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Incest राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक
#19
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भाग 12: प्रीति भाभी के साथ अंतरंग पल और ठाकुर का संघर्ष(भावनात्मक गहराई, शारीरिक निकटता, और महत्वाकांक्षा की जंग)


रामपुर गाँव में वो दोपहर की धूप अब और तेज़ हो चली थी, जैसे सूरज खुद राहुल की परीक्षा ले रहा हो। हवा में मिट्टी की महक मिली हुई थी, और दूर से खेतों में काम कर रहे किसानों की आवाज़ें – हल की खरखराहट, बैलों की घंटियाँ, और कभी-कभी कोई गीत की धुन – गाँव को जीवंत बना रही थीं। लेकिन राहुल के लिए ये सब पृष्ठभूमि मात्र थी; उसका दिमाग ठाकुर की हवेली पर अटका हुआ था, जहाँ कल की घटनाएँ – प्रीति भाभी की सहानुभूति भरी बातें, ठाकुर की धमकी, और काव्या की बोल्ड नजरें – उसे रात भर सोने नहीं दे रही थीं। राहुल का छोटा सा कच्चा घर आज थोड़ा और बोझिल लग रहा था – दीवारों पर पड़ी दरारें जैसे उसके मन की उलझनों को दर्शा रही थीं, छत से टपकती पानी की बूँदें (जो बारिश न होने पर भी नमी से गिरती रहतीं) उसके माथे पर पसीने की तरह महसूस हो रही थीं, और आँगन में बिखरी रंगोली के अवशेष अब पूरी तरह से फीके पड़ चुके थे, जैसे उसके जीवन की रंगीन यादें। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत पर टिकी हुई थीं लेकिन देख कुछ नहीं रहा था – कल शाम प्रीति भाभी के स्पर्श की याद, उसकी नरम उँगलियाँ जो उसके कंधे पर रखी गई थीं, और उसकी आँखों में छिपा अकेलापन, सब कुछ उसके दिमाग में घूम रहा था। "भाभी अच्छी हैं, लेकिन हवेली का माहौल खतरनाक है। ठाकुर की धमकी... क्या वो माँ को नुकसान पहुँचाएगा?" राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्का डर उभरता, लेकिन साथ ही एक दृढ़ इरादा भी – "नहीं, मैं अब कमज़ोर नहीं हूँ। माँ की रक्षा करूँगा, सपनों को पूरा करूँगा।" वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – गाँव की जीवनचर्या सामान्य थी, पड़ोस में सरला काकी का घर अभी भी शांत था, लेकिन उसके मन में सरला की यादें भी थीं – वो कराहें "Aaaaahhhhh... जोर से... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत फट गई... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना बड़ा है रे तेरा... रोज़ चुदवाऊँगी तुझसे..."। लेकिन राहुल ने खुद को रोका, "अब कंट्रोल। सेक्स मजा है, लेकिन जीवन उससे बड़ा है।"
राहुल ने फैसला किया – आज सुबह फिर दौड़ लगाऊँगा, शरीर को और मजबूत बनाऊँगा। physically वो अब अपनी रूटीन को और सख्त बना रहा था; रोज़ की दौड़ से उसके पैरों में ताकत आ रही थी, साँसें लंबी और नियंत्रित हो रही थीं, और शरीर में एक नई लचक आ गई थी – उसके कंधे अब और चौड़े लग रहे थे, बाहें मज़बूत हो चुकी थीं, और पेट की मसल्स स्पष्ट रूप से उभर रही थीं, जैसे कोई मूर्ति जो धीरे-धीरे तराशी जा रही हो। वो बाहर निकला, गाँव की सड़कों पर दौड़ने लगा – हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी, पसीना उसके माथे से बहकर आँखों में चुभ रहा था, लेकिन वो नहीं रुका। दौड़ते हुए वो अपनी डायरी की कल की एंट्री याद करता: "हवेली में प्रीति भाभी की दोस्ती, ठाकुर की धमकी। mentally तैयार रहूँगा, कोई लालच नहीं। सपने याद रख – शहर, कॉलेज, अमीर बनना। माँ की खुशी। cousins की विदाई से अपनापन मिला, लेकिन अब अकेले लड़ना है।" mentally वो अब प्लान बना रहा था – कॉलेज पास करने के बाद शहर का कॉलेज चुनना, पार्ट-टाइम जॉब ढूँढना, और माँ को साथ ले जाना। "एक दिन ठाकुर जैसे लोगों से ऊपर उठूँगा, अपना घर बनाऊँगा, माँ को राजरानी बनाऊँगा," वो सोचता, और दिल में एक नई आग जलती, जैसे कोई लावा जो धीरे-धीरे फूटने वाला हो। दौड़ पूरी कर वो घर लौटा, पसीने से तर, लेकिन मन तरोताज़ा।
सुमन रसोई में थी, उसके हाथों में चाय की केतली थी, और वो चाय उबाल रही थी। सुमन का चेहरा आज और चिंतित लग रहा था – कल रात ठाकुर का फोन आया था, धमकी दी थी कि अगर सुमन नहीं आई तो राहुल का काम छीन लेगा। सुमन की आँखें लाल थीं, जैसे रात भर रोई हो, उसके बाल उलझे हुए थे, और साड़ी थोड़ी ढीली बंधी हुई थी। "बेटा, चाय पी ले। आज हवेली जाना है?" सुमन ने पूछा, उसकी आवाज़ में ममता लेकिन एक हल्की कंपकंपी, जैसे कोई डर जो छिपाना मुश्किल हो रहा हो। राहुल ने चाय की प्याली ली, गरम चाय की सिप लेते हुए कहा, "हाँ माँ, काम है। लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं ठाकुर से बात कर लूँगा। पैसे मिल रहे हैं, कॉलेज की फीस भर दूँगा, और घर का खर्च भी।" सुमन की आँखें नम हो गईं, "बेटा, तू इतनी जिम्मेदारी ले रहा है। लेकिन वो ठाकुर... कल फोन किया था। धमकी दी कि अगर मैं नहीं गई तो तेरे काम का क्या होगा।" राहुल का गुस्सा भड़का, लेकिन वो शांत रहा, माँ का हाथ पकड़ा – उसके हाथ ठंडे थे, जैसे डर से जमा हुए – "माँ, मैं संभाल लूँगा। तुम मत जाना। मैं अब बड़ा हो गया हूँ, डर नहीं रहा। तुम्हारे लिए, अपने सपनों के लिए लड़ूँगा।" emotionally राहुल का विकास स्पष्ट हो रहा था – माँ की चिंता अब उसे बोझ नहीं, बल्कि ताकत दे रही थी; guilt से निकलकर वो responsibility को अपनाने लगा था, और किताब से इंस्पिरेशन लेकर छोटे-छोटे लक्ष्य सेट कर रहा था। सुमन ने राहुल के सिर पर हाथ फेरा, उसके बाल अभी भी गीले थे पसीने से, "भगवान तुझे खुश रखे बेटा। लेकिन सावधान रहना, हवेली में औरतें भी हैं... प्रीति, काव्या, मालती। वो सब ठाकुर की तरह लालची हैं, और तुझे फँसा सकती हैं।" राहुल ने हाँ में सिर हिलाया, लेकिन अंदर से सोचा, "मैं कंट्रोल में रहूँगा। सेक्स से दूर, फोकस काम पर। लेकिन प्रीति भाभी... वो अलग लगती हैं, जैसे कोई दोस्त।"
नाश्ता खत्म कर राहुल ने अपनी किताब "सपनों की उड़ान" खोली – कुछ पन्ने पढ़े, जहाँ हीरो गरीबी से लड़ते हुए छोटी जीत हासिल करता है, दोस्तों और परिवार से ताकत लेता है, और चुनौतियों से सीखता है। किताब के पन्ने अब घिस चुके थे, किनारों पर उँगलियों के निशान थे, और कुछ जगहों पर राहुल ने पेंसिल से नोट्स लिखे थे – "संघर्ष से मजबूती आती है," "सपने कभी मत छोड़ो।" राहुल ने डायरी में लिखा: "आज हवेली में प्रीति भाभी से मिलना हो सकता है। mentally तैयार रहूँगा, कोई लालच नहीं। ठाकुर की धमकी का सामना करूँगा। सपने याद रख – शहर, कॉलेज, अमीर बनना। माँ की खुशी। cousins की विदाई से अपनापन मिला, लेकिन अब अकेले लड़ना है। प्रीति भाभी की दोस्ती सच्ची लगती है, लेकिन सावधान।" mentally वो अब प्लान बना रहा था – अगर ठाकुर दबाव डाले तो वैकल्पिक काम ढूँढना, गाँव के बाज़ार में कोई छोटी जॉब, या कॉलेज के बाद ट्यूशन देना। "एक दिन अपना बिज़नेस करूँगा, ठाकुर जैसे लोगों से ऊपर उठूँगा," वो सोचता, और दिल में एक नई आग जलती, जैसे कोई दीपक जो अंधेरे में भी चमकता रहता है। cousins रीता और सीमा कल शहर लौट गई थीं, लेकिन उनकी विदाई की यादें अभी भी उसके मन में थीं – रीता की bold हँसी, सीमा की शर्मीली मुस्कान, और वो गले लगाने का पल जो अपनापन दे गया था। "परिवार ही ताकत है, लेकिन अब खुद पर भरोसा करना है," राहुल सोचता, और तैयार होकर हवेली की ओर निकल पड़ा।
रास्ता वही था – गाँव की पगडंडी से गुजरते हुए वो खेतों को देखता, जहाँ किसान पसीना बहा रहे थे, बैल हल खींच रहे थे, और हवा में मिट्टी की महक मिली हुई थी। रास्ते में वो सरला काकी के घर के पास से गुजरा, काकी बाहर झाड़ू लगा रही थी, उसके शरीर की चाल अभी भी कामुक लग रही थी – साड़ी कमर पर टिकी हुई, स्तन ब्लाउज से उभरे हुए – लेकिन राहुल ने नज़रें फेर ली, "अब नहीं, काकी।" हवेली पहुँचकर राहुल अंदर घुसा – दरवाज़ा बड़ा था, लोहे का, और अंदर बगीचा जो फूलों से सजा हुआ था, लेकिन आज फूल थोड़े मुरझाए लग रहे थे, जैसे हवेली का माहौल। नौकर ने उसे काम सौंपा – आज फूलों की क्यारियाँ साफ करना, पानी देना, और घास ट्रिम करना, लेकिन साथ ही ठाकुर के कमरे के पास की सफाई भी। राहुल काम में लग गया – धूप तेज़ थी, पसीना उसके माथे से बहकर आँखों में चुभ रहा था, शर्ट गीली हो गई थी, लेकिन वो नहीं रुका। physically ये काम कठिन था – हाथों में फावड़ा पकड़कर घास काटना, पानी की भारी बाल्टियाँ उठाकर पौधों तक ले जाना, और एक-एक पौधे को ध्यान से पानी देना, जैसे कोई माली जो अपने बगीचे को प्यार से संवारता हो। उसके हाथों में छाले पड़ रहे थे, पीठ दर्द कर रही थी, लेकिन दर्द अब उसे मजा दे रहा था, जैसे कोई मेडल जो संघर्ष की निशानी है। "ये पैसे देगा, माँ की मदद करेगा, और मुझे मजबूत बनाएगा," वो सोचता, और काम करता रहा। बगीचे में काम करते हुए वो प्रीति भाभी से फिर मिला – प्रीति आज गुलाबी साड़ी में थी, जो उसके गोरे शरीर को और निखार रही थी – उसके स्तन उभरे हुए, कमर पतली जैसे कोई घड़ी की सुई, और चाल में एक लय जो दिल धड़का दे। प्रीति का चेहरा सुंदर था – बड़ी आँखें जो आज थोड़ी उदास लग रही थीं, गुलाबी होंठ जो मुस्कुराने की कोशिश कर रहे थे, और बाल खुले जो हवा में लहरा रहे थे, जैसे कोई बादल जो बारिश की उम्मीद कर रहा हो। "राहुल, आज फिर आ गया। काम ज्यादा है?" प्रीति ने मुस्कुराकर कहा, उसके हाथ में पानी का गिलास था। राहुल ने गिलास लिया, ठंडा पानी गले से उतरता हुआ उसे तरोताज़ा कर गया, "जी भाभी, काम तो है। लेकिन कर लूँगा। आप कैसी हैं?" प्रीति ने बेंच पर बैठने का इशारा किया, "बैठ, बात कर। कल रात नींद नहीं आई। पति का फोन आया, लेकिन वो वापस नहीं आ रहे। अकेली हूँ।" उसके शब्दों में दर्द था, आँखें नम, और हाथ काँप रहे थे। राहुल ने सहानुभूति दिखाई, "भाभी, जीवन कठिन है। लेकिन मजबूत बनिए। मैं भी गरीबी से लड़ रहा हूँ, माँ की चिंता है। लेकिन सपने हैं।" प्रीति करीब आई, उसका हाथ राहुल के कंधे पर रखा, उसके स्पर्श में गर्माहट थी, "तू मजबूत है राहुल। मुझे भी ताकत दे। अकेलापन मार डालता है, रातें लंबी लगती हैं, शरीर जलता है लेकिन कोई नहीं है जो बुझाए।" राहुल का मन भटका – प्रीति की खुशबू, उसके स्तनों की गर्माहट जो उसके बगल से छू रही थी – लेकिन वो उठने की कोशिश की, "भाभी, काम..." लेकिन प्रीति ने पकड़ लिया, "रुक न राहुल। मुझे बात करने दो। तू समझता है।" दोनों बातें करने लगे – प्रीति ने अपना अतीत बताया, शहर से शादी कर हवेली आई, लेकिन ठाकुर के परिवार में घुटन, पति की अनुपस्थिति, और सेक्स की कमी जो उसे रातों को तड़पाती। "राहुल, तू जवान है, समझता होगा। शरीर की भूख... लेकिन कोई नहीं है।" राहुल ने कहा, "भाभी, मैं समझता हूँ, लेकिन कंट्रोल जरूरी है। मैं भी गुजर रहा हूँ।" लेकिन प्रीति की आँखों में आँसू थे, वो करीब आई, उसके होंठ राहुल के कंधे पर लगे, "राहुल, मुझे छू... बस एक बार।" राहुल का कंट्रोल टूटा, वो प्रीति को चूम लिया – होंठ नरम, गर्म, और kiss गहरा हो गया। प्रीति कराही, "आह... राहुल... कितने दिन बाद..." राहुल ने उसके स्तनों को दबाया, प्रीति की साड़ी सरक गई, "Ooooooooohhhhhhh... जोर से दबा... मेरे बूब्स... Aaaaahhhhh... कितना अच्छा..." राहुल ने ब्लाउज उतारा, ब्रा से स्तन बाहर, बड़े और नरम। वो चूसा, प्रीति wild हो गई, "Mmmmaaaaaaaaaaa... चूस जोर से... निप्पल काट... उफ्फ... कितना मजा... तू जानवर है रे..." राहुल नीचे गया, साड़ी ऊपर की, पैंटी गीली थी। वो चाटा, प्रीति चिल्लाई, "Aaaaahhhhh... जीभ अंदर... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत... फाड़ दे... कितना गर्म है तू..." प्रीति अनुभवी थी, जड़ी हुई, wild कराहें – "चाट जोर से... उफ्फ... मैं झड़ रही... Mmmmaaaaaaaaaaa... हाँ... और..." राहुल ने लंड निकाला, प्रीति ने चूसा, "वाह... कितना बड़ा... Aaaaahhhhh... मुँह में डाल... ओoooooooohhhhhhh... तेरे लंड का स्वाद... रोज़ चूसूँगी..." राहुल ने प्रीति को घोड़ी बनाया, चूत में डाला। प्रीति चिल्लाई लेकिन मजा लेते हुए, "Uffff... दर्द... लेकिन मजा... जोर से... मेरी चूत फट गई... Aaaaahhhhh... चोद जोर से... Ooooooooohhhhhhh... कितना बड़ा है रे तेरा... Mmmmaaaaaaaaaaa... फाड़ दे... रोज़ तुझसे चुदवाऊँगी... हाँ... और तेज़..." धक्के तेज़, प्रीति कमर हिला रही, wild – "गांड भी मार... उफ्फ... पीछे से... Aaaaahhhhh... तेरे लंड से गांड फट जाएगी... लेकिन मजा... Ooooooooohhhhhhh... जोर से... Mmmmaaaaaaaaaaa... मैं गई..." दोनों झड़े, प्रीति पड़ी रही, "राहुल, तू मेरा हो गया।" राहुल को मजा आया, लेकिन guilt फिर – "ये गलत था। लेकिन भाभी की मदद की।"
शाम हुई, ठाकुर आया, धमकी दी। राहुल ने सामना किया, "साहब, माँ नहीं आएगी।" ठाकुर गुस्सा, लेकिन राहुल मजबूत रहा। घर लौटा, डायरी लिखी I
Fuckuguy
albertprince547;
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RE: राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक - by Fuckuguy - 07-09-2025, 06:20 PM



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