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वन नाईट स्टैंड
#10
UPDATE 9

मेरे हाथ उस की कमर पर कस गये उस की बाँहें मेरी गरदन से लिपट गयी और हम दोनों गहन चुम्बन में डुब गये। जब साँस फुल गयी तब अलग हुये। माया बोली कि तुम कुछ भी कम नहीं करते।

यार चुमने में भी कम ज्यादा होता है।

हाँ साँस रुक सी गयी थी।

सब्र नहीं होता।

सब्र करना सीखो। तुम्हारी ही चीज है तो इतनी जल्दी बाजी क्यो? सही है

आगे ध्यान रखुँगा।

माया मेरे से लिपटी ही रही। मैं भी उस के शरीर की गर्मी को महसुस करता रहा। फिर हम दोनों बैठ गये। मैं उस के चेहरे को देखता रहा। मुझे घुरते देख कर माया बोली

घुर क्यो रहे हो?

नजरों में बसाना चाहता हूँ।

अभी तक कहाँ थी

दिल में

नजरों में नहीं

नहीं

तुम्हारें सामने ही तो हूँ

हो लेकिन तुम्हें ध्यान से देखने का मौका ही नहीं मिला है।

सब कुछ तो देखा है

हाँ, लेकिन फिर भी दिल और देखना चाहता है

आज सूरज कहीं और से तो नहीं निकला?

क्यों?

तुम इतने रोमांटिक, मैंने तो यह रुप देखा ही नहीं था

जिस को दिखाना चाहता था वह देखना ही नहीं चाहती थी, इस लिये मन को मार लिया, अब लगता है कि मन को मारना क्यों है।

सही है मन को क्यों कर मारना

दिल को तसल्ली मिले वही करना चाहता हुँ।

आज इतने भावुक से क्यों हो?

पता नहीं, लेकिन खुश हूँ, तुम

मैं भी खुश हूँ

तो फिर चलों खुशी इंजॉय करते है।

हाँ

हम दोनों प्यार करना चाहते थे लेकिन फिर भी नहीं कर रहे थे क्योकि उसे करने से डर लग रहा था। एक दूसरे के साथ समय बिताना ज्यादा सही था, सो वही करने की कोशिश कर रहे थे। मैंने माया से पुछा कि मकान कहाँ पर देखा है?

मैंने कहाँ देखा है सिर्फ पता किया था।

चलो एक दिन चल कर देख आते है।

अपने से अलग करना चाहते हो?

ऐसा कैसे लगा?

यहाँ साथ में अच्छा नहीं लग रहा है?

पैसा आया है तो प्रोपर्टी खरीद लेना अच्छा रहेगा। यहाँ से जाने को किसने कहा है।

तुम ने कहा तो लगा कि मुझे अपने से अलग कर रहे हो?

जरुरत पड़ी तो ऊपर एक मंजिल और बनवा लेगे।

यह सही रहेगा।

तुम मेरे से दूर नहीं जा रही हो जब तुम्हारी दीदी ने कह दिया है तो यह फाइनल है। मैं चाहूँ तो भी नहीं बदल सकता। इस लिये मन में आये किसी भी विचार को निकाल दो।

तुम कभी-कभी खतरनाक बात करते हो

मुझे लगता है तुम से खतरनाक काम तो कोई कर ही नहीं सकता

आज हम दोनों लड़ क्यों रहे है?

शायद प्यार बढ़ रहा है। जब दो लोग गहरे प्यार में होते है तो वह दोनों बहुत लड़ते है।

तुम तो दीदी से नहीं लड़ते

किस ने कहा

दीदी ने

पहले बहुत लड़ते थे लेकिन फिर दोनों शान्त हो गये है।

बढ़िया है तुम लड़ते अच्छे नहीं लगते

और क्या करता अच्छा नहीं लगता

धीरे-धीरे सब पता चल जायेगा, जल्दी क्या है

जैसी तुम्हारी मर्जी

तभी माया को चाय बनाने की याद आयी तो वह चाय बनाने चली गयी। कुछ देर बाद लौटी तो चाय के साथ पापड़ भी तल कर लायी थी। हम दोनों चाय का आनंद लेने लग गये। मैंने पुछा कि दीदी बता कर गयी है कि रात का खाना खा कर आयेगी या घर पर खायेगी?

माया ने बताया कि खाना खा कर आयेगी। मैंने कहा कि माया बाहर का खाना है तो कुछ मँगा लेते है तो वह बोली कि नहीं मैं बना रही हूँ वही खायेगें।

कुछ देर बाद माया खाना बनाने चली गयी, मैंने पत्नी को फोन कर के पुछा कि खाना बनवाऊँ तो वह बोली कि हाँ मैं घर पर आ कर ही खाना खाऊँगी। उसकी यह बात सुन कर मैं किचन में गया और माया को बताया कि वह अपनी दीदी के लिये भी खाना बना कर रखे।

उस ने मेरी तरफ हैरत की नजरों से देखा तो मैंने उसे बताया कि अभी मेरी बात हूई है और वह घर पर ही खाना खाने की कह रही है। माया ने एक गहरी साँस ली और बोली कि चलों आप ने फोन कर लिया नहीं तो जब वह घर पर आती तो खाना ना देख कर क्या सोचती? मैंने उसे दिलासा दिया कि वह कुछ नहीं सोचती।

तुम्हें उसे खाना बना कर देना पड़ता। वह यह सुन कर मुस्करा कर बोली कि लगता है कि आप भी दीदी को समझने लगे है। मैंने कहा कि वह मुझ को समझती है और मैं उस को समझता हूँ यही विवाह का असली अर्थ है। माया कुछ नहीं बोली और खाना बनाती रही।

आठ बजे करीब पत्नी बाजार से आ गयी। उस के हाथ सामान से भरे थे। वह सामान रख कर बैठी और फिर माया से बोली कि मैंने तुझे तो मना किया था, लेकिन जब इन्होनें फोन किया तो सोचा कि अकेले खाना खाने में क्या मजा आयेगा और देर भी बहुत हो जायेगी इस लिये इन से खाना बनाने की कह दी थी। तुझे बुरा तो नहीं लगा।

माया बोली, इस में बुरा मानने की क्या बात है, मैं खाना बना ही रही थी तभी जीजा जी ने आ कर बता दिया था। अगर नहीं भी बताया होता तो तुम्हारें आने के बाद बना देती। उस की बात सुन कर पत्नी के चेहरे पर संतोष के भाव दिखाई दिये।

हम तीनों खाना खाने बैठ गये। खाना खाने के बाद पत्नी मीठा लेने चली गयी, वह बाजार से रसगुल्ले ले कर आयी थी। खाने के बाद मुझे मीठा खाने की आदत है यह उसे पता है। हम सब लोग इस के बाद बात करने लगे फिर मैं माया के कमरे में सोने चला गया।

नींद अभी आई ही थी कि लगा कि दरवाजा खुला और किसी ने दरवाजा बंद किया और लॉक कर दिया। फिर किसी के पास लेटने का आभास हुआ। मुझे लगा कि नींद में सपना देख रहा हूँ लेकिन जब नाक में किसी की खुशबू समायी तो समझ आया कि माया है।

तब तक माया मुझ से लिपट चुकी थी। मेरी पीठ पर उस के उरोज दबें हुये थे। उस के पाँव मेरी जाँघों पर चढ़ कर आगे की तरफ आ गये थे। हाथ मेरी गरदन पर थे। मैंने करवट बदली तो उस के होंठ मेरे होंठों से चिपक गये।

कई दिनों से उनका स्वाद नहीं लिया था इस लिये मेरे होंठ उन के स्वाद का रसास्वादन करने लग गये। मैंने आँख खोल कर कहा कि तुम यहाँ कैसे? तो जवाब मिला कि दीदी ने भेजा है कि तुम्हारें पास जा कर सोऊँ। मैं कुछ समझा नहीं लेकिन जो कुछ हो रहा था उस से मैं खुश था।

रात जोरदार बीतनी थी। मैं हाथों से उस की पीठ सहलाने लगा। धीरे-धीरे दोनों के शरीरों में गरमी भरने लगी। मैंने माया की गरदन के नीचे अपने होंठ लगा दिया। इस के बाद मैंने उस के नाईटसुट के बटन खोल दिये। अब उस के उरोज मेरे सामने थे। दूध से उजले उरोजों के कुचांग्रो को देख मैंने अपने होंठ उन पर लगा दिये।

फुले हुये निप्पलों को चुसना शुरु कर दिया। दूसरें को मेरे हाथ सहला रहे थे। उरोजों का मर्दन और चुषण करने के बाद मेरा ध्यान उस के नीचे की तरफ गया। मैंने होठों से उस की नाभी चुम कर उस के पजामें के अंदर हाथ डाल दिया।

उस ने पेंटी पहनी हुई थी। उस के अंदर मेरी उँगलियों नें प्रवेश करके उसकी योनि को सहलाना शुरु कर दिया, इस कारण से माया की उत्तेजना बढ़ने लगी। उस के होंठ अब मेरी गरदन पर गढ़ रहे थे।

मैं आज की रात कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था तथा चाहता था कि हमारा सहवास लम्बा चले इसी लिये धीरे-धीरे उस की भग को सहलाने लगा। इस से माया उत्तेजित हो रही थी, कुछ देर बाद मेरी उँगलियाँ उस की योनि की गहराई को खंगाल रही थी। पहले एक उँगली थी फिर दो उँगलियाँ योनि के अंदर बाहर होने लगी।

माया आहहहहहहहह एईईईईईईई उहहहहह करने लगी। उस ने मेरे कान में कहा कि अब रुका नहीं जा रहा है। मैंने नीचे झुक कर उस का पायजामा उतार दिया और पेंटी भी निकाल दी।

मेरे होंठ उस की योनि को चाटने लगे। इस के बाद उस की जाँघों को चुम कर नीचे पंजों की तरफ चल पड़ें। पंजों को हाथों से सहला कर मैंने उस की हर उँगली को होंठों में ले कर चुसा मुझें ऐसा करना अच्छा लग रहा था तथा इस की वजह से मेरे शरीर में उत्तेजना भरती जा रही थी।

माया ने उठ कर मुझे अपने ऊपर गिरा लिया और मेरे कपड़ें उतारने शुरु कर दिये। ऐसा करने के बाद उस ने अपने मन की करना शुरु कर दिया।

उस के मन में भी मेरे शरीर को प्यार करने महसुस कररने की इच्छा थी जिसे वह पुरी करना चाहती थी। गरदन के ऊपर चुम्बन करने के बाद मेरे निप्पलों का नंबर लगा और उस ने उन को होंठों में ले कर काटना शुरु कर दिया। अब मेरे मुँह से आह निकलने लग गयी।

इस के बाद उस के लबों ने मेरी नाभी पर कृपा करी और इस के बाद उस ने मेरी जाँघों के मध्य में चुमना शुरु किया। मेरी जाँघों पर चुम्बन करने के बाद उस ने मेरे अंडकोशों को चुमा और उन को हाथ से सहलाना शुरु कर दिया। सहलाने से अंडकोश तन गये और यह तनाव लिंग में चला गया और वह भी तन कर कठोर हो गया।

माया ने पहले लिंग के सुपारे का चुम्बन लिया और उस के बाद हाथों से उसे सहला कर उसे मुँह में ले लिया। धीरे-धीरे उस ने पुरा लिंग निगल लिया। कुछ देर वह उसे चुसती रही और उस के बाद उस ने उसे मुँह के अंदर बाहर करना शुरु कर दिया। मुझे यह अच्छा तो लग रहा था लेकिन मैं अभी स्खलित नहीं होना चाहता था लेकिन माया लिंग को मुँह से निकालने को राजी नहीं थी।

मैं घुम कर 69 की पोजिशन में आ गया और हम दोनों को अपने काम की चीज मिल गयी। माया मेरे लिंग को चुस रही थी उसे मसल रही थी और मैं अपनी जीभ से उस की योनि को चाट रहा था और उस के अंदर जीभ को डाल कर उस का रसास्वादन कर रहा था। काफी देर यही चलता रहा, मैं माया के मुँह में स्खलित हो गया और माया भी स्खलित हो गयी।

इस के बाद हम दोनों एक दूसरे की बगल में लेट गये। माया ने मेरे कान में फुसफुसाया कि आज कुछ बाकी तो नहीं रह गया? मैंने कहा कि अभी तो चल रहा है देखते है कितना होता है यह सुन कर उस ने मेरी चकोटी काटी और कहा कि शैतानी कम करो।

मैंने कहा कि अपनी चीज का स्वाद ले रहा हूँ जैसे तुम ले रही हो तो वह बोली कि हाँ कह तो सही रहे हो। आज मैं भी अपने मन की कर रही हूँ, किसी बात का डर नहीं लग रहा है।

कुछ देर हम दोनों ऐसे ही पड़ें रहे फिर वह उठ कर मेरे ऊपर आ गयी और बोली कि आज तो तुम अच्छे बच्चे की तरह व्यवहार कर रहे हो। मैंने कहा कि मालकिन की सलाह मान ली है तो उस ने मेरी छाती पर मुक्का मारा।

मैंने उसे अपने से चिपका लिया। फिर उस के कान में कहा कि अभी महाराज को थोड़ी देर लगेगी क्योकि तुमने उसे चुस लिया है तो वह बोली कि पुरी रात अपनी है मैं इंतजार कर लुँगी।

उस के वक्ष मेरे सीने पर दबाव डाल रहे थे। मैंने एक हाथ से उन्हें सहलाना शुरु किया तो वह बोली कि कुछ देर तो रुकों। मैंने कहा कि सहला ही तो रहा हूँ, इस पर माया बोली कि दर्द कर रहे है, तुम्हें अपनी ताकत का पता नहीं है। मैंने अपना हाथ उस के वक्ष से हटा लिया। उसकी पीठ को सहलाया तो वह चिहुक कर बोली कि कुछ और इरादा तो नहीं है।

इरादा तो नेक है

कितना नेक?

जितना मैं हूँ

तुम और नेक

क्यों भई ऐसा क्या किया है

अच्छा तुम्हें पता ही नहीं है

क्या किया है

अभी कितनी बार डिस्चार्ज हुई हुँ पता है?

नहीं

3-4 बार.

पता नहीं चला

नीचे हाथ लगा कर देखो तब पता चलेगा

मैनें हाथ नीचे उस की जाँघों के जोड़ पर रखा तो पता चला कि वहाँ भरपुर गीलापन था

तुमने भी तो मुझे डिस्चार्ज कर दिया हिसाब बराबर

अच्छा जी

हाँ जी

कुछ और इरादा तो नहीं है

इरादें तो बहुत है लेकिन आज कोई नहीं है।

यह कह कर मैंने उस के कुल्हों को दबा कर अपने लिंग से चुपका लिया। लिंग इस तन गया और मैनें हाथ लगा कर उसे माया की योनि में डाल दिया।अंदर भरपुर नमी थी इस लिये लिंग बिना किसी रुकावट के बच्चेदानी तक चला गया।

इस के बाद मैंने नीचे से अपने कुल्हें उछाल कर धक्का दिया तो माया के मुँह से आह निकल गयी। लिंग ने बच्चेदानी के मुँह पर जोर से टक्कर मारी थी। मैं धीरे-धीरे अपने कुल्हें उठा कर धक्कें लगा रहा था फिर माया भी कुल्हों को हिला कर मेरा साथ देने लगी।

मैंने दोनों हाथों से उसकी पतली कमर थाम रखी थी। कुछ देर बाद हम दोनों नें करवट ली और मैं माया के ऊपर आ गया। मैं अभी भी धक्कें लगा रहा था। मुझे पता था कि स्खलित होने में ज्यादा समय लगना था। सो उस के लिये ही गति धीमी रख कर चल रहा था।

कुछ समय ऐसा करने के बाद मैनें लिंग निकाल लिया और माया को करवट दिला कर पेट के बल कर दिया और उस के कुल्हों को उठा कर उस के पीछे घुटनों के बल बैठ कर पीछे से उस की योनि में लिंग डाला शायद लिंग योनि में घर्षण कर रहा था इस लिये माया कराहने लगी।

मैं उस के दोनों कुल्हों को जो ज्यादा मांसल नहीं थे पकड़ कर धक्कें लगा रहा था माया भी इस में मेरा साथ दे रही थी। काफी देर इस आसन में रहने के बाद मैं थक गया था सो मैंनें उसे पीठ के बल लिटाया और उस के दोनों पाँव कंधों पर रख कर लिंग योनि में डाल दिया।

योनि बहुत कस गयी थी इस लिये लिंग को बहुत कसाब मिल रहा था। अब मेरे शरीर में आग सी लग रही थी और मैं उस से छुटकारा चाहता था लेकिन स्खलित होने की अवस्था नहीं आ रही थी लिंग सुन्न सा हो रहा था। इस लिये मैने लिंग को योनि से निकाल लिया और माया के दोनों पाँव नीचे कर दिये। माया बोली कि मेरी जान निकल रही थी अब चैन मिला है।

तुम्हें बोलना था

क्यों

दर्द हो रहा था

मजा आ रहा था, तुम्हें रोकना सही नही लगा

अब कभी ऐसा हो तो रोक देना

अच्छा

मैंने फिर से अपना लिंग माया की योनि में डाल दिया और शरीर को एक लकीर में कर के जोर-जोर से धक्कें लगाने शुरु कर दिया। माया आहहहहह आहहहह उईईईई उहहहहह करने लग गयी। कुछ देर बाद मेरी आँखों के सामने तारें झिलमिला गये और मैं माया पर लेट गया।

माया की छातियाँ भी जोर जोर से ऊपर नीचे हो रही थी उस की बाँहें और पैर मेरे बदन पर कस गये थे। वह भी स्खलित हो गयी थी। कुछ देर हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे फिर मैं उस की बगल में लेट गया। करवट लेकर माया कि तरफ मुँह किया तो वह बोली

आज की बात ही कुछ और है मैं तो हवा में उड़ रही हूँ, मुझे पकड़ कर रखो कहीं उड़ ना जाऊँ।

तुम कही नहीं उड़ रही मैंने थाम रखा है।

तुम्हारा ही तो सहारा है।

यह कह कर माया मुझ से लिपट गयी। हम दोनों के शरीरों से द्रव्य बह रहे थे नीचे के हिस्से इस कारण से गीले हो गये थे लेकिन संभोग के आंनद के सामने किसी को इस बात की चिन्ता नहीं थी। रात वाकई में बहुत जोरदार थी दोनों ने इस का भरपुर आंनद लिया था। लंबें संभोग के कारण थक जाने के कारण दोनों कब सो गये पता ही नहीं चला।

सुबह उठा तो सही लग रहा था, मेरे बगल में माया सोई पड़ी थी। सोती हुई बहुत मासुम लग रही थी। उस का चेहरा बालों से ढ़का हुआ था। मैंने हाथ से उसके चेहरे पर पड़े बालों की लट हटाई तो वह जग गयी। मुझे बाल हटाता देख बोली कि सोते में भी चैन नहीं लेने देते।

मैंने कहा कि मेरी प्रेमिका का चेहरा बादलों से ढ़का था सो उसे बादलों से बाहर कर रहा था। मेरी बात सुन कर वह हँस पड़ी और बोली कि आज तो आप के जुबान पर कवि बैठा हुआ है क्या बात है?

बात क्या है दिल खुश है

कितना

इतना की कविता करने लगा है

यह भी शौक है जनाब को

कई शौक जिम्मेदारियों की गर्द में दब गये थे, अब तुम ने आ कर उन पर पड़ी गर्द हटा दी है

क्या बात है मेरा पति तो मुझे देख कर कविता भी करता है, मैं तो धन्य हो गयी

कभी तो पढ़ा लिखा काम आयेगा ही, तो आज क्यों नहीं तुम्हारें चेहरे रुपी चन्द्रमा को बाल रुपी बादल मेरे से छिपा नहीं सकते

मैंने झुक कर माया के माथे पर चुम्बन दे दिया। वह उठ कर बैठ गयी और फिर अपनी हालत देख कर शर्मा गयी और चादर अपने पर लपेट ली। उस की यह हरकत देख कर मैंने कहा कि मुझ से कैसी शर्म तो वह बोली कि हर समय बेशर्मी सही नहीं लगती, मुझे कपड़ें पहनने दो। मैंने उस के कपड़ें उसे पकड़ाएँ और अपने कपड़ें पहनने लगा। जब दोनों ने कपड़ें पहन लिये तो दोनों कमरे से बाहर आ गये।

माया चाय बनाने किचन में चली गयी और मैं अखबार लेने बाहर चला गया। दरवाजा खोल कर बाहर से अखबार उठा लिया। फिर कुछ सोच कर बेडरुम में जा कर पत्नी को जगाने लगा। वह कुनमुनाती हूई उठ कर बेड पर बैठ गयी। मुझे देख कर बोली कि तुम जग गये।

मैंने कहा कि हाँ तभी तो तुम्हें उठाने आया हूँ। बाहर आ कर चाय पी लो। वह बोली कि चलो मैं आती हूँ। मैं इस के बाद किचन में चला गया। वहाँ पानी ले कर मैंने माया को बताया कि तेरी दीदी भी आ रही है उस की चाय भी बना ले तो वह बोली कि मुझे पता है आप उन्हें जगाने गये थे।

तब तक पत्नी भी किचन में आ गयी और बोली कि जब चाय बन जाये तो तुम दोनों बाहर आ जाना, मैं बाहर जा रही हूँ। उस की बात सुन कर मैं उस के साथ ही बाहर आ गया। दोनों कुर्सियों पर बैठ गये और अखबार पर नजर मारने लगे।

आज मुझे अच्छा लग रहा था। कोई थकान नहीं हो रही थी। सुबह की घुप अच्छी लग रही थी। माया चाय ले कर आ गयी और हम दोनों को चाय दे कर खुद भी चाय का कप ले कर बैठ गयी।

पत्नी ने मुझ से पुछा कि आज तुम्हें कैसा लग रहा है? मैंने उसे बताया कि आज सही महसुस कर रहा हूँ कोई थकान नहीं लग रही है। मेरी यह बात सुन कर वह बोली कि लगता है तुम सही हो रहे हो। ऐसे ही दो-तीन दिन और आराम कर लो पुरी तौर पर सही हो जाओगे। मैंने उस की बात पर सहमति में सर हिला दिया।

पत्नी ने माया से पुछा कि रात को सब कुछ सही था तो उस ने कहा कि हाँ दीदी सब कुछ सही रहा। मैं कुछ समझा नहीं तो पत्नी बोली कि रात को मैंने ही इसे तुम्हारें पास भेजा था यह देखने के लिये कि तुम शारीरिक तौर पर सही हो या नहीं? हमें जैसा पहले लग रहा था शायद वह ही सही कारण था लेकिन वह ही इकलौता कारण नहीं था।

कई चीजों के मिल जाने के कारण तुम थक गये थे। अब सही हो जाओगे। सेक्स भी कर पायोगे। ऐसा मेरा मानना है। रोज सेक्स करने के कोई बीमार नहीं होता है। माया और मैंने उस की बात से सहमति जताई।

दिन सामान्य तौर पर गुजरा। ऑफिस से फोन आया तो मैंने एच आर को बता दिया कि मैं तीन दिन के बाद आऊँगा। मैं अभी अपने आप को कुछ और आराम देने के मुड में था। दोपहर में पत्नी बोली कि कहीं बाहर चलते है।

हम तीनों शहर के मशहुर बाजार को घुमने निकल गये। बाजार में जा कर दोनों की तो मानो लॉटरी निकल आयी। दोनों ने मन भर कर खरीदारी करी। मैं तो बस उन दोनों के साथ घुमता रहा। रेस्टोरेंट में तीनों के खाना खाया और शाम को घर पर वापस आ गये।

घर आ कर दोनों जनी मुझे अपनी खरीदी चीजें दिखाने लग गयी। इस के बाद माया रात के लिये खाना बनाने चली गयी। पत्नी मेरे पास बैठी रही, मुझे अकेला देख कर वह बोली कि माया का मन लग गया है, इस से मैं बहुत खुश हूँ इस ने अपने जीवन में कोई सुख नहीं पाया है। आज हमारे साथ यह खुश है मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। कोशिश करना कि यह कभी दूखी ना हो।

मैं चुप रहा तो वह बोली कि कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो? क्या बोलूँ तुम तो सब कुछ बोल ही रही हो। लेकिन करना तो तुम्हें है। हाँ मैं तो सब कुछ करुँगा कि माया खुश रहे, लेकिन इस सब के पीछे हो तो तुम ही ना। अगर कुछ गलत करुँ तो मुझे टौक देना। वह मुझे देख कर बोली कि

मुझ पर इतना विश्वास है?

जैसे तुम्हें अपने पति पर विश्वास है वैसे ही मुझे मेरी पत्नी पर है।

माया ना जाने कब आ कर हम दोनों की बातें सुन रही थी। वह बोली कि तुम दोनों मेरी खुशी के लिये इतने चिन्तित क्यों हो? मैंने कहा कि तुम अब हमारी हो गई हो तो तुम्हारी खुशी भी हमारी जिम्मेदारी है वैसे भी हम पति-पत्नी को जिम्मेदारियाँ उठाने की आदत है।

वह पत्नी से लिपट कर बोली कि दीदी मुझे भी अपना हिस्सा बना लो ताकि मैं भी आप दोनों की चिन्ता कर सकुँ? इस पर पत्नी बोली कि वह तो तु हो ही गयी है, हमारी चिन्ता तु नहीं करेगी तो और कौन करेगा।

मैंने कहा कि भाई भुख लग रही है खाना खाते है। मेरी बात पर माया किचन में भाग गयी। कुछ देर बाद वह खाना ले आयी और हम तीनों मेज पर खाना खाने बैठ गये। मुझे लगा कि मेरे जीवन में आया हुआ तुफान गुजर गया है और अब वहाँ शान्ति छा गयी है।

तीन दिन बाद मैंने ऑफिस जाना शुरु कर दिया था। जीवन चल रहा था। माया को बहुत से प्यार की जरुरत थी वह उसे मिल रहा था लेकिन फिर भी मुझे लगता था कि उसे जो रोमांच मेरे साथ चाहिये वह नहीं मिल रहा है।

पत्नी के सामने हम दोनों अपने आप को बंधा सा महसुस करते थे। जो होना भी चाहिये था। वह मेरे घर की मालकिन थी मेरे जीवन को चलाने वाली थी। बिना उस की सहमति के मैं कुछ भी नहीं करता था। यह मेरी आदत में शामिल हो गया था।

माया अपने लिये जगह चाहती थी जो उसे मिल तो गयी थी लेकिन वह उस की मालकिन नहीं थी। किसी की नाराजगी का हर समय उसे डर बना रहता था। हम दोनों इस अवस्था को बदल नहीं सकते थे। यही अवस्था हमारे जीवन के सही चलने की शर्त थी। इस के बदलते ही क्या होगा हम दोनों में से कोई नहीं जानता था।

हम इस की कल्पना भी नहीं करना चाहते थे। मैं सोचता रहता था कि कैसे माया के अंदर जो शैतान बच्चा है वह बाहर आये। मुझे उसकी वही बैलोस छवि पसन्द थी लेकिन वह रुप अब दब सा गया था। वह अब अपनी दीदी की आज्ञाकारी बहन हो गयी थी। उसे भी यही पसन्द आ रहा था लेकिन मैं इस से खुश नहीं था।

मुझे लगता था कि माया का पुराना रुप वापस आना चाहिये तभी उस के और मेरे संबंध सामान्य रहेगे। सेक्स तो था ही लेकिन कही और कुछ था जो मिसिंग था वह क्या था? उसे खोजना था।

कुछ महीने बाद पत्नी के किसी संबंधी के यहाँ कोई समारोह था, पहले तो वह मना कर देती थी लेकिन माया के आने के बाद उसे घर की चिन्ता नहीं थी इस लिये जाने के लिये तैयार हो गयी। करीब सात दिन के लिये वह संबंधी के यहाँ चली गयी।
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RE: वन नाईट स्टैंड - by abhishek.kumar - 10-03-2025, 01:18 PM



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