03-05-2025, 05:53 PM
ये सब शुरू हुआ उस गर्मी के एहसास से।
ना स्टोव की गर्मी थी, ना दोपहर की धूप जो फर्श की टाइल्स को तपाती है।
ये नज़रों की गर्मी थी। चुपचाप, ठहरी हुई, भारी। ?️?️?
साक्षी ने उसे तब महसूस किया जब उसने वो लैवेंडर नाइटी पहनी — जो पंखा बंद होने पर उसकी जांघों से चिपक जाती थी। वही जिसे पवन मज़ाक में उसका "danger dress" कहता था। वो पलंग के नीचे से अपने बेटे की प्लास्टिक बॉल उठाने झुकी, कमर मुड़ी, घेर ऊपर चढ़ गया थोड़ा। जैसे ही उठी, उसने वो महसूस किया।
जैसे किसी ने पीठ पर साँस ली हो। जैसे कुछ पवित्र और मना किया गया उसके आर-पार हो गया हो। पेट में अजीब हलचल हुई।
उसने कॉरिडोर की तरफ देखा।
कुछ नहीं। बस रामू के कमरे के पास का परदा हिल रहा था। ??️?
लेकिन उस दिन कुछ बदल गया। जैसे कोई परत उतर गई हो। जैसे कोई अनदेखी नज़र उसकी खुशबू की तरह पीछे-पीछे चलने लगी हो। जैसे कोई भूला हुआ आईना अचानक सामने आ खड़ा हो और उसमें एक पुरानी, भूखी औरत दिख जाए — वो जिसे साक्षी ने सालों पहले ज़मीन में गाड़ दिया था।
क्या ऐसा लगता है जब कोई फिर से तुम्हें देखे? एक माँ नहीं, एक बीवी नहीं... बल्कि एक औरत की तरह? एक जिस्म की तरह?
उस रात, जब वो आईने के सामने बाल ब्रश कर रही थी, उसने अपने आपसे बुदबुदाया, "वो मुझे देख रहा है। मुझे महसूस हो रहा है।"
पवन बाथरूम में था, बेसुरा गाना गा रहा था और पानी के छींटे उड़ा रहा था। उनका बेटा सो रहा था, हाथ-पाँव फैलाकर, गहरी और तेज़ साँसों के साथ। ???
उसने अपना निचला होंठ हल्के से दबाया। एक भूली-बिसरी याद चमकी।
**SS... सूथु साक्षी।**
वो नाम जैसे मन में गूंजा। कॉलेज के दिन। नोटबुक्स के पीछे फुसफुसाकर कहा गया, लाइब्रेरी की डेस्क और बाथरूम की दीवारों पर घटिया हैंडराइटिंग में लिखा गया। उस नाम ने उसका पीछा किया था — जैसे कोई अफ़वाह, कोई गाली, और कोई दुआ एक साथ। लड़के उसे बस इसीलिए क्लास तक जाते देखते थे, कि उसकी कमर की चाल और छाती की उछाल देख सकें।
वो नाम क्रूर नहीं था। वो... सटीक था। ???
पहले उसे उससे नफ़रत थी। जब भी सुनती थी, शर्म से गाल जलने लगते थे। फिर धीरे-धीरे वो उस नाम में घुस गई। उसे अपना बना लिया। जैसे कोई परफ़्यूम। जैसे कोई कवच। जैसे किसी ने कहा हो — हाँ, देखो मुझे। हिम्मत है तो झेलो।
**मुझे वो अटेंशन अच्छा लगता था।** उन आँखों की गर्मी जो मुझे देखती थीं — उसमें मैं ज़िंदा महसूस करती थी। चाही हुई। ख़तरनाक। ज़िंदा। कोई थी मैं। कोई जिसे चाहा जाता था।
वो लड़की — जो पलट कर मुस्कुरा देती थी उस लड़के को जो ज़्यादा देर घूरता था — वो कहीं पत्नी, माँ, रसोइया, साफ़-सफ़ाई वाली इन लेयर्स में दब गई थी। उसकी जाँघों की गर्मी अब किसी दूध उबालने के बर्तन में भाप बन चुकी थी। उसकी साँस अब बस बच्चों के ज़िद पूरे करने में खर्च होती थी।
**लेकिन रामू की नज़र... उसने उसे खोद कर बाहर निकाला।**
**कब से नहीं महसूस हुआ वो करंट? वो जो जांघों के बीच धड़कता है — सिर्फ़ इसीलिए कि कोई मुझे चाहता है? ज़रूरत से नहीं, आदत से नहीं — वाक़ई चाहता है।** बिना कहे, बिना छुए। बस नज़र से। किसी को तुम बस इसीलिए अच्छे लगो क्योंकि तुम चलती हो, साँस लेती हो, और मौजूद हो — उस एहसास में बिजली होती है।
अगली सुबह, उसने एक हल्के नेक वाला कॉटन ब्लाउज़ पहना — फिका पीच रंग का। कुछ ज़्यादा नहीं, पर इतना था कि कमर पर कसा हुआ लगे और गर्दन के पास थोड़ा ढीला, जिससे झुकने पर कुछ सरक जाए। उसके कानों में झुमके भी थे — पुराने, लेकिन आज बड़े प्यार से पहने। जब उसने कॉरिडोर बुहारा, उसने रामू के कमरे के सामने जानबूझ कर धीरे चलना शुरू किया। ???
उसे देखने की ज़रूरत नहीं थी। उसे महसूस हो रहा था। उस परदे के उस पार।
देखता हुआ।
परखता हुआ।
पूजता हुआ।
और वो... वो खुद को जैसे एक वेदी पर चढ़ा रही थी। जैसे वो रोज़ एक छोटा-सा त्याग कर रही हो — अपनी लाज, अपनी चाल, अपनी मासूमियत — बस इसलिए ताकि कोई दूर बैठा आग में हाथ सेंक सके।
**अगर वो देख रहा है, तो देखे।** देखे कि जिसे पवन हल्के में लेता है, वो क्या चीज़ है। देखे कि चाहना कैसा लगता है — वो भी उस चीज़ को जो बस हाथ से बाहर हो। देखे कि उसकी त्वचा अब भी सुलग सकती है।
उस दोपहर, जब उसने कपड़े सुखाए, उसने अपनी पेटीकोट और ब्लाउज़ रामू की खिड़की की तरफ मुँह करके टाँगे। हवा चली — कपड़ा फड़फड़ाया, जैसे कोई छेड़। कपड़ा तार से चिपका, फिर धीरे-धीरे उठ गया, जिससे लेस और उसके curve की झलक मिली। ??? उसकी साँस धीमी हो गई थी, लेकिन धड़कन उतनी ही तेज़। वो जानती थी — रामू देख रहा है। शायद बैठा है खिड़की के पास, आँखों में भूख और होठों पर चुप्पी लिए।
फोन बजा। कॉलेज ग्रुप से मैसेज था।
**Remember Soothu Sakshi?** किसी ने भेजा था, एक हँसने वाली इमोजी के साथ।
साक्षी मुस्कुराई। उंगलियाँ कीबोर्ड पर रुकीं।
**"She’s back,"** उसने फुसफुसाया।
वो पुरानी लड़की — वो शरारती मुस्कान वाली, जिसे देखा जाना अच्छा लगता था। जो दूसरों की नज़र को अपना स्टेज बना लेती थी। जिसने अपनी ही नज़र से अपने जिस्म को प्रेम करना सीखा था। वो वापस आ चुकी थी। वो जिसे उसकी माँ ने बार-बार डांटा था — टाँगें ढँक, छाती छिपा, नज़र झुका — वही लड़की अब फिर से खुल रही थी।
**शायद मुझे बस एक वजह चाहिए थी उसे जगाने की। और शायद रामू की नज़र वही है — एक आईना। जो कहता है, हाँ, तू अब भी वही है। वही आग। वही लपट।**
उस शाम, जब वो फिर रामू के कमरे के सामने से गुज़री — वो रुकी।
उसने अपनी साड़ी की प्लीट्स धीरे-धीरे ठीक कीं। कपड़ा कूल्हे पर खींचा, थोड़ा ज़्यादा कस के खोंसा। अपनी चोटी को झटका, जिससे बालों से हल्की महक फिज़ा में तैरी। हर हरकत आम दिखती थी — अगर कोई आम तरीक़े से देखे।
लेकिन रामू के लिए — वो एक प्रार्थना थी। एक इजाज़त। एक न्यौता। ???
परदा हिला। हल्का-सा। बस उतना कि यक़ीन हो जाए। उतना कि साक्षी का गला सूख जाए, और उसके पेट में फिर से वो गर्मी कुलबुलाए।
उसका दिल धड़कने लगा। डर से नहीं। ताक़त से। जैसे कोई देवी फिर से जाग गई हो, जिसे सालों से किसी मंदिर में बंद कर दिया गया था।
और उसकी मुस्कान — जंगली, जानकार, भूखी — लौट आई। होठों के कोनों से लपकती हुई। अब उसमें सिर्फ़ शरारत नहीं थी, चुनौती भी थी।
**मैं सिर्फ एक नज़र से उसे तबाह कर सकती हूँ। घुटनों पर ला सकती हूँ। और मज़े की बात? वो चाहता भी यही है।** उसकी नज़रों की तपिश अब मेरी त्वचा में रच गई है। मैं अब उस खेल की रानी हूँ — और वो, मेरा सबसे वफ़ादार दर्शक।
उसने कुछ नहीं कहा। लेकिन उसके अंदर, वो नाम फिर से गूंजा:
**Soothu Sakshi।**
वो वापस आ चुकी थी। और उसके पास अब एक audience थी। ????
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बारिश आई बिना किसी चेतावनी के।
एक ज़ोरदार बिजली की गड़गड़ाहट घर के ऊपर से लहराई, और फिर जैसे आसमान फट गया हो — बारिश इतनी तेज़ कि सब कुछ बहा ले जाए। साक्षी फर्श से उठ बैठी जहाँ वो अपने बेटे के साथ आधी नींद में लेटी थी। उसका शरीर तापमान के बदलते ही जाग गया, मन से पहले। वो भागी बालकनी की ओर, दिल धड़कता हुआ।
"मेरे कपड़े!" उसने बड़बड़ाते हुए बालकनी का दरवाज़ा खोला। ?️?⚡
ठंडी फुहार ने उसके चेहरे पर थप्पड़ मारा। उसकी साड़ी टांगों से चिपक गई जैसे किसी ने उसे पकड़ रखा हो। नंगे पैर बालकनी में कदम रखते ही उसकी नज़र कपड़ों की डोरी पर गई। खाली।
उसकी सारी साड़ियाँ, ब्लाउज़, पेटीकोट्स, ब्रा, पैंटीज़ — सब ग़ायब। उसकी पसंदीदा बैकलेस ब्लाउज़, जो उसने शादी की पहली सालगिरह पर पवन के लिए पहना था, वो भी नहीं थी। हल्की पीली पैंटी, जिसमें उसे अपनी कमर सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगती थी — वो भी गायब।
उसकी नज़रें सिकुड़ गईं। उसे याद था — दो घंटे पहले तक वो लाइन कपड़ों से भरी हुई थी। क्लॉथस्पिन अब भी वहीं झूल रही थीं — जैसे छोटे-छोटे गुनहगार चुपचाप लटक रहे हों। एक लाल क्लिप हवा में डोल रही थी, जैसे कुछ कहने को बेताब हो।
वो कुछ पल वहीं खड़ी रही, ठंड उसके ब्लाउज़ से आर-पार हो रही थी, और बारिश की थप-थप के अलावा कोई आवाज़ नहीं थी। और फिर धीरे-धीरे एहसास रिसता चला आया।
ये बस खोए नहीं हैं। **ये चुराए गए हैं।**
उसने कॉरिडोर के उस सिरे की ओर देखा।
रामू का दरवाज़ा बंद था।
लेकिन कुछ — कोई पागल सी सीटी जैसी आशंका जो उसके पेट के सबसे गहरे कोने से उठी — उसके पाँव उस ओर खींचने लगी। ?️??
उसका शरीर पहले बढ़ा, दिमाग बाद में हड़बड़ाया। भीगा हुआ सीमेंट उसके तलवों को चीर रहा था जैसे चेतावनी दे रहा हो। उसने दरवाज़े पर दस्तक दी। एक बार। फिर दो बार। कोई जवाब नहीं।
उसकी उंगलियाँ कुंडी पर ठहर गईं। उसने चारों ओर देखा। बारिश ने सब कुछ डुबो दिया था। हर कोई अपने-अपने कमरों में बंद था। किसी ने नहीं देखा जब उसकी उंगलियाँ धीरे से कुंडी पर लपकीं और उसे घुमाया।
दरवाज़ा चरमराता हुआ खुला।
कमरा धुँधला था, बस एक म्यूट टीवी स्क्रीन की टिमटिमाती रौशनी। रामू अपने चारपाई पर लेटा था, आधी लुंगी से ढँका, सीना नंगा, उसकी साँसें धीमी और गहरी। उसकी नाक से हल्की खर्राटी निकल रही थी, मुँह थोड़ा खुला, होठों पर सूखापन, साँसें भारी और गाढ़ी। पास में एक पुराना अखबार पड़ा था — शायद उसे देखने से पहले उसने कुछ ढँकने की कोशिश की थी।
लेकिन साक्षी ने उसका चेहरा नहीं देखा।
उसकी नज़रें अटक गईं बिस्तर के कोने पर पड़े कपड़े पर। उसका लैवेंडर ब्रा। उसका हल्का हरा पैंटी। फोल्ड नहीं — **मसल दिया गया था। इस्तेमाल किया गया था।** ??? पास में ही उसका पीच रंग का ब्लाउज़ भी पड़ा था — पसीने से भीगा हुआ, गंध से भारी।
उस सन्नाटे में एक अजीब सी पवित्रता थी। और उसी में कुछ बेहद अश्लील था — जैसे कोई पूजा कर रहा हो, किसी देवता की मूर्ति नहीं, बल्कि किसी औरत की देह की।
वो धीरे-धीरे आगे बढ़ी, साँस उथली। उसकी लुंगी के नीचे से रामू का लंड झाँक रहा था — मोटा, भारी, नींद में भी अधखड़ा। लुंगी की भीतरी जांघ पर गाढ़ा, चिपचिपा निशान था, और उसके अंडरवियर पर एक नमी का हल्का दाग — जो बारिश से नहीं आया था। पलंग के पास पड़े टिशूज़ गीले और मुड़े हुए थे, जैसे किसी जल्दी में मुँह छिपाया गया हो।
उसे छूने की ज़रूरत नहीं थी जानने के लिए। वो महक रही थी — एकदम कच्ची, मर्दानी, पहचानने लायक। उसमें उसकी अपनी खुशबू भी बसी थी, किसी अजीब तान के साथ मिली हुई — जैसे उसके भीतर का गीलापन और रामू के वीर्य की महक एक साथ मिलकर कोई नया इत्र बन गई हो।
**उसने इन्हें इस्तेमाल किया था।**
एक झटका उसके पूरे जिस्म में दौड़ गया।
पहली प्रतिक्रिया थी — ग़ुस्सा। अपमान। **उसकी इतनी हिम्मत?**
पर दूसरी...
...उसने अपनी जाँघें भींच दीं।
उसने फिर उस लंड की ओर देखा। उसकी मोटी नस याद आई। उसका पेट जो धीरे-धीरे उठता-गिरता था। उस पल में उसकी उम्र गायब हो गई — वो बस एक मर्द था। **एक भूखा मर्द।** उसका चेहरा किसी बच्चे-सा शांत था, पर उसके लंड में आग थी — **साक्षी की आग।**
**जब उसने किया... वो मेरे बारे में सोच रहा था। मेरे कपड़े हाथ में लिए। मेरी खुशबू में डूबा। मेरे बदन की कल्पना करता हुआ। मैं उसकी मुट्ठी में थी। उसकी सोच में घुसी हुई।** उसकी साँसों की लय, उसका गर्म लार, सब मेरे नाम पर बहा था।
उस ख्याल से उसकी रूह कांप गई। उसके निप्पल भीग चुके ब्लाउज़ के नीचे तन गए। जाँघों के बीच गीली गर्मी फैलने लगी — एक धीमी जलन जो ऊपर चढ़ती जा रही थी।
उसने हाथ बढ़ाया, काँपता हुआ, और कपड़े उठा लिए। चुपचाप। नाज़ुकता से। जैसे कोई मंदिर से प्रसाद चुरा रहा हो। जैसे कोई किसी की आत्मा की चोरी कर रहा हो।
वो कमरे से ऐसे निकली जैसे कोई भूत। दरवाज़ा पीछे बहुत हल्के से बंद हुआ। उसके कान में सिर्फ़ रामू की भारी साँसें थीं।
घर के अंदर आकर उसने दरवाज़ा लॉक किया और उसी से टिक गई, साँसें हाँफती हुई। नाइटी के नीचे उसके निप्पल अब भी सख़्त थे। उसने वो भीगे कपड़े बिस्तर पर फेंके और बस उन्हें घूरती रही। जैसे वो अब उसका आईना हों — जिसमें कोई और ही साक्षी दिखती है।
एक मिनट।
दो।
फिर उसका हाथ पैंटी की तरफ बढ़ा।
अब भी गर्म थी।
अब भी भीगी।
उसने उसे अपनी नाक के पास ले जाकर सूंघा।
खुशबू तीखी थी। उलझी हुई। मर्दानी। उसकी उंगलियाँ उसके ही जांघों के बीच पहुँच गईं, इससे पहले कि वो सोच सके। दो उंगलियाँ कपड़े के नीचे चली गईं। उसकी कमर तड़प गई। साँस अटक गई।
वो पलंग पर बैठ गई, टाँगें फैलीं, पैंटी अब भी चेहरे से चिपकी हुई, उंगलियाँ अंदर, धीमी और गीली गोलाई में घूमती हुई। उसकी आँखें आधी मुंदी हुई थीं, और होठों के कोनों से कराह फिसल रही थी — नर्मी में डूबी, लेकिन आग से भरी।
**साले बूढ़े हरामी... तूने मेरे साथ क्या कर दिया?** ???
वो पीठ के बल लेट गई, उसकी उंगलियों पर रामू का वीर्य, और उसकी ज़ुबान पर अपनी ही ख्वाहिश का स्वाद। अब उसकी कमर खुद-ब-खुद हिल रही थी, कुछ गंदा, कुछ तेज़, कुछ उजाला पकड़ने के लिए। हर थरथराहट जैसे कोई पुरानी याद हो — कुछ जो कभी उसकी थी, लेकिन समाज ने छीन लिया।
और बाहर — बारिश और तेज़ हो गई। बिजली फिर चमकी। पर्दे के पीछे से रौशनी तड़पी।
लेकिन अंदर — **साक्षी जल रही थी।** उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन उसकी जाँघों के बीच एक तूफ़ान चल रहा था।
और उसकी सोच में, बस एक ही चीज़ थी — उसका लंड। धड़कता हुआ। फड़फड़ाता हुआ। इंतज़ार करता हुआ। वो लंड जो उसे बिना बोले समझ गया था। जो उसे उसकी नज़र से, उसकी गंध से, उसकी नमी से चख चुका था।
**अब उसने मुझे चखा है**, उसने सोचा। **और मैंने उसे। अब ये कोई खेल नहीं — ये एक रिश्ता है। एक ऐसा बंधन, जो शब्दों से नहीं, लार और लहू से बना है।**
अब वापस लौटना मुमकिन नहीं था।
उस रात, घर हल्के अंधेरे में डूबा हुआ था। बारिश थम चुकी थी, लेकिन दीवारों में अब भी ठंडी सी सीलन बस गई थी। खिड़कियाँ बंद थीं, फिर भी भीगी मिट्टी की खुशबू अंदर तक चली आई थी। बाहर, गली के नीचे पानी के छोटे-छोटे पोखर स्ट्रीटलाइट की पीली रोशनी में चमक रहे थे, और कहीं दूर से मेंढकों की टर्राहट आ रही थी।
साक्षी बाथरूम में खड़ी थी, दरवाज़ा अंदर से बंद। उसके हाथ में हल्की हरे रंग की वही पैंटी थी — जो रामू ने इस्तेमाल की थी। वो देखने में जितनी हल्की थी, हाथ में उतनी ही भारी लग रही थी।
उसने उसे पीले बाथरूम लाइट में ऊपर उठा कर देखा। गहरा निशान अब हल्का पड़ चुका था, लेकिन अब भी था। जब उसने उसे थोड़ा और पास लाया, उसकी साँसें अटक गईं — जैसे कुछ पवित्र और बेहूदा एक साथ थमा हो।
**उसने मेरे लिए किया।**
**मेरे बारे में सोचते हुए।**
**मेरी गंध के साथ।**
उसने अपनी सामान्य पैंटी उतारी और उस चोरी की हुई पैंटी में पाँव डाला। कपड़ा पहले ठंडा लगा, फिर जैसे-जैसे उसके शरीर की गर्मी से मिला, उसने खुद को कस कर पकड़ लिया। उसने आँखें बंद करके धीरे-धीरे उसे ऊपर खींचा। उसकी गंध जैसे एक लहर बनकर उसके होश को बहा ले गई — नमक, मर्दाना पसीना, और वासना का कच्चा असर।
एक कराह उसके गले से निकली, धीमी और लाचार। उसकी जाँघें कस गईं।
उसने लाइट बंद की और बेडरूम की तरफ चली। उसके बेटे की नींद टूटे बिना — जो पलंग के कोने में टेडी बियर को पकड़े, छोटा-सा हाथ फैला कर सो रहा था। पवन पहले ही चादर में लिपटा लेटा था, एक हाथ सिर के नीचे, दूसरे में फोन, हल्की मुस्कान लिए स्क्रीन पर कुछ स्क्रॉल कर रहा था।
"आज लेट हो गई," उसने बिना देखे कहा।
"थोड़ा साफ़-सफ़ाई करनी थी," साक्षी ने हल्की आवाज़ में जवाब दिया, चुपचाप उसके पास आकर चादर में समा गई। उसका शरीर एकदम सतर्क था, हर त्वचा का हिस्सा गद्दे से टकराते ही जाग रहा था।
पवन ने उसका चेहरा घुमा कर देखा, वही आलसी-सी मुस्कान दी जो उसे लगता था सेक्सी है। "अलग सी महक आ रही है। कौन सा साबुन लगाया है?"
साक्षी का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। "बस... चंदन वाला। मीना ने दिया था। नया है।"
उसका हाथ चादर के नीचे उसकी कमर पर गया, फिर अंदर की ओर — उसकी जाँघों के बीच।
साक्षी की पूरी देह सख़्त हो गई। उसका स्पर्श आज अजनबी लग रहा था। जैसे किसी और की जगह पर कोई आ गया हो।
"थक गई हूँ," उसने जल्दी से फुसफुसाया। "बारिश... बच्चे ने दिन में सोया नहीं। सुबह पाँच बजे से जागी हूँ। कमर टूट रही है।"
"अरे अरे," पवन हँसते हुए बोला। "बस एक किस चाहिए थी। मिस कर रहा था बस।"
उसने उसके गाल पर हल्का सा चुंबन दिया, ज़बरदस्ती मुस्कराई, और फिर पीठ घुमा कर लेट गई। उसकी साँसें उथली थीं, सीने में फँसी हुई।
पवन ने लाइट बंद की। कमरा अंधेरे में डूब गया, बस बाहर से हल्की रौशनी झाँकती रही। कहीं दूर बिजली की एक धीमी गड़गड़ाहट अब भी गूँज रही थी, जैसे कोई चेतावनी।
लेकिन उसके अंदर — रात अभी शुरू हुई थी।
उसकी टाँगें एक-दूसरे से रगड़ रही थीं, भीगी हुई पैंटी उसकी योनि से चिपकी हुई थी। उसका हाथ चादर के नीचे गया, धीरे-धीरे फिसलता हुआ, जब तक उसकी हथेली खुद पर नहीं आ गई। उसके क्लिट के नीचे कपड़े की गर्मी धड़क रही थी।
**रामू।**
उसके दिमाग में रामू का वही सोया हुआ शरीर लौट आया। खुला लंड। वो मोटाई। वो धीमी-सी धड़कन जो उसकी मुट्ठी में होती होगी। लुंगी के नीचे की आकृति। वो कच्ची मर्दानगी। वो उम्र। ये बात कि उसे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं — वो बस था, और यही उसे पिघला देने के लिए काफ़ी था।
उसने उसे अब जागा हुआ सोचा — उसके पीछे खड़ा हुआ। उसकी नाइटी के नीचे हाथ। उसकी गर्दन पर गर्म साँस। कंधे पर दाँत। उसका नाम फुसफुसाते हुए — जैसे कोई प्रार्थना, जैसे कोई श्राप।
उसकी उंगलियाँ चलने लगीं। छोटे-छोटे गोल घेरे। धीमा दबाव। उसने चादर के कोने को दाँतों से दबा लिया ताकि आवाज़ बाहर न निकले, जाँघें कस गईं, हथेली को अपने बीच फँसा लिया।
पवन उसके पास हिला। साक्षी सख़्त हो गई, साँस अटक गई। डर का एक झटका उसके पेट में स्वाद बन कर घुल गया।
वो पलटा। खर्राटा लिया। फिर सो गया।
उसने फिर चालू किया।
**गंदे बूढ़े... तूने मुझे इस्तेमाल किया। मेरी खुशबू को छुआ। मेरे लिए किया। तूने खुद को रोका नहीं। और मैं भी नहीं रोक पा रही।**
ऑर्गैज़्म उम्मीद से जल्दी आने लगा। जाँघों से उठता हुआ पेट में लहराने लगा, फिर पूरे बदन में घूम गया। उसने रामू को अपने पलंग के सामने खड़ा देखा — खुद को सहलाता हुआ, आँखों में भूख लिए। या शायद वो अभी भी वहीं था — कॉरिडोर के अंत में, जानता हुआ कि साक्षी भी वही कर रही है जो उसने की थी।
वो बिना आवाज़ के आई — मुँह खुला लेकिन शब्दहीन। बदन में तूफ़ान सा उभरा। उसकी टाँगें काँपीं। उंगलियाँ भीगीं। बदन अंधेरे में ऐंठ गया — और उसका पति अब भी बेख़बर सोया था।
वो कुछ मिनट वैसे ही पड़ी रही — शर्म, गर्मी, और सिहरन में डूबी हुई। उसकी उंगलियाँ अब भी नम थीं। उसका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था। उसका मन — अब भी नहीं लौटा था।
बगल में उसका पति खर्राटे ले रहा था, जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
लेकिन उसके अंदर, अब जो आग थी — वो किसी और की थी।
और उसने उसे कभी छुआ भी नहीं था।
उसका हाथ उसके पेट पर गया, फिर उस पैंटी के गीले कपड़े की तरफ। उसने उसे एक बार फिर अपने क्लिट पर दबाया।
**कल... मैं फिर एक जोड़ी बाहर छोड़ दूँगी। शायद लाल लेस वाली।** उसने सोचा। **देखते हैं उसे लाल पसंद है या नहीं।**
उसने आँखें बंद कीं।
और सपने में — वो पवन की बाँहें नहीं थीं जो उसे पकड़े हुए थीं। वो **रामू** था।
ना स्टोव की गर्मी थी, ना दोपहर की धूप जो फर्श की टाइल्स को तपाती है।
ये नज़रों की गर्मी थी। चुपचाप, ठहरी हुई, भारी। ?️?️?
साक्षी ने उसे तब महसूस किया जब उसने वो लैवेंडर नाइटी पहनी — जो पंखा बंद होने पर उसकी जांघों से चिपक जाती थी। वही जिसे पवन मज़ाक में उसका "danger dress" कहता था। वो पलंग के नीचे से अपने बेटे की प्लास्टिक बॉल उठाने झुकी, कमर मुड़ी, घेर ऊपर चढ़ गया थोड़ा। जैसे ही उठी, उसने वो महसूस किया।
जैसे किसी ने पीठ पर साँस ली हो। जैसे कुछ पवित्र और मना किया गया उसके आर-पार हो गया हो। पेट में अजीब हलचल हुई।
उसने कॉरिडोर की तरफ देखा।
कुछ नहीं। बस रामू के कमरे के पास का परदा हिल रहा था। ??️?
लेकिन उस दिन कुछ बदल गया। जैसे कोई परत उतर गई हो। जैसे कोई अनदेखी नज़र उसकी खुशबू की तरह पीछे-पीछे चलने लगी हो। जैसे कोई भूला हुआ आईना अचानक सामने आ खड़ा हो और उसमें एक पुरानी, भूखी औरत दिख जाए — वो जिसे साक्षी ने सालों पहले ज़मीन में गाड़ दिया था।
क्या ऐसा लगता है जब कोई फिर से तुम्हें देखे? एक माँ नहीं, एक बीवी नहीं... बल्कि एक औरत की तरह? एक जिस्म की तरह?
उस रात, जब वो आईने के सामने बाल ब्रश कर रही थी, उसने अपने आपसे बुदबुदाया, "वो मुझे देख रहा है। मुझे महसूस हो रहा है।"
पवन बाथरूम में था, बेसुरा गाना गा रहा था और पानी के छींटे उड़ा रहा था। उनका बेटा सो रहा था, हाथ-पाँव फैलाकर, गहरी और तेज़ साँसों के साथ। ???
उसने अपना निचला होंठ हल्के से दबाया। एक भूली-बिसरी याद चमकी।
**SS... सूथु साक्षी।**
वो नाम जैसे मन में गूंजा। कॉलेज के दिन। नोटबुक्स के पीछे फुसफुसाकर कहा गया, लाइब्रेरी की डेस्क और बाथरूम की दीवारों पर घटिया हैंडराइटिंग में लिखा गया। उस नाम ने उसका पीछा किया था — जैसे कोई अफ़वाह, कोई गाली, और कोई दुआ एक साथ। लड़के उसे बस इसीलिए क्लास तक जाते देखते थे, कि उसकी कमर की चाल और छाती की उछाल देख सकें।
वो नाम क्रूर नहीं था। वो... सटीक था। ???
पहले उसे उससे नफ़रत थी। जब भी सुनती थी, शर्म से गाल जलने लगते थे। फिर धीरे-धीरे वो उस नाम में घुस गई। उसे अपना बना लिया। जैसे कोई परफ़्यूम। जैसे कोई कवच। जैसे किसी ने कहा हो — हाँ, देखो मुझे। हिम्मत है तो झेलो।
**मुझे वो अटेंशन अच्छा लगता था।** उन आँखों की गर्मी जो मुझे देखती थीं — उसमें मैं ज़िंदा महसूस करती थी। चाही हुई। ख़तरनाक। ज़िंदा। कोई थी मैं। कोई जिसे चाहा जाता था।
वो लड़की — जो पलट कर मुस्कुरा देती थी उस लड़के को जो ज़्यादा देर घूरता था — वो कहीं पत्नी, माँ, रसोइया, साफ़-सफ़ाई वाली इन लेयर्स में दब गई थी। उसकी जाँघों की गर्मी अब किसी दूध उबालने के बर्तन में भाप बन चुकी थी। उसकी साँस अब बस बच्चों के ज़िद पूरे करने में खर्च होती थी।
**लेकिन रामू की नज़र... उसने उसे खोद कर बाहर निकाला।**
**कब से नहीं महसूस हुआ वो करंट? वो जो जांघों के बीच धड़कता है — सिर्फ़ इसीलिए कि कोई मुझे चाहता है? ज़रूरत से नहीं, आदत से नहीं — वाक़ई चाहता है।** बिना कहे, बिना छुए। बस नज़र से। किसी को तुम बस इसीलिए अच्छे लगो क्योंकि तुम चलती हो, साँस लेती हो, और मौजूद हो — उस एहसास में बिजली होती है।
अगली सुबह, उसने एक हल्के नेक वाला कॉटन ब्लाउज़ पहना — फिका पीच रंग का। कुछ ज़्यादा नहीं, पर इतना था कि कमर पर कसा हुआ लगे और गर्दन के पास थोड़ा ढीला, जिससे झुकने पर कुछ सरक जाए। उसके कानों में झुमके भी थे — पुराने, लेकिन आज बड़े प्यार से पहने। जब उसने कॉरिडोर बुहारा, उसने रामू के कमरे के सामने जानबूझ कर धीरे चलना शुरू किया। ???
उसे देखने की ज़रूरत नहीं थी। उसे महसूस हो रहा था। उस परदे के उस पार।
देखता हुआ।
परखता हुआ।
पूजता हुआ।
और वो... वो खुद को जैसे एक वेदी पर चढ़ा रही थी। जैसे वो रोज़ एक छोटा-सा त्याग कर रही हो — अपनी लाज, अपनी चाल, अपनी मासूमियत — बस इसलिए ताकि कोई दूर बैठा आग में हाथ सेंक सके।
**अगर वो देख रहा है, तो देखे।** देखे कि जिसे पवन हल्के में लेता है, वो क्या चीज़ है। देखे कि चाहना कैसा लगता है — वो भी उस चीज़ को जो बस हाथ से बाहर हो। देखे कि उसकी त्वचा अब भी सुलग सकती है।
उस दोपहर, जब उसने कपड़े सुखाए, उसने अपनी पेटीकोट और ब्लाउज़ रामू की खिड़की की तरफ मुँह करके टाँगे। हवा चली — कपड़ा फड़फड़ाया, जैसे कोई छेड़। कपड़ा तार से चिपका, फिर धीरे-धीरे उठ गया, जिससे लेस और उसके curve की झलक मिली। ??? उसकी साँस धीमी हो गई थी, लेकिन धड़कन उतनी ही तेज़। वो जानती थी — रामू देख रहा है। शायद बैठा है खिड़की के पास, आँखों में भूख और होठों पर चुप्पी लिए।
फोन बजा। कॉलेज ग्रुप से मैसेज था।
**Remember Soothu Sakshi?** किसी ने भेजा था, एक हँसने वाली इमोजी के साथ।
साक्षी मुस्कुराई। उंगलियाँ कीबोर्ड पर रुकीं।
**"She’s back,"** उसने फुसफुसाया।
वो पुरानी लड़की — वो शरारती मुस्कान वाली, जिसे देखा जाना अच्छा लगता था। जो दूसरों की नज़र को अपना स्टेज बना लेती थी। जिसने अपनी ही नज़र से अपने जिस्म को प्रेम करना सीखा था। वो वापस आ चुकी थी। वो जिसे उसकी माँ ने बार-बार डांटा था — टाँगें ढँक, छाती छिपा, नज़र झुका — वही लड़की अब फिर से खुल रही थी।
**शायद मुझे बस एक वजह चाहिए थी उसे जगाने की। और शायद रामू की नज़र वही है — एक आईना। जो कहता है, हाँ, तू अब भी वही है। वही आग। वही लपट।**
उस शाम, जब वो फिर रामू के कमरे के सामने से गुज़री — वो रुकी।
उसने अपनी साड़ी की प्लीट्स धीरे-धीरे ठीक कीं। कपड़ा कूल्हे पर खींचा, थोड़ा ज़्यादा कस के खोंसा। अपनी चोटी को झटका, जिससे बालों से हल्की महक फिज़ा में तैरी। हर हरकत आम दिखती थी — अगर कोई आम तरीक़े से देखे।
लेकिन रामू के लिए — वो एक प्रार्थना थी। एक इजाज़त। एक न्यौता। ???
परदा हिला। हल्का-सा। बस उतना कि यक़ीन हो जाए। उतना कि साक्षी का गला सूख जाए, और उसके पेट में फिर से वो गर्मी कुलबुलाए।
उसका दिल धड़कने लगा। डर से नहीं। ताक़त से। जैसे कोई देवी फिर से जाग गई हो, जिसे सालों से किसी मंदिर में बंद कर दिया गया था।
और उसकी मुस्कान — जंगली, जानकार, भूखी — लौट आई। होठों के कोनों से लपकती हुई। अब उसमें सिर्फ़ शरारत नहीं थी, चुनौती भी थी।
**मैं सिर्फ एक नज़र से उसे तबाह कर सकती हूँ। घुटनों पर ला सकती हूँ। और मज़े की बात? वो चाहता भी यही है।** उसकी नज़रों की तपिश अब मेरी त्वचा में रच गई है। मैं अब उस खेल की रानी हूँ — और वो, मेरा सबसे वफ़ादार दर्शक।
उसने कुछ नहीं कहा। लेकिन उसके अंदर, वो नाम फिर से गूंजा:
**Soothu Sakshi।**
वो वापस आ चुकी थी। और उसके पास अब एक audience थी। ????
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बारिश आई बिना किसी चेतावनी के।
एक ज़ोरदार बिजली की गड़गड़ाहट घर के ऊपर से लहराई, और फिर जैसे आसमान फट गया हो — बारिश इतनी तेज़ कि सब कुछ बहा ले जाए। साक्षी फर्श से उठ बैठी जहाँ वो अपने बेटे के साथ आधी नींद में लेटी थी। उसका शरीर तापमान के बदलते ही जाग गया, मन से पहले। वो भागी बालकनी की ओर, दिल धड़कता हुआ।
"मेरे कपड़े!" उसने बड़बड़ाते हुए बालकनी का दरवाज़ा खोला। ?️?⚡
ठंडी फुहार ने उसके चेहरे पर थप्पड़ मारा। उसकी साड़ी टांगों से चिपक गई जैसे किसी ने उसे पकड़ रखा हो। नंगे पैर बालकनी में कदम रखते ही उसकी नज़र कपड़ों की डोरी पर गई। खाली।
उसकी सारी साड़ियाँ, ब्लाउज़, पेटीकोट्स, ब्रा, पैंटीज़ — सब ग़ायब। उसकी पसंदीदा बैकलेस ब्लाउज़, जो उसने शादी की पहली सालगिरह पर पवन के लिए पहना था, वो भी नहीं थी। हल्की पीली पैंटी, जिसमें उसे अपनी कमर सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगती थी — वो भी गायब।
उसकी नज़रें सिकुड़ गईं। उसे याद था — दो घंटे पहले तक वो लाइन कपड़ों से भरी हुई थी। क्लॉथस्पिन अब भी वहीं झूल रही थीं — जैसे छोटे-छोटे गुनहगार चुपचाप लटक रहे हों। एक लाल क्लिप हवा में डोल रही थी, जैसे कुछ कहने को बेताब हो।
वो कुछ पल वहीं खड़ी रही, ठंड उसके ब्लाउज़ से आर-पार हो रही थी, और बारिश की थप-थप के अलावा कोई आवाज़ नहीं थी। और फिर धीरे-धीरे एहसास रिसता चला आया।
ये बस खोए नहीं हैं। **ये चुराए गए हैं।**
उसने कॉरिडोर के उस सिरे की ओर देखा।
रामू का दरवाज़ा बंद था।
लेकिन कुछ — कोई पागल सी सीटी जैसी आशंका जो उसके पेट के सबसे गहरे कोने से उठी — उसके पाँव उस ओर खींचने लगी। ?️??
उसका शरीर पहले बढ़ा, दिमाग बाद में हड़बड़ाया। भीगा हुआ सीमेंट उसके तलवों को चीर रहा था जैसे चेतावनी दे रहा हो। उसने दरवाज़े पर दस्तक दी। एक बार। फिर दो बार। कोई जवाब नहीं।
उसकी उंगलियाँ कुंडी पर ठहर गईं। उसने चारों ओर देखा। बारिश ने सब कुछ डुबो दिया था। हर कोई अपने-अपने कमरों में बंद था। किसी ने नहीं देखा जब उसकी उंगलियाँ धीरे से कुंडी पर लपकीं और उसे घुमाया।
दरवाज़ा चरमराता हुआ खुला।
कमरा धुँधला था, बस एक म्यूट टीवी स्क्रीन की टिमटिमाती रौशनी। रामू अपने चारपाई पर लेटा था, आधी लुंगी से ढँका, सीना नंगा, उसकी साँसें धीमी और गहरी। उसकी नाक से हल्की खर्राटी निकल रही थी, मुँह थोड़ा खुला, होठों पर सूखापन, साँसें भारी और गाढ़ी। पास में एक पुराना अखबार पड़ा था — शायद उसे देखने से पहले उसने कुछ ढँकने की कोशिश की थी।
लेकिन साक्षी ने उसका चेहरा नहीं देखा।
उसकी नज़रें अटक गईं बिस्तर के कोने पर पड़े कपड़े पर। उसका लैवेंडर ब्रा। उसका हल्का हरा पैंटी। फोल्ड नहीं — **मसल दिया गया था। इस्तेमाल किया गया था।** ??? पास में ही उसका पीच रंग का ब्लाउज़ भी पड़ा था — पसीने से भीगा हुआ, गंध से भारी।
उस सन्नाटे में एक अजीब सी पवित्रता थी। और उसी में कुछ बेहद अश्लील था — जैसे कोई पूजा कर रहा हो, किसी देवता की मूर्ति नहीं, बल्कि किसी औरत की देह की।
वो धीरे-धीरे आगे बढ़ी, साँस उथली। उसकी लुंगी के नीचे से रामू का लंड झाँक रहा था — मोटा, भारी, नींद में भी अधखड़ा। लुंगी की भीतरी जांघ पर गाढ़ा, चिपचिपा निशान था, और उसके अंडरवियर पर एक नमी का हल्का दाग — जो बारिश से नहीं आया था। पलंग के पास पड़े टिशूज़ गीले और मुड़े हुए थे, जैसे किसी जल्दी में मुँह छिपाया गया हो।
उसे छूने की ज़रूरत नहीं थी जानने के लिए। वो महक रही थी — एकदम कच्ची, मर्दानी, पहचानने लायक। उसमें उसकी अपनी खुशबू भी बसी थी, किसी अजीब तान के साथ मिली हुई — जैसे उसके भीतर का गीलापन और रामू के वीर्य की महक एक साथ मिलकर कोई नया इत्र बन गई हो।
**उसने इन्हें इस्तेमाल किया था।**
एक झटका उसके पूरे जिस्म में दौड़ गया।
पहली प्रतिक्रिया थी — ग़ुस्सा। अपमान। **उसकी इतनी हिम्मत?**
पर दूसरी...
...उसने अपनी जाँघें भींच दीं।
उसने फिर उस लंड की ओर देखा। उसकी मोटी नस याद आई। उसका पेट जो धीरे-धीरे उठता-गिरता था। उस पल में उसकी उम्र गायब हो गई — वो बस एक मर्द था। **एक भूखा मर्द।** उसका चेहरा किसी बच्चे-सा शांत था, पर उसके लंड में आग थी — **साक्षी की आग।**
**जब उसने किया... वो मेरे बारे में सोच रहा था। मेरे कपड़े हाथ में लिए। मेरी खुशबू में डूबा। मेरे बदन की कल्पना करता हुआ। मैं उसकी मुट्ठी में थी। उसकी सोच में घुसी हुई।** उसकी साँसों की लय, उसका गर्म लार, सब मेरे नाम पर बहा था।
उस ख्याल से उसकी रूह कांप गई। उसके निप्पल भीग चुके ब्लाउज़ के नीचे तन गए। जाँघों के बीच गीली गर्मी फैलने लगी — एक धीमी जलन जो ऊपर चढ़ती जा रही थी।
उसने हाथ बढ़ाया, काँपता हुआ, और कपड़े उठा लिए। चुपचाप। नाज़ुकता से। जैसे कोई मंदिर से प्रसाद चुरा रहा हो। जैसे कोई किसी की आत्मा की चोरी कर रहा हो।
वो कमरे से ऐसे निकली जैसे कोई भूत। दरवाज़ा पीछे बहुत हल्के से बंद हुआ। उसके कान में सिर्फ़ रामू की भारी साँसें थीं।
घर के अंदर आकर उसने दरवाज़ा लॉक किया और उसी से टिक गई, साँसें हाँफती हुई। नाइटी के नीचे उसके निप्पल अब भी सख़्त थे। उसने वो भीगे कपड़े बिस्तर पर फेंके और बस उन्हें घूरती रही। जैसे वो अब उसका आईना हों — जिसमें कोई और ही साक्षी दिखती है।
एक मिनट।
दो।
फिर उसका हाथ पैंटी की तरफ बढ़ा।
अब भी गर्म थी।
अब भी भीगी।
उसने उसे अपनी नाक के पास ले जाकर सूंघा।
खुशबू तीखी थी। उलझी हुई। मर्दानी। उसकी उंगलियाँ उसके ही जांघों के बीच पहुँच गईं, इससे पहले कि वो सोच सके। दो उंगलियाँ कपड़े के नीचे चली गईं। उसकी कमर तड़प गई। साँस अटक गई।
वो पलंग पर बैठ गई, टाँगें फैलीं, पैंटी अब भी चेहरे से चिपकी हुई, उंगलियाँ अंदर, धीमी और गीली गोलाई में घूमती हुई। उसकी आँखें आधी मुंदी हुई थीं, और होठों के कोनों से कराह फिसल रही थी — नर्मी में डूबी, लेकिन आग से भरी।
**साले बूढ़े हरामी... तूने मेरे साथ क्या कर दिया?** ???
वो पीठ के बल लेट गई, उसकी उंगलियों पर रामू का वीर्य, और उसकी ज़ुबान पर अपनी ही ख्वाहिश का स्वाद। अब उसकी कमर खुद-ब-खुद हिल रही थी, कुछ गंदा, कुछ तेज़, कुछ उजाला पकड़ने के लिए। हर थरथराहट जैसे कोई पुरानी याद हो — कुछ जो कभी उसकी थी, लेकिन समाज ने छीन लिया।
और बाहर — बारिश और तेज़ हो गई। बिजली फिर चमकी। पर्दे के पीछे से रौशनी तड़पी।
लेकिन अंदर — **साक्षी जल रही थी।** उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन उसकी जाँघों के बीच एक तूफ़ान चल रहा था।
और उसकी सोच में, बस एक ही चीज़ थी — उसका लंड। धड़कता हुआ। फड़फड़ाता हुआ। इंतज़ार करता हुआ। वो लंड जो उसे बिना बोले समझ गया था। जो उसे उसकी नज़र से, उसकी गंध से, उसकी नमी से चख चुका था।
**अब उसने मुझे चखा है**, उसने सोचा। **और मैंने उसे। अब ये कोई खेल नहीं — ये एक रिश्ता है। एक ऐसा बंधन, जो शब्दों से नहीं, लार और लहू से बना है।**
अब वापस लौटना मुमकिन नहीं था।
उस रात, घर हल्के अंधेरे में डूबा हुआ था। बारिश थम चुकी थी, लेकिन दीवारों में अब भी ठंडी सी सीलन बस गई थी। खिड़कियाँ बंद थीं, फिर भी भीगी मिट्टी की खुशबू अंदर तक चली आई थी। बाहर, गली के नीचे पानी के छोटे-छोटे पोखर स्ट्रीटलाइट की पीली रोशनी में चमक रहे थे, और कहीं दूर से मेंढकों की टर्राहट आ रही थी।
साक्षी बाथरूम में खड़ी थी, दरवाज़ा अंदर से बंद। उसके हाथ में हल्की हरे रंग की वही पैंटी थी — जो रामू ने इस्तेमाल की थी। वो देखने में जितनी हल्की थी, हाथ में उतनी ही भारी लग रही थी।
उसने उसे पीले बाथरूम लाइट में ऊपर उठा कर देखा। गहरा निशान अब हल्का पड़ चुका था, लेकिन अब भी था। जब उसने उसे थोड़ा और पास लाया, उसकी साँसें अटक गईं — जैसे कुछ पवित्र और बेहूदा एक साथ थमा हो।
**उसने मेरे लिए किया।**
**मेरे बारे में सोचते हुए।**
**मेरी गंध के साथ।**
उसने अपनी सामान्य पैंटी उतारी और उस चोरी की हुई पैंटी में पाँव डाला। कपड़ा पहले ठंडा लगा, फिर जैसे-जैसे उसके शरीर की गर्मी से मिला, उसने खुद को कस कर पकड़ लिया। उसने आँखें बंद करके धीरे-धीरे उसे ऊपर खींचा। उसकी गंध जैसे एक लहर बनकर उसके होश को बहा ले गई — नमक, मर्दाना पसीना, और वासना का कच्चा असर।
एक कराह उसके गले से निकली, धीमी और लाचार। उसकी जाँघें कस गईं।
उसने लाइट बंद की और बेडरूम की तरफ चली। उसके बेटे की नींद टूटे बिना — जो पलंग के कोने में टेडी बियर को पकड़े, छोटा-सा हाथ फैला कर सो रहा था। पवन पहले ही चादर में लिपटा लेटा था, एक हाथ सिर के नीचे, दूसरे में फोन, हल्की मुस्कान लिए स्क्रीन पर कुछ स्क्रॉल कर रहा था।
"आज लेट हो गई," उसने बिना देखे कहा।
"थोड़ा साफ़-सफ़ाई करनी थी," साक्षी ने हल्की आवाज़ में जवाब दिया, चुपचाप उसके पास आकर चादर में समा गई। उसका शरीर एकदम सतर्क था, हर त्वचा का हिस्सा गद्दे से टकराते ही जाग रहा था।
पवन ने उसका चेहरा घुमा कर देखा, वही आलसी-सी मुस्कान दी जो उसे लगता था सेक्सी है। "अलग सी महक आ रही है। कौन सा साबुन लगाया है?"
साक्षी का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। "बस... चंदन वाला। मीना ने दिया था। नया है।"
उसका हाथ चादर के नीचे उसकी कमर पर गया, फिर अंदर की ओर — उसकी जाँघों के बीच।
साक्षी की पूरी देह सख़्त हो गई। उसका स्पर्श आज अजनबी लग रहा था। जैसे किसी और की जगह पर कोई आ गया हो।
"थक गई हूँ," उसने जल्दी से फुसफुसाया। "बारिश... बच्चे ने दिन में सोया नहीं। सुबह पाँच बजे से जागी हूँ। कमर टूट रही है।"
"अरे अरे," पवन हँसते हुए बोला। "बस एक किस चाहिए थी। मिस कर रहा था बस।"
उसने उसके गाल पर हल्का सा चुंबन दिया, ज़बरदस्ती मुस्कराई, और फिर पीठ घुमा कर लेट गई। उसकी साँसें उथली थीं, सीने में फँसी हुई।
पवन ने लाइट बंद की। कमरा अंधेरे में डूब गया, बस बाहर से हल्की रौशनी झाँकती रही। कहीं दूर बिजली की एक धीमी गड़गड़ाहट अब भी गूँज रही थी, जैसे कोई चेतावनी।
लेकिन उसके अंदर — रात अभी शुरू हुई थी।
उसकी टाँगें एक-दूसरे से रगड़ रही थीं, भीगी हुई पैंटी उसकी योनि से चिपकी हुई थी। उसका हाथ चादर के नीचे गया, धीरे-धीरे फिसलता हुआ, जब तक उसकी हथेली खुद पर नहीं आ गई। उसके क्लिट के नीचे कपड़े की गर्मी धड़क रही थी।
**रामू।**
उसके दिमाग में रामू का वही सोया हुआ शरीर लौट आया। खुला लंड। वो मोटाई। वो धीमी-सी धड़कन जो उसकी मुट्ठी में होती होगी। लुंगी के नीचे की आकृति। वो कच्ची मर्दानगी। वो उम्र। ये बात कि उसे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं — वो बस था, और यही उसे पिघला देने के लिए काफ़ी था।
उसने उसे अब जागा हुआ सोचा — उसके पीछे खड़ा हुआ। उसकी नाइटी के नीचे हाथ। उसकी गर्दन पर गर्म साँस। कंधे पर दाँत। उसका नाम फुसफुसाते हुए — जैसे कोई प्रार्थना, जैसे कोई श्राप।
उसकी उंगलियाँ चलने लगीं। छोटे-छोटे गोल घेरे। धीमा दबाव। उसने चादर के कोने को दाँतों से दबा लिया ताकि आवाज़ बाहर न निकले, जाँघें कस गईं, हथेली को अपने बीच फँसा लिया।
पवन उसके पास हिला। साक्षी सख़्त हो गई, साँस अटक गई। डर का एक झटका उसके पेट में स्वाद बन कर घुल गया।
वो पलटा। खर्राटा लिया। फिर सो गया।
उसने फिर चालू किया।
**गंदे बूढ़े... तूने मुझे इस्तेमाल किया। मेरी खुशबू को छुआ। मेरे लिए किया। तूने खुद को रोका नहीं। और मैं भी नहीं रोक पा रही।**
ऑर्गैज़्म उम्मीद से जल्दी आने लगा। जाँघों से उठता हुआ पेट में लहराने लगा, फिर पूरे बदन में घूम गया। उसने रामू को अपने पलंग के सामने खड़ा देखा — खुद को सहलाता हुआ, आँखों में भूख लिए। या शायद वो अभी भी वहीं था — कॉरिडोर के अंत में, जानता हुआ कि साक्षी भी वही कर रही है जो उसने की थी।
वो बिना आवाज़ के आई — मुँह खुला लेकिन शब्दहीन। बदन में तूफ़ान सा उभरा। उसकी टाँगें काँपीं। उंगलियाँ भीगीं। बदन अंधेरे में ऐंठ गया — और उसका पति अब भी बेख़बर सोया था।
वो कुछ मिनट वैसे ही पड़ी रही — शर्म, गर्मी, और सिहरन में डूबी हुई। उसकी उंगलियाँ अब भी नम थीं। उसका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था। उसका मन — अब भी नहीं लौटा था।
बगल में उसका पति खर्राटे ले रहा था, जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
लेकिन उसके अंदर, अब जो आग थी — वो किसी और की थी।
और उसने उसे कभी छुआ भी नहीं था।
उसका हाथ उसके पेट पर गया, फिर उस पैंटी के गीले कपड़े की तरफ। उसने उसे एक बार फिर अपने क्लिट पर दबाया।
**कल... मैं फिर एक जोड़ी बाहर छोड़ दूँगी। शायद लाल लेस वाली।** उसने सोचा। **देखते हैं उसे लाल पसंद है या नहीं।**
उसने आँखें बंद कीं।
और सपने में — वो पवन की बाँहें नहीं थीं जो उसे पकड़े हुए थीं। वो **रामू** था।