10-03-2025, 06:30 PM
(This post was last modified: 10-03-2025, 06:32 PM by RonitLoveker. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
UPDATE 5.1 (B)
सब का नाश्ता हो चुका था. सभी प्रताप दादा ने जो बैठक रखी थीं उसमें बैठे थे. पारो आंटी, प्रताप दादा के बाई बाजू में बैठी थी तो असुरा नीचे जमीन पर बैठा था. मैं वहीं पर खड़ा था तभी दादाजी ने मुझे कहा कि मैं मां को बुलाकर ले आऊ. मैं वहां से जल्दी से जाकर मां को यह बात बताने के लिए चला आया तभी मैंने देखा कि... मां रसोई में पूरी तरह पसीने से लथपथ हो के काम कर रही थी. शायद मादकता का रस पूरे उफान के साथ पसीने में मिश्रित होके उनके शरीर से बह रहा था. उनकी बगले पूरी तरह पसीने से लथपथ भीग चुकी थी. उनके बगल के आस पास ब्लाउज पर पसीने के दाग दिख रहे थे. उनकी सांसे भी उनके नियंत्रण में नहीं आ पा रही थी ऐसा मुझे लग रहा था. वो अपनी पैरों की एड़ियों को उभारे हुई अपनी उंगलियों को फर्श पर दबा रही थी. उनके तन बदन की आग जैसे फिर से सुलग रही थीं. उनका ध्यान रसोई में था ही नहीं... वह तो बस बेचैन हो के यहां वहां देखे जा रही थी... उनकी हालत देख में समझ चुका था कि शायद उन्हें क्या करना चाहिए था. मैने उनका ध्यान भटकाने के लिए उन्हें आवाज दियी... " मां....! " उन्होंने फटक से मेरी और देखा... इस वक्त उनका चेहरा भी पसीने से भर चुका था... उनकी गर्दन पर पसीने की बूंदे उनकी सुंदरता पर मोतियों की तरह चार चांद लगा रही थीं... मैने उन्हें बताया कि बैठक शुरू होने वाली है.. आप रसोई में काम करे रहने की वजह से शायद थक चुकी हो... कुछ देर टॉयलेट में जाकर फ्रेश हो के आईए... तब तक हम आपकी राह देखेंगे.
टॉयलेट का नाम सुनते ही उनके चेहरे पर एक चमक सी आ गई... शायद उन्हें पारो आंटी की बताई बात याद आ गईं... की इस मादकता के रस की गर्मी से राहत पाने के लिए चूत में उंगली करने की बात याद आ गईं होगी... वो बिना देर किए मुझे वहीं छोड़ के अपने कमरे में टॉयलेट की ओर पूरी जल्दबाजी में चली गई. मैं बाहर आया और सबको बताया कि मां आ रही हैं.. उनके आते ही बैठक शुरू करेंगे.
कुछ ही देर में मां आ गई. वो अभी पहले से ज्यादा फ्रेश लग रही थी... कही उन्होंने सच में चूत में उंगली कियी होगी....? नहीं...नहीं... पर में ये क्यूं सोच रहा हूं...? मैने ही तो उन्हें जानबूझकर टॉयलेट जाने की याद दिलाई थीं..तो फिर मैं क्यूं...? मैं इसी विचार में था तभी प्रताप दादा ने मां को असुरा की बाजू में बैठने को कहा. मां भी चुपचाप उनकी बात मानते हुये असुर की बाजू में बैठ गई. मां को अपनी बाजू में बैठता देख असुरा मुस्कराया और मेरी तरफ देखने लगा. मैंने उसे अनदेखा किया और मैं प्रताप दादा की और देखने लगा. प्रताप दादा ने बैठक शुरू की.
" जैसे कि हम लोग जानते हैं कि आज हम इस बैठक में क्यों बैठे हैं... मैं घटित हुई सारी बातें फिर से विस्तार में नहीं बताऊंगा.. क्योंकि इससे वक्त ही जाया होगा क्योंकि हमें सारी बातें पहले पता है... तो अब मैं उन ही चीजों पर गौर फरमाऊंगा जो चीजे सबको पता होनी जरूरी है.
यह है एक ..कागज...! यह कागज कोई आम कागज नहीं है... यह स्वामी जी के द्वारा लिखा गया कायदे कानून वाला कागज है जो की आज से इस घर में होने वाले विवाह और उसके पश्चात जो नियम पूनम और असुरा के दांपत्य जीवन के लिए सबसे जरूरी होंगे वह लिखे गए हैं. शायद स्वामी जी को पता था कि भविष्य में ऐसी समस्या आ सकती थी इसीलिए शायद उन्होंने इस सब का प्रबंध पहले से ही कर रखा था. सबसे पहले आज की तिथि में शाम को 7:00 बजे असुरा और पूनम का विवाह होगा यह विवाह घर के आंगन में होगा और घर का मुखिया होने के नाते यह विवाह मेरे समक्ष मेरी साक्षी से ही होगा. विवाह में बैठते समय नर जो कि असुरा है और जो नकारात्मक कुल का अधिपति है वह सिर्फ एक सफेद कपड़ा अपने लिंग को छुपाने के लिए अपने कमर के इर्द-गिर्द लपेटेगा और आज से पूनम जो कि मादा और असुरा की दासी बनेगी इस वजह से असुरा के सम्मान की विधि में वह भी सिर्फ अपने स्तन पर और अपनी योनि छुपाने के लिए वैसा ही छोटा सा कपड़ा लपेटेगी. इस सबसे यह बात निश्चित होगी कि असुरा और पूनम में कोई भी भेदभाव नहीं रहेगा, और वह विवाह में यह कपड़े भी इसीलिए लपेट रह रहे हैं क्योंकि वह सिर्फ विवाह में उपस्थित सभी से परहेज कर रहे है वरना असुरा और पूनम एक दूसरे के लिए सिर्फ और सिर्फ जानवरों की तरह, निर्वस्त्र नर और मादा हैं और इनका जीवन सिर्फ संभोग और सिर्फ संभोग के लिए बना है. और जो मैं सम्मान की विधि की बात की थी वह इसलिए थी क्योंकि पूनम जो असुरा की पत्नी एवम् दासी है वह सिर्फ असुरा की उपभोग के लिए बनी है और असुरा जो उसका राजा है वो जैसे भी चाहे, जिस तरह चाहे, जहां चाहे , जितना चाहे.. उतना पूनम को उपभोग सकता है और पूनम एक आज्ञाकारी पत्नी की तरह हर समय उसकी उपभोग का साधन बनने के लिए तैयार हे.. यही इस सम्मान की विधि का मतलब है "
यह सब सुनकर मेरे अंदर खून जमा हो गया.. मैंने मां की ओर देखा, उन्हें को देखकर मुझे ऐसा लग रहा था कि उनकी आंखें पूरी तरह फटी की फटी रह चुकी है... उनका शरीर डर के मारे कांप रहा था... चेहरे पर डर दिखाई देने लगा था... शायद आज जो उनके साथ होने वाला था वह उनके जीवन का सबसे अधिक कठिन समय था... उल्टा असुरा का चेहरा काफी प्रभावित दिख रहा था शायद को खुद को गौरांवित समझ रहा था क्योंकि उसे कामसुंदरी औरत मेरी मां पूनम विवाह के लिए... या प्रताप दादा की भाषा में कहूं तो उपभोग के लिए एक तिलस्मी खिलौने जैसी जो मिल चुकी थी.
" विवाह के पश्चात जो नियम विवाहित जोड़े के लिए निश्चित किए है वह मैं तुम्हें सुहागरात के उपहार के रूप में बताऊंगा... यह विवाह आसान तरीके से होगा... जो विधि के लिए जरूरी होगा वो सामान में लाऊंगा... तुम दोनों सिर्फ 7 बजे तैयार होके आंगन मैं आ जाना... बाकी चीज में बाद में बताऊंगा "
दादाजी की बात खत्म हुई... मैं अभी भी सोच विचार में ही था... तभी मेरी नजर फिर से मेरे सामने बैठे हुई मां और असुरा पर पड़ी... असुरा अब मां को सटकर बैठा था... जब हम सब दादाजी की बात पर ध्यान दे रहे थे तब शायद वह धीरे-धीरे उनके करीब तब आया था ... इधर असुरा ने सच में मौके पर चौका मार दिया था... वह अपनी जांघें, मां की जांघों से घिस रहा था... मां तब पूरी शॉक में थी, इस वजह से यह बात उन्हें समझ ही नहीं आ रही थी पर मैंने सब कुछ देख लिया था... मां कुछ रिस्पांस नहीं दे रही थी यह देख कर उसने आगे बढ़ने का सोचा... उसने अपना हाथ पीछे ले जाकर उनकी कमरे में डाला तभी... मां होश में आ गई... असुरा का खुरदरा हाथ अपने कोमल, पतली कमर पर पा कर वह सिहर उठी.... वह झट से उठी और कुछ नाराजी वाला मुंह बनाकर वहां से चली गई... जाते वक्त रिवाज के अनुसार वह प्रताप दादा को प्रणाम करना नहीं भूली. प्रताप दादा ने उन्हें आशीर्वाद दिया... तभी असुरा उठकर मेरी और आने लगा... मैं डर के मारे उसे अपनी और आते हुए देख रहा था...
असुरा मेरी और क्यों आ रहा था?
शाम को विवाह में क्या होने वाला था..?
क्या नियम थे जो प्रताप दादा असुरा और मां को सुहागरात के उपहार के रूप में देने वाला थे...?
जानने के लिए पढ़िए अगला अपडेट.
सब का नाश्ता हो चुका था. सभी प्रताप दादा ने जो बैठक रखी थीं उसमें बैठे थे. पारो आंटी, प्रताप दादा के बाई बाजू में बैठी थी तो असुरा नीचे जमीन पर बैठा था. मैं वहीं पर खड़ा था तभी दादाजी ने मुझे कहा कि मैं मां को बुलाकर ले आऊ. मैं वहां से जल्दी से जाकर मां को यह बात बताने के लिए चला आया तभी मैंने देखा कि... मां रसोई में पूरी तरह पसीने से लथपथ हो के काम कर रही थी. शायद मादकता का रस पूरे उफान के साथ पसीने में मिश्रित होके उनके शरीर से बह रहा था. उनकी बगले पूरी तरह पसीने से लथपथ भीग चुकी थी. उनके बगल के आस पास ब्लाउज पर पसीने के दाग दिख रहे थे. उनकी सांसे भी उनके नियंत्रण में नहीं आ पा रही थी ऐसा मुझे लग रहा था. वो अपनी पैरों की एड़ियों को उभारे हुई अपनी उंगलियों को फर्श पर दबा रही थी. उनके तन बदन की आग जैसे फिर से सुलग रही थीं. उनका ध्यान रसोई में था ही नहीं... वह तो बस बेचैन हो के यहां वहां देखे जा रही थी... उनकी हालत देख में समझ चुका था कि शायद उन्हें क्या करना चाहिए था. मैने उनका ध्यान भटकाने के लिए उन्हें आवाज दियी... " मां....! " उन्होंने फटक से मेरी और देखा... इस वक्त उनका चेहरा भी पसीने से भर चुका था... उनकी गर्दन पर पसीने की बूंदे उनकी सुंदरता पर मोतियों की तरह चार चांद लगा रही थीं... मैने उन्हें बताया कि बैठक शुरू होने वाली है.. आप रसोई में काम करे रहने की वजह से शायद थक चुकी हो... कुछ देर टॉयलेट में जाकर फ्रेश हो के आईए... तब तक हम आपकी राह देखेंगे.
टॉयलेट का नाम सुनते ही उनके चेहरे पर एक चमक सी आ गई... शायद उन्हें पारो आंटी की बताई बात याद आ गईं... की इस मादकता के रस की गर्मी से राहत पाने के लिए चूत में उंगली करने की बात याद आ गईं होगी... वो बिना देर किए मुझे वहीं छोड़ के अपने कमरे में टॉयलेट की ओर पूरी जल्दबाजी में चली गई. मैं बाहर आया और सबको बताया कि मां आ रही हैं.. उनके आते ही बैठक शुरू करेंगे.
कुछ ही देर में मां आ गई. वो अभी पहले से ज्यादा फ्रेश लग रही थी... कही उन्होंने सच में चूत में उंगली कियी होगी....? नहीं...नहीं... पर में ये क्यूं सोच रहा हूं...? मैने ही तो उन्हें जानबूझकर टॉयलेट जाने की याद दिलाई थीं..तो फिर मैं क्यूं...? मैं इसी विचार में था तभी प्रताप दादा ने मां को असुरा की बाजू में बैठने को कहा. मां भी चुपचाप उनकी बात मानते हुये असुर की बाजू में बैठ गई. मां को अपनी बाजू में बैठता देख असुरा मुस्कराया और मेरी तरफ देखने लगा. मैंने उसे अनदेखा किया और मैं प्रताप दादा की और देखने लगा. प्रताप दादा ने बैठक शुरू की.
" जैसे कि हम लोग जानते हैं कि आज हम इस बैठक में क्यों बैठे हैं... मैं घटित हुई सारी बातें फिर से विस्तार में नहीं बताऊंगा.. क्योंकि इससे वक्त ही जाया होगा क्योंकि हमें सारी बातें पहले पता है... तो अब मैं उन ही चीजों पर गौर फरमाऊंगा जो चीजे सबको पता होनी जरूरी है.
यह है एक ..कागज...! यह कागज कोई आम कागज नहीं है... यह स्वामी जी के द्वारा लिखा गया कायदे कानून वाला कागज है जो की आज से इस घर में होने वाले विवाह और उसके पश्चात जो नियम पूनम और असुरा के दांपत्य जीवन के लिए सबसे जरूरी होंगे वह लिखे गए हैं. शायद स्वामी जी को पता था कि भविष्य में ऐसी समस्या आ सकती थी इसीलिए शायद उन्होंने इस सब का प्रबंध पहले से ही कर रखा था. सबसे पहले आज की तिथि में शाम को 7:00 बजे असुरा और पूनम का विवाह होगा यह विवाह घर के आंगन में होगा और घर का मुखिया होने के नाते यह विवाह मेरे समक्ष मेरी साक्षी से ही होगा. विवाह में बैठते समय नर जो कि असुरा है और जो नकारात्मक कुल का अधिपति है वह सिर्फ एक सफेद कपड़ा अपने लिंग को छुपाने के लिए अपने कमर के इर्द-गिर्द लपेटेगा और आज से पूनम जो कि मादा और असुरा की दासी बनेगी इस वजह से असुरा के सम्मान की विधि में वह भी सिर्फ अपने स्तन पर और अपनी योनि छुपाने के लिए वैसा ही छोटा सा कपड़ा लपेटेगी. इस सबसे यह बात निश्चित होगी कि असुरा और पूनम में कोई भी भेदभाव नहीं रहेगा, और वह विवाह में यह कपड़े भी इसीलिए लपेट रह रहे हैं क्योंकि वह सिर्फ विवाह में उपस्थित सभी से परहेज कर रहे है वरना असुरा और पूनम एक दूसरे के लिए सिर्फ और सिर्फ जानवरों की तरह, निर्वस्त्र नर और मादा हैं और इनका जीवन सिर्फ संभोग और सिर्फ संभोग के लिए बना है. और जो मैं सम्मान की विधि की बात की थी वह इसलिए थी क्योंकि पूनम जो असुरा की पत्नी एवम् दासी है वह सिर्फ असुरा की उपभोग के लिए बनी है और असुरा जो उसका राजा है वो जैसे भी चाहे, जिस तरह चाहे, जहां चाहे , जितना चाहे.. उतना पूनम को उपभोग सकता है और पूनम एक आज्ञाकारी पत्नी की तरह हर समय उसकी उपभोग का साधन बनने के लिए तैयार हे.. यही इस सम्मान की विधि का मतलब है "
यह सब सुनकर मेरे अंदर खून जमा हो गया.. मैंने मां की ओर देखा, उन्हें को देखकर मुझे ऐसा लग रहा था कि उनकी आंखें पूरी तरह फटी की फटी रह चुकी है... उनका शरीर डर के मारे कांप रहा था... चेहरे पर डर दिखाई देने लगा था... शायद आज जो उनके साथ होने वाला था वह उनके जीवन का सबसे अधिक कठिन समय था... उल्टा असुरा का चेहरा काफी प्रभावित दिख रहा था शायद को खुद को गौरांवित समझ रहा था क्योंकि उसे कामसुंदरी औरत मेरी मां पूनम विवाह के लिए... या प्रताप दादा की भाषा में कहूं तो उपभोग के लिए एक तिलस्मी खिलौने जैसी जो मिल चुकी थी.
" विवाह के पश्चात जो नियम विवाहित जोड़े के लिए निश्चित किए है वह मैं तुम्हें सुहागरात के उपहार के रूप में बताऊंगा... यह विवाह आसान तरीके से होगा... जो विधि के लिए जरूरी होगा वो सामान में लाऊंगा... तुम दोनों सिर्फ 7 बजे तैयार होके आंगन मैं आ जाना... बाकी चीज में बाद में बताऊंगा "
दादाजी की बात खत्म हुई... मैं अभी भी सोच विचार में ही था... तभी मेरी नजर फिर से मेरे सामने बैठे हुई मां और असुरा पर पड़ी... असुरा अब मां को सटकर बैठा था... जब हम सब दादाजी की बात पर ध्यान दे रहे थे तब शायद वह धीरे-धीरे उनके करीब तब आया था ... इधर असुरा ने सच में मौके पर चौका मार दिया था... वह अपनी जांघें, मां की जांघों से घिस रहा था... मां तब पूरी शॉक में थी, इस वजह से यह बात उन्हें समझ ही नहीं आ रही थी पर मैंने सब कुछ देख लिया था... मां कुछ रिस्पांस नहीं दे रही थी यह देख कर उसने आगे बढ़ने का सोचा... उसने अपना हाथ पीछे ले जाकर उनकी कमरे में डाला तभी... मां होश में आ गई... असुरा का खुरदरा हाथ अपने कोमल, पतली कमर पर पा कर वह सिहर उठी.... वह झट से उठी और कुछ नाराजी वाला मुंह बनाकर वहां से चली गई... जाते वक्त रिवाज के अनुसार वह प्रताप दादा को प्रणाम करना नहीं भूली. प्रताप दादा ने उन्हें आशीर्वाद दिया... तभी असुरा उठकर मेरी और आने लगा... मैं डर के मारे उसे अपनी और आते हुए देख रहा था...
असुरा मेरी और क्यों आ रहा था?
शाम को विवाह में क्या होने वाला था..?
क्या नियम थे जो प्रताप दादा असुरा और मां को सुहागरात के उपहार के रूप में देने वाला थे...?
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