18-03-2025, 01:57 PM
जैसे जैसे उसके शरीर से कपड़े खुलते जा रहे थे, उसकी गठी हुई काली काया अपने ज़लाल के साथ प्रकट होती जा रही थी। जब उसका पैंट खुला तो उसके कसे हुए जांघिये मे कैद नाग अकड़ कर विशाल तंबू की शक्ल अख्तियार कर चुका था। बड़ी मुश्किल से उसने अपने हथियार को जंघिए की कैद से आजाद किया और लो, मेरे सामने एक काला कलूटा, कसे हुए शरीर वाला कद्दावर दैत्य पूरी तरह नंगा, मुझे चोदने को बेकरार खड़ा था। उसे देख कर मेरा शरीर सनसना उठा। दो दो बूढ़े मुझे चोद कर निपट चुके थे लेकिन मुझे मंजिल से पहुंचने से पहले ही बीच मझधार में छोड़, हथियार डाल कर मुझे इस दैत्य के आगे परोस कर मानो अपनी शर्मिंदगी से निजात पाना चाह रहे थे। लंड चाहे कितना भी लंबा और मोटा हो, लेकिन एक स्त्री की भूख शांत न कर सके तो ऐसा लंड किस काम का। अब मेरे सामने यह काला कलूटा दैत्य, मेरा तारणहार बन कर उद्धार करने हेतु कामदेव का अवतार बन कर प्रकट हुआ था, प्रथमदृष्टया तो पूरी तरह सक्षम चुदक्कड़ दिखाई दे रहा था। लंबा कद और गजब का गठा हुआ शरीर था उसका। अपने शरीर के अनुपात में ही उसका लंबा लंड किसी गधे के लंड से कम नहीं था। कोयले की तरह काले लंड के आगे का चमड़ा पलटा हुआ था और उसका गुलाबी सुपाड़ा चमचमा रहा था। चुदने को बेकरार एक महिला के लिए एक आदर्श मर्द दिखाई दे रहा था लेकिन वह कितने पानी में था यह तो आगे पता चलने वाला था। हालांकि मेरी चूत और गांड़ को चोद चोद कर इन कमीनों ने सुजा कर रख दिया था लेकिन मेरी चुदास ज्यों की त्यों बरकरार थी। दूसरी बार मुझपर जो उत्तेजना का बुखार चढ़ा वह तो मुझे तपा तपा कर मानो मेरे प्राण ही हर लेने वाला था। हे भगवान, इस राक्षस में इतनी शक्ति दे देना कि मुझ प्यासी को भरपूर तृप्ति प्रदान करने में सक्षम हो, यही कामना करते हुए मैं उसके सम्मुख समर्पण करने को तैयार हो गई।
इससे पहले कि कल्लू मुझे चोदना शुरू करता, मैंने अपने अगल बगल दृष्टि घुमाई तो पाया कि भलोटिया और घनश्याम उसी तरह नंग धड़ंग अवस्था में मेरी चुदाई देखने को उत्सुक दिखाई दे रहे थे। भलोटिया तो अभी तक बिस्तर पर भैंस की तरह पसरा हुआ था लेकिन घनश्याम उठकर सोफे पर जाकर बैठ गया था। मैंने देखा कि घनश्याम के सिकुड़े लंड पर अब भी मेरी गुदा से निकला पीला मल लिथड़ा हुआ था जिसे धो कर साफ़ करने का भी उसे होश नहीं था, सूअर कहीं का। मुझे उसे देख कर घिन आ रही थी। मैं जानती थी कि मेरी गुदा से भी उसके वीर्य से लिथड़ा मल अभी भी रिस रिस कर बाहर निकल रहा था जिसके कारण मुझे भी खुद को धो पोंछ कर साफ होने की आवश्यकता थी लेकिन उस गंदगी से घृणा होने के बदले मुझ पर मेरी भड़कती चुदास हावी थी। मुझे अपनी गंदगी की इस वक्त रत्ती भर भी परवाह नहीं थी और न ही बिस्तर के गंदा होने की। भाड़ में जाए बिस्तर, जब भलोटिया और घनश्याम को उस गंदगी से कोई परहेज नहीं था तो मैं तो ठहरी चुदास की मारी लंडखोर (क्योंकि अब मैं सचमुच एक बड़ी ल़डखोर में तब्दील होती जा रही थी और इस वक्त तो जैसे रेगिस्तान में जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी, मैं क्यों परवाह करती)। हां थोड़ी भयभीत अवश्य हो रही थी कि यह कल्लू, जैसा कि वह शारीरिक रूप से दिखाई दे रहा था, पता नहीं कितनी जबरदस्त कुटाई करने वाला था। जानती थी कि उसके मन में क्या चल रहा है और मैं खुद भी चुदने के लिए मरी जा रही थी फिर भी अपने मुंह से बोल कर प्रकट नहीं करना चाहती थी। इससे मेरी छिनाल वाली छवि उजागर जो हो जाती। मैं उस परिस्थिति में भी अपना विरोध व्यक्त करते हुए बोली,
"नहीं नहीं, आपलोगों ने मुझे समझ क्या रखा है? मैं कोई बाजारू महिला हूं क्या कि कोई भी मेरे साथ कुछ भी कर ले?"
"साली रंडी की औलाद, तू तो बाजारू औरत से भी गयी गुजरी है। इतना कुकर्म करके भी शराफत का दिखावा कर रही है हरामजादी। इसकी बात पर मत जाओ कल्लू। भीतर ही भीतर चुदने के लिए मरी जा रही है और मुंह से शराफत झाड़ने से बाज नहीं आ रही है कुतिया। चोद मां की लौड़ी को।" घनश्याम मेरी बात सुनकर डपटते हुए बोला। कमीना सचमुच में मनोवैज्ञानिक था। मेरे भीतर की भावना को ताड़ लिया था इसलिए अपने उद्देश्य की असफलता पर तनिक खीझ रहा था और उसकी आवाज में तनिक रुखाई भी थी।
"हम तो तुम्हारे भले के लिए कल्लू को बुलाए थे। तुम्हारी मर्जी नहीं है तो हम मना कर देते हैं।" भलोटिया बोल उठा। उसकी बात सुनकर मैं सहम गई, कहीं सचमुच मुंह के पास आया हुआ यह लजीज व्यंजन मुझ भूखी के पास से हटा न लिया जाए। झट से बोली,
"मेरा भला किस चीज में है यह आपने खुद ही तय कर लिया और बिना मुझ से पूछे इस कल्लू चाचा को यहां बुला लिया, इसी बात से नाराज़ हूं मैं। इनको बुलाने के पीछे आपका उद्देश्य क्या है यह न इनसे छिपा है और न ही मुझसे तो अब इन्हें मना करने का क्या तुक है। आईए चाचाजी आप भी बहती गंगा में हाथ धो लीजिए।" मैं अपनी आवाज में थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए बोली। हालांकि मेरे कथन में कल्लू के लिए आमंत्रण स्पष्ट था। मैं ने भी अब खुला खेल फर्रूखाबादी खेलने का फैसला कर लिया था। जब चुदना ही है तो रोते कलपते चुदने का क्या फायदा। क्यों ना खुल कर चुदने का लुत्फ लिया जाए, रंडी तो बन ही चुकी हूं तो क्यों न अपनी रंडीपन भी दिखा ही दूं।
इससे पहले कि कल्लू मुझे चोदना शुरू करता, मैंने अपने अगल बगल दृष्टि घुमाई तो पाया कि भलोटिया और घनश्याम उसी तरह नंग धड़ंग अवस्था में मेरी चुदाई देखने को उत्सुक दिखाई दे रहे थे। भलोटिया तो अभी तक बिस्तर पर भैंस की तरह पसरा हुआ था लेकिन घनश्याम उठकर सोफे पर जाकर बैठ गया था। मैंने देखा कि घनश्याम के सिकुड़े लंड पर अब भी मेरी गुदा से निकला पीला मल लिथड़ा हुआ था जिसे धो कर साफ़ करने का भी उसे होश नहीं था, सूअर कहीं का। मुझे उसे देख कर घिन आ रही थी। मैं जानती थी कि मेरी गुदा से भी उसके वीर्य से लिथड़ा मल अभी भी रिस रिस कर बाहर निकल रहा था जिसके कारण मुझे भी खुद को धो पोंछ कर साफ होने की आवश्यकता थी लेकिन उस गंदगी से घृणा होने के बदले मुझ पर मेरी भड़कती चुदास हावी थी। मुझे अपनी गंदगी की इस वक्त रत्ती भर भी परवाह नहीं थी और न ही बिस्तर के गंदा होने की। भाड़ में जाए बिस्तर, जब भलोटिया और घनश्याम को उस गंदगी से कोई परहेज नहीं था तो मैं तो ठहरी चुदास की मारी लंडखोर (क्योंकि अब मैं सचमुच एक बड़ी ल़डखोर में तब्दील होती जा रही थी और इस वक्त तो जैसे रेगिस्तान में जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी, मैं क्यों परवाह करती)। हां थोड़ी भयभीत अवश्य हो रही थी कि यह कल्लू, जैसा कि वह शारीरिक रूप से दिखाई दे रहा था, पता नहीं कितनी जबरदस्त कुटाई करने वाला था। जानती थी कि उसके मन में क्या चल रहा है और मैं खुद भी चुदने के लिए मरी जा रही थी फिर भी अपने मुंह से बोल कर प्रकट नहीं करना चाहती थी। इससे मेरी छिनाल वाली छवि उजागर जो हो जाती। मैं उस परिस्थिति में भी अपना विरोध व्यक्त करते हुए बोली,
"नहीं नहीं, आपलोगों ने मुझे समझ क्या रखा है? मैं कोई बाजारू महिला हूं क्या कि कोई भी मेरे साथ कुछ भी कर ले?"
"साली रंडी की औलाद, तू तो बाजारू औरत से भी गयी गुजरी है। इतना कुकर्म करके भी शराफत का दिखावा कर रही है हरामजादी। इसकी बात पर मत जाओ कल्लू। भीतर ही भीतर चुदने के लिए मरी जा रही है और मुंह से शराफत झाड़ने से बाज नहीं आ रही है कुतिया। चोद मां की लौड़ी को।" घनश्याम मेरी बात सुनकर डपटते हुए बोला। कमीना सचमुच में मनोवैज्ञानिक था। मेरे भीतर की भावना को ताड़ लिया था इसलिए अपने उद्देश्य की असफलता पर तनिक खीझ रहा था और उसकी आवाज में तनिक रुखाई भी थी।
"हम तो तुम्हारे भले के लिए कल्लू को बुलाए थे। तुम्हारी मर्जी नहीं है तो हम मना कर देते हैं।" भलोटिया बोल उठा। उसकी बात सुनकर मैं सहम गई, कहीं सचमुच मुंह के पास आया हुआ यह लजीज व्यंजन मुझ भूखी के पास से हटा न लिया जाए। झट से बोली,
"मेरा भला किस चीज में है यह आपने खुद ही तय कर लिया और बिना मुझ से पूछे इस कल्लू चाचा को यहां बुला लिया, इसी बात से नाराज़ हूं मैं। इनको बुलाने के पीछे आपका उद्देश्य क्या है यह न इनसे छिपा है और न ही मुझसे तो अब इन्हें मना करने का क्या तुक है। आईए चाचाजी आप भी बहती गंगा में हाथ धो लीजिए।" मैं अपनी आवाज में थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए बोली। हालांकि मेरे कथन में कल्लू के लिए आमंत्रण स्पष्ट था। मैं ने भी अब खुला खेल फर्रूखाबादी खेलने का फैसला कर लिया था। जब चुदना ही है तो रोते कलपते चुदने का क्या फायदा। क्यों ना खुल कर चुदने का लुत्फ लिया जाए, रंडी तो बन ही चुकी हूं तो क्यों न अपनी रंडीपन भी दिखा ही दूं।