17-03-2025, 11:07 PM
(17-03-2025, 10:54 PM)deo.mukesh Wrote:ढाबे की हवा में ठंडक थी, लेकिन मम्मी के जिस्म से उठती गर्मी उस ठंड को चुनौती दे रही थी। उनकी साड़ी का पल्लू ज़मीन पर गिरा हुआ था, और उनकी नंगी कमर चाँदनी में चमक रही थी। वो रसोई की ओर मुड़ीं, लेकिन उनकी चाल में एक अजीब सी थिरकन थी
- भाग 2: खेल की शुरुआत
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मैं अपनी चारपाई के पीछे साँस रोककर ये सब सुन रहा था। मम्मी अपनी चारपाई पर लेट गईं, लेकिन उनकी साड़ी अभी भी ढीली थी। वो करवट लेकर सोने की कोशिश कर रही थीं, पर उनकी साँसों की गति बता रही थी कि उनकी बुर की आग अब बेकाबू हो रही थी। ड्राइवर अब प्लान बना रहे थे, और मैं चुपचाप इंतज़ार कर रहा था कि ये खेल आगे कैसे बढ़ेगा।
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- भाग 3: फुसफुसाहट की गरमी
रामू और संजू अपनी चारपाइयों पर बैठे थे, मम्मी से थोड़ी दूर। वो आपस में फुसफुसा रहे थे, और उनकी बातें हवा में तैरकर मेरे कानों तक पहुँच रही थीं। रामू ने अपनी लुंगी को ठीक करते हुए धीरे से कहा, "संजू, ये भाभी तो साली हरामी रंडी है। देख कैसे अपनी गांड मटकाकर हमें ललचा रही है।" उसकी आवाज़ में हवस थी, और वो मम्मी की तरफ घूर रहा था।
संजू ने हँसते हुए जवाब दिया, "हाँ भैया, ये चुड़क्कड़ माल है। साड़ी में लिपटी है, पर लगता है इसकी बुर नंगी होकर लंड माँग रही है। साली की चूचियाँ देख—कितनी मस्त हैं, दबाने को जी चाहता है।" उसने अपनी लुंगी के ऊपर से अपने लंड को सहलाया, और उसकी आँखें मम्मी की जाँघों पर टिक गईं।
मम्मी करवट लिए लेटी थीं, लेकिन मुझे यकीन था कि वो ये फुसफुसाहट सुन रही थीं। उनकी साँसें और तेज़ हो गई थीं, और उनकी उंगलियाँ साड़ी के किनारे को हल्के से दबा रही थीं। बाहर से वो शांत दिख रही थीं, पर उनकी बुर का रस उनकी जाँघों को गीला कर रहा था—ये मैं उनकी साड़ी के गीले धब्बे से समझ गया। वो ड्राइवरों की गालियों से उत्तेजित हो रही थीं, लेकिन अपनी शर्म को ढाल बनाए रख रही थीं।
रामू ने फिर फुसफुसाते हुए कहा, "संजू, इस रंडी की चूत में कितनी आग होगी, सोच। 8 महीने से बिना लंड के तड़प रही है। साली को चारपाई पर पटककर चोद दूँ, तो सारी शराफत निकल जाएगी।" उसकी बात सुनकर संजू की हँसी छूट गई। "हाँ भैया, इस मादरचोद को एक बार लंड मिल जाए, तो ढाबे पर चीख-चीखकर चुदवाएगी। देखो ना, कैसे अपनी साड़ी ढीली छोड़ रखी है—साली लंड की भूखी है।"
मम्मी ने करवट बदली। उनकी साड़ी अब उनकी जाँघों से और ऊपर सरक गई थी, और उनकी गोरी, मोटी जाँघें चाँदनी में चमक रही थीं। वो ड्राइवरों की गालियाँ सुन रही थीं, और उनकी उंगलियाँ अब साड़ी के नीचे अपनी बुर की तरफ बढ़ रही थीं। बाहर से वो सोने का नाटक कर रही थीं, लेकिन उनकी हरकत बता रही थी कि वो खुद को छूने से रोक नहीं पा रही थीं।
मैं ये सब देखकर पागल हो रहा था। मम्मी के लिए "रंडी", "चुड़क्कड़", "मादरचोद" जैसी गालियाँ मेरे अंदर की आग को और भड़का रही थीं। मेरे मन में उनकी चुदाई का ख्याल बार-बार आ रहा था, और मैं चाहता था कि ड्राइवर अब कुछ करें।
रामू उठा और मम्मी की चारपाई के पास आया। वो धीरे से बोला, "भाभी, नींद नहीं आ रही क्या?" उसकी आवाज़ में मक्कारी थी। मम्मी ने आँखें खोलीं और बनावटी गुस्से में कहा, "तुम लोग सोने क्यों नहीं देते? बार-बार परेशान कर रहे हो।" लेकिन उनकी आवाज़ काँप रही थी, और उनकी नज़र रामू के तने हुए लंड पर ठहर गई।
"अरे भाभी, हम तो मदद करना चाहते हैं," संजू ने पास आते हुए कहा। "रात ठंडी है, और तुम अकेली हो। हमारी चारपाई पर आ जाओ, गर्मी दे देंगे।" उसने अपनी लुंगी को हल्के से खिसकाया, और उसका लंड अब आधा बाहर झाँक रहा था। मम्मी ने एक पल उसे देखा, फिर नज़रें फेर लीं। "बेशर्म कहीं के," उन्होंने धीरे से कहा, लेकिन उनकी साड़ी को कसने की कोशिश में उनका हाथ काँप रहा था।
रामू ने हँसते हुए कहा, "भाभी, बेशर्मी तो तुम्हारी साड़ी कर रही है। देखो कैसे सरक रही है।" वो मम्मी के और करीब आया और उनकी चारपाई के किनारे पर बैठ गया। उसका हाथ मम्मी की जाँघ के पास हवा में रुक गया, जैसे वो इजाज़त का इंतज़ार कर रहा हो। मम्मी ने कुछ नहीं कहा, बस अपनी साँसों को काबू करने की कोशिश करती रहीं।
संजू ने फिर फुसफुसाकर रामू से कहा, "देख भैया, इस रंडी की बुर तो गीली हो रही है। साली अभी भी शरीफ बन रही है, पर अंदर से चुदने को तैयार है।" मम्मी ने ये सुना, और उनकी उंगलियाँ साड़ी के नीचे और सख्ती से दब गईं। उनकी बुर का रस अब साड़ी को भिगो रहा था, लेकिन वो बाहर से शांत बनी रहीं।
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। ड्राइवरों की गालियाँ और मम्मी की उत्तेजना मुझे पागल कर रही थी। रात अब और गहराने वाली थी, और ये खेल अभी शुरू ही हुआ था।
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भाग 4: गालियों की गूँज और बुर की आग
ढाबे की चारपाई पर मम्मी अब संजू की गोद में तड़प रही थीं। उनकी साड़ी खिसक चुकी थी, और रामू पीछे से उनकी चूचियों को दबा रहा था। लेकिन अभी खेल शुरू ही हुआ था। रामू और संजू ने मम्मी को चारपाई पर पटका, और फिर वो दोनों थोड़ा पीछे हटकर आपस में फुसफुसाने लगे। उनकी बातें इतनी धीमी थीं कि मम्मी को सुनने के लिए कान लगाने पड़ रहे थे, लेकिन हर शब्द उनकी बुर में आग लगा रहा था।
रामू ने संजू की तरफ देखकर होंठों पर जीभ फेरी और कहा, "देख भाई, ये साली रंडी कितनी मस्त माल है। इसकी बुर तो देख, साड़ी के नीचे से भी गीली चमक रही है। लगता है ये हरामज़ादी चुदने के लिए पैदा हुई है।"
संजू ने हँसते हुए जवाब दिया, "हाँ भैया, और इसकी गांड तो देखो, साली कुतिया की तरह गदराई हुई है। इसे पटककर चोदें तो सारा ढाबा इसकी चीखों से गूँज उठे। ये भोसड़ीवाली शरीफ बन रही है, लेकिन अंदर से पूरा भट्ठा जल रहा है।"
मम्मी चारपाई पर लेटी हुई थीं, उनकी साँसें तेज़ चल रही थीं। उन्होंने अपनी आँखें हल्की-सी खुली रखीं, जैसे सोने का नाटक कर रही हों, लेकिन ड्राइवरों की गालियाँ उनके कानों में शहद की तरह घुल रही थीं। "रंडी... हरामज़ादी... भोसड़ीवाली..."—ये शब्द उनके दिमाग में गूँज रहे थे। उनकी उंगलियाँ फिर से साड़ी के ऊपर से उनकी बुर की तरफ खिसकीं, और वो धीरे-धीरे उसे सहलाने लगीं। बाहर से वो शांत दिख रही थीं, लेकिन अंदर उनकी हवस जाग चुकी थी।
रामू ने फिर फुसफुसाते हुए कहा, "संजू, इस मादरचोद की चूचियाँ देख। साली की ब्लाउज़ में कैद दो पहाड़ हैं। इन्हें मसलकर लाल कर दूँगा। और इसकी नाभि में तो पूरा हाथ डालकर मज़े ले सकता हूँ।"
संजू ने अपनी लुंगी को ठीक करते हुए जवाब दिया, "भैया, मुझे तो इसकी बुर चाहिए। साली की चूत इतनी रसीली है कि चाटते-चाटते रात बीत जाए। ये रंडी बाहर से नखरे दिखा रही है, लेकिन इसके अंदर चुदाई की भूखी शेरनी छिपी है।"
मम्मी की सिसकारी अब दब नहीं रही थी। उनकी बुर गीली हो चुकी थी, और साड़ी का कपड़ा उनकी जाँघों से चिपक गया था। ड्राइवरों की गालियाँ सुनकर उनकी उत्तेजना चरम पर पहुँच रही थी। "मादरचोद... रंडी... भोसड़ीवाली..."—हर गाली उनके जिस्म में बिजली की तरह दौड़ रही थी। लेकिन वो अभी भी बाहर से सोने का नाटक कर रही थीं, जैसे कुछ सुन ही न रही हों।
रामू ने मम्मी की तरफ देखा और संजू से बोला, "चल भाई, इस कुतिया को अब और तड़पाने का क्या फायदा? इसके भोसड़े में आग लगी है, इसे ठंडा करना पड़ेगा।" वो मम्मी के पास आया और उनकी साड़ी को पूरी तरह खींचकर हटा दिया। मम्मी की नंगी जाँघें और गीली बुर अब उनके सामने थी।
संजू ने पास आकर मम्मी की चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से दबाया और बोला, "भाभी, अब नाटक बंद करो। तुम्हारी चूत की गर्मी हमें दिख रही है। साली रंडी, अब तेरे लिए दो लंड तैयार हैं।"
मम्मी ने आँखें खोलीं और बनावटी गुस्से से कहा, "ये क्या बदतमीजी है? मुझे छोड़ दो, मैं शरीफ औरत हूँ।" लेकिन उनकी आवाज़ में वो मज़बूरी नहीं थी जो पहले थी। उनकी नज़र संजू के तने हुए लंड पर अटक गई, और उनकी जीभ अनायास ही होंठों पर फिर गई।
रामू ने हँसते हुए कहा, "शरीफ औरत? साली, तेरी बुर का पानी बता रहा है कि तू कितनी शरीफ है। अब चुपचाप लंड ले, वरना ढाबे में सबको बुलाकर तेरी चुदाई का तमाशा बनवा देंगे।"
मम्मी का चेहरा शर्म से लाल हो गया, लेकिन उनकी बुर की खुजली अब बर्दाश्त से बाहर थी। वो चारपाई पर पीछे हटीं और बोलीं, "तुम लोग बहुत गंदे हो... मुझे अकेला छोड़ दो..." लेकिन उनकी आँखों में हवस साफ झलक रही थी।
संजू ने उनकी कमर पकड़कर अपनी ओर खींचा और बोला, "अब छोड़ने का टाइम गया, रंडी। तेरी बुर का भोसड़ा बनाने का वक्त आ गया है।" उसने अपनी लुंगी उतार दी, और उसका लंड मम्मी के मुँह के पास आ गया। रामू ने पीछे से मम्मी की चूचियों को ब्लाउज़ से आज़ाद कर दिया और उन्हें मसलने लगा।
मम्मी की सिसकारी अब खुलकर बाहर आ रही थी—"आह्ह... ना... छोड़ो..." लेकिन उनका जिस्म उनके शब्दों का साथ नहीं दे रहा था। ड्राइवरों की गालियाँ और उनकी हरकतें मम्मी को जन्नत की सैर करा रही थीं।
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी की हालत और ड्राइवरों की गंदी बातें मुझे भी उत्तेजित कर रही थीं। मेरा लंड मेरी पैंट में फटने को तैयार था। अब अगला सीन चुदाई का होने वाला था, और मैं इंतज़ार कर रहा था कि मम्मी की शर्म आखिरकार हवस के आगे कब हार मानेगी।
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