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Incest राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक
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भाग 7: टीचर की बीवी रेखा से मुलाकात (नदी किनारे की अकेली दोपहर और अनजानी इच्छाओं का जागना)

रामपुर गाँव में वो शाम की हवा अब थोड़ी ठंडी हो चली थी, लेकिन राहुल के मन में अभी भी गर्माहट की लहरें दौड़ रही थीं। सूरज डूबने की कगार पर था, आकाश में नारंगी रंग फैला हुआ था, और दूर से नदी की कलकल सुनाई दे रही थी। राहुल घर के आँगन में बैठा रहा, उसके हाथ में एक पुरानी किताब थी लेकिन आँखें पन्नों पर नहीं टिक रही थीं। कल दोपहर सरला काकी के साथ बिताए पल उसे सता रहे थे – काकी की नरम त्वचा, उसकी कराहें, और वो चुदाई जो देखभाल से शुरू होकर उत्तेजना में खत्म हुई थी। "काकी के साथ अच्छा लगा, लेकिन मीना की याद क्यों आ रही है? मोना का चेहरा क्यों सता रहा?" राहुल सोचता, और उसके दिल में एक उलझन थी। guilt और मजा का ये खेल उसे थका रहा था। मीना अब कॉलेज में नज़रें चुराती, मोना गायब, और घर पर माँ सुमन से बातें कम हो गईं। वो उठा, साइकिल उठाई, और नदी किनारे जाने का फैसला किया। "शायद पानी की ठंडक मन को शांत कर दे," वो सोचा। गाँव की पगडंडी से गुजरते हुए वो खेतों को देखता – हरी फसलें लहरा रही थीं, किसान घर लौट रहे थे, लेकिन राहुल को सब उदास लग रहा था।
सुमन घर पर रसोई में काम कर रही थी, उसके मन में भी उथल-पुथल थी। राहुल की उदासी उसे दिख रही थी, लेकिन खुद का राज़ उसे चुप करा देता। "बेटा बड़ा हो रहा है, लेकिन मैं उसे खुश नहीं रख पा रही," वो सोचती, और ठाकुर की हवेली जाने का समय हो रहा था। "आज जल्दी लौटूँगी," सुमन ने खुद से वादा किया। लेकिन राहुल पहले ही निकल चुका था। नदी किनारे पहुँचकर राहुल साइकिल खड़ी की, घास पर बैठ गया। पानी साफ था, छोटी-छोटी मछलियाँ तैर रही थीं, और हवा में मिट्टी की महक। राहुल पत्थर फेंकने लगा, उसके मन में मीना की याद – वो पहला सेक्स, मीना की कराहें। "मीना, तू क्यों दूर हो गई?" वो बुदबुदाया। अचानक पीछे से आवाज़ आई, "राहुल? तू यहाँ क्या कर रहा है?" राहुल मुड़ा, वहाँ रेखा खड़ी थी – उसके कॉलेज टीचर की बीवी। रेखा उम्र 32 साल, सुंदर और आकर्षक – लंबे काले बाल, स्लिम फिगर, और आज लाल साड़ी में जो उसके गोरे शरीर को और निखार रही थी। रेखा का चेहरा शांत लेकिन आँखों में एक अकेलापन।
रेखा गाँव के कॉलेज टीचर की पत्नी थी, लेकिन टीचर अक्सर शहर जाते थे – पढ़ाई के सिलसिले में या परिवार से मिलने। रेखा अकेली रहती, घर संभालती, लेकिन दिल में एक खालीपन। उसका अतीत: शादी के शुरुआती साल खुश थे, लेकिन पति की अनुपस्थिति ने उसे उदास कर दिया। सेक्स की कमी, अकेली रातें – रेखा रातों को सोचती, "कोई तो हो जो मुझे महसूस कराए, छुए।" राहुल को वो कॉलेज से जानती थी – होनहार छात्र, गरीब लेकिन मेहनती। "रेखा आंटी? आप यहाँ?" राहुल हैरान होकर बोला। रेखा मुस्कुराई, "हाँ बेटा, कभी-कभी नदी किनारे आती हूँ। मन शांत होता है। तू उदास लग रहा है। कॉलेज क्यों नहीं आया आज?" वो राहुल के पास बैठ गई, उसकी साड़ी हवा में लहराई, और राहुल को उसकी खुशबू महसूस हुई – फूलों जैसी। राहुल ने झिझकते हुए कहा, "आंटी, मन नहीं लगा। घर की टेंशन, दोस्तों से झगड़ा..." रेखा ने सहानुभूति से देखा, "बताना चाहे तो बता। मैं सुनूँगी।"
दोनों बातें करने लगे। रेखा ने अपना दुख बताया – पति दूर, अकेलापन, गाँव में कोई दोस्त नहीं। "बेटा, शादी के बाद लगता था जीवन सुंदर होगा, लेकिन अब रातें लंबी लगती हैं।" उसकी आवाज़ में दर्द था, आँखें नम। राहुल ने अपनी कहानी सुनाई – मीना का प्यार, मोना की जलन, सरला काकी के साथ का पल (बिना डिटेल के), और माँ का राज़। "आंटी, सब उलझ गया है। guilt खा रही है।" रेखा ने राहुल का हाथ पकड़ा, "तू जवान है राहुल। भावनाएँ आती हैं। लेकिन दिल मत तोड़। मैं भी अकेली हूँ, समझती हूँ।" राहुल ने महसूस किया – रेखा का हाथ नरम, गर्म। वो करीब बैठी, उसकी जांघ राहुल की जांघ से छू रही। हवा ठंडी थी, लेकिन दोनों के बीच गर्माहट बढ़ रही। रेखा सोचती, "राहुल कितना प्यारा है। जवान, मजबूत। अगर वो मुझे छुए तो..." उसके शरीर में सिहरन दौड़ी। राहुल की नज़र रेखा की साड़ी पर गई – ब्लाउज से उसके स्तनों की आउटलाइन दिख रही थी। "आंटी, आप सुंदर हैं। टीचर सर खुशकिस्मत हैं," राहुल बोला। रेखा हँसी, "सुंदर? अब कहाँ। लेकिन तू कह रहा है तो मान लेती हूँ।"
बातें गहराती गईं। रेखा ने कहा, "राहुल, कभी-कभी स्पर्श की जरूरत होती है। अकेलापन मार डालता है।" वो राहुल के कंधे पर सिर रखा, उसके बाल राहुल के चेहरे पर लगे। राहुल का दिल तेज धड़का, "आंटी..." रेखा ने आँखें बंद की, "चुप। बस ऐसे ही रह।" राहुल का हाथ रेखा की कमर पर गया, वो सहम गई लेकिन रुकी नहीं। "छू ले राहुल। मुझे अच्छा लग रहा," रेखा फुसफुसाई। राहुल ने कमर दबाई, रेखा की साड़ी सरक गई। वो उठी, "चल, झाड़ियों के पीछे। कोई देख लेगा।" दोनों झाड़ियों में गए, शाम का अंधेरा छा रहा था। रेखा ने साड़ी उतारी, ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी। उसके शरीर की आउटलाइन – पतली कमर, उभरे स्तन, गोरी जांघें। राहुल स्तब्ध, "आंटी, आप देवी हो।" रेखा मुस्कुराई, "चूम ले।" राहुल ने होंठ मिलाए, किस गहरा – रेखा की जीभ राहुल के मुँह में। "आह... राहुल..." रेखा कराही। राहुल ने ब्लाउज उतारा, ब्रा से स्तन बाहर। वो चूसा, रेखा के निप्पल कड़े। "जोर से चूस... उफ्फ... कितने साल बाद..." रेखा का हाथ राहुल की पैंट पर, लंड खड़ा महसूस किया। "वाह, कितना बड़ा।"
रेखा घुटनों पर बैठी, पैंट उतारी, लंड चूसा। राहुल सिसकारा, "आंटी... आह... धीरे..." रेखा की जीभ घूम रही, लंड गीला। "मुझे चोद राहुल। मुझे जीवंत कर," रेखा बोली। राहुल ने रेखा को घास पर लिटाया, पेटीकोट ऊपर किया। रेखा की चूत शेव्ड, गीली। राहुल ने चाटी, रेखा चिल्लाई, "आह... जीभ अंदर... उफ्फ... मजा आ रहा..." राहुल ने उँगली डाली, रेखा कमर हिलाई। "डाल दे अब... नहीं रुक सकती।" राहुल ने लंड रखा, धीरे डाला। रेखा की चूत टाइट, "उफ्फ... दर्द और मजा... जोर से..." धक्के शुरू, रेखा कराह रही, "चोद मुझे... फाड़ दे मेरी चूत... आह राहुल..." राहुल तेज हुआ, रेखा के स्तन हिल रहे। "आंटी... आपकी चूत कितनी गर्म..." दोनों का पसीना, कराहें गूँज रही। रेखा झड़ी, "आह... मैं गई..." राहुल ने बाहर झाड़ा। रेखा पड़ी रही, "राहुल, तूने मुझे खुश कर दिया। फिर मिलना।" राहुल को मजा आया, लेकिन guilt फिर। "मीना को पता चले तो..."
रात हुई, राहुल घर लौटा। रेखा घर गई, सोचती – "राहुल ने मुझे नई जिंदगी दी।" गाँव की शाम अब रहस्यों से भरी थी।
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RE: राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक - by Fuckuguy - 07-09-2025, 04:39 AM



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