01-03-2025, 07:07 PM
(This post was last modified: 02-03-2025, 12:10 PM by RonitLoveker. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
UPDATE 5.1 (A)
मैं भी पीछे-पीछे बाहर आया. अभी तक मां और पारो आंटी नहीं उठी थी.
या फिर शायद वह कमरे में थी लेकिन अभी तक बाहर नहीं आई थी.
मैं भी फ्रेश होने के लिए दादाजी के कमरे में गया. मैं तुरंत नहा कर बाहर आया. असुरा कहीं पर दिखाई नहीं दे रहा था पर अब मां के कमरे का दरवाजा जरा खुला था. मैं जाऊं या ना जाऊं... यह बार-बार सोच रहा था पर आखिर मैंने मन बनाया, और मैं उनके कमरे के पास चला आया. मैने कमरे में थोड़ा सा अंदर झांक के देखा तो अंदर पारो आंटी अपने बैग में से कुछ सामान थल-पुथल कर देख रही थी.. पर मुझे मां कहीं पर दिखाई नहीं दी. मैं थोड़ा सा और अंदर गया और बाथरूम की तरफ नज़र घुमाई.
मां बाथरूम के दरवाजे पर खड़े रहकर अपने बाल सुखा रही थीं पर मेरी नज़र जब उनपर पूरी पड़ी तो में उन्हें देखता ही रह गया. उन्होंने अपनी वहीं पुरानी वाली सफेद साड़ीयो में से एक साड़ी पहनी थी. उनके बाल एक बाजू में उनकी डाई साइड में आ गए थे जिन्हें वह सुखा रही थी और इस वजह से उनका बाया साइड पूरा का पूरा एक्सपोज हो रहा था. वह ब्लाउज भी पुराना वाला ही था पर अब उसके ऊपर के सारे हुक्स खुले थे और बस नीचे के दो हुक्स ही मां के दो बड़े बड़े स्तन संभाले रखें हुए थे. शायद ऊपर वाले हुक्स अब लग नहीं रहे थे.....उफ़..... " चलता फिरता कोकेन तो मेरी मां बन चुकी थी " और उनके कंधे पर वह ब्लाउज का स्ट्रैप पूरा कसा हुआ था.... आहह... और ऊपर से... स्लीवलेस ब्लाउज....हो हो.... शायद ब्लाउज फिट नहीं हो रहा था इस वजह से मां ने ब्लाउज के स्लीव्स निकाल दिए थे.. क्यों कि मां के पास स्लीवलेस ब्लाउज तो कभी थे ही नहीं.. पर यह ब्लाउज जो आज उन्होंने पहना था उसमें स्लीव्स नहीं थे.
![[Image: Polish-20250301-125451572.jpg]](https://i.ibb.co/G3cygcRy/Polish-20250301-125451572.jpg)
मैं उन्हें देखे जा रहा था तभी पारो आंटी की नजर मुझ पर पड़ी. उन्होंने मुझे देखा और मुझे फटकारते हुए कहा.. " तू यहां क्या कर रहा है..? " पारो आंटी की आवाज सुनते ही मां ने दरवाजे की और देखा. मुझे दरवाजे पर देख कर वह बिल्कुल शर्मा कर पीछे पलट गई, और बाथरूम के अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लिया. उन्हें शायद मेरे सामने इस तरह आने में बहुत शर्म आ रही थी. मैं भी पारो आंटी की फटकार से डर गया... मैंने हकलाते हुए पारो आंटी से कहा " आंटी में तो मां को देखने आया था... वह ठीक तो है ना...? यही जानना था."
" वह ठीक है...! तू ऐसा कर बाहर जा... आधे घंटे में हम बाहर चाय पर मिलेंगे " उन्होंने मुझे रूखे शब्दों में ऐसा कह के बाहर भेज दिया.
मैं भी बाहर चला आया. बाहर आते ही मैंने देखा कि प्रताप दादा शायद बाहर से नाश्ता लेकर आये थे. फिर प्रताप दादा और मैं किचन में गए वहां से, बर्तन , प्लेटस, कप लेकर बाहर आए और आंगन में ही नाश्ते का सामान लगाने लगे. अभी तक मुझे असुरा कहीं पर दिखाई नहीं दे रहा था.
कुछ आधे घंटे बाद मां और पारो आंटी कमरे से बाहर आई.
मां ने अपना पल्लू अपले पूरे शरीर से लपेटे अपने बदन को ढक रखा था पर सारी चीजें तो ढकी नहीं जा सकती थीं ना..? उनके जिस्म के हर एक कर्व.. हर एक कटाव अभी भी पता चल ही रहा था. मां की चाल में भी बहुत बदलाव आ गया था. पता नहीं कैसे पर अब उनकी कमर की लचक साफ पता चल रही थी. " क्या मां के चूतड बड़े हो गए थे, इसीलिए मां कमर मटकाकर तो नहीं चल रही थी..? नहीं... नहीं... मेरा दिमाग भ्रष्ट हो गया है... मैं क्य क्या सोच रहा हूं...? " मुझे यहां सोच के खुद पर ही शर्म आने लगी.
पारो आंटी और मां जैसे ही आंगन में आई... तब पारो आंटी ने मां को प्रताप दादा के पैर छूकर आशीर्वाद लेने को कहा. मां ने भी किसी आज्ञाकारी बहु की तरह पारो की बात मानी ली. " जुग जुग् जियों बहू " ऐसा आशीर्वाद प्रताप दादा ने मां को दिया. मां बस दादा से आशीर्वाद लेके बाजूमें जाकर एक कोने में खड़ी हो गई. मां बार-बार मुझसे नज़रें चुरा रही थी. उन्हें शायद शर्मिंदगी महसूस हो रही थी.... इसीलिए मैं उन्हें कंफर्टेबल महसूस कराने के लिए उनके पास जाकर खड़ा हो गया. मां ने मुझे देखा... उनकी आंखें जैसे भर आई... मैंने उनकी कलाई पकड़ी और उन्हें भरोसा जताया कि सब ठीक हो जाएगा. इससे उन्हें इस माहौल में भी थोड़ी तो राहत महसूस हुई होंगी ऐसा मुझे लगा.
प्रताप दादा ने वह दूसरा वाला कागज जो उस तहखाना की संदूक में था उसे अपनी जेब से बाहर निकाला. तब तक गेट से असुरा अंदर आता हुआ हमें दिखा. मां असुरा को देखकर डर सी गई.. वह मुझसे सटकर खड़ी हो गई.... मां के मुझसे सटकर खड़े होने से उस वक्त मेरी नाक की नस नस में एक अजीब सी खुशबू भर गई... वह खुशबू कुछ और ही थी. मुझे कुछ अलग ही महसूस हो रहा था पर उस खुशबू की व्याख्या में कर नहीं पा रहा था. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंग अंग में रोमांच दौड़ रहा हैं... " मादकता का रस...? क्या यह खुशबू उसी की थी....? और थी भी तो, यह कहना पड़ेगा कि यह खुशबू किसी को भी पागल बना कर छोड़ सकती थी... शायद में मर्द होता तो... तो मुझे भी."
हम असुरा को आते हुए देख रहे थे. वह आ गया और दादा के पास बैठ गया. उसके बैठते ही पारो आंटी भी बैठ गई और उन्होंने हमें भी बैठने को कहा.
हम सबको जमीन पर बैठकर नाश्ता करना था और मां को उनके सामने बैठने में अजीब लग रहा था. इसीलिए उन्होंने कहा कि वहां सबको नाश्ता परोस देगी और खुद बाद में खा लेगी. इस घर की परंपरा थीं कि, घर की सबसे नई बहु हमेशा सबके बाद खाना खाती हैं और मेरी मां इस विचार का समर्थन करने वाली औरत थी. यह सुनकर दादा ने उन्हें कहा कि " पूनम अगर तुम इस प्रथा को इतना सम्मान देती हो... तो यह अच्छी बात है...ये तुम्हारी मर्जी है....पर.... नाश्ते के बाद जब बैठक होगी... तब मुझे पता चलेगा कि तुम कितना परंपरा का मान रखती हो, और तुम इसपर खरी उतरती हो या नहीं. दादा ने वह कागज मां को दिखाते हुए ये कहा, और कहते कहते उन्होंने मां को नाश्ता परोसने का इशारा. मैं भी जाकर नीचे बैठने ही वाला था तभी असुरा ने आंखों के इशारे से मुझे अपनी और आकर बैठने को कहा. मैं भी चुपचाप उसकी बात मानकर उसके करीब बैठ गया.
मां झुककर नाश्ता परोसने लगी पर उन्होंने इस बात पर पूरा का ध्यान रखा की उनका कोई भी अंग इस वक्त किसी को न दिखे... या फिर कहूं असुरा को ना दिखे... पर स्वामी जी को कुछ और ही मंजूर था... खाना परोसते परोसते मां का बैलेंस बिगड़ा और वो गिरते गिरते बच गई. पर खुद को संभालते वक्त मां के साथ ऐसा कुछ हुआ कि मेरी आँखें फटी की फटी रह गई... मैं और असुरा एक ही साथ एक बाजू में बैठे थे... मां हमें ही खाना परोसने आ रही थी... तभी यह वाकिया घटा... मां ने जो पल्लू अपने बदन पर लपेटा था वह छूट चुका था... और सब से गंभीर बात जो घटी थी वह यह थी कि मां के ब्लाउज के जो बचे हुए हूक थे वह टूट कर नीचे बिखर गए थे... अब सिर्फ एक ही हुक के सहारे मां के वक्ष असुरा को अपना दीदार करा रहे थे. ... यह सब इतनी जल्दी हुआ था कि... मां को कुछ होश ही नहीं रहा... पर जब उन्हें पता चला, वैसे ही उन्होंने अपना ब्लाउज ठीक किया... मां ब्लाउज ठीक करते वक्त जैसी दिख रही थीं... वैसा सीन जाने ही किसी को देखने को मिले.... ऊपर से वह तिरछी नजर से जो असुरा को देखे जा रही थी... उफ्फ.... वह शायद असुरा को इसलिए देख रही थी क्यों कि उन्हें डर था कि शायद असुरा उन्हें इस हालत में देख कुछ कर न दे.... पर असुरा तो प्रो खिलाड़ी था. वह फिलहाल सिर्फ इस चीज का लुफ्त उठा रहा था.
![[Image: Polish-20250301-170756356.jpg]](https://i.ibb.co/ZRRpZY71/Polish-20250301-170756356.jpg)
ब्लाउज ठीक करके मां ने अपनी साड़ी के पल्लू से फिर खुद को ढक लिया और वो वहां से चली गई... और मुझे कहा कि " नमन तुम सबको और कुछ नाश्ता चाहिए तो परोस देना...में बाद में खा लूंगी और बैठक के लिए मुझे बुला लेना. में आ जाऊंगी...." ऐसा कह के वो रसोईघर में चली गई.
क्या था उस कागज में..? किस चीज की बैठक होने वाली थी..?
आज शादी का दिन था जैसे स्वामी जी ने कहा था... तो क्या आज शादी होने वाली थी...? क्या होने वाला है आगे ये पढ़िए आगे की अपडेट में.
मैं भी पीछे-पीछे बाहर आया. अभी तक मां और पारो आंटी नहीं उठी थी.
या फिर शायद वह कमरे में थी लेकिन अभी तक बाहर नहीं आई थी.
मैं भी फ्रेश होने के लिए दादाजी के कमरे में गया. मैं तुरंत नहा कर बाहर आया. असुरा कहीं पर दिखाई नहीं दे रहा था पर अब मां के कमरे का दरवाजा जरा खुला था. मैं जाऊं या ना जाऊं... यह बार-बार सोच रहा था पर आखिर मैंने मन बनाया, और मैं उनके कमरे के पास चला आया. मैने कमरे में थोड़ा सा अंदर झांक के देखा तो अंदर पारो आंटी अपने बैग में से कुछ सामान थल-पुथल कर देख रही थी.. पर मुझे मां कहीं पर दिखाई नहीं दी. मैं थोड़ा सा और अंदर गया और बाथरूम की तरफ नज़र घुमाई.
मां बाथरूम के दरवाजे पर खड़े रहकर अपने बाल सुखा रही थीं पर मेरी नज़र जब उनपर पूरी पड़ी तो में उन्हें देखता ही रह गया. उन्होंने अपनी वहीं पुरानी वाली सफेद साड़ीयो में से एक साड़ी पहनी थी. उनके बाल एक बाजू में उनकी डाई साइड में आ गए थे जिन्हें वह सुखा रही थी और इस वजह से उनका बाया साइड पूरा का पूरा एक्सपोज हो रहा था. वह ब्लाउज भी पुराना वाला ही था पर अब उसके ऊपर के सारे हुक्स खुले थे और बस नीचे के दो हुक्स ही मां के दो बड़े बड़े स्तन संभाले रखें हुए थे. शायद ऊपर वाले हुक्स अब लग नहीं रहे थे.....उफ़..... " चलता फिरता कोकेन तो मेरी मां बन चुकी थी " और उनके कंधे पर वह ब्लाउज का स्ट्रैप पूरा कसा हुआ था.... आहह... और ऊपर से... स्लीवलेस ब्लाउज....हो हो.... शायद ब्लाउज फिट नहीं हो रहा था इस वजह से मां ने ब्लाउज के स्लीव्स निकाल दिए थे.. क्यों कि मां के पास स्लीवलेस ब्लाउज तो कभी थे ही नहीं.. पर यह ब्लाउज जो आज उन्होंने पहना था उसमें स्लीव्स नहीं थे.
![[Image: Polish-20250301-125451572.jpg]](https://i.ibb.co/G3cygcRy/Polish-20250301-125451572.jpg)
मैं उन्हें देखे जा रहा था तभी पारो आंटी की नजर मुझ पर पड़ी. उन्होंने मुझे देखा और मुझे फटकारते हुए कहा.. " तू यहां क्या कर रहा है..? " पारो आंटी की आवाज सुनते ही मां ने दरवाजे की और देखा. मुझे दरवाजे पर देख कर वह बिल्कुल शर्मा कर पीछे पलट गई, और बाथरूम के अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लिया. उन्हें शायद मेरे सामने इस तरह आने में बहुत शर्म आ रही थी. मैं भी पारो आंटी की फटकार से डर गया... मैंने हकलाते हुए पारो आंटी से कहा " आंटी में तो मां को देखने आया था... वह ठीक तो है ना...? यही जानना था."
" वह ठीक है...! तू ऐसा कर बाहर जा... आधे घंटे में हम बाहर चाय पर मिलेंगे " उन्होंने मुझे रूखे शब्दों में ऐसा कह के बाहर भेज दिया.
मैं भी बाहर चला आया. बाहर आते ही मैंने देखा कि प्रताप दादा शायद बाहर से नाश्ता लेकर आये थे. फिर प्रताप दादा और मैं किचन में गए वहां से, बर्तन , प्लेटस, कप लेकर बाहर आए और आंगन में ही नाश्ते का सामान लगाने लगे. अभी तक मुझे असुरा कहीं पर दिखाई नहीं दे रहा था.
कुछ आधे घंटे बाद मां और पारो आंटी कमरे से बाहर आई.
मां ने अपना पल्लू अपले पूरे शरीर से लपेटे अपने बदन को ढक रखा था पर सारी चीजें तो ढकी नहीं जा सकती थीं ना..? उनके जिस्म के हर एक कर्व.. हर एक कटाव अभी भी पता चल ही रहा था. मां की चाल में भी बहुत बदलाव आ गया था. पता नहीं कैसे पर अब उनकी कमर की लचक साफ पता चल रही थी. " क्या मां के चूतड बड़े हो गए थे, इसीलिए मां कमर मटकाकर तो नहीं चल रही थी..? नहीं... नहीं... मेरा दिमाग भ्रष्ट हो गया है... मैं क्य क्या सोच रहा हूं...? " मुझे यहां सोच के खुद पर ही शर्म आने लगी.
पारो आंटी और मां जैसे ही आंगन में आई... तब पारो आंटी ने मां को प्रताप दादा के पैर छूकर आशीर्वाद लेने को कहा. मां ने भी किसी आज्ञाकारी बहु की तरह पारो की बात मानी ली. " जुग जुग् जियों बहू " ऐसा आशीर्वाद प्रताप दादा ने मां को दिया. मां बस दादा से आशीर्वाद लेके बाजूमें जाकर एक कोने में खड़ी हो गई. मां बार-बार मुझसे नज़रें चुरा रही थी. उन्हें शायद शर्मिंदगी महसूस हो रही थी.... इसीलिए मैं उन्हें कंफर्टेबल महसूस कराने के लिए उनके पास जाकर खड़ा हो गया. मां ने मुझे देखा... उनकी आंखें जैसे भर आई... मैंने उनकी कलाई पकड़ी और उन्हें भरोसा जताया कि सब ठीक हो जाएगा. इससे उन्हें इस माहौल में भी थोड़ी तो राहत महसूस हुई होंगी ऐसा मुझे लगा.
प्रताप दादा ने वह दूसरा वाला कागज जो उस तहखाना की संदूक में था उसे अपनी जेब से बाहर निकाला. तब तक गेट से असुरा अंदर आता हुआ हमें दिखा. मां असुरा को देखकर डर सी गई.. वह मुझसे सटकर खड़ी हो गई.... मां के मुझसे सटकर खड़े होने से उस वक्त मेरी नाक की नस नस में एक अजीब सी खुशबू भर गई... वह खुशबू कुछ और ही थी. मुझे कुछ अलग ही महसूस हो रहा था पर उस खुशबू की व्याख्या में कर नहीं पा रहा था. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंग अंग में रोमांच दौड़ रहा हैं... " मादकता का रस...? क्या यह खुशबू उसी की थी....? और थी भी तो, यह कहना पड़ेगा कि यह खुशबू किसी को भी पागल बना कर छोड़ सकती थी... शायद में मर्द होता तो... तो मुझे भी."
हम असुरा को आते हुए देख रहे थे. वह आ गया और दादा के पास बैठ गया. उसके बैठते ही पारो आंटी भी बैठ गई और उन्होंने हमें भी बैठने को कहा.
हम सबको जमीन पर बैठकर नाश्ता करना था और मां को उनके सामने बैठने में अजीब लग रहा था. इसीलिए उन्होंने कहा कि वहां सबको नाश्ता परोस देगी और खुद बाद में खा लेगी. इस घर की परंपरा थीं कि, घर की सबसे नई बहु हमेशा सबके बाद खाना खाती हैं और मेरी मां इस विचार का समर्थन करने वाली औरत थी. यह सुनकर दादा ने उन्हें कहा कि " पूनम अगर तुम इस प्रथा को इतना सम्मान देती हो... तो यह अच्छी बात है...ये तुम्हारी मर्जी है....पर.... नाश्ते के बाद जब बैठक होगी... तब मुझे पता चलेगा कि तुम कितना परंपरा का मान रखती हो, और तुम इसपर खरी उतरती हो या नहीं. दादा ने वह कागज मां को दिखाते हुए ये कहा, और कहते कहते उन्होंने मां को नाश्ता परोसने का इशारा. मैं भी जाकर नीचे बैठने ही वाला था तभी असुरा ने आंखों के इशारे से मुझे अपनी और आकर बैठने को कहा. मैं भी चुपचाप उसकी बात मानकर उसके करीब बैठ गया.
मां झुककर नाश्ता परोसने लगी पर उन्होंने इस बात पर पूरा का ध्यान रखा की उनका कोई भी अंग इस वक्त किसी को न दिखे... या फिर कहूं असुरा को ना दिखे... पर स्वामी जी को कुछ और ही मंजूर था... खाना परोसते परोसते मां का बैलेंस बिगड़ा और वो गिरते गिरते बच गई. पर खुद को संभालते वक्त मां के साथ ऐसा कुछ हुआ कि मेरी आँखें फटी की फटी रह गई... मैं और असुरा एक ही साथ एक बाजू में बैठे थे... मां हमें ही खाना परोसने आ रही थी... तभी यह वाकिया घटा... मां ने जो पल्लू अपने बदन पर लपेटा था वह छूट चुका था... और सब से गंभीर बात जो घटी थी वह यह थी कि मां के ब्लाउज के जो बचे हुए हूक थे वह टूट कर नीचे बिखर गए थे... अब सिर्फ एक ही हुक के सहारे मां के वक्ष असुरा को अपना दीदार करा रहे थे. ... यह सब इतनी जल्दी हुआ था कि... मां को कुछ होश ही नहीं रहा... पर जब उन्हें पता चला, वैसे ही उन्होंने अपना ब्लाउज ठीक किया... मां ब्लाउज ठीक करते वक्त जैसी दिख रही थीं... वैसा सीन जाने ही किसी को देखने को मिले.... ऊपर से वह तिरछी नजर से जो असुरा को देखे जा रही थी... उफ्फ.... वह शायद असुरा को इसलिए देख रही थी क्यों कि उन्हें डर था कि शायद असुरा उन्हें इस हालत में देख कुछ कर न दे.... पर असुरा तो प्रो खिलाड़ी था. वह फिलहाल सिर्फ इस चीज का लुफ्त उठा रहा था.
![[Image: Polish-20250301-170756356.jpg]](https://i.ibb.co/ZRRpZY71/Polish-20250301-170756356.jpg)
ब्लाउज ठीक करके मां ने अपनी साड़ी के पल्लू से फिर खुद को ढक लिया और वो वहां से चली गई... और मुझे कहा कि " नमन तुम सबको और कुछ नाश्ता चाहिए तो परोस देना...में बाद में खा लूंगी और बैठक के लिए मुझे बुला लेना. में आ जाऊंगी...." ऐसा कह के वो रसोईघर में चली गई.
क्या था उस कागज में..? किस चीज की बैठक होने वाली थी..?
आज शादी का दिन था जैसे स्वामी जी ने कहा था... तो क्या आज शादी होने वाली थी...? क्या होने वाला है आगे ये पढ़िए आगे की अपडेट में.