21-04-2025, 12:58 PM
उसके जाने के बाद शुभम ने मुझसे पूछा कि मैं उसे कैसे पसंद करती हूँ मैंने उससे कहा कि मैं उसे पसंद करती हूँ की वह एक अच्छा इंसान है और बहुत खुशमिजाज स्वभाव का है
तो माँ भविष्य में हम तीनों दोस्त हैं
मैंने सहमति जताई और स्वीकार किया और कहा कि हाँ , हम अच्छे दोस्त हो सकते हैं
मैं एक सभ्य व्यक्ति से मिलकर खुशी हुई जिसके साथ मुझे बात करना पसंद था , उसके बाद वह जब भी रांची आता था हमसे मिलने आता था और वह मेरे और शुभम के लिए उपहार लाता था इसलिए जब वह हमसे मिलने आता था तो हम साथ में ड्रिंक करते थे और खाना खाते थे , मैं उसे पसंद करने लगी और मुझे उसका साथ अच्छा लगता था , वह अच्छे चुटकुले सुनाता था और कभी-कभी वह कुछ वयस्क चुटकुले सुनाता था जिससे मुझे अपने बेटे के सामने उसे गले लगना पड़ता था लेकिन वह कभी परवाह नहीं करता और कहता था कि चिंता मत करो शुभम हमारे दोस्त की तरह है लेकिन मैं उसके सामने शरमा जाती थी लेकिन जब हम अकेले होते थे तो मुझे उनका साथ अच्छा लगता था , वह ज्यादातर मुझसे तब मिलता था जब शुभम घर पर होता था लेकिन कुछ बार वह तब आता था जब शुभम अपने विश्वविद्यालय में रहता था और हम हर चीज के बारे में बात करते था और मैं कभी-कभी उसे बात करते करते खुद में कामवासना महसूस करती थी लेकिन उसने मेरे साथ कभी कुछ बुरा नहीं किया इसलिए मैं खुद को कभी आगे नहीं बढ़ा सकी लेकिन मेरे दिल में उसके लिए कामुकता थी।
इस तरह समय बीतता चला गया करीब तीन महीने बीत गए एक दिन शुभम ने सिनेमा के लिए टिकट खरीदा और हम एक नई रिलीज़ हुई फिल्म देखने गए, हम तैयार हुए और मैंने एक नई साड़ी पहनी जो मिस्टर इरफान ने मुझे कुछ समय पहले मैचिंग ब्लाउज़ के साथ गिफ्ट की थी और मैंने हल्का मेकअप किया था इसलिए मैं वाकई बहुत खूबसूरत लग रही थी। जब मिस्टर इरफान ने मुझे देखा तो उसने मेरी खूबसूरती की तारीफ़ की, मैं उसकी आँखों में वासना देख सकती थी जब वह मुझे देख रहा था मुझे शर्म आ रही थी लेकिन मुझे उसका इस तरह घूरना अच्छा लग रहा था
जब हम सिनेमा हॉल में दाखिल हुए तो वहाँ आखिरी पंक्ति की सीटें ऊपर थीं लेकिन बैठने में एक समस्या थी, दो सीटें गलियारे के एक तरफ थीं और एक दूसरी तरफ थी, पहले हमने बदलने की कोशिश की लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका इसलिए मैं और मिस्टर इरफान साथ में बैठ गए और शुभम गलियारे के दूसरी तरफ बैठ गया (लेकिन बाद में कुछ समय बाद मुझे पता चला कि शुभम ने हमें और करीब लाने के लिए जानबूझकर ऐसा किया था) मैं पहले कोने वाली सीट पर था और मेरे बगल में मिस्टर इरफान मेरे बाएं हाथ वाली सीट पर मेरे करीब बैठा था, उसके बगल में एक आदमी अपनी पत्नी के साथ बैठा था।
कुछ समय बाद फिल्म शुरू हुई और हॉल में चारों तरफ अंधेरा छा गया और केवल सामने की स्क्रीन पर रोशनी थी और मैं फिल्म देखने में व्यस्त थी, धीरे-धीरे मुझे महसूस हुआ कि मिस्टर इरफान ने अपना हाथ मेरी सीट के हेडरेस्ट के पीछे रख दिया
मैंने मिस्टर इरफान के हाथ को अपने कंधों पर स्पर्श होते हूऐ मैंने महसूस किया मुझे लगा शायद वो अपने लंबे कद के कारण सीट पर सही से एडजस्ट नही पा रहें है इस लिया इस तरह मेरे करीब हो कर बैठे थे अब उनका बाजु मेरे कांधों पर था और उनका मुँह मेरे कान के बिल्कुल करीब आ गया और वो आहिस्ता से मेरे कान मैं बोले “ शालिनी जी … आज आप बेहद खूब सूरत लग रही हो ……..मैंने भी आहिस्ता से कहा “… जी थैंक्यू …… ये साड़ी तो आप ने ही गिफ्ट किया था याद है ना….”
हां मुझे पता है कि तुम पर यह बहुत खूबसूरत लग रहा है और तुम बहुत प्यारी लग रही हो,...... मैं मुस्कुराने लगी और दिल ही दिल मैं बहुत खुश होई पर कुछ देर की खामोशी के बाद वो बोले "शालिनी जी तुम मुझे बहुत अच्छा लगती हो "
आप भी मुझे बहुत अच्छे लगते है ………मैंने बहुत आहिस्ता से कहा , सच मैं ,,,,,उन्होन ने हैरान से कहा ……वह और मेरे और करीब आते हुऐ मेरे कान के बिल्कुल करीब होते हुए हैरान से कहा एक बार दोबारा मेरी तरफ देख कर कहना ।
मैंने अपने चेहरे को उनकी तरफ किया और दोबारा आहिस्ता से कहा “आप भी बहुत अच्छे हैं” ये सुन कर वो एकदम उतेजित हो गया और बोले मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा है…
मैं हल्की सी हंसने लगी और बोली क्यों…आपको मेरी बात पर यकीन नहीं है किया आप अच्छे इंसान हैं तो इसी लिए सभी को अच्छे लगते हैं....
तो माँ भविष्य में हम तीनों दोस्त हैं
मैंने सहमति जताई और स्वीकार किया और कहा कि हाँ , हम अच्छे दोस्त हो सकते हैं
मैं एक सभ्य व्यक्ति से मिलकर खुशी हुई जिसके साथ मुझे बात करना पसंद था , उसके बाद वह जब भी रांची आता था हमसे मिलने आता था और वह मेरे और शुभम के लिए उपहार लाता था इसलिए जब वह हमसे मिलने आता था तो हम साथ में ड्रिंक करते थे और खाना खाते थे , मैं उसे पसंद करने लगी और मुझे उसका साथ अच्छा लगता था , वह अच्छे चुटकुले सुनाता था और कभी-कभी वह कुछ वयस्क चुटकुले सुनाता था जिससे मुझे अपने बेटे के सामने उसे गले लगना पड़ता था लेकिन वह कभी परवाह नहीं करता और कहता था कि चिंता मत करो शुभम हमारे दोस्त की तरह है लेकिन मैं उसके सामने शरमा जाती थी लेकिन जब हम अकेले होते थे तो मुझे उनका साथ अच्छा लगता था , वह ज्यादातर मुझसे तब मिलता था जब शुभम घर पर होता था लेकिन कुछ बार वह तब आता था जब शुभम अपने विश्वविद्यालय में रहता था और हम हर चीज के बारे में बात करते था और मैं कभी-कभी उसे बात करते करते खुद में कामवासना महसूस करती थी लेकिन उसने मेरे साथ कभी कुछ बुरा नहीं किया इसलिए मैं खुद को कभी आगे नहीं बढ़ा सकी लेकिन मेरे दिल में उसके लिए कामुकता थी।
इस तरह समय बीतता चला गया करीब तीन महीने बीत गए एक दिन शुभम ने सिनेमा के लिए टिकट खरीदा और हम एक नई रिलीज़ हुई फिल्म देखने गए, हम तैयार हुए और मैंने एक नई साड़ी पहनी जो मिस्टर इरफान ने मुझे कुछ समय पहले मैचिंग ब्लाउज़ के साथ गिफ्ट की थी और मैंने हल्का मेकअप किया था इसलिए मैं वाकई बहुत खूबसूरत लग रही थी। जब मिस्टर इरफान ने मुझे देखा तो उसने मेरी खूबसूरती की तारीफ़ की, मैं उसकी आँखों में वासना देख सकती थी जब वह मुझे देख रहा था मुझे शर्म आ रही थी लेकिन मुझे उसका इस तरह घूरना अच्छा लग रहा था
जब हम सिनेमा हॉल में दाखिल हुए तो वहाँ आखिरी पंक्ति की सीटें ऊपर थीं लेकिन बैठने में एक समस्या थी, दो सीटें गलियारे के एक तरफ थीं और एक दूसरी तरफ थी, पहले हमने बदलने की कोशिश की लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका इसलिए मैं और मिस्टर इरफान साथ में बैठ गए और शुभम गलियारे के दूसरी तरफ बैठ गया (लेकिन बाद में कुछ समय बाद मुझे पता चला कि शुभम ने हमें और करीब लाने के लिए जानबूझकर ऐसा किया था) मैं पहले कोने वाली सीट पर था और मेरे बगल में मिस्टर इरफान मेरे बाएं हाथ वाली सीट पर मेरे करीब बैठा था, उसके बगल में एक आदमी अपनी पत्नी के साथ बैठा था।
कुछ समय बाद फिल्म शुरू हुई और हॉल में चारों तरफ अंधेरा छा गया और केवल सामने की स्क्रीन पर रोशनी थी और मैं फिल्म देखने में व्यस्त थी, धीरे-धीरे मुझे महसूस हुआ कि मिस्टर इरफान ने अपना हाथ मेरी सीट के हेडरेस्ट के पीछे रख दिया
मैंने मिस्टर इरफान के हाथ को अपने कंधों पर स्पर्श होते हूऐ मैंने महसूस किया मुझे लगा शायद वो अपने लंबे कद के कारण सीट पर सही से एडजस्ट नही पा रहें है इस लिया इस तरह मेरे करीब हो कर बैठे थे अब उनका बाजु मेरे कांधों पर था और उनका मुँह मेरे कान के बिल्कुल करीब आ गया और वो आहिस्ता से मेरे कान मैं बोले “ शालिनी जी … आज आप बेहद खूब सूरत लग रही हो ……..मैंने भी आहिस्ता से कहा “… जी थैंक्यू …… ये साड़ी तो आप ने ही गिफ्ट किया था याद है ना….”
हां मुझे पता है कि तुम पर यह बहुत खूबसूरत लग रहा है और तुम बहुत प्यारी लग रही हो,...... मैं मुस्कुराने लगी और दिल ही दिल मैं बहुत खुश होई पर कुछ देर की खामोशी के बाद वो बोले "शालिनी जी तुम मुझे बहुत अच्छा लगती हो "
आप भी मुझे बहुत अच्छे लगते है ………मैंने बहुत आहिस्ता से कहा , सच मैं ,,,,,उन्होन ने हैरान से कहा ……वह और मेरे और करीब आते हुऐ मेरे कान के बिल्कुल करीब होते हुए हैरान से कहा एक बार दोबारा मेरी तरफ देख कर कहना ।
मैंने अपने चेहरे को उनकी तरफ किया और दोबारा आहिस्ता से कहा “आप भी बहुत अच्छे हैं” ये सुन कर वो एकदम उतेजित हो गया और बोले मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा है…
मैं हल्की सी हंसने लगी और बोली क्यों…आपको मेरी बात पर यकीन नहीं है किया आप अच्छे इंसान हैं तो इसी लिए सभी को अच्छे लगते हैं....


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