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Incest राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक
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भाग 3: कॉलेज की शरारतें और माँ का राज खुलना (कॉलेज के छिपे पल और घर की सच्चाई)

रामपुर गाँव में दिन अब थोड़े अलग लगने लगे थे राहुल को। सुबह की धुंध में वो साइकिल चलाता, लेकिन मन में सरला काकी का स्पर्श और मीना-मोना की मुस्कानें घूमती रहतीं। वो रात की वो घटना – खुद को छूना – उसे guilt देती, लेकिन एक नई ऊर्जा भी। "ये सब नॉर्मल है क्या?" वो सोचता, लेकिन जवाब नहीं मिलता। कॉलेज पहुँचकर वो अपनी सीट पर बैठा, किताबें खोलीं। आज क्लास मैथ्स की थी, टीचर बोर्ड पर सवाल लिख रहे थे। राहुल का ध्यान लगा, लेकिन मीना ने फिर एक नोट पास किया: "ब्रेक में मिलना, कुछ बात करनी है।" राहुल ने देखा, मीना की आँखें चमक रही थीं। मीना आज थोड़ी nervous लग रही थी – उसके मन में राहुल के लिए भावनाएँ उमड़ रही थीं। घर पर उसकी माँ ने कहा था, "बेटी, पढ़ाई पर ध्यान दे, लड़कों से दूर रह।" लेकिन मीना का दिल नहीं मानता। वो रात को बिस्तर पर लेटती, राहुल की कल्पना करती – उसका चेहरा, उसकी मुस्कान। उसके शरीर में एक अजीब सी सिहरन होती, वो अपनी जांघों को रगड़ती, लेकिन आगे नहीं जाती। "क्या ये प्यार है?" वो सोचती, और शर्मा जाती।
मोना आज क्लास में ज्यादा शरारती थी। वो पीछे बैठी, चुपके से राहुल की तरफ कागज की गोली फेंकी। उस पर लिखा: "तू मीना को देखकर शर्मा क्यों जाता है? मुझे भी देख ना।" मोना के मन में जलन थी – मीना की मासूमियत उसे अच्छी नहीं लगती। मोना घर पर अकेली महसूस करती, पिता हमेशा दुकान पर, माँ बीमार। वो राहुल को अपना बनाने की सोचती, कल्पना करती कि वो उसे किस करे, छुए। मोना ने एक बार गुपचुप तरीके से एक कामुक किताब पढ़ी थी – गाँव के बाजार से चुराई हुई। उसमें औरतों के बारे में लिखा था, कैसे वो मजा लेती हैं। मोना ने ट्राई किया था – खुद को छुआ, उँगलियाँ अंदर डालीं, और पहली बार झड़ी थी। "वाह, कितना अच्छा लगा," वो सोचती, लेकिन अब वो राहुल के साथ करना चाहती।
ब्रेक की घंटी बजी। तीनों फिर उस पेड़ के नीचे मिले, लेकिन आज माहौल अलग था। चारों तरफ बच्चे खेल रहे थे, लेकिन वो कोने में छिप गए। मीना ने शुरू किया, "राहुल, तू कल से कुछ उदास लग रहा है। क्या हुआ?" उसकी आवाज में चिंता थी, आँखें नम। राहुल ने झिझकते हुए कहा, "कुछ नहीं, घर की टेंशन। माँ देर रात आती है।" मोना ने हँसकर कहा, "अरे, तेरी माँ ठाकुर के यहाँ काम करती है न? वो तो अमीर हैं, अच्छा होगा।" लेकिन राहुल का चेहरा बदल गया। मीना ने उसका हाथ पकड़ा – पहली बार। "चिंता मत कर, हम हैं न तेरे साथ।" राहुल ने महसूस किया – मीना का हाथ नरम, गर्म। वो करीब आ गई, उसकी साँसें राहुल के चेहरे पर लगीं। मोना ने देखा, और जलन में कहा, "चलो, थोड़ी मस्ती करें।" वो राहुल के कंधे पर हाथ रखकर हँसी। राहुल का मन भटका – तीनों इतने करीब। हवा में एक तनाव था, जैसे कुछ होने वाला हो।
मीना ने शर्मा कर कहा, "राहुल, तुझे पता है, मैं तुझे बचपन से पसंद करती हूँ।" राहुल स्तब्ध, लेकिन खुश। मोना ने चिढ़ाया, "अरे, मैं भी!" और अचानक मोना ने राहुल का गाल चूम लिया। राहुल का शरीर झनझना गया। मीना ने देखा, और वो भी करीब आई, राहुल के होंठों पर अपना होंठ रख दिया – पहला किस। मीना के होंठ नरम, मीठे। राहुल ने जवाब दिया, उसका हाथ मीना की कमर पर गया। मोना ने पीछे से राहुल को गले लगाया, उसके स्तन राहुल की पीठ से दबे। "राहुल, छू ना मुझे," मोना फुसफुसाई। राहुल ने मुड़कर मोना की शर्ट पर हाथ रखा, उसके स्तन दबाए। मोना कराही, "आह... अच्छा लग रहा..." मीना देख रही थी, उसकी साँसें तेज। वो अपनी स्कर्ट ऊपर की, "राहुल, देख..." उसकी पैंटी गीली दिख रही थी। राहुल ने छुआ – मीना की चूत गर्म, गीली। "उफ्फ... राहुल..." मीना बोली। मोना ने राहुल की पैंट खोली, उसका लंड निकाला – पहली बार किसी लड़की ने छुआ। "वाह, कितना बड़ा," मोना बोली, और चूसने लगी। राहुल के मुँह से सिसकारी निकली। मीना ने अपनी पैंटी उतारी, राहुल की उँगलियाँ अंदर डालीं। तीनों उत्तेजित, लेकिन घंटी बज गई। वो रुक गए, लेकिन वादा किया – "कल जारी रखेंगे।"
शाम को राहुल घर लौटा, मन में उथल-पुथल। सुमन घर पर थी, खाना बना रही। "बेटा, आज कैसा रहा कॉलेज?" सुमन ने पूछा, उसकी मुस्कान थकी हुई। राहुल ने देखा – माँ आज सुंदर लग रही थी, साड़ी में उसके कर्व्स दिख रहे। लेकिन रात की याद आई, और गुस्सा आया। "माँ, तुम ठाकुर के यहाँ क्यों इतनी देर रहती हो?" राहुल ने पूछा। सुमन का चेहरा पीला पड़ गया। "बेटा, काम है। पैसे की जरूरत है।" लेकिन राहुल ने जोर दिया, "मैंने देखा है माँ। रात को ठाकुर आता है।" सुमन रो पड़ी। वो बैठ गई, राहुल को सब बताया – पिता की मौत के बाद गरीबी, ठाकुर की मदद लेकिन बदले में उसका शरीर। "बेटा, तेरे लिए कर रही हूँ। कॉलेज की फीस, खाना..." सुमन सोबती। राहुल का दिल टूटा, लेकिन गुस्सा भी। वो माँ को गले लगाया, "माँ, मैं सब ठीक कर दूंगा। पढ़ाई करके शहर जाऊंगा।" लेकिन गले लगते वक्त राहुल ने महसूस किया – माँ का शरीर गर्म, उसके स्तन दबे। सुमन ने भी महसूस किया, लेकिन कुछ नहीं कहा।
रात हुई। ठाकुर फिर आया। सुमन ने दरवाजा खोला, लेकिन राहुल जाग रहा था। वो छिपकर देखा – ठाकुर ने सुमन को बाहों में लिया, किस किया। सुमन की साड़ी उतरी, उसके बड़े स्तन बाहर। ठाकुर ने चूसे, सुमन कराही, "साहब..." ठाकुर ने सुमन को घोड़ी बनाया, चूत में डाला। धक्के तेज, सुमन की गांड हिल रही। "चोदो मुझे साहब... आह..." सुमन बोली। राहुल देखता रहा, उसका लंड खड़ा। लेकिन इस बार वो अंदर गया। "रुक जाओ!" राहुल चिल्लाया। ठाकुर हँसा, "आजा बेटा, तेरी माँ की चूत सबकी है।" सुमन डर गई, "नहीं बेटा..." लेकिन राहुल का गुस्सा उत्तेजना में बदल गया। वो माँ के पास गया, उसके स्तन चूसे। सुमन ने मना किया, लेकिन उसकी चूत गीली हो गई। ठाकुर देख रहा था। राहुल ने अपना लंड निकाला, माँ की चूत में डाला। "आह बेटा... नहीं..." सुमन बोली, लेकिन कमर हिलाने लगी। राहुल ने धक्के दिए, माँ की चूत टाइट। "माँ... तुम्हारी चूत कितनी गर्म..." राहुल बोला। सुमन झड़ गई, राहुल ने अंदर झाड़ा। ठाकुर हँसा, "अब तू भी मर्द बन गया।" राहुल रोया, लेकिन एक नई शुरुआत हो गई। अब माँ-बेटे का संबंध बदल चुका था – प्यार लेकिन कामुक।

राहुल ने फैसला किया – कॉलेज खत्म करके शहर जाएगा, लेकिन अब सेक्स उसकी जिंदगी का हिस्सा था।

कहानी जारी रहेगी।
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RE: राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक - by Fuckuguy - 06-09-2025, 04:46 PM



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