08-09-2025, 05:11 PM
शहर का सफर और नई शुरुआत (नई दुनिया की चुनौतियाँ, भावनात्मक संघर्ष, और कामुक आकर्षण की शुरुआत)
रामपुर गाँव में वो आखिरी सुबह थी, जो राहुल के जीवन में एक अध्याय का अंत और दूसरे की शुरुआत का प्रतीक बनने वाली थी। सूरज की पहली किरणें धीरे-धीरे गाँव की छतों पर पड़ रही थीं, लेकिन राहुल के लिए ये रोशनी जैसे एक नई दिशा दिखा रही थी। हवा में मिट्टी की महक मिली हुई थी, और दूर से ट्रेन की सीटी की आवाज़ सुनाई दे रही थी, जैसे कोई बुलावा जो राहुल को शहर की ओर खींच रहा हो। गाँव की पगडंडी पर लोग अपने रोज़मर्रा के काम में लगे थे – किसान खेतों में, औरतें पानी भरने, बच्चे खेलते हुए – लेकिन राहुल का मन अब इन सब से ऊपर उठ चुका था। उसका छोटा सा कच्चा घर आज विदाई के माहौल में लिपटा हुआ लग रहा था – आँगन में माँ सुमन ने कुछ सामान बाँधा था, दीवारों पर पुरानी यादें जैसे चिपकी हुई थीं, और रसोई में चाय की उबलती आवाज़ अब अलविदा की तरह लग रही थी। राहुल बिस्तर पर बैठा रहा, उसकी आँखें अपनी डायरी पर टिकी हुई थीं – कल रात की एंट्री अभी भी अधूरी थी, जहां वो लिख रहा था कि कैसे ठाकुरैन मालती के साथ का पल उसे guilt दे रहा था, माँ की मजबूरी उसे तोड़ रही थी, और शहर का सपना उसे जीने की वजह दे रहा था। "शहर जाकर सब बदल दूँगा। माँ को वहाँ ले जाऊँगा, ठाकुर जैसे लोगों से दूर," राहुल सोचता, और उसके मन में एक उथल-पुथल थी – डर जो अब कम हो रहा था, गुस्सा जो अब ताकत बन रहा था, और एक नई उम्मीद जो उसके दिल में बस रही थी। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – गाँव की पगडंडी अब विदाई की तरह लग रही थी, पड़ोस में सरला काकी का घर अभी भी शांत था, लेकिन उसकी यादें अब पुरानी लग रही थीं, जैसे कोई किताब का पन्ना जो पलट चुका हो। "आज ट्रेन पकड़ूँगा, दिल्ली जाऊँगा। नई जिंदगी शुरू करूँगा," राहुल सोचता, और उसके मन में एक नई योजना बनने लगी – शहर में कमरा ढूँढना, कॉलेज में दाखिला, पार्ट-टाइम जॉब, और माँ को जल्दी बुलाना।
राहुल ने अपनी रूटीन पूरी की – दौड़ लगाई, जहां उसके पैर अब और तेज़ दौड़ रहे थे, शरीर की हर मसल काम कर रही थी, और मन शांत हो रहा था। दौड़ते हुए वो गाँव की हर छोटी-बड़ी चीज़ को देख रहा था – वो पुराना पेड़ जहाँ मीना से मिला था, वो नदी किनारा जहां पहली बार किसी लड़की को छुआ था, और वो हवेली की ऊँची दीवारें जो अब उसके लिए एक जेल की तरह लग रही थीं, लेकिन वो दीवारें जो उसे चुनौती दे रही थीं। "हवेली जाना अब रोज़ का काम है, लेकिन आज काव्या दी से मिलना... क्या वो सिर्फ दोस्ती चाहती हैं या कुछ और?" राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उलझन थी – काव्या की बोल्ड मुस्कान, उसकी शहर की कहानियाँ, और उसके पिता ठाकुर की क्रूरता। दौड़ पूरी कर वो घर लौटा, पसीने से तर, लेकिन मन तरोताज़ा, जैसे हर दौड़ उसे एक कदम शहर के करीब ले जा रही हो। नहाकर राहुल ने माँ से बात की – सुमन रसोई में रोटियाँ बेल रही थी, उसके हाथों में आटे की लोई थी, और चेहरे पर एक हल्की मुस्कान, लेकिन आँखों में चिंता जो छिपाए नहीं छिप रही थी। "बेटा, तैयार है? ट्रेन का समय हो रहा है," सुमन ने कहा, उसकी आवाज़ में ममता लेकिन आँसू जो रुकने को तैयार नहीं थे। राहुल ने चाय पी, माँ के पैर छुए, "माँ, रो मत। जल्दी बुला लूँगा। ठाकुर से दूर रहना, कोई धमकी आए तो告诉我।" सुमन ने राहुल को गले लगाया, उसके आँसू राहुल के कंधे पर गिरे, "बेटा, शहर बड़ा है। लोग चालाक, लड़कियाँ... सावधान रहना। पढ़ाई कर, सपने पूरे कर।" राहुल ने माँ की आँखों में देखा, वो आँखें जो गरीबी की थकान से भरी थीं, लेकिन प्यार से चमक रही थीं। "माँ, वादा करता हूँ। तुम्हारे लिए जीऊँगा," राहुल ने कहा, और बैग कंधे पर लटकाया – बैग में कुछ कपड़े, किताबें, डायरी, और माँ की बनी मिठाई। सुमन ने राहुल को स्टेशन तक छोड़ा, रास्ते में बातें की – बचपन की यादें, पिता की मौत, और ठाकुर की क्रूरता। "बेटा, ठाकुर ने कल फिर फोन किया। लेकिन मैं नहीं गई। तू चला जा, मैं संभाल लूँगी," सुमन ने झूठ बोला, लेकिन राहुल को शक हो गया। स्टेशन पर ट्रेन आई, राहुल चढ़ा – सीट खिड़की वाली, बाहर माँ खड़ी रो रही थी, गाँव पीछे छूट रहा था, जैसे कोई पुराना जीवन जो अब सपना लग रहा था। ट्रेन की रफ्तार में राहुल का मन शहर की कल्पना कर रहा था – बड़े बिल्डिंग, रोशनी, भीड़, अवसर, लेकिन साथ ही डर – अकेलापन, पैसों की कमी, और नई दुनिया की चुनौतियाँ। ट्रेन में सफर लंबा था – राहुल ने डायरी निकाली, लिखा: "गाँव छूट रहा है, माँ की याद सता रही है। शहर में क्या होगा? लेकिन मैं तैयार हूँ। सपने पूरे करूँगा।" साथ में किताब पढ़ी, जहां हीरो शहर पहुँचकर संघर्ष करता है, लेकिन जीतता है। राहुल सोचता, "मैं भी जीतूँगा।"
ट्रेन दिल्ली स्टेशन पहुँची – शाम हो चुकी थी, स्टेशन की भीड़, ऑटो की हॉर्न, और शहर की रोशनी जो आँखों को चौंधिया रही थी। राहुल बाहर निकला, बैग कंधे पर, और शहर की हवा में सांस ली – हवा में धुँआ, खाने की महक, और लोगों की जल्दबाजी। पहला काम कमरा ढूँढना – वो एक छोटी गली में गया, जहाँ सस्ते लॉज थे। एक लॉज मिला – कमरा छोटा, एक बेड, खिड़की से शहर का नजारा, और किराया सस्ता। मालिक ने कहा, "लड़का, गाँव से लगता है। सावधान रहना, शहर चालाक है।" राहुल ने कमरा लिया, सामान रखा, और बाहर निकला – शाम की दिल्ली में सड़कें भरी हुई, दुकानें चमक रही, लोग जल्दी में। वो एक छोटी दुकान पर रुका, रोटी-सब्ज़ी खाई, और सोचा, "कल कॉलेज देखूँगा। जॉब ढूँढूँगा।" रात को कमरे में लेटा, डायरी लिखी – गाँव की याद, माँ का फोन, "बेटा, ठीक पहुँचा? खाना खाया?" राहुल ने कहा, "हाँ माँ, सब ठीक। तुम कैसी हो?" सुमन ने झूठ बोला, "ठीक हूँ बेटा।" लेकिन राहुल को पता था, ठाकुर की धमकी अभी भी है। emotionally राहुल मजबूत हो रहा था – अकेलापन सता रहा था, लेकिन सपने ताकत दे रहे थे। रात लंबी थी, शहर की आवाज़ें – कारों की हॉर्न, कुत्तों की भौंक – नींद नहीं आ रही थी, लेकिन राहुल ने किताब पढ़ी, प्लान बनाया। "कल कॉलेज जाऊँगा," वो सोचा।
अगला दिन – राहुल एक लोकल कॉलेज गया, इंजीनियरिंग कोर्स के लिए फॉर्म भरा। कॉलेज बड़ा था – बिल्डिंग ऊँची, छात्र भीड़ में, और हवा में किताबों की महक। दाखिला मिला, लेकिन फीस ज्यादा – राहुल ने सोचा, "जॉब ढूँढूँगा।" कॉलेज में पहला दिन – क्लास में प्रिया मिली, 18 साल की, अमीर घर से, छोटी स्कर्ट, बड़े बूब्स, गोरी चमड़ी, लंबे बाल। "तू नया है? गाँव से? मैं प्रिया, चल साथ बैठ," प्रिया ने कहा, उसकी मुस्कान आकर्षक। राहुल ने दोस्ती की, "हाँ, राहुल हूँ। पढ़ाई पर फोकस है।" प्रिया हँसी, "अरे, कॉलेज में मजा भी कर। पार्टी में चल।" रिया, प्रिया की रूममेट, 18 साल की, बोल्ड, शॉर्ट हेयर, सेक्सी फिगर – "राहुल, तू handsome है। गाँव के लड़के ऐसे होते हैं?" राहुल ने बातें की, लेकिन कंट्रोल रखा। क्लास में लेक्चर – मैथ्स, फिजिक्स – राहुल ध्यान से सुना, नोट्स लिए। शाम को जॉब ढूँढी – एक छोटी सी दुकान पर, सामान बेचना। मालकिन राधा, 45 साल की विधवा, सेक्सी – बड़े स्तन, पतली कमर, साड़ी में आकर्षक। "राहुल, काम करेगा? शाम 5 से 10 तक," राधा ने कहा। राहुल ने हाँ कहा, काम शुरू किया – सामान व्यवस्थित करना, ग्राहक संभालना। राधा करीब आई, "तू जवान है, मजबूत। घर आ, मसाज कर दे।" राहुल मना किया, "आंटी, काम पर फोकस।" लेकिन राधा ने जोर दिया, एक शाम घर ले गई – घर छोटा, लेकिन साफ। "मसाज कर," राधा बोली। राहुल ने मसाज की, राधा नंगी हो गई, "छू ले।" राहुल का कंट्रोल टूटा, स्तन दबाए, राधा wild, "Aaaaahhhhh... जोर से... ओoooooooohhhhhhh... मेरे बूब्स... Mmmmaaaaaaaaaaa... काट... उफ्फ... कितना मजा..." राहुल ने चूत चाटी, राधा चिल्लाई, "Aaaaahhhhh... जीभ अंदर... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत... फाड़ दे... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना गर्म... रोज़ चाट..." लंड डाला, राधा wild, "Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना बड़ा... मेरी चूत फट गई... Aaaaahhhhh... चोद जोर से... ओoooooooohhhhhhh... गांड भी मार... उफ्फ... फाड़ दे मेरी गांड... Aaaaahhhhh... दर्द... लेकिन मजा... Mmmmaaaaaaaaaaa... मैं झड़ रही... रोज़ तुझसे चुदवाऊँगी..." धक्के तेज़, राधा कमर हिला रही, गांड में डाला, वो चिल्लाई, "Ooooooooohhhhhhh... गांड फट गई... Aaaaahhhhh... जोर से... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना मजा... तेरे लंड से..." दोनों झड़े। राधा बोली, "राहुल, तू मेरा है। प्रमोशन दूँगी।" राहुल को मजा आया, लेकिन guilt – "फिर गलती की। लेकिन पैसे मिलेंगे।"
शहर की जिंदगी तेज़ थी – सुबह कॉलेज, जहां प्रिया और रिया से दोस्ती गहराई। प्रिया अमीर, पार्टी करती, "राहुल, चल मेरे घर।" रिया बोल्ड, "राहुल, तू virgin है? मजा कर।" राहुल ने पार्टी में गया – घर बड़ा, म्यूजिक, डांस। प्रिया करीब आई, "राहुल, किस कर।" kiss हुआ, फिर कमरे में – प्रिया की स्कर्ट ऊपर, चूत शेव्ड, "चोद मुझे।" राहुल ने डाला, प्रिया चिल्लाई, "Aaaaahhhhh... दर्द... लेकिन मजा... ओoooooooohhhhhhh... जोर से... Mmmmaaaaaaaaaaa... मेरी चूत... फाड़ दे... रोज़ चुदवाऊँगी..." रिया जॉइन, "मुझे भी।" थ्रीसम – दोनों की चूतें गीली, कराहें "Aaaaahhhhh... राहुल... कितना बड़ा... Ooooooooohhhhhhh... हम दोनों को चोद... Mmmmaaaaaaaaaaa... झड़ रही..." राहुल ने दोनों को संतुष्ट किया। लेकिन guilt – "फिर से। लेकिन दोस्त हैं।"
जॉब पर राधा से रोज़ मिलना – मसाज से चुदाई, राधा wild, "Aaaaahhhhh... गांड मार... ओoooooooohhhhhhh... फाड़ दे... Mmmmaaaaaaaaaaa... रोज़..." राहुल पैसे कमाता, माँ को भेजता। माँ फोन पर, "बेटा, ठाकुर धमकी दे रहा है। लेकिन मैं संभाल लूँगी।" राहुल चिंतित, "माँ, जल्दी बुला लूँगा।" कॉलेज में नेहा मिली, मॉडल टाइप, 18 साल की, "राहुल, पार्टी में चल।" पार्टी में नेहा ने किस किया, फिर एनल – नेहा चिल्लाई, "Aaaaahhhhh... दर्द... निकालो... लेकिन मजा... ओoooooooohhhhhhh... जोर से... Mmmmaaaaaaaaaaa... गांड फाड़... रोज़..." राहुल का सफर जारी, सेक्स, पढ़ाई, जॉब। शहर की रातें लंबी, लेकिन सपने बड़े। माँ को बुलाने का प्लान, नई लड़कियाँ – बॉस की बीवी शीला, 38 साल की, ऑफिस में, "चोद मुझे।" शीला wild, "Aaaaahhhhh... जोर से... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना बड़ा... फाड़ दे... रोज़..." राहुल सफल हो रहा, लेकिन guilt। कहानी आगे, राहुल का विकास – अमीर बनना, माँ को बुलाना।
राहुल ने माँ को फोन किया, "माँ, शहर आओ। कमरा लिया है, जॉब है।" सुमन टालती, "बेटा, गाँव में काम है। ठाकुर... वो..." लेकिन राहुल ने जोर दिया, "माँ, आओ। ठाकुर से दूर हो जाओ।" सुमन कई बार टाली, क्योंकि अब ठाकुर से चुदना पसंद आ गया था – बिना चुदे रह नहीं पाती, रातें तड़प में गुजरती। "बेटा, एक हफ्ते के लिए आती हूँ," सुमन ने कहा। माँ आई – दिल्ली स्टेशन पर राहुल लेने गया, माँ को गले लगाया। कमरे में, माँ ने सच बताया, "बेटा, ठाकुर से चुदना अब आदत हो गई। बिना उसके रह नहीं पाती।" राहुल रोया, "माँ, क्यों?" माँ ने चुप कराया, "बेटा, यही जीवन है। गरीबी ने मजबूर किया, लेकिन अब मजा आता है।" माँ ने राहुल को चूम लिया, गलती से होंठों पर – kiss गहरा हो गया। राहुल ने माँ को चोदा, "माँ... आह..." माँ wild, "Aaaaahhhhh... बेटा... जोर से... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना बड़ा... फाड़ दे... रोज़ चुदवाऊँगी..." फिर गांड मारी, माँ चिल्लाई, "Aaaaahhhhh... दर्द... लेकिन मजा... ओoooooooohhhhhhh... गांड फाड़... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना मजा..." हफ्ते बाद माँ गाँव लौट गई, "बेटा, यही मेरा जीवन है।" राहुल रोया, लेकिन मजबूत बना। कहानी आगे।


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