22-02-2025, 03:19 PM
इस आसन में मानसी को भी काफ़ी मज़ा आ रहा था.
यह उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव से पता चल रहा था.
बीच बीच में मैं मानसी को उठा कर उसके नर्म होठों का भी मज़ा ले रहा था.
कुछ देर बाद मैंने नीचे खड़े रहते हुए मानसी को अपनी गोद में घुटनों के अंदर से हाथ लेजाकर उठाया जिससे उसके गद्देदार चूतड़ मेरे दोनों हाथों में थे.
तब मानसी ने अपना हाथ पीछे ले जाकर मेरे लंड को अपनी चूत में सेट किया.
जहाँ हमारे चूत और लंड आपस में चूम रहे थे, वहीं हमारे होंठ भी चिपके हुए थे.
फिर शुरू हुआ चुदाई का घमासान युद्ध जिसे हम दोनों चाहते थे कि यह युद्ध चलता रहे, चलता रहे.
हर धक्के के साथ इस आसन चूतड़ से ठप ठप की आवाज़ पहले से ज़्यादा आ रही थी.
मैं इस बार अपना लंड पूरा बाहर निकलता और फिर ज़ोर से मानसी की चूत में प्रवेश करता तो उसकी आवाज़ भी दर्द भरी हो जाती.
कुछ मिनट के बाद मानसी के वजन से मुझे उसको उठाए रखना मुश्किल लग रहा था.
तब मैंने उसे नीचे उतार कर एक टेबल पर बैठाया जो लगभग मेरी कमर जितना उँचा था.
मानसी के दोनों पैर मैंने अपनी कमर में फंसा लिये जिससे उसकी चूत मेरे सामने काफ़ी खुल कर दिखने लगी.
मैंने उसकी चूत में एक बार जीभ फिराई और फिर से दनादन धक्के लगाना शुरू कर दिया.
मैं अपने पाठकों से यह आग्रह करना चाहूँगा कि अगर आप इस आसन में सेक्स करते हैं तो सबसे ज़्यादा मज़ा आपको इसी आसन में आयेगा. यह मेरी गारेंटी है.
मेरा लंड मानसी की चूत में इंजिन में पिस्टन की रफ़्तार से अंदर बाहर हो रहा था.
एक हाथ से मैंने उसके चूतड़ को मसला हुआ था तथा दूसरे हाथ से मैंने उसके एक स्तन को दबोचा हुआ था.
मानसी ने अपने दोनों हाथ मेरी गर्दन पर फंसा रखे थे.
इस आसन में चुदाई करने से हम दोनों को थकान बिल्कुल भी नहीं हो रही थी.
जबकि मानसी इसी आसन में दो बार झड़ चुकी थी.
बीस मिनट के बाद जब मेरा लावा फूटने को हुआ तो मेरी सांस उखड़ने लगी.
तब मानसी फटाफट नीचे उतरी और मेरे लंड मुंह में भरकर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी.
मैंने उसे बोला- लंड छोड़ो क्योंकि किसी भी वक़्त मेरा वीर्य निकल सकता है.
पर उसने मेरी ना सुनने की तो जैसे कसम खा रखी थी.
तो फिर मैंने भी कुछ सोचे बिना दोनों हाथों से मानसी के सर को पकड़ा उसके मुंह की चुदाई शुरू कर दी.
उसके मुंह से सिर्फ़ गों गों को आवाज़ आ रही थी.
दो मिनट बाद मेरा लावा फूटा और मानसी के मुंह के अंदर पूरा भर गया.
झड़ते समय मैंने अपना पूरा लंड मानसी के मुंह के अंदर घुसा दिया जिसकी वजह से काफ़ी सारा वीर्य मानसी के मुंह से बाहर निकल गया और उसके गर्दन और वक्ष पर बहने लगा.
बाकी बचे वीर्य को मानसी ने अजीब सा मुंह बनाते हुए अपने अंदर ले लिया और मेरे लंड को मुंह से बाहर निकाल कर जीभ से अच्छे से चाट चाट कर साफ करने लगी.
मैं निढाल होकर पीछे बेड पर गिर पड़ा.
पर मानसी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और बहुत देर तक मेरे लंड को चूसती रही और पूरा वीर्य चाट चाट कर साफ कर दिया.
फिर वह उठी और वॉशरूम जाकर अपने मुंह को अच्छे से साफ करके कुल्ला किया और वापस बेड में आकर मेरे उपर लेट गई.
मैं अभी तक अपनी सांसों को संतुलित करने में लगा था क्योंकि इस चुदाई मैं मुझे पिछली दोनों चुदाई से ज़्यादा आनद प्राप्त हुआ.
और इस बार में वीर्य भी काफ़ी ज़्यादा निकला.
मानसी मेरे ऊपर आई और किस करने लगी.
वीर्य की वजह से उसके मुंह से अलग सी गन्ध आ रही थी.
लेकिन दोस्तो, अगर आप दिल से चुदाई कर रहे हो तो आपको चुदाई के वक़्त कभी भी किसी भी चीज़ से घिन नहीं आयगी.
फिर कुछ देर बाद मैंने मानसी को साइड में लिटाया और किस करते हुए अपने आगोश में भर लिया.
और इस प्रकार अंत में हम दोनों ही यह चुदाई युद्ध जीत गए.
यह उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव से पता चल रहा था.
बीच बीच में मैं मानसी को उठा कर उसके नर्म होठों का भी मज़ा ले रहा था.
कुछ देर बाद मैंने नीचे खड़े रहते हुए मानसी को अपनी गोद में घुटनों के अंदर से हाथ लेजाकर उठाया जिससे उसके गद्देदार चूतड़ मेरे दोनों हाथों में थे.
तब मानसी ने अपना हाथ पीछे ले जाकर मेरे लंड को अपनी चूत में सेट किया.
जहाँ हमारे चूत और लंड आपस में चूम रहे थे, वहीं हमारे होंठ भी चिपके हुए थे.
फिर शुरू हुआ चुदाई का घमासान युद्ध जिसे हम दोनों चाहते थे कि यह युद्ध चलता रहे, चलता रहे.
हर धक्के के साथ इस आसन चूतड़ से ठप ठप की आवाज़ पहले से ज़्यादा आ रही थी.
मैं इस बार अपना लंड पूरा बाहर निकलता और फिर ज़ोर से मानसी की चूत में प्रवेश करता तो उसकी आवाज़ भी दर्द भरी हो जाती.
कुछ मिनट के बाद मानसी के वजन से मुझे उसको उठाए रखना मुश्किल लग रहा था.
तब मैंने उसे नीचे उतार कर एक टेबल पर बैठाया जो लगभग मेरी कमर जितना उँचा था.
मानसी के दोनों पैर मैंने अपनी कमर में फंसा लिये जिससे उसकी चूत मेरे सामने काफ़ी खुल कर दिखने लगी.
मैंने उसकी चूत में एक बार जीभ फिराई और फिर से दनादन धक्के लगाना शुरू कर दिया.
मैं अपने पाठकों से यह आग्रह करना चाहूँगा कि अगर आप इस आसन में सेक्स करते हैं तो सबसे ज़्यादा मज़ा आपको इसी आसन में आयेगा. यह मेरी गारेंटी है.
मेरा लंड मानसी की चूत में इंजिन में पिस्टन की रफ़्तार से अंदर बाहर हो रहा था.
एक हाथ से मैंने उसके चूतड़ को मसला हुआ था तथा दूसरे हाथ से मैंने उसके एक स्तन को दबोचा हुआ था.
मानसी ने अपने दोनों हाथ मेरी गर्दन पर फंसा रखे थे.
इस आसन में चुदाई करने से हम दोनों को थकान बिल्कुल भी नहीं हो रही थी.
जबकि मानसी इसी आसन में दो बार झड़ चुकी थी.
बीस मिनट के बाद जब मेरा लावा फूटने को हुआ तो मेरी सांस उखड़ने लगी.
तब मानसी फटाफट नीचे उतरी और मेरे लंड मुंह में भरकर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी.
मैंने उसे बोला- लंड छोड़ो क्योंकि किसी भी वक़्त मेरा वीर्य निकल सकता है.
पर उसने मेरी ना सुनने की तो जैसे कसम खा रखी थी.
तो फिर मैंने भी कुछ सोचे बिना दोनों हाथों से मानसी के सर को पकड़ा उसके मुंह की चुदाई शुरू कर दी.
उसके मुंह से सिर्फ़ गों गों को आवाज़ आ रही थी.
दो मिनट बाद मेरा लावा फूटा और मानसी के मुंह के अंदर पूरा भर गया.
झड़ते समय मैंने अपना पूरा लंड मानसी के मुंह के अंदर घुसा दिया जिसकी वजह से काफ़ी सारा वीर्य मानसी के मुंह से बाहर निकल गया और उसके गर्दन और वक्ष पर बहने लगा.
बाकी बचे वीर्य को मानसी ने अजीब सा मुंह बनाते हुए अपने अंदर ले लिया और मेरे लंड को मुंह से बाहर निकाल कर जीभ से अच्छे से चाट चाट कर साफ करने लगी.
मैं निढाल होकर पीछे बेड पर गिर पड़ा.
पर मानसी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और बहुत देर तक मेरे लंड को चूसती रही और पूरा वीर्य चाट चाट कर साफ कर दिया.
फिर वह उठी और वॉशरूम जाकर अपने मुंह को अच्छे से साफ करके कुल्ला किया और वापस बेड में आकर मेरे उपर लेट गई.
मैं अभी तक अपनी सांसों को संतुलित करने में लगा था क्योंकि इस चुदाई मैं मुझे पिछली दोनों चुदाई से ज़्यादा आनद प्राप्त हुआ.
और इस बार में वीर्य भी काफ़ी ज़्यादा निकला.
मानसी मेरे ऊपर आई और किस करने लगी.
वीर्य की वजह से उसके मुंह से अलग सी गन्ध आ रही थी.
लेकिन दोस्तो, अगर आप दिल से चुदाई कर रहे हो तो आपको चुदाई के वक़्त कभी भी किसी भी चीज़ से घिन नहीं आयगी.
फिर कुछ देर बाद मैंने मानसी को साइड में लिटाया और किस करते हुए अपने आगोश में भर लिया.
और इस प्रकार अंत में हम दोनों ही यह चुदाई युद्ध जीत गए.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
