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Fantasy ट्रक का सफर और मेरी रण्डी मम्मी की रसीली बूर
#7
(17-03-2025, 11:07 PM)deo.mukesh Wrote:
  • भाग 3: फुसफुसाहट की गरमी 
ढाबे का सन्नाटा अब और गहरा हो गया था। चाँदनी की हल्की रोशनी में मम्मी अपनी चारपाई पर लेटी थीं। उनकी साड़ी अभी भी ढीली थी, और पल्लू उनकी चूचियों को ढकने में नाकाम हो रहा था। उनकी साँसें तेज़ थीं, जैसे उनकी बुर की आग अब उन्हें सोने न दे रही हो। मैं अपनी चारपाई के पीछे छिपा हुआ था, मेरी नज़रें मम्मी और ड्राइवरों पर टिकी थीं। मेरा लंड मेरी पैंट में तड़प रहा था, लेकिन मैं चुप था—बस देखना और सुनना चाहता था।  
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भाग 4: गालियों की गूँज और बुर की आग

रामू और संजू ने मम्मी को चारपाई पर पटका, और फिर वो दोनों थोड़ा पीछे हटकर आपस में फुसफुसाने लगे। उनकी बातें इतनी धीमी थीं कि मम्मी को सुनने के लिए कान लगाने पड़ रहे थे, लेकिन हर शब्द उनकी बुर में आग लगा रहा था।  
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मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी की हालत और ड्राइवरों की गंदी बातें मुझे भी उत्तेजित कर रही थीं। मेरा लंड मेरी पैंट में फटने को तैयार था। अब अगला सीन चुदाई का होने वाला था, और मैं इंतज़ार कर रहा था कि मम्मी की शर्म आखिरकार हवस के आगे कब हार मानेगी।

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भाग 5: यादों की आग और ढाबे की चिंगारी

ढाबे की चारपाई पर मम्मी अब रामू और संजू के बीच फँसी हुई थीं। रामू उनकी चूचियों को ब्लाउज़ से आज़ाद करके मसल रहा था, और संजू उनकी कमर पकड़कर अपने तने हुए लंड को उनके मुँह के पास ले आया था। मम्मी की सिसकारियाँ—"आह्ह... छोड़ो..."—अब खुलकर निकल रही थीं, लेकिन उनका जिस्म उनकी बातों का साथ नहीं दे रहा था। उनकी साड़ी पूरी तरह खिसक चुकी थी, और उनकी गीली बुर चाँदनी में चमक रही थी। ड्राइवरों की गालियाँ—"रंडी... भोसड़ीवाली... चुड़क्कड़"—उनके कानों में गूँज रही थीं, और उनकी उत्तेजना चरम पर थी।  

लेकिन तभी, रामू की उंगलियाँ जब उनकी बुर को सहलाने लगीं, मम्मी की आँखें बंद हो गईं। उनकी साँसें और तेज़ हुईं, और उनके दिमाग में अचानक एक पुरानी याद तैर गई—उनकी सहेली, शांति, की याद। शांति हमारे घर में काम करने वाली बाई थी। उम्र में मम्मी से 5-6 साल छोटी, लेकिन जिस्म से उतनी ही गदराई। शांति और मम्मी का रिश्ता सिर्फ मालकिन और नौकरानी का नहीं था—वो एक-दूसरे की सबसे गहरी राज़दार थीं।  


एक दोपहर की बात थी, जब पापा ऑफिस गए थे और मैं कॉलेज में था। शांति घर में बर्तन धो रही थी, और मम्मी नहाकर बाहर आई थीं। सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में मम्मी की चूचियाँ गीली थीं, और शांति की नज़र उन पर ठहर गई थी। "दीदी, आप तो अभी भी जवान लगती हो," शांति ने हँसते हुए कहा था। "ये चूचियाँ देखो, कितनी टाइट हैं। आदमी सब  को पागल कर देंगी।"  


मम्मी ने शरमाते हुए जवाब दिया था, "चुप कर, शांति। मेरी जवानी का क्या फायदा? तेरे मालिक तो अब आंटी ही हो उनकी उमर कितनी हो गई है।
" लेकिन उनकी आँखों में एक चमक थी। शांति ने बर्तन छोड़कर मम्मी के पास आते हुए कहा, "तो क्या हुआ, दीदी? जवानी को मज़े लेने मे कौन स रोक टोंक है कहते हुए उसने आँख मारी। 
 
उस दिन शांति ने मम्मी की चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से दबाया था। "आह्ह..." मम्मी की सिसकारी निकल गई थी। फिर शांति ने अपना हाथ मम्मी के पेटीकोट में डाला और उनकी बुर को सहलाते हुए कहा, "दीदी, आपकी  चूत तो अभी भी रसीली है। इसे लंड चाहिए, या मेरी उंगलियाँ ही काफी हैं?" मम्मी ने शर्म से मुँह फेर लिया था, लेकिन उनकी सिसकारियाँ—"आह्ह... शांति... और..."—बता रही थीं कि उन्हें मज़ा आ रहा था। 
 
उसके बाद दोनों की बातचीत और गहरी हो गई थी। शांति मम्मी को अपने गाँव के मर्दों की कहानियाँ सुनाती थी—"एक बार एक लेडीज टेलर ने मुझे खेत में पटककर चोदा था, दीदी। उसका लंड इतना मोटा था कि मेरी चूत दो दिन तक दुखती रही।"—और मम्मी उसे अपनी जवानी के किस्से सुनाती थीं—"शादी से पहले एक लड़का मेरे पीछे पड़ा था। एक बार उसने मुझे बाग में पकड़कर मेरी चूचियाँ दबाई थीं। मुझे गुस्सा तो आया, पर मज़ा भी आया था।" 

 
ये यादें मम्मी के दिमाग में अब तूफान की तरह घूम रही थीं। रामू की उंगलियाँ उनकी बुर में अंदर-बाहर हो रही थीं, और संजू का लंड उनके होंठों को छू रहा था। मम्मी को शांति की बात याद आई—"दीदी, किसी मर्द का लंड ले लो। तुम्हारी बुर इसके लिए बनी है।"—और उनकी हवस अब बेकाबू हो गई। 


रामू ने फुसफुसाते हुए संजू से कहा, "देख भाई, इस रंडी की चूत तो साली भट्ठी की तरह गरम है। इस हरामज़ादी को चोदने में मज़ा आएगा।" संजू ने हँसते हुए जवाब दिया, "हाँ भैया, इस भोसड़ीवाली की गांड भी मस्त है। इसे पेलते वक्त इसकी चीखें सुनकर ढाबा गूँज उठेगा।" 

 
मम्मी ने ये गालियाँ सुनीं, और उनकी बुर से रस की धार छूट गई। शांति की उंगलियों की याद और ड्राइवरों की गंदी बातें उन्हें पागल कर रही थीं। बाहर से वो अभी भी कमज़ोर विरोध कर रही थीं—"नहीं... ये गलत है..."—लेकिन उनकी आँखें संजू के लंड को निहार रही थीं।
  
संजू ने मम्मी का मुँह पकड़ा और अपना लंड उनके होंठों पर रगड़ा। "चूस ले, रंडी," उसने कहा। "तेरी शराफत अब ढोंग बन गई है।" मम्मी ने एक पल हिचकिचाई, फिर उनकी जीभ बाहर निकली और उन्होंने संजू के लंड को चाटना शुरू कर दिया। "आह्ह..." संजू की सिसकारी निकली। 


रामू ने मम्मी की टाँगें फैलाईं और उनकी बुर पर अपनी जीभ रख दी। "साली, तेरी चूत का स्वाद तो मस्त है," उसने कहा और चाटने लगा। मम्मी की सिसकारियाँ अब खुलकर निकल रही थीं—"आह्ह... रामू... और..."—शांति की यादें और ढाबे की हवस अब एक हो गई थीं।

  
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी का शांति के साथ वो अंतरंग पल मेरे लिए नया था, लेकिन उनकी चुदाई का ये नज़ारा मेरी फैंटेसी को सच कर रहा था। मेरा लंड मेरी पैंट में फटने को तैयार था। ढाबे की रात अब और गरम होने वाली थी। 

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भाग 6: यादों का उफान और चुदाई की आग

ढाबे की चारपाई पर मम्मी अब पूरी तरह ड्राइवरों के हवाले थीं। संजू का मोटा लंड उनके मुँह में था, और वो उसे चूस रही थीं—धीरे-धीरे, फिर तेज़ी से। उनकी जीभ उसकी नसों पर फिसल रही थी, और संजू की सिसकारियाँ—"आह्ह... चूस साली..."—हवा में गूँज रही थीं। रामू नीचे था, मम्मी की टाँगें फैलाकर उनकी बुर को चाट रहा था। उसकी जीभ मम्मी की रसीली चूत में गहरे तक जा रही थी, और मम्मी की सिसकारियाँ—"आह्ह... रामू... और अंदर..."—अब बेकाबू हो रही थीं। उनकी साड़ी कहीं गायब हो चुकी थी, और उनका नंगा जिस्म चाँदनी में नहा रहा था। 

लेकिन जैसे ही रामू की जीभ उनकी बुर के और गहरे कोने को छूती, मम्मी की आँखें फिर से बंद हो जातीं। उनकी साँसें रुक जातीं, और उनके दिमाग में शांति की आवाज़ गूँजने लगती। वो दोपहर फिर से उनकी आँखों के सामने थी—जब शांति ने बर्तन छोड़कर मम्मी के साथ गरम बातें शुरू की थीं।  


"दीदी, सच बताओ," शांति ने एक दिन हँसते हुए पूछा था, जब मम्मी सिर्फ पेटीकोट में बैठी थीं। "शादी से पहले कोई लड़का था ना तुम्हारे पीछे? कोई ऐसा जो तुम्हें छू लेता था?" उसकी आँखों में शरारत थी। मम्मी ने पहले तो मुँह फेर लिया था, लेकिन शांति के बार-बार पूछने पर वो टूट गई थीं।  


"हाँ था," मम्मी ने धीरे से कहा था, उनकी आवाज़ में एक अजीब सी कशिश थी। "गाँव का एक लड़का था—रामलाल। मेरी उम्र का, लेकिन मुझसे कहीं ज़्यादा शैतान। एक बार मैं खेत में अकेली थी, पानी लेने गई थी। वो पीछे से आया और मुझे दबोच लिया।"  
शांति की आँखें चमक उठी थीं। "फिर क्या हुआ, दीदी? बताओ ना, पूरा!" उसने मम्मी की चूचियों को हल्के से दबाते हुए कहा। मम्मी की सिसकारी निकल गई थी—"आह्ह..."—और वो बोल पड़ी थीं। "उसने मुझे पकड़कर ज़मीन पर लिटा दिया। मेरी साड़ी ऊपर उठाई और मेरी चूचियों को दबाने लगा। उसकी उंगलियाँ मेरी नाभि तक गई थीं। मैं चिल्लाना चाहती थी, लेकिन मेरे मुँह से सिर्फ सिसकारियाँ निकलीं—‘रामलाल... छोड़ दे...’। पर वो नहीं रुका। उसने मेरी जाँघों को फैलाया और मेरी बुर को छू लिया।"  
शांति ने अपनी उंगलियाँ मम्मी की बुर पर फेरते हुए पूछा था, "फिर? उसने चोदा तुम्हें?" मम्मी ने शर्म से सिर झुका लिया था। "नहीं... वो पूरा नहीं कर पाया। गाँव के कुछ लोग पास आ गए, और वो भाग गया। लेकिन उसकी उंगलियों की गर्मी मुझे आज तक याद है।"  

शांति ने हँसते हुए कहा था, "दीदी, तुम तो सच्ची रंडी हो। उस दिन अगर लोग न आते, तो तुम खेत में चुद ही जातीं। तुम्हारी बुर को तो लंड की आदत डालनी चाहिए।" उसने मम्मी की बुर में अपनी उंगली डाल दी थी, और मम्मी की सिसकारियाँ—"आह्ह... शांति..."—कमरे में गूँज उठी थीं।  

अब ढाबे पर, रामू की जीभ और संजू का लंड मम्मी को वही गर्मी दे रहा था जो रामलाल की उंगलियों ने दी थी। उनकी यादें और वर्तमान एक हो गए थे। मम्मी ने संजू के लंड को मुँह से निकाला और हाँफते हुए बोलीं, "आह्ह... तुम लोग मुझे मार डालोगे..." लेकिन उनकी आँखों में शर्म की जगह अब सिर्फ हवस थी।  


रामू ने उनकी बुर से मुँह हटाया और फुसफुसाते हुए संजू से कहा, "देख भाई, इस रंडी का भोसड़ा तो साला पूरा गीला हो गया है। साली हरामज़ादी की चूत चाटने में मज़ा आ गया। अब इसे पेलने का वक्त है।"  


संजू ने मम्मी के बाल पकड़कर उनकी तरफ देखा और बोला, "हाँ भैया, इस भोसड़ीवाली का मुँह भी गर्म है। साली ने मेरा लंड चूस-चूसकर लाल कर दिया। अब इसकी गांड भी मारेंगे।" उनकी गालियाँ हवा में तैर रही थीं, और मम्मी हर शब्द को सुन रही थीं। उनकी बुर से रस की धार बह रही थी, लेकिन वो बाहर से अभी भी कमज़ोर विरोध कर रही थीं—"नहीं... ये ठीक नहीं..."  


रामू ने मम्मी की टाँगें और चौड़ी कीं और अपना लंड उनकी बुर पर रगड़ा। "ठीक नहीं है तो क्या, रंडी?" उसने कहा। "तेरी चूत तो साला लंड के लिए चिल्ला रही है।" उसने एक ज़ोरदार धक्का मारा, और उसका मोटा लंड मम्मी की बुर में पूरा घुस गया। "आह्ह्ह..." मम्मी की चीख निकल पड़ी, और उनकी आँखों में रामलाल की याद फिर कौंध गई।  


संजू ने मम्मी का मुँह फिर अपने लंड से भर दिया और बोला, "चूस साली, तेरी चीखें बाद में सुनेंगे।" मम्मी अब पूरी तरह उनकी गिरफ्त में थीं। रामू नीचे से उनकी बुर को पेल रहा था, और संजू ऊपर से उनके मुँह को चोद रहा था। उनकी सिसकारियाँ और ड्राइवरों की गालियाँ ढाबे के सन्नाटे को तोड़ रही थीं—"आह्ह... चोदो मुझे... साले हरामी..."  


मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी की शांति के साथ वो बातचीत और रामलाल की यादें मेरे लिए नई थीं, लेकिन उनकी चुदाई का ये नज़ारा मेरी ककोल्ड फैंटेसी को पूरा कर रहा था। मेरा लंड मेरी पैंट में फटने को तैयार था, और मैं चाहता था कि ये रात कभी खत्म न हो।

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RE: ट्रक का सफर और मेरी रण्डी मम्मी की रसीली बूर - by deo.mukesh - 17-03-2025, 11:33 PM



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