09-06-2025, 12:02 PM
गरम रोज (भाग 15)
जैसे ही हमारी कार स्टार्ट हुई, घनश्याम बोला, "भलोटिया से क्या बातें हो रही थीं?"
"कककुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं।" अचानक उसके सवाल से मैं हकलाते हुए बोली।
"कुछ भी नहीं तो क्या तुम अपने आप से बात कर रही थी? मैं क्या तुम्हें इतना बेवकूफ नजर आता हूं?"
"जब जानते ही हैं तो पूछ क्यों रहे हैं? वहां और क्या बात हो सकती है, वह बताने की जरूरत है क्या?" मैं तल्खी से बोली।
"बता दोगी तो तुम्हारी ज़ुबान घिस जाएगी क्या?"
"तो सुनिए। वह मेरी सहेलियों के बारे में पूछ रहा था और मैंने बता दिया।" मैं बेझिझक बोली।
"क्या बताई?"
"यही कि सबके सब मेरी तरह ही हैं। कोई अनाड़ी नहीं हैं। सबके सब खेली खाई हैं। और कुछ पूछना है क्या?" मैं बिंदास बोलने लगी। जानती थी कि यह हरामी बिना सुने मेरा पीछा छोड़ने वाला नहीं था।
"फिर तो यह भी बोला होगा कि मुझसे मिलवाओ।"
"यह भी पूछने की बात है क्या? औरतों का रसिया, मुझ जैसी लड़कियों से मिलने का मौका भला क्यों छोड़ने वाला था।"
"तुम क्या बोली?"
"बोल दी, मिलवा दूंगी, बाकी आप देख लेना।"
"हरामजादी, अब अपनी सहेलियों को परोसने की सोच रही हो?" घनश्याम बोला।
"आपने क्या किया मेरे साथ? मुझे भलोटिया के सामने परोसा ही तो था ना?" मैं उसके आरोप से गुस्से में आ गयी।
"बहुत जुबान चलने लगी है तुम्हारी।" घनश्याम मेरी बात से खिसिया गया था।
"सब आपकी मेहरबानी है। सच बोली तो बुरा लग गया?" मैं भी चढ़ कर बोलने लगी थी।
"मुझे बुरा लगा या अच्छा इससे तुमको क्या। भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारी सहेलियां। तुम सबकी सब एक नंबर की छिनाल हो।" घनश्याम उखड़ गया था।
"अच्छा? अगर मेरी सहेलियों के साथ सोने का मौका आपको मिलेगा तो आप पीछे रहेंगे क्या? तब तो सब सहेलियां बड़ी अच्छी लगेंगी। बड़े आए छिनाल कहने वाले।" मैं चिढ़ाते हुए बोली। घनश्याम मुझे घूर कर चुप रह गया, क्योंकि मैंने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था। सच ही तो कहा था मैंने। सब साले मर्द एक ही तरह के हैं। बिस्तर गरम करने को मिल जाएं तो सब ठीक, और न मिले तो सब गलत। हरामी कहीं का। घनश्याम के मुंह में तो ताला लग गया था लेकिन मेरे मन में उथल-पुथल मची हुई थी। मैं आज की घटनाओं के बारे में सोच रही थी। सबसे पहले घनश्याम ने ही खंडहर में मेरे साथ मुंह काला किया, फिर कॉलेज के गेटकीपर रघु और उसके भाई जधु की बारी बारी से चार बार चुदाई और फिर यहां गंजू के घर में तीन लोगों द्वारा मेरे तन की नुचाई, कुल मिलाकर एक ही दिन में पांच लोगों द्वारा सात बार संभोग में लिप्त रही। सबके सब तीस पैंतीस साल से लेकर ताकरीबन पैंसठ साल के एक से बढ़कर एक चुदक्कड़। तो इस तरह मेरे तन से खेलने वाले अबतक सात लोग हो चुके थे। जैसे जैसे लोग मेरे तन से खेलने लगे थे, वैसे वैसे मेरी वासना की भूख बढ़ती जा रही थी। अभी ही की मेरी हालत देखिए, सुबह से लेकर अभी तक पांच लोगों ने सात बार, अलग अलग तरीके से मेरे तन से अपनी भूख मिटाई, लेकिन उससे जो थोड़ी बहुत शारीरिक तकलीफ़ हुई, उसे नजरंदाज कर दिया जाए तो मेरी शारीरिक भूख में और बढ़ोतरी ही हुई। अभी भी मेरे अंदर एक आग सुलग रही थी। हे भगवान, यह मुझे क्या हो रहा था। अगर यही स्थिति रही तो आगे चलकर कोई राह चलता आदमी भी बड़े आराम से मुझे अपनी हवस का शिकार बना सकता था। यह सोच मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। नादान उम्र में इस तरह सेक्स का चस्का जिसे लग जाए, वह चस्का उसे कहां तक ले जाएगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल था। उस उम्र में मुझे समझ नहीं आ रहा था लेकिन अब समझ में आ रहा है।
मेरे मन में भलोटिया का मेरी सहेलियों से मिलवाने वाला प्रस्ताव भी घूम रहा था। मैंने हामी तो भर ली थी लेकिन मेरी सहेलियों को कैसे मिलवाऊं, यह एक प्रश्न मुझे खाए जा रहा था। मिलवा भी दूंगी तो उसके बाद क्या होगा? अगर मेरी सहेलियों के साथ कुछ ऐसा हुआ जो उन्हें पसंद नहीं आया तो क्या होगा? भलोटिया जैसे हवस के पुजारी की गंदी नीयत जाहिर होने के बाद उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी? कहीं भलोटिया अपनी अनियंत्रित गंदी सोच के वशीभूत सीधे सीधे गंदा प्रस्ताव उनके सामने रख दे तो क्या होगा और यदि उसका प्रस्ताव उन्हें पसंद न आया तो क्या होगा? अधिक संभावना यही थी कि भलोटिया जैसे मोटे, भद्दे बूढ़े के प्रति वितृष्णा का भाव उनके मन में आएगा और उसके गंदे प्रस्ताव को ठुकराने के साथ ही उनकी दृष्टि में मेरी छवि बेहद खराब हो जाएगी। निश्चित तौर पर वे मुझे किसी दलाल की तरह देखने लगेंगी। लेकिन यह भी हो सकता है जैसा मैं सोच रही हूं वैसा न हो। यह सब निर्भर करता है भलोटिया के प्रस्ताव की विधि पर। जहां तक भलोटिया के बारे में मुझे समझ में आया कि उसके जैसा घाघ औरतखोर इस फन में अवश्य माहिर होगा। खैर अब तो मैंने अपनी सहमति दे दी थी, इसका मतलब ऊखल में सिर दे दिया था, आगे जो भी परिणाम होगा उसके लिए भी मुझे तैयार रहना पड़ेगा। फिर भी मुझे नब्बे प्रतिशत विश्वास था कि भलोटिया बड़ी चालाकी से जाल फेंकेगा और अवश्य सफल होगा और इसी में मेरी भलाई थी। मेरे विश्वास करने का एक और कारण था मेरी सहेलियों का चरित्र। मुझे अच्छी तरह से मालूम था कि उनका चरित्र कैसा है। बस सिर्फ भलोटिया का व्यक्तित्व ही आड़े आ रहा था। मोटा, तोंदियल, साठ पैंसठ साल का बूढ़ा। किसी भी कोण से आकर्षक नहीं था। लेकिन उसकी चतुराई पर ही सबकुछ निर्भर था। हे ईश्वर, अब तू ही मालिक है।
जैसे ही हमारी कार स्टार्ट हुई, घनश्याम बोला, "भलोटिया से क्या बातें हो रही थीं?"
"कककुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं।" अचानक उसके सवाल से मैं हकलाते हुए बोली।
"कुछ भी नहीं तो क्या तुम अपने आप से बात कर रही थी? मैं क्या तुम्हें इतना बेवकूफ नजर आता हूं?"
"जब जानते ही हैं तो पूछ क्यों रहे हैं? वहां और क्या बात हो सकती है, वह बताने की जरूरत है क्या?" मैं तल्खी से बोली।
"बता दोगी तो तुम्हारी ज़ुबान घिस जाएगी क्या?"
"तो सुनिए। वह मेरी सहेलियों के बारे में पूछ रहा था और मैंने बता दिया।" मैं बेझिझक बोली।
"क्या बताई?"
"यही कि सबके सब मेरी तरह ही हैं। कोई अनाड़ी नहीं हैं। सबके सब खेली खाई हैं। और कुछ पूछना है क्या?" मैं बिंदास बोलने लगी। जानती थी कि यह हरामी बिना सुने मेरा पीछा छोड़ने वाला नहीं था।
"फिर तो यह भी बोला होगा कि मुझसे मिलवाओ।"
"यह भी पूछने की बात है क्या? औरतों का रसिया, मुझ जैसी लड़कियों से मिलने का मौका भला क्यों छोड़ने वाला था।"
"तुम क्या बोली?"
"बोल दी, मिलवा दूंगी, बाकी आप देख लेना।"
"हरामजादी, अब अपनी सहेलियों को परोसने की सोच रही हो?" घनश्याम बोला।
"आपने क्या किया मेरे साथ? मुझे भलोटिया के सामने परोसा ही तो था ना?" मैं उसके आरोप से गुस्से में आ गयी।
"बहुत जुबान चलने लगी है तुम्हारी।" घनश्याम मेरी बात से खिसिया गया था।
"सब आपकी मेहरबानी है। सच बोली तो बुरा लग गया?" मैं भी चढ़ कर बोलने लगी थी।
"मुझे बुरा लगा या अच्छा इससे तुमको क्या। भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारी सहेलियां। तुम सबकी सब एक नंबर की छिनाल हो।" घनश्याम उखड़ गया था।
"अच्छा? अगर मेरी सहेलियों के साथ सोने का मौका आपको मिलेगा तो आप पीछे रहेंगे क्या? तब तो सब सहेलियां बड़ी अच्छी लगेंगी। बड़े आए छिनाल कहने वाले।" मैं चिढ़ाते हुए बोली। घनश्याम मुझे घूर कर चुप रह गया, क्योंकि मैंने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था। सच ही तो कहा था मैंने। सब साले मर्द एक ही तरह के हैं। बिस्तर गरम करने को मिल जाएं तो सब ठीक, और न मिले तो सब गलत। हरामी कहीं का। घनश्याम के मुंह में तो ताला लग गया था लेकिन मेरे मन में उथल-पुथल मची हुई थी। मैं आज की घटनाओं के बारे में सोच रही थी। सबसे पहले घनश्याम ने ही खंडहर में मेरे साथ मुंह काला किया, फिर कॉलेज के गेटकीपर रघु और उसके भाई जधु की बारी बारी से चार बार चुदाई और फिर यहां गंजू के घर में तीन लोगों द्वारा मेरे तन की नुचाई, कुल मिलाकर एक ही दिन में पांच लोगों द्वारा सात बार संभोग में लिप्त रही। सबके सब तीस पैंतीस साल से लेकर ताकरीबन पैंसठ साल के एक से बढ़कर एक चुदक्कड़। तो इस तरह मेरे तन से खेलने वाले अबतक सात लोग हो चुके थे। जैसे जैसे लोग मेरे तन से खेलने लगे थे, वैसे वैसे मेरी वासना की भूख बढ़ती जा रही थी। अभी ही की मेरी हालत देखिए, सुबह से लेकर अभी तक पांच लोगों ने सात बार, अलग अलग तरीके से मेरे तन से अपनी भूख मिटाई, लेकिन उससे जो थोड़ी बहुत शारीरिक तकलीफ़ हुई, उसे नजरंदाज कर दिया जाए तो मेरी शारीरिक भूख में और बढ़ोतरी ही हुई। अभी भी मेरे अंदर एक आग सुलग रही थी। हे भगवान, यह मुझे क्या हो रहा था। अगर यही स्थिति रही तो आगे चलकर कोई राह चलता आदमी भी बड़े आराम से मुझे अपनी हवस का शिकार बना सकता था। यह सोच मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। नादान उम्र में इस तरह सेक्स का चस्का जिसे लग जाए, वह चस्का उसे कहां तक ले जाएगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल था। उस उम्र में मुझे समझ नहीं आ रहा था लेकिन अब समझ में आ रहा है।
मेरे मन में भलोटिया का मेरी सहेलियों से मिलवाने वाला प्रस्ताव भी घूम रहा था। मैंने हामी तो भर ली थी लेकिन मेरी सहेलियों को कैसे मिलवाऊं, यह एक प्रश्न मुझे खाए जा रहा था। मिलवा भी दूंगी तो उसके बाद क्या होगा? अगर मेरी सहेलियों के साथ कुछ ऐसा हुआ जो उन्हें पसंद नहीं आया तो क्या होगा? भलोटिया जैसे हवस के पुजारी की गंदी नीयत जाहिर होने के बाद उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी? कहीं भलोटिया अपनी अनियंत्रित गंदी सोच के वशीभूत सीधे सीधे गंदा प्रस्ताव उनके सामने रख दे तो क्या होगा और यदि उसका प्रस्ताव उन्हें पसंद न आया तो क्या होगा? अधिक संभावना यही थी कि भलोटिया जैसे मोटे, भद्दे बूढ़े के प्रति वितृष्णा का भाव उनके मन में आएगा और उसके गंदे प्रस्ताव को ठुकराने के साथ ही उनकी दृष्टि में मेरी छवि बेहद खराब हो जाएगी। निश्चित तौर पर वे मुझे किसी दलाल की तरह देखने लगेंगी। लेकिन यह भी हो सकता है जैसा मैं सोच रही हूं वैसा न हो। यह सब निर्भर करता है भलोटिया के प्रस्ताव की विधि पर। जहां तक भलोटिया के बारे में मुझे समझ में आया कि उसके जैसा घाघ औरतखोर इस फन में अवश्य माहिर होगा। खैर अब तो मैंने अपनी सहमति दे दी थी, इसका मतलब ऊखल में सिर दे दिया था, आगे जो भी परिणाम होगा उसके लिए भी मुझे तैयार रहना पड़ेगा। फिर भी मुझे नब्बे प्रतिशत विश्वास था कि भलोटिया बड़ी चालाकी से जाल फेंकेगा और अवश्य सफल होगा और इसी में मेरी भलाई थी। मेरे विश्वास करने का एक और कारण था मेरी सहेलियों का चरित्र। मुझे अच्छी तरह से मालूम था कि उनका चरित्र कैसा है। बस सिर्फ भलोटिया का व्यक्तित्व ही आड़े आ रहा था। मोटा, तोंदियल, साठ पैंसठ साल का बूढ़ा। किसी भी कोण से आकर्षक नहीं था। लेकिन उसकी चतुराई पर ही सबकुछ निर्भर था। हे ईश्वर, अब तू ही मालिक है।