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Fantasy बूढ़े लोगों को सेवा।
तीन दिन बाद

अनामिका को आखिर में रमा काका के साथ दूर एक खादर गांव में जान पड़ा। रमा काका हल्दी का भाई। अनामिका अब अपने तीसरे सेवा में लग गई। एक खंडार गांव और आलीशान एक जमाने की बड़ी हवेली में अनामिका आई। वहां उसने आराम किया। अब आगे क्या होगा वो उसे बाद में पता चलेगा।

रात के करीब ८ बजे थे। सभी ने खाना खा लिया। बाबा अपने झोपड़ी में चले गए। अब अनामिका और रमा काका थे हवेली में। रमा काका अनामिका के कमरे को खटखटाया।

"कौन ?" अनामिका ने पूछा।

"मैं रमा।" रमा काका ने कहा।

      अनामिका ने दरवाजा खोला। सामने रमा हाथ में शाल लिए खड़ा था।

"आप इतनी रात को ?"

"हां अनामिका। वैसे आप अकेली है इसीलिए मैं आया हूं आपका साथ देने।"

"नही नही। मेरी चिंता आप मत करिए। मैं वो थोड़ा थकी हुई हूं। पैर में भी थोड़ा दर्द सा हो रहा है।"

"आप एक काम करो मैं मसाज कर देता हूं।"

अनामिका बोली "नही नही। इसकी क्या जरूरत। आप बेकार में चिंता कर रहे है।"

"मैं कुछ नहीं सुनूंगा। दिव्या का जब पैर दुखता तब मेरे मसाज से ही उसे राहत पहुंचती। और वैसे भी दिव्या हो या अनामिका कोई फर्क नही पड़ता। दोनो एक ही है।"

       ये बात सुनकर अनामिका को दिव्या के विषय में रुचि बढ़ी और बोली "एक काम करो रमा तुम तेल लेकर आओ। आज तुम मसाज कर ही दो। मुझे दिव्या के विषय में जानना है।"

रमा बात मान गया और अपने कमरे से तेल लेकर अनामिका के कमरे में गया। ठंडी की वजह से अनामिका ने कमरा अंदर से बंद कर दिया। बिस्तर पे बैठी अनामिका ने अपने नाइट ड्रेस को थोड़ा ऊपर किया जिससे रमा को मसाज करने में आसानी हो।

"अनामिका एक काम करो। तुम लेट जाओ। मैं तुम्हारे पूरे पैर पर मसाज करूंगा। इस ड्रेस को ऊपर कर दो।"

"हां ठीक है।" अनामिका ने ड्रेस ऊपर किया।

        अनामिका के दूध का गोरा पैर काले रमा के आंखों के सामने दिखा। इतना गोरा और सुंदर पैर साथ ही साथ शरीर को नाइट ड्रेस में कैद था। दिव्या के नाइट ड्रेस में अनामिका हुस्न की परी लग रही थी। रमा ने जैसे ही तेल से पैर दबाया अनामिका को दर्द हुआ।

"Aaahhhh"

"अनामिका थोड़ा तो दर्द होगा लेकिन आगे चलकर दर्द खत्म हो जाएगा।"

"आप करिए जैसे आप चाहे।" अनामिका ने आंखे बंद करके कहा।

"तो बताइए क्या जानना है आपको दिव्या के बारे में।"

अनामिका ने आंखे खोली और बोली "क्या मैं यानी पिछले जन्म दिव्या जैसे ही दिखती थी ?"

"हां। आप ही पिछले जन्म की दिव्या है।"

"दिव्या का व्यवहार कैसा था ?" अनामिका ने पूछा।

"बहुत नेक दिल की थी दिव्या। सबका खयाल रखना और तो और अपनी खूबसूरती पर नाज़ रहता उसे।"

"आप उन्हें कैसे जानते है ?"

"जब दिव्या की शादी हुई थी उससे पहले भी मैं इस हवेली में था। आप यूं समझो को शादी हुई १९४० में और मैं इस हवेली मैं काम करता हूं 1905 से।"

"क्या आप 71 साल से इस हवेली में है ?"

"हां। मैं इस हवेली का मुख्य नौकर हूं।"

"दिव्या के जाने के बाद कितने सालो से ये हवेली खाली है।"

"करीब 25 साल से।"

अनामिका हैरान होकर पूछी "बाप रे। आप क्यों इस हवेली को छोड़ देते ?"

"इस हवेली ने मुझे रोटी दी है। भला कैसे छोड़ दूं। और तो और दिव्या की यादें इस हवेली में बसी है।"

"इसका कोई मालिक है ?" अनामिका ने पूछा।

"नही। अब तक नहीं था।"

"तो फिर आपको इस हवेली का मालिक बन जान चाहिए था।"

रमा हंसते हुए बोला "वफादारी को तोड़ना मुझे नहीं आता। इस हवेली को उसके मालिक को वापिस अब करूंगा।"

"लेकिन अभी तो आपने कहा इसका कोई मालिक नहीं।"

"मैंने कहा मालिक नहीं था लेकिन अब है।"

"कौन ?"

"तुम अब इस हवेली को मालकिन बनोगी।" रमा ने कहा।

अनामिका थोड़ा सा घबरा गई और बोली "वो कैसे ?"

"तुम ही दिव्या हो और इस हवेली की मालकिन।"

अनामिका धीमी आवाज में बोली "वो पिछला जन्म था अब इस जन्म में मैं अनामिका हूं।"

"तुम्हारा जन्म भी इसी मकसद से हुआ है।"

ये बड़ी बड़ी बातें अनामिका के दिमाग पर हावी होने लगा। वो पूछी "चलो मान लो ये हवेली मेरी है। तो फिर आप 25 सालो से रहते है इस खाली गांव और हवेली में तो ये पूरा गांव और हवेली सही मायने में आपका हुआ।"

"नही बिलकुल नहीं। अब ये तुम्हारा हुआ और इसमें पड़े खजाने भी तुम्हारे।"

"खजाना ?"

रमा बिस्तर से उठा और अनामिका का हाथ पकड़ते हुए कहा "आओ मेरे साथ।"

अनामिका कुछ न बोली और रमा के पीछे पीछे चल दी। रमा हाथ को पकड़े अनामिका को एक कमरे ले गया। उस कमरे में एक बड़ी सी तिजोरी थी। रमा ने तिजोरी खोला तो देखा कि इसमें लाखो रुपए और करोड़ के दामों में जेवर थे। इन सब को देख अनामिका का सिर जैसे हिल गया। एक तो पूरा गांव, हवेली और अब करोड़ो के जेवर अनामिका रातों रात जैसे करोड़पति बन गई।

"अब इन सब पर तुम्हारा हक है।" पीछे से बाबा ने कहा।

अनामिका ने बाबा को प्रणाम किया।

"बाबा ये सब ?"

"इसे स्वीकार लो अनामिका। वरना ये रमा की सेवा का अपमान होगा।"

अनामिका ने इन सारी संपत्ति को स्वीकार लिया और कहा "अब इन सबका क्या करें ?"

"ये तो मालिक की मर्जी।" बाबा ने अनामिका को कहा।

"क्या मैं इसे गांव में लगा दूं। एक घर भी नही बचा इस गांव में। इससे लोग यहां बसना शुरू करेंगे।"

"वक्त आने पर देख लेंगे। फिलहाल अब इस पूरे हवेली को जान लो क्योंकि अब इसकी मालकिन हो तुम और अब से रमा तुम्हारे साथ रहेगा।" इतना कहकर बाबा वहां से चले गए।

      अनामिका रमा काका की तरफ मुड़ी। रमा काका बोले "बहुत बहुत बधाई। अब तुम करोड़ो की मालकिन बन गई।"

"नही रमा। इन पैसों को अपने ऐशो आराम के लिए नहीं बल्कि लोगो की भलाई के लिए लगाना चाहती हूं। इस गांव में तुम इतने सालो से अकेले रहे। अब मैं इस गांव में लोगो को बसाऊंगी और उन्हे रोजगार दूंगी।"

"सच कहूं अनामिका इतना पैसा है यहां कि तुम पूरे 120 गांव को धनी कर सकती हो। इन सब के बावजूद भी पैसे खत्म नहीं होगा।"

"वो कैसे ?"

"इस गांव में एक और हवेली है को सुरेश की है। उसमे भी खजाने छिपे है।"

"उसके बारे में फिर कभी सोचेंगे। लेकिन मेरी एक बात मानोगे ?"

"बोलो ना अनामिका।"

"अब से तुम सुरेश के हवेली के मालिक।"

"लेकिन मैं ......"

"कुछ मत कहो। ये मेरा हुक्म है।" अनामिका ने हक जताते हुए कहा।

"माफ करना लेकिन मैं ये नहीं करूंगा।"

"क्यों ? क्या तुम नही चाहते कि तुम अमीर बनो और ऐशो आराम को जिंदगी गुजारो ?"

"मुझे क्यों ये सब दे रही है आप?"

"तुम्हारी वफादारी का इनाम।"

"मुझे सिर्फ तुम्हारे साथ रहना है। और कुछ नही। तुम्हारा इंतजार किया इतने सालो से। अगर कुछ इनाम देना है तो खोद का साथ दो। मुझे और मेरे भाई को जो प्यार दिया वो दो। को जिस्मानी सुख दिया वो दो।"

"तुम कहना क्या चाहते हो ?"

"बस मेरी आंखो के आंखे डालकर देखो। पिछले जन्म की सारी सच्चाई दिख जाएगी।"

   अनामिका रमा के आंखों में आंखें डालकर देखने लागी। रमा की आंखों से एक दिव्य रोशनी प्रगट हुई। उस रोशनी में अनामिका को अपने पिछले जन्म की तस्वीर दिखी। कैसे वो यानी दिव्या की मुलाकात हल्दी से हुई और कैसे दोनो घर से भागकर शादी किए और फिर कैसे रमा काका के साथ प्रेम और शारीरिक संबंध बने। हल्दी और रमा काका के साथ गुजारे वो संभोग के पल थे इस तस्वीर में। उस तस्वीर में दोनो से बिछड़ने का दर्द भरा लम्हा। कैसे रमा ने अकेले दिव्या के मृत शरीर और उनके बच्चो का अंतिम संस्कार किया और दिमाग से पागल हो चुके हल्दी को संभाला। ये सब देखकर अनामिका की आंखों से आंसू आ गए और वो फूट फूटकर रोने लगी। अनामिका को रोता देख रमा से रहा नही गया और वो अनामिका को संभालने के लिए आगे बढ़ा।

"मत रोइए अनामिका। मत रोइए अब दुख के दिन चले गए। अब तो आप हमारे पास है। हमारी मालकिन वापिस आ गई।"

"क्या प्यार इतना गहरा भी होता है किसी का ? क्या मोहोब्बत इतना जुनूनी होता है ? क्या प्यार इतना दर्द भी देता है ? आखिर कैसे मेरे इंतजार में रह लिए तुम ? सच में रमा तुम्हारे प्यार ने मुझे शब्दहीन कर दिया। मैं आज जान चुकी कि प्यार की हदे कितनी बड़ी होती है। एक सच्चा प्रेमी किस हद तक अपने प्यार को अंजाम दे सकता है। तुम्हे देखकर एहसास हो गया कि प्यार कोई जिस्मानी जरूरत नहीं बल्कि अपनो के प्रति समर्पण भावना भी है।" इतना कहकर अनामिका रमा काका के पैर छुने लागी।

रमा काका अनामिका को रोकते हुए "नही नही अनामिका ऐसा मत करो। ये गलत है। तुम्हारे पिछले जन्म के नेकदिली ने मुझे अच्छा इंसान बनाया। अगर गर्व करना है तो खुद पे करो। को इस जन्म में भी लोगो का भला कर रही हो। मेवा मणि और बजाने कितने की सेवा करोगी। दिल से कहूं तो इसी बात से मुझे तुम पर गर्व महसूस होता है।"

       दोनो एक दूसरे की आंखों में आंखे डाले खड़े थे। फिर रमा ने कहा "अब वक्त आ गया है अनामिका तुम्हारे फैसले का। क्या तुम मेरे और हल्दी के साथ बाकी की जिंदगी गुजारोगी ?"

"हां गुजारूंगी।"

     दोनो आज बहुत खुश थे। रमा अनामिका को कमरे में ले गया और उसे छोड़कर अपने कमरे में गया। अगली सुबह बाबा झोपड़ी से उठे और स्नान करके वापिस अपने झोपड़ी में लौटे। सुबह के ५ बजे थे। झोपड़ी की वापसी में देखा तो अनामिका और रमा सामने खड़े थे।  दोनो ने बाबा को प्रणाम किया।

   बाबा मुस्कुराते हुए पूछे "इतनी सुबह दोनो ?"

"बाबा आपको अपना फैसला सुनाना है।" अनामिका ने कहा।

"अच्छा तो बताओ क्या फैसला है ?" बाबा ने पूछा।

"मैं हल्दी और रमा के साथ रहने को तैयार हूं।"

"अरे वाह यह तो खुशी की बात है।"

"बाबा अब हम तीनो को किल्ला वापिस चलना चाहिए। हल्दी से मिलन का वक्त आ गया है।"

       तीनो उसी वक्त किल्ले के लिए निकल गए। आज अनामिका की हल्दी और रमा के साथ मिलन की रात होने वाली है। तीनो किल्ला पहुंचे। बाबा ने यज्ञ शुरू कर दिया। अनामिका अपने काम में लग गई। रमा काका अपने कमरे में गए।

      दिन बीता और रात आई। काल कोठरी में बैठा पागल बुड्ढा हल्दी था। अनामिका कोठरी की तरफ आगे बढ़ी। उसके साथ बाबा और रमा काका भी थे। अनामिका कोठरी के दरवाजे के पास जैसे पहुंची कि बाबा ने अनामिका का हाथ थाम लिया।

"क्या हुआ बाबा ? आपने रोका क्यों ?"

"इन सारे कपड़े को यहीं उतार दो।" इतना कहकर बाबा ने अनामिका के बदन से सारे कपड़े उतार दिए और कहा "जाओ अनामिका अपनी सेवा के अगले चरण को अंजाम दो।" इतना कहकर बाबा वहां से चले गए।

    रमा अनामिका का हाथ थामते हुए कहा "आप अनामिका अब हम दोनो कि दिव्या बनने का वक्त आ गया। आज की रात के बाद तुम अनामिका नही बल्कि दिव्या बन जाओगी।"

      काल कोठरी के अंधेरे में गुर्राता हुआ हल्दी के सामने रमा काका आया। रमा काका के साथ नग्न अवस्था में अनामिका थी। अनामिका को देखा तो देखता ही रह गया। बिलकुल दिव्या की तरह लग रही थी। उसे सामने देख पागलों की तरह हल्दी रोने लगा।

रमा काका हल्दी के पास आया और आंसू पोंछे हुए कहा "हमारी दिव्या आ गई बड़े भाई। आ गई।"

हल्दी बोला "नही ये दिव्या नही है। ये तो आंखो का वहम है।"

अनामिका बिना कुछ बोले हल्दी के पास आई और प्यार से हाथो से उसके गाल को सहलाते हुए "मैं आ गई हल्दी। तुम दोनो को अमानत और प्यार। अब कोई हमारे बीच नहीं आएगा।"

    अनामिका के छूते ही हल्दी पे असर पड़ने लगा। हल्दी को सच में दिव्या का एहसास हुआ। हल्दी ने हल्के से अनामिका के स्तन पे हाथ रखा और बोला "कितने साल हो गए संभोग किए। आज हम दोनो भाई के साथ स्भोग करोगी ?"

"हां लेकिन एक शर्त पर।"

हल्दी पूछा "कैसी शर्त ?"

"वो हल्दी मुझे वापिस चाहिए जो पहले मेरा हुआ करता था।खुद पे घमंड और मेरे सामने अपनी मर्दानगी का रुतबा दिखानेवाला हल्दी मुझे चाहिए।"

  हल्दी ने हल्के से अनामिका को बाहों में भर लिया और चेहरा अपनी और करके होठ को चूमने लगा। अनामिका के मुंह में खुद की जुबान डालकर जुबान को जुबान से मिलने लगा। अनामिका खो गई चुम्बन में। पीछे से रमा आया और अनामिका के नंगी पीठ को चाटने लगा।  अनामिका ने एक हाथ पीछे किया और रमा के लिंग को पकड़ा। लिंग को हल्के से हिलाने लगी। रमा ने एक हाथ से अनामिका के स्तन को दबाया। दूसरे हाथ से लिंग को नितंब में डाला। हल्दी अनामिमा को खुद के ऊपर लिंग पे बिठा दिया और खुद जमीन पर लेट गया। वहीं अनामिका के ऊपर rma चढ़ गया और लिंग को नितंब में पेलने लगा। अनामिका की योनि पर हल्दी का लिंग धक्का दे रहा था। अनामिका ने हल्दी के मुंह से खुद के मुंह को अलग किया। पीछे से रमा धक्का दे रहा था। दर्द से अनामिका चिल्लाने लगी। दोनो तरफ से लिंग का टीला वार हुआ। रमा जीभ से अनामिका के गर्दन को चाटने लगा। अनामिका के दो बड़े स्तन को रमा दबा रहा था।

"Aaahhhh हल्दी और रमा कैसा लग रहा है तुम्हे ?" अनामिका ने पूछा।

"सच कहूं तो पुराने दिन वापिस याद आ गए। ऐसे ही तुम चिल्लाती थी। क्यों हल्दी भाई ?" रमा ने धक्का देते हुए कहा।

"हां। इतना पेलते थे कि पहली बार में दिव्या बेहोश हो गई थी। फिर तो कई दफा गंटो तक दोनो ने में लिए फिर आगे चलकर दिव्या को आदत पड़ गई थी।"

"ये संभोग महसूस करके लग रहा है कि तुम दोनो दिव्या का क्या हाल अर्ज थे।"

हल्दी अनामिका के स्तन पे जीभ घूमते हुए "ऐसे ही तू हमारे चार बच्चो को मां बनी। "

"आआआआह्हह्ह सच में बड़े ज़ालिम हों तुम दोनो।"

रमा बोला "लेकिन तुम भी कम नहीं। इतने बरसों का इंतजार किया। अब आसानी से तुझे यहां से हिलनेन्नाही देंगें। इंतजार और अकेलेपन का एक एक करके हिसाब लेंगे।"

हल्दी और रमा लंबी संभोग सत्र के बाद झड़ गए। दोनो रुके नहीं। अपनी अपनी जगह बदल ली। हल्दी नितंब में तो रमा ने  योनि के लिंग घुसाया और खूब तेजी से सभोग का आनंद ले रहे थे। करीब ५ घंटे बीते और तीनो का संभोग तब जाकर कुछ देर के लिए थम गया। तीनो कुछ वक्त तक साथ में सो रहे थे। हल्दी का दिमाग अब पूरी तरह से ठीक हो गया।  सुबह सुबह ५ बजे तीनो की नींद खुली और तीनो बैठ गए बातें करने। अभी भी अंधेरा था उजाला होने में वक्त था। हल्दी कुछ देर ऐसे ही अनामिका की योनि का सेवन कर रहा था। रमा अनामिका के स्तन से खेल रहा था।

"तो फिर अब आगे क्या करना है ?" हल्दी ने पूछा।

"अब यहां रहेंगे और क्या ?" अनामिका ने कहा।

"नही। बिलकुल नहीं। सालो ये इस काल कोठरी में रहा। मुझे कुछ दिन के लिए बाहर रहना है। हम  हवेली चलेंगे।"

तभी रमा बोला "नही। बिलकुल नहीं। मैं सालो से वीरान से गांव और हवेली में रहा। मुझे कुछ दिन बाहर रहना है।"

   हल्दी और रमा अपने अपने बहस में लग गए। दोनो बहस करने लगे की रहना कहा है।

"सुनो सुनो। मेरे पास इसका हल है।"

"क्या ?" दोनो ने पूछा।

"हम कुछ दिनों के लिए विदेश में चलेंगे।"

"वह विदेश ?" दोनो खुश हुए।

"हां। मैं तुम दोनो मेवा और मणि विदेश चलेंगे। कुछ दिन वहां मजे करेंगे।"

"मुझे चलना है। वहां सुना है गोरी औरतें बहुत है। किसी एक को अपने पास बुलाएंगे और खूब उसे प्यार करेंगे।" रमा ने कहा।

अनामिका रमा का कान पकड़ते हुए बोली "नही। तुम्हारे अलावा बाकी तीनों बुड्ढे गोरियों के मजे लेंगे।"

"वो क्यों ?" रमा ने पूछा।

"अपने पति को किसी और के साथ नही देखनेवाली।" अनामिका ने कहा।

"अभी शादी थोड़ी ना हुई है हमारी।" रमा ने ऐसे ही बिना समझे बोल दिया।

"बेवकूफ मुझे तुम्हारे साथ शादी करनी है।"

      अनामिका की ये बात सुनकर रमा और हल्दी चौक गए।

"लेकिन तुम मुझसे शादी क्यों करना चाहती हो ? तुम हल्दी से शादी करो।"

"नही रमा। हल्दी से मेरी पिछले जन्म में शादी हुई। दिव्या के मारने के बाद जिस श्रद्धा और प्रेम की ज्योत जलाकर तुमने धन पैसोटकी लालसा नही की। तुमने मेरा इंतजार किया और मेरे सामने आने से तुमने मुझे तब तक नहीं छुआ जब तक हल्दी मेरे पास न आए। ये सब एक सच्चा प्रेमी ही कर सकता है। इसका मतलब ये नही कि हल्दी मुझसे सच्चा प्यार नही करता। हल्दी मुझसे बहुत प्यार करता है। लेकिन हल्दी रमा ने शादी का सुख नहीं पाया। और मुझे रमा में मेरा जीवन साथी दिखता है।"

हल्दी अनामिका को बाहों में भरते हुए बोला "तुम मेरी रमा की ही पत्नी बनोगी। मेरे रमा से तुम्हे शादी करनी ही होगी।"

    तीनो एक दूसरे से लिपट गए। सुबह अनामिका ने बाबा को अपना फैसला सुनाया। दो दिन बाद रमा और अनामिका को शादी हो गई। इससे अनामिका के सेवा का समर्पण पूरा हुआ।

        फिर बाबा ने अनामिका को अपने पास बुलाया।

"तो अनामिका बताओ आगे क्या करना है तुम्हे ?"

"बाबा वो मैं कुछ दिनों के लिए विदेश जानेवाली हूं। जैसे आपने योजना बनाई।"

"बिल्कुल सही। अब तुम्हे लंदन जाकर मेरा काम करना होगा। वहां तुम्हे जेनिफर नाम की एक महिला को अफ्रीका भेजना होगा।"

"बाबा एक सवाल पूछूं ?"

"पूछो।"

"ये सब क्या चल रहा है ? हम क्या करनेवाले है ?"

"अनामिका मेरी भविष्यवाणी है कि अगले ५ सालो में एक बड़ी समस्या गांव में आनेवाली है। एक बड़ी संख्या में चरस गांजा का धंधा होनेवाला है। अगर उसे न रोका तो पूरे देश में ये धंधा फेल जाएगा। उसे रोकने के लिए मुझे एक फौज की जरूरत हैं। जेनिफर को अफ्रीका भेजकर वहां से दो लोगो को लेकर आना है। वो दो लोग विश्वयुद्ध में युद्ध लड़ चुके है। अब उन्हीं से करीब ४० की सेना बनेगी। जो इस मिट्टी की हिफाजत करेंगे।"

"मैं तैयार हूं बाबा। अब मुझे इजाजत दे। मैं और बाकी सब लंदन जाएंगे।"

बाबा ने हंसते हुए कहा "कही वहां की गोरियों की सैर करवाओगी बुड्ढो से?"

"अब जो काम करनेवाले है उसके लिए थोड़ा आनंद और मजे की जिंदगी तो जी ले मेरे बुड्ढे लोग।"

"हां हां स्त्री प्रेम विलास भोग भी तो जीवन का हिस्सा है। अब तो करोड़ो की मालकिन हो तुम। जाओ उन लोगों को कुछ दिनों के लिए भोग विलास का आनंद लेने दो।"


        एक महीने में सभी लंदन पहुंचे। वहां अनामिका ने बड़ा आलीशान बंगला लिया। सभी वहां रहने लगे। सभी खुश थे। महंगे खाना, सुविधा से लैस कमरे। लेकिन उन चार बुड्ढों में कोई बदलाव न आया। पुराने चितड़े कपड़े। अब किसी को क्या बड़ा जा सकता है। बाहर भले कुछ ठीक ठाक कपड़े पहनते लेकिन घर में पुराने सड़े कपड़े।

                                       २ हफ्ते बाद।


        आधी रात अनामिका और रमा साथ में सो रहे थे। दोनो के बदन पे कपड़े नही थे। दोनो रोज की तरह सेक्स करके सो रहे थे। तभी अचानक से एक के आहट की आवाज अनामिका को आई। अनामिका ने नाइटी पहना और बाहर बगीचे में किसी अदृश्य परछाई को देखा। कुछ देर में वो परछाई ने इंसानी रूप लिया। अनामिका ने देखा कि वो आदमी थोड़ी दूरी में खड़ा था।

उस आदमी ने कहा "तुम अनामिका एक अमीर करोड़पति और बुड्ढे लोगो की प्रेमी। तुम्हे क्या लगता है कि ये सेवा के बदले तुम करोड़ो की मालकिन बनी। दरअसल बाबा ने तुम्हे इसी लिए नही चुना। सेवा के बदले एक भयानक काम करवाएंगे तुमसे। हो सकता है इसमें जान को खतरा है लेकिन इसकी सफलता से तुम लाखो की जान बचा सकती हो।" उस आदमी का असल नाम मदारी था।


"आप कौन है अनामिका ने पूछा।"

       वो आदमी अनामिका के सामने आया। करीब ८० साल का बुड्ढा इंसान। दुबला पतला और बहुत की काले रंग का इंसान।

"मेरा नाम मदारी बाबा है। और मैं एक avengers के लिए आया हूं।"



                                     THE END
                                            Of
                                     First part


                     Jennifer and old men coming soon.......
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RE: बूढ़े लोगों को सेवा। - by Basic - 29-06-2025, 12:06 PM



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