26-04-2025, 12:08 PM
मेरी चूत और गांड़ का भुर्ता बना हुआ था। चूत के बाहर तक रिस कर वीर्य सूखने लगा था। मेरी गान्ड से भी मल से लिथड़ा वीर्य रिस कर सूखने लगा था जिन्हें धो पोंछ कर साफ करना आवश्यक था। मेरी चूचियों को भी नोच चीप कर सुजा दिया था कमीनों ने। चुदाई का नशा उतरने के बाद अब मुझे पता चल रहा था कि कितनी निर्ममता पूर्वक मेरी चुदाई हुई थी। अपनी दुर्दशा पर मन ही मन खुद को कोसती हुई लड़खड़ाते कदमों से बाथरूम की ओर बढ़ी।
"खुद चल कर जाने में परेशानी है तो मैं सहायता कर दूं?" यह भलोटिया की आवाज थी। साला मोटू बुड्ढा, मेरी सहायता करना चाहता था कि बाथरूम में मेरे साथ घुस कर मुझे चोदना चाहता था, पता नहीं।
"नहीं, जरूरत नहीं है, मैं खुद चल सकती हूं।" कहकर मैंने सारी शक्ति इकट्ठा करके बाथरूम की ओर चलती चली गयी। मेरे खड़े होने और चलने से मूत्राशय और मलाशय के अंदर का दबाव नियंत्रण में रखना मुश्किल लगने लगा था। किसी प्रकार बाथरूम में घुसी और बिना समय गंवाए दरवाजा खुला छोड़कर ही जल्दी से अपने कपड़े हैंगर पर टांग कर कमोड पर बैठ गयी। बैठते न बैठते भर्र भर्र, फर्र फर्र करके मेरे अंदर का दबाव अनियंत्रित होकर बाहर निकल पड़ा। मैं आंखें बंद किए मल-मूत्र विसर्जन में खोई हुई थी। मुझे अब काफी राहत का अहसास हो रहा था और हल्का महसूस हो रहा था। अब मुझे पता चल रहा था कि इन तीन लोगों ने बारी बारी से मुझे चोद चोद कर मेरी चूत और गांड़ को खोल कर रख दिया था। दोनों दरवाजे ढीले होकर अंदर की गंदगी को बिना किसी प्रयास के आसानी से निकलने दे रहे थे। हे भगवान, दोनों छेद काफी फैल भी गये थे और मल मूत्र विसर्जन के पश्चात अंदर से पूरी तरह खाली होने के बाद भी अपने आप बंद होने में आनाकानी कर रहे थे। क्या ये ऐसे ही ढीले रहेंगे? इस ख्याल से मैं तनिक आतंकित हो गई थी। इन्हीं आशंकाओं के साथ मैं निवृत्त होकर उठी और स्नान करने लगी। अच्छी तरह रगड़ रगड़कर नहा रही थी कि अपने तन और मन की सारी गंदगी से मुक्त हो जाऊं, लेकिन ऐसा लग रहा था मानो गंदगी मेरे तन मन से चिपक कर रह गई हो। निश्चित तौर पर यह मेरा वहम था लेकिन सच तो यही था कि शरीर भले ही साफ हो गया था पर मन तो पूरी तरह मैला हो चुका था। इस मैल से कैसे मुक्त होऊं? शायद कभी नहीं। वासना की एक अजीब सी भूख मेरे अंदर समा गई थी। ओह मेरे ईश्वर, मैं सचमुच रंडी बन गई थी।
नहा धोकर वहां टंगे तौलिए से मैंने अपने तन को रगड़ रगड़ कर पोंछा लेकिन मुझे अब भी लग रहा था कि सफाई में काफी कसर रह गई है। हां इतना अवश्य हुआ था कि मैं अब अपने आप को काफी तरोताजा महसूस कर रही थी। मैंने बिना पैंटी और ब्रा के अपने शरीर पर वही स्कर्ट और ब्लाऊज़ डाल लिया और बाहर निकल आई।
"वाह, चमचमा रही हो बिटिया। देखो, मेरा लौड़ा फिर से खड़ा होकर तुम्हें सलाम कर रहा है।" भलोटिया बोला, जिसका जवाब देने की मैंने कोई जरूरत नहीं समझी और घनश्याम की ओर देखने लगी। वह कमीना भी अबतक नंगा ही बैठा हुआ था।
"आपको चलना नहीं है क्या या अब भी कोई कसर बाकी है? फिर से करना है तो लो।" मैं उसे घूर कर देखते हुए कटु स्वर में बोली और अपने कपड़े उतारने का उपक्रम करने लगी। मेरी आवाज की तल्खी को भलोटिया अच्छी तरह महसूस कर लिया और जल्दी से बोला,
"नहीं नहीं। हो गया। मैं तो यूं ही बोल रहा था। वैसे बड़ी उदारता से तुमने हमलोगों को खुश किया। जी तो चाहता है कि तुझे रख लूं, लेकिन मजबूरी है। अब तुम्हें नहीं रोकूंगा। रश्मि के लिए तुम्हारा सुझाया आईडिया अब दिमाग में चलने लगा है। इसके लिए तुम्हारा शुक्रिया। अबे घंशू, तुझे बिटिया को अब घर ले जाना चाहिए। उठ जा साले।" भलोटिया बोला और घनश्याम खिसिया कर बाथरूम में फ्रेश होने के लिए घुस गया। उसके घुसते ही मैं भलोटिया की गोद में जा बैठी और उसके सख्त खंभे के मुठियाते हुए गरमागरम चुम्बन दे कर बोली,
"सच में इस उम्र में भी आप में बड़ा दम है। इस उम्र में यह हाल है तो जवानी में क्या थे होंगे। अभी भी हालत खराब कर देते हैं आप तो। आशा करती हूं रश्मि भी खुश हो जाएगी।"
भलोटिया मुदित हो कर प्रत्युत्तर में मुझे चूम कर बोला, "तू भी बड़ी जबरदस्त चीज हो बिटिया। देखो तो, अब भी मुझ बूढ़े का लौड़ा खड़ा का खड़ा ही है। ऐसा लग रहा है जैसे मैं फिर से जवान हो गया हूं। कितनी गजब की लौंडिया हो तुम। इतनी कम उम्र में इतने मजे से हम तीनों को निपटा देना मजाक नहीं है। आगे चलकर तो बड़े बड़ों को पानी पिला दोगी।"
"सब आप जैसे लोगों की मेहरबानी है दादाजी।" कहकर इससे पहले कि घनश्याम बाथरूम से बाहर निकलता, मैं चित्ताकर्षक मुस्कान के साथ उसकी गोद से उठ कर खुद को व्यवस्थित करने लगी। सच तो यह था कि उसके लंड को पकड़ कर मैं फिर से गनगना उठी थी। अपने मन को समझा कर वहां से रुखसत होना समय की मांग थी, अतः मन मारकर घनश्याम के निकलने का इंतजार करने लगी।
"उम्मीद है आज के बाद फिर मिलोगी।" भलोटिया आशापूर्ण दृष्टि से मुझे देखते हुए बोला।
"मिलूंगी काहे नहीं। याद कीजिएगा तो जरूर आऊंगी। वैसे उम्मीद है कि रश्मि को करने में सफल हो जाइएगा तो शायद मेरी जरूरत नहीं पड़ेगी।" मैं शरमाते हुए बोली।
"अय हय ऐसे शरमाते हुए तुम बड़ी खूबसूरत लग रही हो। वैसे जहां तक रश्मि की बात है तो वह तो उसे चोदने के बाद ही पता चलेगा कि उसमें तुम्हारी जैसी आग है कि नहीं। कपड़ों के ऊपर से ही सेक्सी दिखाई देती है या कपड़ों के बिना, वह तो उसके कपड़े उतारने के बाद पता चलेगा और खाली सेक्सी दिखाई देना ही काफी नहीं है, चोदने में भी उतना ही मज़ा आए तो कोई बात है। खैर जो भी हो, जो तुम्हें एक बार चोद ले, वह भला तुम्हें कभी भूल सकता है? कदापि नहीं।" भलोटिया बोलता चला जा रहा था।
"हटिए, आप बड़े वैसे हैं।" मैं शरम से लाल होती हुई बोली।
"खुद चल कर जाने में परेशानी है तो मैं सहायता कर दूं?" यह भलोटिया की आवाज थी। साला मोटू बुड्ढा, मेरी सहायता करना चाहता था कि बाथरूम में मेरे साथ घुस कर मुझे चोदना चाहता था, पता नहीं।
"नहीं, जरूरत नहीं है, मैं खुद चल सकती हूं।" कहकर मैंने सारी शक्ति इकट्ठा करके बाथरूम की ओर चलती चली गयी। मेरे खड़े होने और चलने से मूत्राशय और मलाशय के अंदर का दबाव नियंत्रण में रखना मुश्किल लगने लगा था। किसी प्रकार बाथरूम में घुसी और बिना समय गंवाए दरवाजा खुला छोड़कर ही जल्दी से अपने कपड़े हैंगर पर टांग कर कमोड पर बैठ गयी। बैठते न बैठते भर्र भर्र, फर्र फर्र करके मेरे अंदर का दबाव अनियंत्रित होकर बाहर निकल पड़ा। मैं आंखें बंद किए मल-मूत्र विसर्जन में खोई हुई थी। मुझे अब काफी राहत का अहसास हो रहा था और हल्का महसूस हो रहा था। अब मुझे पता चल रहा था कि इन तीन लोगों ने बारी बारी से मुझे चोद चोद कर मेरी चूत और गांड़ को खोल कर रख दिया था। दोनों दरवाजे ढीले होकर अंदर की गंदगी को बिना किसी प्रयास के आसानी से निकलने दे रहे थे। हे भगवान, दोनों छेद काफी फैल भी गये थे और मल मूत्र विसर्जन के पश्चात अंदर से पूरी तरह खाली होने के बाद भी अपने आप बंद होने में आनाकानी कर रहे थे। क्या ये ऐसे ही ढीले रहेंगे? इस ख्याल से मैं तनिक आतंकित हो गई थी। इन्हीं आशंकाओं के साथ मैं निवृत्त होकर उठी और स्नान करने लगी। अच्छी तरह रगड़ रगड़कर नहा रही थी कि अपने तन और मन की सारी गंदगी से मुक्त हो जाऊं, लेकिन ऐसा लग रहा था मानो गंदगी मेरे तन मन से चिपक कर रह गई हो। निश्चित तौर पर यह मेरा वहम था लेकिन सच तो यही था कि शरीर भले ही साफ हो गया था पर मन तो पूरी तरह मैला हो चुका था। इस मैल से कैसे मुक्त होऊं? शायद कभी नहीं। वासना की एक अजीब सी भूख मेरे अंदर समा गई थी। ओह मेरे ईश्वर, मैं सचमुच रंडी बन गई थी।
नहा धोकर वहां टंगे तौलिए से मैंने अपने तन को रगड़ रगड़ कर पोंछा लेकिन मुझे अब भी लग रहा था कि सफाई में काफी कसर रह गई है। हां इतना अवश्य हुआ था कि मैं अब अपने आप को काफी तरोताजा महसूस कर रही थी। मैंने बिना पैंटी और ब्रा के अपने शरीर पर वही स्कर्ट और ब्लाऊज़ डाल लिया और बाहर निकल आई।
"वाह, चमचमा रही हो बिटिया। देखो, मेरा लौड़ा फिर से खड़ा होकर तुम्हें सलाम कर रहा है।" भलोटिया बोला, जिसका जवाब देने की मैंने कोई जरूरत नहीं समझी और घनश्याम की ओर देखने लगी। वह कमीना भी अबतक नंगा ही बैठा हुआ था।
"आपको चलना नहीं है क्या या अब भी कोई कसर बाकी है? फिर से करना है तो लो।" मैं उसे घूर कर देखते हुए कटु स्वर में बोली और अपने कपड़े उतारने का उपक्रम करने लगी। मेरी आवाज की तल्खी को भलोटिया अच्छी तरह महसूस कर लिया और जल्दी से बोला,
"नहीं नहीं। हो गया। मैं तो यूं ही बोल रहा था। वैसे बड़ी उदारता से तुमने हमलोगों को खुश किया। जी तो चाहता है कि तुझे रख लूं, लेकिन मजबूरी है। अब तुम्हें नहीं रोकूंगा। रश्मि के लिए तुम्हारा सुझाया आईडिया अब दिमाग में चलने लगा है। इसके लिए तुम्हारा शुक्रिया। अबे घंशू, तुझे बिटिया को अब घर ले जाना चाहिए। उठ जा साले।" भलोटिया बोला और घनश्याम खिसिया कर बाथरूम में फ्रेश होने के लिए घुस गया। उसके घुसते ही मैं भलोटिया की गोद में जा बैठी और उसके सख्त खंभे के मुठियाते हुए गरमागरम चुम्बन दे कर बोली,
"सच में इस उम्र में भी आप में बड़ा दम है। इस उम्र में यह हाल है तो जवानी में क्या थे होंगे। अभी भी हालत खराब कर देते हैं आप तो। आशा करती हूं रश्मि भी खुश हो जाएगी।"
भलोटिया मुदित हो कर प्रत्युत्तर में मुझे चूम कर बोला, "तू भी बड़ी जबरदस्त चीज हो बिटिया। देखो तो, अब भी मुझ बूढ़े का लौड़ा खड़ा का खड़ा ही है। ऐसा लग रहा है जैसे मैं फिर से जवान हो गया हूं। कितनी गजब की लौंडिया हो तुम। इतनी कम उम्र में इतने मजे से हम तीनों को निपटा देना मजाक नहीं है। आगे चलकर तो बड़े बड़ों को पानी पिला दोगी।"
"सब आप जैसे लोगों की मेहरबानी है दादाजी।" कहकर इससे पहले कि घनश्याम बाथरूम से बाहर निकलता, मैं चित्ताकर्षक मुस्कान के साथ उसकी गोद से उठ कर खुद को व्यवस्थित करने लगी। सच तो यह था कि उसके लंड को पकड़ कर मैं फिर से गनगना उठी थी। अपने मन को समझा कर वहां से रुखसत होना समय की मांग थी, अतः मन मारकर घनश्याम के निकलने का इंतजार करने लगी।
"उम्मीद है आज के बाद फिर मिलोगी।" भलोटिया आशापूर्ण दृष्टि से मुझे देखते हुए बोला।
"मिलूंगी काहे नहीं। याद कीजिएगा तो जरूर आऊंगी। वैसे उम्मीद है कि रश्मि को करने में सफल हो जाइएगा तो शायद मेरी जरूरत नहीं पड़ेगी।" मैं शरमाते हुए बोली।
"अय हय ऐसे शरमाते हुए तुम बड़ी खूबसूरत लग रही हो। वैसे जहां तक रश्मि की बात है तो वह तो उसे चोदने के बाद ही पता चलेगा कि उसमें तुम्हारी जैसी आग है कि नहीं। कपड़ों के ऊपर से ही सेक्सी दिखाई देती है या कपड़ों के बिना, वह तो उसके कपड़े उतारने के बाद पता चलेगा और खाली सेक्सी दिखाई देना ही काफी नहीं है, चोदने में भी उतना ही मज़ा आए तो कोई बात है। खैर जो भी हो, जो तुम्हें एक बार चोद ले, वह भला तुम्हें कभी भूल सकता है? कदापि नहीं।" भलोटिया बोलता चला जा रहा था।
"हटिए, आप बड़े वैसे हैं।" मैं शरम से लाल होती हुई बोली।