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Fantasy गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार
#16
भाग - 16

उसने खाना खत्म किया और उठ कर अपनी प्लेट रखने के लिए रसोई में चला गया।

जब राजू रसोई में प्लेट रखने के लिए जा रहा था, तब कुसुम को राजू के जेब में से कुछ खनकने की आवाज़ सुनाई दी।
जिससे कुसुम थोड़ी चौंक गई।

राजू जब प्लेट रख कर वापिस आया तो कुसुम ने उससे अपने पास बुला लिया।

कुसुम पलंग पर बैठते हुए- अरे राजू इधर आ.. क्या है तेरी जेब में?

कुसुम की बात सुन कर राजू का रंग उड़ गया।

जब वो शहर गया था.. तो वहाँ से वो चमेली के लिए पायल खरीद कर लाया था, पर चमेली को देने का मौका नहीं मिला था।

अब वो बेचारा क्या कहता कि जो पैसे कुसुम ने उस रात राजू को दिए थे, उसमें से वो चमेली के लिए पायल ले आया है।

राजू को यूँ चुप खड़ा देख कर कुसुम ने फिर से राजू से पूछा, पर अब राजू कर भी क्या सकता था, चारों तरफ से फँस चुका था।

‘वो मालकिन.. वो पायल है..’

कुसुम थोड़ा परेशान होते हुए- पायल कहाँ से लाया तू.. दिखा निकाल कर..

राजू ने पायल निकाल कर कुसुम की तरफ बढ़ा दी।

‘क्यों रे, कहाँ से लाया और क्या करेगा इसका?’

राजू- वो मालकिन जब मैं शहर गया था ना.. तब खरीदी थी।

राजू के हाथ-पैर डर के मारे काँप रहे थे।

कुसुम गुस्से से राजू की ओर देखते हुए- सच-सच बोल.. किसने कहा था.. पायल लाने के लिए?

कुसुम की कड़क आवाज़ सुन कर राजू की तो मानो जैसे गाण्ड फट गई हो।
उसका चेहरा ऐसे लटक गया जैसे अभी रो पड़ेगा।

‘किसी ने नहीं कहा मालकिन..’

कुसुम- तो फिर किसके लिए लाया था और बोल तुम्हारे पास पैसे कहाँ से आए?

राजू- वो.. वो.. मालकिन..!

यह कहते-कहते राजू एकदम चुप हो गया और सर झुका कर कुसुम के सामने खड़ा हो गया, जैसे उसने बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो।

कुसुम- देख.. मैं कहती हूँ, अगर तू अपनी भलाई चाहता है, तो सब सच-सच मुझे बता दे.. वरना अगर सेठ जी को मैंने बता दिया तो तेरी खैर नहीं.. बोलता क्यूँ नहीं.. बोल?

राजू- वो मालकिन आपने उस रात को मुझे रुपये दिए थे ना..

कुसुम को याद आया कि रात को उसने राजू को रुपए दिए थे।

‘हाँ तो.. तू उससे जाकर ये पायल ले आया.. चल ठीक है.. अब ये भी बता किसके लिए लाया था?’

राजू- वो.. वो.. मालकिन…

कुसुम- अब ये ‘वो.. वो..’ बंद कर.. सच-सच बता दे मुझे?

राजू- आपके लिए मालकिन।

गाण्ड फ़टती देख कर राजू ने अपना पासा पलट दिया।

राजू की बात सुन कर कुसुम के चेहरे पर हैरानी और खुशी के भाव उमड़ पड़े।
उसके होंठों पर लंबी मुस्कान फ़ैल गई।

‘तू सच बोल रहा है ना?’ कुसुम ने आँखें टेढ़ी करते हुए पूछा।

राजू ने बस ‘हाँ’ में सर हिला दिया।

कुसुम- मेरे लिए लाया था ये पायल?

राजू- हाँ मालकिन।

यूँ तो कुसुम को गहनों की कमी नहीं थी। वो हर समय सोने के जेवरों से लदी रहती थी, पर आज चाँदी की ये पायल जो राजू लाया था, उसे पाकर आज उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

‘पर मेरे लिए क्यों खरीदा? वो पैसे तो मैंने तुम्हें खुश होकर दिए थे।’

राजू- वो मालकिन.. आप मेरा कितना ख्याल रखती हैं.. मुझे कभी महसूस नहीं होने देती कि मैं एक नौकर हूँ.. इसलिए आपके लिए लाया था।

कुसुम- झूठ.. तुम झूठ बोल रहे हो.. मैं नहीं मानती।

कुसुम ने जानबूझ कर राजू को ऐसा कहा।

राजू- नहीं मालकिन.. कसम से आपके लिए ही लाया था।

कुसुम- अच्छा तो फिर जेब में लेकर क्यों घूम रहा था.. मुझे दी क्यों नहीं?

राजू- वो मालकिन वो वो.. मैं मुझे शरम आ रही थी।

कुसुम- ना.. मैं तो तभी मानूँगी, जब तू ये पायल मुझे खुद पहनाएगा.. कि तू मेरे लिए ही ये लाया था।

यह कह कर कुसुम ने अपनी साड़ी को घुटनों तक ऊपर कर लिया।

अब राजू के पास और कोई चारा नहीं था, वो नीचे पैरों के बल बैठ गया, कुसुम ने बड़ी ही अदा के साथ अपना एक पैर राजू की जांघ के ऊपर रख दिया।

राजू उस पैर में पायल पहनाने लगा।

राजू की नजरें बार-बार कुसुम की मांसल और चिकनी टाँगों की तरफ जा रही थीं।
यह सब देख कर कुसुम के होंठों पर मुस्कान बढ़ती जा रही थी।

जैसे ही कुसुम के एक पैर में पायल पड़ी, कुसुम ने वो पैर सरका कर दूसरा पैर भी उसकी जांघ पर रख दिया।

‘ले अब इसमें भी पहना दे..’

पहले वाले पैर की ऊँगलियाँ सीधा राजू के लण्ड से जा टकराईं। अब तक बेजान पड़े.. राजू के लण्ड को जैसे करेंट लगा हो और उसमें जैसे जान आ गई हो, उसका लण्ड पजामे में फूलने लगा। जिसे कुसुम महसूस कर सकती थी..
उसके लण्ड से उठ रही गर्मी को अपने पाँव के तलवों में महसूस करते ही.. उसकी चूत में सरसराहट होने लगी।

‘अरे रुक क्यों गया.. ‘डाल’ ना..’

कुसुम ने बड़ी सी अदा से मुस्कुराते हुए कहा।

जैसे कह रही हो..अपना लण्ड मेरी चूत में डाल दे, बेचारा राजू दूसरे पाँव में पायल डालने लगा।

जो तोहफा वो चमेली के लिए लाया था.. वो कुसुम की हवस का शिकार होकर उसके पाँव में आ चुका था।

तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी।

कुसुम बुदबुदाते हुए- आ गई बुढ़िया कवाब में हड्डी बनने…

राजू- क्या मालकिन?

कुसुम- कुछ नहीं.. अब तू जाकर आराम कर.. शहर से आकर थक गया होगा।

राजू उठ कर पीछे चला गया और कुसुम खिसयाते हुए बाहर आकर दरवाजा खोला.. बाहर कान्ति देवी खड़ी थी। कुसुम को उस पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर वो उसके समय कर भी क्या सकती थी।

कान्ति देवी अन्दर आते हुए- बाहर बहुत ठंड है ना..?

कुसुम झूठी मुस्कान अपने होंठों पर लाते हुए- जी चाची जी।

कान्ति- दरअसल मैं तुम्हें ये बताने आई थी कि मैं आज सुषमा के घर जा रही हूँ, उसके पोते की शादी है ना कल.. तो मैं आज रात नहीं रुक पाऊँगी.. ठीक है.. अब मैं चलती हूँ।

कुसुम- जी चाची जी.. आप मेरी फिकर ना करें।

जैसे ही कान्ति के जाने के बाद कुसुम ने दरवाजा बंद किया, कुसुम ख़ुशी से उछल पड़ी, जैसे उसे मुँह-माँगी मुराद मिल गई हो।

अभी शाम के 4 बज चुके थे.. अब कुसुम अपने और राजू के बीच किसी को नहीं आने देना चाहती थी।

चमेली के आने का वक्त भी हो रहा था।

चमेली और कुसुम दोनों एक-दूसरे को खूब अच्छी तरह से जानती थी। इसलिए कुसुम के मन में ये शंका थी कि चमेली हो ना हो बीच में अपनी टाँग जरूर अड़ाएगी।

तभी कुसुम कुछ ऐसा सूझा, जिससे उसके होंठों की मुस्कान और बढ़ गई।

वो घर के पीछे बने राजू के कमरे की तरफ गई और बाहर से ही राजू को आवाज़ दी। कुसुम की आवाज़ सुन कर राजू बाहर आया।

राजू- जी मालकिन।

कुसुम- सुन.. तू ऐसा कर आज शहर चला जा दुकान पर.. तुम्हें तो पता है कि सेठ जी नहीं है, आज वहाँ जाकर थोड़ा काम देख ले कि वहाँ के लोग ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं.. दुकान बंद होते ही घर आ जाना और हाँ.. वहाँ शहर में ही कुछ खा लेना, लौटने में तुम्हें देर हो जाएगी।

राजू- जी मालकिन.. मैं अभी चला जाता हूँ।

राजू घर से निकल कर शहर की तरफ चल दिया।

शहर गाँव से कोई 3-4 किलोमीटर दूर था, पैदल चल कर भी वहाँ 20-25 मिनट में पहुँचा जा सकता था।

उधर राजू के जाने के बाद चमेली घर पर आ गई और घर के छोटे-मोटे काम करने लगी।

कुसुम- चमेली सुन।

चमेली- जी दीदी।

कुसुम- चमेली.. वो आज राजू का खाना मत बनाना, वो शहर गया है.. आज रात वो दुकान पर ही रुकेगा.. खाना भी वहीं खा लेगा।

चमेली कुसुम की बात सुन चमेली उदास हो गई- जी दीदी।

आज चमेली का मन भी काम में नहीं लग रहा था।
उसे रह-रह कर राजू की याद आ रही थी।
उसने बेमन से खाना तैयार किया और अपनी बेटी और अपना खाना लेकर घर वापिस चली गई।

रात के 8 बजे राजू दुकान बंद होने के बाद राजू घर वापिस आने के लिए शहर से गाँव की ओर चला..
चारों तरफ घना कोहरा छाया हुआ था।
रात के अंधेरे और सन्नाटे की सरसराहट से उसकी गाण्ड फट रही थी। सुनसान रास्ते पर चलते हुए.. मानो उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो।
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RE: गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार - by Starocks - 31-12-2018, 03:33 PM



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