
- आग का पहला अंगारा
मैं, उनका बेटा, उनकी इस हालत को देखकर अंदर ही अंदर तड़पता था। मेरे लिए मम्मी एक खुली किताब थीं—एक ऐसी औरत, जो अपनी जवानी को हर पल जीना चाहती थी। मेरी फैंटेसी थी कि मैं उन्हें किसी गैर मर्द के नीचे तड़पते हुए देखूँ, उनकी सिसकारियाँ सुनूँ, और उनकी बुर की आग को ठंडा होता देखूँ। शायद ये मेरी ककोल्ड सोच थी, पर ये सच था।
उस रात हम कही दूर के सफर में एक ढाबे पर रुके थे। ढाबे की हल्की रोशनी में चारपाइयों पर कुछ ड्राइवर सो रहे थे। उनकी लुंगियाँ नींद में इधर-उधर सरक गई थीं, और उनके मोटे-मोटे लंड आसमान की तरफ तनकर सलामी दे रहे थे। मैंने देखा कि मम्मी की नज़र बार-बार उन लंडों पर ठहर रही थी। उनकी साड़ी का पल्लू थोड़ा सा खिसक गया था, और उनकी भारी साँसों से उनकी चूचियाँ ऊपर-नीचे हो रही थीं।
"क्या हुआ मम्मी, तुम्हारी तबीयत ठीक तो है न ?" मैंने धीमी आवाज़ में पूछा, हालाँकि मुझे जवाब पहले से पता था।
"कुछ नहीं, बेटा," मम्मी ने कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में एक कंपन था। वो उठीं और ढाबे के किनारे की ओर चल दीं, जहाँ अंधेरा थोड़ा गहरा था। मैं चुपचाप उनके पीछे गया।
वहाँ एक काला, मज़बूत ड्राइवर चारपाई पर सो रहा था। उसकी लुंगी पूरी तरह हट चुकी थी, और उसका लंड—लगभग 8 इंच का—पत्थर की तरह खड़ा था। मम्मी ने एक पल उसे देखा, फिर अपनी साड़ी को थोड़ा ऊपर उठाया। उनकी मोटी, गोरी जाँघें चाँदनी में चमक रही थीं। उनकी बुर से रस टपक रहा था—मैंने देखा कि उनकी साड़ी का निचला हिस्सा गीला हो चुका था।
उनकी आँखें उस लंड पर टिकी थीं। "तेरी माँ की जवानी अब और बेकार नहीं जाएगी। 8 महीने से ये आग जल रही है... अब इसे बुझाना ही पड़ेगा।" ये मैंने अपने मन मे सोचा ।
मम्मी के इस खुले ढाबे ओर हरकत में एक बेशर्मी थी, जो मुझे और उत्तेजित कर रही थी।
मम्मी की बैकस्टोरी मेरे दिमाग में कौंध गई। पापा से उनकी शादी 25 साल पहले हुई थी। पापा सरकारी नौकरी मे थे और पापा की मम्मी से उम्र का फासला बहुत बड़ा था, पापा मम्मी से 22 साल उम्र मे बड़े थे। शुरू में सब ठीक था, पर पिछले कुछ सालों से पापा फिजिकली इनेक्टिव हो गए थे। हायाद ये उम्र का असर था, पापा 60 के करीब पहुँच गए थे और उछ ही महीने मे रिटाइर होने वाले थे नौकरी से, जबकि मम्मी की जवानी और चुदाई का खुमार तो अभी अपने उफान पर पहुंचा ही था। मम्मी की चुदाई की भूख कभी खत्म नहीं हुई थी। गाँव में लोग उन्हें "रसीली रानी" कहकर चिढ़ाते थे, क्योंकि उनकी जवानी और कामुकता छुपाए नहीं छुपती थी। एक बार गाँव के मेला में एक जवान लड़के ने मम्मी की कमर पर हाथ रख दिया था, और मम्मी ने उसे थप्पड़ मारने के बजाय बस मुस्कुरा दिया था। उस दिन से मेरे मन में ये ख्याल घर कर गया था कि मम्मी की बुर की प्यास आम मर्दों से नहीं बुझने वाली।
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मम्मी से 22 साल बड़े होने की वजह से उनकी शादी शुरू से ही एक समझौता थी। पापा का ध्यान हमेशा नौकरी और परिवार चलाने पर रहा, लेकिन मम्मी की जवानी की भूख को वो कभी समझ ही नहीं पाए। अब तो पापा की उम्र और कमज़ोरी ने उन्हें बिस्तर पर बेकार बना दिया था। मम्मी की तड़प मेरे लिए कोई राज़ नहीं थी। मैं, उनका 24 साल का बेटा, उनकी इस हालत को देखकर अंदर ही अंदर उत्तेजित होता था मुझे ये बहुत पसंद था की मेरी मम्मी अपनी जवानी को किसी गैर मर्द के साथ मज़े लेते हुए जीएँ, और मैं छिपकर वो सब देखूँ।
उस रात हम एक ढाबे पर रुके थे। पापा हमें यहाँ छोड़कर आगे चले गए थे—किसी काम के सिलसिले में। ढाबे की मद्धम रोशनी में कुछ ट्रक ड्राइवर चारपाइयों पर लेटे हुए थे। उनकी लुंगियाँ नींद में इधर-उधर खिसक गई थीं, और उनके तने हुए लंड हवा में सलामी दे रहे थे। मैं एक कोने में चारपाई पर लेटा हुआ था, लेकिन मेरी नज़र मम्मी पर थी। वो ढाबे की छोटी सी रसोई के पास खड़ी थीं, जहाँ से ड्राइवरों की चारपाइयाँ साफ दिख रही थीं। उनकी साड़ी का पल्लू हल्का सा सरक गया था, और उनकी साँसें तेज़ चल रही थीं।
मम्मी ने अपनी साड़ी को थोड़ा कसकर बाँधा और रसोई के पास बने पानी के मटके की ओर बढ़ीं। उनकी चाल में एक अजीब सी लचक थी, जो शायद उनकी बुर की तड़प से आ रही थी। मैंने देखा कि एक ड्राइवर—काला, मज़बूत, और भारी भरकम—उनकी तरफ घूर रहा था। उसकी आँखों में हवस साफ झलक रही थी। वो अपनी चारपाई से उठा और मम्मी के पास आया।
"पानी चाहिए, भाभी?" उसने भारी आवाज़ में पूछा, और अपने हाथ से मटके का ढक्कन हटाया।
"हाँ... गला सूख रहा है," मम्मी ने धीमी, नशीली आवाज़ में कहा। उनकी नज़रें उस ड्राइवर के चौड़े सीने पर टिक गईं। वो जानबूझकर धीरे-धीरे पानी पीने लगीं, और पानी का एक छींटा उनके होंठों से होते हुए उनकी साड़ी पर गिरा, जो उनकी चूचियों के उभार को और नुमायाँ कर गया।
"अकेली हो क्या यहाँ?" ड्राइवर ने थोड़ा करीब आते हुए पूछा। उसकी नज़र अब मम्मी की साड़ी के गीले हिस्से पर थी।
"हाँ... पति तो काम पर गए हैं," मम्मी ने जवाब दिया, और अपनी साड़ी का पल्लू थोड़ा और ढीला छोड़ दिया। उनकी बातों में एक छुपी हुई न्योता था। मैं छिपकर ये सब देख रहा था—मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
ड्राइवर ने एक गंदी मुस्कान दी और कहा, "रात बड़ी ठंडी है, भाभी। चारपाई पर अकेले नींद नहीं आएगी।"
"तो क्या करूँ?" मम्मी ने आँखें झुकाते हुए पूछा, लेकिन उनकी आवाज़ में एक मोहक पुकार थी। वो जानती थीं कि वो क्या चाहती हैं, पर औरत की शर्म अभी भी उन्हें पूरी तरह खुलने से रोक रही थी।
तभी दूसरा ड्राइवर, जो पास ही लेटा था, उठकर आया। वो थोड़ा पतला, लेकिन चुस्त-दुरुस्त था। "अरे भैया, भाभी को परेशान मत करो," उसने मज़ाक में कहा, पर उसकी नज़र भी मम्मी की कमर पर टिक गई। "हम सब यहाँ हैं ना, भाभी की रात को ठंडी नहीं होने देंगे।"
मम्मी ने हल्के से मुस्कुराया और कहा, "तुम लोग तो बड़े मददगार हो। पर मैं अकेली औरत हूँ, ढाबे पर ऐसे कैसे भरोसा करूँ?" उनकी बातों में नखरा था, जो ड्राइवरों को और उकसा रहा था।
"अरे भाभी, हमारा भरोसा देख लो," पहले ड्राइवर ने अपनी लुंगी को थोड़ा ढीला करते हुए कहा। उसका तना हुआ लंड अब साफ़ दिख रहा था। मम्मी की नज़र वहाँ गई, और उनकी साँसें एक पल के लिए रुक गईं। वो पीछे हटीं, लेकिन उनकी आँखों में शर्म के साथ-साथ हवस भी थी।
"ये क्या बेशर्मी है?" मम्मी ने बनावटी गुस्से में कहा, पर उनकी आवाज़ काँप रही थी। वो रसोई की ओर मुड़ीं, लेकिन जानबूझकर अपनी साड़ी का पल्लू ज़मीन पर गिरने दिया। उनकी नंगी कमर और गहरी नाभि अब ड्राइवरों के सामने थी। दोनों ड्राइवर एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए—उन्हें मौका मिल गया था।
मैं अंधेरे में छिपा हुआ ये सब देख रहा था। मम्मी की हर हरकत मेरे अंदर की आग को और भड़का रही थी। ड्राइवर अब उनके करीब आने की कोशिश कर रहे थे, और मम्मी भी धीरे-धीरे उनके जाल में फँस रही थीं।