17-03-2025, 10:54 PM
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(17-03-2025, 10:39 PM)deo.mukesh Wrote:मम्मी 48 साल की थीं, लेकिन उनकी जवानी अभी भी किसी 30 साल की औरत को मात देती थी. उनकी जवानी अभी भी ऐसी थी कि राह चलते मर्दों की नज़रें उनकी गदराई कमर और भारी चूचियों पर ठहर जाया करती थीं। साड़ी में लिपटी उनकी काया किसी मादक सपने जैसी थी—पतली कमर पर कसी हुई साड़ी, गहरी नाभि जो कभी-कभी पल्लू के हटने से झलकती थी, और भारी चूचियाँ जो ब्लाउज़ में कैद होने को तैयार नहीं थीं।उनकी आँखों में एक अजीब सा नशा रहता था, जो शायद 8 महीने से बिना चुदाई के जल रही उनकी बुर की तपिश से आता था।
- "आग का पहला अंगारा
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मैं अंधेरे में छिपा हुआ ये सब देख रहा था। मम्मी की हर हरकत मेरे अंदर की आग को और भड़का रही थी। ड्राइवर अब उनके करीब आने की कोशिश कर रहे थे, और मम्मी भी धीरे-धीरे उनके जाल में फँस रही थीं।"
- भाग 2: खेल की शुरुआत
पहला ड्राइवर—काला और मज़बूत, जिसका नाम शायद रामू था—मम्मी के पीछे-पीछे रसोई की ओर बढ़ा।
दूसरा ड्राइवर—पतला लेकिन चुस्त, जिसे मैंने "संजू" कहते सुना—हँसते हुए बोला, "रामू भैया, भाभी को अकेले मत छोड़ो। रात लंबी है, हम भी तो मौज लें।" उसकी आवाज़ में मज़ाक था, लेकिन उसकी नज़रें मम्मी की गदराई गांड पर टिकी थीं।
मम्मी ने पलटकर दोनों को देखा। उनकी आँखों में बनावटी गुस्सा था, लेकिन होंठों पर एक हल्की मुस्कान भी थी। "तुम लोग भी ना, बड़े बेशर्म हो," उन्होंने कहा और झुककर अपना पल्लू उठाने लगीं। जानबूझकर वो इतना नीचे झुकीं कि उनकी साड़ी का ऊपरी हिस्सा ढीला हो गया, और उनकी भारी चूचियाँ ब्लाउज़ में से बाहर झाँकने लगीं। रामू की आँखें चमक उठीं। उसने अपनी लुंगी को थोड़ा और ढीला किया और करीब आते हुए बोला, "भाभी, बेशर्मी तो तुम भी कम नहीं कर रही हो। ये पल्लू बार-बार क्यों गिर रहा है?"
मम्मी ने पल्लू को कंधे पर डालते हुए कहा, "हवा का क्या करूँ? ये साड़ी भी पुरानी हो गई है, ढंग से रहती ही नहीं।" उनकी आवाज़ में एक नखरा था, जो ड्राइवरों को और उकसा रहा था।
संजू ने पास आकर कहा, "तो भाभी, नई साड़ी ले लो। हमारी कमाई का कुछ हिस्सा तुम्हारे काम आएगा।" वो हँसा, लेकिन उसकी नज़र मम्मी की नाभि पर टिक गई थी।
मम्मी ने एक गहरी साँस ली और रसोई की चौकी पर बैठ गईं। उनकी साड़ी उनकी जाँघों तक सरक गई थी, और उनकी गोरी, मोटी जाँघें चाँदनी में नहा रही थीं। "कमाई की बात मत करो," मम्मी ने धीरे से कहा, "मेरे पति की कमाई भी कम नहीं थी। सरकारी नौकरी में थे, अब रिटायर होने वाले हैं।"
(बोलते हुए मम्मी ने मन ही मन कहा - "पर क्या फायदा? जवानी का मज़ा तो लेना पड़ता है ना?")
रामू ने मौके का फायदा उठाया। वो मम्मी के पास चौकी पर बैठ गया और बोला, "तो भाभी, जवानी का मज़ा हमसे ले लो। हम ट्रक वाले भले ही गरीब हों, पर मजा देने में कोई कमी नहीं है।" उसने अपनी लुंगी को थोड़ा और खिसकाया, और उसका तना हुआ लंड अब साफ़ दिख रहा था। मम्मी की नज़र वहाँ गई, और उनकी साँसें एक पल के लिए रुक गईं। वो उठने की कोशिश करने लगीं, लेकिन संजू ने दूसरी तरफ से उनकी कमर को हल्के से पकड़ लिया।
"अरे भाभी, कहाँ भाग रही हो?" संजू ने नशीली आवाज़ में कहा। "रात अभी बाकी है। ढाबे पर अकेली औरत को ऐसे छोड़ना ठीक नहीं।" उसका हाथ मम्मी की कमर पर धीरे-धीरे रगड़ने लगा। मम्मी ने उसका हाथ हटाने की कोशिश की, लेकिन उनकी हरकत में मना करने की ताकत नहीं थी। "छोड़ो मुझे," मम्मी ने कहा, पर उनकी आवाज़ में एक अजीब सी कशिश थी।
मैं छिपे हुए ये सब देख रहा था। मम्मी की बैकस्टोरी मेरे दिमाग में कौंध रही थी। पापा से उनकी शादी तब हुई थी, जब मम्मी सिर्फ 23 की थीं और पापा 45 के। गाँव में लोग कहते थे कि मम्मी को पापा ने अपनी सरकारी नौकरी से खरीद लिया था। शुरू के सालों में मम्मी ने सब सह लिया, लेकिन जैसे-जैसे पापा की उम्र बढ़ी, उनकी मर्दानगी खत्म होती गई। मम्मी की बुर की आग कभी ठंडी नहीं हुई। एक बार गाँव के सरपंच ने मम्मी को अपने खेत में अकेले देखकर छेड़ने की कोशिश की थी। मम्मी ने उसे धक्का दे दिया था, लेकिन बाद में मम्मी को उनकी किसी सहेली से बात करते हुए सुन था की सरपंच की इस हरकत से उनकी बुर में एक अजीब सी गुदगुदी हुई थी।
अब ढाबे पर वो पल फिर आ गया था। रामू ने मम्मी के कंधे पर हाथ रखा और कहा, "भाभी, इतनी ठंड में अकेले कैसे सोओगी? हमारी चारपाई पर आ जाओ, गर्मी दे देंगे।" उसकी बात में गंदगी थी, लेकिन मम्मी ने सिर्फ मुस्कुराकर कहा, "तुम लोग बड़े शैतान हो। मुझे नींद आ रही है, सोने दो।" वो उठीं और अपनी चारपाई की ओर चल दीं, लेकिन जानबूझकर अपनी साड़ी को ज़मीन पर घसीटते हुए चलीं। उनकी गांड की थिरकन ड्राइवरों को पागल कर रही थी।
रामू और संजू एक-दूसरे को देखकर हँसे। "ये भाभी तो माल है," रामू ने धीरे से कहा। "दिखती शरीफ है, पर अंदर से रंडी है। इसे गरम करना पड़ेगा।" संजू ने जवाब दिया, "चिंता मत कर, भैया। रात अभी बाकी है। ढाबे का सन्नाटा हमारा साथ देगा।"
मैं अपनी चारपाई के पीछे साँस रोककर ये सब सुन रहा था। मम्मी अपनी चारपाई पर लेट गईं, लेकिन उनकी साड़ी अभी भी ढीली थी। वो करवट लेकर सोने की कोशिश कर रही थीं, पर उनकी साँसों की गति बता रही थी कि उनकी बुर की आग अब बेकाबू हो रही थी। ड्राइवर अब प्लान बना रहे थे, और मैं चुपचाप इंतज़ार कर रहा था कि ये खेल आगे कैसे बढ़ेगा।
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