10-03-2025, 03:54 PM
"ये गया मेरा लौड़ा, लेएएएएएए......" घनश्याम बोला। उसकी आवाज में साफ साफ मुझे उसके मन की खुन्नस का आभास हो रहा था। वैसे भी जिस तरह से उसने मेरी गान्ड में हमला बोला था, यह बताने के लिए काफी था कि वह अपनी खुन्नस निकालने पर आमादा था। लेकिन मैंने भी ठान लिया था कि आज भले ही पीड़िता का नाटक बदस्तूर करती रहूंगी लेकिन उसकी मंशा पर पानी फेर कर रहूंगी। घनश्याम के हमले से एक बार जो तालबद्ध चुदाई चल रही थी उस पर खलल पड़ गया था लेकिन मैं जानती थी कि अब फिर से एक साथ इस दोहरी चुदाई का एक नया ताल आरंभ होने वाला था और पहले जो एक लंडीय चुदाई का आनंद ले रही थी, वहीं अब द्विलंडीय चुदाई से मुझे दुगुना आनंद मिलने वाला था। इसके लिए घनश्याम की थोड़ी ज्यादती को बर्दाश्त करने में मुझे कोई गुरेज नहीं था। मैंने मन को कड़ा किया और इस सामूहिक चुदाई का लुत्फ उठाने को तत्पर हो गयी।
घनश्याम का मुझपर टूट पड़ना कोई अनपेक्षित नहीं था। अभी नहीं तो कुछ देर बाद यह तो होना ही था। आखिर कब तक वह खुद को रोक पाता। उसके जबरदस्त धक्के से ऐसा लगा जैसे मेरी अंतड़ियों में भूकंप आ गया हो। एक बार पूरा लंड घुसेड़ कर वह बड़ी बेरहमी से मेरी चूचियों को पकड़ कर मसलना आरम्भ कर दिया और साथ ही साथ मेरी गान्ड का बाजा बजाना शुरू कर दिया। मैं भीतर ही भीतर तड़प उठी लेकिन इस तरह की जबर्दस्ती से मुझे एक अलग तरह का रोमांचक अनुभव से दो चार होने का अवसर हाथ लग गया। कुछ करारे धक्के खाने की पीड़ा को मैं किसी तरह झेल गई और फिर आगे जो हुआ वह कल्पना से परे था। उस पीड़ामय कुछ लम्हों के बाद मुझे उसी पीड़ा में मजा आने लगा। मेरी चूत में भलोटिया का बड़ा सा लंड तहलका मचा रहा था और इधर अब घनश्याम पूरी तरह पागलों की तरह मेरी गान्ड में अपना लंड गजागच पेलने को तैयार हो गया। अब मैं उन दोनों के बीच एक अद्भुत चुदाई का लुत्फ लेने वाली थी। यह अविश्वसनीय रूप से सच था।
"आआआआआहहहह...." मेरी आहें निकलने लगीं।
"साली कुतिया, अब आ रहा है न मजा, इधर उधर मुंह मारने की सजा का?" घनश्याम मेरी गान्ड कूटता हुआ बोला।
"आह ओह दर्द हो रहा है" मैं बनावटी तकलीफ दिखाती हुई बोली।
"यही तो मैं चाहता था।" घनश्याम बोला।
"अबे साले यह डायलॉग बाजी बंद कर और चुपचाप चोद मां के लौड़े।" अबतक भलोटिया जो चुपचाप हमलोगों की बकबक सुन रहा था, बोल उठा और उसी के साथ अबतक शांत भलोटिया भी हरकत में आया। वह अब मेरी कमर को सख्ती से पकड़ कर धीरे धीरे चोदने की रफ्तार बढ़ाने लगा ।
"ठीक बोले भाई।" घनश्याम भी अब अपना ध्यान बकवास करने की जगह चोदने में केंद्रित किया और धकाधक मेरी गान्ड को कूटना आरंभ कर दिया। उन दोनों के बीच पिसती हुई मैं ज्यादा देर ठहर नहीं पाई और मैं,
"आआआआआहहहह.... " निकालती थरथराती हुई धराशाई हो गयी। मैं उस स्खलन के सुख में मुदित भलोटिया के मोटे शरीर से चिपकी जा रही थी लेकिन उन दोनों ने थमने का नाम ही नहीं लिया। गजब के चुदक्कड़ बूढ़े थे। मेरे निढाल शरीर को भंभोड़ते हुए चोदते रहे चोदते रहे। दोनों के बीच मानों चुदाई की प्रतियोगिता हो रही थी। दोनों मानों पागल सांड बन चुके थे। हांफ रहे थे, कांप रहे थे मगर भिड़े हुए थे। साले बूढ़ों को तो मानो ऐसा लग रहा था जैसे फिर कभी मेरे जैसी लड़की जिंदगी में चोदने को नहीं मिलेगी, इसलिए जो कसर निकालना है अभी ही निकाल लो, भले ही इस धींगामुश्ती में उनकी जान ही न चली जाए। खासकर भलोटिया साला मोटा भालू। हां घनश्याम की बात अलग थी, वह तो जबरदस्ती मुझ पर पिल पड़ा था, जबकि उसका मुझ पर अपनी औकात से ज्यादा जोर अजमाइश मात्र खुन्नस निकालने के अलावा और कुछ नहीं था। उस चुदाई प्रतियोगिता की एकमात्र बेबस शिकार बनी मैं बेदर्दी से चुदी जा रही थी, नुची जा रही थी। घनश्याम ज्यादा बेरहम हुआ जा रहा था। वह मेरी गान्ड का भुर्ता बनाते हुए मेरी चूचियों को बेरहमी से मसलता जा रहा था। ओह भगवान, इस अंतहीन चुदाई के अंत का में दम साधे इंतजार करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती थी। लेकिन घनश्याम की रफ्तार मुझे इस बात का आभास दिला चुकी थी कि बस वह अब कुछ सेकेंड का ही मेहमान है और लो,
घनश्याम का मुझपर टूट पड़ना कोई अनपेक्षित नहीं था। अभी नहीं तो कुछ देर बाद यह तो होना ही था। आखिर कब तक वह खुद को रोक पाता। उसके जबरदस्त धक्के से ऐसा लगा जैसे मेरी अंतड़ियों में भूकंप आ गया हो। एक बार पूरा लंड घुसेड़ कर वह बड़ी बेरहमी से मेरी चूचियों को पकड़ कर मसलना आरम्भ कर दिया और साथ ही साथ मेरी गान्ड का बाजा बजाना शुरू कर दिया। मैं भीतर ही भीतर तड़प उठी लेकिन इस तरह की जबर्दस्ती से मुझे एक अलग तरह का रोमांचक अनुभव से दो चार होने का अवसर हाथ लग गया। कुछ करारे धक्के खाने की पीड़ा को मैं किसी तरह झेल गई और फिर आगे जो हुआ वह कल्पना से परे था। उस पीड़ामय कुछ लम्हों के बाद मुझे उसी पीड़ा में मजा आने लगा। मेरी चूत में भलोटिया का बड़ा सा लंड तहलका मचा रहा था और इधर अब घनश्याम पूरी तरह पागलों की तरह मेरी गान्ड में अपना लंड गजागच पेलने को तैयार हो गया। अब मैं उन दोनों के बीच एक अद्भुत चुदाई का लुत्फ लेने वाली थी। यह अविश्वसनीय रूप से सच था।
"आआआआआहहहह...." मेरी आहें निकलने लगीं।
"साली कुतिया, अब आ रहा है न मजा, इधर उधर मुंह मारने की सजा का?" घनश्याम मेरी गान्ड कूटता हुआ बोला।
"आह ओह दर्द हो रहा है" मैं बनावटी तकलीफ दिखाती हुई बोली।
"यही तो मैं चाहता था।" घनश्याम बोला।
"अबे साले यह डायलॉग बाजी बंद कर और चुपचाप चोद मां के लौड़े।" अबतक भलोटिया जो चुपचाप हमलोगों की बकबक सुन रहा था, बोल उठा और उसी के साथ अबतक शांत भलोटिया भी हरकत में आया। वह अब मेरी कमर को सख्ती से पकड़ कर धीरे धीरे चोदने की रफ्तार बढ़ाने लगा ।
"ठीक बोले भाई।" घनश्याम भी अब अपना ध्यान बकवास करने की जगह चोदने में केंद्रित किया और धकाधक मेरी गान्ड को कूटना आरंभ कर दिया। उन दोनों के बीच पिसती हुई मैं ज्यादा देर ठहर नहीं पाई और मैं,
"आआआआआहहहह.... " निकालती थरथराती हुई धराशाई हो गयी। मैं उस स्खलन के सुख में मुदित भलोटिया के मोटे शरीर से चिपकी जा रही थी लेकिन उन दोनों ने थमने का नाम ही नहीं लिया। गजब के चुदक्कड़ बूढ़े थे। मेरे निढाल शरीर को भंभोड़ते हुए चोदते रहे चोदते रहे। दोनों के बीच मानों चुदाई की प्रतियोगिता हो रही थी। दोनों मानों पागल सांड बन चुके थे। हांफ रहे थे, कांप रहे थे मगर भिड़े हुए थे। साले बूढ़ों को तो मानो ऐसा लग रहा था जैसे फिर कभी मेरे जैसी लड़की जिंदगी में चोदने को नहीं मिलेगी, इसलिए जो कसर निकालना है अभी ही निकाल लो, भले ही इस धींगामुश्ती में उनकी जान ही न चली जाए। खासकर भलोटिया साला मोटा भालू। हां घनश्याम की बात अलग थी, वह तो जबरदस्ती मुझ पर पिल पड़ा था, जबकि उसका मुझ पर अपनी औकात से ज्यादा जोर अजमाइश मात्र खुन्नस निकालने के अलावा और कुछ नहीं था। उस चुदाई प्रतियोगिता की एकमात्र बेबस शिकार बनी मैं बेदर्दी से चुदी जा रही थी, नुची जा रही थी। घनश्याम ज्यादा बेरहम हुआ जा रहा था। वह मेरी गान्ड का भुर्ता बनाते हुए मेरी चूचियों को बेरहमी से मसलता जा रहा था। ओह भगवान, इस अंतहीन चुदाई के अंत का में दम साधे इंतजार करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती थी। लेकिन घनश्याम की रफ्तार मुझे इस बात का आभास दिला चुकी थी कि बस वह अब कुछ सेकेंड का ही मेहमान है और लो,