27-02-2025, 10:08 PM
(This post was last modified: 28-02-2025, 06:56 AM by RonitLoveker. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
UPDATE 05
प्रताप दादा शुक्रा दादाजी के कमरे में कुछ ढूंढ रहे थे.
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन वह जो कुछ भी ढूंढ रहे थे, वो शायद उन्हें वहां मिल चुका था... चाबी... हां चाबी.. वह किसी चाबी को ढूंढ रहे थे और उन्हें वह चाबी मिल चुकी थी. वह चाबी लेकर कमरे से बाहर आए और असुरा को दिखाते हुए आगे बड़े. " लो मिल गई " दादा ने असुरा से कहा. दादा कुछ असमंजस में थे शायद, कुछ ऐसा था जो उन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रहा था, तभी उन्होंने मेरी और देखा और असुरा की ओर बड़े हैरान होकर देखने लगे. असुरा समझ चुका था की दादा किस बात से हैरान है. असुरा ने आगे बढ़कर दादा से कहा " दादा.. आज से यह मेरा शागिर्द है, आखिर बेटा जो है मेरा "
प्रताप दादा यह सन कुछ कहा ना सके. वह वैसे भी बहुत शांत किस्म के व्यक्ति थे. " चलो... चलते हैं" दादा ने आगे बढ़ते हुए कहा.
मैं और असुरा दादा के पीछे-पीछे चलते हुए आगे जाने लगे.
" क्या...? प्रताप दादा कहां जा रहे थे...? तहखाना में....? तहखाना में आज तक तो कोई नहीं गया... शायद वह चाबी उसी दरवाजे की तो नहीं थी...? हे स्वामी जी...! मतलब आज तहखाना का दरवाजा खुलने वाला था..? बचपन से ही मेरे मन में यह बात हमेशा मुझे सताती थी कि उस तहखाना में आखिर है क्या...? आज यह राज भी खुलने वाला था ". मैं यहां सोचते हुए, असुरा और दादा के पीछे चलते-चलते तहखाना में पहुंच गया. तहखाना का ताला जंग खा चुका था. दादा ने उस ताले में चाबी डाली और...?
इतना पुराना ताला होने के बावजूद एक ही झटके में ताला खुल गया. अब आगे दरवाजा खोलते ही हम तहखाना के अंदर पहुंच गए.
मुझे लगा था कि तहखाना के अंदर कुछ खजाना, सोना, जेवरात, या कुछ पुरानी मूर्तियों या कुछ और पुरानी चीजे होगी.... लेकिन पूरा तहखाना बिल्कुल खाली था, पर सिर्फ बीच में एक मेज रखा था और उस मेज पर एक संदूक था. उस संदूक पर स्वामी जी का चिन्ह बना हुआ था. प्रताप दादा वहां गए और उन्होंने उस संदूक को खोला.
उस संदूक में दो पुराने कागज रखे थे. दादा ने वह दोनों कागज ले लिए और दोनों को गौर से पड़ा. उनमें से एक कागज को दादा ने वही बाजू में रखा और एक कागज असुरा की और दिखाते हुए उन्होंने उससे पूछा " क्या तुम्हें सच में यह करना है..? फिर एक बार सोच लो असुरा.. यह तुम जो करने वाले हो... वह एक वहशीपन है."
मैं प्रताप दादा की यह बात सुनकर बौखला सा गया. क्या करने वाला था असुरा ? .. क्या था उस कागज में.? असुरा प्रताप दादा की ओर चल पड़ा. उसने वह कागज अपने हाथ में लेते हुए मेरी और देखा फिर प्रताप दादा की ओर देखकर कहा.. " मेरे पिता ने मेरा नाम असुरा क्यों रखा था दादा..? आप तो जानते ही हैं... आज मेरे इस बेटे को भी बता ही दीजिए "
प्रताप दादा चुप रहे. फिर असुरा ने जरा कठोर आवाज में दादा से कहा " बता दीजिए दादा ".
" नमन बेटा बहुत पुरानी बात है. मैं और तुम्हारे शुक्रा दादा एक ही साथ इस घर में रहते थे पर मुझसे एक गलती हो गई कि मैं हमारे स्वामी जी के कुल के विरोधी कुल की लड़की से प्रेम कर बैठा और उससे विवाह किया. वहां कुल नकारात्मक शक्तियों का प्रतीक था यह बात जब हमारे पूर्वजों को शुक्रा से पता चली तो उन्होंने मुझे इस घर से निष्कासित कर दिया. हमारी जो संतान हुई यानी असुरा के पिता वहां नकारात्मक शक्ति और हमारे कुल की शक्ति से एकरूप होकर पैदा हुए और उन्होंने भी अपना विवाह नकारात्मक कुल के ही लड़की यानी पारो से किया. जब उनकी संतान का जन्म हुआ तब उस बच्चे के अंदर ज्यादा से ज्यादा प्रतिशत नकारात्मक शक्ति का प्रभाव साफ-साफ दिखाई दे रहा था. वहां बिल्कुल असुर की तरह जन्म था. जब यह बात मुझे समझ में आई तब मैंने सब ठीक करने के लिए हमारे कुल के स्वामीजी का जो सबसे पुराना मंदिर था वहां जाकर उस बच्चे का शुद्धीकरण करने का निर्णय लिया लेकिन हमारे पूर्वजों ने हमें इस बात की अनुमति नहीं दी और मेरे बेटे का और मेरा अपमान कर हमें वहां से निकाल दिया. मेरा बेटा इस अपमान को सह न सका. उसने यह ठान लिया कि वहां इस असुर बच्चे का नाम असुरा ही रखेंगे और यही तय किया गया " दादा यह बात बताते हुए रोने लगे. उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे. वह असुरा के कंधे पर हाथ रख वहीं खड़े रहे.
" अगर यह कुल सच में मानता है कि मैं असुर हूं तो अब मैं असुर ही सही. अगर स्वामी जी ही इस कुल को मुझे सौंपना चाह रहे हैं, तो अब मैं भी वही करूंगा जो एक असुर को करना चाहिए. अगर स्वामी जी ने तुम्हारी मां पूनम को मुझे सौंपा है तो, अब पूनम ही मेरी दरिंदगी और वहशीपन का सामना करेगी. मेरा बदला अब उसी के अत्याचार से पूरा होगा. इस कागज पर जो मंत्र लिखे हैं यह स्वामीजी के परम कामपुरुष शक्ति मंत्र हैं. इस मंत्र को पढ़कर मेरे अंदर किसी अरबी घोड़े जैसी शक्तियां आ जाएंगी. मेरा लिंग और भी विशाल और विकराल बन जाएगा. मेरी संभोग की अवधि और समय के लिए बढ़ जाएगी. और तुम्हारी कामसुंदरी मां पूनम की सहनशक्ति इसका सामना करेगी. उसे मैं अगले कई सालों तक छठी का दूध याद दिलाऊंगा. उसके गर्भ के द्वार पर नहीं बल्कि में द्वार खोल के अंदर बच्चेदानी में अपना लंड पहुंचाऊंगा.
उसे ऐसी यातना भरा प्रेम दूंगा कि वह बेइंतहा दर्द से वो पूरी तरह मुझ पे मर मिट जाएगी ". असुरा ऐसा कह के दादा के पास पहुंचा. में बस यहीं सोच रहा था कि यह कोई बुरा सपना तो नहीं....? यह सच में असुर है...?
और मेरी मां....? उनकी इसमें क्या गलती हैं...? पर अब सब लिखा जा चुका था. अब कुछ नहीं हो सकता था. मेरी अप्सरा जैसी मां एक वहशी असुर की औरत बन चुकी थी और अब जो होने वाला था वह कामवासना और क्रूरता की मिलीभगत का खेल होने वाली थी.
असुरा ने दादा के पैर छुए और वह उस संदूक पर बने स्वामीजी के चिन्ह पर अपना हाथ रख वह मंत्र जोरो से पढ़ने लगा. प्रताप दादा बिल्कुल असमर्थ हो के यह देख रहे थे. मेरा तो दिमाग ही घूम चुका था. कुछ ही समय में असुरा ने मंत्रजाप पूरा किया..... लेकिन... लेकिन ...कुछ भी नहीं हुआ....
असुरा एकदम हैरान हो गया. उसने दादा की ओर देखा.
मैने स्वामीजी का शुक्रिया किया, क्यों कि मुझे लगा कि उन्होंने मां को इस राक्षस के क्रूरताभरी योजना से बचा लिया था पर.....? एक ही पल में उस संदूक पर बने चिन्ह से एक ऐसा प्रकाश उजाला बहार आया कि उस पल हमारी आँखें कुछ समय के लिए उस उजाले से बंद हो गई.... और जब आंखे खुली तब......
आंखे खुलते ही मैं क्या देखने वाला था? असुरा सच में कोई असुर था...इतना वहशी कैसे कोई हो सकता था..? आगे क्या होने वाला था...?
पढ़िए अगले अपडेट में.
प्रताप दादा शुक्रा दादाजी के कमरे में कुछ ढूंढ रहे थे.
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन वह जो कुछ भी ढूंढ रहे थे, वो शायद उन्हें वहां मिल चुका था... चाबी... हां चाबी.. वह किसी चाबी को ढूंढ रहे थे और उन्हें वह चाबी मिल चुकी थी. वह चाबी लेकर कमरे से बाहर आए और असुरा को दिखाते हुए आगे बड़े. " लो मिल गई " दादा ने असुरा से कहा. दादा कुछ असमंजस में थे शायद, कुछ ऐसा था जो उन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रहा था, तभी उन्होंने मेरी और देखा और असुरा की ओर बड़े हैरान होकर देखने लगे. असुरा समझ चुका था की दादा किस बात से हैरान है. असुरा ने आगे बढ़कर दादा से कहा " दादा.. आज से यह मेरा शागिर्द है, आखिर बेटा जो है मेरा "
प्रताप दादा यह सन कुछ कहा ना सके. वह वैसे भी बहुत शांत किस्म के व्यक्ति थे. " चलो... चलते हैं" दादा ने आगे बढ़ते हुए कहा.
मैं और असुरा दादा के पीछे-पीछे चलते हुए आगे जाने लगे.
" क्या...? प्रताप दादा कहां जा रहे थे...? तहखाना में....? तहखाना में आज तक तो कोई नहीं गया... शायद वह चाबी उसी दरवाजे की तो नहीं थी...? हे स्वामी जी...! मतलब आज तहखाना का दरवाजा खुलने वाला था..? बचपन से ही मेरे मन में यह बात हमेशा मुझे सताती थी कि उस तहखाना में आखिर है क्या...? आज यह राज भी खुलने वाला था ". मैं यहां सोचते हुए, असुरा और दादा के पीछे चलते-चलते तहखाना में पहुंच गया. तहखाना का ताला जंग खा चुका था. दादा ने उस ताले में चाबी डाली और...?
इतना पुराना ताला होने के बावजूद एक ही झटके में ताला खुल गया. अब आगे दरवाजा खोलते ही हम तहखाना के अंदर पहुंच गए.
मुझे लगा था कि तहखाना के अंदर कुछ खजाना, सोना, जेवरात, या कुछ पुरानी मूर्तियों या कुछ और पुरानी चीजे होगी.... लेकिन पूरा तहखाना बिल्कुल खाली था, पर सिर्फ बीच में एक मेज रखा था और उस मेज पर एक संदूक था. उस संदूक पर स्वामी जी का चिन्ह बना हुआ था. प्रताप दादा वहां गए और उन्होंने उस संदूक को खोला.
उस संदूक में दो पुराने कागज रखे थे. दादा ने वह दोनों कागज ले लिए और दोनों को गौर से पड़ा. उनमें से एक कागज को दादा ने वही बाजू में रखा और एक कागज असुरा की और दिखाते हुए उन्होंने उससे पूछा " क्या तुम्हें सच में यह करना है..? फिर एक बार सोच लो असुरा.. यह तुम जो करने वाले हो... वह एक वहशीपन है."
मैं प्रताप दादा की यह बात सुनकर बौखला सा गया. क्या करने वाला था असुरा ? .. क्या था उस कागज में.? असुरा प्रताप दादा की ओर चल पड़ा. उसने वह कागज अपने हाथ में लेते हुए मेरी और देखा फिर प्रताप दादा की ओर देखकर कहा.. " मेरे पिता ने मेरा नाम असुरा क्यों रखा था दादा..? आप तो जानते ही हैं... आज मेरे इस बेटे को भी बता ही दीजिए "
प्रताप दादा चुप रहे. फिर असुरा ने जरा कठोर आवाज में दादा से कहा " बता दीजिए दादा ".
" नमन बेटा बहुत पुरानी बात है. मैं और तुम्हारे शुक्रा दादा एक ही साथ इस घर में रहते थे पर मुझसे एक गलती हो गई कि मैं हमारे स्वामी जी के कुल के विरोधी कुल की लड़की से प्रेम कर बैठा और उससे विवाह किया. वहां कुल नकारात्मक शक्तियों का प्रतीक था यह बात जब हमारे पूर्वजों को शुक्रा से पता चली तो उन्होंने मुझे इस घर से निष्कासित कर दिया. हमारी जो संतान हुई यानी असुरा के पिता वहां नकारात्मक शक्ति और हमारे कुल की शक्ति से एकरूप होकर पैदा हुए और उन्होंने भी अपना विवाह नकारात्मक कुल के ही लड़की यानी पारो से किया. जब उनकी संतान का जन्म हुआ तब उस बच्चे के अंदर ज्यादा से ज्यादा प्रतिशत नकारात्मक शक्ति का प्रभाव साफ-साफ दिखाई दे रहा था. वहां बिल्कुल असुर की तरह जन्म था. जब यह बात मुझे समझ में आई तब मैंने सब ठीक करने के लिए हमारे कुल के स्वामीजी का जो सबसे पुराना मंदिर था वहां जाकर उस बच्चे का शुद्धीकरण करने का निर्णय लिया लेकिन हमारे पूर्वजों ने हमें इस बात की अनुमति नहीं दी और मेरे बेटे का और मेरा अपमान कर हमें वहां से निकाल दिया. मेरा बेटा इस अपमान को सह न सका. उसने यह ठान लिया कि वहां इस असुर बच्चे का नाम असुरा ही रखेंगे और यही तय किया गया " दादा यह बात बताते हुए रोने लगे. उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे. वह असुरा के कंधे पर हाथ रख वहीं खड़े रहे.
" अगर यह कुल सच में मानता है कि मैं असुर हूं तो अब मैं असुर ही सही. अगर स्वामी जी ही इस कुल को मुझे सौंपना चाह रहे हैं, तो अब मैं भी वही करूंगा जो एक असुर को करना चाहिए. अगर स्वामी जी ने तुम्हारी मां पूनम को मुझे सौंपा है तो, अब पूनम ही मेरी दरिंदगी और वहशीपन का सामना करेगी. मेरा बदला अब उसी के अत्याचार से पूरा होगा. इस कागज पर जो मंत्र लिखे हैं यह स्वामीजी के परम कामपुरुष शक्ति मंत्र हैं. इस मंत्र को पढ़कर मेरे अंदर किसी अरबी घोड़े जैसी शक्तियां आ जाएंगी. मेरा लिंग और भी विशाल और विकराल बन जाएगा. मेरी संभोग की अवधि और समय के लिए बढ़ जाएगी. और तुम्हारी कामसुंदरी मां पूनम की सहनशक्ति इसका सामना करेगी. उसे मैं अगले कई सालों तक छठी का दूध याद दिलाऊंगा. उसके गर्भ के द्वार पर नहीं बल्कि में द्वार खोल के अंदर बच्चेदानी में अपना लंड पहुंचाऊंगा.
उसे ऐसी यातना भरा प्रेम दूंगा कि वह बेइंतहा दर्द से वो पूरी तरह मुझ पे मर मिट जाएगी ". असुरा ऐसा कह के दादा के पास पहुंचा. में बस यहीं सोच रहा था कि यह कोई बुरा सपना तो नहीं....? यह सच में असुर है...?
और मेरी मां....? उनकी इसमें क्या गलती हैं...? पर अब सब लिखा जा चुका था. अब कुछ नहीं हो सकता था. मेरी अप्सरा जैसी मां एक वहशी असुर की औरत बन चुकी थी और अब जो होने वाला था वह कामवासना और क्रूरता की मिलीभगत का खेल होने वाली थी.
असुरा ने दादा के पैर छुए और वह उस संदूक पर बने स्वामीजी के चिन्ह पर अपना हाथ रख वह मंत्र जोरो से पढ़ने लगा. प्रताप दादा बिल्कुल असमर्थ हो के यह देख रहे थे. मेरा तो दिमाग ही घूम चुका था. कुछ ही समय में असुरा ने मंत्रजाप पूरा किया..... लेकिन... लेकिन ...कुछ भी नहीं हुआ....
असुरा एकदम हैरान हो गया. उसने दादा की ओर देखा.
मैने स्वामीजी का शुक्रिया किया, क्यों कि मुझे लगा कि उन्होंने मां को इस राक्षस के क्रूरताभरी योजना से बचा लिया था पर.....? एक ही पल में उस संदूक पर बने चिन्ह से एक ऐसा प्रकाश उजाला बहार आया कि उस पल हमारी आँखें कुछ समय के लिए उस उजाले से बंद हो गई.... और जब आंखे खुली तब......
आंखे खुलते ही मैं क्या देखने वाला था? असुरा सच में कोई असुर था...इतना वहशी कैसे कोई हो सकता था..? आगे क्या होने वाला था...?
पढ़िए अगले अपडेट में.