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Gay/Lesb - LGBT अंधेरी गली का निषिद्ध संसार
#6
दोपहर की तपती गर्मी ने गली को सुनसान कर दिया था। सड़कें सूरज की तपिश में चुप थीं। रतन की दुकान का शटर आधा नीचे था, जिससे अंदर मद्धम रोशनी का आलम था। रतन पिछले रात की जलन से बेचैन था। पगली की जंगली हँसी, उसका नरम शरीर, और उनके बेकाबू मिलन की आग ने उसे फिर से उसी स्वाद की तलाश में गलियों में भटकने को मजबूर कर दिया था। उसने पगली को ढूंढने की कोशिश की, लेकिन गलियों के तंग रास्तों में वह कहीं नहीं मिली। निराशा उसे खाए जा रही थी, और वह भारी कदमों से दुकान की ओर लौट रहा था।
अचानक, रीता उसके सामने आ खड़ी हुई, उसका रास्ता रोकते हुए। उसकी टाइट साड़ी उसके उभरे हुए कर्व्स को चिपककर उभार रही थी—उसके भरे उरोज और पतली कमर धूप में चमक रहे थे। उसकी आँखों में शरारती चमक थी, जैसे वह रतन की आत्मा की भूख को पढ़ सकती हो।

“उस पगली को ढूंढ रहा है, ना, गंदे कुत्ते?” रीता की आवाज़ में चंचल तिरस्कार था।
रतन सहम गया, उसका चेहरा पीला पड़ गया। “न…नहीं, मैं तो बस घर जा रहा था,” उसने हकलाते हुए कहा, नज़रें चुराते हुए।
रीता की हँसी तेज़ और शिकारी जैसी थी। “घर जाने की ज़रूरत नहीं। मेरे साथ चल।”
रतन झिझका, डर और रीता की चुंबकीय उपस्थिति के बीच फंस गया। उसकी आज्ञाकारी नज़र और मोहक लहजा उसे कोई विकल्प नहीं छोड़ रहा था। उसने सिर हिलाया और उसके पीछे-पीछे दुकान की ओर चल पड़ा। वे अंदर घुसे, दरवाज़ा लॉक कर लिया।
मद्धम रोशनी में दुकान एक गुप्त कक्ष में बदल गई, जिसमें अनकही वासनाओं की गंध थी। रीता ने उसकी ओर मुड़कर देखा, उसकी आँखें आग की तरह दहक रही थीं। बिना किसी चेतावनी के, उसने रतन के चेहरे पर दो ज़ोरदार थप्पड़ जड़े। रतन का सिर पीछे झटका खा गया, उसके गाल जलने लगे, आँखों में आंसू छलक आए।
“ये ड्रामा क्यों?” रीता तीखे स्वर में बोली। “अगली बार मेरी बात बिना हिचक के मानना।”
रतन के चेहरे में दर्द की लहर दौड़ रही थी, वह कुछ बोल नहीं पाया। रीता उसके पास आई, उसका लहजा अब नरम पड़ गया। उसने एक ठंडी कोक की बोतल पकड़ी, एक घूंट लिया और उसे दी। “पी ले,” उसने कहा, उसकी आवाज़ में अब स्नेह की मिठास थी। “अब आंसू नहीं।”
उसने रतन के गाल को हल्के से सहलाया, उसके होंठों को अपने होंठों से हल्का सा चूम लिया। रतन के शरीर में सिहरन दौड़ गई, दर्द एक अजीब सी गर्मी में बदल गया। रीता ने बोतल को उसके होंठों तक लाया, ठंडा पेय उसके गले को शांत कर रहा था, उसके अंदर की आंधी को थाम रहा था।
“पगली नहीं मिली, ना?” रीता ने चिढ़ाते हुए कहा, उसकी मुस्कान शरारती थी। “कोई बात नहीं, मैं तुझे संभाल लूंगी। जिस तरह तूने उसे चोदा… मुझे भी उसे चखने का मन हुआ।”
रतन के गाल लाल हो गए, लेकिन रीता के शब्दों ने उसके अंदर एक चिंगारी भड़का दी। रीता ने अपनी साड़ी उतार दी, उसका नग्न शरीर मद्धम रोशनी में चमक रहा था। उसके भरे उरोज सख्त थे, उसकी पतली कमर गोल नितंबों में ढल रही थी। उसकी जांघों के बीच उसका छह इंच का लिंग खड़ा था, उसका सिरा चमक रहा था। रतन की नज़रें वहाँ टिक गईं, उत्सुकता और वासना का मिश्रण उसके अंदर हिलोरें ले रहा था।
“घुटनों पर,” रीता ने आदेश दिया। रतन झिझका, लेकिन उसका अधिकार निर्विवाद था। वह घुटनों पर बैठ गया, रीता का लिंग उसके चेहरे से कुछ इंच दूर था, उसकी गर्म, मादक गंध उसके होश उड़ा रही थी। रीता ने उसके बाल पकड़े, अपने लिंग को उसके होंठों तक लाई। “खोल,” उसने हुक्म दिया, और अपने लिंग को उसके मुँह में धकेल दिया।
रतन का मुँह उसकी गर्मी से भर गया, उसकी साँसें रुक गईं क्योंकि रीता ने धीरे-धीरे धक्के देने शुरू किए। उसका लिंग रतन की जीभ पर फिसल रहा था, उसका प्रीकम उसके लार के साथ मिल रहा था। रीता की सिसकारियाँ नरम थीं, उसकी पकड़ उसके बालों में और सख्त हो गई, क्योंकि वह अपने कूल्हों को हिलाने लगी, उसका लिंग और गहराई तक जा रहा था। रतन की आँखें नम हो गईं, लेकिन एक अजीब सा रोमांच उसके शरीर में दौड़ रहा था, उसका अपना लिंग उसकी लुंगी के नीचे सख्त हो रहा था।
रीता चौकी के पास खड़ी थी, उसकी साड़ी कमर तक उठी हुई थी, उसका लिंग पूरी तरह उजागर। रतन उसके सामने घुटनों पर था, उसके होंठ रीता के लिंग के सिरे को छू रहे थे, जो प्रीकम से चिकना था। रीता का हाथ उसके बालों पर था, हल्के से खींच रहा था। उनकी साँसें भारी थीं, रीता की पायल हल्के से खनक रही थी। उसने अपने लिंग को रतन के होंठों पर रगड़ा, प्रीकम को उन पर मल दिया। रतन ने अपना मुँह खोला, उसकी जीभ उसके सिरे पर फिरी, उसका स्वाद लेते हुए। रीता सिसकी, अपने लिंग को और गहराई तक धकेलते हुए, रतन के होंठ उसके आधार पर सट गए। वह धीरे-धीरे धक्के दे रही थी, उसका लिंग अंदर-बाहर हो रहा था, रतन की जीभ उसकी नसों पर फिसल रही थी, सिरे को चक्कर दे रही थी। रीता की गति तेज़ हुई, उसका लिंग रतन के गले तक जा रहा था, उसकी पकड़ और सख्त हो गई। रतन की दबी हुई सिसकारियाँ उसके लिंग के खिलाफ कंपन कर रही थीं, उसके हाथ रीता के सख्त नितंबों को पकड़ रहे थे, उसे और करीब खींच रहे थे। दुकान में उनकी लय की गीली आवाज़ें गूँज रही थीं।
रीता रुक गई, अपने लिंग को बाहर खींचा, रतन हाँफ रहा था, उसके होंठ चिकने थे, उसकी आँखें उत्तेजना से चमक रही थीं। वह चौकी के किनारे बैठ गई, टांगें फैलाकर, उसका लिंग चमक रहा था। “फिर से,” उसने गुनगुनाते हुए कहा, उसे अपने पास खींचा। रतन फिर से घुटनों पर बैठ गया, उसने रीता को फिर से अपने मुँह में लिया, उसके होंठ उसके लिंग के चारों ओर सख्ती से बंद थे, उसकी जीभ चक्कर काट रही थी। रीता के कूल्हे तेज़ी से हिल रहे थे, उसका लिंग गहराई तक जा रहा था, उसकी सिसकारियाँ और तेज़ हो रही थीं। रतन का एक हाथ रीता के नितंबों पर था, उसे दबाते हुए, उसका दूसरा हाथ अपने कड़क लिंग को सहला रहा था। रीता की उंगलियाँ उसके कंधों पर जकड़ी थीं, उसकी पायल हर धक्के के साथ खनक रही थी। हवा गर्मी, पसीने और कच्ची वासना से भारी थी।
रीता ने उसे रोका, उसकी आँखें वासना से दहक रही थीं। वह चौकी पर लेट गई, टांगें चौड़ी करके। “मेरे नितंब चाट,” उसने आदेश दिया। रतन झिझका, लेकिन उसकी नज़र ने उसे मजबूर कर दिया। उसने अपना चेहरा नीचे किया, उसकी जीभ रीता के तंग छेद को हल्के से छूने लगी। रीता सिसकी, उसका शरीर काँप उठा क्योंकि रतन ने उसके रिम को चक्कर दिया, उसकी जीभ और गहराई तक टटोली। उसके हाथ रीता के नितंबों को सहला रहे थे, हल्के से दबा रहे थे, उसकी त्वचा उसके स्पर्श में गर्म थी। रीता की सिसकारियाँ तेज़ हो गईं, उसका शरीर तन गया, उसका हाथ रतन का सिर और करीब दबा रहा था, उसकी जीभ को और गहराई तक उकसा रहा था। रतन की चाटना और साहसी हो गई, उसकी जीभ उसके अंदर चक्कर काट रही थी, उसके संवेदनशील स्थानों को छेड़ रही थी। दुकान में रीता की चीखें गूँज रही थीं, उसके नितंब रतन के मुँह के खिलाफ काँप रहे थे।
रीता ने उसे ऊपर खींचा, उसके होंठ रतन के होंठों से भिड़ गए, एक उग्र चुम्बन में। उनकी जीभें आपस में उलझ गईं, उसकी साँसें रतन के खिलाफ गर्म थीं, उसका स्वाद अभी भी बाकी था। रतन के हाथ उसकी पीठ पर घूमे, उसे और करीब खींचते हुए, उनका चुम्बन और गहरा हो गया, होंठ और जीभ एक उन्मत्त नृत्य में बंद। उसका शरीर ज़रूरत से जल रहा था, उसका लिंग तनाव में था।

रीता ने उसकी लुंगी खींच दी, उसका सख्त लिंग बाहर उछल आया। वह घुटनों पर बैठ गई, उसे अपने मुँह में लिया, उसकी जीभ उसके सिरे पर चक्कर काट रही थी, उसके हाथ उसके अंडकोषों को छेड़ रहे थे। रतन सिसका, उसकी उंगलियाँ रीता के भरे उरोजों में धंस गईं, उसके चुचूक को चुटकी में लिया। रीता का मुँह बेरहम था, उसकी जीभ उसे पागल कर रही थी। रतन अब और रोक नहीं पाया, उसका शरीर काँप उठा, उसका लिंग फट पड़ा, गर्म वीर्य रीता के मुँह में उड़ेल दिया। रीता ने उसे निगल लिया, उसकी आँखें संतुष्टि से चमक रही थीं।
लेकिन रीता अभी खत्म नहीं हुई थी। उसने रतन को चौकी पर धकेल दिया, उसके पैर फैलाए। उसका लिंग, अभी भी सख्त, उत्तेजना से चमक रहा था। उसने रतन के नितंबों को रगड़ा, उसकी उंगलियाँ उसके छेद को छेड़ रही थीं, जिससे उसके शरीर में सिहरन दौड़ गई। “शांत हो,” उसने फुसफुसाया, अपने लिंग को उसके प्रवेशद्वार पर सेट किया। धीरे-धीरे, उसने अंदर धकेला, रतन हाँफने लगा क्योंकि उसकी गर्मी उसे भर रही थी। रीता ने धक्के देने शुरू किए, उसका लिंग गहराई तक जा रहा था, प्रत्येक गति आनंद की लहरें भेज रही थी। रीता नीचे झुकी, उसे उग्रता से चूमते हुए, उसकी जीभ रतन की जीभ के साथ नाच रही थी, क्योंकि उसके धक्के और सख्त हो गए। उसके हाथ रतन के सीने, उसके पेट पर घूमे, उसके नितंबों पर हल्का सा थप्पड़ मारते हुए, और गहराई तक धकेलते हुए।
रतन की सिसकारियाँ दुकान में गूँज रही थीं, उसका शरीर उसकी लय के सामने समर्पण कर रहा था। रीता के धक्के उन्मत्त हो गए, उसकी साँसें रुक-रुक कर आ रही थीं। एक अंतिम, शक्तिशाली धक्के के साथ, वह चीख पड़ी, उसका लिंग धड़क रहा था, रतन के नितंबों में गर्म वीर्य उड़ेल रहा था। रतन का शरीर तीव्रता से काँप रहा था, उसका अपना लिंग जवाब में सिकुड़ रहा था।
वे हाँफते हुए स्थिर पड़े रहे, उनके शरीर पसीने से चिपचिपे थे। रीता उठकर बैठ गई, उसके होंठों पर एक संतुष्ट मुस्कान थी। उसने रतन के गाल को हल्के से चूमा। “तू अच्छा था, रतन। पगली को भूल जा। अब तुझे मैं मिल गई हूँ।”
रतन कुछ बोल नहीं पाया, उसका शरीर अभी भी गूँज रहा था, एक अजीब सी शांति उस पर छा रही थी। रीता ने अपनी साड़ी ठीक की, कोक की बोतल उठाई, और बाहर निकल गई, दरवाज़ा चरमराते हुए बंद हुआ। रतन चौकी पर बैठा रहा, उसका मन रीता के स्पर्श, उसकी प्रभुता, और दोपहर की जंगली तीव्रता में उलझा हुआ था।
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RE: अंधेरी गली का निषिद्ध संसार - by Abirkkz - 16-08-2025, 08:28 AM



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