07-09-2025, 03:54 AM
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[/img]भाग 4: पहला प्यार की शुरुआत और मीना के साथ अंतरंग पल (भावनाओं की उथल-पुथल और गाँव की नदी किनारे की शाम)
रामपुर गाँव में वो सुबह कुछ अलग ही थी। सूरज की पहली किरणें खेतों पर पड़ रही थीं, हरी सरसों की फसल लहरा रही थी, और दूर से मुर्गों की बांग सुनाई दे रही थी। राहुल का छोटा सा कच्चा घर अभी भी शांत था, लेकिन उसके मन में तूफान मचा हुआ था। रात की घटना – माँ सुमन के साथ वो अनचाहा लेकिन उत्तेजक पल, ठाकुर की क्रूर हँसी, और खुद की शरीर की वो अनियंत्रित प्रतिक्रिया – सब कुछ उसे सता रहा था। वो बिस्तर पर लेटा रहा, आँखें बंद लेकिन नींद दूर। उसके दिमाग में बार-बार वो दृश्य घूम रहे थे: माँ की नंगी पीठ, उसके स्तनों की गर्माहट, और वो कराहें जो मजबूरी और मजा का मिश्रण लगती थीं। "क्या मैंने गलत किया? माँ के साथ... ये पाप तो नहीं?" राहुल खुद से सवाल करता, लेकिन जवाब नहीं मिलता। guilt की एक लहर उसे डुबो रही थी, जैसे कोई भारी पत्थर उसके सीने पर रखा हो। वो उठा, पानी से मुँह धोया, लेकिन चेहरा अभी भी थका हुआ लग रहा था। आईने में खुद को देखकर वो सोचता, "मैं कौन हूँ? गरीब गाँव का लड़का, जो अब सेक्स की दलदल में फंस गया है?"
सुमन रसोई में थी, चूल्हे पर चाय उबाल रही। उसकी साड़ी पुरानी लेकिन साफ थी, बाल खुले और थोड़े उलझे हुए। वो राहुल की तरफ देखती, लेकिन आँखें मिलाने से डरती। रात की वो घटना ने उनके बीच एक दीवार खड़ी कर दी थी – प्यार अभी भी था, लेकिन अब वो शुद्ध नहीं लगता। सुमन का दिल दुखता था। वो सोचती, "मैंने अपने बेटे को क्या बना दिया? ठाकुर की वजह से सब बर्बाद हो गया। लेकिन गरीबी ने मुझे मजबूर किया, पैसे के बिना राहुल की पढ़ाई कैसे होती?" उसकी आँखें नम हो जातीं, लेकिन वो छिपाती। "बेटा, चाय पी ले। कॉलेज का समय हो रहा है," सुमन ने कहा, उसकी आवाज में ममता लेकिन एक कंपन। राहुल ने चाय ली, लेकिन कुछ नहीं बोला। वो जानता था कि माँ भी परेशान है, लेकिन बात कैसे शुरू करे? घर की दीवारें अब राज़ों से भरी लगती थीं – वो दीवारें जो कभी सुरक्षा देती थीं, अब बोझ बन गई थीं। राहुल ने बैग उठाया और साइकिल पर सवार हो गया, लेकिन मन भारी था। रास्ते में वो सोचता रहा, "कॉलेज में मीना और मोना हैं, शायद वो मुझे भुला देंगी ये सब।"
कॉलेज पहुँचकर राहुल अपनी सीट पर बैठा। क्लासरूम की हवा में किताबों की महक थी, लेकिन आज वो उसे अच्छी नहीं लग रही थी। मीना उसके बगल में थी, हमेशा की तरह साफ-सुथरी – सफेद शर्ट टाइट, नीली स्कर्ट जो उसके गोरे पैरों को हल्का छुपाती, और बालों में लाल रिबन। मीना का चेहरा आज चमक रहा था, कल के ब्रेक टाइम के किस की याद से उसके गाल गुलाबी थे। वो राहुल को देखकर शर्मा गई, "राहुल, आज कैसा लग रहा है? कल का... वो पल..." मीना ने फुसफुसाकर कहा, उसकी आवाज में उत्साह और शर्म का मिश्रण। मीना का अतीत उसे याद आया – वो गाँव की किसान की बेटी थी, घर में चार भाई-बहन, पिता खेतों में पसीना बहाते, माँ घर संभालती। मीना बचपन से राहुल की दोस्त थी, नदी किनारे खेलते, पत्थर फेंकते, हँसते। लेकिन अब वो बड़ा होकर उसे प्यार करने लगी थी। रात को वो बिस्तर पर लेटती, राहुल की कल्पना करती – उसका हाथ पकड़ना, गले लगना, और वो किस जो कल हुआ था। उसके शरीर में एक मीठी सिहरन होती, वो अपनी जांघों को रगड़ती, लेकिन डरती कि कोई देख लेगा। "ये प्यार है न? राहुल मेरा पहला और आखिरी होगा," मीना सोचती।
मोना पीछे की बेंच से देख रही थी, उसके होंठों पर शरारती मुस्कान। वो आज नीली ड्रेस में थी, उसके गोल-मटोल शरीर पर टाइट, स्तन उभरे हुए। मोना ने एक नोट फेंका, "राहुल, आज ब्रेक में फिर?" लेकिन राहुल उदास था। टीचर क्लास पढ़ा रहे थे – विज्ञान की किताब से, लेकिन राहुल का ध्यान नहीं था। ब्रेक की घंटी बजी, और तीनों पेड़ के नीचे मिले। हवा ठंडी थी, पत्ते सरसराते। मीना ने राहुल का हाथ पकड़ा, "क्या हुआ? तू उदास क्यों है?" राहुल ने सब कुछ बता दिया – माँ का राज, ठाकुर के साथ की रात, और खुद की guilt। मीना की आँखें भर आईं, "राहुल, तू इतना अकेला क्यों महसूस करता है? मैं हूँ न तेरे साथ।" वो राहुल को गले लगा ली, उसके नरम स्तन राहुल के सीने से दबे। मोना ने भी सहारा दिया, लेकिन मीना ने कहा, "आज सिर्फ हम दोनों बात करें। मोना, तू जा।" मोना निराश हो गई, लेकिन चली गई। अब सिर्फ राहुल और मीना थे। मीना ने राहुल के आँसू पोछे, "तू मेरा पहला प्यार है राहुल। मैं तेरे दुख में साथ हूँ।"
दोनों पेड़ के नीचे बैठे, बातें कीं। मीना ने अपना दिल खोला – कैसे वो राहुल को बचपन से पसंद करती, कैसे उसके सपने राहुल के साथ जुड़े हैं। राहुल ने भी कहा, "मीना, तू मेरी जिंदगी की रोशनी है। ये गरीबी, ये राज़, सब भूल जाता हूँ तेरे साथ।" वो करीब आए, मीना के होंठ राहुल के होंठों से मिले। किस गहरा था, मीना की साँसें तेज। राहुल का हाथ मीना की कमर पर गया, वो सहम गई लेकिन रुकी नहीं। "राहुल, मुझे छू," मीना फुसफुसाई। राहुल ने मीना की शर्ट के बटन खोले, उसके छोटे लेकिन नरम स्तन बाहर। वो चूसा, मीना कराही, "आह... राहुल... अच्छा लग रहा है।" मीना की निप्पल कड़ी हो गईं, राहुल की जीभ उन्हें चाट रही थी। मीना का हाथ राहुल की पैंट पर गया, उसका लंड खड़ा महसूस किया। "ये... कितना बड़ा," मीना शर्मा कर बोली। राहुल ने मीना की स्कर्ट ऊपर की, पैंटी गीली थी। वो छुआ, मीना की चूत गर्म और कुंवारी। "उफ्फ... धीरे," मीना बोली। राहुल ने उँगली अंदर डाली, मीना की कराह निकली। दोनों उत्तेजित, लेकिन कॉलेज की घंटी बज गई। वो रुक गए, लेकिन वादा किया – "शाम को नदी किनारे मिलेंगे।"
शाम हुई। गाँव में सूरज डूब रहा था, आकाश लाल। राहुल घर से निकला, सुमन ने पूछा, "कहाँ जा रहा बेटा?" राहुल ने कहा, "दोस्त से मिलने।" सुमन चिंतित थी, लेकिन कुछ नहीं बोली। नदी किनारे मीना इंतजार कर रही थी, लाल सलवार सूट में, बाल खुले। वो सुंदर लग रही थी – गोरी चमड़ी, बड़ी आँखें, और मुस्कान जो राहुल का दिल जीत लेती। दोनों बैठे, पानी की कलकल सुनते। मीना ने कहा, "राहुल, आज मैं तेरी होना चाहती हूँ।" राहुल स्तब्ध, लेकिन खुश। वो करीब आए, मीना को किस किया। राहुल ने मीना के कपड़े उतारे – सूट नीचे, ब्रा और पैंटी में वो देवी लग रही। मीना शर्मा रही, "पहली बार..." राहुल ने ब्रा उतारी, उसके स्तनों को चूसा। मीना की कराहें गूँज रही थीं, "आह... राहुल... चूस जोर से..." राहुल की जीभ नीचे गई, मीना की चूत चाटी। मीना गीली हो गई, "उफ्फ... ये क्या कर रहा... मजा आ रहा है।" मीना ने राहुल का लंड निकाला, चूसा – पहली बार, लेकिन उत्साह से। "तेरा कितना मीठा," मीना बोली। राहुल ने मीना को घास पर लिटाया, उसकी चूत पर लंड रखा। "धीरे... दर्द होगा," मीना बोली। राहुल ने धीरे डाला, मीना चिल्लाई, "आह... फट रही हूँ..." लेकिन धीरे-धीरे मजा आने लगा। राहुल के धक्के तेज, मीना कमर हिला रही, "चोद मुझे राहुल... जोर से... आह..." दोनों का पहला सेक्स, मीना झड़ी, राहुल ने बाहर झाड़ा। मीना रो पड़ी, "तू मेरा पहला प्यार है।"
रात को दोनों लेटे रहे, सितारे देखते। मीना ने कहा, "हम हमेशा साथ रहेंगे।" राहुल खुश था, guilt थोड़ी कम हुई। लेकिन वो जानता था, गाँव की जिंदगी अभी और चुनौतियाँ लाएगी।


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