03-08-2025, 02:23 PM
(31-07-2025, 12:15 AM)Cuckoldbeta Wrote:![]()
bahut mast kahani ben rehee....baton me computor walee baat bhee badal do....computor ko bedo ka khel kehne lego, mahina khatam hone se pehle Uncle hee vada lele Ankush se, tu razdar hai humara, sath deta rehe aur ma ko ash kerne de.
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मम्मी उसी कोने में बैठी थी, नीली नाइटी उसके घुटनों से ऊपर खिसक आई थी। मैं पास ही था, टेढ़ा होकर टेक लगाए, मगर नज़रें बार-बार माँ की जाँघों से टकरा जाती थीं। और अंकल… सिर्फ़ चड्डी में, पीठ पसीने से भीगी हुई, आँखें जलती हुई।
मैं बोला
"सच में, अंकल… आप जैसे बोलते हो ना… एकदम जला देते हो अंदर से। आज बताओ… वो पहली बार कैसे हुआ?"
मैं मुस्कराया, जैसे यादों में भीग गया हो।
"बेटा…" उसने एक लंबा साँस खींचा
"वो रात मैं भूल ही नहीं सकता।
उसकी चूड़ियों की खनक थी, उसकी साँसों की गर्मी थी… और सबसे ख़तरनाक, उसके मुँह से निकली एक लाइन —
‘दरवाज़ा बंद कर लो… कोई आए तो कह देना सब्ज़ी काट रही हूँ…’"
मम्मी की पलकें झुकी, मगर होंठों पर एक अजीब-सी मुस्कान थी।
मैं हँसा नहीं, बस चुपचाप देखता रहा। उसका गला सूख रहा था, पर आवाज़ नहीं टूटी।
अंकल ने बोलना शुरू किया…
"मैं अंदर घुसा तो वो गैस के सामने खड़ी थी… नाइटी के अंदर कुछ नहीं था… बिल्कुल कुछ नहीं।
और मुझे देखकर बोली —
‘इतनी देर लगा दी? मिर्ची पीस दी है… अब तू भी कूट मुझे…’
मैंने पकड़ के दीवार से टिका दिया उसे…
उसके पेट के नीचे हाथ घुसाया, पूरी हथेली गरम हो गई…
उसकी साँसें काँपने लगीं —
‘बोल ना… किसके लिए है ये देह? किसके लिए रखी है मैंने ये सारी आग?’"
मम्मी की साँसें तेज़ हो चली थीं अब। उसका बेटा वहीं था और वो जानती थी कि वो सुन रहा है, समझ रहा है।
अंकल रुके नहीं
"मैंने उसके कान में धीरे से फूँका —
‘तेरे मुँह से सुनना है… बोल ना… किसकी बनकर रह गई है तू?’
वो चिल्लाई —
‘तेरी… सिर्फ़ तेरी… मेरे अंदर तक उतर जा, मुझमें खो जा…’
और फिर मैंने उसे वहीं किचन के स्लैब पर बैठा लिया…
नाइटी ऊपर, जाँघें चौड़ी… और मैंने झुक के उसकी नाभि पे चुम्मा लिया…
उसका पेट काँपने लगा…
‘मर्द है तू… फाड़ दे मुझे…’
ये सुनकर मेरी आँखें लाल हो गईं…"
मम्मी ने एकदम से आँखें बंद कर लीं। अंकुश ने उसके हाथ की हरकत देख ली उँगलियाँ कुर्सी की कोर पकड़ चुकी थीं। उसकी माँ वहीं बैठी पर नज़रें मिलाने से सब डर रहे थे।
अंकल फिर बोला
"मैंने उसके ब्रा के हुक तोड़े, और सीने को हाथों से नहीं मुँह से सँभाला।
वो तड़प रही थी
‘ज़ोर से, और ज़ोर से… मुझमें उतर… मुझे बर्बाद कर दे…’
और जैसे ही मैं नीचे गया… उसके पाँव काँपने लगे, गीली हो चुकी थी वो…
मैंने उसका कच्छा दाँत से पकड़ा और खींच लिया… और फिर… बस… एक तूफ़ान था…
हम दोनों पसीने में भीगे… चूड़ियाँ बिखरीं, साँसें उलझीं… और देह ने देह को निगल लिया…"
कमरे में सन्नाटा था।
केवल फैन की आवाज़… और कुछ न कह पाने वाली निगाहें।
मैं ने धीरे से देखा मम्मी की ओर उसके गाल लाल थे, और आँखों में कुछ गहरा डूबा हुआ।
अंकल मुस्कराया
"अबे बेटा… तू तो कुछ बोला ही नहीं… कैसी लगी कहानी?"
अंकुश ने अपनी आँखें पोंछीं, और बोला
"बस एक बात कहनी है अंकल…
काश मैं उस दीवार पे टंगा कोई कैलेंडर होता उस दिन… सब देख पाता… सब…"
तीनों की आँखें मिलीं और फिर कुछ नहीं कहा किसी ने।
मगर कमरे में जो हुआ, वो उन तीनों के अंदर… गूंजता रहा।
"मैंने उसकी कमर पकड़ ली,
और जीभ से उसके पेट के नीचे उतरने लगा…
जहाँ वो खुद दो पैरों में जगह बना रही थी।
उसकी साँसें चढ़ रही थीं,
और मैं बस निगाहें उसकी आँखों में रखे,
उसके जांघों के बीच उतर गया।"
“कच्चा स्वाद था वो
ना साबुन, ना परफ्यूम…
बस देह की असली गंध।
और मैं वहीं रुक गया
जहाँ से उसकी आवाज़ बदन से बाहर आ रही थी।”
>“जब मेरी जीभ ने उसे पहली बार चाटा
वो काँपी, कसम से काँपी ऐसे जैसे बिजली दौड़ गई हो।”
“उसका कच्चा पानी मेरे होंठों तक आया,
और मैंने सब पी लिया…
ना भरा मन, ना रुकी जीभ।
वो कहती रही
‘रुक जा…’
पर उसकी जांघें और हाथ कुछ और कह रहे थे।”
“और जानता है सबसे बड़ी बात क्या थी…?”
“उसने अगले दिन मुझसे पुछा भी नहीं कि अब क्या रिश्ता है।
क्योंकि हमें मालूम था —
वो बस एक रात थी,
उसने उस दिन पहली बार मेरा नाम लिया था,
पर मुँह से नहीं
दाँतों से,
मेरी छाती पे काट कर।
और मैं समझ गया
अब ये औरत, मेरी कहानियों में नहीं,
मेरी हड्डियों में रहने लगी है।"
"उस दिन, बारिश आई थी बाहर..."
"पर असली तूफ़ान तो कमरे के अंदर उठा था।
मैंने उसे कंधे से पकड़ा,
दीवार से सटा दिया।
जैसे कोई भूखा आदमी रोटी नहीं,
पूरी रसोई निगल जाना चाहता हो।"
>"उसकी साँसें तेज़ थीं
और होंठो से निकली हर आवाज़,
मेरी मर्दानगी का इनाम माँग रही थी।"
"मैंने उसकी साड़ी घसीटी
जैसे कोई पुराना राज़ खुल रहा हो धीरे-धीरे।
और जब उसके सीने पे पहुँचा..."
"वहाँ कोई पर्दा नहीं था,
बस धड़कनें थीं,
जो खुद को मेरी उँगलियों में गिरवी रख चुकी थीं।"
मैं: फिर अंकल
"फिर क्या बेटा…
मैंने उसको जमीन पर लिटाया नहीं…
दीवार से टिका दिया।
वो औरत कहती रही ‘तेरे हाथ नीचे जाएं तो कस कर… ऊपर आएं तो चूस कर… मुँह खुले तो मार के।’
और जब मेरी मर्दानगी उसके जांघों के बीच पहुंची,
तो उसने खुद कहा
‘आज रंडी बना दे मुझे, बीवी नहीं।’"
मम्मी: छी शर्म नहीं आती ऐसे शब्द का इस्तेमाल करते।
Uncle: अरे अब अंकुश बच्चा थोड़ी है सब सिख गया है और इसे तो मैं बस कहानी सुना रहा हूं तू तो ऐसे बिलबिला रही की तू ही वो रण्डी थी
मम्मी सिहर गई अंकल की बातों से
Uncle:अंकुश माफ करना वो तेरी मम्मी दोस्त है ना इसीलिए गाली निकल गई
में: कोई बात नहीं अंकल
मैं थोड़ा आगे बढ़ते हुए अंकल आपको लगता है इसमें दिक्कत हो रही आप टॉवेल पहन लो
मेरे बोलने से पहले मम्मी उठ के गई और टॉवेल ले आई
लो बदल लो
मैं और मम्मी नीचे बैठे थे अंकल उठे और फोन चलने का नाटक करते हमारे करीब आ गए और फोन फिर रख दिया वो।इतने करीब थे कि मम्मी की नाइटी की डोरी उनके पैर से खेल रही थी। तभी अंकल अपना अंडरवियर उतार देते हैं उनका विशाल काय लैंड हम मां बेटे के आंखों के सामने था। मैं तो देखता रह गया लेकिन हैरत ये हुई कि मम्मी भी बैठी रही उठी नहीं वहां से
अंकल: अपना लन्ड हांथ में ले के सहलाने लगे
अंकल: aahhhhhh अब जा के आराम मिला।
अंकल मम्मी को देखते हुए अपना lund हिला रहे थे ना मम्मी कुछ बोल रही थी ना हट रही थी
Uncle: aahhhhh varsha kitni sundr hai tu
Jis hanth se uncle lund hila rhe the usi hanth se mummy ko chute hue bolte hai।। होंठ पर उंगली फेरते हुए मम्मी उनके लंड के खुशबू में ऐसा खो गई कि उन्हें पता नहीं था कि मैं भी वहीं हुं
Uncle: बहुत सुंदर है बेटा तेरी मम्मी काश मैं तुम्हारा असली बाप होता
मैं: क्यों अंकल
अंकल: तब मैं अच्छे से दोस्ती करता तेरी मम्मी से
Ahhhhhh मेरा लंड फट जाएगा बेटा
मम्मी: तुम दोनों बाप बेटा मुझे भी बेशरम बना के छोड़ोगे
Uncle: ahhhhhh meri jaan teri ye adda chal ab apne yaar ko mera mtlb apne dost ko towel pehna
Mummy uth jati h or uncle ko towel pehnane lagti hai
Uncle: ruk thodi der bas
Mummy: uncle ke kaan me badmash ho bahut
UNCle hehe
अब अंकल ऐसे बैठ गए पैर ऊपर कर के की उनका लंड हमें साफ साफ दिख रहा था पर ना मम्मी कुछ बोली ना मैं बस बीच बीच में मुझे देख के मुस्कुरा देती थी
अंकल आगे सुनाओ ना
अरे हां तो सुनो
अंकल ने एक सिगरेट सुलगाई —
एक लंबा कश लिया,
और फिर फेंक दी अधजली —
शायद यादें अब धुएँ से नहीं,
सीधे जाँघों से निकल रही थीं।
फिर मैं घर आ गया लेकिन
"उस रात…
मैं उसे उसके ही घर में चोदने गया था।
उसका आदमी बाहर था
और दरवाज़ा उसने खुद खोला, बिना कुछ पहने हुए।"
मैं: क्या अंकल वो शादी शुदा है?
तभी मम्मी बीच में आ गई
मम्मी: हा बेटा और तेरी उमर का एक बेटा भी है इनकी माशूका को
Uncle: माशूका नहीं रण्डी है वो मेरी सिर्फ रण्डी
मम्मी सिहर गई
मम्मी: लेकिन मैं कैसे बोलूं
अंकल: अब जब तक तुम्हारी मम्मी खुल के नहीं बोलेगी मैं नहीं सुनाऊंगा
Me: मम्मी प्लीज कोई बात नहीं अंकल भी आपके दोस्त है।
अब मम्मी अपने आप को अपने बेटे के सामने अनजान बन के अपने मर्द अपने यार से चुदने की बात कैसे करे
फिर भी मैने बोलो: आपको मेरी कदम
मम्मी: बदमाश अच्छा ठीक है वो इनकी रण्डी है सिर्फ इनकी
Me: ye हुई ना मॉडर्न मम्मी वाली बात
लेकिन आपको कैसे पता मम्मी
मम्मी सकपका गई लेकिन अब वो भी इस हवस के समंदर में गोते लगा रही थी
मम्मी: तेरे अंकल ने बताया था कहानी कंप्यूटर सीखते वक्त
मैं(मन में): वाह मम्मी तुम तो अब बेशरम बनती जा रही लेकिन एक पर्दे में वाह
मम्मी: और तू जानता है इनकी जो रण्डी है उसका बेटा का नाम भी अंकुश है
Uncle ka lund jhatke maar raha tha jo hme saaf dikh raha tha
Me: sach
मम्मी: हा बेटा
अंकल अब आगे सुनाते हैं
उस रात…
मैं उसे उसके ही घर में चोदने गया था।
उसका आदमी बाहर था —
और दरवाज़ा उसने खुद खोला, बिना कुछ पहने हुए।"
"उसने मुझे देखा नहीं, खींचा…
सीधा कमरे में, और बोली
'मुझे आज तू चाहिए,
पूरा… पूरा तू चाहिए।'"
"उसकी ब्रा की हुक नहीं खोली मैंने,
बल्कि दाँतों से चबाई थी
और जब उसका कच्चा उतारा ना…
उसकी चूत के अंदर से गरमी का भाप उठा!"
मम्मी अब चोरी छिपे अपना छूट सहला रही थी
मैंने उसे उल्टा किया
उसके कूल्हों को अपने पंजों से दबाया,
और इतनी जोर से मारा पीछे से,
कि उसकी चीख दीवारों से टकराई।
फिर भी वो बोली ‘थोड़ा और मार…
मेरी चूत में अब तक तेरा नाम नहीं गूंजा।’"
अंकल अब खुलाम खुल्ला लंड चूत चुदाई का इस्तेमाल कर रहे थे मम्मी और मेरे सामने
फिर मेरे पूछने से पहले
मम्मी(चूत रगड़ते हुए) ahhhhhhhh फिर
Uncle: mujhe aankh marte hue: or mummy ki aankho me dekhte hue
"उसके पेट पे मर्दानगी की रगड़ थी
और नाभि के नीचे पूरा बदन मेरा नाम गा रहा था।
हर बार जब मैं अंदर घुसा,
उसने मेरे होंठ काटे —
और कहा: ‘रख दे मुझे बिस्तर से ज़मीन तक,
जहाँ तू थूके, वहीं मैं लेटूं।’"
में: वो औरत कभी तेरे सामने गिड़गिड़ाई थी क्या?"
मैं मम्मी के सामने मम्मी को ही अनजान बनते हुए वो औरत कह रहा था
गिड़गिड़ाना?
वो रंडी उस दिन खुद हुक्म दे रही थी —
कह रही थी, 'चूस मेरी गांड जब तक मेरी रूह सीटी ना मार दे।’"
"उस दिन तो, बेटा...
उसने खुद मेरी पैंट नीचे खींची
और अपने मुँह में मेरा लंड भर लिया,
जैसे भूखी कुतिया हड्डी चबा रही हो।"
उसके होंठों का कसाव ऐसा था जैसे
मेरी नसों तक पहुँच रही हो।
फिर खुद उठ के बोली
‘अब तू लेट और बिना रोके मेरी चूत का भार झेल।’"
फिर अंकल मम्मी अब पूरा मदहोश थी
"और मैं?
मैं नीचे था
उसकी गांड मेरे मुँह पर,
और चूत मेरे लंड पर
उसने अपनी चूती ऐसे रगड़ी लंड से
जैसे भूसे पे माचिस जला रही हो।”
मम्मी अब किनारे पे आ चुकी थी अंकल के थोड़ा पास,
उसके रानों के बीच शायद कुछ और भीग रहा था —
पर वो अब भी बिना पलक झपकाए सुन रही थी।
फिर अंकल
अब मैं तब सुनाऊंगा जब मेरी दोस्त बोलेगी
मम्मी: सुनाइए ना uffffff
UNCle ab aaram se mere saamne mummy ki jangh ko sehla rhe the dost bolkar or mummy bas halki siskari bhar rhi thi
अंकल ने होंठ भींचे — और बोला:
"मैंने उसकी नाभि के नीचे की चमड़ी पकड़ ली थी —
और बोला ‘अब रांड, खुद को मेरी मर्दानगी में गाढ़ दे।’
वो हँसी और बोली, ‘मार इतना कि याद रहे तुझे कौन चूसे बगैर जिन्दा नहीं रह सकती।’"
"फिर जब मैंने उसे पलटा,
उसका चेहरा दीवार की तरफ,
उसके बाल खींच के गर्दन मोड़ी
और उसके कान में फुसफुसाया
‘अब तू मेरी औलाद बनाके ही जाएगी।’"
मम्मी ने ज़रा सी हरकत की
शायद सांस अटक गई हो,
या शायद खुद को और कस लिया हो।
कमरे में अब सिर्फ़ हवस नहीं,
एक ख़तरनाक चुप्पी भी थी।

Raj