30-03-2025, 04:55 PM
"आआआआआहहहह मांआंआंआंआं ओओओओहहहहह... " मैं थरथराती हुई स्खलन के सुख सागर में डूबती चली गई। मेरी हालत से अनभिज्ञ नहीं था कल्लू, लेकिन उसने तो अभी चोदना शुरू ही किया था। उसने चोदने की रफ्तार दुगुनी कर दी। इस दौरान मेरी चूचियों से खिलवाड़ करना, दबाना और चूसना बदस्तूर जारी था। परिणाम यह हुआ कि पांच मिनट होते न होते कामुक हरकतों से मेरे शरीर में पुनः मेरे बेजान शरीर में नवजीवन का संचार हो गया और मेरी कमर खुद ब खुद उछल उछल कर मेरी चूत को लंड खाने में सहयोग प्रदान करने लगी।
"आह आह आह, गुरूजी लौंडिया तो बहुत बड़ी लंडखोर है। साली कैसे गप्प गप्प खाए जा रही है।" कल्लू मुदित मन चोदता हुआ बोला।
"हम दोनों को निचोड़ चुकी है साले। अब तुम्हारी बारी है। देखते हैं तुम निचोड़ते हो या यह तुम्हें भी निचोड़ती है। अब दिखा असली दम।" भलोटिया जहां कल्लू द्वारा मेरी प्रशंसा का समर्थन कर रहा था वहीं कल्लू को ताव भी दिला रहा था जिसका नतीजा यह हुआ कि कल्लू अपने पूरे दमखम के साथ मुझे निचोड़ निचोड़ कर चोदने लगा। उफ उफ यह चुदाई मेरे लिए यादगार हो रही थी। उसके असीमित शक्ति के आगे मैं भी पानी मांगने को विवश हो गई। क्या भयानक रफ्तार से भकाभक चोद रहा था वह। मुझे दिन में ही तारे दिखाई देने लगा था। वह कमरा फच फच चट चट की आवाज से गूंजने लगा था। जहां मेरी चूत की चटनी बन रही थी वहीं उसके पंजों से मेरी कठोर चूचियों का मलीदा बन रहा था। पीड़ा हो रही थी लेकिन उस पीड़ा में अजीब तरह का आनंद मिल रहा था।
"ओह चाचाजी, ओह चच्चा, ओह जरा धीरे कीजिए ना, आह आह ...." मैं मस्ती में भर कर हांफती हुई बोली।
"वाह मेरी बच्ची, धीरे करने को काहे बोल रही हो, तू तो बड़ी गरम माल निकली, धीरे धीरे करके न हमको मजा मिलेगा न तुमको।" वह भी हांफते हुए बोला लेकिन अपने चोदने की रफ्तार में जरा भी कमी नहीं आने दिया। बस भच्च भच्च, फच्च फच्च पेलता रहा पेलता रहा। मुझे किसी खिलौने की तरह जैसा मर्जी वैसा पेलता रहा। टांगें उठाकर पेलते हुए मन नहीं भरा तो पलट कर कुतिया बना दिया।
"यह कककक्या ......." मैं उसकी मर्जी समझ गई थी। अब वह मुझे कुतिया बना कर चोदना चाहता था। चुदने की चाहत तो थी, क्योंकि अब मैं दूसरी बार उत्तेजित होकर चुदाई का मजा ले रही थी। लेकिन मेरे शरीर में अब और ताकत नहीं बची थी कि हाथों और घुटनों के बल पर कुतिया बनूं।
"अब पिच्छे से।" वह मेरी कमर पकड़ कर मेरी चूतड़ को ऊपर उठा लिया। भले ही मेरे घुटनों में थोड़ी जान थी लेकिन मेरे हाथों की शक्ति क्षीण हो गई थी इसलिए मैंने बिस्तर पर सिर टिका दिया लेकिन मेरी चूतड़ उठी हुई थी। इस पोजीशन में तो मेरी चूत चोदने के लिए बेहतर तरीके सी उपलब्ध थी।
"अरे सर काहे नीचे रखी। हाथ का सहारा ले।" कल्लू बोला।
"हाथ थक गया चच्चा।" मैं अपनी असमर्थता जताई। "अच्छा कोई बात नहीं। यह पोजीशन भी बढ़िया है।" कल्लू बोला और पोजीशन में उसने अपना लौड़ा मेरी चूत पर टिकाया और पीछे से कुत्ते की तरह शुरू हो गया। एक ही झटके में उसने अपना लंड भक्क से मेरी चूत में उतार दिया।
"ओओओओहहहहह मांआंआंआंआंआं...." इस पोजीशन में कल्लू ने एक ही झटके में अपना पूरा लंड मेरी चूत की पूरी गहराई में उतार दिया था। यह थोड़ा दर्दनाक था लेकिन ऐसी कामवासना के खेल में इस प्रकार की थोड़ी बहुत पीड़ा को नजरंदाज करने में ही भलाई है। यह मेरा पिछले अनुभवों ने सिखा दिया था। लेकिन पहले झटके की पीड़ा से बेसाख्ता मेरे मुंह से अनचाहे ही आह निकल गई थी।
"आह आह आह, गुरूजी लौंडिया तो बहुत बड़ी लंडखोर है। साली कैसे गप्प गप्प खाए जा रही है।" कल्लू मुदित मन चोदता हुआ बोला।
"हम दोनों को निचोड़ चुकी है साले। अब तुम्हारी बारी है। देखते हैं तुम निचोड़ते हो या यह तुम्हें भी निचोड़ती है। अब दिखा असली दम।" भलोटिया जहां कल्लू द्वारा मेरी प्रशंसा का समर्थन कर रहा था वहीं कल्लू को ताव भी दिला रहा था जिसका नतीजा यह हुआ कि कल्लू अपने पूरे दमखम के साथ मुझे निचोड़ निचोड़ कर चोदने लगा। उफ उफ यह चुदाई मेरे लिए यादगार हो रही थी। उसके असीमित शक्ति के आगे मैं भी पानी मांगने को विवश हो गई। क्या भयानक रफ्तार से भकाभक चोद रहा था वह। मुझे दिन में ही तारे दिखाई देने लगा था। वह कमरा फच फच चट चट की आवाज से गूंजने लगा था। जहां मेरी चूत की चटनी बन रही थी वहीं उसके पंजों से मेरी कठोर चूचियों का मलीदा बन रहा था। पीड़ा हो रही थी लेकिन उस पीड़ा में अजीब तरह का आनंद मिल रहा था।
"ओह चाचाजी, ओह चच्चा, ओह जरा धीरे कीजिए ना, आह आह ...." मैं मस्ती में भर कर हांफती हुई बोली।
"वाह मेरी बच्ची, धीरे करने को काहे बोल रही हो, तू तो बड़ी गरम माल निकली, धीरे धीरे करके न हमको मजा मिलेगा न तुमको।" वह भी हांफते हुए बोला लेकिन अपने चोदने की रफ्तार में जरा भी कमी नहीं आने दिया। बस भच्च भच्च, फच्च फच्च पेलता रहा पेलता रहा। मुझे किसी खिलौने की तरह जैसा मर्जी वैसा पेलता रहा। टांगें उठाकर पेलते हुए मन नहीं भरा तो पलट कर कुतिया बना दिया।
"यह कककक्या ......." मैं उसकी मर्जी समझ गई थी। अब वह मुझे कुतिया बना कर चोदना चाहता था। चुदने की चाहत तो थी, क्योंकि अब मैं दूसरी बार उत्तेजित होकर चुदाई का मजा ले रही थी। लेकिन मेरे शरीर में अब और ताकत नहीं बची थी कि हाथों और घुटनों के बल पर कुतिया बनूं।
"अब पिच्छे से।" वह मेरी कमर पकड़ कर मेरी चूतड़ को ऊपर उठा लिया। भले ही मेरे घुटनों में थोड़ी जान थी लेकिन मेरे हाथों की शक्ति क्षीण हो गई थी इसलिए मैंने बिस्तर पर सिर टिका दिया लेकिन मेरी चूतड़ उठी हुई थी। इस पोजीशन में तो मेरी चूत चोदने के लिए बेहतर तरीके सी उपलब्ध थी।
"अरे सर काहे नीचे रखी। हाथ का सहारा ले।" कल्लू बोला।
"हाथ थक गया चच्चा।" मैं अपनी असमर्थता जताई। "अच्छा कोई बात नहीं। यह पोजीशन भी बढ़िया है।" कल्लू बोला और पोजीशन में उसने अपना लौड़ा मेरी चूत पर टिकाया और पीछे से कुत्ते की तरह शुरू हो गया। एक ही झटके में उसने अपना लंड भक्क से मेरी चूत में उतार दिया।
"ओओओओहहहहह मांआंआंआंआंआं...." इस पोजीशन में कल्लू ने एक ही झटके में अपना पूरा लंड मेरी चूत की पूरी गहराई में उतार दिया था। यह थोड़ा दर्दनाक था लेकिन ऐसी कामवासना के खेल में इस प्रकार की थोड़ी बहुत पीड़ा को नजरंदाज करने में ही भलाई है। यह मेरा पिछले अनुभवों ने सिखा दिया था। लेकिन पहले झटके की पीड़ा से बेसाख्ता मेरे मुंह से अनचाहे ही आह निकल गई थी।