23-03-2025, 03:57 PM
रेखा के दो ब्वॉयफ्रेंड्स में एक * लड़का भी था और उसने एक बार बताया भी था कि चमड़ा कटे हुए लंड से चुदने का अलग ही मजा मिलता है। अभी जब कल्लू के चमड़ा कटे हुए लंड का चमचमाता विशाल लंड का दर्शन हुआ तो मैं सर से पांव तक सनसना उठी। पहली बार ऐसे लंड का दर्शन कर रही थी। अद्भुत, अद्वितीय, लोमहर्षक दृश्य था वह। उसके लंड के ऊपर उभरे हुए नसों के कारण थोड़ा भयावह भी था। लेकिन जो भी था, इस वक्त मुझे एक दमदार लंड से चुदाई की बेहद जरूरत थी। वाह, इसे कहते हैं किस्मत। बैठे बिठाए कटे हुए लंड से चुदने का मजा मिलने वाला था और वह भी बड़े उपयुक्त अवसर पर। हालांकि यहां दो दो कामुक बूढ़े दर्शक बने मौजूद थे लेकिन मुझे परवाह नहीं थी।
"जैसी आप सबकी मर्जी।" कहकर कल्लू मेरी ओर आगे बढ़ा। आगे बढ़ते समय उसके हर कदम के साथ उसका तना हुआ लंड पूरे जलाल के साथ झूम रहा था। बड़ा दिलकश नज़ारा था। मेरी चूत फड़क उठी थी। ज्यों ज्यों वह पास आता जा रहा था, उसकी दृष्टि में अजीब सी चमक बढ़ती जा रही थी। शायद आज से पहले मुझ जैसी कमसिन कन्या उसे नसीब नहीं हुई थी। कभी मेरे चेहरे को देखता, कभी मेरी चूचियों को देखता और कभी चुद चुद कर फूली हुई चिकनी रसीली चूत को देखता। मेरी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं। दिल धाड़ धाड़ धड़क रहा था। जब वह बिल्कुल मेरे पास पहुंचा, तो उसके चेहरे का भाव बिल्कुल बदल चुका था। वह बिल्कुल किसी शिकारी कुत्ते की तरह मुझे भंभोड़ डालने को आतुर दिखाई दे रहा था। एक पल को तो मैं भी सहम गई थी लेकिन चुदने की चाह में कुछ भी झेलने को तैयार हो गई। सहसा वह मुझ पर पागलों की तरह टूट पड़ा और बेतहाशा मेरे रसीले होंठों को चूसने लगा और साथ ही मेरी चूचियों को अपने पंजों में दबोच कर मसलना शुरू कर दिया।
ओह ओह, बड़ी बेसब्री दिखा रहा था वह, साथ ही साथ अपनी पाशविक प्रवृत्ति का परिचय भी दे रहा था। बड़ी बेरहमी से मेरी चूचियों को मसलने लगा था। मैं आह भी नहीं निकाल सकती थी, मेरे होंठ जो उसके होंठों के कब्जे में थे। मैं छटपटा रही थी और वह मुझपर हावी होता जा रहा था। मैं सचमुच थोड़ी सहम सी गई थी। उसके दैत्याकार शरीर के नीचे मैं पिसती हुई बेबसी में हाथ पैर मारने लगी लेकिन अब मेरे छटपटाने के फलस्वरूप फैली हुई मेरी जांघों के बीच वह आ चुका था। मैं बिल्कुल बेबस थी और मेरे विरोध करने का शारीरिक श्रम व्यर्थ समझ कर जो कुछ मेरे साथ हो रहा था उसे स्वीकार करना ही मैंने उचित समझा। मैं ने छटपटाने का प्रयास करना भी बंद कर दिया। मेरी स्थिति को दोनों बूढ़े बड़े मजे ले कर देख रहे थे। खासकर घनश्याम को तो बड़ा सुकून मिल रहा था होगा कि चलो जो प्रताड़ना देने में वह असफल रहा था उसकी भरपाई कल्लू कर रहा था।
कल्लू कुछ देर मेरे होंठों का रस चूसने के बाद मेरे होंठों को मुक्त किया। मुझे लग रहा था जैसे मेरे रक्तिम होंठ और लाल हो कर आगे की ओर उभर आए हों। तभी उसने मेरी चूचियों को मसलना बंद किया लेकिन यह क्षणिक राहत थी। दरअसल जो हमला उसने अपने मुंह से मेरे होंठों पर बोला था, वह हमला अब मेरी चूचियों पर होने वाला था। आआआआह ओओओओहहहहह जैसे ही उसने मेरी एक चूची पर मुंह लगाया, मेरे मुक्त मुंह से बरबस ही सिसकारी निकल पड़ी। उसके होंठों का स्पर्श ज्यों ही मेरी चूची पर हुआ, बेसाख्ता यह सिसकारी निकली थी। यह स्पर्श मुझे राहत भी प्रदान करने वाला था साथ ही मेरे अंदर की कामुकता को हवा देने वाला भी था।
"शाबाश मेरे शेर।" यह भलोटिया की आवाज थी। साला कमीना मोटू।
"बड़ी जबरदस्त चीज लाये हैं सर जी।" कल्लू सर उठा कर बोला।
"सब घंशू की कृपा है। ऐसी मस्त बुरचोदी बिटिया भगवान सबको दे।" भलोटिया बोला। कितना घटिया और घृणित बात थी यह लेकिन उसकी बात सुनकर मैं और भी ज्यादा उत्तेजित हो गई।
"इस उम्र में इतना बड़ा बड़ा मस्त चूची! गजब है गुरूजी।" कल्लू बोला।
"साला प्रशंसा करना बंद कर मादरचोद और निचोड़ निचोड़ कर चोद मां के लौड़े।" घनश्याम तिक्त स्वर में बोला। उसे कल्लू के मुंह से मेरी प्रशंसा अखर गई थी। उसकी बात सुनकर जहां मुझे गुस्सा आया वहीं मुझे मजा भी आया कि वह चिढ़ रहा था।
"जो सच है वही तो बोला। तुम बेवजह बिटिया पर खीझ को कल्लू पर दिखा रहे हो।" भलोटिया बोला तो घनश्याम खिसिया कर रह गया। इधर अब कल्लू पहले किसी कुत्ते की तरह मेरी चूचियों को चाटने लगा। ओह ओह मैं पगलाई जा रही थी। चाटने के बाद वह अपने मुंह मुंह भर भर कर मेरी चूचियों को जोर जोर से किसी भुक्खड़ की तरह चूसने लगा। इस्स्स्स इस्स्स्स यह कल्लू तो मुझे तड़पा कर मार ही डालने पर आमादा था। इसी दौरान मैंने महसूस किया कि मेरी चूत पर उसके गरमागरम मूसल का स्पर्श हुआ। मैं सर से पांव तक गनगना गई। इसी पल का तो बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी मैं। लेकिन कल्लू बड़ा धूर्त था। वह धीरे-धीरे मेरी चूत के ऊपर अपना लंड ऊपर ही ऊपर घिसने लगा था। मेरे अंदर आग धधकने लगी थी। यह हरामी सूअर का बच्चा सीधे अपना लंड पेल क्यों नहीं दे रहा है? यह मेरे सब्र का इम्तिहान था। सहसा कल्लू मेरी चूचियों को चूसना छोड़ कर मेरे चेहरे को देखने लगा। मैं समझ गई कि मेरी चूत पर अपने लंड के घर्षण की प्रतिक्रिया देख रहा था। उत्तेजना के मारे मेरा चेहरा लाल भभूका हो गया था, जिसे देखकर वह मुस्करा रहा था।
"जैसी आप सबकी मर्जी।" कहकर कल्लू मेरी ओर आगे बढ़ा। आगे बढ़ते समय उसके हर कदम के साथ उसका तना हुआ लंड पूरे जलाल के साथ झूम रहा था। बड़ा दिलकश नज़ारा था। मेरी चूत फड़क उठी थी। ज्यों ज्यों वह पास आता जा रहा था, उसकी दृष्टि में अजीब सी चमक बढ़ती जा रही थी। शायद आज से पहले मुझ जैसी कमसिन कन्या उसे नसीब नहीं हुई थी। कभी मेरे चेहरे को देखता, कभी मेरी चूचियों को देखता और कभी चुद चुद कर फूली हुई चिकनी रसीली चूत को देखता। मेरी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं। दिल धाड़ धाड़ धड़क रहा था। जब वह बिल्कुल मेरे पास पहुंचा, तो उसके चेहरे का भाव बिल्कुल बदल चुका था। वह बिल्कुल किसी शिकारी कुत्ते की तरह मुझे भंभोड़ डालने को आतुर दिखाई दे रहा था। एक पल को तो मैं भी सहम गई थी लेकिन चुदने की चाह में कुछ भी झेलने को तैयार हो गई। सहसा वह मुझ पर पागलों की तरह टूट पड़ा और बेतहाशा मेरे रसीले होंठों को चूसने लगा और साथ ही मेरी चूचियों को अपने पंजों में दबोच कर मसलना शुरू कर दिया।
ओह ओह, बड़ी बेसब्री दिखा रहा था वह, साथ ही साथ अपनी पाशविक प्रवृत्ति का परिचय भी दे रहा था। बड़ी बेरहमी से मेरी चूचियों को मसलने लगा था। मैं आह भी नहीं निकाल सकती थी, मेरे होंठ जो उसके होंठों के कब्जे में थे। मैं छटपटा रही थी और वह मुझपर हावी होता जा रहा था। मैं सचमुच थोड़ी सहम सी गई थी। उसके दैत्याकार शरीर के नीचे मैं पिसती हुई बेबसी में हाथ पैर मारने लगी लेकिन अब मेरे छटपटाने के फलस्वरूप फैली हुई मेरी जांघों के बीच वह आ चुका था। मैं बिल्कुल बेबस थी और मेरे विरोध करने का शारीरिक श्रम व्यर्थ समझ कर जो कुछ मेरे साथ हो रहा था उसे स्वीकार करना ही मैंने उचित समझा। मैं ने छटपटाने का प्रयास करना भी बंद कर दिया। मेरी स्थिति को दोनों बूढ़े बड़े मजे ले कर देख रहे थे। खासकर घनश्याम को तो बड़ा सुकून मिल रहा था होगा कि चलो जो प्रताड़ना देने में वह असफल रहा था उसकी भरपाई कल्लू कर रहा था।
कल्लू कुछ देर मेरे होंठों का रस चूसने के बाद मेरे होंठों को मुक्त किया। मुझे लग रहा था जैसे मेरे रक्तिम होंठ और लाल हो कर आगे की ओर उभर आए हों। तभी उसने मेरी चूचियों को मसलना बंद किया लेकिन यह क्षणिक राहत थी। दरअसल जो हमला उसने अपने मुंह से मेरे होंठों पर बोला था, वह हमला अब मेरी चूचियों पर होने वाला था। आआआआह ओओओओहहहहह जैसे ही उसने मेरी एक चूची पर मुंह लगाया, मेरे मुक्त मुंह से बरबस ही सिसकारी निकल पड़ी। उसके होंठों का स्पर्श ज्यों ही मेरी चूची पर हुआ, बेसाख्ता यह सिसकारी निकली थी। यह स्पर्श मुझे राहत भी प्रदान करने वाला था साथ ही मेरे अंदर की कामुकता को हवा देने वाला भी था।
"शाबाश मेरे शेर।" यह भलोटिया की आवाज थी। साला कमीना मोटू।
"बड़ी जबरदस्त चीज लाये हैं सर जी।" कल्लू सर उठा कर बोला।
"सब घंशू की कृपा है। ऐसी मस्त बुरचोदी बिटिया भगवान सबको दे।" भलोटिया बोला। कितना घटिया और घृणित बात थी यह लेकिन उसकी बात सुनकर मैं और भी ज्यादा उत्तेजित हो गई।
"इस उम्र में इतना बड़ा बड़ा मस्त चूची! गजब है गुरूजी।" कल्लू बोला।
"साला प्रशंसा करना बंद कर मादरचोद और निचोड़ निचोड़ कर चोद मां के लौड़े।" घनश्याम तिक्त स्वर में बोला। उसे कल्लू के मुंह से मेरी प्रशंसा अखर गई थी। उसकी बात सुनकर जहां मुझे गुस्सा आया वहीं मुझे मजा भी आया कि वह चिढ़ रहा था।
"जो सच है वही तो बोला। तुम बेवजह बिटिया पर खीझ को कल्लू पर दिखा रहे हो।" भलोटिया बोला तो घनश्याम खिसिया कर रह गया। इधर अब कल्लू पहले किसी कुत्ते की तरह मेरी चूचियों को चाटने लगा। ओह ओह मैं पगलाई जा रही थी। चाटने के बाद वह अपने मुंह मुंह भर भर कर मेरी चूचियों को जोर जोर से किसी भुक्खड़ की तरह चूसने लगा। इस्स्स्स इस्स्स्स यह कल्लू तो मुझे तड़पा कर मार ही डालने पर आमादा था। इसी दौरान मैंने महसूस किया कि मेरी चूत पर उसके गरमागरम मूसल का स्पर्श हुआ। मैं सर से पांव तक गनगना गई। इसी पल का तो बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी मैं। लेकिन कल्लू बड़ा धूर्त था। वह धीरे-धीरे मेरी चूत के ऊपर अपना लंड ऊपर ही ऊपर घिसने लगा था। मेरे अंदर आग धधकने लगी थी। यह हरामी सूअर का बच्चा सीधे अपना लंड पेल क्यों नहीं दे रहा है? यह मेरे सब्र का इम्तिहान था। सहसा कल्लू मेरी चूचियों को चूसना छोड़ कर मेरे चेहरे को देखने लगा। मैं समझ गई कि मेरी चूत पर अपने लंड के घर्षण की प्रतिक्रिया देख रहा था। उत्तेजना के मारे मेरा चेहरा लाल भभूका हो गया था, जिसे देखकर वह मुस्करा रहा था।