14-04-2025, 09:52 AM
"भगवान के लिए अभी के लिए मुझे बख्श दीजिए। अगर मन नहीं भरा तो घर जाकर रश्मि से कसर पूरी कर लीजिए।" मैं बोली। मेरी बात सुनकर कल्लू अपनी जगह पर ही ठिठक कर रुक गया।
"रश्मि? यह रश्मि कौन है गुरु?" कल्लू भलोटिया की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगा।
"अरे रश्मि बिटिया की बात कर रही है रे।"
"रश्मि? अपनी रश्मि?" कल्लू की आंखें बड़ी-बड़ी हो गयीं।
"हां रे हां, अपनी रश्मि।"
"बाप रे बाप, यह उसके बारे में ऐसा कैसे बोल रही है?" हैरानी से कल्लू बोला।
"जो सच है वही तो बोल रही है। उसके साथ पढ़ती है, तो उसके बारे में अच्छी तरह से जानती होगी। इसकी सहेली है तो इसी की तरह ही होगी। वह भी यहां वहां मुंह मारती होगी। हम तो घर के ही हैं। हमारे रहते वह इधर उधर काहे मुंह मारे? आखिर हम किस मर्ज की दवा हैं?" भलोटिया बड़ी बेशर्मी से बोला।
"आप उसके साथ ऐसा करने की सोच कैसे सकते हैं? वह तो आपकी पोती है।" कल्लू अविश्वास से उसे देखने लगा। "साले, वह पोती है तो क्या हुआ, लौंडिया तो है। इसी रोज की तरह नमकीन लौंडिया। चूत वाली लौंडिया और हम ठहरे लंड वाले मर्द। चूत और लंड के बीच यह दादा पोती के रिश्ते का क्या मतलब है बे? उसे लंड चाहिए और हमें चूत। बस। वैसे भी घर की बात घर में। सही बोल रहा हूं कि नहीं?" भलोटिया अपना कुतर्क देते हुए बोला और मैं सोचने लगी कि मेरा तीर सटीक निशाने पर लगा था। अब रश्मि की खैर नहीं। साली मेरी तरह घरवालों से ही मरवाने लगेगी। ऐसा चोदू दादा जिस घर में हो उस घर की पोती कब तक खैर मनाएगी। चलो चिंगारी तो सुलगा चुकी थी, देखने वाली बात यह थी कि इस चिंगारी की आग उस घर में किस किस को जलाने जा रही थी। जैसे मेरे बाद आग की चपेट में मेरी मां भी आ चुकी थी, कहीं ऐसा रश्मि के घर में भी तो नहीं होने जा रहा था?
"लेकिन रश्मि मान जाएगी? बाहर किसी से भी मरवाती हो लेकिन अपने दादाजी के साथ?" कल्लू अब भी आश्वस्त नहीं था।
"सब होगा। तू देखता जा। साला जबसे वह जवान हुई है, उसकी चाल ढाल देखते ही मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता है। अब तो रोज बिटिया की बदौलत एक आशा की किरण दिखाई देने लगी है। सब भला होगा। शुभ शुभ सोचा कर।" भलोटिया पूरे विश्वास के साथ बोला। उसकी बात सुनकर कल्लू चुपचाप सर हिलाते हुए वहां से रुखसत हुआ और मैंने देखा कि कल्लू के होंठों पर एक अजीब सी मुस्कान तैर रही थी। मैं समझ गई कि कल्लू के मन में भी लड्डू फ़ूटने लगा था।लेकिन अब मैं भी उठने की कोशिश करने लगी थी। जबतक मैं बिस्तर से उतरती कल्लू वहां से खिसक चुका था। कल्लू और भलोटिया के बीच के वार्तालाप को जहां मैं बड़े मजे लेकर सुन रही थी वहीं घनश्याम मुझे घूरता हुआ मन ही मन गालियां दे रहा था होगा। जहां मैं भलोटिया का ध्यान भटका कर अपनी मुक्ति की खुशी मना रही थी वहीं घनश्याम मन ही मन कुढ़ रहा था होगा कि मुझे अच्छी तरह प्रताड़ित करने की उसकी मंशा पर पानी फिर चुका था।
बिना कुछ और बोले मैं किसी प्रकार उठ बैठी और अपने कपड़े उठाने लगी कि बाथरूम जाकर फ्रेश हो जाऊं, कि मुझे भलोटिया की आवाज सुनाई दी, "बहुत अच्छा, अब अच्छी बच्ची की तरह अपने आप को साफ सुथरी कर ले। तुम्हारी वजह से मेरा दिन बहुत बढ़िया बन गया।" साला बुड्ढा, वह तो भला हो कल्लू का कि मेरा दिन यादगार बना दिया, वरना मेरा दिन खराब करने में इन लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी, साले खड़ूस कहीं के।
"रश्मि? यह रश्मि कौन है गुरु?" कल्लू भलोटिया की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगा।
"अरे रश्मि बिटिया की बात कर रही है रे।"
"रश्मि? अपनी रश्मि?" कल्लू की आंखें बड़ी-बड़ी हो गयीं।
"हां रे हां, अपनी रश्मि।"
"बाप रे बाप, यह उसके बारे में ऐसा कैसे बोल रही है?" हैरानी से कल्लू बोला।
"जो सच है वही तो बोल रही है। उसके साथ पढ़ती है, तो उसके बारे में अच्छी तरह से जानती होगी। इसकी सहेली है तो इसी की तरह ही होगी। वह भी यहां वहां मुंह मारती होगी। हम तो घर के ही हैं। हमारे रहते वह इधर उधर काहे मुंह मारे? आखिर हम किस मर्ज की दवा हैं?" भलोटिया बड़ी बेशर्मी से बोला।
"आप उसके साथ ऐसा करने की सोच कैसे सकते हैं? वह तो आपकी पोती है।" कल्लू अविश्वास से उसे देखने लगा। "साले, वह पोती है तो क्या हुआ, लौंडिया तो है। इसी रोज की तरह नमकीन लौंडिया। चूत वाली लौंडिया और हम ठहरे लंड वाले मर्द। चूत और लंड के बीच यह दादा पोती के रिश्ते का क्या मतलब है बे? उसे लंड चाहिए और हमें चूत। बस। वैसे भी घर की बात घर में। सही बोल रहा हूं कि नहीं?" भलोटिया अपना कुतर्क देते हुए बोला और मैं सोचने लगी कि मेरा तीर सटीक निशाने पर लगा था। अब रश्मि की खैर नहीं। साली मेरी तरह घरवालों से ही मरवाने लगेगी। ऐसा चोदू दादा जिस घर में हो उस घर की पोती कब तक खैर मनाएगी। चलो चिंगारी तो सुलगा चुकी थी, देखने वाली बात यह थी कि इस चिंगारी की आग उस घर में किस किस को जलाने जा रही थी। जैसे मेरे बाद आग की चपेट में मेरी मां भी आ चुकी थी, कहीं ऐसा रश्मि के घर में भी तो नहीं होने जा रहा था?
"लेकिन रश्मि मान जाएगी? बाहर किसी से भी मरवाती हो लेकिन अपने दादाजी के साथ?" कल्लू अब भी आश्वस्त नहीं था।
"सब होगा। तू देखता जा। साला जबसे वह जवान हुई है, उसकी चाल ढाल देखते ही मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता है। अब तो रोज बिटिया की बदौलत एक आशा की किरण दिखाई देने लगी है। सब भला होगा। शुभ शुभ सोचा कर।" भलोटिया पूरे विश्वास के साथ बोला। उसकी बात सुनकर कल्लू चुपचाप सर हिलाते हुए वहां से रुखसत हुआ और मैंने देखा कि कल्लू के होंठों पर एक अजीब सी मुस्कान तैर रही थी। मैं समझ गई कि कल्लू के मन में भी लड्डू फ़ूटने लगा था।लेकिन अब मैं भी उठने की कोशिश करने लगी थी। जबतक मैं बिस्तर से उतरती कल्लू वहां से खिसक चुका था। कल्लू और भलोटिया के बीच के वार्तालाप को जहां मैं बड़े मजे लेकर सुन रही थी वहीं घनश्याम मुझे घूरता हुआ मन ही मन गालियां दे रहा था होगा। जहां मैं भलोटिया का ध्यान भटका कर अपनी मुक्ति की खुशी मना रही थी वहीं घनश्याम मन ही मन कुढ़ रहा था होगा कि मुझे अच्छी तरह प्रताड़ित करने की उसकी मंशा पर पानी फिर चुका था।
बिना कुछ और बोले मैं किसी प्रकार उठ बैठी और अपने कपड़े उठाने लगी कि बाथरूम जाकर फ्रेश हो जाऊं, कि मुझे भलोटिया की आवाज सुनाई दी, "बहुत अच्छा, अब अच्छी बच्ची की तरह अपने आप को साफ सुथरी कर ले। तुम्हारी वजह से मेरा दिन बहुत बढ़िया बन गया।" साला बुड्ढा, वह तो भला हो कल्लू का कि मेरा दिन यादगार बना दिया, वरना मेरा दिन खराब करने में इन लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी, साले खड़ूस कहीं के।