15-02-2025, 07:57 PM
"हाथ कौन लगाने आया है, मैं तो लंड लगाने आया हूं।" कहकर वह मेरी गान्ड में उंगली पेल दिया। मैं चिहुंक उठी। अब यह कमीना भी शुरू हो गया था। मैं इस वक्त मस्ती के आलम में डूबी हुई थी। मैं घनश्याम को झिड़क ही सकती थी लेकिन शारीरिक रूप से कोई प्रतिरोध नहीं कर सकती थी। वैसे भी अब कौन मां का लौड़ा प्रतिरोध करके इस मस्ती भरी चुदाई में रुकने की बेवकूफी कर सकता था। मारना है तो मार ले मेरी गान्ड। मेरे लिए कोई नयी बात तो थी नहीं।
"हरामी कहीं का।" मैं बोली। मैं जानती थी कि यह स्थिति अभी नहीं तो थोड़ी देर में होनी ही थी और इसके लिए मैं मन ही मन तैयार भी थी। सच बोलूं तो मुझे गांड़ मरवाने में भी अब मजा आने लगा था। डबल पिस्टन का मजा भी गंजू और घनश्याम के साथ ले ही चुकी थी। उस मजेदार खेल की इस वक्त पुनरावृत्ति होने वाली थी। अच्छा संयोग बन गया था। वाह। कहां तो मैं दंडित करने के लिए लाई गई थी, मगर दंड की झंड हो गई थी और मस्ती में भर कर रांड हो गई थी।
"वाह मेरे दोस्त। यह हुई ना बात। आखिर आ ही गया मादरचोद। चल तू भी शुरू हो जा। इसकी अगाड़ी मेरी हुई, पिछाड़ी तुम्हारी। बहुत दिनों बाद एक साथ किसी को चोदने का मौका मिला है, वह भी ऐसी मस्त लौंडिया को।" भलोटिया उसको आमंत्रित करते हुए मुझे दबोच कर सुविधा जनक पोजीशन बनाने की कोशिश करते हुए बोला। घनश्याम पर से हमारा ध्यान हट गया था और हम अपनी ही मस्ती में गुम थे, इसी दौरान वह भी नंगा पुंगा हो कर मुझ पर पिल पड़ने को आतुर चुदाई के मैदान में कूद पड़ा था। उसके शरीर पर एक चिंदी भी नहीं थी।
"आप दोनों जानवर हो। यह मुझपर सरासर ज्यादती है। एक बुड्ढा काफी नहीं था जो दो दो बुड्ढे मुझ जैसी लड़की के साथ ऐसे मुंह काला कर रहे हो?" मैं प्रकटत: अपनी झल्लाहट प्रकट करते हुए बोली, हालांकि मन ही मन तो बोल रही थी, "हां हां, चोद साले बुड्ढों। जम कर चोदो मादरचोदो। दे दो मजा डबल पिस्टन का सालों। कब से चुदने को तड़प रही थी।"
"साली रंडी, हमें जानवर बोल रही है। जिस तिस से लौड़ा खाती फिर रही है और हमें ज्ञान दे रही है कुतिया। भूल गयी कि गंजू और मुझसे कैसे एक साथ यहीं पर मजे से चुदवा रही थी हरामजादी? आआआआख थूऊऊऊ" कहते कहते घनश्याम अपने लंड पर थूक चुपड़ लिया। मैं जानती थी कि अब मेरी गान्ड का भी बाजा बजने वाला है। यह भी जानती थी कि यह मेरे लिए थोड़ी मुश्किल होने वाली थी, क्योंकि मेरी चूत में भलोटिया जैसे दानव का, मेरी जिंदगी का अब तक का सबसे बड़ा लंड फंसा हुआ था और अब घनश्याम का लंड मेरी गान्ड में घुसने को तैयार था। मुझे पता था कि घनश्याम का लंड भलोटिया के लंड जितना लंबा और मोटा नहीं था लेकिन था तो बड़ा ही। ऊपर से उसकी जो मुझे दंडित करके तकलीफ में देखने की मनोकामना थी वह भी पूरी नहीं हो रही थी, इसलिए निश्चित तौर पर वह मेरी गान्ड का भुर्ता बना कर अपनी खुन्नस निकालना चाहेगा। यह सोचकर मैं थोड़ी परेशान थी।
"जो बोलना है बोलिए। जो करना है कीजिए। लेकिन फिर भी मैं इतना जरूर कहूंगी कि मैंने इतनी भी बड़ी ग़लती नहीं की थी कि मेरे साथ इस तरह का सुलूक किया जाए।" मैं अपनी बनावटी नाराजगी जाहिर करते हुए बोली।
"जो गलती अनजाने में हो, वह माफी के लायक है लेकिन जो गलती जानबूझ कर की जाय वह गलती गलती नहीं, अपराध होता है और अपराध के लिए सजा तो बनता ही है, क्यों भलोटिया साहब, सही कहा ना?" वह भलोटिया का समर्थन की आशा से बोला लेकिन भलोटिया को तो इस वक्त सजा और मजा से कोई मतलब नहीं था। उसे तो इस वक्त जो चाहिए था उससे कहीं अधिक मिल रहा था। मजा ही मजा, मस्ती ही मस्ती।
"अबे चूतिए, तू भी कहां इस वक्त सजा वजा के पचड़े में पड़ा हुआ है। आह आह ओह ओह इतना मज़ा दे रही है हमारी बिटिया और तू मादरचोद सजा देने की सोच रहा है। चुपचाप चोदना है तो तू भी शामिल हो जा नहीं तो वहां सोफे में बैठकर मूठ मारता रह। अरे बिटिया तू इस लौड़े के ढक्कन की बात सुनकर रुको नहीं। आह आह ऐसे ही आह रानी ऐसे ही खाती रह मेरा लौड़ा। आह आह।" भलोटिया घनश्याम को लताड़ लगा कर मेरा हौसला अफजाई करते हुए बोला। घनश्याम उसकी बात सुनकर खिसिया कर रह गया लेकिन मैं जानती थी कि भलोटिया की बातों से उसके मन की खुन्नस में और घी डाल दिया था। क्योंकि तभी घनश्याम ने आव देखा ना ताव, अपने मूसल को मेरी गान्ड की छेद पर रख कर एक करारा धक्का मार दिया।
"आआआआआहहहह मर गयी हरामी कहीं के, ओह मांआंआंआंआं...." मैं दर्द से चीख पड़ी। उसने एक ही धक्के में अपना पूरा लंड मेरी गान्ड में घुसेड़ दिया था।
"हरामी कहीं का।" मैं बोली। मैं जानती थी कि यह स्थिति अभी नहीं तो थोड़ी देर में होनी ही थी और इसके लिए मैं मन ही मन तैयार भी थी। सच बोलूं तो मुझे गांड़ मरवाने में भी अब मजा आने लगा था। डबल पिस्टन का मजा भी गंजू और घनश्याम के साथ ले ही चुकी थी। उस मजेदार खेल की इस वक्त पुनरावृत्ति होने वाली थी। अच्छा संयोग बन गया था। वाह। कहां तो मैं दंडित करने के लिए लाई गई थी, मगर दंड की झंड हो गई थी और मस्ती में भर कर रांड हो गई थी।
"वाह मेरे दोस्त। यह हुई ना बात। आखिर आ ही गया मादरचोद। चल तू भी शुरू हो जा। इसकी अगाड़ी मेरी हुई, पिछाड़ी तुम्हारी। बहुत दिनों बाद एक साथ किसी को चोदने का मौका मिला है, वह भी ऐसी मस्त लौंडिया को।" भलोटिया उसको आमंत्रित करते हुए मुझे दबोच कर सुविधा जनक पोजीशन बनाने की कोशिश करते हुए बोला। घनश्याम पर से हमारा ध्यान हट गया था और हम अपनी ही मस्ती में गुम थे, इसी दौरान वह भी नंगा पुंगा हो कर मुझ पर पिल पड़ने को आतुर चुदाई के मैदान में कूद पड़ा था। उसके शरीर पर एक चिंदी भी नहीं थी।
"आप दोनों जानवर हो। यह मुझपर सरासर ज्यादती है। एक बुड्ढा काफी नहीं था जो दो दो बुड्ढे मुझ जैसी लड़की के साथ ऐसे मुंह काला कर रहे हो?" मैं प्रकटत: अपनी झल्लाहट प्रकट करते हुए बोली, हालांकि मन ही मन तो बोल रही थी, "हां हां, चोद साले बुड्ढों। जम कर चोदो मादरचोदो। दे दो मजा डबल पिस्टन का सालों। कब से चुदने को तड़प रही थी।"
"साली रंडी, हमें जानवर बोल रही है। जिस तिस से लौड़ा खाती फिर रही है और हमें ज्ञान दे रही है कुतिया। भूल गयी कि गंजू और मुझसे कैसे एक साथ यहीं पर मजे से चुदवा रही थी हरामजादी? आआआआख थूऊऊऊ" कहते कहते घनश्याम अपने लंड पर थूक चुपड़ लिया। मैं जानती थी कि अब मेरी गान्ड का भी बाजा बजने वाला है। यह भी जानती थी कि यह मेरे लिए थोड़ी मुश्किल होने वाली थी, क्योंकि मेरी चूत में भलोटिया जैसे दानव का, मेरी जिंदगी का अब तक का सबसे बड़ा लंड फंसा हुआ था और अब घनश्याम का लंड मेरी गान्ड में घुसने को तैयार था। मुझे पता था कि घनश्याम का लंड भलोटिया के लंड जितना लंबा और मोटा नहीं था लेकिन था तो बड़ा ही। ऊपर से उसकी जो मुझे दंडित करके तकलीफ में देखने की मनोकामना थी वह भी पूरी नहीं हो रही थी, इसलिए निश्चित तौर पर वह मेरी गान्ड का भुर्ता बना कर अपनी खुन्नस निकालना चाहेगा। यह सोचकर मैं थोड़ी परेशान थी।
"जो बोलना है बोलिए। जो करना है कीजिए। लेकिन फिर भी मैं इतना जरूर कहूंगी कि मैंने इतनी भी बड़ी ग़लती नहीं की थी कि मेरे साथ इस तरह का सुलूक किया जाए।" मैं अपनी बनावटी नाराजगी जाहिर करते हुए बोली।
"जो गलती अनजाने में हो, वह माफी के लायक है लेकिन जो गलती जानबूझ कर की जाय वह गलती गलती नहीं, अपराध होता है और अपराध के लिए सजा तो बनता ही है, क्यों भलोटिया साहब, सही कहा ना?" वह भलोटिया का समर्थन की आशा से बोला लेकिन भलोटिया को तो इस वक्त सजा और मजा से कोई मतलब नहीं था। उसे तो इस वक्त जो चाहिए था उससे कहीं अधिक मिल रहा था। मजा ही मजा, मस्ती ही मस्ती।
"अबे चूतिए, तू भी कहां इस वक्त सजा वजा के पचड़े में पड़ा हुआ है। आह आह ओह ओह इतना मज़ा दे रही है हमारी बिटिया और तू मादरचोद सजा देने की सोच रहा है। चुपचाप चोदना है तो तू भी शामिल हो जा नहीं तो वहां सोफे में बैठकर मूठ मारता रह। अरे बिटिया तू इस लौड़े के ढक्कन की बात सुनकर रुको नहीं। आह आह ऐसे ही आह रानी ऐसे ही खाती रह मेरा लौड़ा। आह आह।" भलोटिया घनश्याम को लताड़ लगा कर मेरा हौसला अफजाई करते हुए बोला। घनश्याम उसकी बात सुनकर खिसिया कर रह गया लेकिन मैं जानती थी कि भलोटिया की बातों से उसके मन की खुन्नस में और घी डाल दिया था। क्योंकि तभी घनश्याम ने आव देखा ना ताव, अपने मूसल को मेरी गान्ड की छेद पर रख कर एक करारा धक्का मार दिया।
"आआआआआहहहह मर गयी हरामी कहीं के, ओह मांआंआंआंआं...." मैं दर्द से चीख पड़ी। उसने एक ही धक्के में अपना पूरा लंड मेरी गान्ड में घुसेड़ दिया था।