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[/img]राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक भाग 2
भाग 2: कॉलेज की दोस्तियाँ और सरला काकी का करीब आना (कॉलेज के दिन और घर की शामें)
रामपुर गाँव में सुबहें हमेशा की तरह शांत थीं, लेकिन राहुल के मन में अब एक तूफान उठ रहा था। उस रात की घटना – माँ को ठाकुर के साथ देखना – उसे सोने नहीं दे रही थी। वो बिस्तर पर लेटा रहा, आँखें बंद लेकिन दिमाग चलता रहा। "माँ क्यों करती है ये सब? क्या गरीबी इतनी मजबूर कर देती है?" वो सोचता, और उसके मन में गुस्सा, दुख, और एक अजीब सी उत्तेजना का मिश्रण था। सुबह उठकर वो कॉलेज की तैयारी करता, लेकिन आज उसकी आँखों के नीचे काले घेरे थे। सुमन ने नोटिस किया, "बेटा, क्या हुआ? रात को नींद नहीं आई?" राहुल ने झूठ बोला, "पढ़ाई कर रहा था माँ।" सुमन ने उसके सिर पर हाथ फेरा, उसकी उँगलियाँ नरम लेकिन थकी हुईं। वो जानती थी कि राहुल बड़ा हो रहा है, और उसके राज अब छिपाना मुश्कil हो रहा था। सुमन का दिल दुखता – वो राहुल के लिए जीती थी, लेकिन ठाकुर की गिरफ्त से निकलना असंभव लगता। "एक दिन सब ठीक हो जाएगा," वो खुद से कहती, लेकिन अंदर से डरती कि राहुल पता चलेगा तो क्या सोचेगा?
राहुल साइकिल पर सवार होकर कॉलेज चला गया। रास्ता लंबा था – खेतों के बीच से, जहाँ किसान काम कर रहे थे, और हवा में ताजी मिट्टी की खुशबू। कॉलेज पहुँचकर वो अपनी सीट पर बैठा, किताबें खोलीं, लेकिन मन भटक रहा था। मीना आज उसके बगल में बैठी थी। वो हमेशा की तरह साफ-सुथरी दिख रही थी – सफेद शर्ट, नीली स्कर्ट, और बालों में रिबन। मीना के परिवार में चार भाई-बहन थे, पिता खेतों में मजदूरी करते, और माँ घर संभालती। मीना बचपन से मेहनती थी, लेकिन कॉलेज उसके लिए भागने की जगह था। वो राहुल को देखकर सोचती, "वो इतना गंभीर क्यों रहता है? कभी हँसता क्यों नहीं?" मीना का दिल राहुल के लिए धड़कता था – बचपन की दोस्ती अब कुछ और बन रही थी। वो रातों को सोचती, उसके बारे में कल्पना करती: उसका हाथ पकड़ना, गले लगना। लेकिन गाँव की लड़की होने के नाते, वो शर्माती, डरती कि कोई देख लेगा। सेक्स के बारे में उसे सिर्फ सहेलियों से सुनी बातें पता थीं – "लड़के छूते हैं तो अच्छा लगता है," लेकिन वो कुंवारी थी, उत्सुक लेकिन अनजान।
क्लास शुरू हुई। टीचर इतिहास पढ़ा रहे थे – मुगल काल की कहानियाँ। राहुल नोट्स ले रहा था, लेकिन मीना ने चुपके से एक कागज पास किया। उस पर लिखा था: "ब्रेक में पेड़ के नीचे मिलना?" राहुल ने देखा, मुस्कुराया, और हाँ में सिर हिलाया। मोना पीछे से देख रही थी। मोना आज थोड़ी उदास थी – उसके पिता ने कल रात डाँटा था, "पढ़ाई पर ध्यान दे, लड़कों से दूर रह।" मोना के घर में पैसे थे, लेकिन आजादी नहीं। वो शरारती थी, क्लास में हँसती, लेकिन अंदर से अकेली महसूस करती। मोना को राहुल पसंद था – उसकी गंभीर आँखें, मजबूत कंधे। वो कल्पना करती, "काश वो मुझे छुए, किस करे।" मोना ने किताबों में छिपकर कुछ कामुक कहानियाँ पढ़ी थीं, जहाँ लड़कियाँ बोल्ड होतीं। लेकिन असल जीवन में वो डरती, सोचती कि क्या राहुल उसे पसंद करेगा? उसकी बॉडी थोड़ी गोल-मटोल थी, लेकिन स्तन उभरे हुए, जो शर्ट से झाँकते।
ब्रेक की घंटी बजी। तीनों पेड़ के नीचे मिले। हवा में ठंडक थी, पत्ते हिल रहे थे। मीना ने अपना टिफिन खोला – घर की बनी रोटियाँ और आचार। "राहुल, तू ले ना। तेरी माँ अच्छा बनाती है?" मीना बोली, उसकी आवाज में मिठास। राहुल ने लिया, उनकी उँगलियाँ फिर छुईं। इस बार राहुल ने महसूस किया – मीना की त्वचा नरम, गर्म। मीना का चेहरा लाल हो गया, वो नीचे देखने लगी। मोना ने हँसकर माहौल हल्का किया, "अरे, तुम दोनों तो ऐसे शर्मा रहे हो जैसे पहली बार मिले। राहुल, बताना, तुझे कैसी लड़कियाँ पसंद हैं? मासूम वाली जैसे मीना, या शरारती वाली जैसे मैं?" राहुल हँसा, पहली बार खुलकर। "दोनों अच्छी हैं," वो बोला। बातें चलती रहीं – कॉलेज की गॉसिप, टीचर की नकल। लेकिन राहुल की नजर मीना की स्कर्ट पर गई, जो हवा से थोड़ी ऊपर उठी। उसकी गोरी जांघें दिखीं, और राहुल के मन में वो रात की याद आई – माँ की नंगी बॉडी। उसका शरीर में हलचल हुई, पैंट में तनाव। मीना ने नोटिस किया, लेकिन कुछ नहीं कहा। मोना ने चिढ़ाया, "राहुल, क्या देख रहा है? तुझे लड़कियाँ इतनी पसंद हैं?" तीनों हँसे, लेकिन अंदर से उत्तेजना बढ़ रही थी। ब्रेक खत्म हुआ, लेकिन वो पल राहुल के मन में बस गया – पहली बार लड़कियों के साथ इतना करीब महसूस किया।
शाम को राहुल घर लौटा। सुमन अभी हवेली में थी। वो पढ़ाई करने बैठा, लेकिन मन नहीं लगा। बाहर से सरला काकी की आवाज आई, "राहुल बेटा, इधर आ। कुछ काम है।" राहुल गया। सरला का घर हमेशा साफ रहता – फर्श पर चटाई, दीवार पर पुरानी तस्वीरें उसके पति की। सरला आज हरी साड़ी में थी, जो उसके शरीर को खूबसूरती से लपेट रही थी। उसके स्तन बड़े, कमर पतली, और चाल में एक लय। सरला अकेलेपन से जूझ रही थी – पति की मौत के बाद गाँव में अफवाहें थीं कि वो ठाकुर से मिली हुई थी, लेकिन अब वो अलग थी। रातों को वो बिस्तर पर लेटती, अपने शरीर को छूती, कल्पना करती – कोई जवान लड़का जो उसे प्यार दे। राहुल को देखकर उसके मन में वो भाव जागते – वो उसे बेटे जैसा मानती, लेकिन अब आकर्षण भी। "बेटा, मेरी सिलाई मशीन खराब है। देख ले," सरला बोली। राहुल अंदर गया, मशीन देखी। सरला उसके पास खड़ी हो गई, इतनी करीब कि उसकी साड़ी राहुल के हाथ से छू गई। सरला की खुशबू – साबुन और पसीने की मिश्रित – राहुल को मदहोश कर रही थी।
राहुल ने मशीन ठीक की, और सरला ने कहा, "शाबाश बेटा। अब चाय पी ले।" वो रसोई गई, लेकिन वापस आते वक्त ठोकर खाई। राहुल ने उसे संभाला, उसका हाथ सरला की कमर पर गया। सरला की कमर नरम, गर्म। वो रुकी, राहुल की आँखों में देखा। "तू बड़ा हो गया है रे। तेरी माँ खुशकिस्मत है," सरला बोली, उसकी आवाज में कंपन। राहुल का दिल तेज धड़का, उसका हाथ सरला के स्तनों के पास था। सरला ने हाथ नहीं हटाया, बल्कि मुस्कुराई। "कभी अकेला लगे तो आ जाना। मैं हूँ ना," वो बोली। राहुल को अजीब लगा – देखभाल या कुछ और? वो घर लौटा, लेकिन सरला का स्पर्श भूल नहीं पाया। रात को सोते वक्त वो कल्पना करता – सरला की बॉडी, मीना की मुस्कान। उसका लंड खड़ा हो गया, पहली बार उसने खुद को छुआ, मुठ मारी। मजा आया, लेकिन guilt भी। "ये गलत है," वो सोचता।
उधर, सुमन हवेली से लौटी। ठाकुर आज फिर मिला था। हवेली के बड़े कमरे में, ठाकुर ने सुमन को दीवार से सटाया। "सुमन, तेरी बॉडी आज भी जवान है," ठाकुर बोला, उसकी मूंछें सुमन के गाल पर लगीं। सुमन ने विरोध किया, लेकिन ठाकुर ने साड़ी उतार दी। उसके स्तन बाहर, ठाकुर ने उन्हें चूसा। सुमन की कराह निकली, "साहब, घर जाना है..." लेकिन ठाकुर ने नहीं सुना। उसने सुमन को घुटनों पर बिठाया, अपना लंड मुँह में डाला। सुमन ने चूसा, आँखें बंद। फिर ठाकुर ने उसे बिस्तर पर लिटाया, चूत में डाला। धक्के तेज, सुमन की चूत गीली। "आह... साहब... जोर से..." वो बोली, मजबूरी में लेकिन मजा भी लेते हुए। चुदाई के बाद ठाकुर ने पैसे फेंके, "जा अब।" सुमन घर आई, थकी हुई। राहुल सो रहा था, लेकिन सुमन रोई – "कब तक ये सब?"
राहुल का सफर अब शुरू हो रहा था – दोस्तियाँ गहरा रही थीं, राज खुल रहे थे।
कहानी जारी रहेगी


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