Thread Rating:
  • 7 Vote(s) - 2.14 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Incest राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक
#30
[img=539x1523][Image: RDT-20250908-1529459143853810318514235.png][/img]
भाग 16: शहर में प्रिया और रिया से दोस्ती की शुरुआत (कॉलेज का पहला सप्ताह, नई दोस्ती की नींव, और भावनात्मक अनुकूलन)

दिल्ली शहर में राहुल का सफर अब धीरे-धीरे अपनी रफ्तार पकड़ रहा था, लेकिन हर दिन एक नई चुनौती लेकर आता था, जैसे शहर उसे परख रहा हो। सुबह की हल्की धुंध अभी छँटी नहीं थी, लेकिन सड़कों पर ट्रैफिक की हॉर्न और लोगों की जल्दबाजी पहले से ही शुरू हो गई थी। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए घर जैसा लगने लगा था – दीवारें पुरानी लेकिन साफ, बेड पर एक पतली चादर जो माँ की याद दिलाती, और खिड़की से बाहर शहर की ऊँची बिल्डिंगों का नजारा जो उसे डराता भी और उत्साहित भी कर रहा था। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन गाँव में माँ सुमन के पास भटक रहा था – कल शाम का फोन जहां माँ ने फिर टाला था, "बेटा, गाँव में काम है। ठाकुर... वो अब जीवन का हिस्सा है। एक हफ्ते के लिए आऊँगी, लेकिन अभी नहीं।" राहुल का दिल भारी हो जाता, "माँ, क्यों नहीं आती? क्या ठाकुर की आदत इतनी मजबूत है कि बिना उसके रह नहीं पाती?" ये सोच उसे रुला देती, लेकिन वो खुद को संभालता, "जल्दी अमीर बनूँगा, माँ को ले आऊँगा। शहर की जिंदगी संभाल लूँगा।" वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की सड़कें व्यस्त, ऑटो दौड़ते हुए, लोग जल्दी में, और हवा में धुँए की महक मिली हुई, जैसे शहर की सांस जो कभी रुकती नहीं। "आज कॉलेज का पहला सप्ताह पूरा हो रहा है, नए दोस्त मिले हैं – प्रिया और रिया। लेकिन सावधान रहना है," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उत्सुकता थी – नई जगह, नए लोग, नई चुनौतियाँ जो उसे गढ़ रही थीं।
राहुल ने अपनी रूटीन शुरू की – कमरे में ही कुछ एक्सरसाइज की, क्योंकि शहर में दौड़ लगाना अभी मुश्किल लग रहा था – पुशअप्स जहां उसके कंधे दर्द करते लेकिन मजबूत होते, सिटअप्स जो उसके पेट की मसल्स को कसते, और स्ट्रेचिंग जो उसके शरीर को लचीला बनाती। "शहर में जिम जॉइन करूँगा, लेकिन अभी ये काफी है," वो सोचता, और पसीना बहते हुए भी मुस्कुराता। नहाकर तैयार हुआ – साधारण सफेद शर्ट जो गाँव से लाया था, नीली पैंट, और बैग में किताबें, नोटबुक, और डायरी। लॉज के नीचे एक छोटी दुकान से चाय ली, गरम चाय की सिप लेते हुए सोचा, "गाँव की चाय जैसी नहीं, लेकिन यहां की चाय में शहर का स्वाद है – तेज़, मसालेदार, और जल्दबाजी वाली।" कॉलेज की ओर निकला – बस पकड़ी, भीड़ में खड़ा रहा, जहां लोग धक्का देते, लेकिन राहुल ने खुद को संभाला, "शहर है, आदत डालनी होगी।" बस से उतरकर कॉलेज पहुँचा – बड़ा गेट जहां छात्रों की भीड़ थी, लड़के-लड़कियाँ हँसते-बोलते, कुछ सिगरेट पीते, कुछ किताबें पढ़ते। राहुल क्लासरूम में गया, अपनी सीट पर बैठा, मन में घबराहट – "गाँव से हूँ, क्या फिट हो पाऊँगा? लेकिन पढ़ाई पर फोकस।" लेक्चर शुरू हुआ – फिजिक्स का, टीचर बोर्ड पर डायग्राम बना रहे थे, राहुल ध्यान से सुना, नोट्स लिए, हर फॉर्मूला को समझने की कोशिश की, जैसे गाँव में कॉलेज के दिनों की तरह लेकिन अब दांव बड़ा था।
ब्रेक में प्रिया मिली – 18 साल की, अमीर घर से, आज नीली ड्रेस में जो उसके गोरे शरीर को और निखार रही थी, छोटी स्कर्ट जो उसके पैरों को उघाड़ रही थी, बड़े बूब्स जो हर कदम पर हिलते, गोरी चमड़ी जो सूरज की रोशनी में चमक रही थी, और लंबे बाल जो हवा में लहरा रहे थे। "राहुल, आज फिर अकेला बैठा है? चल, साथ लंच कर," प्रिया ने मुस्कुराकर कहा, उसकी आँखें चमक रही थीं, जैसे कोई दोस्ती की शुरुआत। राहुल ने कहा, "हाँ प्रिया, चलो। लेकिन मैं साधारण हूँ, तुम अमीर लगती हो।" प्रिया हँसी, "अरे, अमीर क्या, पापा बिज़नेस करते हैं। लेकिन दोस्ती अमीर-गरीब नहीं देखती। बताना, गाँव कैसा है?" दोनों कैंटीन गए, सैंडविच लिए, और बातें कीं – प्रिया ने अपना घर बताया, बड़ा बंगला, कारें, पार्टीज, "राहुल, मेरी लाइफ बोरिंग है। अमीर लेकिन अकेली। दोस्त कम हैं।" राहुल ने अपना गाँव बताया, गरीबी, माँ की मेहनत, "प्रिया, मैं यहाँ सपने लेकर आया हूँ। इंजीनियर बनूँगा, माँ को खुश रखूँगा।" प्रिया की आँखों में सहानुभूति, "तू मजबूत है राहुल। मैं मदद करूँगी। नोट्स दूँगी, पार्टी में ले जाऊँगी।" दोस्ती गहराई – प्रिया की बोल्डनेस राहुल को आकर्षित कर रही थी, लेकिन वो कंट्रोल रखता, "दोस्त है, कुछ और नहीं।" क्लास खत्म, शाम को जॉब पर – राधा की दुकान, सामान बेचा, ग्राहक संभाले, राधा देखती रही, "राहुल, अच्छा काम।" लेकिन राहुल फोकस – "जॉब पैसों के लिए, कुछ और नहीं।"
अगले दिन कॉलेज में रिया मिली – प्रिया की रूममेट, 18 साल की, बोल्ड, शॉर्ट हेयर जो उसके चेहरे को शरारती बना रहे थे, सेक्सी फिगर – गोल-मटोल लेकिन आकर्षक, आज टाइट जींस और टॉप में जो उसके कर्व्स उभार रहा था। "राहुल, प्रिया की दोस्त हूँ। तू handsome है। गाँव के लड़के ऐसे होते हैं?" रिया ने चिढ़ाया, उसकी मुस्कान शरारती, आँखें चमकती। राहुल हँसा, "रिया, बस साधारण हूँ। पढ़ाई पर फोकस।" रिया ने कहा, "अरे, मजा भी कर। पार्टी में चल, प्रिया भी आएगी।" राहुल ने हाँ कहा, लेकिन मन में सोचा, "सावधान रहना, सेक्स से दूर।" पार्टी में गया – प्रिया का घर बड़ा, म्यूजिक तेज़, डांस, लोग हँसते। प्रिया और रिया साथ, "राहुल, डांस कर।" राहुल डांस किया, प्रिया करीब, "राहुल, तू प्यारा है।" लेकिन राहुल सीमा रखा, "दोस्त हूँ।" रात को लौटा, डायरी लिखी – दोस्ती की खुशी, माँ का फोन, "माँ, आओ।" माँ टाली, "बेटा, अभी नहीं। काम है।" राहुल दुखी, लेकिन आगे बढ़ा।
दिल्ली शहर में राहुल का दूसरा दिन अब और चुनौतीपूर्ण लग रहा था, जैसे शहर उसे धीरे-धीरे अपनी गिरफ्त में ले रहा हो। सुबह की हल्की ठंडी हवा कमरे की खिड़की से अंदर आ रही थी, लेकिन बाहर की सड़कों पर पहले से ही ट्रैफिक की हॉर्न और लोगों की जल्दबाजी की आवाज़ें गूँज रही थीं। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए एक सुरक्षित ठिकाना लगने लगा था – दीवारों पर हल्की नमी की वजह से थोड़ी सी फफूँद लगी हुई थी, बेड पर माँ की दी हुई पुरानी चादर बिछी हुई थी जो घर की याद दिलाती, और खिड़की से बाहर शहर की ऊँची-ऊँची बिल्डिंगों का नजारा दिख रहा था, जो रात में रोशनी से चमकतीं लेकिन दिन में सिर्फ कंक्रीट का ढेर लगतीं। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन अभी भी गाँव में माँ सुमन के पास भटक रहा था – कल शाम का फोन जहां माँ ने फिर से आने से मना कर दिया था, "बेटा, गाँव में बहुत काम है। ठाकुर... वो अब रोज़ बुलाता है, लेकिन मैं संभाल लूँगी। एक हफ्ते के लिए आऊँगी, लेकिन अभी नहीं। बस तू पढ़ाई पर ध्यान दे।" राहुल का दिल भारी हो जाता, "माँ, क्यों नहीं आती? क्या ठाकुर की आदत इतनी मजबूत हो गई है कि बिना उसके चुदे रह नहीं पाती? क्या वो अब मजा लेने लगी है उससे?" ये सोच उसे अंदर से खा जाती, लेकिन वो खुद को संभालता, "नहीं, माँ मजबूरी में है। गरीबी ने उसे फँसाया है। मैं जल्दी अमीर बनूँगा, उसे ले आऊँगा, और सब बदल दूँगा।" वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की सड़कें व्यस्त थीं, लोग अपने काम पर जा रहे थे, कुछ स्ट्रीट वेंडर चाय बेच रहे थे, उनकी केतलियों से भाप उठ रही थी, और हवा में धुँए और खाने की महक मिली हुई थी, जैसे शहर की सांस जो कभी रुकती नहीं। "आज कॉलेज का दूसरा दिन है, प्रिया और रिया से मिलना होगा। लेकिन सावधान रहना है, दोस्ती रखनी है लेकिन सीमा से आगे नहीं जाना," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उत्सुकता थी – नई जगह जहां लोग इतने अलग थे, लड़कियाँ बोल्ड, और जीवन तेज़।
राहुल ने अपनी रूटीन शुरू की – कमरे में ही एक्सरसाइज की, पुशअप्स जहां उसके कंधे दर्द करते लेकिन मजबूत होते, सिटअप्स जो उसके पेट की मसल्स को कसते, और स्ट्रेचिंग जो उसके शरीर को लचीला बनाती, जैसे हर एक्सरसाइज उसे शहर की कठोरता से लड़ने के लिए तैयार कर रही हो। "गाँव में दौड़ लगाता था, यहां जगह नहीं लेकिन ये काफी है। जल्दी जिम जॉइन करूँगा," वो सोचता, और पसीना बहते हुए भी मुस्कुराता, क्योंकि physically वो अब अपनी सीमाओं को पार कर रहा था। नहाकर तैयार हुआ – कल वाली सफेद शर्ट धोकर पहनी, नीली पैंट जो गाँव से लाया था, और बैग में किताबें, नोटबुक, और डायरी जो उसके सपनों का साथी थी। लॉज के नीचे दुकान से चाय ली, गरम चाय की सिप लेते हुए सोचा, "माँ की चाय जैसी नहीं, लेकिन यहां की चाय में शहर का स्वाद है – तेज़, मसालेदार, और जीवन की तरह।" कॉलेज की ओर निकला – बस पकड़ी, भीड़ में खड़ा रहा, जहां लोग धक्का देते, कुछ लोग फोन पर बात करते, कुछ अखबार पढ़ते, लेकिन राहुल ने खुद को संभाला, "शहर है, आदत डालनी होगी। बस से उतरकर कॉलेज पहुँचा – बड़ा गेट जहां कल की तरह छात्रों की भीड़ थी, लड़के-लड़कियाँ हँसते-बोलते, कुछ ग्रुप में गॉसिप करते, कुछ कैंटीन की ओर जा रहे। राहुल क्लासरूम में गया, अपनी सीट पर बैठा, मन में कल की याद – प्रिया की मुस्कान, रिया की शरारत। "दोस्त हैं, लेकिन सावधान," वो सोचता। लेक्चर शुरू हुआ – केमिस्ट्री का, टीचर मॉलिक्यूलर स्ट्रक्चर समझा रहे थे, राहुल ध्यान से सुना, नोट्स लिए, हर डायग्राम को कॉपी किया, जैसे गाँव में कॉलेज के दिनों की तरह लेकिन अब दांव बड़ा था, फेल होने का मतलब सपने का टूटना।
ब्रेक में प्रिया मिली – कल वाली नीली ड्रेस में नहीं, आज पिंक टॉप और जींस में, जो उसके शरीर को और आकर्षक बना रही थी, उसके बाल खुले, और मुस्कान जो राहुल को घर जैसा अपनापन दे रही थी। "राहुल, कल शाम क्या किया? शहर कैसा लगा?" प्रिया ने पूछा, उसकी आँखें उत्सुकता से चमक रही थीं। राहुल ने कहा, "प्रिया, लॉज में रहा, पढ़ाई की। शहर बड़ा है, लेकिन गाँव की याद आती है।" प्रिया हँसी, "अरे, मैं ले जाऊँगी घुमाने। आज शाम कैंटीन में चल, रिया भी आएगी।" राहुल ने हाँ कहा, "ठीक है, लेकिन पढ़ाई पहले।" दोनों क्लास में साथ बैठे, प्रिया ने नोट्स शेयर किए, "राहुल, तू स्मार्ट है। गाँव से आया लेकिन तेज़ है।" राहुल मुस्कुराया, "प्रिया, मेहनत करता हूँ। माँ के लिए।" प्रिया की आँखों में सहानुभूति, "तेरी माँ? बताना।" राहुल ने हल्का बताया, गरीबी, माँ की मेहनत, "प्रिया, वो गाँव में अकेली है। जल्दी बुला लूँगा।" प्रिया ने हाथ पकड़ा, "मैं मदद करूँगी। मेरे पापा से कहूँगी, जॉब मिलवा देंगी।" दोस्ती गहराई – प्रिया की अमीरी राहुल को थोड़ी जलन देती, लेकिन उसके अपनापन से दिल जीत रही थी। क्लास खत्म, कैंटीन में रिया मिली – कल वाली शॉर्ट हेयर वाली लड़की, आज ग्रीन ड्रेस में, उसके फिगर की आउटलाइन साफ, और मुस्कान शरारती। "राहुल, प्रिया से सुना तेरे बारे में। गाँव का राजकुमार," रिया ने चिढ़ाया। राहुल हँसा, "रिया, बस साधारण हूँ।" तीनों लंच किए, सैंडविच, कोक, बातें – रिया ने अपनी कहानी बताई, "मैं बोल्ड हूँ, लेकिन घर में पाबंदी। पापा सख्त हैं।" राहुल ने सहानुभूति दिखाई, "रिया, मैं भी गाँव से, माँ की बात मानता हूँ।" रिया मुस्कुराई, "तू अच्छा है राहुल। पार्टी में चल, मजा कर।" राहुल ने हाँ कहा, लेकिन मन में सोचा, "सावधान रहना, सेक्स से दूर। गाँव की गलतियाँ नहीं दोहरानी।"
शाम को लॉज लौटा, माँ को फोन किया, "माँ, कॉलेज अच्छा है। दोस्त मिले – प्रिया, रिया। तुम कब आओगी?" माँ टाली, "बेटा, गाँव में काम है। ठाकुर... वो धमकी दे रहा है, लेकिन मैं संभाल लूँगी। एक हफ्ते के लिए आऊँगी, लेकिन अभी नहीं। बस तू पढ़ाई कर।" राहुल दुखी, "माँ, क्यों टाल रही हो? क्या ठाकुर की आदत इतनी मजबूत हो गई है कि बिना उसके चुदे रह नहीं पाती? क्या वो अब मजा लेने लगी है उससे?" माँ चुप, "बेटा, जीवन है। चिंता मत कर।" राहुल रोया, लेकिन खुद को संभाला, "माँ, जल्दी बुला लूँगा।" रात को पढ़ाई की, किताबें खोली, और सोया – शहर की आवाज़ें नींद में बाधा, लेकिन सपने शहर के, माँ के साथ।
अगले दिन कॉलेज – प्रिया और रिया से मिला, बातें की, नोट्स शेयर। प्रिया ने कहा, "राहुल, शाम को कैफे चल।" कैफे में कॉफी, बातें – प्रिया ने अपना परिवार बताया, "पापा बिज़नेसमैन, माँ हाउसवाइफ। लेकिन मैं इंडिपेंडेंट बनना चाहती हूँ।" राहुल ने अपना गाँव बताया, "प्रिया, गरीबी देखी है। माँ अकेली संघर्ष करती है।" प्रिया की आँखें नम, "तू मजबूत है। मैं मदद करूँगी।" रिया ने चिढ़ाया, "राहुल, गर्लफ्रेंड है?" राहुल हँसा, "नहीं, पढ़ाई।" दोस्ती गहराई – शामें साथ, लेकिन राहुल सीमा रखता। जॉब पर राधा से मिलना – काम, लेकिन राधा की नजरें। "राहुल, अच्छा काम।" राहुल फोकस – "पैसे के लिए।" लेकिन एक शाम राधा ने कहा, "घर आ।" राहुल मना, लेकिन राधा ने जोर दिया। घर पर मसाज, फिर चुदाई – राधा wild, "ओह्ह्ह्ह... राहुल... धीरे से दबा मेरे बूब्स... उफ्फ्फ... कितना गर्म हाथ है तेरा... आhhhh... चूस ले... Mmm... कितना मजेदार... तेरी जीभ... मेरी चूत में... ओह्ह्ह... फाड़ दे... तेरा लंड कितना मोटा... आhhhh... चोद जोर से... Mmm... गांड में डाल... उफ्फ्फ... दुखता है लेकिन अच्छा लग रहा... ओह्ह्ह... झड़ रही हूँ... रोज़ करवा..." राहुल guilt, लेकिन पैसे मिले।
कॉलेज में नेहा मिली – 18 साल की, मॉडल टाइप, लंबे बाल, सेक्सी फिगर। "राहुल, ग्रुप में जॉइन कर।" राहुल ने हाँ कहा, दोस्ती शुरू। नेहा ने बातें की, "राहुल, तू सच्चा लगता है। गाँव की कहानी बता।" राहुल ने बताया, नेहा की आँखें चमकीं, "तू इंस्पायरिंग है।" दोस्ती गहराई, लेकिन राहुल सावधान। शाम को जॉब, रात पढ़ाई। माँ से फोन, "बेटा, ठीक है?" राहुल, "माँ, आओ।" माँ टाली, "बेटा, अभी नहीं। ठाकुर... वो अब रोज़ बुलाता है। लेकिन मैं खुश हूँ।" राहुल दुखी, "माँ, क्यों?" लेकिन आगे बढ़ा। शहर की जिंदगी जारी, राहुल का विकास – नए दोस्त, पढ़ाई, और सपने।
Like Reply


Messages In This Thread
RE: राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक - by Fuckuguy - 08-09-2025, 05:23 PM



Users browsing this thread: