30-03-2025, 04:54 PM
"अबे खाली खेलता ही रहेगा कि चोदेगा भी।" विलंब होता देख कर भलोटिया से रहा नहीं जा रहा था।
"खाना गरम कर रहे हैं गुरूजी।" कल्लू उसी तरह मुस्कुरा कर बोला। उसकी बात सुनकर मुझे बड़ा गुस्सा आ रहा था। साला बड़ा आया गरम करने वाला। गरम करने के चक्कर में खाना जल रहा है इसका भी होश नहीं था उसे। यह मेरे सब्र की इंतहा थी।
सहसा न जाने मुझ पर क्या पागलपन सवार हुआ कि जैसे ही मुझे अहसास हुआ कि उसका लंड मेरी चूत के मुंह के सामने आ गया है, मैंने अपनी कमर ऊपर उछाल दी। यह जोखिम भरा कदम था लेकिन मैं तो पगलाई हुई थी। एक ही झटके में कल्लू का आधा लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अन्दर दाखिल हो गया। पनियायी हुई चूत थी। घुस गया अंदर। उसी के साथ मेरी चीख भी निकल गई। जी हां, पीड़ा से। जैसी करनी वैसी भरनी। मैं झट से उसके लंड से मुक्त होना चाह रही थी लेकिन कल्लू तो मानो इसी पल का इंतजार कर रहा था। ऐसे कैसे निकलने देता। उसने मुझे दबोच कर अपनी ओर से और एक करारा धक्का लगा दिया।
"आआआआआआहहहह मर गईईईईईईईईई...... निकाल निकाल आआआआआहहहह......." मैं फिर से चीख पड़ी।
"ऐसे कैसे निकाल सकते हैं मेरी छम्मक छल्लो। लिया तुम्हीं ने है।हा हा हा हा।" वह दानव पूरा जड़ तक लंड पेल चुका था। मैं पीड़ा से बिलबिला रही थी लेकिन कल्लू भी कम बड़ा चुदक्कड़ नहीं था। पूरा ठोंक कर रुक गया और मेरी चूत की गहराई का आनंद लेने लगा था। मैंने कल्लू के लंड को भलोटिया की तुलना में कम आंकने की ग़लती की थी। अब पता चल रहा था कि यह गलती कितनी महंगी साबित हो रही थी। उसका लंड मेरी कोख तक जा पहुंचा था इसलिए मुझे अंदर भी दर्द हो रहा था। लेकिन मैं यह भी जानती थी इस पीड़ा के उस पार आनंद ही आनंद मिलने वाला था। इसलिए मैं दांत भींचकर उस पीड़ा को पीने लगी थी। पहले भी ऐसी स्थिति से दो चार हो चुकी थी इसलिए मेरा अंदाजा गलत नहीं हो सकता था। मैं उसके नीचे दबी हुई हलकान हुई जा रही थी। सच में कुछ पलों बाद ही जैसे सारी पीड़ा न जाने कहां छूमंतर हो गई थी।
"बहुत बढ़िया" घनश्याम मेरी हालत से खुश होकर बोला। उसे क्या पता था कि उसने यह बोलने में थोड़ी देर कर दी थी। अब तो सचमुच उसका कथन मेरे लिए भी लागू हो रहा था। सचमुच बहुत बढ़िया हुआ मेरे लिए भी। मुझे अपने अंदर परिपूर्णता का अहसास होने लगा। एक बाहरी अंग अब मेरे अंदर समा कर मानो मेरे शरीर का ही हिस्सा बन गया था। अब मुझ उस अंग में हरकत की चाहत थी। एक हलचल की जरूरत थी। अब कल्लू का रुकना मुझे अखरने लगा था।
"अब रुके काहे चाचा जी।" मैं बेसाख्ता बोल उठी। मेरी लरजती आवाज़ में एक अबूझ, एक अजीब सी कसक थी। काम क्षुधा की तड़प थी।
"यह हुई ना बात।" कल्लू प्रसन्न हो उठा। मेरे अंदर के आग की तपिश को महसूस कर चुका था वह।
"यही खासियत है इस लड़की में।" भलोटिया बोला।
"हां सर जी। वह तो पता चल ही गया। कमसिन संगमरमरी देह, सख़्त चूंचियां। कसी हुई, चमचमाती गरमागरम चूत और सबसे मजेदार चीज यह है कि साली चुदने के लिए मरी जा रही, चुदास के मारे बेहाल लौंडी। यह लौंडिया तो मनमाफिक चोदने के लिए एकदम फिट है।" कल्लू उद्गार निकाल बैठा और घनश्याम के ऊपर तो मानो घड़ों पानी पड़ गया। कल्लू की तो निकल पड़ी थी। मेरी चूत की गहराई में डूबा कल्लू का मूसल मेरे अंदर की गरमी को अच्छी तरह से महसूस कर रहा था। चकित भी था और मुदित भी था यह महसूस करके कि मुझ जैसी इतनी कम उम्र की लड़की के अंदर ऐसी आग भी है। वह अब मुझे चोदने के लिए अच्छी पोजीशन लेने लगा। उसने मेरी टांगों को ऊपर उठा कर लिया और अपने लंड के प्रहार के लिए मेरी चूत को सहूलियत भरे अवस्था में ले आया। अब शुरू हुआ।
आह, उसका लंड का मेरी चूत की अंदरूनी दीवारों को रगड़ता हुआ धीरे-धीरे सरकता सरकता बाहर निकल रहा था। अभी करीब एक दो इंच अन्दर ही था कि दुबारा उसी धीमी रफ्तार से अंदर घुसने लगा। ओह ओह मेरी मां, कितना सुखद था वह घर्षण। मेरा रोम-रोम तरंगित हो उठा था। फिर वही क्रिया दोहराई जाने लगी तो धीरे-धीरे मैं दूसरी दुनिया की ओर बढ़ने लगी। ओह वह सुखद स्वर्गीय अहसास। मैं उसके शरीर से चिपकने की चेष्टा करने लगी लेकिन जिस पोजीशन में वह मुझे चोद रहा था उसमें यह संभव नहीं था। उसके शरीर से पसीने की बदबू आ रही थी लेकिन वह बदबू भी मुझे प्रिय लग रहा था। उस पसीने की बदबू से मुझ पर अजीब तरह का नशा चढ़ रहा था। धीरे-धीरे धीरे-धीरे उसके चोदने की रफ्तार बढ़ने लगी। उतना लंबा और मोटा कालिया नाग सर्र सर्र मेरी चूत में अंदर बाहर हो रहा था। ओह ओह, खतना किया हुआ लंड बिना किसी प्रकार की तकलीफ़ दिए इतनी सुगमतापूर्वक मेरी चूत में उधम मचा रहा था कि पूछिए ही मत। उसी पोजीशन में चोदते हुए वह मेरी चूचियों को भी चूसता जा रहा था। यह दोहरी उत्तेजक हरकत से मैं इतनी जल्दी चर्मोत्कर्ष में पहुंच गयी जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
"खाना गरम कर रहे हैं गुरूजी।" कल्लू उसी तरह मुस्कुरा कर बोला। उसकी बात सुनकर मुझे बड़ा गुस्सा आ रहा था। साला बड़ा आया गरम करने वाला। गरम करने के चक्कर में खाना जल रहा है इसका भी होश नहीं था उसे। यह मेरे सब्र की इंतहा थी।
सहसा न जाने मुझ पर क्या पागलपन सवार हुआ कि जैसे ही मुझे अहसास हुआ कि उसका लंड मेरी चूत के मुंह के सामने आ गया है, मैंने अपनी कमर ऊपर उछाल दी। यह जोखिम भरा कदम था लेकिन मैं तो पगलाई हुई थी। एक ही झटके में कल्लू का आधा लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अन्दर दाखिल हो गया। पनियायी हुई चूत थी। घुस गया अंदर। उसी के साथ मेरी चीख भी निकल गई। जी हां, पीड़ा से। जैसी करनी वैसी भरनी। मैं झट से उसके लंड से मुक्त होना चाह रही थी लेकिन कल्लू तो मानो इसी पल का इंतजार कर रहा था। ऐसे कैसे निकलने देता। उसने मुझे दबोच कर अपनी ओर से और एक करारा धक्का लगा दिया।
"आआआआआआहहहह मर गईईईईईईईईई...... निकाल निकाल आआआआआहहहह......." मैं फिर से चीख पड़ी।
"ऐसे कैसे निकाल सकते हैं मेरी छम्मक छल्लो। लिया तुम्हीं ने है।हा हा हा हा।" वह दानव पूरा जड़ तक लंड पेल चुका था। मैं पीड़ा से बिलबिला रही थी लेकिन कल्लू भी कम बड़ा चुदक्कड़ नहीं था। पूरा ठोंक कर रुक गया और मेरी चूत की गहराई का आनंद लेने लगा था। मैंने कल्लू के लंड को भलोटिया की तुलना में कम आंकने की ग़लती की थी। अब पता चल रहा था कि यह गलती कितनी महंगी साबित हो रही थी। उसका लंड मेरी कोख तक जा पहुंचा था इसलिए मुझे अंदर भी दर्द हो रहा था। लेकिन मैं यह भी जानती थी इस पीड़ा के उस पार आनंद ही आनंद मिलने वाला था। इसलिए मैं दांत भींचकर उस पीड़ा को पीने लगी थी। पहले भी ऐसी स्थिति से दो चार हो चुकी थी इसलिए मेरा अंदाजा गलत नहीं हो सकता था। मैं उसके नीचे दबी हुई हलकान हुई जा रही थी। सच में कुछ पलों बाद ही जैसे सारी पीड़ा न जाने कहां छूमंतर हो गई थी।
"बहुत बढ़िया" घनश्याम मेरी हालत से खुश होकर बोला। उसे क्या पता था कि उसने यह बोलने में थोड़ी देर कर दी थी। अब तो सचमुच उसका कथन मेरे लिए भी लागू हो रहा था। सचमुच बहुत बढ़िया हुआ मेरे लिए भी। मुझे अपने अंदर परिपूर्णता का अहसास होने लगा। एक बाहरी अंग अब मेरे अंदर समा कर मानो मेरे शरीर का ही हिस्सा बन गया था। अब मुझ उस अंग में हरकत की चाहत थी। एक हलचल की जरूरत थी। अब कल्लू का रुकना मुझे अखरने लगा था।
"अब रुके काहे चाचा जी।" मैं बेसाख्ता बोल उठी। मेरी लरजती आवाज़ में एक अबूझ, एक अजीब सी कसक थी। काम क्षुधा की तड़प थी।
"यह हुई ना बात।" कल्लू प्रसन्न हो उठा। मेरे अंदर के आग की तपिश को महसूस कर चुका था वह।
"यही खासियत है इस लड़की में।" भलोटिया बोला।
"हां सर जी। वह तो पता चल ही गया। कमसिन संगमरमरी देह, सख़्त चूंचियां। कसी हुई, चमचमाती गरमागरम चूत और सबसे मजेदार चीज यह है कि साली चुदने के लिए मरी जा रही, चुदास के मारे बेहाल लौंडी। यह लौंडिया तो मनमाफिक चोदने के लिए एकदम फिट है।" कल्लू उद्गार निकाल बैठा और घनश्याम के ऊपर तो मानो घड़ों पानी पड़ गया। कल्लू की तो निकल पड़ी थी। मेरी चूत की गहराई में डूबा कल्लू का मूसल मेरे अंदर की गरमी को अच्छी तरह से महसूस कर रहा था। चकित भी था और मुदित भी था यह महसूस करके कि मुझ जैसी इतनी कम उम्र की लड़की के अंदर ऐसी आग भी है। वह अब मुझे चोदने के लिए अच्छी पोजीशन लेने लगा। उसने मेरी टांगों को ऊपर उठा कर लिया और अपने लंड के प्रहार के लिए मेरी चूत को सहूलियत भरे अवस्था में ले आया। अब शुरू हुआ।
आह, उसका लंड का मेरी चूत की अंदरूनी दीवारों को रगड़ता हुआ धीरे-धीरे सरकता सरकता बाहर निकल रहा था। अभी करीब एक दो इंच अन्दर ही था कि दुबारा उसी धीमी रफ्तार से अंदर घुसने लगा। ओह ओह मेरी मां, कितना सुखद था वह घर्षण। मेरा रोम-रोम तरंगित हो उठा था। फिर वही क्रिया दोहराई जाने लगी तो धीरे-धीरे मैं दूसरी दुनिया की ओर बढ़ने लगी। ओह वह सुखद स्वर्गीय अहसास। मैं उसके शरीर से चिपकने की चेष्टा करने लगी लेकिन जिस पोजीशन में वह मुझे चोद रहा था उसमें यह संभव नहीं था। उसके शरीर से पसीने की बदबू आ रही थी लेकिन वह बदबू भी मुझे प्रिय लग रहा था। उस पसीने की बदबू से मुझ पर अजीब तरह का नशा चढ़ रहा था। धीरे-धीरे धीरे-धीरे उसके चोदने की रफ्तार बढ़ने लगी। उतना लंबा और मोटा कालिया नाग सर्र सर्र मेरी चूत में अंदर बाहर हो रहा था। ओह ओह, खतना किया हुआ लंड बिना किसी प्रकार की तकलीफ़ दिए इतनी सुगमतापूर्वक मेरी चूत में उधम मचा रहा था कि पूछिए ही मत। उसी पोजीशन में चोदते हुए वह मेरी चूचियों को भी चूसता जा रहा था। यह दोहरी उत्तेजक हरकत से मैं इतनी जल्दी चर्मोत्कर्ष में पहुंच गयी जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।