15-03-2025, 02:00 PM
UPDATE 5.2
असुरा मेरी और चला आया. पारो आंटी भी मां के पीछे कमरे में चली गई थी. बैठक के तुरंत बाद प्रताप दादा ध्यान लगा कर बैठे थे. अब आंगन में , मैं और असुरा दोनों खड़े थे. " अबे कुत्ते...! चल मेडिकल शॉप में जा, और इस दवाई को लेकर आ " असुर ने एक दवाई की पर्ची अपने जेब से निकाल कर मुझे देते हुए कहा. मैंने पर्ची अपने हाथ में ली और उसकी और देखा. असुर ने अपनी जेब से एक पैसों का बंडल निकाला .. " हे स्वामी जी... यह तो वही बंडल था जो कल पोस्टमैन अंकल दरवाजे पर जो दुकानों का किराया रख कर गए थे.."
मुझे समझने में देर नहीं लगी कि प्रताप दादा ने तिजोरी की चाबी खोलकर उस तिजोरी को अपने कब्जे में ले लिया था. अब सब कुछ प्रताप दादा , पारो आंटी और असुरा की हाथ पड़ चुका था. मां सच में उनकी दासी और मैं कुत्ता बन चुका था.
असुरा ने ऊस बंडल मे से 5000 रुपये निकाल कर मेरे हाथ में रख दिये. मैने उस पर्ची मे देखा की मुझे लाना क्या था. पर्ची में क्या लिखा था यह तो मुझे पता नहीं चला... पर यह तय था कि मुझे मेडिकल से कोई ट्यूब लाना था. मैंने उस पर्ची को अपनी जेब में रखा और जाने के लिए पलटा तभी... पारो आंटी भी अपने हाथ में कोई पर्ची लेकर मेरी और आते हुए मुझे दिखाई दी. उन्होंने मुझे आवाज दी " नमन... चल जा और इसमें जो तेरी मां के लिए सामान लिखा है वह मेडिकल शॉप से ले आ " मैंने उनसे वह पर्ची ले ली और उसे पढ़ा. उसे पर भी जो लिखा था वह मुझे समझ में नहीं आया. उन्होंने मुझे फिर से पूछा " पैसे हैं तेरे पास..? या मैं दूं? " इतने में पीछे से असुरा ने जवाब दिया " हां मैंने दिए हैं इसे पैसे. वह ले आएगा " ऐसा सुनते ही पारो आंटी वहां से चली गई. " चल जल्दी जा और जल्दी से आ " असुर ने मुझे फटकार लगाई. मैं तुरंत वहां से गेट खोल कर बाहर चला आया.
हमारे घर से बड़ा वाला मेडिकल शॉप काफी दूर बाजार में था. और वो मेडिकल शॉप वाला हमें अच्छी तरह पहचानता था, इसीलिए मैंने सोचा कि शायद पिछली वाली गली में जो छोटा सा हकीम वाला मेडिकल शॉप है वहां से यह सामान लाना ही सही रहेगा. मैं जल्दी-जल्दी पीछे वाली गली में गया. यह गली वैसे ही काफी सुनसान रहती थी और आज तो इस गली में कोई भी नहीं दिख रहा था. मैं जल्दी-जल्दी उस हकीम वाले मेडिकल शॉप पर गया. यह मेडिकल शॉप हमीद चाचा का था जो उम्र में काफी बूढ़े थे, पर शायद आज वह दुकान पर नहीं थे लेकिन उनका पोता असलम जो की 19 साल का था वह शॉप पर था. असलम पहले हमारी कॉलेज में पढ़ता था , इसलिए मैं उसे जानता था पर उसका चाल चलन कुछ ठीक नहीं था इसीलिए मेरी उससे कभी कोई बातचीत नहीं थी. उसने मुझे देखा और वह खड़ा हो गया. मैंने उसके हाथ में वो दोनों पर्चियां थमा दी. असलम ने वह दोनों पर्चियां पढ़ी और मेरी और गौर माथे पर शिंकज लाकर से देखने लगा. देखते देखते उसके चेहरे पर से भाव बदले और वो एक कमिनी से मुस्कान अपने चेहरे पर ले आया.
" तेरी उम्र क्या है..? और यह किसके लिए ले जा रहा है..? "
मैंने उसकी बात सुनी पर उसका कोई जवाब नहीं दिया. " तेरा शुक्रा दादा कल ऑफ हो गया ऐसी बातें चल रही है हर जगह.. और आज तू यहां यह लेने आया है साले..? माजरा क्या है बे..? " असलम ने मुझे डराते हुए पूछा.
मैं खुद उसे क्या बताता... मुझे तो खुद ही नहीं पता था कि इन दोनों पर्चियां में क्या लिखा है. " मुझे यह पर्चियां किसी ने दी है.. इन पर जो समान लिखा है वह जल्दी से दे दो... और वैसे.. इन दोनों पर्चियां में जो सामान लिखा है वह है क्या... जो तुम मुझे इतना डरा रहे हो? " मैंने हिम्मत करके असलम से पूछा
मुझे इन दो पर्चियां में जो लिखा है वह क्या समान है, यह बात पता नहीं है यह सुनकर असलम को भी यकीन हो गया कि ये सामान मेरे लिए तो नहीं है. उसने मुझे सिर्फ एक ही सवाल पूछा " मैं तुझे सब बताता हूं.. पर...पहले ये बता, तुझे किसने यह सामान लाने को कहा है ? "
मैं असुरा या पारो आंटी का नाम तो नहीं बता सकता था... इसीलिए मैंने मां का नाम ले लिया .. " मेरी मां... पूनम ने "
" साले तेरे दादाजी के मरते ही तेरी मां तो दूसरे ही दिन पूरी फॉर्म में आ गईं हैं लगता हैं. रंडी ने अपनी इतने साल की चूत की गर्मी मिटाने के लिए, लगता है कोई खिलाड़ी ढूंढ लिया हैं. " असलम ने कुछ सामान शेल्फ में ढूंढते हुए हस..हस कर कहा. मेरी मां के बारे मैं असलम का ऐसे बोलना मुझे अच्छा नहीं लगा. मैं काफी बुरा महसूस कर रहा था, पर कल से मैंने जो कुछ भी देखा सुना था... उसके बाद मुझे अब इन नई-नई चीजों की आदत पढ़ने लगी थी. मैं मेरी गर्दन शर्म से नीचे किए सब कुछ सुन रहा था... तभी असलम ने एक ट्यूब, एक पाऊच, और एक गोलियों की स्ट्रिप काउंटर पर रख दी.
" यह देख.. ये सब तेरी मां ने आज रात के अपने प्रोग्राम के लिये मंगवाया है...साली ये तो पक्की रांड हैं जो इतनी तयारी कर रही है... उसने तो अपनी चूत का भोसडा बनाने का पुरा प्लॅन बनाया हैं..." असलम हर एक चीज का रेट चेक करते है मुझसे कहने लगा. मेरा दिमाग पुरी तरह सुन्न हो चुका था. क्या सामान था ये..? और इससे मां की चूत का क्या वास्ता था ? मैं सोच ही रहा था तभी असलम ने आगे कहा.
" यह ट्यूब 2000 हजार रुपए का है... इसका थोड़ा सा इस्तेमाल अपने लंड पर करने से, लंड बिल्कुल पत्थर के माफिक सख्त हो जाता हैं. अगर यह ट्यूब लगाने वाले मर्द का लंड लंबा चौड़ा हुआ तो उसका लंड बिल्कुल भी डंडे की तरह बन जाएगा... और उसके बाद चूत को तहस नहस कर डाले गा "
असुरा के लंड का विक्राल साइज... और ऊपर से यह ट्यूब वाली दवाई... " हे स्वामीजी... कही कुछ अनर्थ ना हो जाएं..! " मेरा गला सुख रहा था तभी असलम फिर से बोल पड़ा.
" यह क्रीम का पाउच 1000 हजार रूपये का है. यह चूत पर और उसके आजू बाजू लगाने से चूत बिल्कुल मक्खन जैसी स्मूथ बनेगी. अगर लगाने वाली औरत गोरी चींटी हो तो उसकी चूत बिल्कुल फूल कर और भी निखरेगी , और उसके बाद जो गुलाबी कलर की चूत का रंग, बिलकुल मिल्किबार बिस्कुट के अंदर जो स्ट्रौबरी क्रीम होती है वैसा लगेगा. और यह गोलियां ₹500 की है... इन गोलियों की खासियत यह है कि इस स्ट्रिप में से एक गोली कोई औरत लेगी तो वो एक बदचलन औरत की तरह लंड की भूखी बन जाएगी, दो गोलियां लेगी तो लंड के लिए पागल बन जाएगी और भूखी कुतियां की तरह चूदाई के लिए मर मिट जाएगी. इसके सेवन से औरत के अंदर का डोपामिन एक एक मिनट के लिए बढ़ेगा और उसे लंड का भूखा प्यासा बना देगा "
यह सब मेरे लिए किसी काल्पनिक विश्व की कहानी के तरह था. ऐसा कुछ हो सकता है यह कोई इंसान सपने में भी नहीं सोच सकता था. लेकिन कुदरत और मेडिकल साइंस ने मेरी जिंदगी में , दो ही दिनों में कुछ ज्यादा ही तरक्की कर दी थी. मैंने अपनी जेब से पैसे निकाल कर गिने ओर असलम को दे दिए. उसने एक पैकेट में सब कुछ पैक किया और मेरे हाथ में सारा सामान थमा दिया. मैं पैकेट लेकर घर जाने के लिए निकला तभी असलम ने फिर से मुझे आवाज दी.
" तेरी मां के लिए यह हाय डोस पेन्किलर ले जा... साली रंडी आज रात ऐसे चुदेगी कि कल सुबह चल भी नहीं पाएगी.. तब उसे यह दे देना.. "
मैंने बिना सोचे समझे उसके हाथ से वह गोली ले ली और उसे गोली के पैसे देने के लिए अपने जेब में हाथ डाला, तभी असलम ने मुझे रोका.
" पैसे रहने दे.. कभी तेरी मां का दीदार हमें भी करा देना.. दूर से ही सही पर हम अपनी आंखे तो सेक लेंगे "
मैं उसे बिना कुछ कहे घर को जाने के लिए वापस निकल गया. पीछे असलम मुझे देखे जा रहा था... शायद उसके भी अरमान जग चुके थे.
दोपहर के 3 बज चुके थे. मैने कुछ खाया भी नहीं था. घर पर सभी अपने अपने काम में व्यस्त दिखाई दे रहे थे...पर मां... वो कहा थी....?
घर पर आगे क्या होने वाला था?
यह सब मेडिकल वाला सामान मां के लिए क्या तबाही लाने वाला था?
असुरा और पारो आंटी की क्या मिलीभगत वाली कारस्थानी थी?
जानिए अगले भाग में...
असुरा मेरी और चला आया. पारो आंटी भी मां के पीछे कमरे में चली गई थी. बैठक के तुरंत बाद प्रताप दादा ध्यान लगा कर बैठे थे. अब आंगन में , मैं और असुरा दोनों खड़े थे. " अबे कुत्ते...! चल मेडिकल शॉप में जा, और इस दवाई को लेकर आ " असुर ने एक दवाई की पर्ची अपने जेब से निकाल कर मुझे देते हुए कहा. मैंने पर्ची अपने हाथ में ली और उसकी और देखा. असुर ने अपनी जेब से एक पैसों का बंडल निकाला .. " हे स्वामी जी... यह तो वही बंडल था जो कल पोस्टमैन अंकल दरवाजे पर जो दुकानों का किराया रख कर गए थे.."
मुझे समझने में देर नहीं लगी कि प्रताप दादा ने तिजोरी की चाबी खोलकर उस तिजोरी को अपने कब्जे में ले लिया था. अब सब कुछ प्रताप दादा , पारो आंटी और असुरा की हाथ पड़ चुका था. मां सच में उनकी दासी और मैं कुत्ता बन चुका था.
असुरा ने ऊस बंडल मे से 5000 रुपये निकाल कर मेरे हाथ में रख दिये. मैने उस पर्ची मे देखा की मुझे लाना क्या था. पर्ची में क्या लिखा था यह तो मुझे पता नहीं चला... पर यह तय था कि मुझे मेडिकल से कोई ट्यूब लाना था. मैंने उस पर्ची को अपनी जेब में रखा और जाने के लिए पलटा तभी... पारो आंटी भी अपने हाथ में कोई पर्ची लेकर मेरी और आते हुए मुझे दिखाई दी. उन्होंने मुझे आवाज दी " नमन... चल जा और इसमें जो तेरी मां के लिए सामान लिखा है वह मेडिकल शॉप से ले आ " मैंने उनसे वह पर्ची ले ली और उसे पढ़ा. उसे पर भी जो लिखा था वह मुझे समझ में नहीं आया. उन्होंने मुझे फिर से पूछा " पैसे हैं तेरे पास..? या मैं दूं? " इतने में पीछे से असुरा ने जवाब दिया " हां मैंने दिए हैं इसे पैसे. वह ले आएगा " ऐसा सुनते ही पारो आंटी वहां से चली गई. " चल जल्दी जा और जल्दी से आ " असुर ने मुझे फटकार लगाई. मैं तुरंत वहां से गेट खोल कर बाहर चला आया.
हमारे घर से बड़ा वाला मेडिकल शॉप काफी दूर बाजार में था. और वो मेडिकल शॉप वाला हमें अच्छी तरह पहचानता था, इसीलिए मैंने सोचा कि शायद पिछली वाली गली में जो छोटा सा हकीम वाला मेडिकल शॉप है वहां से यह सामान लाना ही सही रहेगा. मैं जल्दी-जल्दी पीछे वाली गली में गया. यह गली वैसे ही काफी सुनसान रहती थी और आज तो इस गली में कोई भी नहीं दिख रहा था. मैं जल्दी-जल्दी उस हकीम वाले मेडिकल शॉप पर गया. यह मेडिकल शॉप हमीद चाचा का था जो उम्र में काफी बूढ़े थे, पर शायद आज वह दुकान पर नहीं थे लेकिन उनका पोता असलम जो की 19 साल का था वह शॉप पर था. असलम पहले हमारी कॉलेज में पढ़ता था , इसलिए मैं उसे जानता था पर उसका चाल चलन कुछ ठीक नहीं था इसीलिए मेरी उससे कभी कोई बातचीत नहीं थी. उसने मुझे देखा और वह खड़ा हो गया. मैंने उसके हाथ में वो दोनों पर्चियां थमा दी. असलम ने वह दोनों पर्चियां पढ़ी और मेरी और गौर माथे पर शिंकज लाकर से देखने लगा. देखते देखते उसके चेहरे पर से भाव बदले और वो एक कमिनी से मुस्कान अपने चेहरे पर ले आया.
" तेरी उम्र क्या है..? और यह किसके लिए ले जा रहा है..? "
मैंने उसकी बात सुनी पर उसका कोई जवाब नहीं दिया. " तेरा शुक्रा दादा कल ऑफ हो गया ऐसी बातें चल रही है हर जगह.. और आज तू यहां यह लेने आया है साले..? माजरा क्या है बे..? " असलम ने मुझे डराते हुए पूछा.
मैं खुद उसे क्या बताता... मुझे तो खुद ही नहीं पता था कि इन दोनों पर्चियां में क्या लिखा है. " मुझे यह पर्चियां किसी ने दी है.. इन पर जो समान लिखा है वह जल्दी से दे दो... और वैसे.. इन दोनों पर्चियां में जो सामान लिखा है वह है क्या... जो तुम मुझे इतना डरा रहे हो? " मैंने हिम्मत करके असलम से पूछा
मुझे इन दो पर्चियां में जो लिखा है वह क्या समान है, यह बात पता नहीं है यह सुनकर असलम को भी यकीन हो गया कि ये सामान मेरे लिए तो नहीं है. उसने मुझे सिर्फ एक ही सवाल पूछा " मैं तुझे सब बताता हूं.. पर...पहले ये बता, तुझे किसने यह सामान लाने को कहा है ? "
मैं असुरा या पारो आंटी का नाम तो नहीं बता सकता था... इसीलिए मैंने मां का नाम ले लिया .. " मेरी मां... पूनम ने "
" साले तेरे दादाजी के मरते ही तेरी मां तो दूसरे ही दिन पूरी फॉर्म में आ गईं हैं लगता हैं. रंडी ने अपनी इतने साल की चूत की गर्मी मिटाने के लिए, लगता है कोई खिलाड़ी ढूंढ लिया हैं. " असलम ने कुछ सामान शेल्फ में ढूंढते हुए हस..हस कर कहा. मेरी मां के बारे मैं असलम का ऐसे बोलना मुझे अच्छा नहीं लगा. मैं काफी बुरा महसूस कर रहा था, पर कल से मैंने जो कुछ भी देखा सुना था... उसके बाद मुझे अब इन नई-नई चीजों की आदत पढ़ने लगी थी. मैं मेरी गर्दन शर्म से नीचे किए सब कुछ सुन रहा था... तभी असलम ने एक ट्यूब, एक पाऊच, और एक गोलियों की स्ट्रिप काउंटर पर रख दी.
" यह देख.. ये सब तेरी मां ने आज रात के अपने प्रोग्राम के लिये मंगवाया है...साली ये तो पक्की रांड हैं जो इतनी तयारी कर रही है... उसने तो अपनी चूत का भोसडा बनाने का पुरा प्लॅन बनाया हैं..." असलम हर एक चीज का रेट चेक करते है मुझसे कहने लगा. मेरा दिमाग पुरी तरह सुन्न हो चुका था. क्या सामान था ये..? और इससे मां की चूत का क्या वास्ता था ? मैं सोच ही रहा था तभी असलम ने आगे कहा.
" यह ट्यूब 2000 हजार रुपए का है... इसका थोड़ा सा इस्तेमाल अपने लंड पर करने से, लंड बिल्कुल पत्थर के माफिक सख्त हो जाता हैं. अगर यह ट्यूब लगाने वाले मर्द का लंड लंबा चौड़ा हुआ तो उसका लंड बिल्कुल भी डंडे की तरह बन जाएगा... और उसके बाद चूत को तहस नहस कर डाले गा "
असुरा के लंड का विक्राल साइज... और ऊपर से यह ट्यूब वाली दवाई... " हे स्वामीजी... कही कुछ अनर्थ ना हो जाएं..! " मेरा गला सुख रहा था तभी असलम फिर से बोल पड़ा.
" यह क्रीम का पाउच 1000 हजार रूपये का है. यह चूत पर और उसके आजू बाजू लगाने से चूत बिल्कुल मक्खन जैसी स्मूथ बनेगी. अगर लगाने वाली औरत गोरी चींटी हो तो उसकी चूत बिल्कुल फूल कर और भी निखरेगी , और उसके बाद जो गुलाबी कलर की चूत का रंग, बिलकुल मिल्किबार बिस्कुट के अंदर जो स्ट्रौबरी क्रीम होती है वैसा लगेगा. और यह गोलियां ₹500 की है... इन गोलियों की खासियत यह है कि इस स्ट्रिप में से एक गोली कोई औरत लेगी तो वो एक बदचलन औरत की तरह लंड की भूखी बन जाएगी, दो गोलियां लेगी तो लंड के लिए पागल बन जाएगी और भूखी कुतियां की तरह चूदाई के लिए मर मिट जाएगी. इसके सेवन से औरत के अंदर का डोपामिन एक एक मिनट के लिए बढ़ेगा और उसे लंड का भूखा प्यासा बना देगा "
यह सब मेरे लिए किसी काल्पनिक विश्व की कहानी के तरह था. ऐसा कुछ हो सकता है यह कोई इंसान सपने में भी नहीं सोच सकता था. लेकिन कुदरत और मेडिकल साइंस ने मेरी जिंदगी में , दो ही दिनों में कुछ ज्यादा ही तरक्की कर दी थी. मैंने अपनी जेब से पैसे निकाल कर गिने ओर असलम को दे दिए. उसने एक पैकेट में सब कुछ पैक किया और मेरे हाथ में सारा सामान थमा दिया. मैं पैकेट लेकर घर जाने के लिए निकला तभी असलम ने फिर से मुझे आवाज दी.
" तेरी मां के लिए यह हाय डोस पेन्किलर ले जा... साली रंडी आज रात ऐसे चुदेगी कि कल सुबह चल भी नहीं पाएगी.. तब उसे यह दे देना.. "
मैंने बिना सोचे समझे उसके हाथ से वह गोली ले ली और उसे गोली के पैसे देने के लिए अपने जेब में हाथ डाला, तभी असलम ने मुझे रोका.
" पैसे रहने दे.. कभी तेरी मां का दीदार हमें भी करा देना.. दूर से ही सही पर हम अपनी आंखे तो सेक लेंगे "
मैं उसे बिना कुछ कहे घर को जाने के लिए वापस निकल गया. पीछे असलम मुझे देखे जा रहा था... शायद उसके भी अरमान जग चुके थे.
दोपहर के 3 बज चुके थे. मैने कुछ खाया भी नहीं था. घर पर सभी अपने अपने काम में व्यस्त दिखाई दे रहे थे...पर मां... वो कहा थी....?
घर पर आगे क्या होने वाला था?
यह सब मेडिकल वाला सामान मां के लिए क्या तबाही लाने वाला था?
असुरा और पारो आंटी की क्या मिलीभगत वाली कारस्थानी थी?
जानिए अगले भाग में...