31-12-2018, 03:35 PM
भाग - 17
ऐसा लगता मानो अभी खेतों में से कोई निकल कर उसे धर दबोचेगा, पर ये सिर्फ़ राजू का वहम था।
डर के मारे उसके हाथ-पैर थरथर काँप रहे थे।
फिर अचानक से खेतों में से एक नेवला बड़ी तेज़ी से सड़क पार करके दूसरे तरफ के खेतों में गया। राजू तो डर के मारे चीख पड़ा, पर इतने सुनसान रास्ते पर उसकी चीख सुनने वाला भी नहीं था।
उसे ऐसा लग रहा था कि उसके दिल के धड़कनें रुक जाएंगी। जैसे-तैसे राजू किसी तरह गाँव पहुँचा और चैन की साँस ली। उसने सोच लिया था कि वो कुसुम को बोल देगा कि वो आगे से रात को शहर अकेला नहीं जाएगा, वो बुरी तरह से डरा हुआ था।
उसने दरवाजे पर दस्तक दी। कुसुम तो जैसे उसके ही इंतजार में बैठी थी।
कुसुम- कौन है बाहर?
राजू- जी.. मैं हूँ राजू।
राजू की आवाज़ सुनते ही.. कुसुम के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
उसने जल्दी से दरवाजा खोला।
जैसे दरवाजा खुला राजू ऐसे अन्दर आया..जैसे उसकी मौत उसके पीछे लगी हो, उसका डरा हुआ चेहरा देख कुसुम भी घबरा गई।
राजू सीधा अन्दर चला गया.. कुसुम ने दरवाजा बंद किया और राजू के पीछे आँगन में आ गई।
‘क्या हुआ रे इतना घबराया हुआ क्यों है?’
राजू नीचे चटाई पर बैठ गया, वो सच में बहुत डरा हुआ था। भूत देखा तो नहीं पर उसने भूतों के बारे में सुना ज़रूर था।
‘वो.. वो.. मैं मुझे रास्ते में डर लग रहा था।’ राजू ने घबराहट में हड़बड़ाते हुए कहा।
कुसुम- डर लग रहा था.. किससे?
राजू- वो रास्ते में बहुत अंधेरा था, मैं आगे से रात को नहीं जाऊँगा।
कुसुम को राजू के भोलेपन पर हँसी आ गई।
‘मैं आज यहीं सो जाऊँ मालकिन.. मुझे आज बहुत डर लग रहा है?’ राजू ने कुसुम की तरफ देखते हुए कहा।
राजू की बात सुन कर कुसुम को ऐसा लगा.. मानो आज उसकी मन की मुराद पूरी होने को कोई नहीं रोक सकता।
कुसुम खुश होते हुए- हाँ.. हाँ.. क्यों नहीं.. यहाँ क्यों तू मेरे कमरे में सो जाना। इसमें डरने की क्या बात है.. खाना तो खाया ना तूने?
राजू- हाँ मालकिन.. खाना खा लिया था।
कुसुम- तू चल मेरे कमरे में.. मैं अभी आती हूँ।
यह कह कर कुसुम रसोई में आ गई।
राजू को अब भी ऐसा लग रहा था, जैसे उसके पीछे कोई हो।
वो डरता हुआ कुसुम के कमरे में आ गया, वो सहमा हुए खड़ा था।
थोड़ी देर बाद अचानक कुसुम के अन्दर आने की आहट सुन कर राजू बुरी तरह हिल गया, पर जब कुसुम को उसने देखा.. तो उसकी साँस में साँस आई।
कुसुम हाथ में गिलास लिए खड़ी थी।
उसने गिलास को मेज पर रखा और मुड़ कर दरवाजा बंद कर दिया।
दरवाजा बंद करने के बाद उसने ओढ़ी हुई शाल को उतार कर टाँग दिया।
राजू की हालत का अंदाज़ा कुसुम को हो चुका था, अब वो इस मौके को जाया नहीं होने देना चाहती थी।
वो गिलास को मेज पर से उठाते हुए बोली- तू अभी तक खड़ा है, चल बैठ जा पलंग पर.. और ये ले पी ले।
कुसुम ने हाथ में पकड़ा हुआ गिलास राजू की तरफ बढ़ा दिया।
राजू- यह क्या है मालकिन?
कुसुम- दूध है.. गरम है.. पी ले.. ठंड कम हो जाएगी।
राजू- इसकी क्या जरूरत थी… मालकिन?
कुसुम- ले पकड़ और पी जा..अब ज्यादा बातें ना बना।
राजू ने कुसुम के हाथ से गिलास ले लिया और खड़े-खड़े पीने लगा।
कुसुम बिस्तर के सामने खड़ी हो गई और अपनी साड़ी उतारने लगी.. राजू दूध का घूँट भरते हुए उसके गदराए बदन को देख रहा था, कमरे में लालटेन की रोशनी चारों तरफ फैली हुई थी।
कुसुम ने होंठों पर कामुक मुस्कान लिए हुए अपने मम्मे उठाते हुए राजू से कहा- आराम से बैठ कर ठीक से ‘दूध’ पी, ऐसे कब तक खड़ा रहेगा।
जो कुसुम बोलने वाली थी, राजू को कुछ-कुछ समझ में आ गया था, पर राजू ने उस तरफ़ ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
कुसुम ने अपनी साड़ी उतार कर रख दी।
अब उसके बदन पर महरून रंग का ब्लाउज और पेटीकोट ही शेष था।
कुसुम उसमें में बला की खूबसूरत लग रही थी।
राजू अपनी नज़रें कुसुम पर से हटा नहीं पा रहा था।
कुसुम बिस्तर पर आकर बैठ गई और राजू के सर को सहलाते हुए बोली- अरे अंधेरे से क्या डरना.. तू रोज रात पीछे अकेला ही सोता है ना.. फिर आज कैसे डर गया तू?
राजू- वो मालकिन मैं लालटेन जला कर सोता हूँ।
कुसुम- अच्छा ठीक है, आगे से कभी तुझे रात को नहीं भेजूँगी.. चल अब आराम से ‘दूध’ पी ले।
राजू- मालकिन वो मुझसे पिया नहीं जा रहा है।
कुसुम- क्यों क्या हुआ?
राजू- आपने इसमें घी क्यों डाल दिया? मुझे दूध मैं घी पसंद नहीं है।
कुसुम- तेरे लिए अच्छा है घी.. पी जा मुझे पता है.. आज कल तू बहुत ‘मेहनत’ करता है।
कुसुम की बात सुन कर राजू एकदम से झेंप गया।
राजू ने दूध खत्म किया और गिलास को मेज पर रख दिया।
जैसे ही राजू ने गिलास को मेज पर रख कर मुड़ा तो उसने देखा कि कुसुम रज़ाई के अन्दर घुसी हुई उसकी तरफ खा जाने वाली नज़रों से देख रही है।
‘अब वहाँ खड़ा क्या है… सोना नहीं है क्या?’
कुसुम ने राजू से कहा..
पर राजू को समझ में नहीं आ रहा था कि वो सोएगा कहाँ? क्योंकि वो कुसुम के साथ बिस्तर पर तो सोने के बारे में सोच भी नहीं सकता था।
राजू- पर मालकिन मैं कहाँ लेटूँगा?
कुसुम- अरे इतना बड़ा पलंग है.. यहीं सोएगा और कहाँ?
राजू- आपके साथ मालकिन.. पर..!
कुसुम- चल कुछ नहीं होता.. आ जा।
यह कह कर कुसुम ने एक तरफ से रज़ाई को थोड़ा सा ऊपर उठा लिया, राजू काँपते हुए कदमों के साथ बिस्तर पर चढ़ गया और कुसुम के साथ रज़ाई में घुस गया।
जैसे ही वो कुसुम के पास लेटा… कुसुम के बदन से उठ रही मंत्रमुग्ध कर देने वाली खुश्बू ने उससे पागल बना दिया। कुसुम उसके बेहद करीब लेटी हुई थी।
दोनों एक-दूसरे के जिस्म से उठ रही गरमी को साफ़ महसूस कर पा रहे थे।
कुसुम- राजू बेटा.. मेरी जाँघों में बहुत दर्द हो रहा है, थोड़ी देर दबा देगा?
राजू- जी मालकिन.. अभी दबा देता हूँ।
कुसुम (पेट के बल उल्टा लेटते हुए)- सच राजू तू कितना अच्छा है.. मेरा हर दिया हुआ काम कर देता है… चल ये रज़ाई हटा दे और मेरी जाँघों की अच्छे से मालिश कर दे।
जैसे ही कुसुम ने राजू को मालिश की बात बोली, उससे उस रात की घटना याद आ गई, जब कुसुम ने अपनी जाँघों की मालिश करवाते हुए अपनी चूत का दीदार राजू को करवाया था।
‘मालकिन.. तेल से मालिश करूँ?’ राजू ने उत्सुक होते हुए पूछा।
कुसुम- हाँ.. तेल ले आ और अच्छे से मालिश कर दे।
राजू बिस्तर से उतर कर सामने रखी तेल की बोतल उठा कर जैसे ही पलटा तो उसका कलेजा हलक में आ गया।
सामने कुसुम उल्टी लेटी हुई थी.. पीछे से उसके भारी चूतड़ महरून रंग के पेटीकोट में पहाड़ की तरह उभरे हुए थे, जिसे देख कर राजू का लण्ड फड़फड़ाने लगा और वहीं उसके पैर जम गए।
कुसुम- वहाँ क्यों रुक गया.. चल आजा, बहुत सर्दी है।
राजू- वो मालकिन मुझे बहुत तेज पेशाब आ रहा है।
कुसुम- तो जाकर कर आ.. मैंने कहाँ रोक रखा है तुझे?
राजू- पर वो मालकिन पीछे अंधेरा होगा।
कुसुम (अपने सर को झटके हुए)- चल मैं तेरे साथ चलती हूँ।
जब दोनों कमरे से निकल कर घर के पीछे की तरफ आए तो उन्होंने देखा.. बाहर जोरों से बारिश हो रही है।
‘जा तू मूत के आ.. मैं यहीं खड़ी हुई हूँ.. नहीं तो मैं भी भीग जाऊँगी।’
राजू ने ‘हाँ’ में सर हिलाया और गुसलखाने की तरफ भागते हुए गया.. पर बारिश से बच ना पाया, उसके कपड़े एकदम गीले हो गए।
जब राजू वापस आया तो कुसुम ने देखा वो पूरी तरह से भीगा हुआ है।
कुसुम- तू यहीं रुक.. मैं तेरे लिए कुछ लाती हूँ.. अगर गीले कपड़े अन्दर लेकर गया तो सारा घर गीला कर देगा।
यह कह कर कुसुम अन्दर चली गई।
बारिश के कारण सर्दी और बढ़ गई थी। थोड़ी देर बाद जब कुसुम वापिस आई.. तो उसके हाथ में एक लुँगी थी।
‘और तो कुछ मिला नहीं.. अब यही पहन ले..’ कुसुम ने उसकी तरफ वो लुँगी बढ़ा दी और पलट कर कमरे के तरफ जाने लगी।
‘सारे कपड़े निकाल दे और इसे पहन कर अन्दर आ जा… बाहर बहुत सर्दी है।’
कुसुम के जाने के बाद राजू ने अपने गीले कपड़े उतारे और वो लुँगी पहन कर कपड़ों को वहीं टाँग दिया और कमरे के तरफ चल पड़ा।
जब राजू कुसुम के कमरे में पहुँचा तो कुसुम बिस्तर पर लेटी हुई थी।
‘दरवाजा बंद कर दे।’ कुसुम ने राजू के बदन को घूरते हुए कहा।
उसकी नज़र राजू के मांसल और चिकने बदन पर से हट नहीं रही थी, राजू ने दरवाजा बंद किया और तेल की बोतल उठा कर कुसुम के बिस्तर की तरफ बढ़ा।
कुसुम ने देखा राजू बुरी तरह से काँप रहा है, उसे राजू पर तरस आ गया।
कुसुम- अरे तू तो बहुत काँप रहा है.. चल छोड़ ये मालिश-वालिश आज.. लेट जा।
यह कह कर कुसुम ने रज़ाई को एक तरफ से उठा कर अन्दर आने के लिए इशारा किया।
राजू को यकीन नहीं हो रहा था कि वो पेटीकोट और ब्लाउज में लेटी हुई हुस्न की देवी कुसुम के बेहद करीब सोने वाला है।
यह देखते और सोचते ही राजू के बेजान लण्ड में जान पड़ने लगी और खड़ा होकर उसकी पहनी हुई लुँगी को आगे से उठाने लगा, जिस पर कुसुम की नज़र पड़ते ही, कुसुम के होंठों पर कामुक मुस्कान फ़ैल गई।
राजू घबराते हुए कुसुम के पास जाकर रज़ाई में घुस गया।
ऐसा लगता मानो अभी खेतों में से कोई निकल कर उसे धर दबोचेगा, पर ये सिर्फ़ राजू का वहम था।
डर के मारे उसके हाथ-पैर थरथर काँप रहे थे।
फिर अचानक से खेतों में से एक नेवला बड़ी तेज़ी से सड़क पार करके दूसरे तरफ के खेतों में गया। राजू तो डर के मारे चीख पड़ा, पर इतने सुनसान रास्ते पर उसकी चीख सुनने वाला भी नहीं था।
उसे ऐसा लग रहा था कि उसके दिल के धड़कनें रुक जाएंगी। जैसे-तैसे राजू किसी तरह गाँव पहुँचा और चैन की साँस ली। उसने सोच लिया था कि वो कुसुम को बोल देगा कि वो आगे से रात को शहर अकेला नहीं जाएगा, वो बुरी तरह से डरा हुआ था।
उसने दरवाजे पर दस्तक दी। कुसुम तो जैसे उसके ही इंतजार में बैठी थी।
कुसुम- कौन है बाहर?
राजू- जी.. मैं हूँ राजू।
राजू की आवाज़ सुनते ही.. कुसुम के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
उसने जल्दी से दरवाजा खोला।
जैसे दरवाजा खुला राजू ऐसे अन्दर आया..जैसे उसकी मौत उसके पीछे लगी हो, उसका डरा हुआ चेहरा देख कुसुम भी घबरा गई।
राजू सीधा अन्दर चला गया.. कुसुम ने दरवाजा बंद किया और राजू के पीछे आँगन में आ गई।
‘क्या हुआ रे इतना घबराया हुआ क्यों है?’
राजू नीचे चटाई पर बैठ गया, वो सच में बहुत डरा हुआ था। भूत देखा तो नहीं पर उसने भूतों के बारे में सुना ज़रूर था।
‘वो.. वो.. मैं मुझे रास्ते में डर लग रहा था।’ राजू ने घबराहट में हड़बड़ाते हुए कहा।
कुसुम- डर लग रहा था.. किससे?
राजू- वो रास्ते में बहुत अंधेरा था, मैं आगे से रात को नहीं जाऊँगा।
कुसुम को राजू के भोलेपन पर हँसी आ गई।
‘मैं आज यहीं सो जाऊँ मालकिन.. मुझे आज बहुत डर लग रहा है?’ राजू ने कुसुम की तरफ देखते हुए कहा।
राजू की बात सुन कर कुसुम को ऐसा लगा.. मानो आज उसकी मन की मुराद पूरी होने को कोई नहीं रोक सकता।
कुसुम खुश होते हुए- हाँ.. हाँ.. क्यों नहीं.. यहाँ क्यों तू मेरे कमरे में सो जाना। इसमें डरने की क्या बात है.. खाना तो खाया ना तूने?
राजू- हाँ मालकिन.. खाना खा लिया था।
कुसुम- तू चल मेरे कमरे में.. मैं अभी आती हूँ।
यह कह कर कुसुम रसोई में आ गई।
राजू को अब भी ऐसा लग रहा था, जैसे उसके पीछे कोई हो।
वो डरता हुआ कुसुम के कमरे में आ गया, वो सहमा हुए खड़ा था।
थोड़ी देर बाद अचानक कुसुम के अन्दर आने की आहट सुन कर राजू बुरी तरह हिल गया, पर जब कुसुम को उसने देखा.. तो उसकी साँस में साँस आई।
कुसुम हाथ में गिलास लिए खड़ी थी।
उसने गिलास को मेज पर रखा और मुड़ कर दरवाजा बंद कर दिया।
दरवाजा बंद करने के बाद उसने ओढ़ी हुई शाल को उतार कर टाँग दिया।
राजू की हालत का अंदाज़ा कुसुम को हो चुका था, अब वो इस मौके को जाया नहीं होने देना चाहती थी।
वो गिलास को मेज पर से उठाते हुए बोली- तू अभी तक खड़ा है, चल बैठ जा पलंग पर.. और ये ले पी ले।
कुसुम ने हाथ में पकड़ा हुआ गिलास राजू की तरफ बढ़ा दिया।
राजू- यह क्या है मालकिन?
कुसुम- दूध है.. गरम है.. पी ले.. ठंड कम हो जाएगी।
राजू- इसकी क्या जरूरत थी… मालकिन?
कुसुम- ले पकड़ और पी जा..अब ज्यादा बातें ना बना।
राजू ने कुसुम के हाथ से गिलास ले लिया और खड़े-खड़े पीने लगा।
कुसुम बिस्तर के सामने खड़ी हो गई और अपनी साड़ी उतारने लगी.. राजू दूध का घूँट भरते हुए उसके गदराए बदन को देख रहा था, कमरे में लालटेन की रोशनी चारों तरफ फैली हुई थी।
कुसुम ने होंठों पर कामुक मुस्कान लिए हुए अपने मम्मे उठाते हुए राजू से कहा- आराम से बैठ कर ठीक से ‘दूध’ पी, ऐसे कब तक खड़ा रहेगा।
जो कुसुम बोलने वाली थी, राजू को कुछ-कुछ समझ में आ गया था, पर राजू ने उस तरफ़ ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
कुसुम ने अपनी साड़ी उतार कर रख दी।
अब उसके बदन पर महरून रंग का ब्लाउज और पेटीकोट ही शेष था।
कुसुम उसमें में बला की खूबसूरत लग रही थी।
राजू अपनी नज़रें कुसुम पर से हटा नहीं पा रहा था।
कुसुम बिस्तर पर आकर बैठ गई और राजू के सर को सहलाते हुए बोली- अरे अंधेरे से क्या डरना.. तू रोज रात पीछे अकेला ही सोता है ना.. फिर आज कैसे डर गया तू?
राजू- वो मालकिन मैं लालटेन जला कर सोता हूँ।
कुसुम- अच्छा ठीक है, आगे से कभी तुझे रात को नहीं भेजूँगी.. चल अब आराम से ‘दूध’ पी ले।
राजू- मालकिन वो मुझसे पिया नहीं जा रहा है।
कुसुम- क्यों क्या हुआ?
राजू- आपने इसमें घी क्यों डाल दिया? मुझे दूध मैं घी पसंद नहीं है।
कुसुम- तेरे लिए अच्छा है घी.. पी जा मुझे पता है.. आज कल तू बहुत ‘मेहनत’ करता है।
कुसुम की बात सुन कर राजू एकदम से झेंप गया।
राजू ने दूध खत्म किया और गिलास को मेज पर रख दिया।
जैसे ही राजू ने गिलास को मेज पर रख कर मुड़ा तो उसने देखा कि कुसुम रज़ाई के अन्दर घुसी हुई उसकी तरफ खा जाने वाली नज़रों से देख रही है।
‘अब वहाँ खड़ा क्या है… सोना नहीं है क्या?’
कुसुम ने राजू से कहा..
पर राजू को समझ में नहीं आ रहा था कि वो सोएगा कहाँ? क्योंकि वो कुसुम के साथ बिस्तर पर तो सोने के बारे में सोच भी नहीं सकता था।
राजू- पर मालकिन मैं कहाँ लेटूँगा?
कुसुम- अरे इतना बड़ा पलंग है.. यहीं सोएगा और कहाँ?
राजू- आपके साथ मालकिन.. पर..!
कुसुम- चल कुछ नहीं होता.. आ जा।
यह कह कर कुसुम ने एक तरफ से रज़ाई को थोड़ा सा ऊपर उठा लिया, राजू काँपते हुए कदमों के साथ बिस्तर पर चढ़ गया और कुसुम के साथ रज़ाई में घुस गया।
जैसे ही वो कुसुम के पास लेटा… कुसुम के बदन से उठ रही मंत्रमुग्ध कर देने वाली खुश्बू ने उससे पागल बना दिया। कुसुम उसके बेहद करीब लेटी हुई थी।
दोनों एक-दूसरे के जिस्म से उठ रही गरमी को साफ़ महसूस कर पा रहे थे।
कुसुम- राजू बेटा.. मेरी जाँघों में बहुत दर्द हो रहा है, थोड़ी देर दबा देगा?
राजू- जी मालकिन.. अभी दबा देता हूँ।
कुसुम (पेट के बल उल्टा लेटते हुए)- सच राजू तू कितना अच्छा है.. मेरा हर दिया हुआ काम कर देता है… चल ये रज़ाई हटा दे और मेरी जाँघों की अच्छे से मालिश कर दे।
जैसे ही कुसुम ने राजू को मालिश की बात बोली, उससे उस रात की घटना याद आ गई, जब कुसुम ने अपनी जाँघों की मालिश करवाते हुए अपनी चूत का दीदार राजू को करवाया था।
‘मालकिन.. तेल से मालिश करूँ?’ राजू ने उत्सुक होते हुए पूछा।
कुसुम- हाँ.. तेल ले आ और अच्छे से मालिश कर दे।
राजू बिस्तर से उतर कर सामने रखी तेल की बोतल उठा कर जैसे ही पलटा तो उसका कलेजा हलक में आ गया।
सामने कुसुम उल्टी लेटी हुई थी.. पीछे से उसके भारी चूतड़ महरून रंग के पेटीकोट में पहाड़ की तरह उभरे हुए थे, जिसे देख कर राजू का लण्ड फड़फड़ाने लगा और वहीं उसके पैर जम गए।
कुसुम- वहाँ क्यों रुक गया.. चल आजा, बहुत सर्दी है।
राजू- वो मालकिन मुझे बहुत तेज पेशाब आ रहा है।
कुसुम- तो जाकर कर आ.. मैंने कहाँ रोक रखा है तुझे?
राजू- पर वो मालकिन पीछे अंधेरा होगा।
कुसुम (अपने सर को झटके हुए)- चल मैं तेरे साथ चलती हूँ।
जब दोनों कमरे से निकल कर घर के पीछे की तरफ आए तो उन्होंने देखा.. बाहर जोरों से बारिश हो रही है।
‘जा तू मूत के आ.. मैं यहीं खड़ी हुई हूँ.. नहीं तो मैं भी भीग जाऊँगी।’
राजू ने ‘हाँ’ में सर हिलाया और गुसलखाने की तरफ भागते हुए गया.. पर बारिश से बच ना पाया, उसके कपड़े एकदम गीले हो गए।
जब राजू वापस आया तो कुसुम ने देखा वो पूरी तरह से भीगा हुआ है।
कुसुम- तू यहीं रुक.. मैं तेरे लिए कुछ लाती हूँ.. अगर गीले कपड़े अन्दर लेकर गया तो सारा घर गीला कर देगा।
यह कह कर कुसुम अन्दर चली गई।
बारिश के कारण सर्दी और बढ़ गई थी। थोड़ी देर बाद जब कुसुम वापिस आई.. तो उसके हाथ में एक लुँगी थी।
‘और तो कुछ मिला नहीं.. अब यही पहन ले..’ कुसुम ने उसकी तरफ वो लुँगी बढ़ा दी और पलट कर कमरे के तरफ जाने लगी।
‘सारे कपड़े निकाल दे और इसे पहन कर अन्दर आ जा… बाहर बहुत सर्दी है।’
कुसुम के जाने के बाद राजू ने अपने गीले कपड़े उतारे और वो लुँगी पहन कर कपड़ों को वहीं टाँग दिया और कमरे के तरफ चल पड़ा।
जब राजू कुसुम के कमरे में पहुँचा तो कुसुम बिस्तर पर लेटी हुई थी।
‘दरवाजा बंद कर दे।’ कुसुम ने राजू के बदन को घूरते हुए कहा।
उसकी नज़र राजू के मांसल और चिकने बदन पर से हट नहीं रही थी, राजू ने दरवाजा बंद किया और तेल की बोतल उठा कर कुसुम के बिस्तर की तरफ बढ़ा।
कुसुम ने देखा राजू बुरी तरह से काँप रहा है, उसे राजू पर तरस आ गया।
कुसुम- अरे तू तो बहुत काँप रहा है.. चल छोड़ ये मालिश-वालिश आज.. लेट जा।
यह कह कर कुसुम ने रज़ाई को एक तरफ से उठा कर अन्दर आने के लिए इशारा किया।
राजू को यकीन नहीं हो रहा था कि वो पेटीकोट और ब्लाउज में लेटी हुई हुस्न की देवी कुसुम के बेहद करीब सोने वाला है।
यह देखते और सोचते ही राजू के बेजान लण्ड में जान पड़ने लगी और खड़ा होकर उसकी पहनी हुई लुँगी को आगे से उठाने लगा, जिस पर कुसुम की नज़र पड़ते ही, कुसुम के होंठों पर कामुक मुस्कान फ़ैल गई।
राजू घबराते हुए कुसुम के पास जाकर रज़ाई में घुस गया।