07-09-2025, 04:34 AM
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[/img]भाग 6: सरला काकी का करीब आना (अकेलेपन की छाया और गुप्त आकर्षण की शुरुआत)
रामपुर गाँव में वो दोपहर की धूप अब थोड़ी नरम हो चली थी, लेकिन राहुल के मन में अभी भी अंधेरा छाया हुआ था। सूरज की किरणें उसके घर की कच्ची छत से छनकर अंदर आ रही थीं, फर्श पर हल्की-हल्की छाया बना रही थीं, और बाहर से गायों की घंटियों की आवाज़ सुनाई दे रही थी। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, आँखें छत की ओर टिकीं लेकिन देख कुछ नहीं रहा था। कल शाम मोना के साथ की वो घटना – जलन से भरी वो चुदाई, मीना का रोना, और दोस्ती का टूटना – सब कुछ उसे काट रहा था। "क्यों मैंने मोना को छुआ? मीना को दुख पहुँचा कर क्या मिला?" राहुल खुद से सवाल करता, लेकिन जवाब सिर्फ guilt था। उसके दिल में एक खालीपन था, जैसे कोई महत्वपूर्ण हिस्सा खो गया हो। मीना अब फोन नहीं उठाती, मोना कॉलेज नहीं आती, और घर पर माँ सुमन से बात करने की हिम्मत नहीं होती। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – गाँव की पगडंडी शांत, खेतों में किसान काम कर रहे, लेकिन राहुल को सब सूना लग रहा था। "जीवन इतना जटिल क्यों है? गरीबी ऊपर से ये भावनाएँ," वो सोचता। राहुल अब कॉलेज नहीं जाना चाहता था, लेकिन पढ़ाई उसके सपनों का आधार थी। वो बैग उठाने लगा, लेकिन मन नहीं माना। आज छुट्टी कर ली, घर पर रहूँगा।
सुमन हवेली से लौट आई थी, उसके चेहरे पर थकान लेकिन चिंता भी। वो राहुल को देखकर रुकी, "बेटा, कॉलेज क्यों नहीं गया? क्या हुआ?" सुमन की आवाज़ में माँ का प्यार था, लेकिन रात की वो यादें दोनों के बीच दीवार बन गई थीं। सुमन का अतीत उसे सताता – ठाकुर के साथ की मजबूरी, राहुल का देखना, और अब उनका बदला संबंध। "मैं अच्छी माँ नहीं हूँ," वो खुद से कहती, लेकिन राहुल के लिए जीती। राहुल ने झूठ बोला, "सिर दर्द है माँ। आज आराम करूँगा।" सुमन ने उसके माथे पर हाथ रखा, "ठीक है बेटा। मैं बाज़ार जा रही हूँ, सब्ज़ी लाने। तू आराम कर।" सुमन चली गई, और घर खाली हो गया। राहुल बाहर आँगन में बैठा, किताब खोली लेकिन पढ़ाई नहीं हुई। उसकी नज़र पड़ोस के घर पर गई – सरला काकी का घर। सरला काकी, उम्र 40 साल, विधवा, अकेली रहती। राहुल को बचपन से जानती, हमेशा चाय पिलाती, बातें करती। लेकिन आज राहुल को लगा, शायद वो बात करके मन हल्का कर ले। "काकी से बात करूँ," वो सोचा और उनके घर की ओर चला।
सरला का घर छोटा लेकिन साफ-सुथरा था – दीवारें सफेद, आँगन में तुलसी का पौधा, और अंदर अगरबत्ती की खुशबू। सरला सिलाई मशीन पर काम कर रही थी, उसकी साड़ी हरी, जो उसके कामुक शरीर को लपेटे हुए थी। सरला का अतीत दुखद था – पति की मौत शराब की लत से हुई थी, कोई बच्चा नहीं, और गाँव में अकेली। वो सुमन की दोस्त थी, लेकिन ठाकुर से उसका भी पुराना संबंध रहा था, जो अब टूट चुका था। सरला अकेलेपन से जूझती, रातों को बिस्तर पर करवटें बदलती, सोचती – "कोई तो हो जो मुझे छुए, प्यार दे।" राहुल को देखकर उसके मन में ममता जागती, लेकिन अब वो बड़ा हो गया था, और सरला की आँखों में आकर्षण भी। "राहुल बेटा, आ गया? कॉलेज नहीं गया आज?" सरला ने मुस्कुराकर कहा, उसकी आवाज़ नरम और आमंत्रित। राहुल अंदर आया, "काकी, मन नहीं लगा। बात करनी थी।" सरला ने सिलाई रोकी, चाय बनाने लगी। "बैठ बेटा। क्या हुआ? तेरी माँ से बात की?" राहुल ने सब बताया – मीना का प्यार, मोना की जलन, चुदाई की घटना, और guilt। सरला सुनती रही, उसकी आँखें सहानुभूति से भरी। "बेटा, जीवन में गलतियाँ होती हैं। तू जवान है, भावनाएँ उमड़ती हैं। लेकिन दिल मत तोड़।"
चाय पीते हुए सरला करीब बैठी, उसका हाथ राहुल की जांघ पर रखा। "तू अकेला मत महसूस कर। मैं हूँ न। तेरी काकी हमेशा तेरे साथ।" राहुल ने महसूस किया – सरला की उँगलियाँ गर्म, स्पर्श में कुछ और। सरला का मन उथल-पुथल था – राहुल का जवान शरीर उसे आकर्षित कर रहा था। "वो बड़ा हो गया है, मजबूत। अगर वो मुझे छुए तो..." वो सोचती, और उसके शरीर में सिहरन दौड़ जाती। राहुल ने कहा, "काकी, आप अकेली रहती हैं। कभी उदास नहीं होतीं?" सरला हँसी, लेकिन आँखें नम, "होती हूँ बेटा। पति गए, कोई साथी नहीं। रातें लंबी लगती हैं।" वो करीब आई, राहुल के कंधे पर सिर रखा। "तू आया तो अच्छा लगा।" राहुल का दिल धड़का – सरला की खुशबू, उसके स्तनों की गर्माहट। "काकी..." राहुल बोला। सरला ने उसका हाथ पकड़ा, "बेटा, कभी जरूरत हो तो बता। मैं सब समझती हूँ।" बातें चलती रहीं – सरला ने अपना दुख बताया, कैसे पति की मौत ने उसे तोड़ दिया, कैसे ठाकुर ने फायदा उठाया लेकिन छोड़ दिया। राहुल सुनता, सहानुभूति महसूस करता। "काकी, आप मजबूत हैं।" सरला मुस्कुराई, "तू है तो ताकत आ जाती है।"
दोपहर बीती, सुमन अभी नहीं लौटी। सरला ने कहा, "बेटा, थक गया होगा। आराम कर ले मेरे कमरे में।" राहुल गया, बिस्तर पर लेटा। सरला अंदर आई, "मसाज कर दूँ? सिर दर्द जाएगा।" राहुल ने हाँ कहा। सरला उसके सिर पर हाथ फेरने लगी, लेकिन धीरे-धीरे कंधों पर। "आराम लग रहा?" सरला बोली। राहुल की आँखें बंद, लेकिन स्पर्श उत्तेजक। सरला का हाथ नीचे गया, कमीज के अंदर। "काकी..." राहुल बोला। सरला फुसफुसाई, "चुप बेटा। मैं जानती हूँ तुझे क्या चाहिए।" वो राहुल के ऊपर झुकी, उसके स्तन राहुल के चेहरे के पास। राहुल ने छुआ, सरला कराही, "आह... दबा न।" राहुल ने दबाया, सरला के बड़े स्तन नरम लेकिन कड़े निप्पल। "काकी, ये गलत..." राहुल बोला। सरला हँसी, "गलत क्या? हम दोनों अकेले हैं।" वो ब्लाउज उतारी, स्तन बाहर। "चूस ले बेटा।" राहुल ने चूसा, सरला की कराह निकली, "उफ्फ... जोर से... कितने साल बाद..." सरला का शरीर गर्म, वो राहुल की पैंट खोलने लगी। "तेरा कितना बड़ा... वाह।" सरला ने लंड पकड़ा, चूसा। राहुल सिसकारा, "काकी... आह..." सरला की जीभ घूम रही, लंड गीला। "मुझे चोद बेटा," सरला बोली। राहुल ने सरला को लिटाया, साड़ी उतारी। सरला की चूत बालों वाली, गीली। राहुल ने चाटी, सरला चिल्लाई, "आह... चाट जोर से... उफ्फ..." राहुल ने लंड डाला, सरला की चूत अनुभवी लेकिन टाइट। "चोद मुझे... जोर से... फाड़ दे..." सरला कमर हिला रही। धक्के तेज, सरला झड़ी, राहुल ने उसके मुँह में झाड़ा। "अब रोज आना बेटा," सरला बोली। राहुल को मजा आया, लेकिन guilt फिर।
शाम हुई, सुमन लौटी। राहुल घर आया, लेकिन सरला की याद सता रही। सरला अकेली लेटी, सोचती – "राहुल ने मुझे जीवंत कर दिया।" गाँव की रातें अब बदलने लगीं।


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