17-03-2025, 11:28 AM
"बिटिया तू बड़ी मस्त चीज है। तूने तो हमारा दिल खुश कर दिया, लेकिन मुझे लगता है तुम्हारा हुआ नहीं है। दुखी मत हो, हम बूढ़ों को खुश करके जो पुण्य तुमने कमाया है, उसका भरपूर पुरस्कार अवश्य देना चाहूंगा। अरे घंशू, जरा कल्लू को फोन करके बुला ले, हमारी बिटिया को उसके इस पुण्य कार्य का पुरस्कार तो बनता ही है।" भलोटिया अपनी सांसों पर काबू पाकर घनश्याम को संबोधित करते हुए बोला। मेरा दिल उछल कर मानो हलक तक आ पहुंचा। हे भगवान! इन दोनों के बाद अब वह कल्लू मुस्टंडा। इस वक्त मेरे अंदर जो कामुकता की ज्वाला भड़क रही थी, ऐसी हालत में चर्मोत्कर्ष तक पहुंचने से पहले ही इन बूढ़ों का समर्पण कर देना मेरे लिए सचमुच असहनीय था और मैं भीतर ही भीतर पगलाई जा रही थी फिर भी इन दोनों के निपटने के बाद अब मुझे चोदने के लिए उस हब्शी दैत्य को बुलाने की बात सुनकर मुझे ऐसा लगने लगा जैसे सचमुच मैं रंडी कुतिया बना दी गई हूं। यह सच ही तो था। लेकिन चुदास की मारी मुझे इस घटिया, घृणित लगने वाली भूमिका को भी निभाने में इस वक्त कोई ऐतराज नहीं था। मुझे तो बस कैसे भी करके अपने तन में लगी आग बुझाने से मतलब था, वरना मैं पागल ही हो जाती। बड़े अनमने ढंग से और अनिच्छा से घनश्याम को कल्लू को बुलाने के लिए बाध्य होना पड़ा। उधर कल्लू को तो शायद ऐसी परिस्थितियों से अक्सर ही पाला पड़ता था। घनश्याम के मुंह से भलोटिया का संदेश मिलने के मिनट भर के अंदर किसी भूत की तरह कल्लू प्रकट हो गया और आते ही उसे यहां की परिस्थिति को समझते देर नहीं लगी। ऐसी परिस्थितियों से शायद वह पूरी तरह परिचित था और शायद उसे अच्छी तरह से पता था कि ऐसे समय में उसकी भूमिका क्या होती है लेकिन मुझ जैसी कमसिन लड़की को देख कर शायद वह थोड़ा झिझक कर ठिठक गया था। मुझे घनश्याम के साथ आते हुए देखा तो था लेकिन उसे लगा था होगा कि मुझे घनश्याम जबरदस्ती ले कर आया था और अबतक मेरी दुर्गति हो चुकी होगी।
"अरे कल्लू, तुझे क्या सांप सूंघ गया है? ऐसे क्या देख रहा है, इससे पहले ऐसी लौंडिया नहीं देखी है क्या?" भलोटिया उसकी स्थिति देखकर बोला।
"नहीं साहब जी, ऐसी बात नहीं है।" कल्लू जैसे नींद से जागकर हड़बड़ा गया था।
"तो फिर सोच क्या रहा है? अब तुझे निमंत्रण पत्र देना होगा मां के लौड़ू?" भलोटिया झल्ला कर बोला।
"इतनी कम उम्र की लड़की...." बोलते बोलते कल्लू रुका। उसकी आवाज में झिझक थी। यहां आया तो अवश्य था लेकिन वह सोचा था होगा कि मेरी दुर्गति हो चुकी होगी।
"साला चूतिया, इसकी उम्र दिखाई दे रही है तुझे? यह दिखाई नहीं दे रहा है कि हम बूढ़ों को जन्नत की सैर करा कर अब और लंड खाने के लिए मरी रही है?" भलोटिया उसे एक तरह से डांटते हुए बोला। डांट खाने वाला काम किया ही था। सबकुछ तो साफ साफ दिखाई दे रहा था कि दो दो बुड्ढे मुझे चोद कर निपट गये थे और नंग धड़ंग अवस्था में बिस्तर पर पसर कर भैंसों की तरह हांफ रहे थे। मैं सफलतापूर्वक उनके लंडों को निचोड़ कर भीगे चूहों की शक्ल में तब्दील कर चुकी थी। भलोटिया गलत नहीं बोल रहा था। उसकी बात और वहां की स्थिति से साफ हो गया था कि उसकी झिझक बेमानी थी। मेरा चेहरा भी बता रहा था कि मैं इस वक्त सचमुच चुदने को बेकरार हूं। पल भर भी नहीं लगा और उसके पैंट का अगला हिस्सा फूल गया था।
"अगर यह मरी जा रही है तो मैं किस मर्ज की दवा हूं। अभी लीजिए।" कहकर वह आनन फानन अपने कपड़ों से मुक्त होने की जद्दोजहद में लग गया। मैं क्या नहीं जानती थी कि जब मैं घनश्याम के साथ अंदर आ रही थी तो मुझे देख कर उसके मन में क्या भावना उत्पन्न हुई होगी? भलोटिया किस तरह का आदमी है वह क्या उससे छिपा हुआ था? भलोटिया के यहां ऐसे स्थानों में जिन महिलाओं को लाया जाता होगा, उनके साथ क्या होता होगा, उसके अंगरक्षक होने के कारण अच्छी तरह से पता होगा। अब मुझ जैसी कमसिन कन्या को घनश्याम के साथ आते हुए देखकर वह तो चकित ही रह गया होगा कि साला बुढ़ऊ की किस्मत में ऐसी लौंडिया कैसे लिखी गई है। मुझे वहां लाए जाने का उद्देश्य से भलि भांति परिचित था। वह तो भगवान से मना रहा था होगा कि काश इन बूढ़ों से मैं सही सलामत निपट जाऊं। उसके बाद तो उनकी जूठन में मुंह मारने का अवसर मिलना तय था। शायद यही उसकी भूमिका भी रहती थी, और देखो, जैसे बिल्ली के भाग से छींका टूटा। मैं एक सुंदर कमसिन कन्या उसके सामने उसकी मनोकामना पूर्ण करने हेतु प्रस्तुत थी। कल्लू के काले चेहरे पर प्रसन्नता के भाव को स्पष्ट देख रही थी।
"अरे कल्लू, तुझे क्या सांप सूंघ गया है? ऐसे क्या देख रहा है, इससे पहले ऐसी लौंडिया नहीं देखी है क्या?" भलोटिया उसकी स्थिति देखकर बोला।
"नहीं साहब जी, ऐसी बात नहीं है।" कल्लू जैसे नींद से जागकर हड़बड़ा गया था।
"तो फिर सोच क्या रहा है? अब तुझे निमंत्रण पत्र देना होगा मां के लौड़ू?" भलोटिया झल्ला कर बोला।
"इतनी कम उम्र की लड़की...." बोलते बोलते कल्लू रुका। उसकी आवाज में झिझक थी। यहां आया तो अवश्य था लेकिन वह सोचा था होगा कि मेरी दुर्गति हो चुकी होगी।
"साला चूतिया, इसकी उम्र दिखाई दे रही है तुझे? यह दिखाई नहीं दे रहा है कि हम बूढ़ों को जन्नत की सैर करा कर अब और लंड खाने के लिए मरी रही है?" भलोटिया उसे एक तरह से डांटते हुए बोला। डांट खाने वाला काम किया ही था। सबकुछ तो साफ साफ दिखाई दे रहा था कि दो दो बुड्ढे मुझे चोद कर निपट गये थे और नंग धड़ंग अवस्था में बिस्तर पर पसर कर भैंसों की तरह हांफ रहे थे। मैं सफलतापूर्वक उनके लंडों को निचोड़ कर भीगे चूहों की शक्ल में तब्दील कर चुकी थी। भलोटिया गलत नहीं बोल रहा था। उसकी बात और वहां की स्थिति से साफ हो गया था कि उसकी झिझक बेमानी थी। मेरा चेहरा भी बता रहा था कि मैं इस वक्त सचमुच चुदने को बेकरार हूं। पल भर भी नहीं लगा और उसके पैंट का अगला हिस्सा फूल गया था।
"अगर यह मरी जा रही है तो मैं किस मर्ज की दवा हूं। अभी लीजिए।" कहकर वह आनन फानन अपने कपड़ों से मुक्त होने की जद्दोजहद में लग गया। मैं क्या नहीं जानती थी कि जब मैं घनश्याम के साथ अंदर आ रही थी तो मुझे देख कर उसके मन में क्या भावना उत्पन्न हुई होगी? भलोटिया किस तरह का आदमी है वह क्या उससे छिपा हुआ था? भलोटिया के यहां ऐसे स्थानों में जिन महिलाओं को लाया जाता होगा, उनके साथ क्या होता होगा, उसके अंगरक्षक होने के कारण अच्छी तरह से पता होगा। अब मुझ जैसी कमसिन कन्या को घनश्याम के साथ आते हुए देखकर वह तो चकित ही रह गया होगा कि साला बुढ़ऊ की किस्मत में ऐसी लौंडिया कैसे लिखी गई है। मुझे वहां लाए जाने का उद्देश्य से भलि भांति परिचित था। वह तो भगवान से मना रहा था होगा कि काश इन बूढ़ों से मैं सही सलामत निपट जाऊं। उसके बाद तो उनकी जूठन में मुंह मारने का अवसर मिलना तय था। शायद यही उसकी भूमिका भी रहती थी, और देखो, जैसे बिल्ली के भाग से छींका टूटा। मैं एक सुंदर कमसिन कन्या उसके सामने उसकी मनोकामना पूर्ण करने हेतु प्रस्तुत थी। कल्लू के काले चेहरे पर प्रसन्नता के भाव को स्पष्ट देख रही थी।