17-03-2025, 11:59 PM
(17-03-2025, 11:33 PM)deo.mukesh Wrote: भाग 5: यादों की आग और ढाबे की चिंगारी
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भाग 6: यादों का उफान और चुदाई की आग
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भाग 7: चुदाई का तूफान और यादों की बौछार
ढाबे की चारपाई अब चुदाई का अखाड़ा बन चुकी थी। रामू मम्मी की बुर में अपने मोटे लंड को ज़ोर-ज़ोर से पेल रहा था। हर धक्के के साथ मम्मी की चूचियाँ उछल रही थीं, और उनकी सिसकारियाँ—"आह्ह... रामू... और तेज़..."—हवा में गूँज रही थीं। संजू उनके मुँह को चोद रहा था, उसका लंड मम्मी के गले तक जा रहा था। मम्मी की आँखें आधी खुली थीं, और उनकी जीभ संजू के लंड को चाट रही थी। उनकी बुर से रस की धार बह रही थी, जो चारपाई को गीला कर रही थी।
रामू ने मम्मी की टाँगें अपने कंधों पर उठाईं और और गहराई से धक्के मारने लगा। "साली रंडी, तेरी चूत तो साला भट्ठी है," उसने हाँफते हुए कहा। "इसे चोदने में मज़ा आ रहा है।" संजू ने मम्मी के बाल पकड़कर अपना लंड और अंदर ठूँसा और बोला, "हाँ भैया, इस भोसड़ीवाली का मुँह भी गर्म है। साली चूसने में मस्त है।"
मम्मी अब पूरी तरह हवस में डूबी थीं। उनकी शर्म का नाटक खत्म हो चुका था। लेकिन जैसे ही रामू का लंड उनकी बुर के सबसे गहरे कोने को छूता, उनकी आँखें फिर बंद हो जातीं, और उनके दिमाग में एक और सेक्सी याद तैर जाती—शांति के साथ एक और गरम पल।
वो एक गर्मियों की दोपहर थी। पापा ऑफिस में थे, और मैं कहीं बाहर गया था। मम्मी और शांति घर में अकेली थीं। मम्मी उस दिन सिर्फ एक पतली साड़ी में थीं, बिना ब्लाउज़ के। गर्मी से परेशान होकर वो पंखे के नीचे लेटी थीं, और उनकी साड़ी उनकी जाँघों तक सरक गई थी। शांति पास बैठी थी, और उसकी नज़र मम्मी की चूचियों पर थी, जो साड़ी के नीचे से साफ़ दिख रही थीं।
"दीदी, आपकी दूध उबल रही है hehehehe," शांति ने नशीली आवाज़ में कहा था। "ये चूचियाँ तो साली किसी को पागल कर दें। कभी किसी ने इन्हें चूसा है क्या?" उसने मम्मी की साड़ी को हल्के से खींचा, और उनकी एक चूची बाहर आ गई।
मम्मी ने शरमाते हुए कहा था, "शांति, क्या करती है? कोई देख लेगा।" लेकिन उनकी साँसें तेज़ हो गई थीं।
शांति ने हँसते हुए जवाब दिया, "कोई नहीं देखेगा, दीदी। बस मैं हूँ यहाँ।" फिर उसने मम्मी की चूची को अपने मुँह में लिया और चूसना शुरू कर दिया। "आह्ह..." मम्मी की सिसकारी निकल पड़ी थी। शांति की जीभ उनकी चूची के निप्पल पर घूम रही थी, और उसका एक हाथ मम्मी की बुर की तरफ बढ़ गया था। "दीदी, तुम्हारी बुर भी गीली हो रही है," शांति ने कहा था। "कभी किसी मर्द ने इसे चाटा है?"
मम्मी ने हिचकिचाते हुए जवाब दिया था, "नहीं... बस एक बार वो रामलाल था, लेकिन वो पूरा नहीं कर पाया।" शांति ने मम्मी की साड़ी को पूरी तरह हटाया और उनकी बुर पर अपनी जीभ रख दी। "तो आज मैं चाटूँगी," उसने कहा और उनकी रसीली चूत को चूसने लगी। मम्मी की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं—"आह्ह... शांति... और..."—और उनका जिस्म तड़प रहा था। शांति ने हँसते हुए कहा था, "दीदी, तुम्हें लंड चाहिए। मेरी जीभ से काम नहीं चलेगा। किसी मर्द को ढूँढो, जो तुम्हारी बुर का भोसड़ा बना दे।"
अब ढाबे पर, रामू और संजू वही कर रहे थे जो शांति ने कहा था। रामू ने मम्मी को चारपाई पर उल्टा कर दिया और उनकी गांड को ऊपर उठाया। "साली, तेरी गांड तो साला मक्खन है," उसने कहा और अपना लंड उनकी बुर में फिर से घुसा दिया। मम्मी की चीख निकली—"आह्ह... धीरे..."—लेकिन उनकी गांड अब हवा में थी, और वो रामू के हर धक्के का जवाब अपनी कमर हिलाकर दे रही थीं।
संजू ने मम्मी का मुँह छोड़ दिया और उनकी चूचियों को मसलने लगा। "भैया, इस रंडी की चूचियाँ तो देखो," उसने फुसफुसाते हुए कहा। "साली की बुर के साथ-साथ इन्हें भी चोदना चाहिए।" रामू ने हँसते हुए जवाब दिया, "हाँ भाई, इस हरामज़ादी का पूरा जिस्म चुदाई के लिए बना है। इसकी गांड भी मारेंगे, रुक।"
मम्मी की यादों में शांति की जीभ और ढाबे पर रामू का लंड अब एक हो गए थे। उनकी सिसकारियाँ अब चीखों में बदल रही थीं—"आह्ह... चोदो मुझे... और तेज़..."—और उनकी बुर से रस की बौछार छूट रही थी। रामू ने उनकी गांड पर एक ज़ोरदार चपत मारी और बोला, "साली कुतिया, अब तेरी गांड की बारी है।" उसने अपना लंड उनकी बुर से निकाला और उनकी गांड के छेद पर रगड़ा।
मम्मी ने एक पल के लिए साँस रोकी। "नहीं... वहाँ नहीं..." उन्होंने कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में वो मज़बूरी नहीं थी। संजू ने उनकी चूचियों को चूसते हुए कहा, "चुप रह, भोसड़ीवाली। तेरी गांड भी चुदने के लिए बनी है।" रामू ने एक धक्का मारा, और उसका लंड मम्मी की गांड में घुस गया। "आह्ह्ह..." मम्मी की चीख ढाबे के सन्नाटे को चीर गई।
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी की शांति के साथ वो गरम दोपहर और ढाबे की ये चुदाई मेरे लिए एक सपना सच होने जैसा था। मेरा लंड मेरी पैंट में फटने को तैयार था, और मैं चाहता था कि ये तूफान और तेज़ हो।
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भाग 7: शर्म का टकराव, यादों की हवस, और मटकती कमर
ढाबे की चारपाई पर मम्मी की चुदाई अब चरम पर थी। रामू उनकी बुर को ज़ोर-ज़ोर से पेल रहा था, उसका मोटा लंड हर धक्के के साथ उनकी चूत के अंदर तक जा रहा था। मम्मी की सिसकारियाँ—"आह्ह... रामू... और तेज़..."—हवा में गूँज रही थीं। संजू उनकी चूचियों को मसल रहा था, और कभी-कभी उन्हें चूसते हुए उनकी निप्पल को दाँतों से हल्का सा काट रहा था। मम्मी का नंगा जिस्म चाँदनी में चमक रहा था, और उनकी बुर से रस की धार चारपाई को गीला कर रही थी।
रामू ने मम्मी को उल्टा किया और उनकी गांड को ऊपर उठाया। "साली, तेरी गांड तो मक्खन है," उसने कहा और अपना लंड उनकी बुर से निकालकर उनकी गांड के छेद पर रगड़ा। मम्मी की साँस एक पल के लिए रुक गई। "नहीं!" उन्होंने चीखते हुए कहा, और अपने जिस्म को पीछे खींच लिया। "गांड नहीं... ये दर्द मैं नहीं सह सकती।" उनकी आवाज़ में डर था, लेकिन साथ ही एक गुस्सा भी।
रामू ने हँसते हुए कहा, "अरे रंडी, तेरी गांड भी तो चुदने लायक है।" उसने फिर से कोशिश की, अपना लंड उनकी गांड पर दबाया। संजू ने मम्मी की कमर पकड़कर उन्हें रोकने की कोशिश की और बोला, "चुप रह, भोसड़ीवाली। तेरी गांड मारकर मज़ा लेंगे।" लेकिन मम्मी अब गंभीर हो गईं।
"सुनो," मम्मी ने हाँफते हुए कहा, "मैं कहीं भाग तो रही नहीं। मेरी बुर तुम्हें दे ही दी, उसे चोदो जितना चाहो। लेकिन गांड का दर्द मुझे बर्दाश्त नहीं।" उनकी आवाज़ में एक अजीब सा हक था। रामू और संजू एक-दूसरे को देखकर रुक गए। मम्मी का सहयोगी रवैया देखकर रामू ने अपना लंड वापस उनकी बुर की तरफ किया और बोला, "ठीक है, साली। तेरी चूत ही काफी है।" संजू ने भी उनकी चूचियों को छोड़ दिया और हँसते हुए कहा, "चल भैया, इस रंडी की बुर का भोसड़ा बनाते हैं।"
मम्मी ने राहत की साँस ली, लेकिन उनकी उत्तेजना कम नहीं हुई। जैसे ही रामू ने फिर से उनकी बुर में धक्के शुरू किए, उनकी आँखें बंद हो गईं, और उनके दिमाग में एक और सेक्सी याद तैर गई—इस बार उनकी पुरानी सहेली, कमला, के साथ। कमला गाँव की एक शादीशुदा औरत थी, जो मम्मी की जवानी के दिनों में उनकी दोस्त थी।
एक बार गाँव के मेले में, जब मम्मी और कमला अकेले घूम रही थीं, कमला ने मम्मी को एक सुनसान कोने में खींच लिया था। "देख, पदमा ," कमला ने हँसते हुए कहा था (मम्मी का नाम पदमा था), "तेरी कमर की लचक देखकर मर्द तो पागल हो जाते हैं। कभी किसी के साथ मज़े लिए हैं?" मम्मी ने शरमाते हुए कहा था, "नहीं, बस वो रामलाल था, लेकिन वो पूरा नहीं हुआ।"
कमला ने अपनी साड़ी का पल्लू हटाया और अपनी चूचियाँ दिखाते हुए कहा, "मेरे पति ने मुझे कल रात चोदा था। देख, मेरी चूचियाँ अभी भी लाल हैं।" फिर उसने मम्मी की साड़ी को ऊपर उठाया और उनकी जाँघों को सहलाते हुए कहा, "तेरी बुर को भी लंड चाहिए। चल, मेले में कोई जवान लड़का ढूँढते हैं।"
उस दिन दोनों ने एक ठेले वाले को छेड़ा था—मम्मी ने अपनी कमर मटकाकर उसे ललचाया, और कमला ने उससे गंदी बातें की थीं। वो लड़का उनकी तरफ लपका था, लेकिन मम्मी डर गई थीं और भाग आई थीं। बाद में कमला ने हँसते हुए कहा था, "पदमा , तू डरपोक है। तेरी बुर की आग को कोई मर्द ही बुझाएगा।"
अब ढाबे पर, रामू की धक्कों की रफ्तार बढ़ गई थी। मम्मी की सिसकारियाँ—"आह्ह... चोदो..."—और तेज़ हो रही थीं। तभी एक नया ड्राइवर, जो अब तक दूर चारपाई पर सो रहा था, उनकी चीखों से जाग गया। उसका नाम था बबलू—लंबा, गोरा, और जवान। वो उठकर पास आया और बोला, "ये क्या तमाशा है, भाइयो?" उसकी नज़र मम्मी के नंगे जिस्म पर पड़ी, और उसका लंड उसकी लुंगी में तन गया।
रामू ने हँसते हुए कहा, "आ जा बबलू, इस रंडी की चूत का मज़ा ले। साली मस्त माल है।" बबलू ने मम्मी को देखा और बोला, "सच में माल है। लेकिन पहले इसे नचाओ, देखें ये कितना गरम है।"
मम्मी ने ये सुना और एक पल के लिए रुक गईं। रामू ने अपना लंड उनकी बुर से निकाला, और संजू ने उन्हें उठाकर खड़ा कर दिया। "चल, भोसड़ीवाली, नाच दिखा," संजू ने कहा। मम्मी की साँसें अभी भी तेज़ थीं, लेकिन कमला की याद ने उनके अंदर एक शरारत जगा दी। वो उठीं, अपनी साड़ी को कमर तक बाँधा, और ढाबे की खुली जगह में नाचने लगीं।
उनकी कमर लचक रही थी, उनकी चूचियाँ हवा में उछल रही थीं, और उनकी जाँघें चाँदनी में चमक रही थीं। रामू, संजू, और बबलू तीनों उन्हें घूर रहे थे। "साली, क्या मटकती है!" बबलू ने कहा और अपनी लुंगी उतार दी। मम्मी का नाच अब और गरम हो गया—वो अपनी चूचियों को हिलातीं, अपनी गांड को मटकातीं, और ड्राइवरों को उकसातीं।
रामू ने फुसफुसाते हुए कहा, "देख भाई, ये रंडी तो साली नाचने में भी चुड़क्कड़ है। इसकी बुर को फिर से पेलना पड़ेगा।" बबलू ने हँसते हुए जवाब दिया, "हाँ, लेकिन पहले इसे और नचाओ। ये माल पूरा ढाबा गरम कर देगी।"
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी का सेक्सी नाच और उनकी कमला के साथ वो याद मेरी फैंटेसी को नई ऊँचाइयों पर ले जा रहे थे। रात अभी बाकी थी, और ये खेल और तेज़ होने वाला था।
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