05-04-2025, 01:01 PM
"दर्द हुआ?" कल्लू बोला।
"हां, लेकिन आप चालू रखिए। आपको मजा आ रहा है ना, यह मेरे लिए काफी है।" मैं बोली। अबतक इतनी हरामजादी तो बन गई थी कि अपने मन की बात छिपा कर चुदक्कड़ की हौसला-अफजाई करके मजा ले लूं। बस फिर क्या था फिर वही, अब पीछे से कुत्ते की भकाभक चुदाई का सिलसिला चालू हो गया। इस पोजीशन में भी कल्लू पीछे से मेरी चूचियों को निचोड़ना नहीं छोड़ा था। जब मेरी चूचियों को निचोड़ते हुए ठोकता था तो उसका लंड थोड़ा बाहर बाहर ही रहता था लेकिन कुछ देर इस तरह ठोकने के बाद मेरी कमर पकड़ कर पीछे की ओर घसीट लेता था और अपने पूरे लंड की लंबाई घुसेड़ देता था। कभी कभी मेरे कंधों को भी पकड़ कर ठोकने लगता था। बड़ी जबरदस्त तरीके से मेरा सारा कस बल निकाल लेने को आमादा था वह। शायद किस्मत से चोदने को हासिल हुई मेरे जैसी कमसिन लड़की को जी भर के पूरा मज़ा लेते हुए चोद कर पूरी तरह संतुष्ट होना चाह रहा था। वह मेरे शरीर से अधिकतम मजा लेने का हरसंभव प्रयास कर रहा था और इस चक्कर में मुझे बेहाल किए जा रहा था। बेहाल क्या, मुझ रांड को भी तो ऐसी ही चुदाई की तलब लगी थी और लो, अब मुस्टंडे के मूसल से कुटी जा रही थी। उस दैत्य द्वारा मेरे शरीर को नोचा जा रहा था, मेरी चूचियों को निचोड़ा जा रहा था और उसके मूसलाकार लंड से मेरी बुर का भोंसड़ा बनाया जा रहा था। देखने में यह सब भोगना और लोगों को बड़ा ही तकलीफदेह लगेगा लेकिन मुझे बड़ा रोमांचक और उत्तेजक अनुभव के साथ अलग ही तरह का सुखद अहसास हो रहा था।
अंततः, उस अंतहीन सी लगने वाली चुदाई का, करीब आधे घंटे बाद समापन का वह पल आ पहुंचा जिसका मैं बड़ी शिद्दत से इंतजार कर रही थी। ओह वह उत्तेजना का चरमोत्कर्ष था जहां पहुंच कर मुझे झड़ना था और इसी सुखद पलों में कल्लू भी धुआंधार चुदाई किए जा रहा था। उसकी रफ़्तार और हांफना, कांपना और अचानक मेरे अंदर समा जाने की पुरजोर कोशिश करते हुए मुझे अपने से चिपका कर थम जाना उसके भी चर्मोत्कर्ष मे पहुंचने का संकेत था। और लो, हो गया शुरू, फच्च फच्च पिचकारी का छूटना, जिससे मेरी कोख हरी होने लग गई। हर फच्च के साथ उसका शरीर झटका ले रहा था। उसका लंड गरमा गरम वीर्य थूकते हुए, या यों कहूं कि उगलते हुए गर्भगृह को सींचने लगा और मैं उस स्खलन के सुख सागर में डूबने उतराने लगी।
"ओओओओहहहहह चोदूऊऊऊऊऊ चच्चाआआआआ, ओओओओहहहहह मांआंआंआंआंआं.... गयी मैं गई मेरे हर्रामीईईईईईईई... चच्आआआआहहहहह...." मेरे मुंह से आनंद भरी आह चीख की तरह निकल पड़ी। मुझे परवाह नहीं थी कि भलोटिया या घनश्याम पर मेरे इन अल्फाजों का क्या असर होगा।
"आआआआआहहहह ओओओओहहहहह गया मैं गया गुरूजी। साली रंडीईईईईईईई....... आआआआआहहहह गज्जब, चूऊऊऊस रही है मेरा लौड़ा" कहते हुए वह झड़ता रहा और पूरी तरह खल्लास हो कर ढह गया। सच कह रहा था वह। मैं सचमुच अपनी चूत सिकोड़ कर उसके लंड को चूस रही थी। शुरू शुरू में मुझे ताज्जुब होता था कि अपने स्खलन के दौरान मेरी चूत खुद ब खुद संकुचित हो कर लंड का रस निचोड़ने लगती थी। यह स्वाभाविक था या अस्वभाविक था मुझे पता नहीं, लेकिन मैं खुद भी वीर्य का कतरा कतरा अपने अंदर जज्ब करते हुए स्खलन का पूरा लुत्फ लेना सीख गई थी। पूरी तरह खल्लास होकर मैं भी मुंह के बल बिस्तर पर निढाल ढह कर लंबी लंबी सांसें लेने लगी जैसे मीलों दौड़ कर आई हूं। उन स्खलन के पलों पर जो अल्फाज़ हमारे मुंह से निकले थे उसके बाद और कोई शब्द नहीं निकल रहा था। कोई शब्द निकालने की ताकत भी नहीं बची थी। कल्लू की क्या हालत थी वह तो मुझे पता नहीं लेकिन मेरी तो जैसे सारी शक्ति निचुड़ गई थी। मैं थक कर चूर कुछ देर तक आंखें बंद किए स्खलन सुख में डूबी हुई थी। रेखा का कथन कितना सत्य था, यह मुझे अभी पता चला। खतना किए हुए खुल्ले चिकने लंड से चुदने का वह अद्भुत अहसास सिर्फ महसूस किया जा सकता है। ओह कितना सुखद अहसास था वह। तभी तो उतना लंबा और मोटा लंड मेरी चूत में बड़े आराम से सटासट अन्दर बाहर हो रहा था। उसकी दीर्घ स्तंभन क्षमता का भी शायद यह एक कारण था। एक स्वस्थ, हट्टे-कट्टे आदमी के लिए, चोदने में उसका खतना किया हुआ लंड सोने पर सुहागा का काम कर रहा था। सचमुच, मजा आ गया, पूरी संतुष्टि मिली थी।
"गये दोनों। गजब का दृश्य देखा। ऐसी चुदाई पहले नहीं देखा था। साला इतना जबरदस्त था कि देखते देखते मेरा लौड़ा दुबारा खड़ा हो गया।" भलोटिया की आवाज सुनाई दी और मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। साला मादरचोद ठरकी बुड्ढा अब क्या मुझे दुबारा चोदने की सोच रहा है? नहीं नहीं, बस अब और नहीं। बहुत हो गया। पता नहीं हमारी चुदाई के दौरान ही कब भलोटिया भी बिस्तर से उठ कर सोफे में पसर गया था। मैंने अलसाई हालत में सर घूमाकर भलोटिया के आवाज की ओर दृष्टि फेरी तो मेरी रूह फना हो गयी थी। सचमुच उस भालू भलोटिया का लन्ड खंभे की शक्ल में सख्त, तन कर खड़ा था। भलोटिया की मुद्रा बता रही थी कि वह फिर से चोदने को मन बना चुका था। भलोटिया और घनश्याम अगल बगल सोफे पर पसरे बैठे थे। घनश्याम कहां पीछे रहने वाला था।
"फिर से चोदना है क्या?" घनश्याम भलोटिया से पूछ रहा था या अपने मन की इच्छा व्यक्त कर रहा था, पता नहीं। लेकिन उसका खंभा भी फनफनाते हुए मूक घोषणा कर रहा था कि मेरी चूत में घुस कर तहलका मचाने को बेताब है।
"मन तो है लेकिन बिटिया की हालत पर तरस आ रहा है।" भलोटिया तनिक मायूसी से बोला।
"मन को पिंजरे में न डालिए भाई। माले मुफ्त, दिले बेरहम। इस मां की लौड़ी पर तरस खाने की जरूरत नहीं है। अभी भी हम जैसे दो चार को आराम से निपटा देने का दम है साली में।" घनश्याम बोल उठा।
"हां हां, मार ही डालिए मुझको। आपलोग कैसे आदमी हैं मुझे समझ नहीं आ रहा है। मेरी हालत पर जरा भी दया नहीं आती आप लोगों को। आपलोग आदमी हो कि जानवर हो समझ में नहीं आ रहा है। देख नहीं रहे मेरी हालत? अब और नहीं होगा मुझसे। तीन आदमी बारी बारी से और मैं एक अकेली लड़की, फिर भी आप लोगों का मन नहीं भरा, ऐसे तो मर जाऊंगी मैं।" मैं तिक्त स्वर में बौखला कर बोली। मेरा सारा कस बल तो निकल चुका था और इन हरामियों को दुबारा चोदने की पड़ी थी।
"सर जी, मेरा तो हो गया। आप लोगों की मेहरबानी से इतना बढ़िया माल में हाथ साफ करने का मौका मिला, बहुत बहुत शुक्रिया। अब हम चलते हैं, अब आप लोगों को जितना मौज करना है कीजिए, मैं बाहर तैनात रहूंगा।" कहकर कल्लू बिस्तर से उठकर अपने कपड़े पहनने लगा। कपड़े पहनते पहनते ही वह फिर बोला, "इतनी कम उम्र वाली लड़की इतनी जानदार निकलेगी, हम नहीं सोचे थे। सच में, किस्मत संवर गया।" साला कुच्चड़ कहीं का। बोल रहा था किस्मत संवर गया, हरामी कहीं का। मुझे निचोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ा था। बड़ा ही जबरदस्त चुदक्कड़ था यह। ऐसे जबरदस्त तरीके से चोदा था कि चुदने की मेरी सारी ख्वाहिश पूरी हो गई। जन्नत की सैर करा दिया था लेकिन दिन में ही तारे भी दिखा दिया था। लेकिन इस चक्कर में कितनी बुरी तरह से मुझे निचोड़ा था कि अब मुझमें बिस्तर से उठने का भी दम नहीं था।
"हां, लेकिन आप चालू रखिए। आपको मजा आ रहा है ना, यह मेरे लिए काफी है।" मैं बोली। अबतक इतनी हरामजादी तो बन गई थी कि अपने मन की बात छिपा कर चुदक्कड़ की हौसला-अफजाई करके मजा ले लूं। बस फिर क्या था फिर वही, अब पीछे से कुत्ते की भकाभक चुदाई का सिलसिला चालू हो गया। इस पोजीशन में भी कल्लू पीछे से मेरी चूचियों को निचोड़ना नहीं छोड़ा था। जब मेरी चूचियों को निचोड़ते हुए ठोकता था तो उसका लंड थोड़ा बाहर बाहर ही रहता था लेकिन कुछ देर इस तरह ठोकने के बाद मेरी कमर पकड़ कर पीछे की ओर घसीट लेता था और अपने पूरे लंड की लंबाई घुसेड़ देता था। कभी कभी मेरे कंधों को भी पकड़ कर ठोकने लगता था। बड़ी जबरदस्त तरीके से मेरा सारा कस बल निकाल लेने को आमादा था वह। शायद किस्मत से चोदने को हासिल हुई मेरे जैसी कमसिन लड़की को जी भर के पूरा मज़ा लेते हुए चोद कर पूरी तरह संतुष्ट होना चाह रहा था। वह मेरे शरीर से अधिकतम मजा लेने का हरसंभव प्रयास कर रहा था और इस चक्कर में मुझे बेहाल किए जा रहा था। बेहाल क्या, मुझ रांड को भी तो ऐसी ही चुदाई की तलब लगी थी और लो, अब मुस्टंडे के मूसल से कुटी जा रही थी। उस दैत्य द्वारा मेरे शरीर को नोचा जा रहा था, मेरी चूचियों को निचोड़ा जा रहा था और उसके मूसलाकार लंड से मेरी बुर का भोंसड़ा बनाया जा रहा था। देखने में यह सब भोगना और लोगों को बड़ा ही तकलीफदेह लगेगा लेकिन मुझे बड़ा रोमांचक और उत्तेजक अनुभव के साथ अलग ही तरह का सुखद अहसास हो रहा था।
अंततः, उस अंतहीन सी लगने वाली चुदाई का, करीब आधे घंटे बाद समापन का वह पल आ पहुंचा जिसका मैं बड़ी शिद्दत से इंतजार कर रही थी। ओह वह उत्तेजना का चरमोत्कर्ष था जहां पहुंच कर मुझे झड़ना था और इसी सुखद पलों में कल्लू भी धुआंधार चुदाई किए जा रहा था। उसकी रफ़्तार और हांफना, कांपना और अचानक मेरे अंदर समा जाने की पुरजोर कोशिश करते हुए मुझे अपने से चिपका कर थम जाना उसके भी चर्मोत्कर्ष मे पहुंचने का संकेत था। और लो, हो गया शुरू, फच्च फच्च पिचकारी का छूटना, जिससे मेरी कोख हरी होने लग गई। हर फच्च के साथ उसका शरीर झटका ले रहा था। उसका लंड गरमा गरम वीर्य थूकते हुए, या यों कहूं कि उगलते हुए गर्भगृह को सींचने लगा और मैं उस स्खलन के सुख सागर में डूबने उतराने लगी।
"ओओओओहहहहह चोदूऊऊऊऊऊ चच्चाआआआआ, ओओओओहहहहह मांआंआंआंआंआं.... गयी मैं गई मेरे हर्रामीईईईईईईई... चच्आआआआहहहहह...." मेरे मुंह से आनंद भरी आह चीख की तरह निकल पड़ी। मुझे परवाह नहीं थी कि भलोटिया या घनश्याम पर मेरे इन अल्फाजों का क्या असर होगा।
"आआआआआहहहह ओओओओहहहहह गया मैं गया गुरूजी। साली रंडीईईईईईईई....... आआआआआहहहह गज्जब, चूऊऊऊस रही है मेरा लौड़ा" कहते हुए वह झड़ता रहा और पूरी तरह खल्लास हो कर ढह गया। सच कह रहा था वह। मैं सचमुच अपनी चूत सिकोड़ कर उसके लंड को चूस रही थी। शुरू शुरू में मुझे ताज्जुब होता था कि अपने स्खलन के दौरान मेरी चूत खुद ब खुद संकुचित हो कर लंड का रस निचोड़ने लगती थी। यह स्वाभाविक था या अस्वभाविक था मुझे पता नहीं, लेकिन मैं खुद भी वीर्य का कतरा कतरा अपने अंदर जज्ब करते हुए स्खलन का पूरा लुत्फ लेना सीख गई थी। पूरी तरह खल्लास होकर मैं भी मुंह के बल बिस्तर पर निढाल ढह कर लंबी लंबी सांसें लेने लगी जैसे मीलों दौड़ कर आई हूं। उन स्खलन के पलों पर जो अल्फाज़ हमारे मुंह से निकले थे उसके बाद और कोई शब्द नहीं निकल रहा था। कोई शब्द निकालने की ताकत भी नहीं बची थी। कल्लू की क्या हालत थी वह तो मुझे पता नहीं लेकिन मेरी तो जैसे सारी शक्ति निचुड़ गई थी। मैं थक कर चूर कुछ देर तक आंखें बंद किए स्खलन सुख में डूबी हुई थी। रेखा का कथन कितना सत्य था, यह मुझे अभी पता चला। खतना किए हुए खुल्ले चिकने लंड से चुदने का वह अद्भुत अहसास सिर्फ महसूस किया जा सकता है। ओह कितना सुखद अहसास था वह। तभी तो उतना लंबा और मोटा लंड मेरी चूत में बड़े आराम से सटासट अन्दर बाहर हो रहा था। उसकी दीर्घ स्तंभन क्षमता का भी शायद यह एक कारण था। एक स्वस्थ, हट्टे-कट्टे आदमी के लिए, चोदने में उसका खतना किया हुआ लंड सोने पर सुहागा का काम कर रहा था। सचमुच, मजा आ गया, पूरी संतुष्टि मिली थी।
"गये दोनों। गजब का दृश्य देखा। ऐसी चुदाई पहले नहीं देखा था। साला इतना जबरदस्त था कि देखते देखते मेरा लौड़ा दुबारा खड़ा हो गया।" भलोटिया की आवाज सुनाई दी और मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। साला मादरचोद ठरकी बुड्ढा अब क्या मुझे दुबारा चोदने की सोच रहा है? नहीं नहीं, बस अब और नहीं। बहुत हो गया। पता नहीं हमारी चुदाई के दौरान ही कब भलोटिया भी बिस्तर से उठ कर सोफे में पसर गया था। मैंने अलसाई हालत में सर घूमाकर भलोटिया के आवाज की ओर दृष्टि फेरी तो मेरी रूह फना हो गयी थी। सचमुच उस भालू भलोटिया का लन्ड खंभे की शक्ल में सख्त, तन कर खड़ा था। भलोटिया की मुद्रा बता रही थी कि वह फिर से चोदने को मन बना चुका था। भलोटिया और घनश्याम अगल बगल सोफे पर पसरे बैठे थे। घनश्याम कहां पीछे रहने वाला था।
"फिर से चोदना है क्या?" घनश्याम भलोटिया से पूछ रहा था या अपने मन की इच्छा व्यक्त कर रहा था, पता नहीं। लेकिन उसका खंभा भी फनफनाते हुए मूक घोषणा कर रहा था कि मेरी चूत में घुस कर तहलका मचाने को बेताब है।
"मन तो है लेकिन बिटिया की हालत पर तरस आ रहा है।" भलोटिया तनिक मायूसी से बोला।
"मन को पिंजरे में न डालिए भाई। माले मुफ्त, दिले बेरहम। इस मां की लौड़ी पर तरस खाने की जरूरत नहीं है। अभी भी हम जैसे दो चार को आराम से निपटा देने का दम है साली में।" घनश्याम बोल उठा।
"हां हां, मार ही डालिए मुझको। आपलोग कैसे आदमी हैं मुझे समझ नहीं आ रहा है। मेरी हालत पर जरा भी दया नहीं आती आप लोगों को। आपलोग आदमी हो कि जानवर हो समझ में नहीं आ रहा है। देख नहीं रहे मेरी हालत? अब और नहीं होगा मुझसे। तीन आदमी बारी बारी से और मैं एक अकेली लड़की, फिर भी आप लोगों का मन नहीं भरा, ऐसे तो मर जाऊंगी मैं।" मैं तिक्त स्वर में बौखला कर बोली। मेरा सारा कस बल तो निकल चुका था और इन हरामियों को दुबारा चोदने की पड़ी थी।
"सर जी, मेरा तो हो गया। आप लोगों की मेहरबानी से इतना बढ़िया माल में हाथ साफ करने का मौका मिला, बहुत बहुत शुक्रिया। अब हम चलते हैं, अब आप लोगों को जितना मौज करना है कीजिए, मैं बाहर तैनात रहूंगा।" कहकर कल्लू बिस्तर से उठकर अपने कपड़े पहनने लगा। कपड़े पहनते पहनते ही वह फिर बोला, "इतनी कम उम्र वाली लड़की इतनी जानदार निकलेगी, हम नहीं सोचे थे। सच में, किस्मत संवर गया।" साला कुच्चड़ कहीं का। बोल रहा था किस्मत संवर गया, हरामी कहीं का। मुझे निचोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ा था। बड़ा ही जबरदस्त चुदक्कड़ था यह। ऐसे जबरदस्त तरीके से चोदा था कि चुदने की मेरी सारी ख्वाहिश पूरी हो गई। जन्नत की सैर करा दिया था लेकिन दिन में ही तारे भी दिखा दिया था। लेकिन इस चक्कर में कितनी बुरी तरह से मुझे निचोड़ा था कि अब मुझमें बिस्तर से उठने का भी दम नहीं था।