेकिन पैसे मिले, माँ को भेजे।
कॉलेज में नेहा मिली – 18 साल की, मॉडल टाइप, लंबे बाल, सेक्सी फिगर। "राहुल, ग्रुप में जॉइन कर।" राहुल ने हाँ कहा, दोस्ती शुरू। नेहा ने बातें की, "राहुल, तू सच्चा लगता है। गाँव की कहानी बता।" राहुल ने बताया, नेहा की आँखें चमकीं, "तू इंस्पायरिंग है।" दोस्ती गहराई, लेकिन राहुल सावधान – "दोस्त है, कुछ और नहीं।" शाम को जॉब, रात पढ़ाई। माँ से फोन, "बेटा, ठीक है?" राहुल, "माँ, आओ।" माँ टाली, "बेटा, अभी नहीं। ठाकुर... वो अब रोज़ बुलाता है। लेकिन मैं खुश हूँ।" राहुल दुखी, "माँ, क्यों?" लेकिन आगे बढ़ा। शहर की जिंदगी जारी, राहुल का विकास – नए दोस्त, पढ़ाई, और सपने। कहानी आगे।
अनपेक्षित ट्विस्ट – कॉलेज में एक दिन प्रिया ने बताया, "राहुल, मेरे पापा जानते हैं तेरे गाँव के ठाकुर को। बिज़नेस डील है।" राहुल स्तब्ध, "क्या? ठाकुर?" प्रिया ने कहा, "हाँ, लेकिन तू चिंता मत कर। मैं मदद करूँगी।" राहुल का मन उलझा, "ठाकुर शहर में भी पीछा कर रहा है?" भावनात्मक संघर्ष बढ़ा, लेकिन दोस्ती ताकत देती। 
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RE: राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक - by Fuckuguy - 08-09-2025, 05:34 PM



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