26-03-2025, 10:29 PM
(This post was last modified: 27-03-2025, 05:37 AM by RonitLoveker. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
UPDATE 06
विवाह की ज्यादातर सारी तैयारियां पूरी हो ही चुकी थी. आंगन के बीचोबीच दो लकड़ी के आसन रखे थे, जो कि एक दूसरे के विरुद्ध दिशा में रखे गए थे. बीच में एक परात में दो फूलों की मालाये रखी थी. एक छोटी थाली में एक लंबा चौड़ा मंगलसूत्र और एक काफी छोटा सा पेंडेंट वाला छोटा मंगलसूत्र रक्खा था.
सिंदूर, चूड़ियां और काजल एक थाली में सजाए थे. बाजू में एक जगह पर कुछ अगरबत्तियां पारो आंटी द्वारा जलाई जा रही थी. अगरबत्तियों के धुएं में से निकलने वाली खुशबू कुछ अलग ली लग रही थी.. मुझे ऐसा लग रहा था कि वो कोई नशे वाला धुआं है जो उन अगरबत्तियों में से आ रहा था, क्यों कि मुझे सबकुछ बिल्कुल हल्का हल्का सा फील हो रहा था. सच कहूं तो मैं खुद ही हवा में तहर रहा हूं ऐसा ही महसूस कर रहा था. इस सब में.... कुछ ही पलो में मुझे असुर की पहली झलक दिखाई दी....
एक रेसलर जो अखाड़े में जीत के लिये प्रवेश कर रहा हो ऐसा ही असुर का पूरा शरीर दिख रहा था. उसके शरीर पर कोई तेल मला हुआ था, जिस वजह से उसका काला शरीर पॉलिश की तरह चमक उठा था. असुर ने अपने वजनदार शरीर पर सिर्फ नाम के लिए एक तौलिया लपेटा था जो कि उसके कंबर से नीचे होता हुआ घुटनों तक ही था....वह तौलिया इतना पतला था कि उसके अंदर से असुर के मुरझाए हुए लंड का मापदंड अभी से ही पता चल रहा था... मुझे तो इस बात का भी डर था कि कई मां से शादी के वक्त असुर का लंड अपना विक्राल रूप में आ गया तो कही वो उस तौलिए के नीचे से बाहर ना निकले...!
असुर आया और वह प्रताप दादा के पैरों को छूता हुआ आशीर्वाद लेने लगा. प्रताप दादा ने उसे आशीर्वाद दिया और उसे नीचे रखें हुए लकड़ी के आसन पर बैठने का इशारा किया. असुर के बैठते ही प्रताप दादा उसके सामने वाले आसन पर बैठ गए.
मैने यह देखा और मैं चौंक गया... अब दोनों आसनों पर एक तरफ दादा और दूसरी तरफ असुर बैठा था, तो मां....? वो कहा बैठने वाली थी...? मेरे सवाल का जवाब जल्द ही मेरे सामने एक कपोल कल्पना की तरह आने वाला था...
दूसरी तरफ से मां सीढ़ियों से नीचे अवतरित हुई. पारो आंटी उन्हें लेकर आ रही थी. अब उस नाममात्र छोटी कप साइज ब्रा में मां की बड़ी बड़ी चूचियां और भी मोटी दिख रही थी. आज काली रात थी.... चांद...चांदनी आसमान से गायब थे पर मां और उनका जिस्म पूरी तरह चमक रहा था... यह नूर कुछ और ही था जो शायद मां पर मैने पहली बार देखा था. सपाट पेट पर एकदम गहरी नाभी मुझे साइंस के चैप्टर की ब्लैक हॉल का पाठ याद दिला रही थीं... यह नाभी का हॉल भी उसी तरह बिल्कुल ही गहरा था... वैसे ही उनकी मोटी गोरी जांघें किसी भी मर्द के बुर्ज खलीफा को खड़ा करने की ताकत रख रही रही थी. मां की इस नई जवानी को असुर भी आंख भर के देख रहा था.... मुझे असुर को देखकर ऐसा लग रहा था कि मां की अब इस नई जवानी को उसका मालिक मिल गया था... जैसे कुछ देर पहले असलम ने कहा था वैसे अब मां की 6 साल पुरानी प्यास पूरी तरह मिटने वाली थी. असुर की आंखों में एक अलग ही नशा साफ साफ दिख रहा था... हो न हो पर मेरी नज़र में तो उस तौलिए के नीचे बिराजे असुर के लंड ने शायद अंगड़ाई जरूर ले लियी थी.
मां आ गई और असुर के बाजू में ही खड़ी हो गई. प्रताप दादा उन्हें देख रहे थे. पारो आंटी भी प्रताप दादा को कुछ आंखों ही आंखों में इशारे कर रही थी. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, तभी... प्रताप दादा बोल पड़े...
" अब विवाह की विधि शुरू करने का समय आ गया है... विधि के पहले चरण में वधु का आसन ग्रहण होगा. उसमें पूनम असुर के गोदी में बैठेगी "
मेरे जीवन में... अब यही तो देखना बाकी था. असुर और मां की काम लीला... जिसमें विधि, रस्म के नाम पर मां को पूरी तरह अपने तन मन से असुर को समर्पित करने की मिलीभगत चल रही थी. पर जब मैने मां को देखा तो उनके चेहरे पर शिंकज तो थी पर कोई प्रतिकार या कुछ दिखाई सा नहीं दे रहा था... क्या असुर की वीर्य की मात्रा और असुर की तंदुरुस्त देहयष्टि देखकर कही मां के अरमान तो उबाल नहीं रहे थे ना..? क्यों कि जब से मां आंगन में आई थी तब से हो ना हो मां असुर को ना चाहते हुए भी चोरी चोरी देख जरूर रही थी.
पारो आंटी ने इशारे से असुर को अपनी जांघें चौड़ी करके चौकड़ी मार के बैठने को कहा... असुर भी काफी उत्साह से पारो आंटी की बात मानकर वैसे ही चौकड़ी मार के बैठ गया.
जिस तरह असुर ऐसे बैठा था... उसे देखकर लग रहा था कि सच में कोई राक्षस किसी वरदान के लाभ के लिए तपस्या में बैठा हो. मां भले ही अभी भरे हुए मादक जिस्म की मल्लिका थी पर असुर के सामने वो कोमल कली की तरह ही थी. पारो ने मां के कंधे पर हाथ रखा... मां समझ गई कि उन्हें जाकर असुर की गोद में बैठना है...
सिर्फ एक छोटी सी ब्रा और एक पतली सी पेंटी पहनी मेरी मां असुर के गोद में बैठने के लिए आगे बढ़ी... असुर ने उन्हें देखा और एक कुटिल मुस्कान के साथ उन्हें आंख मारी... मां यह देख कुछ नाराज सी हो गई... पर पारो आंटी और प्रताप दादा भी यह देख हंसने लगे... भले ही हम दोनों मां, बेटे के लिए यह दुख भरा माहौल था पर उनके लिए तो एक सुनहरा अवसर था... शादी में जैसे हंसी ठिठौली की जरूरत थी, वैसा तो कुछ माहौल नहीं था पर विधि की शुरुआत हंसी मजाक भरे पल से हुई थी..
मां बड़ी ही असहजता के साथ असुर के गोद में बैठने की कोशिश करने लगी. वो अपने मोटी चूचियों और भारी भक्कम नितंबों को संभालते हुए हल्की हल्की मादक हालचाल करते करते उसकी गोद में बैठने के लिए नीचे झुक गई... मां बैठने में काफी देर लगा रही है यह देखकर असुर ने दोनों हाथों से उनकी पतली कमर को पकड़कर सीधे अपने गोद में बिठा लिया... एक समय के लिए... मेरी सांसे रुक गई... मां भी बिलकुल आश्चर्य के साथ सबको देख रही थीं... उन्हें भी इसकी बिल्कुल कल्पना नहीं थीं... इसी बीच मां ने धीरे से कुछ असुर को कहा.... असुर ने भी धीरे से कुछ जवाब दिया... मां उस जवाब को सुनकर कुछ और गुस्सा हो गई...
उनके चेहरे पर गुस्सा साफ साफ दिखाई दे रहा था...मैं उनसे थोड़ी दूरी पर खड़ा था इसीलिए मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया... पर यह पहली बार जब मां और असुर में बात की शुरुवात हुई थी.... मुझे उन दोनों ने एकदूसरे को क्या कहा था.... यह सुनना था... पर मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया था...
विवाह की अगली विधि शुरू हुई... प्रताप दादा अपनी आंखे बंद कर के कुछ मंत्रजाप करने में जुट गए...पारो आंटी ने मां के हाथों में लाल हरी चूड़ियां पहनाई... उसके बाद प्रताप दादा ने असुर के हाथ में एक बड़ा सा मंगलसूत्र दिया... उस वक्त असुर मां के बालों को सूंघ रहा था... उसकी आंखें बिल्कुल नशीली सी बन चुकी थी... मां की सांसें भी तेज हो रही थी... उनकी चूचियां बिल्कुल ताल के साथ ऊपर नीचे हो रही थी... असुर ने मंगलसूत्र लिया और वो उन्हें पहनाने लगा... मंगलसूत्र पहनाते वक्त असुर ने मां ने बालों को एक साइड में कर लिया... उसने मां के गले में मंगलसूत्र डाला और पीछे उसका हुक लगाने लगा... हुक लगाते वक्त असुर की उंगलियां मां की गर्दन को छू रही थी... उसके छूते ही मां सिहर उठ रही थी... काफी बरसों बाद वो किसी मर्द को अपने इतने करीब महसूस जो कर रही थी... ओर वह मर्द अभी इसी पल में उसका पति बनने वाला था... आखिरकार असुर ने मां को मंगलसूत्र पहनाया... और मां के कानों के पास जाकर मुस्कुराकर कुछ कहा... मां ने वो मंगलसूत्र अपने बालों को संवारते हुए अपने गले में ठीक से डाला.. और उन्होंने भी एक ही शब्द में असुर को उसका वापस जवाब सा दिया... मां और असुर में क्या ख़ुसरपुसर हो रही थी यह जानना तो नामुमकिन था... पर मुझे यह जानना था कि क्या असुर और मां में कुछ बात बन रही ही है...? या यह बस एक नोकझोंक हो रही हैं... इस बीच में मां और असुर एक दूसरे में व्यस्त है यह मुझे दिख रहा था.... असुर के हाथ मां के कमर को सहला रहे थे.. पर मां पता नहीं क्यों उसे रोक नहीं रही थी... वो तो बस बार बार अपने मंगलसूत्र को ही टटोल रही थी... असुर इस सब से बहुत खुश है, यह नजर आ रहा था... तभी अचानक मां के चेहरे का भाव बदल सा गया... मैने गौर से देखा तो असुर का एक ही हाथ अब मां की कमर पर था... और दूसरा हाथ... ? वो कहा था...? मैं यह देखने जरा सा आगे आया... प्रताप दादा मंत्र पड़ रहे थे और उनकी आंखें अभी भी बंद थी, और पारो आंटी कुछ लाने के लिए गई थी... उधर क्या हो रहा था यह देखने के लिए दर्शक के रूप में अब यहां सिर्फ मैं ही खड़ा था.. असुर नीचे अपना हाथ डालकर, अपने लंड को मां के अपने ऊपर होते हुए ही एडजस्ट कर रहा था... कही वो मां की चूत पर अपना लंड टच कर रहा था...? यह कुछ समझ में नहीं आ रहा था... पर मां की सीटीपीटी गुम हो गई थी यह उनका चेहरा साफ बता रहा था. मैं सामने खड़ा हूं इस बात का असुर पर कोई भी फर्क नहीं पढ़ रहा था... ना ही शायद मां पर..
यह जो कुछ भी हो रहा था यह मेरे लिए शर्मनाक था... असुर अब धीमी धीमी आवाज में मां से बातें करे जा रहा था.. और नीचे अपने लंड को मसल रहा था या मां की चूत लाइन पर पेंटी के ऊपर से घिस रहा था यह सिर्फ मां ही जानती थी... पर अब मां भी उससे फिर से कुछ कहे जा रही थी... उसी वक्त पारो आंटी एक छोटी थाली में सिंदूर और एक और छोटा सा मंगलसूत्र लेकर आ गई. असुर उनको आता हुआ देखकर अपना हाथ बहार निकालने लगा... पर जब उसने हाथ बहार निकाला तब मै उसके हाथ को देखकर बिल्कुल टूट सा गया... हां... असुर के हाथ की उंगलियां बिल्कुल भीगी हुई थी... इसका मतलब क्या था यह मुझे समझने में देर नहीं लगी... मां की चूत ने पानी छोड़ दिया था... इसका मतलब मां और असुर में शादी के समय ही एक कामुक सा पल बंध चुका था... आगे कुछ और होता इससे पहले ही... पारो आंटी ने प्रताप दादा को कुछ कहा... प्रताप दादा ने अपनी आंखे खोली और असुर और मां को उठने को कहा...
मां उठने में काफी अनकंफरटेबल हो रही थी.. तभी पारो आंटी ने मां से कहा... " पूनम.. पहले तो तू बैठने के लिए देर लगा रही थी... खैर वह तो समझ आ रहा था... पर अब उठने के लिए भी...? उठ जा बहु... अभी तो तुझे इसके बाद दिन रात सिर्फ असुर की गोद में ही बैठना है..."
मां इस बात पर शर्माते हुए उठकर खड़ी हो गई... पर असुर वैसे ही बैठा रहा... जैसे ही मां उठी... वैसे हमने देखा कि असुर के जांघें और पैर मां के चूत के रस से पूरी तरह भीग चुके थे... और असुर का लंड अभी अभी खड़ा ही हुआ था... पर यह असुर के लंड का असली साइज नहीं था... असुर के लंड का साइज सिर्फ मुझे और प्रताप दादा को ही पता था... मां दोनों हाथों से अपने चेहरे को शर्म के मारे छुपा रही थी... असुर भी उठ खड़ा हो गया... उसका गमछा मां के चूत के पानी से चिपचिपा हो चुका था.. और उसका काला लंड अब और भी अच्छी तरह नजर आ रहा था.
पारो आंटी यह सब देखकर मां को कहने लगी कि...
" पूनम... तो यह बात थी...? तेरी चूत तो अभी से असुर के स्पर्श से ही पानी छोड़ने लगी है... अब सब शर्म हया छोड़ कर.. असुर को अपना बना ही लो "
मां ने अभी तक अपने हाथों को अपने चेहरे से हटाया नहीं था... पर जब धीरे धीरे उन्होंने अपने हाथ नीचे लाए.... तब मां के चेहरे पर भी शर्म भरी मुस्कान थी... अब में भी समझ चुका था कि मां का मन परिवर्तन हो चुका था... और अब यह सब देखकर मुझे भी यह लगने लगा था कि अगर मां को यह सब अच्छा लग रहा है... तो यह सब कुछ मुझे भी मंजूर ही है... शायद अब स्वामी जी के निर्णय पर मुझे भी यकीन होने लगा था...
अब असुर के सामने थाली में सिंदूर था... असुर ने अपनी भीगी हुई उंगलियों से सिंदूर को चिमटी में भर कर मां के मांग में भर दिया.... उसी पल मां की आंखें किसी संतुष्टि की प्राप्त होते भाव से बंद हो ली... उनकी बंद पलकों के कोने से आंसू की धार नीचे छलकने लगी... इतने में प्रताप दादा ने मंत्र पढ़ते हुए कहा... " पत्नी को पति के पैरों का आशीर्वाद लेना होगा " इस बार मां ने बिना देर किए असुर के पैरों पर खुद को समर्पित कर दिया... मुझे यह सबकुछ कैसे इतने जल्दी बदला यह समझ में नहीं आ रहा था... पर सामने असुर ने फिर से मां को कुछ कहा और उन्हें कंधों को पकड़ते हुए ऊपर उठा लिया... मां ने भी अपने आंसू पोंछ लिए और फिर असुर को हल्के से कुछ कहते हुए उठ गई.... अब आखरी विधि थी वो बाकी थी... असुर ने वो छोटा वाला मंगलसूत्र बिल्कुल मां के गले में टाइट बांध लिया. सब खुश दिखाई दे रहे थे सब कुछ अच्छा सा लग रहा था...पर मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था... असुर को में काफी अच्छी तरह पहचान चुका था.... उसने जरूर कुछ ऐसा किया था जिस वजह से मां इतना बदल चुकी थी... और असूर की तरफ खींचती जा रही थीं....?
क्या था जो गलत था..?
या यह सिर्फ मेरा वहम था..?
आगे क्या होने वाला था?
विवाह की ज्यादातर सारी तैयारियां पूरी हो ही चुकी थी. आंगन के बीचोबीच दो लकड़ी के आसन रखे थे, जो कि एक दूसरे के विरुद्ध दिशा में रखे गए थे. बीच में एक परात में दो फूलों की मालाये रखी थी. एक छोटी थाली में एक लंबा चौड़ा मंगलसूत्र और एक काफी छोटा सा पेंडेंट वाला छोटा मंगलसूत्र रक्खा था.
सिंदूर, चूड़ियां और काजल एक थाली में सजाए थे. बाजू में एक जगह पर कुछ अगरबत्तियां पारो आंटी द्वारा जलाई जा रही थी. अगरबत्तियों के धुएं में से निकलने वाली खुशबू कुछ अलग ली लग रही थी.. मुझे ऐसा लग रहा था कि वो कोई नशे वाला धुआं है जो उन अगरबत्तियों में से आ रहा था, क्यों कि मुझे सबकुछ बिल्कुल हल्का हल्का सा फील हो रहा था. सच कहूं तो मैं खुद ही हवा में तहर रहा हूं ऐसा ही महसूस कर रहा था. इस सब में.... कुछ ही पलो में मुझे असुर की पहली झलक दिखाई दी....
एक रेसलर जो अखाड़े में जीत के लिये प्रवेश कर रहा हो ऐसा ही असुर का पूरा शरीर दिख रहा था. उसके शरीर पर कोई तेल मला हुआ था, जिस वजह से उसका काला शरीर पॉलिश की तरह चमक उठा था. असुर ने अपने वजनदार शरीर पर सिर्फ नाम के लिए एक तौलिया लपेटा था जो कि उसके कंबर से नीचे होता हुआ घुटनों तक ही था....वह तौलिया इतना पतला था कि उसके अंदर से असुर के मुरझाए हुए लंड का मापदंड अभी से ही पता चल रहा था... मुझे तो इस बात का भी डर था कि कई मां से शादी के वक्त असुर का लंड अपना विक्राल रूप में आ गया तो कही वो उस तौलिए के नीचे से बाहर ना निकले...!
असुर आया और वह प्रताप दादा के पैरों को छूता हुआ आशीर्वाद लेने लगा. प्रताप दादा ने उसे आशीर्वाद दिया और उसे नीचे रखें हुए लकड़ी के आसन पर बैठने का इशारा किया. असुर के बैठते ही प्रताप दादा उसके सामने वाले आसन पर बैठ गए.
मैने यह देखा और मैं चौंक गया... अब दोनों आसनों पर एक तरफ दादा और दूसरी तरफ असुर बैठा था, तो मां....? वो कहा बैठने वाली थी...? मेरे सवाल का जवाब जल्द ही मेरे सामने एक कपोल कल्पना की तरह आने वाला था...
दूसरी तरफ से मां सीढ़ियों से नीचे अवतरित हुई. पारो आंटी उन्हें लेकर आ रही थी. अब उस नाममात्र छोटी कप साइज ब्रा में मां की बड़ी बड़ी चूचियां और भी मोटी दिख रही थी. आज काली रात थी.... चांद...चांदनी आसमान से गायब थे पर मां और उनका जिस्म पूरी तरह चमक रहा था... यह नूर कुछ और ही था जो शायद मां पर मैने पहली बार देखा था. सपाट पेट पर एकदम गहरी नाभी मुझे साइंस के चैप्टर की ब्लैक हॉल का पाठ याद दिला रही थीं... यह नाभी का हॉल भी उसी तरह बिल्कुल ही गहरा था... वैसे ही उनकी मोटी गोरी जांघें किसी भी मर्द के बुर्ज खलीफा को खड़ा करने की ताकत रख रही रही थी. मां की इस नई जवानी को असुर भी आंख भर के देख रहा था.... मुझे असुर को देखकर ऐसा लग रहा था कि मां की अब इस नई जवानी को उसका मालिक मिल गया था... जैसे कुछ देर पहले असलम ने कहा था वैसे अब मां की 6 साल पुरानी प्यास पूरी तरह मिटने वाली थी. असुर की आंखों में एक अलग ही नशा साफ साफ दिख रहा था... हो न हो पर मेरी नज़र में तो उस तौलिए के नीचे बिराजे असुर के लंड ने शायद अंगड़ाई जरूर ले लियी थी.
मां आ गई और असुर के बाजू में ही खड़ी हो गई. प्रताप दादा उन्हें देख रहे थे. पारो आंटी भी प्रताप दादा को कुछ आंखों ही आंखों में इशारे कर रही थी. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, तभी... प्रताप दादा बोल पड़े...
" अब विवाह की विधि शुरू करने का समय आ गया है... विधि के पहले चरण में वधु का आसन ग्रहण होगा. उसमें पूनम असुर के गोदी में बैठेगी "
मेरे जीवन में... अब यही तो देखना बाकी था. असुर और मां की काम लीला... जिसमें विधि, रस्म के नाम पर मां को पूरी तरह अपने तन मन से असुर को समर्पित करने की मिलीभगत चल रही थी. पर जब मैने मां को देखा तो उनके चेहरे पर शिंकज तो थी पर कोई प्रतिकार या कुछ दिखाई सा नहीं दे रहा था... क्या असुर की वीर्य की मात्रा और असुर की तंदुरुस्त देहयष्टि देखकर कही मां के अरमान तो उबाल नहीं रहे थे ना..? क्यों कि जब से मां आंगन में आई थी तब से हो ना हो मां असुर को ना चाहते हुए भी चोरी चोरी देख जरूर रही थी.
पारो आंटी ने इशारे से असुर को अपनी जांघें चौड़ी करके चौकड़ी मार के बैठने को कहा... असुर भी काफी उत्साह से पारो आंटी की बात मानकर वैसे ही चौकड़ी मार के बैठ गया.
जिस तरह असुर ऐसे बैठा था... उसे देखकर लग रहा था कि सच में कोई राक्षस किसी वरदान के लाभ के लिए तपस्या में बैठा हो. मां भले ही अभी भरे हुए मादक जिस्म की मल्लिका थी पर असुर के सामने वो कोमल कली की तरह ही थी. पारो ने मां के कंधे पर हाथ रखा... मां समझ गई कि उन्हें जाकर असुर की गोद में बैठना है...
सिर्फ एक छोटी सी ब्रा और एक पतली सी पेंटी पहनी मेरी मां असुर के गोद में बैठने के लिए आगे बढ़ी... असुर ने उन्हें देखा और एक कुटिल मुस्कान के साथ उन्हें आंख मारी... मां यह देख कुछ नाराज सी हो गई... पर पारो आंटी और प्रताप दादा भी यह देख हंसने लगे... भले ही हम दोनों मां, बेटे के लिए यह दुख भरा माहौल था पर उनके लिए तो एक सुनहरा अवसर था... शादी में जैसे हंसी ठिठौली की जरूरत थी, वैसा तो कुछ माहौल नहीं था पर विधि की शुरुआत हंसी मजाक भरे पल से हुई थी..
मां बड़ी ही असहजता के साथ असुर के गोद में बैठने की कोशिश करने लगी. वो अपने मोटी चूचियों और भारी भक्कम नितंबों को संभालते हुए हल्की हल्की मादक हालचाल करते करते उसकी गोद में बैठने के लिए नीचे झुक गई... मां बैठने में काफी देर लगा रही है यह देखकर असुर ने दोनों हाथों से उनकी पतली कमर को पकड़कर सीधे अपने गोद में बिठा लिया... एक समय के लिए... मेरी सांसे रुक गई... मां भी बिलकुल आश्चर्य के साथ सबको देख रही थीं... उन्हें भी इसकी बिल्कुल कल्पना नहीं थीं... इसी बीच मां ने धीरे से कुछ असुर को कहा.... असुर ने भी धीरे से कुछ जवाब दिया... मां उस जवाब को सुनकर कुछ और गुस्सा हो गई...
उनके चेहरे पर गुस्सा साफ साफ दिखाई दे रहा था...मैं उनसे थोड़ी दूरी पर खड़ा था इसीलिए मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया... पर यह पहली बार जब मां और असुर में बात की शुरुवात हुई थी.... मुझे उन दोनों ने एकदूसरे को क्या कहा था.... यह सुनना था... पर मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया था...
विवाह की अगली विधि शुरू हुई... प्रताप दादा अपनी आंखे बंद कर के कुछ मंत्रजाप करने में जुट गए...पारो आंटी ने मां के हाथों में लाल हरी चूड़ियां पहनाई... उसके बाद प्रताप दादा ने असुर के हाथ में एक बड़ा सा मंगलसूत्र दिया... उस वक्त असुर मां के बालों को सूंघ रहा था... उसकी आंखें बिल्कुल नशीली सी बन चुकी थी... मां की सांसें भी तेज हो रही थी... उनकी चूचियां बिल्कुल ताल के साथ ऊपर नीचे हो रही थी... असुर ने मंगलसूत्र लिया और वो उन्हें पहनाने लगा... मंगलसूत्र पहनाते वक्त असुर ने मां ने बालों को एक साइड में कर लिया... उसने मां के गले में मंगलसूत्र डाला और पीछे उसका हुक लगाने लगा... हुक लगाते वक्त असुर की उंगलियां मां की गर्दन को छू रही थी... उसके छूते ही मां सिहर उठ रही थी... काफी बरसों बाद वो किसी मर्द को अपने इतने करीब महसूस जो कर रही थी... ओर वह मर्द अभी इसी पल में उसका पति बनने वाला था... आखिरकार असुर ने मां को मंगलसूत्र पहनाया... और मां के कानों के पास जाकर मुस्कुराकर कुछ कहा... मां ने वो मंगलसूत्र अपने बालों को संवारते हुए अपने गले में ठीक से डाला.. और उन्होंने भी एक ही शब्द में असुर को उसका वापस जवाब सा दिया... मां और असुर में क्या ख़ुसरपुसर हो रही थी यह जानना तो नामुमकिन था... पर मुझे यह जानना था कि क्या असुर और मां में कुछ बात बन रही ही है...? या यह बस एक नोकझोंक हो रही हैं... इस बीच में मां और असुर एक दूसरे में व्यस्त है यह मुझे दिख रहा था.... असुर के हाथ मां के कमर को सहला रहे थे.. पर मां पता नहीं क्यों उसे रोक नहीं रही थी... वो तो बस बार बार अपने मंगलसूत्र को ही टटोल रही थी... असुर इस सब से बहुत खुश है, यह नजर आ रहा था... तभी अचानक मां के चेहरे का भाव बदल सा गया... मैने गौर से देखा तो असुर का एक ही हाथ अब मां की कमर पर था... और दूसरा हाथ... ? वो कहा था...? मैं यह देखने जरा सा आगे आया... प्रताप दादा मंत्र पड़ रहे थे और उनकी आंखें अभी भी बंद थी, और पारो आंटी कुछ लाने के लिए गई थी... उधर क्या हो रहा था यह देखने के लिए दर्शक के रूप में अब यहां सिर्फ मैं ही खड़ा था.. असुर नीचे अपना हाथ डालकर, अपने लंड को मां के अपने ऊपर होते हुए ही एडजस्ट कर रहा था... कही वो मां की चूत पर अपना लंड टच कर रहा था...? यह कुछ समझ में नहीं आ रहा था... पर मां की सीटीपीटी गुम हो गई थी यह उनका चेहरा साफ बता रहा था. मैं सामने खड़ा हूं इस बात का असुर पर कोई भी फर्क नहीं पढ़ रहा था... ना ही शायद मां पर..
यह जो कुछ भी हो रहा था यह मेरे लिए शर्मनाक था... असुर अब धीमी धीमी आवाज में मां से बातें करे जा रहा था.. और नीचे अपने लंड को मसल रहा था या मां की चूत लाइन पर पेंटी के ऊपर से घिस रहा था यह सिर्फ मां ही जानती थी... पर अब मां भी उससे फिर से कुछ कहे जा रही थी... उसी वक्त पारो आंटी एक छोटी थाली में सिंदूर और एक और छोटा सा मंगलसूत्र लेकर आ गई. असुर उनको आता हुआ देखकर अपना हाथ बहार निकालने लगा... पर जब उसने हाथ बहार निकाला तब मै उसके हाथ को देखकर बिल्कुल टूट सा गया... हां... असुर के हाथ की उंगलियां बिल्कुल भीगी हुई थी... इसका मतलब क्या था यह मुझे समझने में देर नहीं लगी... मां की चूत ने पानी छोड़ दिया था... इसका मतलब मां और असुर में शादी के समय ही एक कामुक सा पल बंध चुका था... आगे कुछ और होता इससे पहले ही... पारो आंटी ने प्रताप दादा को कुछ कहा... प्रताप दादा ने अपनी आंखे खोली और असुर और मां को उठने को कहा...
मां उठने में काफी अनकंफरटेबल हो रही थी.. तभी पारो आंटी ने मां से कहा... " पूनम.. पहले तो तू बैठने के लिए देर लगा रही थी... खैर वह तो समझ आ रहा था... पर अब उठने के लिए भी...? उठ जा बहु... अभी तो तुझे इसके बाद दिन रात सिर्फ असुर की गोद में ही बैठना है..."
मां इस बात पर शर्माते हुए उठकर खड़ी हो गई... पर असुर वैसे ही बैठा रहा... जैसे ही मां उठी... वैसे हमने देखा कि असुर के जांघें और पैर मां के चूत के रस से पूरी तरह भीग चुके थे... और असुर का लंड अभी अभी खड़ा ही हुआ था... पर यह असुर के लंड का असली साइज नहीं था... असुर के लंड का साइज सिर्फ मुझे और प्रताप दादा को ही पता था... मां दोनों हाथों से अपने चेहरे को शर्म के मारे छुपा रही थी... असुर भी उठ खड़ा हो गया... उसका गमछा मां के चूत के पानी से चिपचिपा हो चुका था.. और उसका काला लंड अब और भी अच्छी तरह नजर आ रहा था.
पारो आंटी यह सब देखकर मां को कहने लगी कि...
" पूनम... तो यह बात थी...? तेरी चूत तो अभी से असुर के स्पर्श से ही पानी छोड़ने लगी है... अब सब शर्म हया छोड़ कर.. असुर को अपना बना ही लो "
मां ने अभी तक अपने हाथों को अपने चेहरे से हटाया नहीं था... पर जब धीरे धीरे उन्होंने अपने हाथ नीचे लाए.... तब मां के चेहरे पर भी शर्म भरी मुस्कान थी... अब में भी समझ चुका था कि मां का मन परिवर्तन हो चुका था... और अब यह सब देखकर मुझे भी यह लगने लगा था कि अगर मां को यह सब अच्छा लग रहा है... तो यह सब कुछ मुझे भी मंजूर ही है... शायद अब स्वामी जी के निर्णय पर मुझे भी यकीन होने लगा था...
अब असुर के सामने थाली में सिंदूर था... असुर ने अपनी भीगी हुई उंगलियों से सिंदूर को चिमटी में भर कर मां के मांग में भर दिया.... उसी पल मां की आंखें किसी संतुष्टि की प्राप्त होते भाव से बंद हो ली... उनकी बंद पलकों के कोने से आंसू की धार नीचे छलकने लगी... इतने में प्रताप दादा ने मंत्र पढ़ते हुए कहा... " पत्नी को पति के पैरों का आशीर्वाद लेना होगा " इस बार मां ने बिना देर किए असुर के पैरों पर खुद को समर्पित कर दिया... मुझे यह सबकुछ कैसे इतने जल्दी बदला यह समझ में नहीं आ रहा था... पर सामने असुर ने फिर से मां को कुछ कहा और उन्हें कंधों को पकड़ते हुए ऊपर उठा लिया... मां ने भी अपने आंसू पोंछ लिए और फिर असुर को हल्के से कुछ कहते हुए उठ गई.... अब आखरी विधि थी वो बाकी थी... असुर ने वो छोटा वाला मंगलसूत्र बिल्कुल मां के गले में टाइट बांध लिया. सब खुश दिखाई दे रहे थे सब कुछ अच्छा सा लग रहा था...पर मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था... असुर को में काफी अच्छी तरह पहचान चुका था.... उसने जरूर कुछ ऐसा किया था जिस वजह से मां इतना बदल चुकी थी... और असूर की तरफ खींचती जा रही थीं....?
क्या था जो गलत था..?
या यह सिर्फ मेरा वहम था..?
आगे क्या होने वाला था?
![[Image: Polish-20250314-120225167.png]](https://i.ibb.co/1tKx0749/Polish-20250314-120225167.png)