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Gay/Lesb - LGBT अंधेरी गली का निषिद्ध संसार
#5
शहर की सड़कें गहरी रात के बोझ तले खामोश थीं, केवल दूर से कुत्तों की भौंकने की आवाज़ और झींगुरों की हल्की चहचहाहट ही सुनाई दे रही थी। रतन की छोटी सी दुकान बंद थी, एक मटमैली पीली बल्ब की रोशनी दीवारों पर हल्की परछाइयाँ डाल रही थी। रतन पुराने लकड़ी के बेंच पर बैठा था, उसका दिमाग़ पागली के साथ बिताए उन निषिद्ध, उन्मादी पलों में उलझा हुआ था। पागली का कोमल शरीर उसकी इंद्रियों में बसा हुआ था, उसका स्पर्श अभी भी उसकी त्वचा के नीचे जल रहा था, उसका लंड लुंगी के नीचे आधा सख्त था, उसकी याद में धड़क रहा था।

अचानक लोहे के दरवाज़े पर खटखटाहट हुई—एक बार, दो बार, तीन बार—रतन एकदम सीधा हो गया, उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। इस समय कौन हो सकता था? सिक्युरिटी? पड़ोसी? पागली से जुड़ा कोई? उसके काँपते हाथ दरवाज़े की ओर बढ़े, और उसने संकरी झिरी से बाहर झाँका।

बाहर एक औरत खड़ी थी—रीता। उसके लंबे काले बाल रात की हवा में हिल रहे थे, लाल साड़ी उसके तने हुए शरीर की हर वक्रता को चिपक कर उभार रही थी। उसके भरे हुए स्तन कपड़े के खिलाफ तन गए थे, निपल्स की हल्की रूपरेखा दिख रही थी। उसकी कमर पतली थी, कूल्हे गोल और सख्त, साड़ी उसकी मांसल जांघों को गले लगाए हुए थी। उसके होंठों पर एक शरारती मुस्कान थी, उसकी आँखें एक शिकारी की तीव्रता से चमक रही थीं, जिसने रतन के सीने में आग लगा दी। वह उसे नहीं जानता था, लेकिन उसकी नज़र, उसकी चुंबकीय उपस्थिति, और उसकी शहद-सी मधुर आवाज़ ने उसे जकड़ लिया।
“आप कौन हैं?” रतन ने फुसफुसाते हुए पूछा, डर और जिज्ञासा उसकी गले में उलझ गए।
“मैं रीता हूँ,” उसने कामुक स्वर में कहा, उसकी आवाज़ आकर्षण से टपक रही थी। “दरवाज़ा खोलो, रतन। हमें बात करनी है।”
उसके हाथ काँप रहे थे। उसका दिमाग़ ख़तरे की चेतावनी दे रहा था, लेकिन रीता की आँखें, उसके शरीर की मूक पुकार, उसकी प्रतिरोध करने की शक्ति को कुचल रही थी। लोहे का दरवाज़ा चरमराया और खुल गया, रीता अंदर आई, उसकी साड़ी फर्श को छू रही थी, उसके पायल हल्के से खनक रहे थे। उससे गुलाब और मिट्टी की मादक खुशबू का मिश्रण उड़ रहा था, जिसने रतन की साँसों को और भारी कर दिया।
उसने दरवाज़ा बंद किया, और लोहे की साँकल खटाक की आवाज़ के साथ बंद हो गई। उसने रतन की ओर मुड़कर देखा, उसकी आँखें शैतानी मंशा से चमक रही थीं।
“तुम्हारा नाम क्या है?” उसने पूछा, उसका लहजा दृढ़ था, होंठों पर हल्की मुस्कान थी।
“रतन… लेकिन आप कौन हैं? इतनी रात को क्या चाहती हैं?” उसकी आवाज़ काँप रही थी, उसकी नज़रें रीता के शरीर पर टिकी थीं।
रीता और करीब आई, उसकी साड़ी थोड़ी सरक गई, जिससे मंद रोशनी में उसकी दरार की चमकती वक्रता दिखाई दी। “मैंने तुम्हें देखा, रतन। पागली के साथ। तुम्हारे हाथ उसके कोमल शरीर पर, तुम्हारा लंड उसके अंदर—क्या नज़ारा था!”
रतन का चेहरा पीला पड़ गया, उसकी टाँगें काँपने लगीं, हाथ पसीने से तर हो गए। “नहीं… आप ग़लत समझ रही हैं! मैंने कुछ नहीं किया!” वह हकला गया, उसकी नज़रें फर्श पर टिक गईं।
रीता और करीब आई, उसकी पायल खनक रही थी। “झूठ मत बोलो। मैंने सब देखा—तुम्हारा लंड उसकी गांड में धमक रहा था, उसकी चीखें हवा में गूंज रही थीं। मैं सबको बता सकती हूँ—तुम्हारे पिता को, तुम्हारी माँ को, पड़ोसियों को। तुम्हारी दुकान बर्बाद हो जाएगी। तुम्हें ये जगह छोड़नी पड़ेगी।”
रतन की साँस रुक गई, घबराहट ने उसे जकड़ लिया। वह घुटनों के बल गिर पड़ा, उसने रीता की साड़ी का किनारा पकड़ लिया। “प्लीज़, रीता, ऐसा मत करो! मुझे माफ़ कर दो, ये ग़लती थी। मैं जो कहोगी, वो करूँगा!” उसकी आँखों में आँसू छलक आए, उसकी आवाज़ टूट रही थी।
रीता की उंगलियाँ उसके बालों पर फिरीं, उसकी मुस्कान नरम पड़ गई। “ठीक है, रतन। मैं तुम्हारा राज़ छुपा सकती हूँ। लेकिन एक शर्त पर।”
उसने ऊपर देखा, डर और जिज्ञासा उसकी नज़रों में उलझे हुए थे। “क्या शर्त? मैं वो करूँगा!”
रीता ने धीरे-धीरे अपनी साड़ी उतारी, मंद रोशनी में उसका बेदाग़ शरीर उभर आया। उसके भरे हुए स्तन सख्त थे, गहरे निपल्स तने हुए थे। उसकी कमर पतली थी, पेट चिकना, कूल्हे गोल और तने हुए। फिर, उसकी जांघों के बीच, छह इंच का लंड सख्त खड़ा था, उसका सिरा प्री-कम से चमक रहा था, हल्के से काँप रहा था।
रतन की आँखें फैल गईं, उसकी साँस भारी हो गई। “मैं पहले पुरुष थी,” रीता ने कहा, उसकी आवाज़ गहरी और आदेशात्मक थी। “सर्जरी ने मुझे औरत बनाया, लेकिन मैंने इसे रखा। सब मुझे चोदते हैं, लेकिन मुझे कोई नहीं चोदता। आज रात, मैं तुम्हें चोदने वाली हूँ।”
रतन का मुँह सूख गया। “लेकिन मैं…” उसने शुरू किया, लेकिन रीता ने अपनी उंगली उसके होंठों पर रख दी, उसका कोमल स्पर्श उसे झकझोर गया।
“चुप। ऐसा करो, और तुम्हारा राज़ सुरक्षित रहेगा। और मुझ पर भरोसा रखो, तुम्हें मज़ा आएगा—ऐसा सुख जो तुमने कभी नहीं जाना।”
उसका दिमाग़ भटक रहा था, डर और उसके शरीर, उसके लंड, उसकी शहद-सी आवाज़ की अप्रतिरोध्य खिंचाव के बीच फँसा हुआ था। “ठीक है, रीता। मैं मानता हूँ। बस… मुझे चोट मत पहुँचाना।”
रीता की मुस्कान में विजय की चमक थी। “मैं तुम्हें चोट नहीं पहुँचाऊँगी, रतन। मैं तुम्हें परम सुख दूँगी।”
उसने उसकी लुंगी खींच दी, जिससे उसका सात इंच का लंड उजागर हो गया, जो उत्तेजना से सख्त और चिकना था। अपनी साड़ी उतारकर, वह पूरी तरह नग्न हो गई—उसके भरे हुए स्तन, पतली कमर, गोल कूल्हे, और सख्त लंड कच्चे इच्छा का एक दृश्य थे। उसने उसे बेंच पर धकेल दिया, उसकी टाँगें फैला दीं। “आराम करो, रतन। मेरा लंड तुम्हारी गांड को भरेगा, और तुम पागल हो जाओगे,” उसने फुसफुसाया, उसकी आँखें जल रही थीं।
रतन काँप रहा था। “रीता, मुझे डर लग रहा है…”
वह नीचे झुकी, उसके होंठ रतन के होंठों से टकराए, उसकी जीभ उसके मुँह में घुस गई, भूख से चूस रही थी। “तुम्हारे होंठ इतने मीठे हैं, रतन,” उसने बुदबुदाया, उसकी उंगलियाँ उसके निपल्स को चुटकी में ले रही थीं। “इतने गर्म… क्या तुम पागली के लिए भी ऐसे जलते थे?”
रतन कराह उठा, “आह… रीता, प्लीज़…” उसका हाथ रतन के लंड पर लिपट गया, धीरे-धीरे सहलाने लगा। “इतना मोटा,” उसने छेड़ा, उसकी जीभ चिकने सिरे को चाट रही थी। रतन काँप उठा, “ओह… तुम क्या कर रही हो?”
रीता ने अपनी उंगलियों पर थूक लिया, उसकी तंग छेद को रगड़ते हुए, एक उंगली अंदर डालकर उसे ढीला करने लगी। “तेरी गांड मेरे लंड के लिए एकदम सही है,” उसने कामुक स्वर में कहा। रतन हाँफ उठा, “धीरे, रीता…”
उसने अपने छह इंच के लंड को उसके छेद पर रखा, धीरे से धकेलते हुए। रतन चिल्लाया, “दर्द हो रहा है!”
“शश, आराम कर। मज़ा आने वाला है,” उसने तसल्ली दी, उसकी जीभ उसकी गर्दन पर चाट रही थी, और वह धक्के मारने लगी। उसका लंड उसे खींच रहा था, नसों वाला शाफ्ट उसकी अंदरूनी दीवारों को रगड़ रहा था, जिससे अपरिचित सनसनी की लहरें उसके शरीर में दौड़ रही थीं। दर्द सुख में पिघल गया। “ओह… रीता, ये… अविश्वसनीय है!” वह हाँफा, उसकी गांड उसके लंड को और कस रही थी।
उसके स्तन हर धक्के के साथ उछल रहे थे, उसकी त्वचा पर पसीना चमक रहा था। उसने उसके निपल को काटा, गुर्राते हुए, “तेरी सिसकारियाँ लाजवाब हैं!” रतन के हाथ उसकी कमर पर कस गए, “रीता… और ज़ोर से!”
उसके धक्के तीव्र हो गए, उसकी मांसल जांघें उसके खिलाफ थपथप रही थीं, बेंच ज़ोर से चरमरा रहा था। उसका लंड गहराई तक धंस रहा था, हर हरकत उसकी नसों को आग लगा रही थी। “चोद, रतन, तेरी गांड मुझे अंदर खींच रही है!” वह हाँफी, उसकी नाखूनें उसके कूल्हों में धंस रही थीं, पसीना उसकी त्वचा पर टपक रहा था।
रतन का शरीर कगार पर था, उसका सात इंच का लंड उसके हाथ में धड़क रहा था, प्री-कम टपक रहा था। “रीता… तुम मुझे पागल कर रही हो!” वह कराहा, उसकी गांड हर धक्के के साथ उसके लंड को और कस रही थी। उसका हाथ उसे तेज़ी से सहला रहा था, उंगलियाँ उसकी उत्तेजना से चिकनी थीं। “तेरा लंड मेरे हाथ में फटने वाला है,” उसने गुर्राया, उसके दाँत उसके निपल को चर रहे थे।
बेंच उनकी उन्मादी लय के नीचे कराह रहा था, छत से धूल गिर रही थी। रीता की साँसें रुक-रुक कर आ रही थीं, उसकी आँखें झपक रही थीं। “रतन… मैं और नहीं रोक सकती!” उसने दहाड़ा, उसका शरीर काँप रहा था। एक प्रचंड चीख के साथ, उसका लंड फट पड़ा, उसकी गांड को गर्म, गाढ़े वीर्य से भर दिया। वह गर्माहट उसके अंदर फैल गई, उसे कगार के पार धकेल दिया।
“रीता… मैं… आह!” रतन का लंड फड़क उठा, उसके पेट, उसके स्तनों, बेंच पर वीर्य की धारें उड़ गईं। उसका शरीर ऐंठ गया, सुख की लहरें उसमें से टकरा रही थीं। “रीता… तुम कमाल की हो!” वह हाँफा, एक हल्की मुस्कान उसके चेहरे पर उभरी।
वे हाँफते हुए ढह गए, उनके शरीर पसीने और वीर्य से चिपचिपे थे। एक पल के लिए, वे चुपचाप लेटे रहे, हवा उनके साझा रिलीज़ के बोझ से भारी थी। रीता उठ बैठी, उसकी मुस्कान चमक रही थी। “चिंता मत कर, रतन। तेरा राज़ सुरक्षित है। लेकिन ये रात… मैं इसे कभी नहीं भूलूँगी।”
रतन बोल नहीं सका, उसका शरीर अभी भी गूंज रहा था, उसके दिमाग़ में एक अजीब सी शांति छा रही थी। रीता ने अपनी साड़ी ठीक की, एक सिगरेट जलाई, और बिना आवाज़ किए दुकान से निकल गई।
रतन बेंच पर ही रहा, उसका दिमाग़ भटक रहा था—पागली को चोदने से लेकर रीता, एक ट्रांस औरत, द्वारा चोदा जाना, जिसके स्पर्श ने उसे उधेड़ दिया था। ये रात, पागली के साथ वाली रात की तरह, उसके जीवन का एक गुप्त अध्याय बनकर रह जाएगी, जो उसकी आत्मा में हमेशा के लिए नक़्श हो गई।
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RE: अंधेरी गली का निषिद्ध संसार - by Abirkkz - 15-08-2025, 06:16 PM



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