Thread Rating:
  • 7 Vote(s) - 2.14 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Incest राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक
#28
[img=539x1910][Image: RDT-20250908-1537285512190152677869213.webp][/img]
भाग 13: काव्या से पहली गहरी बातचीत और दोस्ती की शुरुआत (मानसिक संघर्ष की गहराई और नई दोस्ती की नींव)

रामपुर गाँव में वो अगली सुबह फिर से एक नई चुनौती लेकर आई थी, जैसे जीवन राहुल को हर दिन एक नया सबक सिखाने पर तुला हो। सूरज की पहली किरणें धुंध को चीरकर गाँव की छतों पर पड़ रही थीं, लेकिन हवा में अभी भी मेले की थकान और पटाखों की बारूद की हल्की महक बसी हुई थी। दूर से नदी की कलकल सुनाई दे रही थी, और खेतों में किसान अपने काम में लगे थे, लेकिन राहुल के लिए ये सब अब एक रूटीन बन चुका था – एक रूटीन जो उसे मजबूत बना रहा था, लेकिन साथ ही थका भी रहा था। राहुल का घर आज थोड़ा और सादा लग रहा था – आँगन में अब रंगोली के निशान मिट चुके थे, दीवारों पर पुरानी दरारें थीं जो समय के साथ और चौड़ी हो रही थीं, और रसोई से माँ सुमन के हाथों की बनी साधारण चाय की महक आ रही थी। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, लेकिन नींद पूरी नहीं हुई थी – कल शाम प्रीति भाभी के साथ के पलों की यादें उसके दिमाग में घूम रही थीं, और ठाकुर की धमकी जो अब उसके कानों में गूँज रही थी। लेकिन राहुल अब इन यादों से लड़ना सीख रहा था; वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – गाँव की पगडंडी पर कुछ औरतें पानी भरने जा रही थीं, उनके घड़ों की आवाज़ दूर से सुनाई दे रही थी, और आसमान में उड़ते पक्षी जैसे स्वतंत्रता का प्रतीक लग रहे थे। "आज हवेली में क्या होगा? काव्या दी से मिलना हो सकता है, ठाकुर का बदला... लेकिन मैं तैयार हूँ," राहुल सोचता, और उसके मन में एक नई दृढ़ता थी, जैसे कोई पेड़ जो तूफान में भी खड़ा रहता हो।
राहुल ने अपनी रूटीन शुरू की – दौड़ लगाने से पहले किताब "सपनों की उड़ान" के कुछ पन्ने पढ़े, जहां हीरो अब अपने दुश्मनों से लड़ता है, लेकिन अकेले नहीं, अपनी आंतरिक ताकत से, परिवार की यादों से, और छोटी-छोटी जीतों से। किताब के पन्ने अब घिस चुके थे, किनारों पर उँगलियों के निशान थे, और कुछ जगहों पर राहुल ने पेंसिल से नोट्स लिखे थे – "संघर्ष से मजबूती आती है," "सपने कभी मत छोड़ो," "दोस्ती ताकत देती है, लेकिन सावधान रहो।" राहुल ने डायरी में लिखा: "कल प्रीति भाभी के साथ हुआ, मजा आया लेकिन guilt भी। अब कंट्रोल रखूँगा। ठाकुर की धमकी का सामना करूँगा। सपने मत भूल – शहर, सफलता। माँ की खुशी।" दौड़ लगाते हुए वो महसूस कर रहा था कि physically वो और मजबूत हो रहा है – उसके पैर अब तेज़ दौड़ रहे थे, साँसें बिना रुके चल रही थीं, और पसीना बहते हुए भी वो थकान महसूस नहीं कर रहा था। दौड़ते हुए वो गाँव की हर छोटी-बड़ी चीज़ को देख रहा था – वो पुराना पेड़ जहाँ बचपन में मीना से मिला था, वो नदी किनारा जहां पहली बार किसी लड़की को छुआ था, और वो हवेली की ऊँची दीवारें जो अब उसके लिए एक जेल की तरह लग रही थीं, लेकिन वो दीवारें जो उसे चुनौती दे रही थीं। "हवेली जाना अब रोज़ का काम है, लेकिन आज काव्या दी से मिलना... क्या वो सिर्फ दोस्ती चाहती हैं या कुछ और?" राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उलझन थी – काव्या की बोल्ड मुस्कान, उसकी शहर की कहानियाँ, और उसके पिता ठाकुर की क्रूरता। दौड़ पूरी कर वो घर लौटा, पसीने से तर, लेकिन मन तरोताज़ा, जैसे हर दौड़ उसे एक कदम शहर के करीब ले जा रही हो।
नहाकर राहुल ने माँ से बात की – सुमन रसोई में रोटियाँ बेल रही थी, उसके हाथों में आटे की लोई थी, और चेहरे पर एक हल्की मुस्कान, लेकिन आँखों में चिंता जो छिपाए नहीं छिप रही थी। "बेटा, चाय पी ले। आज हवेली जाना है?" सुमन ने पूछा, उसकी आवाज़ में ममता लेकिन एक हल्की डर की परत। राहुल ने चाय ली, गरम चाय की सिप लेते हुए कहा, "हाँ माँ, जाना पड़ेगा। लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं ठाकुर से बात कर लूँगा। पैसे मिल रहे हैं, कॉलेज की फीस भर दूँगा, और घर का खर्च भी।" सुमन की आँखें नम हो गईं, "बेटा, तू इतनी जिम्मेदारी ले रहा है। लेकिन वो ठाकुर... कल फोन किया था। धमकी दी कि अगर मैं नहीं गई तो तेरे साथ बुरा करेगा।" राहुल का गुस्सा भड़का, लेकिन वो शांत रहा, माँ का हाथ पकड़ा – उसके हाथ ठंडे थे, जैसे डर से जमा हुए – "माँ, मैं संभाल लूँगा। तुम मत जाना। मैं अब बड़ा हो गया हूँ, डर नहीं रहा। तुम्हारे लिए, अपने सपनों के लिए लड़ूँगा।" emotionally राहुल का विकास स्पष्ट हो रहा था – माँ की चिंता अब उसे बोझ नहीं, बल्कि ताकत दे रही थी; guilt से निकलकर वो responsibility को अपनाने लगा था, और किताब से इंस्पिरेशन लेकर छोटे-छोटे लक्ष्य सेट कर रहा था। सुमन ने राहुल के सिर पर हाथ फेरा, उसके बाल अभी भी गीले थे, "भगवान तुझे खुश रखे बेटा। लेकिन सावधान रहना, हवेली में औरतें भी हैं... प्रीति, काव्या, मालती। वो सब ठाकुर की तरह लालची हैं, और तुझे फँसा सकती हैं।" राहुल ने हाँ में सिर हिलाया, लेकिन अंदर से सोचा, "मैं कंट्रोल में रहूँगा। सेक्स से दूर, फोकस काम पर। लेकिन काव्या दी... वो अलग लगती हैं, जैसे कोई दोस्त जो समझती हो।"
नाश्ता खत्म कर राहुल ने अपनी किताब खोली – "सपनों की उड़ान" के कुछ पन्ने पढ़े, जहां हीरो गरीबी से लड़ते हुए छोटी जीत हासिल करता है, दोस्तों और परिवार से ताकत लेता है, और चुनौतियों से सीखता है। किताब के पन्ने अब घिस चुके थे, किनारों पर उँगलियों के निशान थे, और कुछ जगहों पर राहुल ने पेंसिल से नोट्स लिखे थे – "संघर्ष से मजबूती आती है," "सपने कभी मत छोड़ो," "दोस्ती ताकत देती है, लेकिन सावधान रहो।" राहुल ने डायरी में लिखा: "आज हवेली में ठाकुरैन मालती से मिलना हो सकता है। mentally तैयार रहूँगा, कोई लालच नहीं। ठाकुर की धमकी का सामना करूँगा। सपने याद रख – शहर, कॉलेज, अमीर बनना। माँ की खुशी। प्रीति भाभी की मदद की याद आ रही है, लेकिन अब कंट्रोल।" mentally वो अब प्लान बना रहा था – अगर ठाकुर दबाव डाले तो वैकल्पिक काम ढूँढना, गाँव के बाज़ार में कोई छोटी जॉब, या कॉलेज के बाद ट्यूशन देना। "एक दिन अपना बिज़नेस करूँगा, ठाकुर जैसे लोगों से ऊपर उठूँगा," वो सोचता, और दिल में एक नई आग जलती, जैसे कोई दीपक जो अंधेरे में भी चमकता रहता है। cousins रीता और सीमा कल शहर लौट गई थीं, लेकिन उनकी विदाई की यादें अभी भी उसके मन में थीं – रीता की bold हँसी, सीमा की शर्मीली मुस्कान, और वो गले लगाने का पल जो अपनापन दे गया था। "परिवार ही ताकत है, लेकिन अब खुद पर भरोसा करना है," राहुल सोचता, और तैयार होकर हवेली की ओर निकल पड़ा।
रास्ता वही था – गाँव की पगडंडी से गुजरते हुए वो खेतों को देखता, जहाँ किसान पसीना बहा रहे थे, बैल हल खींच रहे थे, और हवा में मिट्टी की महक मिली हुई थी। रास्ते में वो सरला काकी के घर के पास से गुजरा, काकी बाहर झाड़ू लगा रही थी, उसके शरीर की चाल अभी भी कामुक लग रही थी – साड़ी कमर पर टिकी हुई, स्तन ब्लाउज से उभरे हुए – लेकिन राहुल ने नज़रें फेर ली, "अब नहीं, काकी। पुरानी बातें।" हवेली पहुँचकर राहुल अंदर घुसा – दरवाज़ा बड़ा था, लोहे का, और अंदर बगीचा जो फूलों से सजा हुआ था, लेकिन आज फूल थोड़े मुरझाए लग रहे थे, जैसे हवेली का माहौल। नौकर ने उसे काम सौंपा – आज फूलों की क्यारियाँ साफ करना, पानी देना, और घास ट्रिम करना, लेकिन साथ ही ठाकुर के कमरे के पास की सफाई भी। राहुल काम में लग गया – धूप तेज़ थी, पसीना उसके माथे से बहकर आँखों में चुभ रहा था, शर्ट गीली हो गई थी, लेकिन वो नहीं रुका। physically ये काम कठिन था – हाथों में फावड़ा पकड़कर घास काटना, पानी की भारी बाल्टियाँ उठाकर पौधों तक ले जाना, और एक-एक पौधे को ध्यान से पानी देना, जैसे कोई माली जो अपने बगीचे को प्यार से संवारता हो। उसके हाथों में छाले पड़ रहे थे, पीठ दर्द कर रही थी, लेकिन दर्द अब उसे मजा दे रहा था, जैसे कोई मेडल जो संघर्ष की निशानी है। "ये पैसे देगा, माँ की मदद करेगा, और मुझे मजबूत बनाएगा," वो सोचता, और काम करता रहा। बगीचे में काम करते हुए वो ठाकुरैन मालती से मिला – मालती बालकनी से नीचे उतरी, उसके हाथ में चाय की ट्रे थी। मालती आज लाल साड़ी में थी, जो उसके शरीर को और निखार रही थी – उसके स्तन उभरे हुए, कमर पतली, और चाल में एक लय। "राहुल, थक गया होगा। चाय पी ले," मालती ने मुस्कुराकर कहा, उसकी आवाज़ नरम लेकिन आकर्षक। राहुल ने ट्रे ली, ठंडा पानी गले से उतरता हुआ उसे तरोताज़ा कर गया, "धन्यवाद भाभी। लेकिन काम..." मालती ने काटा, "काम बाद में। बैठ, बात कर।" दोनों बगीचे के बेंच पर बैठे, चाय की सिप लेते हुए। मालती ने बात शुरू की, "राहुल, तू गाँव का है लेकिन शहर जैसा लगता है। पढ़ाई करता है?" राहुल ने हाँ कहा, "जी भाभी, कॉलेज पास करके शहर जाऊँगा। इंजीनियर बनूँगा।" मालती की आँखें चमकीं, "अच्छा है। मैं भी शहर से हूँ, लेकिन शादी के बाद यहाँ फँस गई। ठाकुर से शादी पैसे के लिए की, लेकिन अब घुटन है।" उसके शब्दों में दर्द था, आँखें नम। राहुल ने सहानुभूति दिखाई, "भाभी, जीवन कठिन है। लेकिन मजबूत बनिए। मैं भी गरीबी से लड़ रहा हूँ।" मालती करीब आई, उसका हाथ राहुल के कंधे पर, "तू मजबूत है राहुल। मुझे भी ताकत दे। अकेलापन मार डालता है।" राहुल का मन भटका – मालती की खुशबू, उसके स्तनों की गर्माहट – लेकिन वो उठने की कोशिश की, "भाभी, काम..." लेकिन मालती ने पकड़ लिया, "रुक न राहुल। मुझे बात करने दो। तू समझता है।" दोनों बातें करने लगे – मालती ने अपना अतीत बताया, शहर से शादी कर हवेली आई, लेकिन ठाकुर के परिवार में घुटन, ठाकुर की उम्र की वजह से सेक्स की कमी, और मन में लालच जो उसे जवान लड़कों की ओर खींचता। "राहुल, तू जवान है, समझता होगा। शरीर की भूख... लेकिन कोई नहीं है जो बुझाए।" राहुल ने कहा, "भाभी, मैं समझता हूँ, लेकिन कंट्रोल जरूरी है। मैं भी गुजर रहा हूँ।" लेकिन मालती की आँखों में आँसू थे, वो करीब आई, उसके होंठ राहुल के कंधे पर लगे, "राहुल, मुझे छू... बस एक बार।" राहुल का कंट्रोल टूटा, वो मालती को चूम लिया – होंठ नरम, गर्म, और kiss गहरा हो गया। मालती कराही, "आह... राहुल... कितने दिन बाद..." राहुल ने उसके स्तनों को दबाया, मालती की साड़ी सरक गई, "Ooooooooohhhhhhh... जोर से दबा... मेरे बूब्स... Aaaaahhhhh... कितना अच्छा..." राहुल ने ब्लाउज उतारा, ब्रा से स्तन बाहर, बड़े और नरम। वो चूसा, मालती wild हो गई, "Mmmmaaaaaaaaaaa... चूस जोर से... निप्पल काट... उफ्फ... कितना मजा... तू जानवर है रे..." राहुल नीचे गया, साड़ी ऊपर की, पैंटी गीली थी। वो चाटा, मालती चिल्लाई, "Aaaaahhhhh... जीभ अंदर... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत... फाड़ दे... कितना गर्म है तू..." मालती अनुभवी थी, जड़ी हुई, wild कराहें – "चाट जोर से... उफ्फ... मैं झड़ रही... Mmmmaaaaaaaaaaa... हाँ... और..." राहुल ने लंड निकाला, मालती ने चूसा, "वाह... कितना बड़ा... Aaaaahhhhh... मुँह में डाल... ओoooooooohhhhhhh... तेरे लंड का स्वाद... रोज़ चूसूँगी..." राहुल ने मालती को घोड़ी बनाया, चूत में डाला। मालती चिल्लाई लेकिन मजा लेते हुए, "Uffff... दर्द... लेकिन मजा... जोर से... मेरी चूत फट गई... Aaaaahhhhh... चोद जोर से... Ooooooooohhhhhhh... कितना बड़ा है रे तेरा... Mmmmaaaaaaaaaaa... फाड़ दे... रोज़ तुझसे चुदवाऊँगी... हाँ... और तेज़..." धक्के तेज़, मालती कमर हिला रही, "गांड भी मार... उफ्फ... पीछे से... Aaaaahhhhh... तेरे लंड से गांड फट जाएगी... लेकिन मजा... Ooooooooohhhhhhh... जोर से... Mmmmaaaaaaaaaaa... मैं झड़ रही..." दोनों झड़े, मालती पड़ी रही, "राहुल, तू कमाल है। अब तेरी माँ को छोड़ दूँगी, लेकिन तू रोज़ आना।"
शाम हुई, राहुल घर लौटा – थका लेकिन संतुष्ट। लेकिन घर पर माँ सुमन की हालत देखकर स्तब्ध हो गया। सुमन रो रही थी, उसके कपड़े उलझे हुए, चेहरे पर थकान। "माँ, क्या हुआ?" राहुल ने पूछा। सुमन रो पड़ी, "बेटा, ठाकुर के पास गई थी। तेरे लिए। वो धमकी दे रहा था, काम छीन लेगा, घर पर हमला करेगा। मैंने मना किया, लेकिन मजबूर हो गई।" राहुल का दिल टूट गया, "माँ, क्यों? मैंने मना किया था।" सुमन ने बताया – ठाकुर ने कमरे में बुलाया, साड़ी उतारी, स्तन दबाए, "आह... सुमन... कितने बड़े..." सुमन कराही, "साहब... धीरे..." लेकिन ठाकुर तेज़, "Ooooooooohhhhhhh... तेरी चूत... Aaaaahhhhh... जोर से... मेरी रानी... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना मजा... रोज़ चुदवाती है तू..." सुमन की चूत में डाला, धक्के तेज़, सुमन की कराहें "Aaaaahhhhh... साहब... फाड़ दे... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना बड़ा... रोज़ चुदवाऊँगी..." लेकिन अंदर से रो रही थी, "बेटे के लिए..." चुदाई खत्म, ठाकुर ने पैसे दिए, "जा, लेकिन फिर आना।" सुमन घर लौटी, राहुल को देखकर रो पड़ी। राहुल रोया, "माँ, अब नहीं। मैं शहर जाकर सब बदल दूँगा।" लेकिन सुमन ने कहा, "बेटा, अब आदत हो गई है। बिना चुदे रह नहीं पाती। लेकिन तेरे लिए जी रही हूँ।" राहुल टूट गया, लेकिन मजबूत बना। रात को डायरी लिखी – लंबी, माँ की मजबूरी, मालती की चुदाई, और शहर के सपने। "माँ को शहर बुलाऊँगा, लेकिन वो क्यों टालती हैं?" वो सोचता, और आँखों में आँसू आ जाते। अगले दिनों में काम जारी, हवेली में सावधानी, मालती से मिलना लेकिन कंट्रोल, काव्या की दोस्ती गहराई, और ठाकुर का दबाव। राहुल ने शहर के लिए तैयारी तेज़ की – कॉलेज में अतिरिक्त पढ़ाई, किताबें उधार ली, और माँ से वादा, "जल्दी ले जाऊँगा।" गाँव की रातें लंबी, लेकिन सपने बड़े। कहानी आगे बढ़ी, राहुल का विकास हर पल में। ठाकुर ने फिर धमकी दी, लेकिन राहुल ने सामना किया, "साहब, मैं नहीं डरता।" मालती ने मदद की, लेकिन राहुल ने सीमा रखी। शहर का सफर करीब आ रहा था, लेकिन संघर्ष अभी बाकी।
राहुल ने एक दिन हवेली में काव्या से फिर बात की – काव्या ने शहर के कॉलेज के बारे में बताया, "राहुल, तू आ, मैं मदद करूँगी।" राहुल ने शुक्रिया कहा, लेकिन मन में सोचा, "दोस्ती है, लेकिन हवेली से दूर रहना।" माँ सुमन अब राहुल की ताकत देखकर खुश, लेकिन अंदर से टूटी। राहुल ने माँ से वादा किया, "माँ, मैं अमीर बनूँगा, ठाकुर जैसे लोगों से बदला लूँगा।" कहानी आगे बढ़ी, राहुल ने कॉलेज में अच्छे नंबर लाए, हवेली का काम जारी लेकिन सावधानी से। ठाकुर ने प्लान बनाया, लेकिन राहुल चालाकी से बचा। शहर की तैयारी में किताबें, दोस्तों से मदद, और माँ की प्रार्थना। भाग लंबा, डिटेल से भरा, राहुल का सफर जारी।
Like Reply


Messages In This Thread
RE: राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक - by Fuckuguy - 08-09-2025, 05:05 PM



Users browsing this thread: 2 Guest(s)