18-03-2025, 07:10 PM
UPDATE 5.9 B
घर आते ही मैंने सारा सामान असुरा और पारो आंटी को दे दिया. असुरा मुस्कुराते हुए अपना सामान लेकर प्रताप दादा और अपने कमरे में चला गया. पारो आंटी भी मां के लिए लाया हुआ सामान लेकर जाने लगी. मां.. अभी तक मुझे कहीं दिखाई नहीं दी थी, लेकिन... अब वो सामान अगर मां के लिए ही था तो पारो आंटी वो सामान उन्हें ही देने जा रही होगी ऐसा सोचकर,
मैं पारो आंटी कहा जा रही है यह देखने लगा... " हे स्वामी जी... पारो आंटी तो ऊपर वाले माले पर जा रही है... मतलब पिताजी और मां का पुराना वाला कमरा... यानि मां ऊपर उस कमरे में थी...? पर वो कमरा तो पिताजी के गुजर जाने के बाद से बंद था...? और उस कमरे को खोलने की भी कोई रस्म थी... और वो रस्म सिर्फ उस कमरे जो मर्द अपना संसार बसाने वाला है, वहीं उस रस्म को पूरा करकर दरवाजा खोल सकता था... तो फिर क्या असुरा ने वह रस्म पूरी की होगी...? " मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था. मुझे उस रस्म के बारे में कुछ भी नहीं मालूम था. मैं बस इतना ही जानता था कि ऐसी कोई रस्म है इसीलिए वह कमरा इतने सालों से बंद रक्खा है. अब मुझे इसका पता सिर्फ ऊपर जाकर उस कमरे में देख कर ही पता चल सकता था. मैं बिना देर किए ऊपर जाने के लिए आगे बढ़ा. ऊपर जाते हुए मुझे सीढ़ियों पर ही कुछ आवाज सुनाई दी... वह आवाज थी पारो आंटी और प्रताप दादा की... प्रताप दादा पारो आंटी से कुछ कह रहे थे...
" पारो... पूनम को अभी मैने नहाने भेजा है... तुमने जो यह सामान मंगवाया है वो उसे दे दो... और पूनम ने दरवाजे पर जो उल्टी कि हैं उसे भी साफ कर देना "
मां ने उल्टी की है, यह बात सुनकर मैं डर गया. ऐसा क्या हुआ होगा जो उन्हें उल्टी आ गई..? " हे स्वामी जी..." मैंने गौर से आगे सुना तो पारो आंटी प्रताप दादा से कुछ कहने लगी.
" यह पूनम भी न बिल्कुल भोली भाली है.. उसे कुछ नहीं आता.. अब असुरा उसका होने वाला पति ही तो है.. भला अपने होने वाले पति का वीर्य चाटते वक्त कैसी गंदगी..? शादी के बाद तो उसके वीर्य को गटक के पी जाएगी यह पूनम... या कहू वीर्य से दिन रात नहाएगी... तो फिर शादी से पहले प्रैक्टिस के तौर पर अब इतना करना तो लाजमी है ना बापूजी...? "
" हे स्वामी जी... मतलब.. इन लोगों ने मेरी मां से असुरा का वीर्य चटवाया हैं...? इसीलिए मां को उल्टी आई " मुझे मां के स्थिति की बारे में सोचकर बहुत बुरा लग रहा था. तभी प्रताप दादा बड़ी शांती से आगे बोले.
" देखा जाए तो यह एक रस्म ही तो है.. इस कामकोठरी का दरवाजा खोलने से पहले पुरुष अपने वीर्य से कोठरी के द्वारा पर वीर्यपतन करता हैं, और उसकी पत्नी वो वीर्य पूरा चाटकर पी लेती है... उसके पश्चात ही कामकोठरी का दरवाजा खोला जा सकता हैं... पूनम ने यह काम पहले भी अपने पति ललन के साथ किया होगा, पर.... असुर के वीर्य मात्रा इतनी ज्यादा थी कि उसे वो पीने में शायद घिन आ गई होगी. "
प्रताप दादा सीढ़ियों की दो स्टेप नीचे उतरते हुए पारो आंटी से यह कहने लगे. तभी पारो आंटी की आवाज आई...
" वीर्य की मात्रा तो ज्यादा होगी ही ना बापूजी... बैठक के बाद मैने जब असुर को यह रस्म समझाई तब मैने पूनम की कल रात वाली मादकता के रस और पसीने में भरी हुई साड़ी, ब्लाउज, और उसकी कच्छी भी असुरा को दे दी थी... उन कपड़ों में पूनम के कुंवारे जिस्म से निकले मादकता के रस की गंध जो थी.. उसी के प्रभाव से असुर पता नहीं पिछले कितने घंटों से हस्तमैथुन कर रहा था और... तब जाकर यह उसके लंड से इतना वीर्य निकला है..."
क्या...? असुरा ने मां के कल रात वाले बदन से लिपटे हुए कपड़ों की खुशबू सूंघकर इतना वीर्य निकला था... ? हे स्वामी जी... जैसा आपने कहा था वैसा अब ये घर कामसदन बनने लगा ही था ". देखा जाए तो मुझे पहली बार यह सोचते हुए कुछ कुछ होने सा लगा था.
अब शायद प्रताप दादा धीरे-धीरे एक-एक सीढ़ी नीचे उतरते हुए बात कर रहे थे. मैं सीढ़ी का निचला वाला कोना पकड़ा और वहीं पर बाजू में सीढ़ियों के नीचे वाली जगह में छुप गया.
" पारो, यह पूनम कामस्वामी की सबसे उत्कृष्ट रचना है, वैसे ही असुर मर्दों में सर्वश्रेष्ठ हैं.. स्वामी जी ने दोनों के हित को सोचकर ही उनका जोड़ा बनाया हैं.. पूनम को इस सबसे बहुत तकलीफ होगी पर यही स्वामी जी का विधान हैं.. पूनम को और आगे बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि हमारा असुरा उसे हमेश बेइंतहा दर्द देगा, लेकिन जैसे स्वामी जी का उपदेश हैं कि ... हर दर्द, दर्दनाक नहीं होता.. कुछ दर्द, इंसान को प्रेम की अंतिम सीमा के पार ले जाते है, और वह दर्द बहुत मीठा होता है.. और वैसा ही जुलुम असुरा पूनम के साथ करेगा यह तो निश्चित हैं... मेरी बस स्वामी जी से एक ही कामना है कि वो पूनम को असुरा के प्यार के वहशीपन का सामना करने की शक्ति दे "
प्रताप दादा नीचे उतरे और चले गए. में वही कोने में बैठा था. अब मेरी सोचने समझने की सूद बुद्ध खत्म हो चुकी थी. मैं कुछ देर वहीं पर बैठा रहा. थोड़ी ही देर में पारो आंटी भी नीचे चली आई. मैं खुद को संभालते हुए उठ गया. उठ के मैंने हिम्मत की और ऊपर पहले माले पर चला आया. ऊपर वाले माले का कॉरिडोर पानी डालकर पूरी तरह साफ किया गया था. उपर वाला यह कमरा.... नहीं.. नहीं... यह कामकोठरी काफी बड़ी थी. कमरे के दोनों बाजू के छोरो पर एक-एक दरवाजा था. सीढ़ी की ओर वाला दरवाजा लॉक था. उसपर एक बड़ा सा ताला था. इसका मतलब दूसरे वाला दरवाजा ही खोला गया था. मैंने मेरा रुख धीरे-धीरे उसे दरवाजे की और मोड़ लिया. अंदर मां क्या कर रही होगी यही मेरे दिमाग में चल रहा था. कुछ ही पलों में मैं दरवाजे की सामने खड़ा था. दरवाजा हल्का सा बंद था लेकिन अंदर का सब कुछ देखा जा सकता था. मेरी नजर तो सिर्फ मां को ही ढूंढ रही थी, पर वो कमरे में कही पर दिख ही नहीं रही थी. मैं बिना आवाज किए अंदर गया. कामकोठरी में बाथरूम के बाहर एक कुर्सी पर मां ने जो सुबह ही साड़ी और ब्लाउज पहना था वो रखा था. इसका मतलब मां अभी तक अंदर बाथरूम में ही थी. ( कामकोठरी का पूरा विवरण मै आगे जब मां और असुरा पहली बार एकसाथ इस कमरे में आयेंगे तब करूंगा ). बाथरूम का कोई दरवाजा नहीं था. वहां सिर्फ एक मलमल का शाही पर्दा उस बाथरूम के दरवाजे पर टंगा गया था. उस पर्दे से आरपार काफी अच्छी तरह देखा जा सकता था. मैं बिना देर किए उस पर्दे के करीब आया और अंदर देखा..... अंदर मां नहा कर तैयार हो चुकी थी... अंदर का नजारा बिल्कुल मोहित करने वाला था...
मां टब में अपने घुटनों पर बैठी थी... पानी की बूंदे उनके बदन पर अब भी दिखाई दे रही थी...अभी अभी शायद उन्होंने अंग पोछा है ऐसा लग रहा था. मां ने बालों को भी शायद कंडीशनर लगा कर धोए थे इस वजह से वो बिल्कुल सिल्की और बाउंसी दिख रहे थे...प्रताप दादा के कहे अनुसार मां ने अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को एक सफेद कप साइज ब्रा से छुपाई थी. उनके ब्रा के टाइट कोने के कारण स्ट्रैप कंधों से नीचे उनकी बांह पर सटे हुए थे. वो ब्रा अब उन्हें छोटी पड़ रही है यह साफ साफ पता चल रहा था क्यों कि उनके दोनों स्तन सिर्फ नाम मात्र के लिए उस ब्रा में समाए थे. नीचे मां ने एक छोटी सी सफेद पेंटी पहनी थी जो उनकी चूत को छुपा रही थी. मैने जब मां को पूरा देखा तो मां खुद को ही संवारते हुए अपने आप को देख रही थी. कल से बिल्कुल उदास मां आज मुझे थोड़ी बहुत संभली हुई लग रही थी. उनके चेहरे पर मुस्कान तो नहीं थी पर एक काफी खुशनुमा सा भाव झलक रहा था. शायद इस कमरे मैं आकर मां की पुरानी यादें ताजा हो गई थीं... इसी कमरे में पिताजी और उन्होंने अपनी जिंदगी के सबसे अच्छे पल बिताए जो थे. शायद वैसे ही पल उनकी जिंदगी में लौट के आने वाले थे इसी सोच में कही उनका मन खुश तो नहीं हुआ था? ऐसा अब मुझे लगने लगा.
लेकिन कुछ भी कहलों , पर मां का गदराया बदन इस बात की गवाही दे रहा था कि असुरा कितना नसीबवाला था.
मैं यह सब सोच रहा था तभी मुझे नीचे सीढ़ियों पर कुछ गिरने की आवाज आई. कही यहां मुझे कोई देख न ले यह सोचकर में बिना वक्त गवाए कमरे से बाहर आ गया. बाहर आकर कोई है या नहीं यह मैंने जायजा लिया और कॉरिडोर से होता हुआ सीढ़ियों के पास चला आया. नीचे शायद पारो आंटी शादी का सामान आंगन में रख रही थीं. मैं सीढ़ियों से होता हुआ नीचे उतरा. सीढ़ियों के पास ही एक पूजा की बड़ी वाली थाली गिरी थी... उसी के गिरने की वह आवाज थी... मैने उस थाली को उठाया और आंगन में ले आया.... सूरज ढलने को आया था... अंधेरा होने ही वाला था.... विवाह का महुरत आ ही गया था...
कैसा होगा मां और असुर का विवाह?
मां का विवरण तो आपने देख लिया... असुर विवाह में कैसा तैयार हो के आयेगा...?
विवाह के विधि में क्या क्या होगा?
विवाह के बाद सुहागरात कैसी होगी?
पढ़िए आगे के भाग में
घर आते ही मैंने सारा सामान असुरा और पारो आंटी को दे दिया. असुरा मुस्कुराते हुए अपना सामान लेकर प्रताप दादा और अपने कमरे में चला गया. पारो आंटी भी मां के लिए लाया हुआ सामान लेकर जाने लगी. मां.. अभी तक मुझे कहीं दिखाई नहीं दी थी, लेकिन... अब वो सामान अगर मां के लिए ही था तो पारो आंटी वो सामान उन्हें ही देने जा रही होगी ऐसा सोचकर,
मैं पारो आंटी कहा जा रही है यह देखने लगा... " हे स्वामी जी... पारो आंटी तो ऊपर वाले माले पर जा रही है... मतलब पिताजी और मां का पुराना वाला कमरा... यानि मां ऊपर उस कमरे में थी...? पर वो कमरा तो पिताजी के गुजर जाने के बाद से बंद था...? और उस कमरे को खोलने की भी कोई रस्म थी... और वो रस्म सिर्फ उस कमरे जो मर्द अपना संसार बसाने वाला है, वहीं उस रस्म को पूरा करकर दरवाजा खोल सकता था... तो फिर क्या असुरा ने वह रस्म पूरी की होगी...? " मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था. मुझे उस रस्म के बारे में कुछ भी नहीं मालूम था. मैं बस इतना ही जानता था कि ऐसी कोई रस्म है इसीलिए वह कमरा इतने सालों से बंद रक्खा है. अब मुझे इसका पता सिर्फ ऊपर जाकर उस कमरे में देख कर ही पता चल सकता था. मैं बिना देर किए ऊपर जाने के लिए आगे बढ़ा. ऊपर जाते हुए मुझे सीढ़ियों पर ही कुछ आवाज सुनाई दी... वह आवाज थी पारो आंटी और प्रताप दादा की... प्रताप दादा पारो आंटी से कुछ कह रहे थे...
" पारो... पूनम को अभी मैने नहाने भेजा है... तुमने जो यह सामान मंगवाया है वो उसे दे दो... और पूनम ने दरवाजे पर जो उल्टी कि हैं उसे भी साफ कर देना "
मां ने उल्टी की है, यह बात सुनकर मैं डर गया. ऐसा क्या हुआ होगा जो उन्हें उल्टी आ गई..? " हे स्वामी जी..." मैंने गौर से आगे सुना तो पारो आंटी प्रताप दादा से कुछ कहने लगी.
" यह पूनम भी न बिल्कुल भोली भाली है.. उसे कुछ नहीं आता.. अब असुरा उसका होने वाला पति ही तो है.. भला अपने होने वाले पति का वीर्य चाटते वक्त कैसी गंदगी..? शादी के बाद तो उसके वीर्य को गटक के पी जाएगी यह पूनम... या कहू वीर्य से दिन रात नहाएगी... तो फिर शादी से पहले प्रैक्टिस के तौर पर अब इतना करना तो लाजमी है ना बापूजी...? "
" हे स्वामी जी... मतलब.. इन लोगों ने मेरी मां से असुरा का वीर्य चटवाया हैं...? इसीलिए मां को उल्टी आई " मुझे मां के स्थिति की बारे में सोचकर बहुत बुरा लग रहा था. तभी प्रताप दादा बड़ी शांती से आगे बोले.
" देखा जाए तो यह एक रस्म ही तो है.. इस कामकोठरी का दरवाजा खोलने से पहले पुरुष अपने वीर्य से कोठरी के द्वारा पर वीर्यपतन करता हैं, और उसकी पत्नी वो वीर्य पूरा चाटकर पी लेती है... उसके पश्चात ही कामकोठरी का दरवाजा खोला जा सकता हैं... पूनम ने यह काम पहले भी अपने पति ललन के साथ किया होगा, पर.... असुर के वीर्य मात्रा इतनी ज्यादा थी कि उसे वो पीने में शायद घिन आ गई होगी. "
प्रताप दादा सीढ़ियों की दो स्टेप नीचे उतरते हुए पारो आंटी से यह कहने लगे. तभी पारो आंटी की आवाज आई...
" वीर्य की मात्रा तो ज्यादा होगी ही ना बापूजी... बैठक के बाद मैने जब असुर को यह रस्म समझाई तब मैने पूनम की कल रात वाली मादकता के रस और पसीने में भरी हुई साड़ी, ब्लाउज, और उसकी कच्छी भी असुरा को दे दी थी... उन कपड़ों में पूनम के कुंवारे जिस्म से निकले मादकता के रस की गंध जो थी.. उसी के प्रभाव से असुर पता नहीं पिछले कितने घंटों से हस्तमैथुन कर रहा था और... तब जाकर यह उसके लंड से इतना वीर्य निकला है..."
क्या...? असुरा ने मां के कल रात वाले बदन से लिपटे हुए कपड़ों की खुशबू सूंघकर इतना वीर्य निकला था... ? हे स्वामी जी... जैसा आपने कहा था वैसा अब ये घर कामसदन बनने लगा ही था ". देखा जाए तो मुझे पहली बार यह सोचते हुए कुछ कुछ होने सा लगा था.
अब शायद प्रताप दादा धीरे-धीरे एक-एक सीढ़ी नीचे उतरते हुए बात कर रहे थे. मैं सीढ़ी का निचला वाला कोना पकड़ा और वहीं पर बाजू में सीढ़ियों के नीचे वाली जगह में छुप गया.
" पारो, यह पूनम कामस्वामी की सबसे उत्कृष्ट रचना है, वैसे ही असुर मर्दों में सर्वश्रेष्ठ हैं.. स्वामी जी ने दोनों के हित को सोचकर ही उनका जोड़ा बनाया हैं.. पूनम को इस सबसे बहुत तकलीफ होगी पर यही स्वामी जी का विधान हैं.. पूनम को और आगे बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि हमारा असुरा उसे हमेश बेइंतहा दर्द देगा, लेकिन जैसे स्वामी जी का उपदेश हैं कि ... हर दर्द, दर्दनाक नहीं होता.. कुछ दर्द, इंसान को प्रेम की अंतिम सीमा के पार ले जाते है, और वह दर्द बहुत मीठा होता है.. और वैसा ही जुलुम असुरा पूनम के साथ करेगा यह तो निश्चित हैं... मेरी बस स्वामी जी से एक ही कामना है कि वो पूनम को असुरा के प्यार के वहशीपन का सामना करने की शक्ति दे "
प्रताप दादा नीचे उतरे और चले गए. में वही कोने में बैठा था. अब मेरी सोचने समझने की सूद बुद्ध खत्म हो चुकी थी. मैं कुछ देर वहीं पर बैठा रहा. थोड़ी ही देर में पारो आंटी भी नीचे चली आई. मैं खुद को संभालते हुए उठ गया. उठ के मैंने हिम्मत की और ऊपर पहले माले पर चला आया. ऊपर वाले माले का कॉरिडोर पानी डालकर पूरी तरह साफ किया गया था. उपर वाला यह कमरा.... नहीं.. नहीं... यह कामकोठरी काफी बड़ी थी. कमरे के दोनों बाजू के छोरो पर एक-एक दरवाजा था. सीढ़ी की ओर वाला दरवाजा लॉक था. उसपर एक बड़ा सा ताला था. इसका मतलब दूसरे वाला दरवाजा ही खोला गया था. मैंने मेरा रुख धीरे-धीरे उसे दरवाजे की और मोड़ लिया. अंदर मां क्या कर रही होगी यही मेरे दिमाग में चल रहा था. कुछ ही पलों में मैं दरवाजे की सामने खड़ा था. दरवाजा हल्का सा बंद था लेकिन अंदर का सब कुछ देखा जा सकता था. मेरी नजर तो सिर्फ मां को ही ढूंढ रही थी, पर वो कमरे में कही पर दिख ही नहीं रही थी. मैं बिना आवाज किए अंदर गया. कामकोठरी में बाथरूम के बाहर एक कुर्सी पर मां ने जो सुबह ही साड़ी और ब्लाउज पहना था वो रखा था. इसका मतलब मां अभी तक अंदर बाथरूम में ही थी. ( कामकोठरी का पूरा विवरण मै आगे जब मां और असुरा पहली बार एकसाथ इस कमरे में आयेंगे तब करूंगा ). बाथरूम का कोई दरवाजा नहीं था. वहां सिर्फ एक मलमल का शाही पर्दा उस बाथरूम के दरवाजे पर टंगा गया था. उस पर्दे से आरपार काफी अच्छी तरह देखा जा सकता था. मैं बिना देर किए उस पर्दे के करीब आया और अंदर देखा..... अंदर मां नहा कर तैयार हो चुकी थी... अंदर का नजारा बिल्कुल मोहित करने वाला था...
मां टब में अपने घुटनों पर बैठी थी... पानी की बूंदे उनके बदन पर अब भी दिखाई दे रही थी...अभी अभी शायद उन्होंने अंग पोछा है ऐसा लग रहा था. मां ने बालों को भी शायद कंडीशनर लगा कर धोए थे इस वजह से वो बिल्कुल सिल्की और बाउंसी दिख रहे थे...प्रताप दादा के कहे अनुसार मां ने अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को एक सफेद कप साइज ब्रा से छुपाई थी. उनके ब्रा के टाइट कोने के कारण स्ट्रैप कंधों से नीचे उनकी बांह पर सटे हुए थे. वो ब्रा अब उन्हें छोटी पड़ रही है यह साफ साफ पता चल रहा था क्यों कि उनके दोनों स्तन सिर्फ नाम मात्र के लिए उस ब्रा में समाए थे. नीचे मां ने एक छोटी सी सफेद पेंटी पहनी थी जो उनकी चूत को छुपा रही थी. मैने जब मां को पूरा देखा तो मां खुद को ही संवारते हुए अपने आप को देख रही थी. कल से बिल्कुल उदास मां आज मुझे थोड़ी बहुत संभली हुई लग रही थी. उनके चेहरे पर मुस्कान तो नहीं थी पर एक काफी खुशनुमा सा भाव झलक रहा था. शायद इस कमरे मैं आकर मां की पुरानी यादें ताजा हो गई थीं... इसी कमरे में पिताजी और उन्होंने अपनी जिंदगी के सबसे अच्छे पल बिताए जो थे. शायद वैसे ही पल उनकी जिंदगी में लौट के आने वाले थे इसी सोच में कही उनका मन खुश तो नहीं हुआ था? ऐसा अब मुझे लगने लगा.
लेकिन कुछ भी कहलों , पर मां का गदराया बदन इस बात की गवाही दे रहा था कि असुरा कितना नसीबवाला था.
मैं यह सब सोच रहा था तभी मुझे नीचे सीढ़ियों पर कुछ गिरने की आवाज आई. कही यहां मुझे कोई देख न ले यह सोचकर में बिना वक्त गवाए कमरे से बाहर आ गया. बाहर आकर कोई है या नहीं यह मैंने जायजा लिया और कॉरिडोर से होता हुआ सीढ़ियों के पास चला आया. नीचे शायद पारो आंटी शादी का सामान आंगन में रख रही थीं. मैं सीढ़ियों से होता हुआ नीचे उतरा. सीढ़ियों के पास ही एक पूजा की बड़ी वाली थाली गिरी थी... उसी के गिरने की वह आवाज थी... मैने उस थाली को उठाया और आंगन में ले आया.... सूरज ढलने को आया था... अंधेरा होने ही वाला था.... विवाह का महुरत आ ही गया था...
कैसा होगा मां और असुर का विवाह?
मां का विवरण तो आपने देख लिया... असुर विवाह में कैसा तैयार हो के आयेगा...?
विवाह के विधि में क्या क्या होगा?
विवाह के बाद सुहागरात कैसी होगी?
पढ़िए आगे के भाग में