09-03-2025, 04:55 PM
मम्मी या पापा को वहां न पाकर राज ने चैन की साँस ली.. वह दरवाजे के सामने आया और बोला," प्रिया क्यूँ नही आई..?"
"कमाल है.. तुम्हे... मैं ही.. मतलब मैं आ गई न.. अब भागो जल्दी..!" प्रिया के बाल बिखरे हुए थे .. और जागने की वजह से उसकी आँखें लाल हो गई थी ..
राज अब काफी relax महूस कर रहा था .. उसने तोह 'हद से हद क्या हो सकता है '.. ये तक सोच लिया था .. फ़िर मुफ्त में पीछा छूट'ने पर वह मस्त सा गया था ," प्रिया को भेजो.. उसी की वजह से मेरी दुर्गति हुयी है.. मैं उसको सुनाये बिना नही जाऊँगा.. अब चाहे कुछ भी हो जाए.. क्या कर रही है वो..?"
"सो रही है.. तुम्.. तुम् अपने साथ मुझे भी मरवाओगे.. please जो कुछ कहना सुन'ना है.. कल कह लेना.. कॉलेज में... तुम मेरे घर वालों को नही जान'ते.. जाओ please .." प्रिया का चेहरा देखने लायक हो गया था .. उसके गुलाबी होंटों का रंग फीका पड़ गया
"अच्छा.. मुझे यहाँ बाथरूम में रुकवा कर वो मजे से सो रही है.. मैं नही जाता.. सुबह मेरे साथ तुम दोनों को भी मजा आ जाएगा.." राज को जब पता चला की प्रिया सो रही है तोह उसका गुस्सा सांतवें आसमान पर पहुँच गया..
"तुम इतने जिद्दी क्यूँ हो राज... व्वो मैं ही प्रिया हूँ.. और रिया भी जाग रही है.. तुम्हारे कारण.. पता है इतनी देर से मम्मी सोयी ही नही.. हम इंतज़ार कर रहे थे उनके सोने का... अब जाओ please.." प्रिया ने हाथ जोड़कर कहा..
राज उसको कुछ पल गौर से देखता रहा..," क्या कहा? तुम... प्रिया हो.. झूठ क्यूँ बोल रही हो... मुझे भागने के लिए..."
"सच्ची राज तुम्हारी कसम.. उस वक्त मैंने यूँ ही झूठ बोल दिया था .. मैं ही प्रिया हूँ..." प्रिया रह रह कर दरवाजे की और देख रही था .. उसको लग रहा था मम्मी बस आने ही वाली हैं...
"क्यूँ? उस वक्त तुमने झूठ क्यूँ बोला..? मैं नही मानता.. झूठ तुम अब बोल रही हो.." राज बाथरूम से बाहर निकलने को तैयार ही नही था ..
"व..वो मुझे उस वक्त डर लग रहा था .. तुम मेरे पास आ रहे थे .. इसीलिए", कहते हुए प्रिया की नजरें शर्म के मारे जमीन में गड़ गई .. उसके बाद वह कुछ न बोली.. बस अपने हाथ बांधे खड़ी रही..
"पर तुम्हे ऐसा क्यूँ लगा की ख़ुद को रिया कह देने पर मैं तुम्हारी और नही आऊंगा.. ?"
प्रिया कुछ न बोली.. जवाब उसको मालूम था .. उसको मालूम था की राज उस'से प्यार करता है.. वह ऐसे ही नजरें झुकाए खड़ी रही..."अच्छा.. बस एक बात बता दो.. अगर तुम्हे मेरे आगे बढ़ने से इतना ही डर लगता है तो फ़िर मुझे बुलाया क्यूँ..?" राज ने प्रिया को ऊपर से नीचे तक देखा.. वो रात के खुले कपडों में कामुकता का भण्डार लग रही थी ....
" मैंने बोला तोह था .. मैंने तोह अपनी फाइल मंगवाई थी .. तुम समझ क्यूँ नही रहे.. मुसीबत आ जायेगी.. please निकलो यहाँ से..!" प्रिया ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए..
"ठीक है.. चला जाऊँगा... एक बात बता दो.." राज बाथरूम से बाहर आ गया..
"क्या?.. जल्दी बोलो!" प्रिया ने खिन्न होते हुए कहा..
"तुम्हे मैं अच्छा नही लगता क्या?" राज ने उसकी एक तरफ़ देखती हुयी आंखों में झाँका..सुनते ही प्रिया की आँखें उसकी और घूम गई.. कितना अच्छा लगा था .. उसके मुंह से ये सब सुन'ना .. अगले ही पल उसने नजरें हटा कर कुछ बोलने की कोशिश की.. पर जैसे उसकी जुबान पर ताला लग गया.. राज के बारे में वो जितना सोचती थी .. जो सोचती थी .. वो निकल ही नही पाया...
"बोलो न.. मैं तुम्हे अच्छा लगता हूँ या नही... फ़िर मैं चला जाऊँगा.. तुम्हारी कसम.." कहते हुए राज ने आगे बढ़ कर प्रिया का हाथ पकड़ लिया...
"मुझे नही पता.. मैं जा रही हूँ.. तुम्हे जब जाना हो.. चले जाना ..!" प्रिया ने ताला टेबल पर रखा और बाहर की और जाने लगी.. पर राज ने उसका हाथ पकड़ रखा था .. मजबूती से.. प्रिया ने अपना हाथ छुडाने की कोशिश की तोह राज ने उसको अपनी और खींच लिया.. प्रिया को लगा जैसे उसमें जान ही नही बची.. उसने राज के आगोश में आने से बचने की कोशिश तक नही की और अगले ही पल वो उसकी बाहों में थी .."ये क्या बदतमीजी है.. छोडो मुझे.." पता नही प्रिया के मुंह से ये बात निकली कैसे.. और कहाँ से.. न तोह उसका मन ही.. न उसका खूबसूरत और मुलायम बदन उसकी बात के samarthan में था .. प्रिया का कुंवारा बदन.. एक दम खिल सा गया था .. राज की बाँहों में आते ही.. ढीले कपड़े भी छातियों पर टाइट हो गए थे .. जो राज के सीने से छू गई थी ...
"बदतमीजी का क्या मतलब है.. मैं तोह पूछ रहा हूँ.. बता दो.. मैं तुम्हे छोड़ दूंगा... और चला जाऊँगा.." प्रिया के बदन की महक इतनी करीब से महसूस करके राज का रोम रोम बाग़ बाग़ हो गया.. प्रिया को छोड़ने की बजे उसने अपना हाथ उसकी पतली कमर में दाल लिया.. प्रिया की तेज़ हो चुकी गरम साँसों से वह उत्तेजित भी हो गया था .. उसकी आंखों के सामने गाँव वाला दृश्य जीवंत हो उठा.. वह प्रिया को भी उसी तरह देखने को लालायित हो उठा.. जैसे उसने खेतों में कामिनी को देखा था ... बिना कोई कपड़ा तन पर डाले... उसकी उंगलियाँ प्रिया की कमर पर सख्त हो चली थी .. और उसको अपनी और खींच रही थी ...
कमाल की बात तोह ये थी ki प्रिया के शरीर से इन् सबका हल्का सा भी विरोध न होने पर भी प्रिया की जुबान हार मान'ने का नाम तक नही ले रही थी .. अपनी जाँघों से थोड़ा सा ऊपर प्रिया को 'कुछ' चुभ रहा ठा.. प्रिया जानती थी की 'ये' क्या है..? उसको ऐसा लगा जैसे वो आसमान से गिर रही है.. इतना हल्का.. इतना रोमांचक.. और इतना आनंददायी.. दिल चाह रहा था की वह अपना हाथ भी राज की कमर से चिपका ले और उस'से और jyada चिपक जाए.. इस अभ्हूत्पूर्व आनंद को दोगुना करने के लिए.. पर उसकी जुबान कुछ और ही बोल रही थी ..," ये ग़लत है राज.. छोडो मुझे.. मुझे जाने दो.. मुझे डर लग रहा है.. जाने दो मुझे.. छोडो."
कहते हुए उसने प्रतिरोध करने की कोशिश की.. पर उसके बदन ने उसका साथ ही नही दिया.. वह यूँही चिपका रहा.. प्रिया अब राज की आंखों में झांक रही थी .. उसकी आंखों में सहमती भी थी .. और विरोध के भावः भी.. प्यार था और नाराजगी भी.. फंसने का डर भी था और और पास आने की तमन्ना भी... पर राज ने सिर्फ़ वही देखा जो वो देखना चाह रहा था ... इतनी देर से उसके होंटों के पास ही खिले गुलाब की पंखुडियों जैसे प्रिया के गुलाबी होंटों को नजरअंदाज करना वैसे भी असंभव था ... राज ने अपना चेहरा झुकाया और प्रिया की नामुराद जुबान को बंद कर दिया.. प्रिया रोमांच की दुनिया के इस सर्वप्रथम अहसास को sah नही पाई.. कुछ देर तक तोह उसकी समझ में कुछ आया ही नही..
.. उसकी जांघें भीच गई.. जाँघों के बीच बैठी राज के सपनो की रानी तिलमिला उठी.. chhatpata उठी.. और जैसे ही उसको होश आया अपने होंटों को राज के होंटों से मुक्त किया और बरस पड़ी.. मैं तुम्हे ऐसा नही समझती थी.. राज! तुम भी दूसरो के जैसे हो.. गंदे.. छोडो मुझे..."
अब तक प्रिया के हल्के फुल्के विरोध को नजरअंदाज कर रहा राज हुक्का बक्का रह गया.. प्रिया द्वारा उसको ' दूसरो के जैसा ' बोला जन उसको बिल्कुल गंवारा नही हुआ और प्रिया को अपने बहुपास से आजाद कर दिया... पर हिला नही.. वहीँ खड़ा रहा..
प्रिया को अचानक ऐसा लगा की अभी अभी उसकी जवानी की बगियाँ में बसंती फूल खिले हों.. और अचानक पतझड़ भी आ गया हो... उसकी समझ नही आ रहा था की वो क्या करे.. सॉरी बोलकर उस'से चिपक जाए.. या सॉरी बोलकर नीचे भाग जाए.. उसने najarein उठाकर राज की आंखों में झाँका.. राज की आंखों से अब बे-इज्जत होने का निर्मम भावः टपक रहा ठा.. पर वह फ़िर भी एकटक देखता रहा.. उसकी आंखों में... हड़बड़ी में प्रिया कुछ न बोल पाई.. न 'ऐसे' सॉरी.. न 'वैसे' सॉरी.. अचानक मुडी और भाग गई.. राज को वहीँ छोड़ कर...
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नीचे बेद पर आकर वह गुमसुम सी लेट गई...
"क्या हुआ? इतनी देर क्यूँ लगा दी प्रिया। मैं तोह dari हुयी थी .." रिया प्रिया की और सरक आई...प्रिया कुछ न बोली.. उसकी आँखें नम हो गई थी ...
"प्रिया..!" रिया ने उसको पकड़ कर हिला दिया..,"क्या हुआ..? बता तोह। "
"कुछ नही..!" और प्रिया ने रिया को अपनी बाहों में जकड लिया.. पर वो 'मरदाना' अहसास यहाँ कैसे मिलता.. वो सुबकने लगी...
"बता तोह क्या हुआ..? मैं तेरी बहिन नही हूँ क्या..?" रिया को लगा 'कुछ' न 'कुछ' तोह हुआ ही है.. दोनों में..."
"मैं अभी आई..." कहते ही वह उठकर बाहर भाग गई.. इस बार उसको मम्मी का डर भी रोक नही पाया..ऊपर जाते ही वह कमरे में गई.. वहां कोई नही था .. अब जाकर उसको 'सॉरी' बोलने की akal आई थी .. चिपक कर.. उसको लगा कुछ मिलते ही खो गया.. कोई अपना सा.. कोई प्यारा सा.. वह बाथरूम में गई.. chaaron और देखा और बाहर छत पर आ गई.. और घर की मुंडेर पर खड़ी होकर इस तरह देखने लगी मनो राज दिख गया तोह अभी बुला लेगी... वापस.. कह देगी.. वो सबके जैसा नही है.. वो उसका राज है.. कह देगी की वो उससे प्यार करती है.. कह देगी की उसके शरीर की धड़कने अब सिर्फ़ उसके ही लिए हैं..पर कहीं कुछ नही मिला.. वापस कमरे में आई और तकिये को अपनी छातियों पर जोर से दबाकर उलटी लेट गई.. बेजान तकिया उसकी तड़प कहाँ से समझता....
तब तक रिया भी ऊपर ही आ गई," क्या हुआ प्रिया.. उसने कुछ ग़लत किया क्या?"
प्रिया का रुदन अपनी हमराज को सामने देखते ही सामने आ गया," मैंने ग़लत किया रिया.. मैंने उसको खो दिया.." कहकर प्रिया फ़िर से रिया से जा चिपकी...
"बता न यार.. हुआ क्या?" रिया ने उसके आंसू पौंछते हुए कहा...वह अपने प्यार का इजहार करने आया था .. मैंने ठुकरा दिया.. मैंने उसको बे-इज्जत कर दिया रिया.. मैंने उसको खो दिया..." और प्रिया ने सब-कुछ बता दिया।
"पागल! जब तुझे वो अच्छा लगता है तोह तुने ऐसा किया ही क्यूँ..?" रिया ने राज का पक्ष लिया...
"मुझे डर लग रहा ठा कहीं वो आगे न बढ़ जाए.... मुझे सब कुछ इतना अच्छा लग रहा था की मुझे लगा.. मैं उसको रोक नही पाउंगी.. मैं ख़ुद ही बहकने लगी थी रिया.. उसने पता नही क्या कर दिया था ..." प्रिया रिया के सामने रो रही थी .. अपनी हालत बयां कर रही थी ...
"पर तू आराम से भी तोह कह सकती थी .. उसको इतना बुरा भला कहने की क्या जरुरत थी ..."
"मुझे पता था .. वो नही मानेगा.. आराम से कहने से... इसीलिए.." प्रिया ने सफाई दी....
"चल कोई बात नही... सुबह देखते हैं.. आजा.. मम्मी जाग गई तोह प्रॉब्लम आ जायेगी..." रिया ने प्रिया का हाथ पकड़ कर कहा....
"तू उसको manaa लेगी न pleese ... मेरे लिए.. उसको कह देना.. अब मैं कुछ नही कहूँगी.. चाहे वो कुछ भी कर ले...." प्रिया उठते हुए बोली...
"चिंता मत कर.. तू मेरा कमाल देखना... अगर वो प्यार करता है तोह कहीं जाने वाला नही..." रिया ने बाथरूम का दरवाजा बंद करके कमरे का ताला लगाया और दोनों नीचे चल पड़ी..
नीचे आते हुए दोनों खिड़की के पास रुकी.. राज की खिड़की बंद थी .. प्रिया ने रुन्वासी सी होकर रिया की आंखों में झाँका और नीचे चली गई........
"कमाल है.. तुम्हे... मैं ही.. मतलब मैं आ गई न.. अब भागो जल्दी..!" प्रिया के बाल बिखरे हुए थे .. और जागने की वजह से उसकी आँखें लाल हो गई थी ..
राज अब काफी relax महूस कर रहा था .. उसने तोह 'हद से हद क्या हो सकता है '.. ये तक सोच लिया था .. फ़िर मुफ्त में पीछा छूट'ने पर वह मस्त सा गया था ," प्रिया को भेजो.. उसी की वजह से मेरी दुर्गति हुयी है.. मैं उसको सुनाये बिना नही जाऊँगा.. अब चाहे कुछ भी हो जाए.. क्या कर रही है वो..?"
"सो रही है.. तुम्.. तुम् अपने साथ मुझे भी मरवाओगे.. please जो कुछ कहना सुन'ना है.. कल कह लेना.. कॉलेज में... तुम मेरे घर वालों को नही जान'ते.. जाओ please .." प्रिया का चेहरा देखने लायक हो गया था .. उसके गुलाबी होंटों का रंग फीका पड़ गया
"अच्छा.. मुझे यहाँ बाथरूम में रुकवा कर वो मजे से सो रही है.. मैं नही जाता.. सुबह मेरे साथ तुम दोनों को भी मजा आ जाएगा.." राज को जब पता चला की प्रिया सो रही है तोह उसका गुस्सा सांतवें आसमान पर पहुँच गया..
"तुम इतने जिद्दी क्यूँ हो राज... व्वो मैं ही प्रिया हूँ.. और रिया भी जाग रही है.. तुम्हारे कारण.. पता है इतनी देर से मम्मी सोयी ही नही.. हम इंतज़ार कर रहे थे उनके सोने का... अब जाओ please.." प्रिया ने हाथ जोड़कर कहा..
राज उसको कुछ पल गौर से देखता रहा..," क्या कहा? तुम... प्रिया हो.. झूठ क्यूँ बोल रही हो... मुझे भागने के लिए..."
"सच्ची राज तुम्हारी कसम.. उस वक्त मैंने यूँ ही झूठ बोल दिया था .. मैं ही प्रिया हूँ..." प्रिया रह रह कर दरवाजे की और देख रही था .. उसको लग रहा था मम्मी बस आने ही वाली हैं...
"क्यूँ? उस वक्त तुमने झूठ क्यूँ बोला..? मैं नही मानता.. झूठ तुम अब बोल रही हो.." राज बाथरूम से बाहर निकलने को तैयार ही नही था ..
"व..वो मुझे उस वक्त डर लग रहा था .. तुम मेरे पास आ रहे थे .. इसीलिए", कहते हुए प्रिया की नजरें शर्म के मारे जमीन में गड़ गई .. उसके बाद वह कुछ न बोली.. बस अपने हाथ बांधे खड़ी रही..
"पर तुम्हे ऐसा क्यूँ लगा की ख़ुद को रिया कह देने पर मैं तुम्हारी और नही आऊंगा.. ?"
प्रिया कुछ न बोली.. जवाब उसको मालूम था .. उसको मालूम था की राज उस'से प्यार करता है.. वह ऐसे ही नजरें झुकाए खड़ी रही..."अच्छा.. बस एक बात बता दो.. अगर तुम्हे मेरे आगे बढ़ने से इतना ही डर लगता है तो फ़िर मुझे बुलाया क्यूँ..?" राज ने प्रिया को ऊपर से नीचे तक देखा.. वो रात के खुले कपडों में कामुकता का भण्डार लग रही थी ....
" मैंने बोला तोह था .. मैंने तोह अपनी फाइल मंगवाई थी .. तुम समझ क्यूँ नही रहे.. मुसीबत आ जायेगी.. please निकलो यहाँ से..!" प्रिया ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए..
"ठीक है.. चला जाऊँगा... एक बात बता दो.." राज बाथरूम से बाहर आ गया..
"क्या?.. जल्दी बोलो!" प्रिया ने खिन्न होते हुए कहा..
"तुम्हे मैं अच्छा नही लगता क्या?" राज ने उसकी एक तरफ़ देखती हुयी आंखों में झाँका..सुनते ही प्रिया की आँखें उसकी और घूम गई.. कितना अच्छा लगा था .. उसके मुंह से ये सब सुन'ना .. अगले ही पल उसने नजरें हटा कर कुछ बोलने की कोशिश की.. पर जैसे उसकी जुबान पर ताला लग गया.. राज के बारे में वो जितना सोचती थी .. जो सोचती थी .. वो निकल ही नही पाया...
"बोलो न.. मैं तुम्हे अच्छा लगता हूँ या नही... फ़िर मैं चला जाऊँगा.. तुम्हारी कसम.." कहते हुए राज ने आगे बढ़ कर प्रिया का हाथ पकड़ लिया...
"मुझे नही पता.. मैं जा रही हूँ.. तुम्हे जब जाना हो.. चले जाना ..!" प्रिया ने ताला टेबल पर रखा और बाहर की और जाने लगी.. पर राज ने उसका हाथ पकड़ रखा था .. मजबूती से.. प्रिया ने अपना हाथ छुडाने की कोशिश की तोह राज ने उसको अपनी और खींच लिया.. प्रिया को लगा जैसे उसमें जान ही नही बची.. उसने राज के आगोश में आने से बचने की कोशिश तक नही की और अगले ही पल वो उसकी बाहों में थी .."ये क्या बदतमीजी है.. छोडो मुझे.." पता नही प्रिया के मुंह से ये बात निकली कैसे.. और कहाँ से.. न तोह उसका मन ही.. न उसका खूबसूरत और मुलायम बदन उसकी बात के samarthan में था .. प्रिया का कुंवारा बदन.. एक दम खिल सा गया था .. राज की बाँहों में आते ही.. ढीले कपड़े भी छातियों पर टाइट हो गए थे .. जो राज के सीने से छू गई थी ...
"बदतमीजी का क्या मतलब है.. मैं तोह पूछ रहा हूँ.. बता दो.. मैं तुम्हे छोड़ दूंगा... और चला जाऊँगा.." प्रिया के बदन की महक इतनी करीब से महसूस करके राज का रोम रोम बाग़ बाग़ हो गया.. प्रिया को छोड़ने की बजे उसने अपना हाथ उसकी पतली कमर में दाल लिया.. प्रिया की तेज़ हो चुकी गरम साँसों से वह उत्तेजित भी हो गया था .. उसकी आंखों के सामने गाँव वाला दृश्य जीवंत हो उठा.. वह प्रिया को भी उसी तरह देखने को लालायित हो उठा.. जैसे उसने खेतों में कामिनी को देखा था ... बिना कोई कपड़ा तन पर डाले... उसकी उंगलियाँ प्रिया की कमर पर सख्त हो चली थी .. और उसको अपनी और खींच रही थी ...
कमाल की बात तोह ये थी ki प्रिया के शरीर से इन् सबका हल्का सा भी विरोध न होने पर भी प्रिया की जुबान हार मान'ने का नाम तक नही ले रही थी .. अपनी जाँघों से थोड़ा सा ऊपर प्रिया को 'कुछ' चुभ रहा ठा.. प्रिया जानती थी की 'ये' क्या है..? उसको ऐसा लगा जैसे वो आसमान से गिर रही है.. इतना हल्का.. इतना रोमांचक.. और इतना आनंददायी.. दिल चाह रहा था की वह अपना हाथ भी राज की कमर से चिपका ले और उस'से और jyada चिपक जाए.. इस अभ्हूत्पूर्व आनंद को दोगुना करने के लिए.. पर उसकी जुबान कुछ और ही बोल रही थी ..," ये ग़लत है राज.. छोडो मुझे.. मुझे जाने दो.. मुझे डर लग रहा है.. जाने दो मुझे.. छोडो."
कहते हुए उसने प्रतिरोध करने की कोशिश की.. पर उसके बदन ने उसका साथ ही नही दिया.. वह यूँही चिपका रहा.. प्रिया अब राज की आंखों में झांक रही थी .. उसकी आंखों में सहमती भी थी .. और विरोध के भावः भी.. प्यार था और नाराजगी भी.. फंसने का डर भी था और और पास आने की तमन्ना भी... पर राज ने सिर्फ़ वही देखा जो वो देखना चाह रहा था ... इतनी देर से उसके होंटों के पास ही खिले गुलाब की पंखुडियों जैसे प्रिया के गुलाबी होंटों को नजरअंदाज करना वैसे भी असंभव था ... राज ने अपना चेहरा झुकाया और प्रिया की नामुराद जुबान को बंद कर दिया.. प्रिया रोमांच की दुनिया के इस सर्वप्रथम अहसास को sah नही पाई.. कुछ देर तक तोह उसकी समझ में कुछ आया ही नही..
.. उसकी जांघें भीच गई.. जाँघों के बीच बैठी राज के सपनो की रानी तिलमिला उठी.. chhatpata उठी.. और जैसे ही उसको होश आया अपने होंटों को राज के होंटों से मुक्त किया और बरस पड़ी.. मैं तुम्हे ऐसा नही समझती थी.. राज! तुम भी दूसरो के जैसे हो.. गंदे.. छोडो मुझे..."
अब तक प्रिया के हल्के फुल्के विरोध को नजरअंदाज कर रहा राज हुक्का बक्का रह गया.. प्रिया द्वारा उसको ' दूसरो के जैसा ' बोला जन उसको बिल्कुल गंवारा नही हुआ और प्रिया को अपने बहुपास से आजाद कर दिया... पर हिला नही.. वहीँ खड़ा रहा..
प्रिया को अचानक ऐसा लगा की अभी अभी उसकी जवानी की बगियाँ में बसंती फूल खिले हों.. और अचानक पतझड़ भी आ गया हो... उसकी समझ नही आ रहा था की वो क्या करे.. सॉरी बोलकर उस'से चिपक जाए.. या सॉरी बोलकर नीचे भाग जाए.. उसने najarein उठाकर राज की आंखों में झाँका.. राज की आंखों से अब बे-इज्जत होने का निर्मम भावः टपक रहा ठा.. पर वह फ़िर भी एकटक देखता रहा.. उसकी आंखों में... हड़बड़ी में प्रिया कुछ न बोल पाई.. न 'ऐसे' सॉरी.. न 'वैसे' सॉरी.. अचानक मुडी और भाग गई.. राज को वहीँ छोड़ कर...
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नीचे बेद पर आकर वह गुमसुम सी लेट गई...
"क्या हुआ? इतनी देर क्यूँ लगा दी प्रिया। मैं तोह dari हुयी थी .." रिया प्रिया की और सरक आई...प्रिया कुछ न बोली.. उसकी आँखें नम हो गई थी ...
"प्रिया..!" रिया ने उसको पकड़ कर हिला दिया..,"क्या हुआ..? बता तोह। "
"कुछ नही..!" और प्रिया ने रिया को अपनी बाहों में जकड लिया.. पर वो 'मरदाना' अहसास यहाँ कैसे मिलता.. वो सुबकने लगी...
"बता तोह क्या हुआ..? मैं तेरी बहिन नही हूँ क्या..?" रिया को लगा 'कुछ' न 'कुछ' तोह हुआ ही है.. दोनों में..."
"मैं अभी आई..." कहते ही वह उठकर बाहर भाग गई.. इस बार उसको मम्मी का डर भी रोक नही पाया..ऊपर जाते ही वह कमरे में गई.. वहां कोई नही था .. अब जाकर उसको 'सॉरी' बोलने की akal आई थी .. चिपक कर.. उसको लगा कुछ मिलते ही खो गया.. कोई अपना सा.. कोई प्यारा सा.. वह बाथरूम में गई.. chaaron और देखा और बाहर छत पर आ गई.. और घर की मुंडेर पर खड़ी होकर इस तरह देखने लगी मनो राज दिख गया तोह अभी बुला लेगी... वापस.. कह देगी.. वो सबके जैसा नही है.. वो उसका राज है.. कह देगी की वो उससे प्यार करती है.. कह देगी की उसके शरीर की धड़कने अब सिर्फ़ उसके ही लिए हैं..पर कहीं कुछ नही मिला.. वापस कमरे में आई और तकिये को अपनी छातियों पर जोर से दबाकर उलटी लेट गई.. बेजान तकिया उसकी तड़प कहाँ से समझता....
तब तक रिया भी ऊपर ही आ गई," क्या हुआ प्रिया.. उसने कुछ ग़लत किया क्या?"
प्रिया का रुदन अपनी हमराज को सामने देखते ही सामने आ गया," मैंने ग़लत किया रिया.. मैंने उसको खो दिया.." कहकर प्रिया फ़िर से रिया से जा चिपकी...
"बता न यार.. हुआ क्या?" रिया ने उसके आंसू पौंछते हुए कहा...वह अपने प्यार का इजहार करने आया था .. मैंने ठुकरा दिया.. मैंने उसको बे-इज्जत कर दिया रिया.. मैंने उसको खो दिया..." और प्रिया ने सब-कुछ बता दिया।
"पागल! जब तुझे वो अच्छा लगता है तोह तुने ऐसा किया ही क्यूँ..?" रिया ने राज का पक्ष लिया...
"मुझे डर लग रहा ठा कहीं वो आगे न बढ़ जाए.... मुझे सब कुछ इतना अच्छा लग रहा था की मुझे लगा.. मैं उसको रोक नही पाउंगी.. मैं ख़ुद ही बहकने लगी थी रिया.. उसने पता नही क्या कर दिया था ..." प्रिया रिया के सामने रो रही थी .. अपनी हालत बयां कर रही थी ...
"पर तू आराम से भी तोह कह सकती थी .. उसको इतना बुरा भला कहने की क्या जरुरत थी ..."
"मुझे पता था .. वो नही मानेगा.. आराम से कहने से... इसीलिए.." प्रिया ने सफाई दी....
"चल कोई बात नही... सुबह देखते हैं.. आजा.. मम्मी जाग गई तोह प्रॉब्लम आ जायेगी..." रिया ने प्रिया का हाथ पकड़ कर कहा....
"तू उसको manaa लेगी न pleese ... मेरे लिए.. उसको कह देना.. अब मैं कुछ नही कहूँगी.. चाहे वो कुछ भी कर ले...." प्रिया उठते हुए बोली...
"चिंता मत कर.. तू मेरा कमाल देखना... अगर वो प्यार करता है तोह कहीं जाने वाला नही..." रिया ने बाथरूम का दरवाजा बंद करके कमरे का ताला लगाया और दोनों नीचे चल पड़ी..
नीचे आते हुए दोनों खिड़की के पास रुकी.. राज की खिड़की बंद थी .. प्रिया ने रुन्वासी सी होकर रिया की आंखों में झाँका और नीचे चली गई........