07-09-2025, 04:55 PM
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भाग 10: ठाकुर की हवेली में नई मुलाकातें और चुनौतियाँ (संघर्ष की शुरुआत, मानसिक मजबूती का परीक्षण, और अप्रत्याशित आकर्षण
रामपुर गाँव में दिवाली का मेला अब अपने चरम पर पहुँच चुका था, लेकिन राहुल के जीवन में ये सिर्फ एक पड़ाव था – एक ऐसा पड़ाव जहाँ खुशी और चुनौतियाँ दोनों मिलकर उसकी परीक्षा ले रही थीं। सुबह की हल्की धुंध अभी पूरी तरह से छँटी नहीं थी, लेकिन सूरज की किरणें धीरे-धीरे गाँव की छतों पर पड़ रही थीं, उन्हें सुनहरा बना रही थीं। हवा में अभी भी पटाखों की बारूद की महक बसी हुई थी, और दूर से मेले के स्टॉलों से उठती मिठाइयों और चाट की खुशबू पूरे गाँव को सराबोर कर रही थी। राहुल का छोटा सा कच्चा घर आज थोड़ा शांत लग रहा था – आँगन में कल की रंगोली अभी भी बिखरी हुई थी, लेकिन हवा में उड़कर उसके रंग फीके पड़ने लगे थे, जैसे राहुल के मन की उथल-पुथल को दर्शा रहे हों। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत की फटी हुई दरारों पर टिकी हुई थीं, लेकिन दिमाग कहीं और भटक रहा था। कल रात cousins रीता और सीमा के साथ मेले के पीछे बिताए पलों की यादें अभी भी उसके शरीर में सिहरन पैदा कर रही थीं – रीता की wild कराहें, सीमा की शुरुआती चीखें जो धीरे-धीरे सिसकारियों में बदल गईं थीं, और वो मजा जो परिवार के अपनापन के साथ मिला था। लेकिन आज सुबह वो खुद को रोक रहा था, सोच रहा था, "ये सब कितना सही है? सेक्स मजा देता है, लेकिन बाद में मन क्यों भारी हो जाता है? क्या मैं सिर्फ शरीर की भूख का गुलाम बन रहा हूँ?" guilt की एक हल्की लहर फिर से उठी, लेकिन इस बार राहुल ने उसे दबाने की कोशिश की। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – गाँव की पगडंडी पर लोग अपने कामों में लगे थे, खेतों में किसान हल चला रहे थे, और दूर मेले का मैदान अब खाली हो रहा था, लेकिन कल की यादें अभी भी हवा में तैर रही थीं। राहुल ने फैसला किया – आज फिर दौड़ लगाऊँगा, शरीर को मजबूत बनाऊँगा। physically वो अब रोज़ की रूटीन पर अमल कर रहा था; दौड़ से उसके पैरों में ताकत आ रही थी, साँसें लंबी हो रही थीं, और शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार हो रहा था। "शहर में अगर सफल होना है, तो body fit होनी चाहिए," वो खुद से कहता, और दौड़ते हुए अपनी डायरी की एंट्री याद करता – कल रात की एंट्री: "रीता और सीमा के साथ अच्छा लगा, लेकिन ये परिवार है। guilt मत रख, लेकिन कंट्रोल सीख। सपने पर फोकस कर।"
दौड़ से लौटकर राहुल ने ठंडे पानी से नहाया, उसके शरीर पर पानी की बूँदें गिर रही थीं, और वो महसूस कर रहा था कि physically वो बदल रहा है – उसके कंधे चौड़े हो रहे थे, पेट की मसल्स उभर रही थीं, और चेहरा अब पहले से ज्यादा भरा लग रहा था। सुमन रसोई में थी, उसके हाथों में आटे की लोई थी, और वो रोटियाँ बेल रही थी। सुमन का चेहरा आज थोड़ा थका हुआ लग रहा था – कल रात मेले की थकान, और ठाकुर की हवेली का काम जो अब राहुल संभाल रहा था, लेकिन सुमन को चिंता थी। "बेटा, नाश्ता कर ले। आज हवेली जाना है?" सुमन ने पूछा, उसकी आवाज़ में ममता लेकिन एक हल्की चिंता। राहुल ने प्लेट ली, रोटी और सब्ज़ी खाते हुए कहा, "हाँ माँ, काम है। लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं सब संभाल लूँगा। ठाकुर से डरना नहीं है।" सुमन की आँखें नम हो गईं, "बेटा, तू बड़ा हो गया है। लेकिन वो ठाकुर क्रूर है, सावधान रहना।" राहुल ने माँ का हाथ पकड़ा, "माँ, मैं अब मजबूत हूँ। तुम्हारे लिए, खुद के लिए। शहर जाकर सब बदल दूँगा।" emotionally राहुल का विकास हो रहा था – माँ की चिंता उसे motivate कर रही थी, guilt से निकलकर responsibility ले रहा था। सुमन ने राहुल के सिर पर हाथ फेरा, "भगवान तुझे खुश रखे बेटा।" नाश्ता खत्म कर राहुल ने अपनी किताब "सपनों की उड़ान" खोली, कुछ पन्ने पढ़े – किताब में हीरो गरीबी से लड़ता है, छोटी-छोटी चुनौतियों से सीखता है। राहुल ने डायरी में लिखा: "आज ठाकुर की हवेली में काम। mentally तैयार रहूँगा, कोई लालच नहीं। सपने याद रख।" mentally वो अब प्लान बना रहा था – कॉलेज पास करने के बाद शहर का कॉलेज, पार्ट-टाइम जॉब, और माँ को साथ ले जाना। "एक दिन अमीर बनूँगा, माँ को राजरानी बनाऊँगा," वो सोचता, और दिल में एक नई उम्मीद जागती।
सुबह बीती, राहुल ठाकुर की हवेली की ओर चला। हवेली गाँव के बीच में थी – ऊँची दीवारें, बड़ा दरवाज़ा, और अंदर एक विशाल बगीचा जहाँ फूलों की क्यारियाँ, फव्वारे, और पेड़ों की छाया थी। राहुल अंदर घुसा, ठाकुर के नौकर ने उसे बगीचे में काम पर लगा दिया – पौधों को पानी देना, घास काटना, और फूलों की देखभाल। physically ये काम कठिन था – सूरज की धूप में पसीना बह रहा था, हाथों में छाले पड़ रहे थे, लेकिन राहुल नहीं रुका। "ये काम पैसे देगा, माँ की मदद करेगा," वो सोचता, और काम करता रहा। बगीचे में काम करते हुए वो ठाकुर की परिवार से मिला – ठाकुर की बहू प्रीति, उम्र 28 साल, शादीशुदा लेकिन पति शहर में काम करता था। प्रीति सेक्सी थी – बड़े स्तन, पतली कमर, और गोरी चमड़ी। वो हवेली की बालकनी से देख रही थी, उसके बाल खुले थे, और साड़ी में उसके कर्व्स उभर रहे थे। प्रीति का मन अकेला था – पति दूर, सास ठाकुरैन से नहीं बनती, और हवेली में बोरियत। वो राहुल को देखकर सोचती, "ये लड़का मजबूत लगता है। काम करता हुआ कितना attractive。" राहुल ने नज़र उठाई, प्रीति मुस्कुराई, "राहुल, पानी ठीक से देना। फूल मुरझा गए तो ठाकुर गुस्सा करेंगे।" राहुल ने हाँ कहा, लेकिन काम पर फोकस रखा। लेकिन प्रीति नीचे आई, "बेटा, थक गया होगा। चाय पी ले।" राहुल ने मना किया, "नहीं भाभी, काम है।" लेकिन प्रीति ने जोर दिया, "आ, बैठ।" दोनों बगीचे के बेंच पर बैठे, चाय पीते हुए बातें हुईं। प्रीति ने अपना दुख बताया – शादी के बाद खुश थी, लेकिन पति की अनुपस्थिति ने सब बदल दिया। "अकेलापन सता रहा है राहुल। तू समझता है?" राहुल ने सहानुभूति दिखाई, "भाभी, जीवन कठिन है। लेकिन मजबूत बनो।" प्रीति करीब आई, उसका हाथ राहुल की जांघ पर, "तू मजबूत है। मुझे भी ताकत दे।" राहुल का मन भटका, लेकिन वो उठा, "भाभी, काम करूँ।" emotionally वो मजबूत हो रहा था – लालच से दूर रह रहा था।
दोपहर हुई, ठाकुर की बेटी काव्या आई – उम्र 20 साल, कॉलेज जाती, मॉडर्न लड़की – छोटी ड्रेस, लंबे बाल, और बोल्ड अंदाज़। काव्या शहर से पढ़कर आई थी, हवेली में बोर होती। वो राहुल को देखकर मुस्कुराई, "अरे, तू नया नौकर है? cute लग रहा।" राहुल ने कहा, "जी, पार्ट-टाइम काम।" काव्या ने चिढ़ाया, "काम छोड़, बात कर। गाँव में क्या मजा है?" दोनों बातें करने लगे – काव्या ने शहर की कहानियाँ सुनाईं, कॉलेज की पार्टीज़, दोस्त। राहुल सुनता, उसके सपने जागते। "मैं भी शहर जाऊँगा," राहुल बोला। काव्या हँसी, "आजा मेरे साथ।" लेकिन ठाकुर आ गया, "काव्या, अंदर जा। राहुल, काम कर।" राहुल काम पर लगा, लेकिन काव्या की आँखें उसे फॉलो कर रही थीं। ठाकुरैन मालती, उम्र 45, ठाकुर की दूसरी पत्नी, हवेली की मालकिन – कामुक शरीर, बड़े स्तन, और साड़ी में आकर्षक। मालती का मन लालची था – ठाकुर से शादी पैसे के लिए की, लेकिन अब बोर। वो राहुल को देखकर सोचती, "ये जवान लड़का... मजा आएगा।" शाम हुई, काम खत्म। ठाकुर ने पैसे दिए, "अच्छा काम। लेकिन तेरी माँ को बोल, कल आए।" राहुल ने साफ मना किया, "साहब, माँ नहीं आएगी। मैं हूँ।" ठाकुर गुस्सा हुआ, "देखते हैं।" राहुल घर लौटा, मन में चुनौती – "ठाकुर से लड़ूँगा।"
घर पर cousins इंतज़ार कर रही थीं। रीता बोली, "राहुल, शाम को फिर मेला चलें?" राहुल हाँ कहा, लेकिन थका था। शाम को तीनों निकले – मेला अब रात की लाइटों से जगमगा रहा था। झूले, नाच, और भीड़। राहुल ने उन्हें घुमाया, लेकिन मन हवेली पर था। रीता ने करीब आकर कहा, "भाई, कल रात जैसा फिर?" राहुल मना किया, "दी, अब नहीं। फोकस पढ़ाई पर।" रीता निराश, लेकिन समझी। सीमा ने हाथ पकड़ा, "भाई, तू बदल रहा है। अच्छा लग रहा।" राहुल हँसा, emotionally मजबूत महसूस कर। रात हुई, घर लौटे। राहुल डायरी लिखी – "हवेली में चुनौतियाँ, लेकिन मैं तैयार हूँ। physically मजबूत, mentally प्लान, emotionally परिवार।" कहानी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, राहुल का विकास जारी था।


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