27-04-2025, 06:52 PM
"हे हे हे हे, मैं तो ऐसा ही हूं।" वह बड़ी बेशर्मी से हंसते हुए बोला। आगे भी बोलता गया, "मैं सोच रहा हूं कि अगर रश्मि मेरे जाल में नहीं फंसी तो क्या होगा। कहीं बुरा मानकर घर में हंगामा न खड़ा कर दे। फिर मेरी तो बड़ी फजीहत हो जाएगी। मैं घर में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंगा।"
"ऐसा नहीं होगा। मैं अपनी सहेलियों को बड़ी अच्छी तरह से जानती हूं।" कहने को तो कह गयी लेकिन फिर उसका अर्थ समझ कर लाल हो गई। भलोटिया मुझे और मेरी सहेलियों को छिनाल टाईप समझा होगा। हे राम मैं यह क्या बोल बैठी।
"अच्छा! ऐसा है? फिर तो बहुत बढ़िया। वैसे एक बात कहूं?" वह बोला।
"हां बोलिए।" मेरा दिल धक धक करने लगा कि पता नहीं अब वह क्या बोलने वाला है।
"तुम्हारी सब सहेलियां ऐसी ही हैं क्या?" कहते हुए उसकी आंखें चमक रही थीं। सच में मैं बहुत बड़ी ग़लती कर बैठी थी। लेकिन अब पछताए क्या होगा।
"हां।" मैं सर झुका कर बोली।
"फिर तो तुम्हारी सहेलियों से भी मिलना चाहूंगा। ऐसा हो सकता है क्या?" उसकी आंखों में चमक बढ़ गई थीं।
"हो काहे नहीं सकता है।" मैं झूठ नहीं बोल पाई।
"मैं उनके साथ भी यह सब कर सकता हूं क्या?" वह बड़ी बेशर्मी से अपने मन की इच्छा व्यक्त कर बैठा।
"यह मैं नहीं बोल सकती हूं। वे ऐसी जरूर हैं लेकिन उनकी पसंद के बारे में मैं क्या बोल सकती हूं।" मैं ने कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की लेकिन वह तो मेरे पीछे ही पड़ गया।
"तुम केवल उनसे मिलवा दो, बाकी मुझ पर छोड़ दो। इतनी मेहरबानी तो मुझ बूढ़े पर कर ही सकती हो।" मैं बातों ही बातों में फंस चुकी थी।
"अच्छा ठीक है। बाकी आप देख लीजिएगा।" कहकर मैंने बातों के सिलसिले को यहीं खत्म करना बेहतर समझा।
"वह मुझ पर छोड़ दो।" भलोटिया बोला।
"क्या बातें हो रही हैं?" घनश्याम बाथरूम से निकलते हुए बोला।
"यह हम दादा और पोती के बीच की बात है। तू अपने काम से काम रख। फिलहाल तो बिटिया के साथ घर जा और हां, आज के बाद बिटिया को बेवजह सजा वजा देने की बात भूल जा। मुझे पता चला कि तू बिटिया को बेवजह परेशान कर रहा है तो अच्छा नहीं होगा, समझे?" भलोटिया घनश्याम को चेतावनी देते हुए बोला। घनश्याम खिसिया कर रह गया।
"ठीक है भलोटिया जी, समझ गया। वैसे भी आपकी कृपादृष्टि जिस पर पड़ जाय, उसका बुरा सोचने की हिम्मत किसकी होगी। तो हम चलें?" घनश्याम नाटकीय अंदाज में बोला।
"बहुत बढ़िया। वैसे तुम्हारा शुक्रिया तो बनता ही है। इतनी जबरदस्त चीज जो मेरी खिदमत में ले कर आए।" भलोटिया, जो अब भी नंगा ही बैठा हुआ था, अपना लंड सहलाते हुए बोला। साला ठर्की बुड्ढा।
"शुक्रिया किस बात की, आपकी ही माल है। जब मन करे याद कर लीजिएगा।" घनश्याम किसी दलाल की तरह मस्का मारते हुए बोला। फिर हम वहां से रुखसत हुए। मैंने एक नजर भलोटिया की ओर फेरी तो वह मोटा भालू बड़े गंदे तरीके से मुझे आंख मारते हुए मुस्कुरा उठा, कुत्ता कहीं का। साला हरामी बुड्ढे का वश चलता तो मुझे यहीं रख कर चोदता रहता। पता नहीं घनश्याम किस पृष्ठभूमि से आया था कि उसके संपर्क में ऐसे ऐसे खड़ूस लोग थे। पहले गंजू , अब भलोटिया और उसका बॉडीगार्ड कल्लू। पता नहीं और कौन कौन लोग होंगे। यही सब सोचते हुए मैं घनश्याम के साथ बाहर निकलने लगी। अभी भी मुझे चलने में थोड़ी कठिनाई का अनुभव हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पांव मनचाहे अनुसार नहीं पड़ रहे थे। मेरी चूत और गांड़ के दरवाजे थोड़े सूज गये थे, इस कारण चलने से उनमें जो घर्षण हो रहा था उससे मीठा मीठा दर्द हो रहा था। उनमें हल्की हल्की जलन भी हो रही थी। किसी प्रकार मैं खुद को संभाल कर चल रही थी लेकिन मेरी चाल सामान्य नहीं थी, जिसे कोई भी देखने वाला बड़ी आसानी से कह सकता था कि मैं क्या गुल खिला कर आ रही हूं। अपनी इस हालत पर मुझे बड़ी शर्म आ रही थी लेकिन चेहरे पर कोई शिकन नहीं आने दे रही थी। आम तौर पर चेहरे का भाव आंतरिक स्थिति की चुगली करती है लेकिन चेहरे का भाव सामान्य होने के बावजूद मेरी चाल जो चुगली कर रही थी उसका क्या करती, जिस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं था। उसी हालत में चलती हुई जब घनश्याम के साथ बाहर निकल रही थी तभी कल्लू पर मेरी नजर पड़ी। वह भी मुस्कुराते हुए मुझे ही घूर रहा था और उसका हाथ पैंट के ऊपर से हथियार मसल रहा था। मैं भी उसकी जबरदस्त, अविस्मरणीय चुदाई की दीवानी, अपनी चूत में चुनचुनाहट को महसूस करते हुए मुस्कुरा उठी और घनश्याम के साथ आगे बढ़ गई। कटे चमड़े वाले विशाल लंड का स्वामी कल्लन मियां उर्फ़ कल्लू की जबरदस्त चुदाई ने मेरे जेहन में एक अमिट छाप छोड़ दी थी। उसे देखते ही अभी भी मेरा तन मन झंकृत हो उठा था। अद्भुत, अविश्वसनीय, अविस्मरणीय चुदाई थी वह। यही सब सोचते हुए मैं आगे बढ़ती चली गई।
"ऐसा नहीं होगा। मैं अपनी सहेलियों को बड़ी अच्छी तरह से जानती हूं।" कहने को तो कह गयी लेकिन फिर उसका अर्थ समझ कर लाल हो गई। भलोटिया मुझे और मेरी सहेलियों को छिनाल टाईप समझा होगा। हे राम मैं यह क्या बोल बैठी।
"अच्छा! ऐसा है? फिर तो बहुत बढ़िया। वैसे एक बात कहूं?" वह बोला।
"हां बोलिए।" मेरा दिल धक धक करने लगा कि पता नहीं अब वह क्या बोलने वाला है।
"तुम्हारी सब सहेलियां ऐसी ही हैं क्या?" कहते हुए उसकी आंखें चमक रही थीं। सच में मैं बहुत बड़ी ग़लती कर बैठी थी। लेकिन अब पछताए क्या होगा।
"हां।" मैं सर झुका कर बोली।
"फिर तो तुम्हारी सहेलियों से भी मिलना चाहूंगा। ऐसा हो सकता है क्या?" उसकी आंखों में चमक बढ़ गई थीं।
"हो काहे नहीं सकता है।" मैं झूठ नहीं बोल पाई।
"मैं उनके साथ भी यह सब कर सकता हूं क्या?" वह बड़ी बेशर्मी से अपने मन की इच्छा व्यक्त कर बैठा।
"यह मैं नहीं बोल सकती हूं। वे ऐसी जरूर हैं लेकिन उनकी पसंद के बारे में मैं क्या बोल सकती हूं।" मैं ने कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की लेकिन वह तो मेरे पीछे ही पड़ गया।
"तुम केवल उनसे मिलवा दो, बाकी मुझ पर छोड़ दो। इतनी मेहरबानी तो मुझ बूढ़े पर कर ही सकती हो।" मैं बातों ही बातों में फंस चुकी थी।
"अच्छा ठीक है। बाकी आप देख लीजिएगा।" कहकर मैंने बातों के सिलसिले को यहीं खत्म करना बेहतर समझा।
"वह मुझ पर छोड़ दो।" भलोटिया बोला।
"क्या बातें हो रही हैं?" घनश्याम बाथरूम से निकलते हुए बोला।
"यह हम दादा और पोती के बीच की बात है। तू अपने काम से काम रख। फिलहाल तो बिटिया के साथ घर जा और हां, आज के बाद बिटिया को बेवजह सजा वजा देने की बात भूल जा। मुझे पता चला कि तू बिटिया को बेवजह परेशान कर रहा है तो अच्छा नहीं होगा, समझे?" भलोटिया घनश्याम को चेतावनी देते हुए बोला। घनश्याम खिसिया कर रह गया।
"ठीक है भलोटिया जी, समझ गया। वैसे भी आपकी कृपादृष्टि जिस पर पड़ जाय, उसका बुरा सोचने की हिम्मत किसकी होगी। तो हम चलें?" घनश्याम नाटकीय अंदाज में बोला।
"बहुत बढ़िया। वैसे तुम्हारा शुक्रिया तो बनता ही है। इतनी जबरदस्त चीज जो मेरी खिदमत में ले कर आए।" भलोटिया, जो अब भी नंगा ही बैठा हुआ था, अपना लंड सहलाते हुए बोला। साला ठर्की बुड्ढा।
"शुक्रिया किस बात की, आपकी ही माल है। जब मन करे याद कर लीजिएगा।" घनश्याम किसी दलाल की तरह मस्का मारते हुए बोला। फिर हम वहां से रुखसत हुए। मैंने एक नजर भलोटिया की ओर फेरी तो वह मोटा भालू बड़े गंदे तरीके से मुझे आंख मारते हुए मुस्कुरा उठा, कुत्ता कहीं का। साला हरामी बुड्ढे का वश चलता तो मुझे यहीं रख कर चोदता रहता। पता नहीं घनश्याम किस पृष्ठभूमि से आया था कि उसके संपर्क में ऐसे ऐसे खड़ूस लोग थे। पहले गंजू , अब भलोटिया और उसका बॉडीगार्ड कल्लू। पता नहीं और कौन कौन लोग होंगे। यही सब सोचते हुए मैं घनश्याम के साथ बाहर निकलने लगी। अभी भी मुझे चलने में थोड़ी कठिनाई का अनुभव हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पांव मनचाहे अनुसार नहीं पड़ रहे थे। मेरी चूत और गांड़ के दरवाजे थोड़े सूज गये थे, इस कारण चलने से उनमें जो घर्षण हो रहा था उससे मीठा मीठा दर्द हो रहा था। उनमें हल्की हल्की जलन भी हो रही थी। किसी प्रकार मैं खुद को संभाल कर चल रही थी लेकिन मेरी चाल सामान्य नहीं थी, जिसे कोई भी देखने वाला बड़ी आसानी से कह सकता था कि मैं क्या गुल खिला कर आ रही हूं। अपनी इस हालत पर मुझे बड़ी शर्म आ रही थी लेकिन चेहरे पर कोई शिकन नहीं आने दे रही थी। आम तौर पर चेहरे का भाव आंतरिक स्थिति की चुगली करती है लेकिन चेहरे का भाव सामान्य होने के बावजूद मेरी चाल जो चुगली कर रही थी उसका क्या करती, जिस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं था। उसी हालत में चलती हुई जब घनश्याम के साथ बाहर निकल रही थी तभी कल्लू पर मेरी नजर पड़ी। वह भी मुस्कुराते हुए मुझे ही घूर रहा था और उसका हाथ पैंट के ऊपर से हथियार मसल रहा था। मैं भी उसकी जबरदस्त, अविस्मरणीय चुदाई की दीवानी, अपनी चूत में चुनचुनाहट को महसूस करते हुए मुस्कुरा उठी और घनश्याम के साथ आगे बढ़ गई। कटे चमड़े वाले विशाल लंड का स्वामी कल्लन मियां उर्फ़ कल्लू की जबरदस्त चुदाई ने मेरे जेहन में एक अमिट छाप छोड़ दी थी। उसे देखते ही अभी भी मेरा तन मन झंकृत हो उठा था। अद्भुत, अविश्वसनीय, अविस्मरणीय चुदाई थी वह। यही सब सोचते हुए मैं आगे बढ़ती चली गई।