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Incest राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक
#18
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भाग 11: प्रीति भाभी के साथ गहराती दोस्ती और संघर्ष (मानसिक मजबूती की परीक्षा, भावनात्मक उलझनें, और अप्रत्याशित निकटता)


रामपुर गाँव में वो अगली सुबह थोड़ी अलग थी – हवा में दिवाली के मेले की थकान अभी भी बसी हुई थी, लेकिन सूरज की किरणें धीरे-धीरे गाँव को नई ऊर्जा दे रही थीं। धुंध की हल्की परत अभी भी खेतों पर छाई हुई थी, जैसे कोई पुरानी यादों का पर्दा जो आसानी से नहीं हटता। दूर से मुर्गों की बांग सुनाई दे रही थी, और गाँव की पगडंडी पर कुछ किसान अपने बैलों के साथ खेतों की ओर जा रहे थे, उनके कंधों पर हल लटका हुआ था। राहुल का छोटा सा कच्चा घर आज भी वैसा ही था – दीवारें फटी हुई, छत से हल्की धूप अंदर छन रही थी, और आँगन में कल की रंगोली के अवशेष बिखरे पड़े थे, जो हवा के झोंके से उड़कर इधर-उधर हो रहे थे। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें खुली हुई थीं लेकिन नींद अभी भी पूरी नहीं हुई थी। कल शाम ठाकुर की हवेली में बिताए समय की यादें उसके दिमाग में घूम रही थीं – ठाकुर का क्रूर हँसना, प्रीति भाभी की मुस्कान, काव्या की बोल्ड बातें, और ठाकुरैन मालती की चालाक नजरें। "हवेली जाना अब रोज़ की आदत बन रही है, लेकिन ठाकुर से सावधान रहना होगा," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्का डर था, लेकिन साथ ही एक दृढ़ संकल्प भी। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – गाँव की जीवनचर्या शुरू हो चुकी थी, पड़ोस में सरला काकी का घर शांत था, और दूर नदी की कलकल अभी भी सुनाई दे रही थी, जैसे कोई पुरानी धुन जो कभी थमती नहीं। राहुल ने फैसला किया – आज फिर सुबह दौड़ लगाऊँगा, शरीर को और मजबूत बनाऊँगा। physically वो अब अपनी रूटीन पर सख्ती से अमल कर रहा था; रोज़ की दौड़ से उसके पैरों में ताकत आ रही थी, साँसें लंबी और नियंत्रित हो रही थीं, और शरीर में एक नई लचक आ गई थी – उसके कंधे चौड़े हो चुके थे, बाहें मज़बूत, और पेट की मसल्स अब स्पष्ट रूप से उभर रही थीं। "शहर में अगर सफल होना है, तो body fit होनी चाहिए, लेकिन mind और भी मजबूत," वो खुद से कहता, और दौड़ते हुए अपनी डायरी की कल की एंट्री याद करता: "हवेली में ठाकुर की चुनौती, लेकिन मैं नहीं झुकूँगा। guilt कम हो रही है, सपने साफ हो रहे हैं। माँ की चिंता मुझे ताकत दे रही है।"
दौड़ से लौटकर राहुल ने ठंडे पानी से नहाया – पानी की बूँदें उसके शरीर पर गिर रही थीं, और वो महसूस कर रहा था कि physically वो बदल रहा है; उसके छाती की मसल्स अब पहले से ज्यादा सख्त लग रही थीं, पैरों में दर्द होता लेकिन वो दर्द अब मजा दे रहा था, जैसे कोई जीत की निशानी। नहाकर वो बाहर आया, तौलिए से शरीर पोंछा, और आईने में खुद को देखा – चेहरा अब पहले से ज्यादा भरा लग रहा था, आँखें गहरी लेकिन चमकदार, और बाल अभी भी गीले जो उसके माथे पर गिर रहे थे। सुमन रसोई में थी, उसके हाथों में चाय की केतली थी, और वो चाय उबाल रही थी। सुमन का चेहरा आज थोड़ा चिंतित लग रहा था – कल रात ठाकुर ने फोन किया था, माँग की थी कि सुमन हवेली आए, लेकिन सुमन ने मना कर दिया था। "बेटा, चाय पी ले। आज हवेली जाना है?" सुमन ने पूछा, उसकी आवाज़ में ममता लेकिन एक हल्की कंपकंपी। राहुल ने चाय की प्याली ली, गरम चाय की सिप लेते हुए कहा, "हाँ माँ, काम है। लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं ठाकुर से बात कर लूँगा। पैसे मिल रहे हैं, कॉलेज की फीस भर दूँगा।" सुमन की आँखें नम हो गईं, "बेटा, तू इतनी जिम्मेदारी ले रहा है। लेकिन वो ठाकुर... वो क्रूर है। अगर कुछ हुआ तो?" राहुल ने माँ का हाथ पकड़ा, उसके हाथ नरम लेकिन थके हुए थे, "माँ, मैं अब बड़ा हो गया हूँ। डर नहीं रहा। तुम्हारे लिए, अपने सपनों के लिए लड़ूँगा।" emotionally राहुल का विकास स्पष्ट हो रहा था – माँ की चिंता अब उसे बोझ नहीं, बल्कि ताकत दे रही थी; guilt से निकलकर वो responsibility को अपनाने लगा था, और किताब "सपनों की उड़ान" से इंस्पिरेशन लेकर छोटे-छोटे लक्ष्य सेट कर रहा था। सुमन ने राहुल के सिर पर हाथ फेरा, उसके बाल अभी भी गीले थे, "भगवान तुझे खुश रखे बेटा। लेकिन सावधान रहना, हवेली में औरतें भी हैं... प्रीति, काव्या, मालती। वो सब ठाकुर की तरह लालची हैं।" राहुल ने हाँ में सिर हिलाया, लेकिन अंदर से सोचा, "मैं कंट्रोल में रहूँगा। सेक्स से दूर, फोकस काम पर।"
नाश्ता खत्म कर राहुल ने अपनी किताब खोली – "सपनों की उड़ान" के कुछ पन्ने पढ़े, जहाँ हीरो गरीबी से लड़ते हुए छोटी जीत हासिल करता है, दोस्तों और परिवार से ताकत लेता है। राहुल ने डायरी में लिखा: "आज हवेली में प्रीति भाभी से मिलना हो सकता है। mentally तैयार रहूँगा, कोई लालच नहीं। सपने याद रख – शहर, कॉलेज, अमीर बनना। माँ की खुशी। cousins की याद से अपनापन मिला, लेकिन अब आगे बढ़ना है।" mentally वो अब प्लान बना रहा था – कॉलेज पास करने के बाद शहर का कॉलेज चुनना, पार्ट-टाइम जॉब ढूँढना, और माँ को साथ ले जाना। "एक दिन ठाकुर जैसे लोगों से ऊपर उठूँगा," वो सोचता, और दिल में एक नई आग जलती। cousins रीता और सीमा आज शहर लौटने वाली थीं, लेकिन कल की बातें अभी भी उसके मन में थीं – रीता की wild कराहें "Aaaaahhhhh... कितना बड़ा है रे तेरा... Ooooooooohhhhhhh... मेरी चूत फट गई... Mmmmaaaaaaaaaaa... चोद जोर से... रोज़ तुझसे चुदवाऊँगी...", और सीमा की शुरुआती चीखें "Aaaaahhhhh... निकालो... बहुत बड़ा है... दर्द हो रहा... चूत फट जाएगी..." जो धीरे-धीरे सिसकारियों में बदल गईं "उफ्फ... अब अच्छा... आह... सिसकारी... जोर से... Ooooooooohhhhhhh... राहुल... कितना मजा... Aaaaahhhhh... मैं झड़ रही..."। लेकिन राहुल ने खुद को रोका, "ये अतीत है। अब कंट्रोल।" cousins को विदा करने गया, रीता ने गले लगाया, "भाई, शहर आना। मजा करेंगे।" सीमा शर्मा कर बोली, "भाई, याद रखना।" राहुल हँसा, emotionally मजबूत महसूस कर – परिवार का साथ उसे अपनापन दे रहा था, लेकिन अब अकेले लड़ने का समय था।
सुबह बीती, राहुल ठाकुर की हवेली की ओर चला। रास्ता लंबा था – गाँव की पगडंडी से गुजरते हुए वो खेतों को देखता, जहाँ किसान पसीना बहा रहे थे, बैल हल खींच रहे थे, और हवा में मिट्टी की महक थी। हवेली पहुँचकर राहुल अंदर घुसा – दरवाज़ा बड़ा था, लोहे का, और अंदर बगीचा जो फूलों से सजा हुआ था। नौकर ने उसे काम सौंपा – आज फूलों की क्यारियाँ साफ करना, पानी देना, और घास ट्रिम करना। राहुल काम में लग गया – धूप तेज़ थी, पसीना उसके माथे से बह रहा था, शर्ट गीली हो गई थी, लेकिन वो नहीं रुका। physically ये काम उसे चुनौती दे रहा था – हाथों में फावड़ा पकड़कर घास काटना, पानी की बाल्टियाँ उठाना, और पौधों को एक-एक करके पानी देना। उसके हाथों में छाले पड़ रहे थे, लेकिन दर्द अब उसे मजा दे रहा था, जैसे कोई मेडल। "ये पैसे देगा, माँ की मदद करेगा, और मुझे मजबूत बनाएगा," वो सोचता, और काम करता रहा। बगीचे में काम करते हुए वो प्रीति भाभी से मिला – प्रीति बालकनी से नीचे उतरी, उसके हाथ में चाय की ट्रे थी। प्रीति आज नीली साड़ी में थी, जो उसके गोरे शरीर को और निखार रही थी – उसके स्तन उभरे हुए, कमर पतली, और चाल में एक लय। प्रीति का चेहरा सुंदर था – बड़ी आँखें, गुलाबी होंठ, और बाल खुले जो हवा में लहरा रहे थे। "राहुल, थक गया होगा। चाय पी ले," प्रीति ने मुस्कुराकर कहा, उसकी आवाज़ नरम लेकिन आकर्षक। राहुल ने ट्रे ली, "धन्यवाद भाभी। लेकिन काम..." प्रीति ने काटा, "काम बाद में। बैठ, बात कर।" दोनों बगीचे के बेंच पर बैठे, चाय की सिप लेते हुए। प्रीति ने बात शुरू की, "राहुल, तू गाँव का है लेकिन शहर जैसा लगता है। पढ़ाई करता है?" राहुल ने हाँ कहा, "जी भाभी, कॉलेज पास करके शहर जाऊँगा। इंजीनियर बनूँगा।" प्रीति की आँखें चमकीं, "अच्छा है। मैं भी शहर से हूँ, लेकिन शादी के बाद यहाँ फँस गई। पति हमेशा बाहर, हवेली में अकेली।" उसके शब्दों में दर्द था, आँखें नम। राहुल ने सहानुभूति दिखाई, "भाभी, जीवन कठिन है। लेकिन मजबूत बनिए। मैं भी गरीबी से लड़ रहा हूँ।" प्रीति करीब आई, उसका हाथ राहुल के कंधे पर, "तू मजबूत है राहुल। मुझे भी ताकत दे। अकेलापन मार डालता है।" राहुल का मन भटका – प्रीति की खुशबू, उसके स्तनों की गर्माहट – लेकिन वो उठा, "भाभी, काम करूँ।" emotionally वो मजबूत हो रहा था – लालच से दूर रह रहा था, लेकिन प्रीति की आँखों में कुछ था जो उसे रोक रहा था।
दोपहर हुई, काम जारी था। ठाकुर बाहर आया – उसका मोटा शरीर, दाढ़ी वाला चेहरा, और आँखों में क्रूरता। "राहुल, अच्छा काम। लेकिन तेरी माँ क्यों नहीं आ रही? मैंने कहा था।" राहुल का गुस्सा भड़का, लेकिन शांत रहा, "साहब, माँ बीमार है। मैं हूँ न।" ठाकुर हँसा, "बीमार? या तू रोक रहा है? याद रख, गाँव मेरा है। पैसे चाहिये तो माँ को भेज।" राहुल ने साफ कहा, "साहब, पैसे काम से मिलेंगे। माँ नहीं आएगी।" ठाकुर गुस्सा हुआ, "देखते हैं रे।" राहुल काम पर लगा रहा, लेकिन अंदर से उबाल था – "ठाकुर से लड़ूँगा।" mentally वो प्लान बना रहा था – अगर ठाकुर दबाव डाले तो क्या करे, पैसे कहाँ से कमाए। काव्या आई – ठाकुर की बेटी, 20 साल की, मॉडर्न ड्रेस में – शॉर्ट स्कर्ट, टॉप जो उसके युवा शरीर को उभार रहा था। "राहुल, काम कर रहा है? मदद करूँ?" काव्या ने चिढ़ाया, उसके होंठ मुस्कुरा रहे थे। राहुल ने कहा, "नहीं दी, मैं कर लूँगा।" लेकिन काव्या करीब आई, "बोर हो रही हूँ। बात कर। शहर के बारे में बता।" दोनों बातें करने लगे – काव्या ने कॉलेज की कहानियाँ सुनाईं, पार्टीज़, बॉयफ्रेंड्स। "राहुल, तू girlfriend है? इतना handsome है।" राहुल हँसा, "नहीं दी, पढ़ाई पर फोकस।" काव्या की आँखें चमकीं, "झूठ। मुझे पसंद है तू।" राहुल हिचकिचाया, लेकिन काम पर लगा। ठाकुरैन मालती देख रही थी – 45 साल की, कामुक, साड़ी में उसके बड़े स्तन उभरे। मालती सोचती, "ये लड़का... मजा आएगा।" शाम हुई, काम खत्म। राहुल घर लौटा, थका लेकिन संतुष्ट। प्रीति की दोस्ती गहरा रही थी, लेकिन संघर्ष बढ़ रहा था।
रात हुई, राहुल डायरी लिखी – लंबी एंट्री, हवेली की डिटेल्स, प्रीति की बातें, ठाकुर की धमकी। "मजबूत रहूँगा।" कहानी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, राहुल का विकास जारी।
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RE: राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक - by Fuckuguy - 07-09-2025, 05:17 PM



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